सà¤à¥€ जानने वाले लोग मना कर रहे थे कि बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤—िरी की पदयातà¥à¤°à¤¾ नहीं करूà¤. कोई समà¤à¤¾ रहा था कि मारà¥à¤š की गरà¥à¤®à¥€ बरà¥à¤¦à¤¾à¤¶à¥à¤¤ नहीं होगी तो कोई कह रहा था कि इतनी कठिन यातà¥à¤°à¤¾ परिवार सहित नहीं की जा सकती. पर हम थे कि पदयातà¥à¤°à¤¾ करने के लिठअड़े हà¥à¤ थे. यातà¥à¤°à¤¾ की कठिनाइयों के बारे में हमें कà¥à¤› जà¥à¤žà¤¾à¤¤ तो था नहीं. उसी अजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¤à¤¾ के मारे ही हम अड़े हà¥à¤ थे. अंत में जिद सफल हà¥à¤ˆ. शà¥à¤°à¥€ दानी नामक à¤à¤• वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ हमारे साथ कर दिया गया, जो पिछले कई बार से बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤—िरी लाà¤à¤˜ चà¥à¤•ा था. २६ मारà¥à¤š २०१६ को तडके ६ बजे हमलोग नाशिक से रवाना हो लिà¤. नाशिक से तà¥à¤°à¥ˆà¤®à¥à¤¬à¤•ेशà¥à¤µà¤° का रासà¥à¤¤à¤¾ बहà¥à¤¤ ही बढ़िया था. आसानी से हम सब तà¥à¤°à¥ˆà¤®à¥à¤¬à¤•ेशà¥à¤µà¤° पहà¥à¤à¤š गà¤. शहर अà¤à¥€ रात की नींद से उठकर उबासी ही ले रहा था. इतनी सà¥à¤¬à¤¹ वहां सिरà¥à¤« कà¥à¤¶à¤µà¥à¤°à¤¤à¤¾ तीरà¥à¤¥ पर ही चहल-पहल थी. लोग-बाग़ सà¥à¤¬à¤¹ कà¥à¤¶à¤¾à¤µà¥à¤°à¤¤ में गोदावरी सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ कर रहे थे. यहीं सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ करने के बाद यह सà¤à¥€ तीरà¥à¤¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤°à¥€ तà¥à¤°à¥ˆà¤®à¥à¤¬à¤•ेशà¥à¤µà¤° जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग का दरà¥à¤¶à¤¨ करेंगे अथवा इसी सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर होने वाले पूजन-विधियों को संपनà¥à¤¨ करेंगे, जिसके लिठवे दूर-दूर से यहाठपधारें हैं.

कà¥à¤¶à¤¾à¤µà¥à¤°à¤¤ तीरà¥à¤¥
कà¥à¤¶à¤¾à¤µà¥à¤°à¤¤ को तीरà¥à¤¥à¤°à¤¾à¤œ का उपनाम पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ है और इसकी बहà¥à¤¤ महतà¥à¤¤à¤¾ है. परनà¥à¤¤à¥ हमारा आज का उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ तो बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤—िरी परà¥à¤µà¤¤ के शिखर पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ गोदावरी नदी का उदà¥à¤—मसà¥à¤¥à¤² देखना था. इसीलिठकà¥à¤¶à¤¾à¤µà¥à¤°à¤¤ में हमारा जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ मन नहीं लगा और हम सब जलà¥à¤¦à¥€ ही वहां से पà¥à¤¨à¤ƒ बाहर आ गà¤. यातà¥à¤°à¤¾ की तैयारी à¤à¥€ करनी थी. इस तरह की पदयातà¥à¤°à¤¾ के लिठकà¥à¤› तैयारियाठआवशà¥à¤¯à¤• होती हैं, जैसे कि पीने का पानी, कà¥à¤› à¤à¥‹à¤œà¤¨-सामगà¥à¤°à¥€, पैरों में उचित पà¥à¤°à¤•ार के जूते, टोपी (गरà¥à¤®à¥€ के दिनों में) और बरसाती (मानसून के दिनों में). जूते तो हमारे पास पहले से ही थे. बाकि सामगà¥à¤°à¥€ तà¥à¤°à¥ˆà¤®à¥à¤¬à¤•ेशà¥à¤µà¤° के बाज़ार से खरीद ली गयी. बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤—िरी की पदयातà¥à¤°à¤¾ जहाठसे पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤‚ठहोती है, उसी सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर महाराषà¥à¤Ÿà¥à¤° परà¥à¤¯à¤Ÿà¤¨ विकास पà¥à¤°à¤¾à¤§à¤¿à¤•रण दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ संचालित “संसà¥à¤•ृति हॉलिडे रिसोरà¥à¤Ÿâ€ है. तय यही हà¥à¤† कि वहीठपर कार खड़ी कर पदयातà¥à¤°à¤¾ शà¥à¤°à¥‚ की जाà¤à¤—ी. सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ लोग à¤à¤¸à¤¾ मानते हैं कि यातà¥à¤°à¤¾ शà¥à¤°à¥‚ करने के पहले à¤à¥‹à¤œà¤¨ नहीं करना चाहिà¤, हालाà¤à¤•ि शिखर पर जाते जाते à¤à¥‚ख अवशà¥à¤¯ लग जाती है. इतनी छोटी-छोटी तैयारियों के परà¥à¤¯à¤‚त, उसी रिसोरà¥à¤Ÿ में बस सà¥à¤¬à¤¹ की चाय पी कर, हम लोगों ने पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤ƒ à¥.४५ में पदयातà¥à¤°à¤¾ आरमà¥à¤ कर दी.

संसà¥à¤•ृति हॉलिडे रिसोरà¥à¤Ÿ
शà¥à¤°à¥‚ में करीबन १०० मीटर का रासà¥à¤¤à¤¾ सीमेंट से बना आरामदायक और चौड़ा था, जिसे देख कर हमें लगा कि नाहक ही लोग हमें पद यातà¥à¤°à¤¾ करने से मना कर रहे थे. हमारी पतà¥à¤¨à¥€à¤œà¥€ à¤à¥€ बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ थीं. à¤à¤¸à¥‡ चिकने रासà¥à¤¤à¥‡ पर तो आराम से पदयातà¥à¤°à¤¾ हो सकती थी. १०० मीटर के बाद रासà¥à¤¤à¤¾ दायीं तरफ मà¥à¤¡à¤¼à¤¾, जहाठशà¥à¤°à¥€ दानी जी खड़े थे. उनके हाथ में तीन छड़ियाठथीं. हम तीनों के लिठà¤à¤•-à¤à¤• छड़ी. आगे जरूरत होगी. खास कर बंदरों को दूर रखने के लिà¤. वैसे अà¤à¥€ तक रासà¥à¤¤à¥‡ ने ऊंचाई नहीं पकड़ी थी, तो हमें लग रहा था कि बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ का खेल है. हाथ में आई छड़ी से पतà¥à¤¨à¥€ जी ने कई मà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾à¤à¤ बनानी शà¥à¤°à¥‚ कर दिया, जैसे की महिषासà¥à¤°à¤®à¤°à¥à¤¦à¤¿à¤¨à¥€ इतà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿. और हम à¤à¥€ मसà¥à¤¤à¥€ में तसà¥à¤µà¥€à¤°à¥‡à¤‚ खेंचते चले जा रहे थे. मसà¥à¤¤à¥€ का आलम यह था कि सामने खड़ा विशाल बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤—िरी परà¥à¤µà¤¤ दिखाई ही नहीं दे रहा था.

यातà¥à¤°à¤¾ की शà¥à¤°à¥à¤†à¤¤à¥€ कà¥à¤·à¤£
यह à¤à¤• वन-कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° था, जो वन विà¤à¤¾à¤— तà¥à¤°à¥ˆà¤®à¥à¤¬à¤•ेशà¥à¤µà¤° के अंतरà¥à¤—त आता था. वन-विà¤à¤¾à¤— ने इस कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में पाठजाने वाले पकà¥à¤·à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ और विशेष वृकà¥à¤·à¥‹à¤‚ के बारे में जगह-जगह सà¥à¤šà¤¨à¤¾-पट लगाया था. लोगों को वनà¥à¤¯-जीवन तथा वृकà¥à¤·à¥‹à¤‚ की गà¥à¤£à¤µà¤¤à¥à¤¤à¤¾ बताने के लिठà¤à¥€ कई बोरà¥à¤¡ लगे हà¥à¤ थे, जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ पढ़-पढ़ कर हम और à¤à¥€ खà¥à¤¶ होते थे. रासà¥à¤¤à¤¾ धीरे-धीरे ऊà¤à¤šà¤¾ होते जा रहा था, पर ऊंचाई का अबतक हमें विशेष अनà¥à¤®à¤¾à¤¨ नहीं हो रहा था. तबतक हमारी नज़र उस बोरà¥à¤¡ पर पड़ी, जिसमें बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤—िरी पदयातà¥à¤°à¤¾ की कà¥à¤² संà¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ दूरी का वरà¥à¤£à¤¨ था. ३.६ किलोमीटर à¤à¤• साइड से. यह पढ़ कर थोड़ा माथा ठनका. कà¥à¤¯à¤¾ हम सब लोग इतनी दूर पैदल चल पाà¤à¤‚गे? पतà¥à¤¨à¥€ जी, जो थोड़े देर पहले महिषासà¥à¤°à¤®à¤°à¥à¤¦à¤¿à¤¨à¥€ बन रहीं थीं, अब घबरायीं. पर ढाढस बढाने पर आगे चल पड़ीं.

सूचना पट
हमारे साथ-साथ कà¥à¤› सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ महिलाओं ने à¤à¥€ यातà¥à¤°à¤¾ आरमà¥à¤ की थी, पर वे सब हमसे आगे निकल गयीं थीं. आगे जा कर वे विशà¥à¤°à¤¾à¤® करने लगीं. और जब हम पार हà¥à¤, तो हमें लकड़ी की छड़ी पकड़े देख कर हमारे ऊपर हà¤à¤¸à¤¨à¥‡ à¤à¥€ लगीं. पर हम कà¥à¤¯à¤¾ करते? पतà¥à¤¥à¤°à¥‹à¤‚ से बनी सीढ़ियों वाला रासà¥à¤¤à¤¾ था. और अब सीढियां ऊà¤à¤šà¥€ होती जा रही थीं. पर उन सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€à¤¯à¥‹à¤‚ की तो दाद देनी पड़ेगी जो बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤—िरी परà¥à¤µà¤¤ पर चढ़ कर पानी के गागरे à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€ हैं और फिर उन गागरों को सर पर रख कर अपने-अपने घरों को ले जातीं हैं.

बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤—िरी परà¥à¤µà¤¤ से गागर à¤à¤° लातीं सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€à¤¯à¤¾à¤‚
थोड़ी दूर जा कर हमने देखा कि à¤à¤• रासà¥à¤¤à¤¾ “गंगà¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°â€ की तरफ जा रहा था. शà¥à¤°à¥€ दानी के इशारे पर हम लोगों ने इसे लौटती बार में पूरा करने का निशà¥à¤šà¤¯ किया और आगे बढ़ गà¤. आगे बरगद शà¥à¤°à¥‡à¤£à¥€ के कई वृकà¥à¤· लगे थे जिनसे फल गिर रहे थे. कहीं-कहीं तो कà¥à¤› कैकà¥à¤Ÿà¤¸ à¤à¥€ लगे हà¥à¤ थे. कà¥à¤› चटà¥à¤Ÿà¤¾à¤¨à¥‡à¤‚, जो ऊपर से खिसक कर आ गयीं थीं, फोटोगà¥à¤°à¤¾à¤«à¥€ के लिठअचà¥à¤›à¤¾ लोकेशन बना रहीं थीं. किसी पेड़ के नीचे हनà¥à¤®à¤¾à¤¨ जी की पतà¥à¤¥à¤° की पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾ तो कहीं किसी पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ धरà¥à¤®à¤¶à¤¾à¤²à¤¾ के अवशेष. मà¥à¤à¥‡ आकरà¥à¤·à¤¿à¤¤ किया “मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¾ आई मंदिर†ने, जो निरा साधारण और टिन के बने शेड में था. शà¥à¤°à¥€ दानी ने बताया कि निवृतà¥à¤¤à¤¿à¤¨à¤¾à¤¥ की बहन का नाम मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¾ बाई था और यह पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ गोरखनाथ संपà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¯ के लोगों के लिठविशेष है.

मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¾ आई मंदिर
सीढ़ियों ने अब बहà¥à¤¤ ऊà¤à¤šà¤¾à¤ˆ ले ली थी. विशाल चटà¥à¤Ÿà¤¾à¤¨-नà¥à¤®à¤¾ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤—िरी परà¥à¤µà¤¤ अपने समà¥à¤ªà¥‚रà¥à¤£ विशालता को ले कर हमारे सामने था. उस ऊà¤à¤šà¤¾à¤ˆ से तà¥à¤°à¥ˆà¤®à¥à¤¬à¤•ेशà¥à¤µà¤° शहर कितना बौना और मनोहर लग रहा था. सीढियां परà¥à¤µà¤¤ की सपाट सतहों से लग गयी थीं. इन सीढ़ियों में घाटी की तरफ लोहे की रेलिंगà¥à¤¸ à¤à¥€ लगे हà¥à¤ थे ताकि कोई फिसल कर घाटियों में न गिर जाये. उस पर अब बनà¥à¤¦à¤° सामने आ गà¤. पहाड़ की ऊà¤à¤šà¥€ खड़ी सपाट सतह पर à¤à¥€ ये बनà¥à¤¦à¤° चीखते-चिलà¥à¤²à¤¾à¤¤à¥‡ à¤à¤¸à¥‡ दौड़ते थे की मानो समतल धरती पर दौड़ रहे हों. कूद कर अचानक किसी पदयातà¥à¤°à¥€ के सामने आ जाना और उनके हाथ से खाना छीन लेने में इन बंदरों को महारत हासिल थी. पर अनà¥à¤à¤µà¥€ यातà¥à¤°à¥€ अपने साथ इनके लिठà¤à¥€ कà¥à¤› खादà¥à¤¯ सामगà¥à¤°à¥€ ले कर चलते है. शà¥à¤°à¥€ दानी ने à¤à¥€ à¤à¤¸à¤¾ ही किया था. उसने अपने थैले से बिसà¥à¤•à¥à¤Ÿ निकाला और बंदरों को निशà¥à¤šà¤¿à¤‚तता से खिलाया. और इधर हम तीनों अनà¥à¤à¤µ-हीन यातà¥à¤°à¥€ अपनी छड़ियाठपकड़े बंदरों से बच कर आगे चलते रहे.

परà¥à¤µà¤¤ की सतहों पर दौड़ते बनà¥à¤¦à¤°
जलà¥à¤¦à¥€-ही वो सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ आ गया, जहाठपरà¥à¤µà¤¤ को à¤à¥€à¤¤à¤° से काट कर उसी के चटà¥à¤Ÿà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ की सीढियां बनायीं गयीं थीं. ऊà¤à¤šà¥€ ऊà¤à¤šà¥€ घà¥à¤®à¤¾à¤µà¤¦à¤¾à¤° सीढियां à¤à¤•ाकेक काफी ऊà¤à¤šà¤¾à¤ˆ ले लेतीं हैं. यह सबसे कठिन à¤à¤¾à¤— है. मà¥à¤à¥‡ à¤à¤¸à¤¾ लगता है कि इन सीढ़ियों से करीबन १००० फ़ीट की ऊà¤à¤šà¤¾à¤ˆ चढ़ जाती है. इस à¤à¤¾à¤— में पैरों और फेफड़ों पर काफ़ी असर होता है. उस पर मारà¥à¤š की गरà¥à¤®à¥€ à¤à¥€ थी. इतनी सीढ़ियों की चढ़ाई के बाद तो पतà¥à¤¨à¥€ जी ने à¤à¤•दम से यातà¥à¤°à¤¾ समापà¥à¤¤ करने की इचà¥à¤›à¤¾ जाहिर कर दी. à¤à¤• बार और ढाढस बंधाया गया. खैर वहां पर सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ लोगों दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ लगाया à¤à¤• दà¥à¤•ान à¤à¥€ था, जिनमें कà¥à¤› खादà¥à¤¯ सामगà¥à¤°à¥€, नींबू-पानी इतà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿ मिल रहे थे. हम à¤à¥€ वहीठरà¥à¤•े और नींबू-पानी लिया. वहां काफी ठंडी हवा चल रही थी, जिसने शà¥à¤°à¤® और गरà¥à¤®à¥€ से परेशान लोगों को फिर से पà¥à¤¨à¤¾à¤°à¥à¤¤à¥à¤¸à¤¾à¤¹à¤¿à¤¤ कर दिया.

परà¥à¤µà¤¤à¥€à¤¯ सीढ़ियाà¤
सीढियां तो ख़तम हो गयीं थीं. पर गोदावरी उदà¥à¤—म-सà¥à¤¥à¤² वहां से à¤à¥€ करीबन १.२ किलोमीटर पर था. रासà¥à¤¤à¤¾ लमà¥à¤¬à¤¾, उबड़-खाबड़ और धीरे-धीरे ऊà¤à¤šà¤¾à¤ˆ लेता हà¥à¤† था. पांव फिसलते थे. अतः रà¥à¤•ते-रà¥à¤•ते और फिर धीरे-धीरे चलते हà¥à¤, हम सब लोग शिखर के नजदीक पहà¥à¤‚चे. शिखर के कà¥à¤› पहले ही हमने पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ ज़माने के बने तीन जल-संगà¥à¤°à¤¹ वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ देखे. आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯ होता था कि इतनी ऊंचाई पर किसने और कब à¤à¤¸à¥€ वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ बनाई? पर आजकल के मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ ने उस में à¤à¥€ पानी की बोतलें इतà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿ डाल कर उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ गनà¥à¤¦à¤¾ कर दिया था.

परà¥à¤µà¤¤à¥€à¤¯ जल-संगà¥à¤°à¤¹
वहां से आगे चल कर, थके-मांदे हम लोग शिखर पर पहà¥à¤à¤š गà¤. सच में वहां पहà¥à¤à¤š कर जो आनंद आया उसका वरà¥à¤£à¤¨ करना संà¤à¤µ नहीं. लगा कि कितना बड़ा काम कर डाला है. बस ख़à¥à¤¶à¥€ में हमने अपनी-अपनी छड़ियाठहवा में लहराना शà¥à¤°à¥‚ कर दिया. वहां थोड़ी समतल जमीन है. उसी जमीन पर खड़े हो कर हम सà¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨à¥‡ लगे और à¤à¤•-दà¥à¤¸à¤°à¥‡ को उसके हिमà¥à¤®à¤¤ और कोशिशों के लिठधनà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦ देने लगे. जहाठहम खड़े थे, वहां से बाà¤à¤‚ गोदावरी का उदà¥à¤—म सà¥à¤¥à¤² था और दायीं तरफ शिवजी को समरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ वो मंदिर था, जहाठसे गोदावरी नदी ने समà¥à¤¦à¥à¤° की तरफ बहने की बजाय सà¥à¤¥à¤² की ओर बहने का रूख किया था. इसकी à¤à¥€ अपनी à¤à¤• कहानी है.

शिखर की खà¥à¤¶à¤¿à¤¯à¤¾à¤
थोड़ी देर के बाद हमलोग गोदावरी का उदà¥à¤—म सà¥à¤¥à¤² की तरफ चले. उदà¥à¤—म सà¥à¤¥à¤² पूरे बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤—िरी परà¥à¤µà¤¤ के दूसरे किनारे पर है, शिखर से थोड़ा नीचे. अतः वहां जाने के लिठकà¥à¤› दूर ढलान पर पैर दाब कर चलना पड़ता है. यहाठकी सीढियां टूटी-फूटी हैं. इसीलिठजमीन पर पैर सà¥à¤¥à¤¿à¤° कर के नीचे उतरना चाहिà¤. उदà¥à¤—मसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ के पास छोटी-छोटी à¤à¥‹à¤ªà¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤ है, जिनमें शायद दà¥à¤•ान लगता होगा, जो उस दिन खली थे. वहां à¤à¤• बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤—िरी मंदिर, गौतम ऋषि तपसà¥à¤¯à¤¾ सà¥à¤¥à¤² (गोदावरी उदà¥à¤—म सà¥à¤¥à¤²) और à¤à¤• नया बना चकà¥à¤°à¤§à¤° मंदिर है. बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤—िरी मंदिर में à¤à¤• शिवालय है, जिसमें ठीक वैसा ही विगà¥à¤°à¤¹ है जैसा तà¥à¤°à¥ˆà¤®à¥à¤¬à¤•ेशà¥à¤µà¤° जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग में है. यहाठबंदरों का पà¥à¤°à¤•ोप बहà¥à¤¤ है, जिनसे सावधान रहना चाहिà¤.

बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤—िरी मंदिर
इस मंदिर के ठीक बगल में गूलर के वृकà¥à¤· के नीचे गोदावरी का उदà¥à¤—म सà¥à¤¥à¤² है. कहा जाता है कि ऋषि गौतम तथा उनकी पतà¥à¤¨à¥€ अहलà¥à¤¯à¤¾ बाई ने गो-हतà¥à¤¯à¤¾ का पाप धोने के लिठइसी गूलर वृकà¥à¤· के नीचे तपसà¥à¤¯à¤¾ कर के शिवजी को पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ कर लिया था. और उसी वरदान के फलसà¥à¤µà¤°à¥‚प शिवजी की जाता में बहने वाली गंगा ने गोदावरी रूप में यहाठसे उदà¥à¤—म लिया. आजकल यहाठपूजन की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ है. सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ पà¥à¤œà¤¾à¤°à¥€ बालà¥à¤Ÿà¥€ से गोदावरी का जल निकल कर गाय की धातà¥-मूरà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ पर जलाà¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• करते हैं. यहाठआ कर बहà¥à¤¤ शांति का अनà¥à¤à¤µ होता है. मंद मंद बहने वाली वायॠसारी थकान मिटा देती है.

गोदावरी उदà¥à¤—मसà¥à¤¥à¤² पर पूजन
हम लोगों ने à¤à¥€ वहां पूजन किया और फिर चल पड़े थोड़ी दूर पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ शिव मंदिर की तरफ. उस शिव मंदिर तक जाने के रासà¥à¤¤à¥‡ में à¤à¤• अजीब वसà¥à¤¤à¥ दीखती है. रासà¥à¤¤à¥‡ के दोनों किनारों पर पतà¥à¤¥à¤°à¥‹à¤‚-ठीकरों के बने छोटे छोटे टीले. शà¥à¤°à¥€ दानी का कहना था कि ऊपर आने वाले यà¥à¤µà¤•-यà¥à¤µà¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ यहाठबैठकर इस तरह के टीले बनाते हैं. खैर बनाते होंगे, पर देखने में à¤à¤• नयी चीज़ थी.

गूलर का वृकà¥à¤· जिसके नीचे से गोदावरी निकलती है
कहा जाता है कि उदà¥à¤—म सà¥à¤¥à¤² से निकल कर गोदावरी जब समà¥à¤¦à¥à¤° की तरफ चल पड़ी, तब देवताओं में खलबली मच गयी. यदि गोदावरी समà¥à¤¦à¥à¤° में जा मिलती तो इतनी बड़ी जनसà¤à¤–à¥à¤¯à¤¾ का कà¥à¤¯à¤¾ होता जो उसकी किनारों पर बनी सà¤à¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं में बसती हैं? अतः गोदावरी को धरती की तरफ रूख कराने के लिया देवतागण शिवजी की शरण गà¤. कहा जाता है कि शिव जी ने घà¥à¤Ÿà¤¨à¥‹à¤‚ के बल बैठकर अपनी जटा को धरती पर पटका, जिस से गोदावरी के बहाव बदल गया और गोदावरी नदी सà¥à¤¥à¤² के तरफ बह चली. उदà¥à¤—म सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ से निकल कर, ये सबसे पहले गंगà¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤° में दरà¥à¤¶à¤¨ देती है और फिर कà¥à¤¶à¤¾à¤µà¥à¤°à¤¤ में धरती पर आ जाती है. पर जिस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर शिव जी ने इस नदी को धरती की तरफ बहने के लिठपà¥à¤°à¥‡à¤°à¤¿à¤¤ किया था, आज वहां à¤à¤• मंदिर बना हà¥à¤† है. गà¥à¤«à¤¾à¤¨à¥à¤®à¤¾ इस मंदिर में शिवजी के घà¥à¤Ÿà¤¨à¥‹à¤‚ से धरती पर पड़ा हà¥à¤† निशान और उनकी जटा की चोट से धरती पर पड़े निशान की पूजा होती है.

शिव मंदिर
हमलोगों ने à¤à¥€ वहां पूजा-अरà¥à¤šà¤¨à¤¾ की. ततà¥à¤ªà¤¶à¥à¤šà¤¾à¤¤ उसी मारà¥à¤— से लौटे, जिस से आये थे. लौटती यातà¥à¤°à¤¾ अकà¥à¤¸à¤° कठिन नहीं लगती और फिर ये तो पहाड़ की चोटी से उतरने का मसला था. इसमें सिरà¥à¤« à¤à¤• सावधानी बरतनी थी, जिस से कि पैर फिसले नहीं. और इस तरह उतरते हà¥à¤ हमलोग गंगà¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤° के मà¥à¤¹à¤¾à¤¨à¥‡ पर पहà¥à¤à¤š गà¤. करीब १ बजे दोपहर में मैंने गंगà¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤° का दरà¥à¤¶à¤¨ किया और फिर वहां से नीचे उतरते समय शà¥à¤°à¥€ रामकà¥à¤‚ड और लकà¥à¤·à¤®à¤£ कà¥à¤‚ड का दरà¥à¤¶à¤¨ करते हà¥à¤ ०१.४५ अपरानà¥à¤¹ में संसà¥à¤•ृति हॉलिडे रिसोरà¥à¤Ÿ वापस पहà¥à¤à¤š गठऔर पद-यातà¥à¤°à¤¾ समापà¥à¤¤ की.
उसके बाद जो खà¥à¤² कर à¤à¥‚ख लगी, उसका तो कहना की कà¥à¤¯à¤¾ था? आखिर हम लोगों ने मारà¥à¤š की गरà¥à¤®à¥€ के बावजूद परिवार सहित बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤—िरी फ़तेह जो कर लिया था.
अद्भुत सफरनामा रहा बक्शी साहब, आपकी थकान और मुस्कान दोनों को सलाम, अनगिनत सीढ़ियों द्वारा पहाड़ फतह करना सचमुच बड़ी हिम्मत का काम है, श्री माता वैष्णो देवी के समीप स्थित भैरो घाटी की यात्रा के दौरान में इसे अनुभव कर चूका हूँ, अच्छा लगा यह जानकार की अंततः आप सभी अपने उद्देश्य में सफल हुए।
एक और अविस्मरणीय पोस्ट के लिए धन्यवाद।
धन्यवाद अरूण, जान कर ख़ुशी हुई कि इस पोस्ट से कोई पुराना अनुभव याद आ गया और पोस्ट भी तुम्हे अच्छा लगा.
अभूतपूर्व बक्शी जी! मन प्रफुल्लित हो गया आपकी यात्रा का वृतांत पढ़ कर! धन्यवाद्
धन्यवाद अंकित.
मुझे ख़ुशी है कि तुम्हे पोस्ट पसंद आया.
nice place.. hope I will visit this place once in my life