ईश्वर की बनायीं हुई सृष्टि में क्या सिर्फ मनुष्यों का ही अधिकार है या अन्य प्राणी भी यहाँ अपनी इच्छानुसार रहने में सक्षम है? क्या हम प्राणियों को सिर्फ मनुष्य निर्मित Zoo में ही देख सकते है ? या उनका अपना भी कोई संसार है जिसमे वो मुक्त विचरण करते है ? सभी प्राणी अपने प्राकृतिक जगत में किस तरह विचरण करते है यह जानने की उत्सुकता ने जंगल की ओर प्रस्थान की प्रेरणा दी .भारतीय वन क्षेत्रो (जिम कॉर्बेट या गिर राष्ट्रीय या बांधवगढ़ ) में घूमना बहुत अधिक बंधनकारी है एवं आपको वन्य प्राणियों से आमना सामना भी बहुत कम ही होता है .ये क्षेत्र चारो ओर से मनुष्यों के रहवास से भी घिरे हुए है ,अतः पूर्ण प्राणी जगत देखने से हम वंचित रह जाते है। हटारी, अफ्रीकन सफारी , बोर्न फ्री,या सेवेज हार्वेस्ट जैसी उत्कृष्ट हॉलीवुड फिल्मे देख कर एक उत्सुकता जागी थी कि क्या सच में अफ्रीका में इतने अधिक प्राणी है की मनुष्य उनके साथ रहने में असहज महसूस करे । सोचा चल कर देखा जाए...अब कहा जाया जाए ? सवाना...कालाहारी...सेरेंगेटी या मसाईमारा ?? पता चला सर्वश्रेष्ठ केन्या ही है जहा Big 5 ( सिंह,चीता,राइनो,हाथी,एवं जंगली भैसा या cape Buffalo) की बहुतायत में उपस्थिति है । केन्या में भारतीयों को 90 दिनों के लिए वीसा ऑन अराइवल की सुविधा उपलब्ध है मात्र $ 50 में । किन्तु इसके लिए भी पहले पीत ज्वर(yellow fever) व पोलियो का टीकाकरण आवश्यक है जो हर प्रदेश में एक या दो शहरों में ही उपलब्ध है । (म.प्र.व छत्तीसगढ़ के लिए सिर्फ AIIMS BHOPAL)
पहला दिन (9/4/2019)
सभी औपचारिकताये पूरी कर केन्या एयरवेज की मुंबई नैरोबी फ्लाइट बुक की एवं तय दिन हम चारो भाई बहन और बहनोई ऐसे पांच लोग सुबह आठ बजे निकल पड़े । लगभग 7 घंटे की हवाई यात्रा भूमध्य रेखा (Equator) पार कर पूर्ण हुई। भारत से ढाई घंटा पीछे है ये देश। यहाँ हमारे ट्रेवल एजेंसी की गाडी तैयार थी। यदि बिन बाधा के यात्रा पूर्ण हो तो यात्रा अधूरी ही कही जाएगी ...तो नैरोबी ( jomo kenyatta intl.airport) पहुच कर पता चला हमारा लगेज मुंबई में ही छोड़ दिया विमान कंपनी ने ....कहा गया अगले दिन आएगा..(केन्या एयरवेज में लगेज की ये समस्या सामान्य है एवं ये अक्सर होता है) उस दिन नैरोबी शहर घुमने का प्लान था...एक सामान्य महानगर (जिसमे नैरोबी नेशनल पार्क भी है ) किसी भी भारतीय नगर जैसा जिसमे अफ्रीकी मूल के लोगो का ही निवास है एवं साथ ही गुजराती समाज भी बहुतायत में है।वर्णन जैसा विशेष कुछ नही सिर्फ आश्चर्यजनक बात ये कि यहाँ होटलों में सीलिंग फैन या एसी की कोई व्यवस्था नही होती और ये बात अगले आठ दिनों में अलग अलग शहरों के सभी होटलों में दिखाई दी। फिर भी गर्मी कही महसूस नही होती,हवा बेहद ठंडी होती है। दक्षिणी गोलार्ध का ये हमारा पहला अनुभव रहा। रात काफी ठंडी हो गयी थी। अफ़्रीकी डिनर (जिसमे नॉन वेज की भरमार थी)में वेज खाना व खूब तरह के फल खा के थके हुए हम सो गये।
दूसरा दिन (10/4/2019)
सुबह नित्य कर्मो से निवृत हो नाश्ता करने पहुचे जिसमे ब्रेड के साथ मक्खन जैम अंडे और ऑमलेट देख मन प्रसन्न हो गया ...पेट भर नाश्ता किया (इसके अलावा बीफ पोर्क आदि भी उपलब्ध थे) और अब हमारी 4×4लैंड क्रुज़र भी आ गयी थी | जिसमे छोटा फ्रिज था और उसमे पानी की बोतले थी।( हमें 2 लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन पानी मिलना था,यहाँ पानी बहुत महंगा और अनुपलब्ध है $ 2 में एक लीटर)।साथ ही इसमें रेडियो ट्रांसमीटर भी लगा था और बाहर खूब ऊँचा एन्टीना भी।
पहला काम था एअरपोर्ट से लगेज प्राप्त करना...अब भी आया होगा की नही.. शंकित मन से पहुचे...तसल्ली मिली जानकर कि रात को आ चूका है...औपचारिकताये पूर्ण कर सामान लिया और निकल पड़े ड्रीम डेस्टिनेशन मसाईमारा के लिए...बेहद साफ़ सुथरी सड़के..अत्यंत व्यवस्थित ट्राफिक...बीच बीच में अफ़्रीकी गाँव...वहा के लोग...उनकी रोजमर्रा की जीवनशैली का जायजा लेते आगे बढ़ते रहे...एक जगह लंच लिया जिसमे चावल और मैदे की रोटी(पारंपरिक रोटी या सब्जी की अपेक्षा ना करे) उबले आलू की सब्जी व फल सेब केला नारंगी उपलब्ध थे।लगभग 330 किमी की यात्रा कर 4 बजे मसाईमारा पहुचे। औपचारिकता पूर्ण कर पार्क में प्रवेश किया । ये अंतिम जगह थी जहा स्थानीय मनुष्य नाम का प्राणी दिखा...आगे टूरिस्ट के अलावा कही कोई नही रहता। 1510 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले हुए इस स्थान में सिर्फ और सिर्फ प्राणी जगत का साम्राज्य है। गाडी की छत खोल दी गयी
इस सख्त निर्देश के साथ कि कोई भी नीचे नही उतरेगा और खुली छत से ही दृश्य देखे जाए अन्यथा किसी हिंसक पशु का शिकार बन जाने की पूरी सम्भावना है। और शुरुआत हमेशा की तरह हिरनों के साथ हुई..सैकड़ो की संख्या में...फिर जेब्रा...वो भी अनगिनत...ना उन्हें गाडी की परवाह थी न हमारी...वो अपने भोजन में व्यस्त थे या आपस में खेलने में....दूर दूर तक फैलाव ग्रास लैंड्स का...एक्का दुक्का पेड़...3 से 4 फुट ऊँची घास जिनमे सिंह भी छुप कर शिकार करते है।
इसके बाद विल्डेबीस्ट का एक विशाल समूह दिखा ...(ये 15 लाख से अधिक संख्या में मसाईमारा से सेरेंगेटी और वापसी की सैकड़ो किमी की यात्रा करते है जून जुलाई में जिसे यहाँ का प्रसिद्द माइग्रेशन कहते है जिसमे पूरी तरह प्रवाहित मारा नदी पार करते समय मगरमच्छ इन्हें बहुतायत में शिकार बनाते है। साथ ही सिंहो के लिए भी इनका शिकार आसान होता है) आगे जिराफ विभिन्न आकार व रंगों के दिखाई देना शुरू हो गये...इन्हें प्राकृतिक वातावरण में विचरण करते देखना अदभुत था।
दूर कही कही हाथी भी दिखाई दे रहे थे। हम इनके संसार में खो से गये थे तभी हमारे ड्राईवर कम गाइड को दूर "कुछ" दिखाई दिया और उस तरफ गाडी भगाई और रेडियो पर स्थानीय स्वाहिली भाषा में कुछ प्रसारण करने लगा..कुछ मिनिटो में पहुच के देखा जंगल के राजा सिंह को...बेहद पास ले जाकर जब गाडी रोकी तब तक हम रोमांचित हो गये थे..दुसरे ही घंटे में सिंह दर्शनों की अपेक्षा नही की थी।
तभी पांच छः गाडिया और आ गयी । वहा से हटने की हमारी इच्छा नही थी पर सिंह ही हमसे बोर हो गया और घास के अन्दर लुप्त हो गया। उसके बाद बिग 5 का तीसरा सदस्य जंगली भैसा(cape Buffalo) का समूह दिखाई दिया। सिर्फ 2 ही घंटे में हमें अंदाज़ हो गया था की हमने सफारी भ्रमण के लिए सही स्थान चुना है।
शाम छः बजे हम अपने रहने की जगह Explore mara resort पहुचे जहा स्थानीय आदिवासी नृत्य के साथ हमारा स्वागत किया गया और वेलकम ड्रिंक उपलब्ध कराया। जंगल के बीचोबीच अत्यंत सुन्दर 46 कोटेजेस का यह इस क्षेत्र का प्रतिष्ठित रिसोर्ट है और हमारी कॉटेज में भी फैन नही था।
अफ़्रीकी वेज डिनर के बाद हम अपने कॉटेज में गये इस निर्देश के साथ की रात में अकेले बाहर नही निकले क्योकि पास बहती नदी में तेंदुए भेडिये सियार अक्सर रिसोर्ट में आ जाते है...
तीसरा दिन 11/4/2019
खुबसूरत ठंडी सुबह कॉटेज के बाहर निकले तो देखा दो जिराफ चहलकदमी कर रहे थे...दंग रह गये उन्हें देख कर...नाश्ता कर के लौट रहे थे तभी रिसोर्ट के मेनेजर ने दिखाया दूर एक तेंदुआ हिरन का पीछा कर रहा था और दोनों झाड़ियो में गायब हो गये...सुबह सुबह जब की अभी सफारी शुरू भी नही हुई थी और ऐसे दृश्य दिखाई दिए..अचंभित रोमांचित हम लोग उनके रहवासी क्षेत्र में स्वयं को मेहमान से लगे। लंच पैकेट्स ले के सफारी के लिए निकले जिसे यहाँ गेम ड्राइव कहते है।
कल 2 घंटे थोड़े से क्षेत्र में घुमे पर आज का पूरा दिन सारा जंगल हमारे लिए मुक्त था बिना किसी वन अधिकारीयो की रोक टोक या प्रतिबन्ध के। गाडी धीमी गति से चल रही थी और आसपास सैकड़ो हजारो की संख्या में प्राणी जगत विराजमान था। हिरन, जेब्रा, विल्डेबीस्ट, केप बफेलो,जिराफ,हाथी,सियार,लकड़बग्घे, झुण्ड के झुण्ड...इंसान के अलावा सब कुछ...मन भरता ही नही था...
तभी रेडियो पे कोई सन्देश आया और ड्राईवर ने जोर से यु टर्न लिया और हमारे दिलो की धड़कन बढ़ गयी...कुछ तो अदभुत अविस्मरणीय देखने को मिलने की उम्मीद जागी और लगभग 10 मि में ही जहा पहुचे उस जगह पांच युवा चीतो का एक समूह दिखाई दिया..वहा इनको फाइव ब्रदर्स कहते है..
ये सभी दूर एक जेब्रा के झुण्ड की तरफ शिकार की दृष्टी से नज़र गडाए हुए थे और हमारी उपस्थिति से अविचलित थे। तभी एक चीता मेरी खिड़की के करीब आया और मौका देख के मैंने उसके साथ एक सेल्फी ले ली
अत्यंत संयम से पांचो चीते धीरे धीरे अपने शिकार की तरफ बढ़ रहे थे एवं हम शिकार देखने के लिए अधीर हुए जा रहे थे...लगभग एक घंटे तक सब लोग सांस थामे इंतज़ार कर रहे थे और फिर इंतज़ार ख़त्म हुआ ...उनमे से एक अपनी विश्वविख्यात तेज़ रफ़्तार से जेब्रा की ओर लपका ...लगभग 200 मीटर तक हमें दिखाई दिया और फिर घास में छुप गया और हमने देखा की जेब्रा समूह को उनकी भनक मिल गयी थी तो वो भी पूरी रफ़्तार से भागे...फिर हमारी दृष्टी से सब ओझल हो गये...पता नही चला सफल हुए या नही ...पर हमें आजीवन एक अविस्मरणीय दृश्य प्रदान कर गये।
सभी गाडीयो के लोग मन्त्रमुग्ध से काफी देर वही खड़े रहे फिर आगे बढ़ गये । एक बजे लंच के लिए रुकने की जगह तलाशते जा रहे थे तभी एकाएक ब्रेक लगा ...गाडी से मुश्किल से 10 फीट की दुरी पे दो सिंह पेड़ के नीचे आराम कर रहे थे
कितना देखे कितनी देर देखे..उन्हें कही नही जाना था पर हमें आगे बढ़ना ही था....लंच के लिए सुरक्षित जगह ढूंढ़ रहे थे की एक झाडी में सरसराहट हुई...रुक के देखा एक तेंदुआ पेट भर के छाँव में आराम फर्मा रहा था...पास ही ताजे खून के निशान इस बात की पुष्टि कर रहे थे।
अंततः नदी के किनारे पहुचे जहा सिर्फ हिरन और जेब्रा आसपास थे ...वही पैक्ड लंच खाया ....आधे घंटे बाद नदी की तरफ तांक झाँक करने गये...कुछ मगरमच्छ किनारे कुछ तैरते हुए...हमारी तरफ किसी की तवज्जो नही...उन्हें इतनी तरह का स्वादिष्ट भोजन उपलब्ध है तो इंसान के मांस में उनकी कोई रूचि नही है ऐसा लगा...थोड़ी ही दूर लगभग 20/25 दरियाई घोड़े या हिप्पोपोटमस नदी के ठन्डे पानी में पड़े थे...ये पहली बार था की हम पानी के पास थे और ड्राईवर ने (जो की गाइड भी था) बताया की जहा पानी मिलेगा वहा दस बीस हिप्पो जरुर दिखेंगे और आगे लगभग सभी जगह ये बात सच साबित हुई।
जंगल में रास्ते तो थे नही...गाडियों के टायर से बनी जगह इतनी उबड़ खाबड़ होती थी उस पर तेज़ चलना संभव नही था फिर दिन दिन भर खुली छत से खड़े हुए देखना आखिर थका देता है...कभी किसी पेड़ की डाल पे बैठा तेंदुआ तो कही झाड़ियो में शेरो का परिवार...अचानक कही से जिराफ या जेब्रा का दौड़ते हुए निकल जाना....लग रहा था की कोई नेशनल जियोग्राफिक या एनिमल प्लेनेट टीवी देख रहे है...विश्वास नही हो रहा था की ये सब नज़रो के सामने घटित हो रहा है। शाम के समय सभी शिकारी बाहर निकलते है और रात में शिकार होता है...फिर दिन भर आराम... अब हम रात के आराम के लिए निकले...अगले दिन नैवाशा शहर जाना था।
चौथा व पांचवा दिन
इन दो दिनों में हमें नाकुरू और नैवाशा नाम के दो विभिन्न शहरों में रहना था जहा 2 प्रसिद्ध झील है जो पक्षियों की लगभग 300 विभिन्न प्रजातियों का प्रतिनिधित्व करती है। मसाईमारा से लगभग 290 किमी दूर स्थित नैवाशा झील मुख्यतः पक्षियों और हिप्पो के निवास स्थान के लिए मशहूर है। यहाँ लगभग 2 घंटे की बोट राइड है जिसमें विभिन्न प्रकार के पक्षी जगत का अवलोकन किया जाता है। नाकुरू का मुख्य आकर्षण भी यहाँ की झील है जिसमे प्रतिवर्ष 5 लाख तक फ्लेमिंगो का माइग्रेशन होता है और सारी झील उन्ही का बसेरा बन जाती है। इसी जगह पहली बार राइनो(Rhinoceros) देखने को मिला। दोनों ही शहरो में तापमान अत्यंत कम था। दक्षिणी गोलार्ध में यह शीत ऋतू का समय होता है तब उत्तरी गोलार्ध में गर्मियों की शुरुआत होने लगती है। नैवाशा में पैनोरमा पार्क रिसोर्ट और नाकुरू में होटल रीजेंट में हमारा निवास था।
छठा दिन 14/4/2019
नैवाशा से लगभग 330 किमी दूर अम्बोसिली नेशनल पार्क है जहा का मुख्य आकर्षण जायंट अफ्रीकन एलीफैंट है...दूसरा आकर्षण माउंट किलिमंजारो है। लगभग दिन भर की यात्रा के बाद शाम 4 बजे पहुचे । पहुचते ही दर्शन हुए किलिमंजारो के
माउंट किलिमंजारो
यह अफ्रीका महाद्वीप का सब से ऊँचा पर्वत है जिसकी समुद्र सतह से ऊंचाई 19341 फीट या 5895 मीटर (लगभग 6 किमी) है एवं भूमध्य रेखा पर यह एकलौता स्थान है जहा बर्फ़बारी होती है। बादलो के कारण पहले हमें इसका टॉप दिखाई नही दिया किन्तु जैसे ही बदल छटे हम बर्फ से ढंका इसका टॉप देख कर झूम उठे। फिर तो अम्बोसिली में कही भी जाए तो ये साथ ही चलता है। वास्तव में ये पर्वत तंज़ानिया का हिस्सा है और केन्या की तरफ इसका सिर्फ तल क्षेत्र है अतः हमें इसके दर्शन कर के ही संतोष करना पड़ा। लगभग एक लाख साल पूर्व ज्वालामुखी के फटने से धीरे धीरे इसका निर्माण हुआ था। अब ज्वालामुखी शांत हो चूका है और ये अब ट्रेकींग करने वाले यात्रियों का अत्यंत मशहूर आकर्षण का केंद्र है।
अम्बोसिली नेशनल पार्क
यहाँ प्रवेश करने के बाद एक अलग ही संसार में आने का अहसास होता है। किलिमंजारो से बर्फ पिघल कर नीचे मैदान को दलदली जमीन के रूप में बदल देती है जो यहाँ के विशाल हाथियों के लिए स्वर्ग का रूप हो जाती है। इन दलदल में ढेर सारी हरी घास उगती है जो हाथी का प्रिय भोजन है।
इसके बाद तो हाथियों के कई कई समूह देखने को मिले जिनमे 30 से 50 तक छोटे बड़े बच्चे सब मौजूद थे। बच्चे सुरक्षा के कारण समूह के बीचोबीच और बड़े बाहर की तरफ। यहाँ लगभग तीन हज़ार हाथी है जो इसी प्रकार अपने समूह बना के रहते है और दलदल की हरी घास खाते है। एक वयस्क हाथी प्रतिदिन दो क्विंटल तक भोजन करता है। अगले दोनों दिनों में हमें बहुत सारे हाथी समूह दिखे ... शाम को एक बेहद खुबसूरत रिसोर्ट में रुकने की व्यवस्था थी जहा से माउंट किलिमंजारो पूरा दिखाई देता था
सांतवा दिन 15/4/2019
रोज ही हमारे गाइड श्री लेतलोइ हमें निर्देश देते है कि सुबह 6 बजे ब्रेकफास्ट मिल जायेगा और सात बजे हम जंगल की ओर निकलेंगे पर हम कभी भी समय के पाबंद नही रह पाए शायद इसीलिए अब तक हमें शिकार करते हुए देखने को नही मिला।आज उम्मीद का अंतिम दिन था। बिल्कुल देर न करते हुए निर्धारित समय आठ बजे निकल गये और सब से पहले शुतुरमुर्ग ( ostrich)का एक झुण्ड अठखेलिया करता हुआ मिला...दो नरो को नृत्य करते देखना अदभुत था...पीछे मादाए आ रही थी...उन्हें रिझाने का प्रयास था। शुतुरमुर्ग मसाईमारा में भी दिखे किन्तु यहाँ बहुतायत में थे। छः से आठ फुट ऊंचाई के ये एकलौते पक्षी है जो उड़ नही सकते किन्तु एक आदमी को पीठ पे बिठा कर चालीस किमी की रफ़्तार से दौड़ सकते है। प्रकृति की अदभुत रचना। आगे हर तरफ हर प्राणी तंज़ानिया स्थित सेरेंगति की ओर बढ़ता दिखाई दे रहा था...पता चला वहा घास के मैदान अधिक है इसलिए उधर सारे जायेंगे और जुलाई में इस तरफ वापस आयेंगे। कौन इन्हें बुद्धि देता है ? कहा से दिशा ज्ञान मिलता है? कैसे जान जाते है कि कहा भोजन कम या अधिक है ? सब कुछ विस्मयकारी !
यकायक पुनः गाडी की दिशा और गति परिवर्तन हुआ...आगे दो या तीन किमी खूब तेज़ गाडी चली और फिर जो दृश्य दिखाई दिया उसकी कल्पना नही की थी। गाडी के बायीं तरफ सात सिंहो का समूह और दाई ओर 2 मादाए अपने तीन नवजात शिशु सिंहो के साथ...सब स्तब्ध खड़े थे...सभी दिशाओ से गाडिया इसी तरफ आ गयी थी...और अब बायीं तरफ से एक एक सिंह का गाडी की ओर आना शुरू हुआ...सब के कैमरे उनकी तरफ मुड़े हुए थे...पर वे हमें पूर्णतः नज़रअंदाज करते हुए हम लोगो की गाडियों के बीच से निकल रहे थे। उनकी गर्वीली चाल देख कर यकीन हो गया की वे निर्विवाद जंगल के राजा है। इनकी मस्त चाल को पांच मि के विडियो में कैद किया पर एक भी स्थिर चित्र नही लिया गया है। सातो सिंह उस ओर बढे जहा शिशु थे किन्तु फिर वे दूसरी तरफ चले गये। यही सब लगभग 2 घंटे देखते रहे। कब शाम हुई पता ही नही चला। आज भी किलिंग देखने को नही मिली। 2 बार मौका आया पर दोनों बार कुछ दिखाई नही दिया। शायद ईश्वर नही चाहता था की हम हत्या होते देखे।
अंतिम दिन 16/4/2019
आज अंतिम दिन था और कही जाने की जल्दी नही थी इसलिए आराम से उठे और रिसोर्ट के पूल में स्विमिंग का आनंद लिया। आसपास यहाँ भी बबून बन्दर और हिरनों की भरमार थी। रिसोर्ट के चारो ओर तार की बाउंड्री थी जिसमे हल्का करंट प्रवाहित होता था। नाश्ता कर के लंच पैक करा के 230 किमी दूर नैरोबी की ओर प्रस्थान किया जहा से रात आठ बजे मुंबई की फ्लाइट थी। अफ्रीका की शान किलिमंजारो के साथ सब ने एक फोटो खिचवाया।
सिंह/ चीता/ तेंदुआ/ हाईना/ जेकल/ हाथी/ हिप्पो/ गेंडा/ विल्डबीस्ट/ जंगली भैसा /मगरमच्छ /शुतुरमुर्ग/जिराफ/जेब्रा/हिरन/बबून मंकी/फ्लेमिंगो/क्रेन क्राउन/बर्ड्स 100 टाइप/ब्लू बुल/ हैरेक्स (रोडेंट प्रजाति का बड़ा सा चूहे जैसा) इतने इतने प्राणी उनके प्राकृतिक आवास में देख कर मन आनंद से सराबोर था। निर्विघ्न संपन्न हुई ये ड्रीम ट्रिप और ढेर सारी यादे दे गयी। मन उदास था की अब शायद फिर से इन खुबसूरत प्राणियों का साथ मिले ना मिले यथा समय फ्लाइट में सवार हुए और सुबह 5 बजे मुंबई उतरे। इस तरह समाप्त मेरा ये यात्रा वृत्तान्त आगे फिर किसी यात्रा वर्णन के साथ मिलता हु। धन्यवाद संजीव जोशी 8989405617