श्रावस्ती संस्मरण – भाग १ ( Memories of Sravasti -1)
श्रावस्ती से भगवान् बुद्ध का गहरा रिशता रहा है । यह तथ्य इसी से प्रकट होता है कि जीवन के उत्तरार्थ के २५ वर्षावास( चार्तुमास ) बुद्ध ने श्रावस्ती मे ही बिताये । बुद्ध वाणी संग्रह त्रिपिटक के अन्तर्गत ८७१ सूत्रों ( धर्म उपदेशॊ ) को भगवान् बुद्ध ने श्रावस्ती प्रवास मे ही दिये थे , जिसमें ८४४ उपदेशों को जेतवन – अनाथपिंडक महाविहार में व २३ सूत्रों को मिगार माता पूर्वाराम मे उपदेशित किया था । शेष ४ सूत्रों समीप के अन्य स्थानों मे दिये गये थे । भगवान बुद्ध के महान आध्यात्मिक गौरव का केन्द्र बनी श्रावस्ती का सांस्कृतिक प्रवाह मे भयानक विध्वंसों के बाद वर्तमान मे भी यथावत है ।
इतिहास मे दृष्टि दौडायें तो कई रोचक तथ्य दिखते हैं । प्राचीन काल में यह कौशल देश की दूसरी राजधानी थी। भगवान राम के पुत्र लव ने इसे अपनी राजधानी बनाया था। श्रावस्ती बौद्ध व जैन दोनो का तीर्थ स्थान है।
माना गया है कि श्रावस्ति के स्थान पर आज आधुनिक सहेत महेत ग्राम है जो एक दूसरे से लगभग डेढ़ फर्लांग के अंतर पर स्थित हैं। यह बुद्धकालीन नगर था, जिसके भग्नावशेष उत्तर प्रदेश राज्य के, बहराइच एवं गोंडा जिले की सीमा पर, राप्ती नदी के दक्षिणी किनारे पर फैले हुए हैं।
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