(यह संसà¥à¤®à¤°à¤£ à¤à¤• पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ यातà¥à¤°à¤¾ का है जो लगà¤à¤— सात-आठवरà¥à¤· पहले की थी !  आशा है, आप को रà¥à¤šà¤¿à¤•र लगेगा !  वैसे à¤à¤—वान ने चाहा तो अगले सपà¥à¤¤à¤¾à¤¹ तक काशà¥à¤®à¥€à¤° के तरोताज़ा यातà¥à¤°à¤¾ संसà¥à¤®à¤°à¤£ लेकर आप सब की सेवा में हाज़िर हो सकूंगा !  इस बार, फोटो à¤à¥€ साथ रहेंगी ! )Â
इस बार जब बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ की परीकà¥à¤·à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ समापà¥à¤¤ हà¥à¤ˆà¤‚ तो काफी चिंतन – मनन के बाद हमारे घर के ‘पà¥à¤°à¤¬à¤‚धनवरà¥à¤—’ ने आखिरकार निरà¥à¤£à¤¯ ले ही लिया कि छà¥à¤Ÿà¥à¤Ÿà¥€ मनाने हम सब मà¥à¤‚बई जायेंगे। बड़े पà¥à¤¤à¥à¤° को फोन किया और कहा कि वह à¤à¥€ साथ चले पर उसने असमरà¥à¤¥à¤¤à¤¾ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤ कर दी। अतः हम तीनों का जाने का निशà¥à¤šà¤¯ हà¥à¤†à¥¤ तीनों अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ मेरा छोटा पà¥à¤¤à¥à¤°, मेरी पतà¥à¤¨à¥€ और मैं सà¥à¤µà¤¯à¤‚। आरकà¥à¤·à¤£ किस तिथि का कराया जाये, यह निरà¥à¤£à¤¯ लेना à¤à¥€ कोई सरल कारà¥à¤¯ नहीं था। मेरी पतà¥à¤¨à¥€ को सारे टीवी चैनल के कलेंडर की जांच पड़ताल करके यह देखना था कि यातà¥à¤°à¤¾ की अवधि में कौन – कौन से धारावाहिक व फिलà¥à¤®à¥‹à¤‚ को छोड़ना पड़ेगा। छोटे बेटे को à¤à¥€ अपनी डायरी देखकर पà¥à¤·à¥à¤Ÿà¤¿ करनी थी कि पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¸ की अवधि के दौरान उसके किसी मितà¥à¤° का जनà¥à¤® दिन या अनà¥à¤¯ कोई विशेष कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® तो नहीं है। मैने पतà¥à¤¨à¥€ व पà¥à¤¤à¥à¤° को समà¤à¤¾à¤¨à¥‡ की चेषà¥à¤Ÿà¤¾ की कि जैसे बड़े साये के दिनों में धरà¥à¤®à¤¶à¤¾à¤²à¤¾, होटल, हलवाई, बैंड-बाजे वाले पहले से ही बà¥à¤• हो जाते हैं, उसी पà¥à¤°à¤•ार बेकार धारावाहिक वाले दिनों में रेल यातà¥à¤°à¤¾ आरकà¥à¤·à¤£ à¤à¥€ कठिन होता है परनà¥à¤¤à¥ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ कह दिया कि उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ तो नियत की गई तिथि का आरकà¥à¤·à¤£ चाहिये, अब यह कैसे कराया जाये, यह जिमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¥€ मेरी है,उनकी नहीं!सहारनपà¥à¤° से मà¥à¤‚बई के लिये दो ही गाड़ियां थीं – सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ मंदिर मेल व देहरादून – मà¥à¤‚बई à¤à¤•à¥à¤¸à¤ªà¥à¤°à¥‡à¤¸à¥¤ सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ मंदिर मेल में सहारनपà¥à¤° से बहà¥à¤¤ सीमित सीट हैं, अतः इचà¥à¤›à¤¿à¤¤ तिथि को आरकà¥à¤·à¤£ मिला नहीं और देहरादून -मà¥à¤‚बई à¤à¤•à¥à¤¸à¤ªà¥à¤°à¥‡à¤¸ को यह कह कर तिरसà¥à¤•ृत कर दिया गया कि इस à¤à¥‹à¤Ÿà¤¾-बà¥à¤—à¥à¤˜à¥€ छाप रेलगाड़ी में दो दिन और दो रातें गà¥à¤œà¤¾à¤°à¤¨à¥‡ से तो बेहतर है कि सहारनपà¥à¤° – मà¥à¤‚बई की पदयातà¥à¤°à¤¾ कर ली जाये,कम से कम अखबारों में फोटो तो छपेंगी! खैर, इचà¥à¤›à¤¿à¤¤ तिथि के लिये पशà¥à¤šà¤¿à¤® à¤à¤•à¥à¤¸à¤ªà¥à¤°à¥‡à¤¸ में नई दिलà¥à¤²à¥€ से आरकà¥à¤·à¤£ मिलता देख कर हमने तà¥à¤°à¤‚त हामी à¤à¤° दी। अमृतसर से आ रही पशà¥à¤šà¤¿à¤® à¤à¤•à¥à¤¸à¤ªà¥à¤°à¥‡à¤¸, नई दिलà¥à¤²à¥€ से शाम को 4 बजे के लगà¤à¤— बांदà¥à¤°à¤¾ के लिये चलती है। रहा सवाल नई दिलà¥à¤²à¥€ पहà¥à¤‚चने का तो दोपहर तक नई दिलà¥à¤²à¥€ सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ पहà¥à¤‚चने के लिये सहारनपà¥à¤° से सà¥à¤¬à¤¹ के समय कई गाड़ियां हैं, अतः यही कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ कर लिया गया। वापसी यातà¥à¤°à¤¾ का आरकà¥à¤·à¤£ सà¥à¤µà¤°à¥à¤£à¤®à¤‚दिर मेल से सरलता से मिल गया।
इसके बाद शà¥à¤°à¥ हà¥à¤† यातà¥à¤°à¤¾ की तैयारियों का सिलसिला। अनेकों कारà¥à¤¯ करने को थे।हमारी अनà¥à¤ªà¤¸à¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ में घर की सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ करनी थी। यातà¥à¤°à¤¾ हेतॠअटैची व बैग के ताले – चाबियां, चेन आदि जांची गयीं। शाॅपिंग लिसà¥à¤Ÿ बनाई गयी। कà¥à¤¯à¤¾ – कà¥à¤¯à¤¾ सामान साथ लेकर जाना होगा, इसकी लिसà¥à¤Ÿ हम तीनों की अपनी – अपनी थी। जहां मेरी पतà¥à¤¨à¥€ को हम तीनों के सपà¥à¤¤à¤¾à¤¹ à¤à¤° के कपड़ों को तैयार करके अटैची में पहà¥à¤‚चाना था, वहीं बेटे को अपना वाॅकमैन,कैसेट, बैटरी, शतरंज, ताश की गडà¥à¤¡à¥€, कहानी व चà¥à¤Ÿà¤•à¥à¤²à¥‹à¤‚ की पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•ें आदि चाहिये थीं। मेरी लिसà¥à¤Ÿ में à¤à¥€ शेविंग किट,सोनी हैंडीकैम, दो नये वीडियो कैसेट, बैटरी, चारà¥à¤œà¤°, मोबाइल, पढ़ने के लिये दो-तीन पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•ें आदि समà¥à¤®à¤¿à¤²à¤¿à¤¤ थीं। कà¥à¤› दवाइयां, पà¥à¤°à¤¾à¤¥à¤®à¤¿à¤• चिकितà¥à¤¸à¤¾ का सामान, टॉरà¥à¤š आदि à¤à¥€ रख लिये गये। कौन सी साड़ी किस दिन किस अवसर पर पहनी जायेगी, किस साड़ी को डà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤•à¥à¤²à¥€à¤¨à¤° तक पहà¥à¤‚चाना है, किसका फॉल लगाना है, किसका बà¥à¤²à¤¾à¤‰à¤œà¤¼ सिलवाना है, यह सब तय करने में पतà¥à¤¨à¥€ को खासी जदà¥à¤¦à¥‹ जहद करनी पड़ी। फिर यातà¥à¤°à¤¾ के दौरान खाने – पीने हेतॠकà¥à¤¯à¤¾ – कà¥à¤¯à¤¾ सामान ले जाना होगा, इस पर लगà¤à¤— इतनी लंबी चरà¥à¤šà¤¾ हà¥à¤ˆ जितनी वाजपेयी सरकार के विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤µ पर मतदान से पहले हà¥à¤ˆ थी। मेरी पतà¥à¤¨à¥€ à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ रेलवे की खान-पान सेवा दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ तैयार किया गया खाना खाने की अपेकà¥à¤·à¤¾ दो दिन का उपवास कर लेना बेहतर मानती है। कौन सी सबà¥à¤œà¥€ à¤à¤¸à¥€ है जो दो दिनों तक टà¥à¤°à¥‡à¤¨ में खराब à¤à¥€ न हो, खाने में अचà¥à¤›à¥€ à¤à¥€ लगे और जो इस मौसम में मिलती à¤à¥€ हो, इस विषय पर घर में कà¥à¤µà¤¿à¤œà¤¼ का आयोजन हà¥à¤† जिसमें हम तीनों ने à¤à¤¾à¤— लिया।
23 तारीख की सà¥à¤¬à¤¹ 9.15 पर सहारनपà¥à¤° से नई दिलà¥à¤²à¥€ के लिये टà¥à¤°à¥‡à¤¨ थी अतः सà¥à¤¬à¤¹ चार बजे उठकर यातà¥à¤°à¤¾ हेतॠà¤à¥‹à¤œà¤¨ तैयार किया गया। घर के फà¥à¤°à¤¿à¤œ, पंखे,गैस, फोन, पानी, आलमारियां, दरवाजे इतà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿ ठीक पà¥à¤°à¤•ार से बनà¥à¤¦ करके,अपने पड़ोसी मितà¥à¤° परिवारों को अपने मकान की सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ का उतà¥à¤¤à¤°à¤¦à¤¾à¤¯à¤¿à¤¤à¥à¤µ सौंप कर हम सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ पहà¥à¤‚चे तो पता चला कि जालंधर-नई दिलà¥à¤²à¥€ à¤à¤•à¥à¤¸à¤ªà¥à¤°à¥‡à¤¸ आधा घंटे बाद पà¥à¤²à¥‡à¤Ÿà¤«à¤¾à¤°à¥à¤® संखà¥à¤¯à¤¾ 3 पर आ रही है। नई दिलà¥à¤²à¥€ तक की यातà¥à¤°à¤¾ बिना आरकà¥à¤·à¤£ के ही करनी थी, अतः कà¥à¤²à¥€ से तय किया कि वह हमें हमारे सामान सहित गाड़ी में ठीक पà¥à¤°à¤•ार से चढ़ा देगा। गाड़ी आने से दो मिनट पहले ही उदà¥à¤˜à¥‹à¤·à¤¿à¤•ा ने सूचित किया कि टà¥à¤°à¥‡à¤¨ पà¥à¤²à¥‡à¤Ÿà¤«à¤¾à¤°à¥à¤® संखà¥à¤¯à¤¾ 3 पर न आकर 5 पर आ रही है। à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ रेल से पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¤¾ रिशà¥à¤¤à¤¾ होने के कारण हम मानसिक रूप से इस सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ के लिये तैयार थे अतः बिना à¤à¥à¤‚à¤à¤²à¤¾à¤¯à¥‡, बिना हड़बड़ाये सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤ªà¥à¤°à¤œà¥à¤ž योगी की सी à¤à¤¾à¤µ मà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾ में सामान उठाकर पà¥à¤²à¥‡à¤Ÿà¤«à¤¾à¤°à¥à¤® संखà¥à¤¯à¤¾ 5 की ओर बढ़ लिये। कà¥à¤²à¥€ ने ओवरबà¥à¤°à¤¿à¤œ के सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर रेलपटरियों की ओर रà¥à¤– किया तो मेरी पतà¥à¤¨à¥€ ने उसे रोकना चाहा। ‘ आपको टà¥à¤°à¥‡à¤¨ पकड़नी है या नहीं ?’ कहते हà¥à¤ हमें पीछे-पीछे आने का इशारा करते हà¥à¤ वह पà¥à¤²à¥‡à¤Ÿà¤«à¤¾à¤°à¥à¤® नं0 5 पर जा खड़ा हà¥à¤†à¥¤ पतà¥à¤¨à¥€ और पà¥à¤¤à¥à¤° को पà¥à¤² से आने का इशारा करते हà¥à¤ मैं à¤à¥€ पà¥à¤²à¥‡à¤Ÿà¤«à¤¾à¤°à¥à¤® नं0 5 पर पहà¥à¤‚च गया तो आधा किलोमीटर लंबा चकà¥à¤•र काटने के बजाय मेरे पीछे-पीछे ये दोनों à¤à¥€ आ गये।
मोदीनगर से गाड़ी निकली तो बड़े पà¥à¤¤à¥à¤° का यह जानने के लिये फोन आया कि हम किस कोच में हैं। गाज़ियाबाद सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ पर वह आया तो नई दिलà¥à¤²à¥€ तक का टिकट लेकर और मà¥à¤‚बई वाली गाड़ी के जाने तक हमारे साथ ही रà¥à¤•ने का मन बना कर आया था। दोपहर साढ़े बारह बजे नई दिलà¥à¤²à¥€ सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ पर उतरे तो पता चला कि पशà¥à¤šà¤¿à¤® à¤à¤•à¥à¤¸à¤ªà¥à¤°à¥‡à¤¸ छः घंटे विलमà¥à¤¬ से आयेगी। बस इतना सà¥à¤¨à¤¨à¤¾ था, मेरी पतà¥à¤¨à¥€ का मूड बिगड़ गया – ‘आपको ये ही खटारा मिली थी, बंबई जाने के लिये। आपके जिमà¥à¤®à¥‡ ये काम छोड़ा तो ये ही होना था। अब रात को 11 बजे तक कहां जायें -कà¥à¤¯à¤¾ करें ? और किसी गाड़ी में नहीं जा सकते कà¥à¤¯à¤¾?’
मà¥à¤à¥‡ यह समठनहीं आया कि गाड़ी के लेट हो जाने का दोष मà¥à¤ पर कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ डाला जा रहा है। अकà¥à¤¸à¤° सà¥à¤¨à¤¾ था कि लोग शादी इस लिये करते हैं कि हर गलती के लिये हम सरकार को दोषी नहीं ठहरा सकते, कà¥à¤› गलतियों के लिये जिमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤° ठहराने के लिये हमें à¤à¤• अदद पतà¥à¤¨à¥€ या पति की आवशà¥à¤¯à¤•ता होती है। पर यहां तो जो दोष सरकार या सरकारी रेलवे पर निसà¥à¤¸à¤‚कोच मंढ़ा जा सकता था, वह à¤à¥€ अपने सिर आ रहा था।
पूछताछ खिड़की पर पहà¥à¤‚चे तो बताया गया कि रासà¥à¤¤à¥‡ में कà¥à¤›à¥€ गंà¤à¥€à¤° रà¥à¤•ावट आ जाने के कारण अमृतसर की ओर से आने वाली सà¤à¥€ गाड़ियां उस दिन विलमà¥à¤¬ से आ रही थीं, यहां तक कि शताबà¥à¤¦à¥€ और राजधानी à¤à¤•à¥à¤¸à¤ªà¥à¤°à¥‡à¤¸ à¤à¥€ कई कई घंटे लेट थीं। बड़े गरà¥à¤µ à¤à¤µà¤‚ संतोष के साथ यह सूचना हमने अपनी पतà¥à¤¨à¥€ को दी कि आज तो राजधानी à¤à¥€ चार घंटे विलमà¥à¤¬ से आयेगी इसलिये पशà¥à¤šà¤¿à¤® à¤à¤•à¥à¤¸à¤ªà¥à¤°à¥‡à¤¸ को और मà¥à¤à¥‡ दोष देने की कोई वज़ह नहीं है।
इतना समय पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•à¥à¤·à¤¾à¤²à¤¯ में कैसे बिताया जाये! सहसा विचार आया कि कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ न शाहदरा में साले साहब से बात की जाये। फोन किया तो वह बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤ और बोले कि मिलने के लिये सपतà¥à¤¨à¥€à¤• नई दिलà¥à¤²à¥€ सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ पर आ रहे हैं और हमारे लिये खाना à¤à¥€ लेकर आ रहे हैं। सच, हमें सà¥à¤µà¤¯à¤‚ पर गरà¥à¤µ हà¥à¤† कि हमने कितने समà¤à¤¦à¤¾à¤° इंसान को अपने साले के रूप में चà¥à¤¨à¤¾ है। à¤à¥‹à¤œà¤¨ तैयार करने और शाहदरा से नई दिलà¥à¤²à¥€ तक आने में दो घंटे का समय लगना तो सà¥à¤µà¤¾à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤• ही था, अतः दोनों बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ ने कनाट पà¥à¤²à¥‡à¤¸ की ओर रà¥à¤– किया और हमने फोन पर à¤à¤• – à¤à¤• करके, दिलà¥à¤²à¥€ सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ मितà¥à¤°à¥‹à¤‚ – संबंधियों से बतियाना आरंठकिया, ‘मà¥à¤‚बई जारहे हैं, ….. सपà¥à¤¤à¤¾à¤¹ à¤à¤° का कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® है, …….सà¥à¤ªà¤°à¤«à¤¾à¤¸à¥à¤Ÿ से आये थे……पशà¥à¤šà¤¿à¤® छः घंटे लेट बता रहे हैं, और à¤à¥€ लेट हो सकती है,…….. नहीं,रासà¥à¤¤à¥‡ में कà¥à¤› समसà¥à¤¯à¤¾ बताई जा रही है, अमृतसर से सारी गाड़ी लेट हो रही हैं, …… नहीं अà¤à¥€ तो नहीं आ सकते, काफी सामान साथ में है, कà¥à¤²à¥‹à¤•रूम में à¤à¥€ नहीं रखा जा सकता। लौटते हà¥à¤ पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ करेंगे, आप ही आ रहे हैं? अरे वाह, मजा आ जायेगा। ….. ठीक है, पà¥à¤²à¥‡à¤Ÿà¤«à¤¾à¤°à¥à¤® नं0 1 पर पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•à¥à¤·à¤¾à¤²à¤¯ में पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•à¥à¤·à¤¾ कर रहे हैं।घंटे – दो घंटे पà¥à¤²à¥‡à¤Ÿà¤«à¤¾à¤°à¥à¤® पर घूमते हà¥à¤ गपशप कर लेंगे। आधा घंटा à¤à¥€ न बीता होगा, देखते कà¥à¤¯à¤¾ हैं कि à¤à¤‚डेवालान से हमारे à¤à¤• मितà¥à¤° पतà¥à¤¨à¥€ सहित चले आ रहे थे। हाथों में शीतल पेय की 2 लीटर वाली बोतल, समोसे और पेसà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€ लिये हà¥à¤ थे।मेरी पतà¥à¤¨à¥€ ने इतना सामान उनके हाथ में देखा तो संकोचवश बोलीं, अरे इस सब की कà¥à¤¯à¤¾ जरूरत थी, खाना तो हम बहà¥à¤¤ सारा साथ लिये हà¥à¤ हैं और अà¤à¥€ à¤à¥ˆà¤¯à¤¾-à¤à¤¾à¤à¥€ à¤à¥€ खाना बनाकर ला रहे हैं।
मितà¥à¤° महोदय जरा मà¥à¤‚हफट किसà¥à¤® के हैं सो बोले, चिंता मत कीजिये à¤à¤¾à¤à¥€, हम हैं न! अब आपसे मिलने आये हैं तो खाना तो खा कर ही जायेंगे। आप ही कà¥à¤¯à¤¾ बिना खाना खिलाये जाने देंगी। आपके हाथ का बना खाना कब – कब खाने को मिल पाता है! अब à¤à¤²à¤¾ कोई उनसे पूछे, खाना हम रासà¥à¤¤à¥‡ के लिये बना कर लाये थे या नई दिलà¥à¤²à¥€ सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ से निकलने से पहले ही निबटा देने के लिये ? पर मितà¥à¤°à¥‹à¤‚ का किया à¤à¥€ कà¥à¤¯à¤¾ जा सकता है? कनाॅट पà¥à¤²à¥‡à¤¸ से दोनों पà¥à¤¤à¥à¤° लौटे तो उनकी बांछे खिली हà¥à¤ˆ थीं, बड़े के हाथ में पैकेट देखकर मैने पूछा कि कà¥à¤¯à¤¾ खरीद लाये तो वह बोला, अपने लिये दो अंडरवियर, दो बनियान लाया हूं, मेरा à¤à¥€ टिकट खरीद लो, मà¥à¤¬à¤‚ई चल रहा हूं।
पतà¥à¤¨à¥€ को à¤à¤²à¥à¤²à¤¾à¤¹à¤Ÿ हà¥à¤ˆ कि आरकà¥à¤·à¤£ कराने से पहले फोन पर इतना समà¤à¤¾à¤¯à¤¾ था तब हां करने में कà¥à¤¯à¤¾ परेशानी थी! अब तो रिज़रà¥à¤µà¥‡à¤¶à¤¨ मिलने से रहा, और फिर मà¥à¤‚बई में कà¥à¤¯à¤¾ अंडरवियर बनियान में ही घूमते रहने का इरादा है़?छोटा पà¥à¤¤à¥à¤° बोला, à¤à¥ˆà¤¯à¤¾ मेरी जींस-शरà¥à¤Ÿ पहन लेगा, वैसे शरà¥à¤Ÿ तो किसी की à¤à¥€ आ जायेगी, जींस तो महीने à¤à¤° के लिये à¤à¤• à¤à¥€ काफी होती है। गाड़ी में रात को मैं अपनी बरà¥à¤¥ पर ही à¤à¤¡à¤œà¤¸à¥à¤Ÿ कर लूंगा। हमें पूरा विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ होगया कि बड़े à¤à¤¾à¤ˆ को मà¥à¤‚बई साथ चलने के लिये छोटे ने ही मिनà¥à¤¨à¤¤ की होंगी। हम दोनों के साथ रहते हà¥à¤ à¤à¥€ वह à¤à¤¾à¤ˆ की अनà¥à¤ªà¤¸à¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ में बोरियत अनà¥à¤à¤µ करता रहता जो उसका खेल-कूद, लड़ाई – à¤à¤—ड़े का साथी है।
à¤à¤• और टिकट खरीदने हेतà¥à¤‚ टिकट खिड़की पर पहà¥à¤‚चे तो देखा कि लंबी-लंबी कतारें लगी हà¥à¤ˆ हैं। हमारा नंबर à¤à¤• घंटे में आया तो बात कà¥à¤› इस पà¥à¤°à¤•ार से हà¥à¤ˆ –
”सà¥à¤²à¥€à¤ªà¤° कà¥à¤²à¤¾à¤¸, à¤à¤• टिकट, मà¥à¤‚बई ।”
”दूसरी शà¥à¤°à¥‡à¤£à¥€ का टिकट खरीदना होगा जिसे गाड़ी के अनà¥à¤¦à¤° ही शयनयान शà¥à¤°à¥‡à¤£à¥€ में बदला जायेगा। जà¥à¤°à¥à¤®à¤¾à¤¨à¤¾ à¤à¥€ लगेगा।”
”जà¥à¤°à¥à¤®à¤¾à¤¨à¤¾ किस लिये?”
”आप शयनयान में दूसरी शà¥à¤°à¥‡à¤£à¥€ का टिकट लेकर यातà¥à¤°à¤¾ नहीं कर सकते, इसलिये।”
”इसीलिये तो शयनयान शà¥à¤°à¥‡à¤£à¥€ का टिकट मांग रहा हूं।”
”पर वह टिकट खिड़की पर नहीं मिल सकता, गाड़ी में ही बदला जायेगा और जà¥à¤°à¥à¤®à¤¾à¤¨à¥‡ के साथ बदला जायेगा।”
”परंतॠà¤à¤¸à¤¾ पहले तो नहीं होता था, मैं सहारनपà¥à¤° से दिलà¥à¤²à¥€ के लिये शयनयान शà¥à¤°à¥‡à¤£à¥€ का टिकट खरीदता रहा हूं। बरà¥à¤¥ न मिल सके कोई बात नहीं, पर टिकट देने में आपको कà¥à¤¯à¤¾ परेशानी हो सकती है?
”बात परेशानी की नहीं, नियम की है। नियम यही है कि दूसरी शà¥à¤°à¥‡à¤£à¥€ का टिकट लिया जायेगा और वह टिकट गाड़ी में बदलेगा और उसके साथ जà¥à¤°à¥à¤®à¤¾à¤¨à¤¾ à¤à¥€ दिया जायेगा।”
”कहां लिखा है यह नियम ? जरा हमें à¤à¥€ तो दिखा दीजिये! इतनी बातचीत होते होते लाइन में हमारे पीछे खड़े वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ हमें बहस करता देखकर परेशान हो रहे थे,à¤à¤¾à¤ˆà¤¸à¤¾à¤¬, हमारी गाड़ी का टैम हो रहा है, आपको बहस करनी है तो लाइन में पीछे आ जाइये, हमें तो जलà¥à¤¦à¥€ गाड़ी पकड़नी है।
मà¥à¤¡à¤¼ कर देखा तो लगà¤à¤— तीस-पैंतीस लोग कतार में हमारे पीछे आ खड़े हà¥à¤ थे और नà¥à¤¯à¥‚नाधिक यही सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ हर खिड़की पर थी। हमारे समà¥à¤®à¥à¤– दो ही उपाय थे,या तो टिकट ले लें और रेल विà¤à¤¾à¤— दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ किये जा रहे इस शोषण को चà¥à¤ªà¤šà¤¾à¤ª सह लें या फिर खिड़की छोड़कर रेलवे के किसी उचà¥à¤š अधिकारी को तलाशें व उसके साथ à¤à¤• लंबी बहस में उलà¤à¥‡à¤‚। मजबूरन दूसरे दरà¥à¤œà¥‡ का टिकट खरीद लिया और पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•à¥à¤·à¤¾à¤²à¤¯ में वापस आकर पतà¥à¤¨à¥€, बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ व रिशà¥à¤¤à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ से, जो तब तक à¤à¥‹à¤œà¤¨ लेकर शाहदरा से आ चà¥à¤•े थे, इस बारे में बात की तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने à¤à¥€ यही कहा कि à¤à¤¸à¤¾ कोई नियम नहीं है पर रेलवे लोगों की मजबूरी का गलत फायदा उठाकर आरà¥à¤¥à¤¿à¤• शोषण कर रही है। पर किया à¤à¥€ कà¥à¤¯à¤¾ जा सकता है! दूसरी शà¥à¤°à¥‡à¤£à¥€ का ही टिकट ले लीजिये और जो कà¥à¤› जà¥à¤°à¥à¤®à¤¾à¤¨à¤¾ गाड़ी में मांगा जायेगा, दे देना।
हमें पशà¥à¤šà¤¿à¤® à¤à¤•à¥à¤¸à¤ªà¥à¤°à¥‡à¤¸ पकड़नी थी जो रातà¥à¤°à¤¿ 10 बज कर 45 मिनट के लगà¤à¤— नई दिलà¥à¤²à¥€ सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ पर अवतरित हà¥à¤ˆà¥¤ पà¥à¤²à¥‡à¤Ÿà¤«à¤¾à¤°à¥à¤® पर लगे हà¥à¤ चारà¥à¤Ÿ में पà¥à¤·à¥à¤Ÿà¤¿ करके हमने अपनी कोच में जाकर सामान वगैरा शायिका के नीचे ठीक से लगाया, रेलवे की हिदायत का अनà¥à¤ªà¤¾à¤²à¤¨ करते हà¥à¤ चेन से à¤à¥€ बांधा। मितà¥à¤°à¥‹à¤‚-संबंधियों को हारà¥à¤¦à¤¿à¤• धनà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦ देकर विदा किया, गाड़ी चलने पर वस़à¥à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤¦à¤¿ बदल कर लेट गये। बाहर अंधकार का सामà¥à¤°à¤¾à¤œà¥à¤¯ था, मिडिल बरà¥à¤¥ खोली जा चà¥à¤•ी थीं अतः नीचे वाली बरà¥à¤¥ पर सिरà¥à¤« लेटा ही जा सकता था, तब à¤à¥€ दोनों बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ को वही नीचे की बरà¥à¤¥ चाहिये थीं ताकि खिड़की से बाहर के दृशà¥à¤¯ देखते रह सकें। पता नहीं दोनों कितनी देर तक खिड़की से बाहर अंधेरे में आंख गड़ाये बैठे रहे होंगे। अरà¥à¤¦à¥à¤§à¤°à¤¾à¤¤à¥à¤°à¤¿ में चल टिकट परीकà¥à¤·à¤• ने दरà¥à¤¶à¤¨ दिये। नींद से उठकर उनको सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ की और à¤à¤• टिकट के लिये बकाया किराये हेतॠरसीद बनाने के लिये कहा। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने जà¥à¤°à¥à¤®à¤¾à¤¨à¥‡ सहित जितनी राशि मांगी, दे दी। हमें नींद आ रही थी अतः फिर सो गये परनà¥à¤¤à¥ इस शोषण को देखकर मन में à¤à¤• असंतोष बना रहता है और जब à¤à¥€ à¤à¤¸à¤¾ अवसर पà¥à¤¨à¤ƒ आता है, यही मनसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ होती है।
गाड़ी की खड़ताल की आवाज़ों के बीच हम लोग कब सो गये, कब मथà¥à¤°à¤¾,à¤à¤°à¤¤à¤ªà¥à¤°, सवाई माधोपà¥à¤°, गंगानगर आदि निकल गये, कà¥à¤› पता नहीं चला। सà¥à¤¬à¤¹ हमारी आंख खà¥à¤²à¥€ तो गाड़ी कोटा सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ पर खड़ी हà¥à¤ˆ थी। सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ बहà¥à¤¤ सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° लगा।
कोटा सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ से à¤à¤• बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ मनोरंजक सà¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿ जà¥à¤¡à¤¼à¥€ हà¥à¤ˆ है। वरà¥à¤· 1970 में पहली बार मà¥à¤‚बई गये थे हम लोग। कोटा सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ उस समय आज जैसा à¤à¤µà¥à¤¯ और सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° नहीं था। देहरादून-मà¥à¤‚बई à¤à¤•à¥à¤¸à¤ªà¥à¤°à¥‡à¤¸ जब सà¥à¤¬à¤¹ कोटा सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ पर रà¥à¤•ी तो चाचाजी ने छोटे à¤à¤¾à¤ˆ के व मेरे लिये दो गिलास दूध हाॅकर से लिया। हमारे सामने वाली बरà¥à¤¥ पर बैठे à¤à¤• परिवार ने, जो देहरादून से मà¥à¤‚बई जा रहे थे, हम बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ के हाथ में दूध के गिलास देखकर मजाक किया कि यह राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ है, यहां पर à¤à¥ˆà¤‚स का नहीं, ऊंटनी का दूध मिलता है। ऊंटनी का दूध पी रहे हो? मà¥à¤à¥‡ आज à¤à¥€ याद है, मेरे हाथ के गिलास में ऊंटनी का दूध है, यह कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾ मातà¥à¤° करके पेट में अजीब की हलचल अनà¥à¤à¤µ होने लगी थी। चाचाजी की निगाह बचाकर चà¥à¤ªà¤•े से मैने उस दूध के गिलास को खिड़की के बाहर खाली कर दिया था।
कोटा सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ पर गाड़ी खड़ी देखकर पतà¥à¤¨à¥€ ने कहा कि पà¥à¤²à¥‡à¤Ÿà¤«à¤¾à¤°à¥à¤® पर ठंडा पानी हो तो अपना पानी का कंटेनर à¤à¤° लिया जाये। मà¥à¤à¥‡ अचà¥à¤›à¥€ तरह से याद है हर शयनयान में दरवाजे के निकट ही, जहां सामान रखने का सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ बना रहता है,वहीं पानी का à¤à¤• बड़ा बरà¥à¤¤à¤¨, मटका आदि रखा रहा करता था जिससे यातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की पीने के पानी की आवशà¥à¤¯à¤•ता पूरी होती रहती थी। बाद में रेल विà¤à¤¾à¤— ने उस वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ को समापà¥à¤¤ कर दिया। इस बात का जिकà¥à¤°à¥à¤° सहयातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से किया तो उनमें से à¤à¤• बà¥à¤œà¤¼à¥à¤°à¥à¤— ने बड़ी वितृषà¥à¤£à¤¾ के साथ कहा – कोलà¥à¤¡ डà¥à¤°à¤¿à¤‚क बेचने वालों के फायदे को धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ में रखते हà¥à¤ रेल विà¤à¤¾à¤— ने गाड़ी में पीने का पानी रखना ही बनà¥à¤¦ कर दिया है। हो सकता है रेलवे अधिकारी इस बात को सà¥à¤µà¥€à¤•ार न करें किनà¥à¤¤à¥ उन सजà¥à¤œà¤¨ की बात में दम लगता है। यातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को पà¥à¤¯à¤¾à¤¸ लगे, गाड़ी में पानी उपलबà¥à¤§ न हो तो यातà¥à¤°à¥€ मज़बूरी में शीतल पेय की बोतल या 15 रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ में तथाकथित मिनरल वाटर खरीदेगा। जब रेल विà¤à¤¾à¤— à¤à¤• लीटर पानी 15 रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ में बेचना चाह रहा हो तो विà¤à¤¾à¤— शयनयान में पानी का घड़ा रखकर पीने के पानी की निःशà¥à¤²à¥à¤• वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ करेगा?
खैर, पà¥à¤²à¥‡à¤Ÿà¤«à¤¾à¤°à¥à¤® पर उतरा तो शीतल जल वाली टंकी पर लंबी लाइन लगी हà¥à¤ˆ थी।सादे पानी की टंकी पर जाकर कà¥à¤²à¥à¤²à¤¾ मंजन किया, पानी की 20 लीटर वाली बोतल को दोबारा à¤à¤° कर रखा, गरà¥à¤®à¤¾à¤—रà¥à¤® खसà¥à¤¤à¤¾ कचैरी, चिवड़ा व ठंडे छाछ का पाउच à¤à¥€ पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤ƒà¤•ालीन नाशà¥à¤¤à¥‡ के साथ लेने हेतॠखरीद लिया। कोटा सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ पर à¤à¤• नई व बड़ी अचà¥à¤›à¥€ वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ दिखाई दी। पà¥à¤²à¥‡à¤Ÿà¤«à¤¾à¤°à¥à¤® पर बीच – बीच में खंà¤à¥‹à¤‚ पर मोबाइल चारà¥à¤œ करने के लिये पà¥à¤µà¤¾à¤‡à¤‚ट बने हà¥à¤ थे। रिलायंस फोन को तो दिन में दो बार चारà¥à¤œ करना पड़ता है अतः मेरे मोबाइल की बैटरी à¤à¥€ पिछली रात को ही समापà¥à¤¤ हो गयी थी। जलà¥à¤¦à¥€ से बैग से चारà¥à¤œà¤° व मोबाइल निकाला, पà¥à¤²à¥‡à¤Ÿà¤«à¤¾à¤°à¥à¤® पर दिये गये पà¥à¤µà¤¾à¤‡à¤‚ट में लगाया किनà¥à¤¤à¥ तà¤à¥€ गाड़ी ने सरकना आरंठकर दिया।़मजबूर होकर तà¥à¤°à¤‚त गाड़ी में लौटना पड़ा। मैं सोचता हूं कि यदि यह तकनीकी रूप से संà¤à¤µ हो तो मोबाइल चारà¥à¤œ करने की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ शायिका यान में कर दी जाये तो कितना अचà¥à¤›à¤¾ रहेगा।
मधà¥à¤¯à¤ªà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ के किसी सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ से, शायद à¤à¤µà¤¾à¤¨à¥€à¤®à¤‚डी था, à¤à¤• सजà¥à¤œà¤¨ आकर हमारे पास बैठे। कà¥à¤› कà¥à¤·à¤£à¥‹à¤‚ बाद बातचीत शà¥à¤°à¥ हो गई तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने बताया कि वह वासà¥à¤¤à¥à¤¶à¤¾à¤¸à¥à¤¤à¥à¤° के परम जà¥à¤žà¤¾à¤¤à¤¾ हैं। बोले – आपको अपनी शैया इस कोच के उतà¥à¤¤à¤°-पूरà¥à¤µ के कोने की ओर बनानी चाहिये। हमने कहा कि हमें इस रेल में जितना सोना था, सो लिया, अब तो रात आने से पहले ही मà¥à¤‚बई में उतर जायेंगे। वैसे à¤à¥€ जो शायिका रेलवे ने हमें आबंटित कर दी, वही ठीक है अब उस पर कà¥à¤¯à¤¾ à¤à¤—ड़ा करें।उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपने कà¥à¤°à¥à¤¤à¥‡ की जेब से अपना विज़िटिंग कारà¥à¤¡ निकाला और हमें दे दिया और कहा कि यदि कà¤à¥€ à¤à¥€ आवशà¥à¤¯à¤•ता हो तो हम उनसे अवशà¥à¤¯ संपरà¥à¤• करें।
हमारी गजगामिनी नितानà¥à¤¤ निरà¥à¤œà¤¨, बीहड़ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° को तेजी से पीछे छोड़ती चली जा रही थी। खिड़की से बाहर गरà¥à¤¦à¤¨ उचका कर देखा तो अनà¥à¤à¤µ हà¥à¤† कि कितनी कठिनाई से इस धरती पर रेलमारà¥à¤— बिछाना पड़ा होगा। बार-बार रेलगाड़ी घूमती थी और हमें इंजन व उसके पीछे-पीछे à¤à¤¾à¤—े चले जा रहे हमारी ही रेलगाड़ी के पनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¹ बीस डिबà¥à¤¬à¥‡ दिखाई देने लगते थे। अलग – अलग डिबà¥à¤¬à¥‹à¤‚ में बैठे हà¥à¤ लोग,विशेषकर बचà¥à¤šà¥‡ à¤à¤• दूसरे को देखकर जोर-जोर से हाथ हिला कर सोनिया गांधी सà¥à¤Ÿà¤¾à¤‡à¤² में अà¤à¤¿à¤µà¤¾à¤¦à¤¨ कर रहे थे। गाड़ी की गति à¤à¥€ काफी अधिक अनà¥à¤à¤µ हो रही थी, बीहड़ में से गाड़ी निकल रही देखकर मेरा छोटा पà¥à¤¤à¥à¤° बोला – डाकà¥à¤“ं का इलाका है, इसीलिये गाड़ी इतनी तेजी से à¤à¤¾à¤—ी जा रही है।
नाशà¥à¤¤à¤¾ आदि करके, दो घंटे ताश खेलकर पतà¥à¤¨à¥€ à¤à¥€ शायद थक चà¥à¤•ी थी, कमर सीधी करने के लिये लेट गई तो मà¥à¤à¥‡ लगा कि रेल यातà¥à¤°à¤¾ का सबसे बड़ा सà¥à¤– यही है कि रेलगाड़ी में आराम से लेटकर सोया जा सकता है। रेलमारà¥à¤— पर कम से कम गति अवरोधकों से तो मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ है वरना राजमारà¥à¤—ों पर तो हर गांव के पहले व बाद में, गांव के पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨ के घर के बाहर अपनी इचà¥à¤›à¤¾à¤¨à¥à¤¸à¤¾à¤° निजी खरà¥à¤š पर या ठेकेदार को दबाव में लेकर गति अवरोधक बना लिये जाते हैं जिनको बनाने का à¤à¤•मातà¥à¤° संà¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ वाहन चालकों को सबक सिखाना या अपना सà¥à¤Ÿà¥‡à¤Ÿà¤¸ दिखाना होता है। जिसके घर के बाहर जितने अधिक सà¥à¤ªà¥€à¤¡ बà¥à¤°à¥‡à¤•र वह उतना ही बड़ा नेता! कà¥à¤› गति अवरोधकों को देखकर तो à¤à¤¸à¤¾ लगता है कि शायद सड़क पर टेलीफोन का खंबा लिटाकर उस पर तारकोल डाल दिया गया है। उस पर सफेद पेंट करने, वाहन चालकों के लिये पूरà¥à¤µ चेतावनी वाले संकेतक बोरà¥à¤¡ à¤à¥€ लगाने की आवशà¥à¤¯à¤•ता अनà¥à¤à¤µ नहीं की जाती। बिना किसी कायदे कानून का लिहाज किये बनाये गये इन गति अवरोधकों पर कोई संकेतक या चेतावनी ने होने से वाहन दà¥à¤°à¥à¤˜à¤Ÿà¤¨à¤¾à¤—à¥à¤°à¤¸à¥à¤¤ होते ही रहते हंैं। दà¥à¤°à¥à¤˜à¤Ÿà¤¨à¤¾ न à¤à¥€ हो तो वाहन इतनी जोर से उछल जाता है कि सवारियों की रीढ़ की हडà¥à¤¡à¥€ अपनी जगह छोड़ बैठे।रेलगाड़ी में कम से कम à¤à¤¸à¤¾ तो कà¥à¤› नहीं है। यह बात अलग है कि शयनयान में दिन के समय लेटा तो जा सकता है सो पाना कठिन रहता है। à¤à¥‹à¤œà¤¨à¤¯à¤¾à¤¨ के करà¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¥€ दिन à¤à¤° चाय,काफी, कोलà¥à¤¡ डà¥à¤°à¤¿à¤‚क, अंकल चिपà¥à¤¸ आदि की आवाज़ लगाकर यातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को निरंतर जगाते ही रहते हैं।
दोपहर के à¤à¥‹à¤œà¤¨ का समय बीता जा रहा था। रतलाम बहà¥à¤¤ पीछे छूट चà¥à¤•ा था और अब हम वडोदरा के निकट आ पहà¥à¤‚चे थे जिसकी हमें बड़ी वà¥à¤¯à¤—à¥à¤°à¤¤à¤¾ से पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•à¥à¤·à¤¾ थी। कारण ये कि रेलगाड़ी का खाना अचà¥à¤›à¤¾ नहीं लगता और पहले दिन की पूरी सबà¥à¤œà¤¼à¥€ खा-खाकर बचà¥à¤šà¥‡ उकताये हà¥à¤ थे। पà¥à¤²à¥‡à¤Ÿà¤«à¤¾à¤°à¥à¤® पर गाड़ी रà¥à¤•ते ही मैं तीर की à¤à¤¾à¤‚ति सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ के बाहर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ à¤à¥‹à¤œà¤¨à¤¾à¤²à¤¯ की ओर à¤à¤¾à¤—ा और दाल, सबà¥à¤œà¤¼à¥€, रोटी पैक करने का निरà¥à¤¦à¥‡à¤¶ दिया। किसी मितà¥à¤° ने बताया था कि वडोदरा सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ के बाहर कई बहà¥à¤¤ अचà¥à¤›à¥‡ à¤à¥‹à¤œà¤¨à¤¾à¤²à¤¯ हैं और इन à¤à¥‹à¤œà¤¨à¤¾à¤²à¤¯ वालों को यह बताने की आवशà¥à¤¯à¤•ता नहीं पड़ती कि आप कितनी जलà¥à¤¦à¥€ में हैं। संà¤à¤µà¤¤à¤ƒ दो या तीन मिनट के अंदर – अंदर गरà¥à¤®à¤¾à¤—रà¥à¤® à¤à¥‹à¤œà¤¨ के पैकेट मेरे हाथ में सौंप दिये गये। तीर की ही à¤à¤¾à¤‚ति मैं à¤à¥‹à¤œà¤¨ लेकर अपनी गाड़ी की ओर à¤à¤¾à¤—ा जो पà¥à¤²à¥‡à¤Ÿà¤«à¤¾à¤°à¥à¤® नं0 1 पर खड़ी थी। यह बिलà¥à¤•à¥à¤² सही है कि लंबी यातà¥à¤°à¤¾ में गाड़ी छोड़कर सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ के बाहर जाने का खतरा मोल लेना किसी à¤à¥€ दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से उचित नहीं है परनà¥à¤¤à¥ इस पापी पेट की खातिर और उससे à¤à¥€ बढ़कर इस सà¥à¤µà¤¾à¤¦à¤ªà¤¿à¤ªà¤¾à¤¸à¥ जिहà¥à¤µà¤¾ की खातिर इंसान à¤à¤¸à¥€ गलतियां करता ही रहता है। मेरी पतà¥à¤¨à¥€ à¤à¥€ मेरी इस ‘वीरता’ का समरà¥à¤¥à¤¨ करने में सà¥à¤µà¤¯à¤‚ को असमरà¥à¤¥ पा रही थी, किनà¥à¤¤à¥ जब हम सबने अखबार बिछाकर अतà¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤ सà¥à¤µà¤¾à¤¦à¤¿à¤·à¥à¤Ÿ à¤à¥‹à¤œà¤¨ गà¥à¤°à¤¹à¤£ कर संतà¥à¤·à¥à¤Ÿà¤¿ की डकार ली तो उनà¥à¤¹à¥‹à¥‡à¤‚ने à¤à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯ में कà¤à¥€ à¤à¥€ à¤à¤¸à¤¾ दà¥à¤¸à¥à¤¸à¤¾à¤¹à¤¸ न करने की सखà¥à¤¤ ताकीद करते हà¥à¤ हमें कà¥à¤·à¤®à¤¾ कर दिया।
à¤à¥‹à¤œà¤¨ के बाद अब कà¥à¤¯à¤¾ किया जाये? खाली बैठसमय बिताना अचà¥à¤›à¥€ खासी समसà¥à¤¯à¤¾ थी, बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ को बाहर पà¥à¤²à¥‡à¤Ÿà¤«à¤¾à¤°à¥à¤® पर जाने की अनà¥à¤®à¤¤à¤¿ हम नहीं दे रहे थे और गाड़ी में बैठे – बैठे शतरंज, ताश à¤à¥€ कितनी देर खेलें। बड़ा पà¥à¤¤à¥à¤° बोला – गाड़ी में à¤à¤• डिबà¥à¤¬à¤¾ à¤à¥‹à¤œà¤¨à¤¯à¤¾à¤¨ का होता है, à¤à¤• मनोरंजन का à¤à¥€ होना चाहिये। हमें à¤à¥€ लगा कि यदि लंबी दूरी की गाड़ियों में à¤à¤• कोच मनोरंजन व खेलों आदि की सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ वाली लगा दी जाये तो रेल विà¤à¤¾à¤— के राजसà¥à¤µ में à¤à¥€ वृदà¥à¤§à¤¿ होने लगेगी और लंबी दूरी के यातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का समय à¤à¥€ अचà¥à¤›à¥‡ से बीत जायेगा।उदाहरण के लिये टी वी, वीडियो गेमà¥à¤¸, टी टी टेबिल आदि उस कोच में रखे जा सकते हैं व इस सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ को केवल उन यातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के लिये सीमित रखा जा सकता है जो शयनयान शà¥à¤°à¥‡à¤£à¥€ या वातानà¥à¤•ूलित शà¥à¤°à¥‡à¤£à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के हैं। इन सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤“ं का सामानà¥à¤¯ सा शà¥à¤²à¥à¤• à¤à¥€ रखा जा सकता है। यदि रेल विà¤à¤¾à¤— थोड़ा कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾à¤¶à¥€à¤²à¤¤à¤¾ का परिचय दे तो à¤à¤¸à¥€ पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ कोच में सà¥à¤¬à¤¹ के समय योग ककà¥à¤·à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ दी जा सकती हैं,जाॅगिंग या साइकà¥à¤²à¤¿à¤‚ग मशीन à¤à¥€ लगाई जा सकती हैं। सà¥à¤¨à¤¾ है पैलेस आॅन वà¥à¤¹à¥€à¤²à¥à¤¸ गाड़ी में à¤à¤¸à¥€ सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ दी जाती हैं। पर रेलवे को वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¤¾à¤¯ ही करना है तो यह सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ पैसे लेकर हर गाड़ी में देने में कà¥à¤¯à¤¾ कठिनाई हो सकती है? अचà¥à¤›à¤¾ तो यह होगा कि रेलवे à¤à¤¸à¥€ कोच का ठेका निजी कंपनियों को दे दे व ये कंपनियां ही इस कोच की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ व संचालन करें। अलग-अलग गाड़ी में अलग – अलग कंपनियों को ठेके दिये जायें व पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¸à¥à¤ªà¤¦à¥à¤°à¥à¤§à¤¾ के माधà¥à¤¯à¤® से उनके दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ दी जा रही सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤“ं की गà¥à¤£à¤µà¤¤à¥à¤¤à¤¾ सà¥à¤¨à¤¿à¤¶à¥à¤šà¤¿à¤¤ की जाये। सूरत में फिर हमारे फोन की घंटी बजी। बहिन का फोन था। वह चाहती थीं कि मà¥à¤‚बई जाने से पहले हम दो दिन उनके पास ही रà¥à¤•ें । बस फिर कà¥à¤¯à¤¾ था, हर सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ के निकलने के साथ-साथ हमारी वà¥à¤¯à¤—à¥à¤°à¤¤à¤¾ वापी सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ के लिये बढ़ने लगी। कितने बजे पहà¥à¤‚चेंगे, यह à¤à¥€ हमने सहयातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से पता किया। वळसाड सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ आया तो हमने सामान पैक करना आरंठकिया किनà¥à¤¤à¥ आगे à¤à¤• छोटे से सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ पर हमारी गाड़ी लगà¤à¤— दो घंटे के लिये खड़ी कर दी गई और दिलà¥à¤²à¥€-मà¥à¤‚बई राजधानी à¤à¤•à¥à¤¸à¤ªà¥à¤°à¥‡à¤¸, अगसà¥à¤¤ कà¥à¤°à¤¾à¤‚ति राजधानी à¤à¤•à¥à¤¸à¤ªà¥à¤°à¥‡à¤¸, सà¥à¤µà¤°à¤¾à¤œ à¤à¤•à¥à¤¸à¤ªà¥à¤°à¥‡à¤¸ आदि – आदि गाड़ियों को हमारे से आगे निकाला जाता रहा। मà¥à¤‚बई की ओर से à¤à¥€ अनेकानेक गाड़ियां बिना रà¥à¤•े निकलती रहीं। हम रेलवे के कबà¥à¤œà¥‡ में थे, अतः मन मसोस कर पà¥à¤²à¥‡à¤Ÿà¤«à¤¾à¤°à¥à¤® पर à¤à¤•-à¤à¤• गाड़ी को धूल उड़ाते हà¥à¤ आगे-निकलते देखते रहे। अंत में रेलवे विà¤à¤¾à¤— ने हमारी à¤à¥€ सà¥à¤§ ली और सूरà¥à¤¯ असà¥à¤¤ होने के बाद हमारी गाड़ी को आगे बढ़ने का संकेत मिला। रात होगयी थी, हमने अपना खाने का डबà¥à¤¬à¤¾ टटोला और जितना à¤à¥‹à¤œà¤¨ शेष था, सब समापà¥à¤¤ कर डाला। वापी सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ पर जब गाड़ी रà¥à¤•ी और जीजाजी दिखाई दिये तो à¤à¤°à¤¤à¤®à¤¿à¤²à¤¾à¤ª का वह चिर पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ दृशà¥à¤¯ हमें आज à¤à¥€ सà¥à¤®à¤°à¤£ है।
निरà¥à¤µà¤¿à¤µà¤¾à¤¦ रूप से à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ रेल हम देशवासियों के जीवन का अà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ अंग है। रेलवे के करà¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ और अधिकारियों की कारà¥à¤¯à¤¸à¤‚सà¥à¤•ृति व शैली में गà¥à¤£à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤• परिवरà¥à¤¤à¤¨ ला कर और थोड़ी सी कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾à¤¶à¥€à¤²à¤¤à¤¾ का परिचय देकर इसे और अधिक यूज़र फà¥à¤°à¥‡à¤‚डली बनाया जा सकता है। यदि à¤à¤¸à¤¾ हो सके तो इसे सरà¥à¤µà¤¶à¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ सारà¥à¤µà¤œà¤¨à¤¿à¤• रेल परिवहन सेवा का सà¥à¤µà¤°à¥‚प दिया जा सकता है, इसमें मà¥à¤à¥‡ किंचितॠà¤à¥€ संदेह नहीं है।
Hi Sushan,
Very interesting writing. You narrate everything so well. Thanks a lot. Will wait for your next post.
Sorry your name Mr. Sushant Singhal, I missed T . I apologize for mistake.
Thank you Mr. Surinder Sharma. Shall write about my Kashmir tour very soon. Thanks again.
बहुत अच्छा लेखन हैं, आपने भारतीय रेलवे का अच्छा चित्रण किया हैं. रेलवे भारत की जीवन रेखा हैं. और आने जाने का सस्ता साधन हैं. इसमें सुधार की बहुत जरुरत हैं. लेख के लिए धन्यवाद, वन्देमातरम
सुशांत जी,
घुमक्कड़ डोट कॉम पर आपका हार्दिक अभिनन्दन, सुस्वागतम……………………………..
आपकी पहली ही पोस्ट ने मन मोह लिया, ऐसा लगता है किसी अनुभवी, प्रतिष्ठित एवं वरिष्ठ व्यंग्य लेखक की रचना है यह. यात्रा वृत्तान्त तथा हास्य व्यंग्य का यह सुन्दर मिश्रण सचमुच एक विलक्षण कृति है जो घुमक्कड़ पर सर्वथा दुर्लभ है. अगर लेख इतना सशक्त हो तो तस्वीरों की कमी कतई नहीं खलती है. आशा है आपकी कलम से ऐसे ही सुन्दर लेख हमें समय समय पर उपलब्ध होते रहेंगे.
सुशांत जी .
आपका लेख बहुत ही अच्छे तरीके से सुन्दर शब्दावली से सुसज्जित हैं .यात्रा वर्णन इसी तरह से होना चाहिए फोटो की कमी वैसे भी नहीं खली .साहित्य में गद्य की एक विधा होती हैं जिसे यात्रा संस्मरण कहते हैं .पढ़ते पढ़ते आँखों के सामने वैसा ही द्रश्य नजर आने लगता हैं .और पहले पहले लेख ऐसे ही शुरू होता हैं .
अगली पोस्ट के इंतजार में .
सुशांत जी – घुमक्कड़ पर हार्दिक स्वागत है | श्री लाल शुक्ल जी की एक किताब है, राग दरबारी, जिसका मैं कायल हूँ | आपका लेख पढ़ कर कम से कम १२१ बार तो हंसी छुटी होगी , उसके बाद एक निरंतर आन्तरिक गुदगुदी का माहौल रहा वापी तक | वाह, क्या कहने |
मुकेश जी की टिपण्णी से पूरा इत्तेफाक रखता हूँ | हिंदी लेखनी में इस तरह का लेख शायद घुमक्कड़ पर अभी तक नहीं है | एक बार फिर से आनंद उठाने के लिए फिर से पढने चला मैं |
सुशांत जी…सर्वप्रथम आपका घुमक्कड़ पर स्वागत हैं….|
आपका लेख मुझे बहुत रुचिकर लगा और अच्छा लगा |
लेख में सुन्दर शब्दों के साथ व्यंग्य का समावेश बहुत बढ़िया था….| लेख पढ़ते समय फोटोओ कमी नही खली….|
धन्यवाद !
Dear Sushantji,
Humour at its best, the sweet relationship between husband wife cannot be explained in a better way. I am sure the sentiments you have narrated here is almost common with every average Indian house hold. I was expecting the yatra to be upto Mumbai, and looking forward to read few more anecdotes till the end of the journey. I believe the suggestions you have made for the recreation facility on running trains is something very genuine and unique, somebody from railways should read your post. Although you have not mentioned your profession but assuming, certainly a great humour writer after our very own SS sir. Thanks for bringing a new culture of ghumakkari with immaculate writing in Hindi with great level of humour. Biswajit Ganguly
Dear Biswajit Ganguli,
I wish to convey my heart-felt gratitude to you for the appreciation. I shall try to keep myself up to the expectations of you and all other friends.
Sushant Singhal
स्वागतम, सु:स्वागतम, घुमक्कड़ परिवार में शांत सुशांतजी का हार्दिक स्वागत है. आज सुशांतजी के अवतरण के साथ ही इस परिवार में एक व्यंग शास्त्री की कमी भी पूर्ण हुई. घटनाओं का ब्यौरा कितनी सरलता व सुगमता से व्यंगात्मक समावेश के सहित प्रस्तुत किया है निस्संदेह आपने इस परिवार की अपेक्षाएँ आने वाले लेखों के लिए और बढा दी हैं. आपके लेखन ने स्वर्गीय शरद जोशी जी के एन.बी.टी. के “प्रतिदिन” को जीवंत किया है. श्री सुरेंद्र शर्मा तथा माननीय अशोक चक्रधर जी कि शैली को घुमक्कड़ पर साकार कर दिखाया है. आपके गद्य ने न जाने घुमक्कड़ परिवार के सदस्यों के दिमाग में “ऎसे पहुंचे ह्म मुंबई” के कितने ही काल्पनिक व्यंग चित्र बना डाले हैं. अति सुन्दर |
आपकी कश्मीर यात्रा के व्रतांत का सभी को बड़ी बेसब्री से इंतज़ार रहेगा.
इक बार फिर से… सुंदरतम !
आप सब की इस स्नेह वर्षा से अभिभूत और कृतज्ञ हूं ! ग़र पाठक करते हैं लेखन से प्यार, तो लेखक क्यों करें लेखन से इंकार! त्रिदेव चरन जी ने तो झाड़ के पेड़ पर चढ़ा दिया है। मैं यह मानता हूं कि आप सब को हास्य-व्यंग्य की तलाश थी, वह अचानक मिल गया तो आप गद्गद हो गये और मुझ नाचीज़ पर पुष्प – वर्षा कर डाली ! अब वास्तव में ही आगे कुछ लिखते हुए बहुत consciousness बनी रहेगी ! आप सब के स्नेह के लिये पुनः हार्दिक आभार !
चित्र न होते हुए भी, आपका विवरण बहुत मनोरंजक रहा
स्वागत है आपका, घुमक्कड़ पर
प्रिय शान्त-आत्मन् , आपकी यह टिप्पणी मेरे लिये बहुत महत्व रखती है। घुमक्कड़ पर आप मेरे प्रिय लेखक हैं।
सुशान्त सिंहल
सुशांत जी,
आपका वृतांत पढ़ कर मज़ा आया. इतनी शुद्ध हिन्दी आजकल ना सुनने को और ना पढ़ने को मिलती है. और एक बात जो अच्छी लगी वो यह की अपने अपनी रेल यात्रा का वर्णन किया ना की आपके गंतव्य स्थल का. आपकी तरह मैने भी भारतीय रेल का बहुत सफ़र किया है. मैं तो भा. रे. का शुभचिंतक भी हूँ और उससे जुड़े तर्क-वितर्क में शरीक होता हूँ.
आपका जो अनुभव रहा दूसरी श्रेणी का टिकट लेने का उसके बारे में अनुमान लगा सकता हूँ. आप ज़रूर “अनारक्षित टिकट व्यवस्था” यानी UTS प्रणाली वाली खिड़की पर गये होंगे. उनके पास आरक्षित टिकट देने का प्रबंध नही होता. आप आरक्षण खिड़की पर गये होते तो सीधे-सीधे वेटिंग लिस्ट की टिकट ले सकते थे और कोई जुर्माना भी नहीं पड़ता. क्या आप आरक्षण खिड़की पर गये थे?
दूसरी बात पानी की. यहाँ एक बात कहना चाहूँगा की भा. रे. समाज का एक आईना है. जो चीज़ बाहर होती है वही रेलवे के अंदर. बाहर भी आप देखिए नगर पालिका ने लोगों के पानी की कितनी व्यवस्था की है? क्या हज़ारों लोग रोज़ मिनरल वॉटर नहीं पीते? वैसे समाज भी बदल गया है. मुझे याद है आज से कुछ साल पहले तक हम बेझिझक प्लॅटफॉर्म का पानी पी लिया करते थे परंतु आज इतना संकोच करते हैं की पानी कैसा होगा. भा. रे. हर स्टेशन पर पानी उपलब्ध करता है पर हम लोग ही उसकी कद्र नहीं करते ना ही उसे सुधारने के लिए कोई पहल करते हैं.
आपका सुझाव एक मनोरंजन डिब्बा होने का बहुत ही रोचक है. इसके बहुत पहलू हैं. मोटे तौर पर यह सुविधा बहुत जटिल है. सुविधा एक बार प्रदान कर देना एक बात है और उसे दिन प्रतिदिन चलाते रहने दूसरी बात. फिर यह बात पॅसेंजर्स की प्राथमिकता नहीं है. सॉफ-सफाई, आरक्षण, सुरक्षा, समय की पाबंधी आदि प्राथमिकताएँ हैं तो इस सुझाव का नंबर तब आएगा जब भा. रे. यूरोपियन या अमरीकन रेलवे की तरह हो जाएगी :)
और आपने रेलवे को गजगमिनी कहा. वैसे धर्मेन्द्र की चुपके चुपके फिल्म के बात सब उसे लौहपथ गामिनी अग्निरत कहते हैं :)
रही बात बाकी वर्णन की आपका मिज़ाज़ बहुत हाज़िरजवाब मालूम जान पड़ता है. छोटी छोटी घरेलू बातों में हास्य का रस लेना बहुत अच्छा लगा. लौटते हुए सफ़र का वृतांत और अनुभव भी लिखिए.
बहुत ही सुंदर सुशांत जी, पढ़कर मज़ा आ गया| आपके अगले लेखों का इंतजार रहेगा|
प्रिय रूपेश जी,
सबसे पहले तो आपका हार्दिक आभार। लिखने का स्वभाव मुझे अपने स्वर्गीय पिता से मिला था जो स्वयं बहुत अच्छे लेख और कवितायें लिखते रहे। किशोरावस्था से ही श्रेष्ठ लेखकों, कवियों, कथाकारों, उपन्यासकारों की रचनाएं पढ़ता रहा तो भाषा में भी परिष्कार आया। अस्तु ! मैं वास्तव में आरक्षण वाली खिड़की पर नहीं गया था परन्तु सहारनपुर से नई दिल्ली का शयनयान का टिकट सामान्य खिड़की पर ही मिलता था । दूसरे waitlisted passengers को शयनयान में बैठने की अनुमति नहीं है, यह बात भी मन में थी। गाड़ी के चलने से चार घंटे पहले आरक्षण खिड़की वैसे भी बन्द हो जाती है। यह सुझाव वैसे भी मुझे किसी भी रेल कर्मचारी की ओर से नहीं मिला।
रही बात पानी की तो सहारनपुर रेलवे स्टेशन पर प्लेटफार्म नं. ४ पर वाटर कूलर लगा है, मैं तो हमेशा उससे ही अपनी प्यास बुझाता हूं और अपनी बोतल भी भर लेता हूं। मुझे मिनरल वाटर बेचने वाली कंपनियों पर रेलवे से अधिक विश्वास नहीं है।
रेलगाड़ी में यदि प्राइवेट कंपनियों को मनोरंजन कक्ष के निर्माण और संचालन की जिम्मेदारी सौंपी जायेगी तो उसकी सही प्रकार से देखभाल वह सरलता से कर सकती हैं और रेलवे को भी नियमित रूप से रेवेन्यू मिलता रहेगा। हर नयी चीज़ में शुरु में कुछ न कुछ कठिनाइयां तो आती ही हैं पर उन कठिनाइयों की कल्पना कर कर के ही हम आगे न बढ़ें, यह भी तो उचित नहीं होगा न ! आज से दस-पन्द्रह वर्ष पहले किसने सोचा होगा कि दिल्ली में भूमिगत मैट्रो रेल दौड़ा करेगी ! कोंकण रेलवे क्या कोई छोटी मोटी उपलब्धि है?
एक बार पुनः रचना को सराहने के लिये आभार ! मैं निरन्तर लिखते रहने का प्रयत्न करूंगा।
आपका हास्य-व्यंग्य से भरपूर यात्रा-वृतांत पढ़कर लगा-
“घड़ी दिन में एक भी ऐसी बीते
तो दिन ना लगे फिर रीत रीते”.
Thank you JaiShree. It is so nice of you. :)
Dear Sushant sir,
I enjoyed a lot while reading your article.Generally i dont read these type of long stories but i was very eager to read this as there was twist in each and every line .It was very humorous too.
I liked your hindi words very much. Keep posing this type of things in future.
Regards,
Ankit Tayal
Thank you Ankit. You and many other friends on Ghumakkar have encouraged me to write more. I will sure give it a try.
Sushant
Dear Sushant Ji
Nice written command in Hindi with great humoristic language which you use in this article.
Good wishes for next trip.
Regards
Sanjay khera
Dear Sanjay Khera,
Delighted to hear from you and thank you for your good wishes and kind words.
Sushant Singhal
बहुत ही शानदार यात्रा वृतांत है. अब तो ऐसा व्यंग्य पढ़ना दुर्लभ हो गया है. रेल में पानी का घड़ा और सामान्य खिडकी पर शयनयान का टिकट मिलना, दो बिलकुल नयी बातों की जानकारी हुई. मैंने काफी समय पहले बचपन में स्वर्ण मंदिर मेल से बयाना से दिल्ली यात्रा की थी , परन्तु तब ये फ्रंटीयर मेल हुआ करती थी.
इतनी बढ़िया प्रस्तुति के साथ घुमक्कड़ पर आपका हार्दिक स्वागत है.
प्रिय श्री दीपेन्द्र सोलंकी,
आपके उत्साह वर्द्धन हेतु हार्दिक आभार ! पहले मैं नियमित रूप से लिखता था और कभी कभी रचनायें प्रकाशित भी होती रहती थीं । फिर न जाने क्यों, धीरे – धीरे लेखन कम होता चला गया। पर आप सब की प्रतिक्रिया देख – पढ़ कर लग रहा है कि लेखन के प्रति उदासीनता मेरी भूल थी ! चलिये, जब जागो, तभी सवेरा ! अब नियमित रूप से लिखने का वायदा करते हुए पुनः आभार व्यक्त करता हूं ।
सुशान्त सिंहल