पूरे दिन का अवकाश मà¥à¤à¥‡ कम ही मिलता है , à¤à¤• होली वाले दिन और दूसरा दीपावली के अगले दिन , जब कà¥à¤²à¥€à¤¨à¤¿à¤• बनà¥à¤¦ रहती है । शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤¸à¥à¤¤à¥€ जाने का मन कई सालों से था , लेकिन संयोग बना गत वरà¥à¤· दीपावली के अगले दिन । सोच कर गये थे कि दो घंटे मे शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤¸à¥à¤¤à¥€Â का अतीत देख लेगें लेकिन लगे पूरे छ घंटे । à¤à¤—वान बà¥à¤¦à¥à¤§ , अंगà¥à¤²à¤¿à¤®à¤¾à¤²Â और कई जैन तीरà¥à¤¥à¤¾à¤•रों की कहानियाठकई जगह पढी थी लेकिन सजीव ही अतीत के उन अवशेषों को देखने का मौका मिला । देर रात घर लौटते हà¥à¤¯à¥‡ लगा कि कà¥à¤› पल और शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤¸à¥à¤¤à¥€ में रà¥à¤• लेते ।  शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤¸à¥à¤¤à¥€ à¤à¥à¤°à¤®à¤£Â की यह यादें मानो मन:पटल मे आज à¤à¥€ सजीव रà¥à¤ª से अंकित है । यह पोसà¥à¤Ÿ शायद पिछले वरà¥à¤· ही डाल देनी चाहिये थी लेकिन समयà¤à¤¾à¤µ के कारण संà¤à¤µ न हो पाया । पूरी यातà¥à¤°à¤¾ के दौरान मेरे पà¥à¤°à¤¿à¤¯ मितà¥à¤° शà¥à¤°à¥€ राजेश चनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾ जी का साथ फ़ोन के माधà¥à¤¯à¤® से बना रहा , देर रात घर लौटने तक वह मेरे और मेरे परिवार के कà¥à¤¶à¤²à¤ªà¥à¤°à¥‡à¤®Â की बार –२ खबर लेते रहे । उनके पà¥à¤°à¥‡à¤® रà¥à¤ªà¥€ वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° की मधà¥à¤° सà¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤ मà¥à¤à¥‡Â हमेशा उनकी याद दिलाती रहेगी । साथ ही में पूरà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾à¤® विहार के à¤à¤¿à¤•à¥à¤·à¥ शà¥à¤°à¥€ विमल तिसà¥à¤¸ जी का à¤à¥€ जिनके सहयोग के बगैर कई तथà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को जानना मेरे लिये संà¤à¤µ नही होता ।
शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤¸à¥à¤¤à¥€ से à¤à¤—वानà¥â€Œ बà¥à¤¦à¥à¤§ का गहरा रिशता  रहा है । यह तथà¥à¤¯ इसी से पà¥à¤°à¤•ट होता है कि जीवन के उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥ के २५ वरà¥à¤·à¤¾à¤µà¤¾à¤¸( चारà¥à¤¤à¥à¤®à¤¾à¤¸ ) बà¥à¤¦à¥à¤§ ने शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤¸à¥à¤¤à¥€ मे ही बिताये । बà¥à¤¦à¥à¤§ वाणी संगà¥à¤°à¤¹ तà¥à¤°à¤¿à¤ªà¤¿à¤Ÿà¤• के अनà¥à¤¤à¤°à¥à¤—त ८à¥à¥§ सूतà¥à¤°à¥‹à¤‚ ( धरà¥à¤® उपदेशॊ ) को à¤à¤—वानà¥â€Œ बà¥à¤¦à¥à¤§ ने शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤¸à¥à¤¤à¥€ पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¸ मे ही दिये थे , जिसमें ८४४ उपदेशों को जेतवन – अनाथपिंडक महाविहार में व २३ सूतà¥à¤°à¥‹à¤‚ को मिगार माता पूरà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾à¤® मे उपदेशित किया था । शेष ४ सूतà¥à¤°à¥‹à¤‚ समीप के अनà¥à¤¯ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ मे दिये गये थे । à¤à¤—वान बà¥à¤¦à¥à¤§ के महान आधà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¿à¤• गौरव का केनà¥à¤¦à¥à¤° बनी शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤¸à¥à¤¤à¥€ का सांसà¥à¤•ृतिक पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¹ मे à¤à¤¯à¤¾à¤¨à¤• विधà¥à¤µà¤‚सों के बाद वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ मे à¤à¥€ यथावत है ।
इतिहास मे दृषà¥à¤Ÿà¤¿ दौडायें तो कई रोचक तथà¥à¤¯ दिखते हैं । पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ काल में यह कौशल देश की दूसरी राजधानी थी। à¤à¤—वान राम के पà¥à¤¤à¥à¤° लव ने इसे अपनी राजधानी बनाया था। शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤¸à¥à¤¤à¥€ बौदà¥à¤§ व जैन दोनो का तीरà¥à¤¥ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ है।
माना गया है कि शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤¸à¥à¤¤à¤¿ के सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर आज आधà¥à¤¨à¤¿à¤• सहेत महेत गà¥à¤°à¤¾à¤® है जो à¤à¤• दूसरे से लगà¤à¤— डेढ़ फरà¥à¤²à¤¾à¤‚ग के अंतर पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ हैं। यह बà¥à¤¦à¥à¤§à¤•ालीन नगर था, जिसके à¤à¤—à¥à¤¨à¤¾à¤µà¤¶à¥‡à¤· उतà¥à¤¤à¤° पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ राजà¥à¤¯ के, बहराइच à¤à¤µà¤‚ गोंडा जिले की सीमा पर, रापà¥à¤¤à¥€ नदी के दकà¥à¤·à¤¿à¤£à¥€ किनारे पर फैले हà¥à¤ हैं।
इन à¤à¤—à¥à¤¨à¤¾à¤µà¤¶à¥‡à¤·à¥‹à¤‚ की जाà¤à¤š सनà¥â€Œ 1862-63 में जनरल कनिंघम ने की और सनà¥â€Œ 1884-85 में इसकी पूरà¥à¤£ खà¥à¤¦à¤¾à¤ˆ डा. डबà¥à¤²à¥‚. हà¥à¤ˆ (Dr. W. Hoey) ने की। इन à¤à¤—à¥à¤¨à¤¾à¤µà¤¶à¥‡à¤·à¥‹à¤‚ में दो सà¥à¤¤à¥‚प हैं जिनमें से बड़ा महेत तथा छोटा सहेत नाम से विखà¥à¤¯à¤¾à¤¤ है। इन सà¥à¤¤à¥‚पों के अतिरिकà¥à¤¤ अनेक मंदिरों और à¤à¤µà¤¨à¥‹à¤‚ के à¤à¤—à¥à¤¨à¤¾à¤µà¤¶à¥‡à¤· à¤à¥€ मिले हैं। खà¥à¤¦à¤¾à¤ˆ के दौरान अनेक उतà¥à¤•ीरà¥à¤£ मूरà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤ और पकà¥à¤•ी मिटà¥à¤Ÿà¥€ की मूरà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हà¥à¤ˆ हैं, जो नमूने के रूप में पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶à¥€à¤¯ संगà¥à¤°à¤¹à¤¾à¤²à¤¯ (लखनऊ) में रखी गई हैं। यहाठसंवतà¥â€Œ 1176 या 1276 (1119 या 1219 ई.) का शिलालेख मिला है, जिससे पता चलता है कि बौदà¥à¤§ धरà¥à¤® इस काल में पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ था। जैन धरà¥à¤® के पà¥à¤°à¤µà¤°à¥à¤¤à¤• à¤à¤—वानà¥â€Œ महावीर ने à¤à¥€ शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤¸à¥à¤¤à¤¿ में विहार किया था। चीनी यातà¥à¤°à¥€ फाहियान 5वीं सदी ई. में à¤à¤¾à¤°à¤¤ आया था। उस समय शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤¸à¥à¤¤à¤¿ में लगà¤à¤— 200 परिवार रहते थे और 7वीं सदी में जब हà¥à¤à¤¨ सियांग à¤à¤¾à¤°à¤¤ आया, उस समय तक यह नगर नषà¥à¤Ÿà¤à¥à¤°à¤·à¥à¤Ÿ हो चà¥à¤•ा था। सहेत महेत पर अंकित लेख से यह निषà¥à¤•रà¥à¤· निकाला गया कि ‘बल’ नामक à¤à¤¿à¤•à¥à¤·à¥ ने इस मूरà¥à¤¤à¤¿ को शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤¸à¥à¤¤à¤¿ के विहार में सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ किया था। इस मूरà¥à¤¤à¤¿ के लेख के आधार पर सहेत को जेतवन माना गया। कनिंघम का अनà¥à¤®à¤¾à¤¨ था कि जिस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ से उपरà¥à¤¯à¥à¤•à¥à¤¤ मूरà¥à¤¤à¤¿ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हà¥à¤ˆ वहाठ‘कोसंबकà¥à¤Ÿà¥€ विहार’ था। इस कà¥à¤Ÿà¥€ के उतà¥à¤¤à¤° में पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कà¥à¤Ÿà¥€ को कनिंघम ने ‘गंधकà¥à¤Ÿà¥€’ माना, जिसमें à¤à¤—वानà¥â€Œ बà¥à¤¦à¥à¤§ वरà¥à¤·à¤¾à¤µà¤¾à¤¸ करते थे। महेत की अनेक बार खà¥à¤¦à¤¾à¤ˆ की गई और वहाठसे महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ सामगà¥à¤°à¥€ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हà¥à¤ˆ, जो उसे शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤¸à¥à¤¤à¤¿ नगर सिदà¥à¤§ करती है। शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤¸à¥à¤¤à¤¿ नामांकित कई लेख सहेत महेत के à¤à¤—à¥à¤¨à¤¾à¤µà¤¶à¥‡à¤·à¥‹à¤‚ से मिले हैं।
महामंकोल थाई मनà¥à¤¦à¤¿à¤°
पà¥à¤°à¤¾à¤¤: दस बजे तक हम शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤¸à¥à¤¤à¥€ की सडकों पर थे । दूर से ही विशाल महामंकोल थाई मनà¥à¤¦à¤¿à¤° और बà¥à¤¦à¥à¤§ की पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾ दिख रही थी । लेकिन मनà¥à¤¦à¤¿à¤° मे परà¥à¤µà¥‡à¤¶ करने पर जà¥à¤žà¤¾à¤¤ हà¥à¤† कि सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ लोगों के लिये मनà¥à¤¦à¤¿à¤° के दà¥à¤µà¤¾à¤° २ बजे के बाद खà¥à¤²à¤¤à¥‡ है । मनà¥à¤¦à¤¿à¤° की फ़ोटॊ लेने की अनà¥à¤®à¤¤à¤¿ नही है । हाà¤à¤²à¤¾à¤•ि बाहर से फ़ोटॊ ले सकते हैं । दोपहर २.३० बजे हम इस विशाल फ़ैले हà¥à¤¯à¥‡ पà¥à¤°à¤¾à¤‚गण के अनà¥à¤¦à¤° पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ कर गये । मनà¥à¤¦à¤¿à¤° का संचालन थाई यà¥à¤µà¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ और उनà¥à¤•े सà¥à¤Ÿà¤¾à¤«à¤¼ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ किया जाता है । थाई शैली पर बना यह मनà¥à¤¦à¤¿à¤° बेहद दरà¥à¤¶à¥€à¤¨à¥€à¤¯Â है ।
जेतवन अनाथपिणà¥à¤• महाविहार ( सहेठवन )
à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤¤à¥à¤µ विà¤à¤¾à¤— दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ संरकà¥à¤·à¤¿à¤¤ इस आशà¥à¤°à¤® ( विहार ) में अब केवल कà¥à¤Ÿà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की बà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾à¤¦ मातà¥à¤° रह गयी है । कहते हैं कि बà¥à¤¦à¥à¤§ विहार के निरà¥à¤®à¤¾à¤£Â लिये राजकीय जेतवन का चयन सà¥à¤¦à¥à¤¤à¥à¤¤ ने किया था । सà¥à¤¦à¤¤à¥â€Œ ने राजकà¥à¤®à¤¾à¤° जेत से उधान के लिये किसी à¤à¥€ कीमत पर आगà¥à¤°à¤¹ किया । कà¥à¤®à¤¾à¤° जेत ने à¤à¥‚खनà¥à¤¡ के बराबर सोने की मोहरों में सà¥à¤¦à¤¤ ने लेन देन सà¥à¤¨à¤¿à¤¶à¤šà¤¿à¤¤ किया । १८ करोड में विशाल à¤à¤µà¥à¤¯ सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤œà¤¨à¤• विहार का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ हà¥à¤† । राजकीय गौरव समà¥à¤®à¤¾à¤¨ के साथ यह अति रमणीय सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ à¤à¤—वान बà¥à¤¦à¥à¤§ को दानारà¥à¤ªà¤¿à¤¤ किया गया । यही कारण है कि धरà¥à¤® कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° मे सà¥à¤¦à¤¤ – अनाथपिडंक का नाम चिरसà¥à¤¥à¤¾à¤ˆ हो गया । इसी तपोà¤à¥‚मि पर à¤à¤—वान बà¥à¤¦à¥à¤§ ने विशाल à¤à¤¿à¤•à¥à¤·à¥ संघ के साथ उनà¥à¤¨à¥€à¤¸ चारà¥à¤¤à¥à¤®à¤¾à¤¸ ( वरà¥à¤·à¤¾à¤µà¤¾à¤¸ ) वà¥à¤¯à¤¤à¥€à¤¤ किये । समà¥à¤ªà¥‚रà¥à¤£ ८à¥à¥§ उपदेशों में से ८४४ सूतà¥à¤° इस जेताराम मे ही à¤à¤—वानà¥â€Œ बà¥à¤¦à¥à¤§ ने दिया था ।
मनà¥à¤¦à¤¿à¤° सं. १ à¤à¤µà¤‚ मोनेसà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€
धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ लगाते हà¥à¤¯à¥‡ विदेशी तीरà¥à¤¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤°à¥€
à¤à¤¸à¤¾ लगता है कि इस तपसà¥à¤¥à¤²à¥€ पर नैसरà¥à¤—िक शानà¥à¤¤à¤¿ की  सदोऊरà¥à¤œà¤¾ सरà¥à¤µà¤¤à¥à¤° आज à¤à¥€ विधमान है । कà¥à¤› कà¥à¤·à¤£ आà¤à¤–ों को बनà¥à¤¦ कर के गनà¥à¤§ कà¥à¤Ÿà¥€ के सामने खडा रहकर इस उरà¥à¤œà¤¾ का सà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥à¤à¤µ किया जा सकता है । यह मेरा दिवà¥à¤¯à¤¸à¥à¤µà¤ªà¤¨ था या कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾à¤¶à¥€à¤²à¤¤à¤¾ , यह कहना मà¥à¤¶à¤•िल है ।
जेतवन मे ही आगे बढने पर वयोवृदà¥à¤§ पीपल वृकà¥à¤· ‘ आननà¥à¤¦ बोध ’ के दरà¥à¤¶à¤¨ होते हैं । इसे पारिबोधि चैतà¥à¤¯ à¤à¥€ कहते हैं । à¤à¤¨à¥à¤¤à¥‡ आननà¥à¤¦ व à¤à¤¨à¥à¤¤à¥‡ महामौदगलà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¨ के सदà¥â€Œ पà¥à¤°à¤¯à¤¤à¥à¤¨ से बोध गया के महायोगी वृकà¥à¤· की संतति तैयार की गयी , जिसे आनाथपिडंक ने यहाठआरोपित किया था । कहते हैं कि à¤à¤—वानà¥â€Œ बà¥à¤¦à¥à¤§ ने इसके नीचे à¤à¤• रातà¥à¤°à¤¿ की समाधि लगाई थी ।
             आननà¥à¤¦ बोधि वृकà¥à¤· ( पारिबोधि चैतà¥à¤¯)
आननà¥à¤¦ बोधि वृकà¥à¤· के आस पास कई कà¥à¤Ÿà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की बà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾à¤¦à¥‡à¤‚ शेष हैं जो बà¥à¤¦à¥à¤§à¤•ाल के सà¥à¤µà¤°à¥à¤£à¤¿à¤® यà¥à¤— की à¤à¤• à¤à¤²à¤• दिखाती हैं । इनमें से पà¥à¤°à¤®à¥à¤– हैं : कौशामà¥à¤¬à¥€ कà¥à¤Ÿà¥€ ( मनà¥à¤¦à¤¿à¤° सं० ३ ), चकà¥à¤°à¤®à¤£ सà¥à¤¥à¤² , आननà¥à¤¦ कà¥à¤Ÿà¤¿ , जल कूप , धरà¥à¤® सà¤à¤¾ मणà¥à¤¡à¤ª , करील कà¥à¤Ÿà¥€( मनà¥à¤¦à¤¿à¤° सं० १ ) , पà¥à¤·à¥à¤•रिणी , शवदाह सà¥à¤¥à¤², सीवली कà¥à¤Ÿà¥€ (मनà¥à¤¦à¤¿à¤° सं० ॠ), आंगà¥à¤²à¤¿à¤®à¤¾à¤² कà¥à¤Ÿà¥€ , धातॠसà¥à¤¤à¥‚प, जनà¥à¤¤à¤¾à¤§à¤° सà¥à¤¤à¥‚प, अषà¥à¤Ÿ सà¥à¤¤à¥‚प , राजिकाराम ( मनà¥à¤¦à¤¿à¤° सं० १९ ) , पूतिगत तिसà¥à¤¸ कà¥à¤Ÿà¥€ ( मनà¥à¤¦à¤¿à¤° सं० १२ ) । शेष à¤à¤—à¥à¤¨à¤¾à¤µà¤¶à¥‡à¤· à¤à¥€ कà¥à¤Ÿà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के अथवा धातॠसà¥à¤¤à¥‚पों के हैं ।
अषà¥à¤Ÿ सà¥à¤¤à¥‚प
                गनà¥à¤§ कà¥à¤Ÿà¤¿ ( मनà¥à¤¦à¤¿à¤° सं० २ )
इन सà¥à¤¤à¥‚पों के अलावा जिस सà¥à¤¤à¥‚प का सरà¥à¤µà¤¾à¤§à¤¿à¤• महतà¥à¤µ है, वह है गनà¥à¤§ कà¥à¤Ÿà¤¿ ( मनà¥à¤¦à¤¿à¤° सं० २ ) । à¤à¤—वानà¥â€Œ बà¥à¤¦à¥à¤§ का यह निवास सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ था । चंदन की लकडी से निरà¥à¤®à¤¿à¤¤ यह सात तल की सà¥à¤‚दर à¤à¤µà¥à¤¯ कà¥à¤Ÿà¥€ थी । इसे अनाथपिणà¥à¤• ने बनवाया था । वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ खणà¥à¤¡à¤° के ऊपर का à¤à¤¾à¤— बà¥à¤¦à¥à¤§à¥‹à¤¤à¤° काल का पà¥à¤¨à¤°à¥à¤¨à¤¿à¤°à¥à¤®à¤¾à¤£ है । नीचे का à¤à¤¾à¤— बà¥à¤¦à¥à¤§à¥à¤•ालीन है , इसमें à¤à¤—वानà¥â€Œ बà¥à¤¦à¥à¤§ की पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾ बाद में सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ की गयी थी । चीनी यातà¥à¤°à¥€ फ़ाहà¥à¤¯à¤¾à¤¨ ने इस विधà¥à¤µà¤‚स पर दो मंजिला ईंट का बना à¤à¤µà¥à¤¯ बà¥à¤¦à¥à¤§ मनà¥à¤¦à¤¿à¤° देखा था । हà¥à¤µà¤µà¥‡à¤¨à¤¸à¤¾à¤‚ग के यातà¥à¤°à¤¾ काल मे वह मनà¥à¤¦à¤¿à¤° नषà¥à¤Ÿ हो चà¥à¤•ा था । ढांचें से सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ होता है कि दीवारों की आशारीय मोटाई छ: फ़à¥à¤Ÿ व पà¥à¤°à¤•ारों की आठफ़à¥à¤Ÿ है । समà¥à¤ªà¥‚रà¥à¤£ गनà¥à¤§à¤•à¥à¤Ÿà¥€ परिसर की माप ११५ * ८६ फ़ीट है ।
                       धरà¥à¤® सà¤à¤¾ मणà¥à¤¡à¤ª
गनà¥à¤§ कà¥à¤Ÿà¤¿ से लगा हà¥à¤†Â धरà¥à¤® सà¤à¤¾ मणà¥à¤¡à¤ª à¤à¤—वानà¥â€Œ बà¥à¤¦à¥à¤§ का धरà¥à¤®à¥‹à¤ªà¤¦à¥‡à¤¶ देने का सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ था । यहाà¤Â à¤à¤¿à¤•à¥à¤·à¥à¤“ं और अनà¥à¤¯ जनों को बैठाकर à¤à¤—वान बà¥à¤¦à¥à¤§ धरà¥à¤®à¥Œà¤ªà¤¦à¥‡à¤¶ करते थे । इनके दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ ८४४ धरà¥à¤® उपदेश यही से दिये गये थे ।
कà¥à¤› अनà¥à¤¯ सà¥à¤¤à¥‚पों के चितà¥à¤° :
मनà¥à¤¦à¤¿à¤° सं. ११ à¤à¤µà¤‚ १२
                मनà¥à¤¦à¤¿à¤° सं. १९ à¤à¤µà¤‚ मोनेसà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€
सà¥à¤¤à¥‚प संखà¥à¤¯à¤¾ ५
जेतवन से हम चलते हैं महेठवन की ओर ( लेकिन अगले अंक में )
…….. शेष अगले à¤à¤¾à¤— में …..
श्रावस्ती मेरे शहर से ५०-६० km के करीब है लेकिन मुझे कभी मौका नही मिला जाने का । आपका लेख देख कर काफी अच्छा लगा ।
Thanks Prabhat Sir for writing about this.
प्रभात जी यात्रा-संस्मरण को साझा करने के लिए घुमक्कड़ पर स्वागत है. श्रावस्ती अपने आप में अनेक ऐतिहासिक व सांस्कृतिक तथ्यों को संजोये हुए है. साहित्यिक हिंदी में लिखे हुए लेखो के माध्यम से पाठकों को इस सन्दर्भ में अधिक जानने का अवसर मिलेगा. श्रावस्ती का विषाद वर्णन प्रशंसनीय है.
आगे भी इसी प्रकार ऐतिहासिक ज्ञानवर्धक लेखों की प्रतीक्षा है.
डाक्टर साहब… बहुत उम्दा पोस्ट है.. वर्णन बहुत गहराई से किया है… घुमक्कड़ पर आपका स्वागत है
Welcome on Ghumakkar with a good post on less known place.
Thanks for sharing.
Welcome aboard Dr. Tandon.
The log has been written in a literary style and just by reading, one gets a lot of peace. It is almost like a therapy, to borrow from medical parlance.
Please do respond to comments, as your time allows and please write more. Wishes.