अà¤à¥€ तक आपने पढा कि मैं अपà¥à¤°à¥ˆà¤² 2010 में अकेला ही यमà¥à¤¨à¥‹à¤¤à¥à¤°à¥€ पहà¥à¤‚च गया। अà¤à¥€ यातà¥à¤°à¤¾ सीजन शà¥à¤°à¥‚ à¤à¥€ नहीं हà¥à¤† था। यमà¥à¤¨à¥‹à¤¤à¥à¤°à¥€ में उस शाम केवल मैं ही अकेला परà¥à¤¯à¤Ÿà¤• था, समà¥à¤¦à¥à¤° तल से 3200 मीटर से à¤à¥€ ऊपर। मेरे अलावा वहां कà¥à¤› मरमà¥à¤®à¤¤ का काम करने वाले मजदूर, à¤à¤• चौकीदार और à¤à¤• महाराज जी थे। महाराज जी के साथ दो-तीन चेले-चपाटे à¤à¥€ थे। मैने रात में ठहरने के लिये चौकीदार के यहां जà¥à¤—ाड कर लिया। चौकीदार के साथ दो जने और à¤à¥€ रहते थे, à¤à¤• उसका लडका और à¤à¤• नेपाली मजदूर। दो कमरे थे, à¤à¤• में चूलà¥à¤¹à¤¾-चौकी और दूसरे में बाकी सामान। बातों-बातों में मैने उनके समकà¥à¤· सपà¥à¤¤à¤‹à¤·à¤¿ कà¥à¤£à¥à¤¡ जाने की इचà¥à¤›à¤¾ जताई। उसने बताया कि वहां जाने का रासà¥à¤¤à¤¾ बेहद दà¥à¤°à¥à¤—म है, दूरी चौदह किलोमीटर है। बिना गाइड के बिलà¥à¤•à¥à¤² à¤à¥€ मत जाना, इस समय कोई गाइड à¤à¥€ नहीं मिलेगा। मैने पूछा कि कà¥à¤¯à¤¾ आप वहां तक कà¤à¥€ गये हो? उसने बताया कि हां, मैं तो कई बार जा चà¥à¤•ा हूं।
यशपाल, चौकीदार का लडका। मेरे उठने से पहले ही लकडी लाने जंगल में चला गया था।
मेरे जिद करने पर वो गाइड बनने के लिये तैयार हो गया, पांच सौ रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ में आना जाना। हालांकि है तो यह आज के हिसाब से à¤à¥€ महंगा लेकिन ऑफ सीजन में सपà¥à¤¤à¤‹à¤·à¤¿ कà¥à¤£à¥à¤¡ जाने की बडी इचà¥à¤›à¤¾ थी इसलिये यह पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤µ मान लिया गया। तय हà¥à¤† कि कल सà¥à¤¬à¤¹ सà¥à¤¬à¤¹ छह बजे निकल पडेंगे। चूंकि यमà¥à¤¨à¥‹à¤¤à¥à¤°à¥€ में à¤à¥€ कोई आदमजात नहीं थी, ऊपर कà¥à¤¯à¤¾ खाक मिलेगी। उसने यह à¤à¥€ बताया कि हो सकता है कि अà¤à¥€ वहां बरà¥à¤« हो, रासà¥à¤¤à¤¾ ना हो, लेकिन जहां तक रासà¥à¤¤à¤¾ मिलेगा जायेंगे। हमारे साथ में नेपाली और चौकीदार का लडका à¤à¥€ चलने को तैयार हो गये। उस शाम को मेरा खाना चौकीदार ने अपने यहां ही बनाया था; राजमा, रोटी और चावल। सबके साथ बैठकर बिना चमà¥à¤®à¤š के खाना खाने में आननà¥à¤¦ आ गया। उस समय तो मैं उनके घर के मेहमान जैसा था।
सोते समय देखा कि कैमरे की सेलें खतà¥à¤® होने वाली हैं। उनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡à¤‚ बताया कि रोज तो शाम पांच बजे ही बिजली आ जाती है, आज आठबज गये, अà¤à¥€ तक नहीं आयी। मà¥à¤à¥‡ चिनà¥à¤¤à¤¾ थी कि अगर सेल चारà¥à¤œ नहीं हà¥à¤ˆà¤‚ तो कल की यातà¥à¤°à¤¾ की à¤à¤¸à¥€-तैसी हो जायेगी। आज बिजली ना आने का कारण था कि मौसम खराब था। हलà¥à¤•ी-हलà¥à¤•ी बूंदें पड रही थीं। चौकीदार के कमरे से लगà¤à¤— सटी हà¥à¤ˆ ही महाराज जी की गà¥à¤«à¤¾ है। गà¥à¤«à¤¾ के सामने ही à¤à¤• टॉयलेट बना हà¥à¤† है। इसके बराबर में à¤à¤• छोटा सा कमरा है, इसमें जनरेटर चल रहा था। इसका उपयोग केवल महाराज और चेलों के लिये ही था। मैं सेल और चारà¥à¤œà¤° लेकर जनरेटर के पास गया। लडके ने बताया कि हमारी और महाराज की बनती नहीं है, इसलिये तà¥à¤® ही गà¥à¤«à¤¾ में जाकर महाराज से बात कर लो, थोडी देर à¤à¥€ चारà¥à¤œà¤¿à¤‚ग पर लग जायेगा, तो कल की बात बन जायेगी। मेरी à¤à¥€ हिमà¥à¤®à¤¤ नहीं हà¥à¤ˆà¥¤ तà¤à¥€ निगाह पडी टॉयलेट के दरवाजे के पास में à¤à¤• चारà¥à¤œà¤¿à¤‚ग पॉइंट पर। फटाफट लगा दिया, लेकिन यहां इस पर बारिश की छींटें पड रही थीं। इससे बचने के लिये इसे पनà¥à¤¨à¥€ से अचà¥à¤›à¥€ तरह ढक दिया। और वापस आकर सो गये।
सà¥à¤¬à¤¹ साढे पांच बजे अलारà¥à¤® बजा। यमà¥à¤¨à¤¾ की जोरदार आवाज आ रही थी। बाहर निकलकर देखा कि मूसलाधार बारिश हो रही है। à¤à¤¸à¥‡ में सपà¥à¤¤à¤‹à¤·à¤¿ कà¥à¤£à¥à¤¡ जाना मूरà¥à¤–ता थी। मà¥à¤à¥‡ टà¥à¤°à¥‡à¤•िंग का जरा à¤à¥€ अनà¥à¤à¤µ नहीं था। वापस आकर सो गया। नौ बजे चौकीदार चाय लेकर आ गया – बिना दूध की चाय। ये लोग दूध दà¥à¤°à¥à¤²à¤ होने की वजह से बिना दूध की ही पीते हैं। कौन जाये रोज-रोज दूध लेने नीचे जानकीचटà¥à¤Ÿà¥€? उसने à¤à¥€ यही बताया कि बारिश में जाना सही नहीं था, इसलिये मैने आपको नहीं उठाया। चाय पीकर बाहर निकला। अब बारिश थम गयी थी। हलà¥à¤•ी धूप à¤à¥€ खिल गयी थी। चारà¥à¤œà¤° के पास गया, देखा कि पनà¥à¤¨à¥€ तो उड गयी है। चारà¥à¤œà¤° बरà¥à¤« सा ठणà¥à¤¡à¤¾ हà¥à¤† पडा है। सेलें à¤à¥€ à¤à¥€à¤— गयी हैं। अब गये ये तो काम से। कैमरे में लगाकर देखा तो बैटरी फ़à¥à¤²à¥¤ दो जोडी सेलें थी, दोनों ही फ़à¥à¤² चारà¥à¤œà¥¤ जय हो यमà¥à¤¨à¤¾ मैया। अपने यहां à¤à¥€à¤— जाती तो इनका काम तमाम था।
दस बजे तक मौसम पूरा खà¥à¤² जाने पर चौकीदार ने कहा कि आपका आज का पूरा दिन खराब हो जायेगा। चलो, आपको आसपास घà¥à¤®à¤¾à¤•र लाता हूं। अब निकल पडे हम चारों यमà¥à¤¨à¥‹à¤¤à¥à¤°à¥€ से यमà¥à¤¨à¤¾ के साथ-साथ विपरीत दिशा में। यानी और ऊपर की ओर। अब आगे की कहानी चितà¥à¤°à¥‹à¤‚ की जà¥à¤¬à¤¾à¤¨à¥€:
ऊपर से बहकर आती यमà¥à¤¨à¤¾à¥¤ हम à¤à¥€ बहाव के विपरीत दिशा में चल पडे – बिना किसी लकà¥à¤·à¥à¤¯ के।
गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° के पहले दरà¥à¤¶à¤¨
करीब सौ मीटर आगे ही गये होंगे कि बरà¥à¤« का गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° मिल गया। जिनà¥à¤¦à¤—ी में पहली बार गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° देखा। महीनों से बरफ जमी पडी है। बरफ के नीचे से पानी आता है।
बरà¥à¥ž के ऊपर से हो कर जाता रासà¥à¤¤à¤¾
और आगे जाने के लिये बरफ के ऊपर से ही जाना पडेगा। नीचे पानी बह रहा है। पता नहीं, कहां से बरफ मोटी है और कहां से पतली। नेपाली यही सोच रहा है।
जोखिम à¤à¤°à¤¾ रासà¥à¤¤à¤¾
ऊपर से देखने पर बरफ के मिजाज का पता नहीं चलता। हो सकता है कि जहां हम पैर रख रहे हों, वहां कà¥à¤› इंच ही मोटाई हो। अगर à¤à¤¸à¥€ जगह पर पैर पड गया तो नीचे बहते ठणà¥à¤¡à¥‡ पानी, ऊपर जमी बरफ, और नीचे दबी चटà¥à¤Ÿà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ में à¤à¤¸à¥‡ फंसेंगे कि कोई चाह कर à¤à¥€ ना तो बच सकता है ना ही कोई बचा सकता है। चौकीदार का कहना है कि इन जगहों में हर साल कई लोग डूब जाते हैं।
जाà¤à¤š परख कर चलते गाइड
अचà¥à¤›à¥€ तरह जांच परख कर ही गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° पर चला जाता है। मेरे लिये इससे बडी बात और कà¥à¤¯à¤¾ थी कि मà¥à¤à¥‡ तीन गाइड मिले थे इन रासà¥à¤¤à¥‹à¤‚ पर चलना सिखाने के लिये। बरफ की ऊपरी सतह से à¤à¥€ कà¥à¤› कà¥à¤› अनà¥à¤¦à¤¾à¤œà¤¾ लग जाता है कि किस जगह पर खतरा है। à¤à¤¸à¤¾ अनà¥à¤¦à¤¾à¤œà¤¾ केवल अनà¥à¤à¤µà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को ही होता है, मà¥à¤ जैसों को नहीं।
सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° à¤à¤°à¤¨à¤¾
करीब आधा किलोमीटर गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° पर चलने के बाद आता है शानदार à¤à¤°à¤¨à¤¾à¥¤ यह यमà¥à¤¨à¤¾ ही है। यही पर तà¥à¤°à¤¿à¤µà¥‡à¤£à¥€ à¤à¥€ है यानी तीन तरफ से तीन नदियां आकर मिलती हैं। लेकिन तीनों नदियां कहीं पर à¤à¥€ मिलती नहीं दिखती। कारण है बरफ। बरफ के नीचे ही कहीं मिलती हैं।
गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° पर खडा à¤à¤• घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड।
जैकेट है नेपाली मजदूर की। बाकी तो अपने ही हैं। बडा मजा आता है दसियों फà¥à¤Ÿ मोटी बरफ पर चलने में।
फ़à¥à¤°à¥à¤¤à¥€ से पहाङ चढता पहाङी
ये पहाडी लोग पता नहीं कौन सी इनà¥à¤¦à¥à¤°à¥€ विकसित कर लेते हैं कि मà¥à¤¶à¥à¤•िल से मà¥à¤¶à¥à¤•िल जगह पर आसानी से चले जाते हैं। मैने इसे चढते हà¥à¤ बडे धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ से देखा, फिर जब खà¥à¤¦ चढने लगा तो पैर फिसलने लगे, हाथों से घास पकडी तो घास उखडने लगी। आखिरकार इसका पीछा करना छोड दिया।
तà¥à¤°à¤¿à¤µà¥‡à¤£à¥€ वाला à¤à¤°à¤¨à¤¾
यह वही तà¥à¤°à¤¿à¤µà¥‡à¤£à¥€ वाला à¤à¤°à¤¨à¤¾ है। नेपाली ऊपर वाले चितà¥à¤° में दिखाये अनà¥à¤¸à¤¾à¤° चढकर इसी के करीब गया था। उतà¥à¤¸à¤¾à¤¹ था इस बनà¥à¤¦à¥‡ में। कहता है कि ‘नीचे’ वाला इलाका बकवास है। नीचे मतलब मैदानी इलाका। नौकरी ढूंढने जाओ तो दो हजार की नौकरी मिलेगी, दो हजार का ही à¤à¤• कमरा मिलेगा। à¤à¤• तरफ से कमाओ और दूसरी तरफ खरà¥à¤š कर दो। बचत है तो केवल पहाड में। मैं आजकल सरिये का काम कर रहा हूं। सीजन शà¥à¤°à¥‚ हो जायेगा तो चौकीदार के ही ‘होटल’ में मà¥à¤¨à¥€à¤® बन जाऊंगा। जो à¤à¥€ कमाई होगी, सारी जेब में ही तो जायेगी। हजारों रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ इकटà¥à¤ े करके नेपाल जाऊंगा।
तà¥à¤°à¤¿à¤µà¥‡à¤£à¥€ à¤à¤°à¤¨à¥‡ का विहंगम दृशà¥à¤¯à¥¤
तà¥à¤°à¤¿à¤µà¥‡à¤£à¥€ नाम कहीं à¤à¥€ लिखा नहीं मिलेगा। मैं केवल सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ के लिये इस शबà¥à¤¦ का इसà¥à¤¤à¥‡à¤®à¤¾à¤² कर रहा हूं। इन पहाडों में इस तरह के अनगिनत à¤à¤°à¤¨à¥‡ हैं, à¤à¤• से बढकर à¤à¤•।
खडे पहाडों के बीच फैला गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤°à¥¤
दूर उस सिरे पर दो जने दिख रहे हैं। चौकीदार और नेपाली हैं वे। उनà¥à¤¹à¥‡ à¤à¤• पेड का ठूंठमिल गया था। उसे उठाने गये हैं।
(अगली बार आप और जोरदार पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ पढेंगे।)
NICE POST.
हम जहां खडे हो जाते हैं, लाइन वहीं से शुरू होती है सन्दीप भाई। NICE POST कहने का कॉपीराइट बनता है। हाहाहा
Neeraj ji,
aapka lekh padhkar garmiyon mein toh sheetalta de raha hai par thand mein haalat kharab ho jaayegi aapki ghumakkari sach much bahut kathin hoti hai ham log toh sirf padhkar aur photo dekhkar hi aanandit ho jate hein……………..
Post kaafi pasand aayi . Agli post ke intezaar mein.
Thanks.
हां जी, कहना तो ठीक है। लेकिन अभी सर्दियां खत्म ही हुई हैं और अभी से आने वाली सर्दियों की चिन्ता क्यों करें। इन गर्मियों को एंजोय करो।
घुमक्कडी जिन्दाबाद
Dear Neeraj,
this post is 5 star rated. I enjoyed a lot..feeling fear..with excitement i was reading it. Mind blowing it was.. full of masti.
Thanks for entertaining us.
मोण्टी जी, मजा आ गया आपका कमेण्ट पढकर। अब मैं भी गर्व से कहा करूंगा कि मेरी पोस्ट फाइव स्टार है। हाहाहा
क्या यमनोत्री जाने के लिए देहरादून —-> बडकोट वाला रास्ता छोटा पड़ता है, ऋषिकेश वाले रास्ते के मुकबाले.
जोगी साहब,
दिल्ली से यमुनोत्री जाने के लिये देहरादून वाला रास्ता ही छोटा पडता है। चलिये थोडा सा हिसाब किताब लगाते हैं:
दिल्ली से जब चलेंगे तो रुडकी तक दोनों रास्ते बराबर ही रहेंगे। रुडकी से एक रास्ता देहरादून चला जाता है, एक जाता है हरिद्वार-ऋषिकेश। रुडकी से देहरादून 70 किलोमीटर है जबकि ऋषिकेश 54 किलोमीटर। आगे चलते हैं। देहरादून से बडकोट 123 किलोमीटर है जबकि ऋषिकेश से बडकोट 162 किलोमीटर है। यानी रुडकी से देहरादून होते हुए बडकोट 193 किलोमीटर जबकि ऋषिकेश होते हुए 216 किलोमीटर। लेकिन एक गणित और भी है। देहरादून वाले 193 किलोमीटर में से 80 किलोमीटर मैदानी है और 113 किलोमीटर पहाडी रास्ता है जबकि ऋषिकेश वाले 216 किलोमीटर में से 55 किलोमीटर मैदानी है और 161 किलोमीटर पहाडी।
वैसे दिल्ली से देहरादून के लिये बडौत, शामली, सहारनपुर होते हुए भी एक सीधा रास्ता है लेकिन वो हिन्दुस्तान के ‘महान’ रास्तों में गिना जा सकता है। इसलिये रुडकी वाला ही ज्यादा सही बैठता है।
कुछ ज्यादा नहीं बोल गया मैं????
नीरज जी, राम राम , पहले आपका ब्लॉग ब्लागस्पाट पर पढ़ा था, दोबारा पढ़ कर मज़ा आगया, आपके जैसा घुमक्कड़ कही नहीं मिलेगा, बुरा न मानो तो मेरा एक सुझाव हैं, आपके जितने भी यात्रा अनुभव हैं उन पर एक पुस्तक आप लिख सकते हो, इसके अलावा एक चित्र प्रदर्शिनी भी बना सकते हो, जैसी की हिमाचल के मंडी जिले में हैं.
हां गुप्ता जी, कह तो सही रहे हो लेकिन इसमें बुरा मानने की क्या बात है?
पुस्तक लिखने की हुडक तो मुझे बहुत दिनों से हो रही है लेकिन बात नहीं बन रही।
रही बात चित्र प्रदर्शनी की तो उसका मुझे कोई आइडिया नहीं है। जब उसका आइडिया हो जायेगा तो सोचेंगे उसके बारे में भी।
इस पोस्ट में बिलकुल भी मजा नहीं आया . पहले लिखी पोस्ट को पद कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं .
नीरज जी दुबारा फोटो दिखाने के लिए धन्यवाद
हां सर्वेश जी। बासी चीज आखिर बासी ही होती है। और करूं भी क्या, ये बासी कथाएं ही लिखनी पडती हैं। ताजी के लिये अपना ब्लॉग है ना।
यहाँ “Like” बटन होना चाहिए था ;) ही ही ही >:)
नहीं, nice बटन होना चाहिये था।
Gleciar dekhkar mazaa a gaya. gajab ke phot hain sabhi.
फोट क्या होता है विनय भाई????
मजाक की बात थी। मैं सब समझता हूं। मुझे भी मजा आया था वहां बरफ देखकर। जिन्दगी में पहली बार बरफ पर चला था। कोई आइडिया नहीं था कि ऐसा भी होता है। जब अचानक सामने देखा कि बरफ पर चलना है तो कसम से भाई,….
ज़बरदस्त | अंजान, सुनसान … बरफ के मैदान में कहाँ पहुच गए | बड़ा ही interesting episode है, आगे पीछे की कहानी के इंतज़ार में ….
दीपक भाई, गजब का आनन्द आ गया था मुझे भी।
सुंदर
जहां हम खडे हो जाते हैं, मनु भाई लाइन वहीं से शुरू हो जाती है।
ये ‘सुन्दर’ और ‘nice’ का निर्णय मेरा था, आप भी मेरे नक्शे-कदम पर चल रहे हो?
देखता हूं कब तक चलोगे। नहीं माने तो यहां लिखना बन्द की घोषणा कर दूंगा, देखूंगा कि तब भी नहीं मानोगे क्या?? हू ला ला हू ला ला…. हा हा
good post,pics could have been better.
शर्मा जी, बात उन दिनों की है जब हम घुमक्कडी के क्षेत्र में नये नये आये थे, नया नया कैमरा हाथ लगा था। दे दनादन उल्टे सीधे फोटू खींचते थे। वेस्प्रो का सस्ता सा बिना जूम का कैमरा हुआ करता था हमारे पास। आज की तरह तब भी हम गरीब ही थे। इसलिये फोटोग्राफी में शिकायतें मिल रही हैं। हो जायेंगी दूर सब धीरे धीरे।
नीरज भाई, इस रोमांचक अनुभव के लिए शुक्रिया. ग्लेशिअर पर चलना वाकई एक रोमांचक और डराने वाला (हम जैसे नौसिखियों के लिए) अनुभव होता है. अंतिम फोटो देखकर ही ग्लेशिअर की विशालता का पता चलता है. हम भी इस तरह की ही घुमक्कड़ी के शौक़ीन हैं, आशा करते हैं भविष्य में कुछ रोमांचक यात्राएँ साथ करने का सौभाग्य मिलेगा.
अरे विपिन भाई, गजब का डरावना अनुभव होता है। लेकिन कुछ देर चलने के बाद आदत सी पड जाती है।
यमुनोत्री से आगे सप्तऋषि कुण्ड है, उससे आगे यमुनोत्री पास पार करके रुइनसारा ताल है और उससे आगे हर की दून। सोच रहा हूं कि कर दूं काम तमाम किसी दिन।
नीरज भाई, अगर प्रोग्राम बने तो एक बार जरुर याद कर लेना, रुइनसारा ताल (हर की दून) अपनी लिस्ट में भी शामिल है.
नीरज जी …राम.राम….
nice…..सुन्दर….बहुत बढ़िया……..
old is gold……but like it…..
Thanks….
Ritesh.Gupta
nice comment,
रितेश भाई, अपने यहां ब्लॉगजगत में एक nice वाले चचा हैं ना, उन्हें भी यहां घुमक्कड पर लाओ। भाई, कसम खाकर कह रहा हूं कि मुझ जैसे यहां से भाग खडे हो जायेंगे।
नीरज जी……
अरे हमारा comment इतना बुरा लगा की….आप यहाँ से भागने की बात कर रहे हो…… nice को nice न कहू तो बुरा कहू …..अरे भाई अच्छा लगता हैं तभी तो nice कहा जाता है…………….हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा ……………………!
रीतेश.गुप्ता…
रितेश भाई, मैंने आपको नहीं कहा। मैंने ब्लॉगजगत वाले एक ब्लॉगर ‘सुमन’ की तरफ इशारा किया है जो कमेण्ट में हमेशा मात्र ‘nice’ ही लिखते हैं। चाहे कोई मरे, चाहे जीये, वे nice ही लिखते हैं। मुझे nice शब्द से वे ही याद आ गये। फिर भी बुरा लगा हो तो माफी मांगता हूं।
नीरज जी …..मुझे जरा भी बुरा नहीं लगा……..आपको माफ़ी मांगने की कोई जरुरत नहीं…..मैंने तो बस ऐसे हे कह दिया था…..हा हा हा ……………………?
just superb, nothing less tha that.
the best one of you….
neeraj ji aapki ish jabarjast yamunotri journy padhkar maja aa gaya…really baraf k upar chalna apne aap me ek romanch paida kar deta hai..wo bhi april me..jab yatra suru bhi nahi hoti hai..maine bhi kai baar plan banaya but yamunotri nahi pahuch paya..haan apni car se chamba..tihari..dhanaulti aur uttarkashi tak chakkr laga chuka hu..aur har mahine lagata rahta hu chakkar..I LOVE UTTRAKHAND…
साहासिक यात्रा। अच्छे लगे ग्लेशियर के दृश्य !
Neeraj ji, jitni tariff ki jaye kam hain. Actually feeling pity on myself, that i haven’t been able to visiting gangotri/yamnotri till now. Thanks for the lovely post.
Regards
Anupam Mazumdar
Adventure tourism at its best, Neeraj. Looking forward to the next installment in this exciting series.
Just like a free bird. I really admire the courage and the serendipity you demonstrate on your travels.
Neeraj Bhai,
Post achcha laga par is bar aapke vivran me woh baat nazar nahi aayi jo hamesh hoti hai…Glacier par chalna wakai bhut hi zaada khatrnak hota hai ye mai experience se kah raha hun. Mai jab Valley of flowers gaya tha to aise hi bhayank glacier mujhe bhi mile thye. Mere saath bhi guide tha magar ek jaga par pahunch kar usne bhi haat khade kar diye aur aage jane se saaf mana kar diya…Bhai jab experienced guide hi haat khade kar de to hamari kaya majal…
Aur haan kiunki mai bhi pahadi hoon isliye batana chahta hoon ki pahadi loog pahadon par chadane ke liye koi indri vindri viksit nahi karte…Ye to unke khoon me hota hai….
Photographs bhut achche hai….
Likhte rahiye aur hame ghumate rahiye…
Jai Yamuna maiya ki….
भट्ट साहब, हंसी मजाक की बात थी कि मैंने कहा कि पहाडी लोग इंद्री विकसित कर लेते हैं। बुरा लगा हो तो माफी चाहता हूं।
mai jaanta hun Neeraj bhai…mai bhi to mazaak hi kar raha tha….
bahut badhiyaa post Neeraj majaa aa gaya…………………………..
बिना मौसम धाम पर जाने का अपना ही मजा है ये आपका लेख पढ़ कर लगा.. बहुत अच्छा विवरण है
आप भी जानते हैं कि जो आपने दिखाया वो जमी हुई बर्फ है, ग्लेश्यिर नहीं… तकनीकी तौर पर ग्लेश्यिर की परिभाषा ही अलग है
खैर मजा आया लेख पढ़ कर
हां जी, साइलेण्ट साहब, मैं सब जानता हूं। मैं देखना चाहता था कि हमारे घुमक्कड दोस्तों को ‘बाघ’ और ‘तेंदुए’ की पहचान है या नहीं। किसी को नहीं पता कि जमी हुई मौसमी बर्फ और ग्लेशियर में क्या फर्क है। अगर यह पोस्ट किसी और की होती तो आदतन मैं लेखक को बताता कि यह ग्लेशियर नहीं है, तो लेखक के साथ साथ पाठक भी मेरे पीछे पड जाते कि चुप रह, अपना दिमाग मत झाड।
खैर, इस शीर्षक से पोस्ट आकर्षक हो गई है।
वाह नीरज जी मजा आ गया. एक ही बात कहूँगा इस पोस्ट के बारे में ” मुझे आपसे जलन हो गयी है. क्या घुमक्कड़ी थी. और वाकई में आप घुमक्कड़ ही नहीं बहुत बहादुर भी हो. शायद अगर में आपकी जगह होता तो किसी के साथ उस सुन सान बरफ वाली यमुना नदी पर नहीं जाता इस जमाने में. “आगेवाली जोरदार पोस्ट का इंतज़ार है………………….
दूसरी बात आपने लिखा शुरुआत में लिखा है “एक ही पर्यटक था “, लेकिन आप तो घुमक्कड़ हो ऐसा मेरा मानना है.पर्यटक तो हम जैसे लोग है.