Ghumakkar Featured Author Interview – Presenting Romantic Ritesh Gupta

नमस्कार घुमक्कड़ परिवार | अत्यंत हर्ष के साथ पेश है हमारा मासिक साक्षात्कार अक्टूबर २०१२ माह के विशिष्ट लेखक, रीतेश गुप्ता जी के साथ | पर इससे पहले थोडा सा चलतें है बीते समय की ओर | पिछले बारह महीनों के अगर विशिष्ट लेखकों के फेहरिस्त पर निगाह दौडाई जाए तो आप देखेंगे की अंग्रेजी में लिखने वाले 5 नाम है (शास्रीय देवस्मिता, निखिल भाई, प्रोफ़ेसर मनीष खमेसरा, गुरु डी एल और प्यारे महेश सेमवाल) और हिंदी में लिखने वाले ४ नाम है  और वो हैं रोमांटिक रीतेश, मनु घुमक्कड़ त्यागी, मौसिकार मनीष कुमार और जीवट संदीप जाट  | इस सूची में मैंने  साइलेंट सौल प्रेम तिवारी साहब,  माकूल मुकेश जी  और भावपूर्ण विशाल को सम्मिलित नहीं किया है क्योंकि ये लोग दोनों भाषाओँ में लिख चुकें हैं |  हालांकि अगर गणित को छोड़ दिया जाए तो ये तीनो भी मुख्यतः अंग्रेजी में ही लिखते हैं | तो कुल मिला कर अंग्रेजी में ज्यादा लेखक है  | पर हिंदी के ४ लेखक कुल १२ में से , एक बहुत ही सार्थक अंक है , और इस मशाल के नवीनतम पट्टेदार हैं रीतेश गुप्ता जी | इसमें कोई संदेह नहीं की रीतेश जी ने अपनी संगठित और संतुलित लेखों से इस मशाल को कई कदम आगे बढाया है और विशिष्ट लेखक के सम्मान के लिए वो पूरी तरह से तैयार थे | घुमक्कड़ की हिंदी रचनाओं का स्तर रीतेश जी ने बढाया है | हर लेख में प्रचुर मात्र में सभी जानकारियों को एक लयबद्ध तरीके से पेश करना, सहलेखकों की रचनाओं पर विवेकपूर्ण  टिपण्णी करना अपने आप में एक बड़ी बात है पर उससे भी ज्यादा मुझे ये लगता है की रितेश जी एक सुचिंतित व्यक्तित्व के सरदार है | इमेल्स , चैट्स और फिर उनसे बात करके इस बात की पूर्ण पुष्टि हो गयी | घुमक्कड़, हिंदी लेखन और इन्टरनेट पर एक संतुलित आचरण के स्थम्बों के लिए रीतेश जी का योगदान एक गर्व की बात है और बिना ज्यादा जद्दो-जदेह के पेश है अक्टूबर २०१२ माह के घुमक्कड़ विशिष्ट लेखक रीतेश गुप्ता के साथ बातचीत |  

घुमक्कड़ – रीतेश जी, नमस्कार और बहुत बहुत बधाई |
रीतेश – नमस्कार नंदन जी और समस्त घुमक्कड़ टीम | मेरे लिए बहुत ख़ुशी की बात है | 

घुमक्कड़ – आपके परिवार में कौन कौन है, थोडा अपने परिवार जन को  घुमक्कड़ समूह से परिचित करवाएं | 

रीतेश – सर्वप्रथम घुमक्कड़ के पाठकों और लेखकों को मेरा नमस्कार । मैं एक सयुक्त परिवार में रहता हूँ, मेरे घर में सबसे बड़ी मेरी दादी जी, उसके बाद मेरी माता, पिताजी हैं । हम चार भाई हैं, जिसमें सबसे बड़ा मैं (रीतेश गुप्ता ) हूँ , मेरे जिंदगी और मेरे हर सफ़र के साथी मेरी धर्मपत्नी रश्मि गुप्ता और मेरे दो बच्चे जिसमे बड़ी बेटी अंशिता गुप्ता (सात साल) और छोटा बेटा अक्षत गुप्ता (तीन साल) हैं ।  आपको मेरी बात कुछ आश्चर्य में डाल सकती हैं कि मेरे दोनो बच्चो का जन्मदिन एक दिनांक (29 मई) पर पड़ता हैं । 

Me with my Family at rohtang pass


घुमक्कड़ – क्या बात है | फिर तो जन्म-दिन मनाने में सहूलियत रहती होगी | हे हे | आपके लेखों से थोडा बहुत अंदाज़ा तो लगता ही है, आपकी एक छोटे भाई शायद नोयडा (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) में रहते हैं |
रीतेश – हम दो भाई आगरा में और दो भाई आगरा से बाहर रहते हैं , हम सभी की शादी हो चुकी हैं ।  मेरे साथ अक्सर मेरा छोटा भाई अनुज गुप्ता मेरे साथ ही घूमने जाता हैं, क्योंकि उसे भी घूमने का शौक हैं और वो भी कभी-कभी घुम्मकड़ पर आये लेख पढ़ता रहता हैं । 

My Respected Grandmother

My respected Mother & Father

घुमक्कड़ – आपकी प्रोफाइल कहती है की आप कंप्यूटर से जुड़े हुए हैं अपने काम धंदे के सिलसिले में, थोडा और बताएं इस बारे में | 
रीतेश – मैंने कोमर्स से B.COM के साथ कंप्यूटर कोर्स किया हुआ हैं । कंप्यूटर एकाउंट में लगभग महारत हासिल की हुयी हैं । 
 यह सही हैं की मैं अपने प्रोफेशन में नम्बर्स और कंप्यूटरस से डील करता हूँ । मेरा मुख्य काम कंप्यूटर एकाउंट, सेल्स टैक्स, इन्कम टैक्स और अन्य सोफ्वेयर में काम करना और सलाह देना होता हैं । मेरी दिनचर्या लगभग व्यस्त ही रहती हैं । सुबह आठ बजे से शाम आठ बजे तक मैं आपका कार्य तीन शिफ्ट में करता हूँ । दोपहर के समय लगभग छह घंटे में एक भारत स्तर के कंपनी में प्रबंधन के साथ-साथ कंप्यूटर एकाउंट का कार्य रहता हैं । बाकी समय मेरे पास पार्ट टाइम जॉब रहती हैं, इस प्रकार से मेरा काम मेरी जिम्मेदारी पर रहता हैं । घुमक्कड़ी मेरा शौक हैं और शौक के लिए किसी न किसी तरह समय तो निकाल ही लेता हूँ । घूमने के लिए सबसे पहले आपने साथ जाने वाले को तैयार करता हूँ, उसके जगह की तलाश, फिर प्लान तैयार करने के बाद कम से कम समय का अवकाश अपने कार्य से लेकर घूमने निकल पड़ता हूँ । मेरा उद्देश्य साल में कम से कम एक बार घूमने जाना तो होता हैं और उसे मैं पूरा तो कर ही लेता हूँ और जब मौका और समय मिले तो घूमने निकल ही जाता हूँ  । वापिस आने के बाद अपने अपूर्ण कार्य को पूरा करने में समय देता हूँ  ।

घुमक्कड़ – अपने बचपन के बारे में कुछ बताइए. आप हमेशा से ही शांत स्वाभाव के थे या कभी शरारतें भी किया करते थे?

रीतेश – बचपन के बारे में क्या बताऊ आपको । मेरा बचपन मुझ से बेहतर मेरे माताजी और पिताजी जानते है । खैर मेरा बचपन आगरा के घनी आबादी में बीता हैं, जहाँ पर हम लोग किराए के  एक मकान में रहते थे । बचपन में रोज स्कूल जाना, गली के बच्चो के साथ क्रिकेट खेलना, पढ़ना (यही काम थोड़ा कम पसंद था, फिर भी पढ़ाई करता था), बजारो में घूमना आदि कुछ दिनचर्या रहती थी । बचपन में मैं थोड़ा चंचल स्वभाव का था और अक्सर शैतानी भी किया करता था पर अब नहीं करता । उसके बाद अपना मकान हो जाने के कारण कॉलोनी पहुँच तो सभी दोस्त छूट गए पर शरारते नहीं छोड़ी । यहाँ पर भी स्कूल के बाद भी दिन धमा-चौकड़ी, क्रिकेट, खो-खो, कबड्डी, छुपा-छुपी, बेडमिन्टन  आदि कुछ लगा रहता था । जितना हम लोग खेलते थे उतना अब आजकल के बच्चे अब कॉलोनी की गली खेलते हुए नहीं दिखाई देते । दिन भर धमा-चौकड़ी के बाद फिर देर  रात पढ़ना  आदि कुछ मेरे बचपन के हिस्से थे ।  धन्यवाद  नंदन जी आपने तो मेरे बचपन की स्वर्णिम यादे ताजा करा दी  । 

With my younger brother at Naukuchia Tal

घुमक्कड़ –  घुमक्कड़  तक  आप  कैसे  पहुंचे  ? 
रीतेश – कही जाने से पहले किसी स्थान के बारे में जानकारी लेने के लिए गूगल में किसी स्थान की खोज का सहारा लिया तो घुमक्कड़ की इस साईट पर पहुँच गए । इस साईट पर यात्रा लेखो जानकारी और अनुभव के साथ पढ़कर मैं यहाँ से बहुत प्रभावित हुआ और तभी से यहाँ से जुड़ गया । शुरू-शुरू में घुमक्कड़ पर अंग्रेजी में ही केवल लेख आते थे जिन्हें मैं जैसे तैसे पढ़ ही लेता था । सबसे पहले यहाँ पर मैंने शायद कोई होटल का रिव्यू पढ़ा था अब याद नहीं वो कौन सी पोस्ट थी । 2010 में मनाली जाने से पहले यहाँ पर काफी खोज बीन की थी जिससे मुझे वहाँ के बारे में काफी जानने को मिला था । 

घुमक्कड़ – यहाँ  पर  लिखना  शुरू  करने के  पीछे  क्या  प्रेरणा  थी?
रीतेश –  मनीष कुमार और उसके बाद संदीप जाट के लेख हिंदी में आने शुरू हो गए थे, जो मुझे काफी अच्छा लगा । उस समय मैं माउंट आबू और उदयपुर की यात्रा से लौट कर ही आया था और घुमक्कड़ पर हिंदी में लेख पढ़कर मेरे मन में भी यहाँ पर हिंदी में अपनी माउंट आबू और उदयपुर यात्रा को लिखने का ख्याल मन में आया  । उस समय घुमक्कड़ पर यही दोनो लेखक हिंदी में लिखा करते थे तो मैंने सोचा क्यों न मैं भी यहाँ पर अपनी राष्ट्र भाषा हिंदी अपनी यात्रा अनुभव को आप लोगो के साथ बाँट संकू । 

घुमक्कड़ – जी,  मनीष कुमार उन अग्रणी लेखकों में हैं जहाँ तक घुमक्कड़ पर हिंदी में लिखने का प्रश्न है | उन्हें यहाँ लिखने के लिए काफी  मेहनत की मैने | हे हे |  इस बारे में उनके साथ हुए साक्षात्कार में थोड़ी बहुत चर्चा है |  इससे पहले आपने कभी किसी मंच पर या फिर अपने लिए कभी लिखा है ? 
रीतेश – इससे पहले मैंने कभी भी कुछ नहीं लिखा था फिर भी हिम्मत करके पहला लेख यहाँ लिख ही दिया । सबसे पहले घुमक्कड़ पर मैंने माउंट आबू और उदयपुर की यात्रा के बारे में लिखा था, तब से मेरा लिखने का आत्मविश्वास जाग गया और अपने लेख को बेहतर तरीके से लिखना शुरू कर दिया और अब तक मेरा यहाँ लिखना अनवरत चालू हैं । मुझे अपने पूर्ण अनुभव, सम्पूर्ण संतुष्टी और थोड़ा समय अभाव के कारण लिखने में काफी समय लग जाता हैं, जिसके लिए मैं अपने पाठकों और लेखकों से माफ़ी चाहूँगा ।

घुमक्कड़ – हालांकि सभी आतुर रहतें हैं की लेख फटाफट छपे पर क्वालिटी पर समझौता नहीं होना चाहिए , तो मेरे हिसाब से तो आप उस गति से लिखे जिसमे आप सुलभता से लिख सकें | 
रीतेश – ओके नंदन जी | एक छोटी से बात जोड़ना चाहूँगा की मेरा पहला लेख पहले घुमक्कड़ पर छपा , उसके बाद मेरी निजी ब्लॉग पर | :-) 

At Goa – Mandavi River

At Patal bhuvneshwar

घुमक्कड़ – आप घुमक्कड़ी का शौक कब से रखते हैं? यह बचपन से लगी हुई लत है या फिर आपने बड़े होने पर आपने इसे अपनाया है?
रीतेश –  वैसे तो बचपन से ही मैं अपने परिजनों के साथ पता नहीं कहाँ-कहाँ गया पर अपने होश में (उस समय भी काफी छोटा था) सर्वप्रथम मैं अपने माता पिताजी और उनके मित्रों के साथ वैष्णो देवी और उसके बाद हरिद्वार गया था । इस यात्रा से मैं बहुत प्रभावित हुआ और घूमने के भूत मेरे सर पर चढ़ गया, पर छोटा होने के कारण माता पिता के बिना नहीं जा सकता था । फिर इस यात्रा काफी साल बाद सन 1995 में अपने आठ मित्रों के साथ स्वछन्द रूप से मैं वैष्णो देवी और पत्नीटॉप अपने परिजनों के बिना गया । उसके बाद मैं अक्सर अपने मित्रों के साथ नई-नई जगह सोचकर जाने लगा । अब तक मैं देश की काफी नामी-गिरामी स्थल घूम चुका हूँ और आशा हैं की आगे भी घूमता रहूगा । आजकल यदि साथ में घूमने वाले मित्र जाए तो बहुत हैं अन्यथा मैं अपने परिवार के साथ ही घूमने जाता हूँ । वैसे नंदन जी ! घूमना यह कोई लत नहीं बल्कि मेरा शौक हैं, मैं अपना समय के अनुसार और पूर्ण सहूलियत से घूमता हूँ  ।

घुमक्कड़ – माफ़ कीजियेगा रीतेश जी, पर हर शक्स अपनी हर लत के बारे में ऐसा ही कहता है | हे हे | 
रीतेश – हे हे 

घुमक्कड़ – चलिए थोडा घुमक्कड़ी को विराम देतें हैं और बात करतें हैं आपके शहर के बारे में |  ताजमहल के शहर में रहना कैसा लगता है ? आगरा से  अपने रिश्ते  के  बारे  में  कुछ  बताइए .
रीतेश -विश्व पर्यटन मानचित्र में आगरा का नाम काफी बड़े अच्छरो में लिया जाता हैं और विश्व में लगभग हर किसी की इच्छा होती की एक बार वो ताजमहल अवश्य देखे । तो ऐसे विश्व प्रशिद्ध ताजमहल के शहर आगरा में रहना हमारे लिए गौरव की बात हैं । आगरा से हमारा रिश्ता बचपन से ही जुड़ा हुया हैं, यहाँ की गलियों में पले और बड़े हुए है ।बचपन में जहाँ हम किराए पर रहते थे वहाँ की छत से रोज ताजमहल और लालकिला देखा करते थे । आजकल आपने काम के सिलसिले में रोज शहर ने इधर-उधर जाना पड़ता हैं तो आगरा के इन्ही प्रसिद्ध स्मारक के देखते हुए गुजरते हैं । पहले के मुकाबले आगरा में अब काफी विकास हो चुका हैं, जैसे अच्छी सड़के, साफ सुधरी गलिया, बड़े-बड़े बाजार, मॉल  आदि । आगरा दिल्ली से वैसे तो राष्ट्रिय राजमार्ग दो से पहले से ही जुड़ा हुआ था पर पर यमुना एक्सप्रेसवे बन से आगरा के विकास को काफी गति मिली हैं । आगरा में रहकर हम लोग मुश्किल से ही यहाँ के स्मारक देखने जा पाते हैं । खैर मैं अपने शहर आगरा से प्यार करता हूँ, यहाँ पर घूमना रहना मुझे पसंद हैं ।  हमारे आगरा शहर का नारा हैं “Green Agra Clean Agra”  ।

Me with my Family at Naina Devi temple

At Maa Ambaji

घुमक्कड़ – घुमक्कड़ी पर लौटते हुए,  जुलाई  २००७  से  अब  तक  का  आपका  सफ़र  घुमाक्कर  पर  कैसा  रहा ?
रीतेश – जुलाई २००७ से अब तक घुमक्कड़ पर मेरा सफ़र बहुत ही अच्छा गुजरा हैं । इससे पहले मैं अन्य ब्लॉगस पर कभी-कभी यात्रा लेख पढ़ लिया करता था । जब से घुम्मकड़ से जुड़ा हूँ, तब से इसका यात्रा लेख पढ़ने का एक चस्का लग गया । नित रोज नए और रोमांचक लेख मुझे यहाँ पर पढ़ने को मिला करते थे और आज भी मिलते हैं । मेरी अंग्रेजी उतनी अच्छी नहीं हैं जितनी अच्छी हिंदी हैं, इसलिए सबसे पहले हिंदी के लेख पढ़ने में मेरी रूचि रहती थी । पर आजकल मेरी कोशिश रहती हैं की समय मिलने पर अधिक से अधिक लेख (हिंदी या अंग्रेजी) पढ़ कर टिप्पणी कर सकूँ । घुम्म्कड़ पर बिताए समय के दौरान मुझे काफी अच्छे मित्र मिले जैसे संदीप और नीरज जाट जी (जिनका ब्लॉग मैं पहले पढ़ता आ रहा हूँ और इनसे अक्सर चेटिंग और फोन बात होती रहती  ), आप स्वं , मुकेश और कविता भालसे जी, विशाल राठौर जी, मनु प्रकाश त्यागी  (जिनसे फोन और चेटिंग से बात होती रहती हैं ), साइलेंटसोल जी, महेश सेमवाल जी, प्रवीन गुप्ता जी  (जिनसे  चेटिंग से बात होती रहती हैं) और भी कोई नाम रह गया हो कृपया मुझे माफ कर देना जी । बस यह समझो कि इस समय मुझे घुमक्कड़ से एक लगाव सा हो गया ।

घुमक्कड़ –  इतने  सालों  में  आपने  घुमक्कड़  पर  बहुत  सारे  बदलाव  देखें होंगे . कुछ  कहना  चाहेंगे  इनके  बारे  में?
रीतेश – बदलाव तो समय की मांग हैं । समयनुसार बदलाब या तो करने पड़ते हैं या फिर स्वयं हो जाते हैं । यहाँ घुमक्कड़ पर मैंने बीते साल से काफी नए लेखक इस साईट जुड़ते हुए देखा हैं और उनका अनुभव उनके लेखो के रूप में हमको प्राप्त हो रहे हैं  । पहले और अब के लेखो में लिखने के तरीके में काफी बदलाव आ गया हैं अब लेखक अपने लेख में पूरा अनुभव और विस्तार से लिखने की कोशिश करते हैं । पढ़ने वालो की संख्या में भी इजाफा हुआ हैं साथ ही साथ टिप्पणी भी करने लगे हैं और लेख पढ़ते के साथ-साथ टिप्पणी करते-करते यहाँ के लेखो से प्रभावित होकर लिखने भी लगे हैं । अब घुम्मकड़ पर हर महीने एक अच्छे लेख को विशिष्ठ लेख और अच्छे लेखक को विशिष्ठ लेखक से सम्मानित किया जाने लगा हैं । घुमक्कड़ लोग आपस में जानने पहचाने लगे हैं और लेखकों ख्याति भी मिलने लगी हैं । बस इतना ही कहना चाहूँगा घुम्म्कड़ के बदलाव के बारे में यदि कुछ आपको मालूम हो आप हमे भी अवगत कराए ।

घुमक्कड़ – आपने काफी कुछ कह ही दिया है | एक बदलाव जिससे मैं सभी पाठकों को अवगत करना चाहूँगा की क्वालिटी के तरफ और ध्यान दिया जा रहा है | कुछ लेखों को  सम्पादकीय समीक्षा के तहत ले जाया जाता है और फिर लेखकों को सुझाव दिए जातें हैं | हर नया लेखक तो करीब करीब इस प्रक्रिया से गुजर ही रहा है | 

घुमक्कड़ – अक्टूबर २०१२ का विशिष्ट लेखक बन कर आपको कैसा लग रहा है ?
रीतेश –  यदि कोई व्यक्ति बिना किसी फल की इच्छा किये अपने कर्म में लगा रहता हैं और उसे अपने कर्म के फलस्वरूप कोई उपाधी या पारितोषक मिल जाए तो ठीक वैसा ही विशिष्ट लेखक की उपाधी मिलने पर मुझे बहुत ही प्रसन्नता, गर्व और आत्मिक संतुष्टि प्राप्त हुई हैं । यह मेरे लिए हर्ष और गर्व का विषय की मुझे घुमक्कड़ के इस रंगमंच पर मेरी रचनाओं को लोगो ने सराहा और पसंद किया, साथ-साथ मुझे इस घुमक्कड़ परिवार से काफी प्यार और सम्मान मिला हैं, जिसके लिए मैं आभारी रहूँगा । मुझे इस उपाधी से सम्मानित किये जाने पर मैं आप सभी घुमक्कड़ टीम का और अपने साथियों को हार्दिक धन्यवाद करता हूँ । मुझे लगता हैं कि विशिष्ट लेखक बन जाने से मेरी कुछ जिम्मेदारी और बढ़ गयी हैं, आगे भी आप लोगो का अपनी रचनाओं से अपनी घुमक्कड़ी और स्थानों की जानकारी देता रहूँगा ।

घुमक्कड़ – रीतेश जी, कोई सवाल मेरे लिए ?
रीतेश – नंदन जी ,  मेरे मन मैं भी कुछ एक दो सवाल उमड़ रहे शायद मेरे घुमक्कड़ साथियो के मन में भी उमड़ रहे हो……कृपया आप उनका जबाब दीजिये…..

घुमक्कड़ – बताएं 
रीतेश – इस गहन अन्तर्जाल में घुमक्कड़.कॉम की उत्पत्ति के बारे में कुछ प्रकाश डालिए ?

घुमक्कड़ – फ़रवरी  २००७ में शेखावाटी (राजस्थान) में घुमते हुए, अपने सहयात्रियों और दोस्तों से बात करते हुए ख्याल आया की किस तरह से सही, सच्ची और निजी यात्रा अनुभव / संस्मरण लोगो तक पहुचाई जाए | ये कोई नया कांसेप्ट नहीं था पर भारतीय गंतव्यों के लिए अनुभव सम्भंदित जानकारी मिलनी असंभव थी | दो चार अंग्रेजी में ब्लॉग थे और वो सभी निजी ब्लॉग थे, ढेर सारी टूरिस्ट वाली साईट थीं पर वो सब एक ही बात बोलती थीं | आपको शायद ताज्जुब होगा की फ़रवरी २००८ में आदित्य ने दिल्ली- कानपूर-लखनऊ पर एक रोड रेवेऊ लिखा जिसपर आज भी कस के टिप्पणिया आती हैं | करीब करीब ८०,००० बार ये लेख देखा जा चूका है और करीब करीब ३०० के आस पास कमेन्ट है इस पोस्ट पर | पहले खुद लिखना शुरू किया, फिर दोस्तों को साम-दाम-दंड-भेद (जहाँ जो फिट हुआ) लगा कर लिखने को बोला , उसके बाद तो कहतें है की लोग जुड़ते गए, कारवां बनता गया | 
रीतेश – धन्यवाद नंदन जी | इस कारवां में जो लुत्फ़ है वो शायद कहीं और नहीं | 

घुमक्कड़ – अपने घुमक्कड़/पाठक साथियों से कुछ कहना चाहेंगे ?
रीतेश –  अपने घुमक्कड़ साथियों से कहने के लिए मेरे पास कुछ ज्यादा नहीं हैं, फिर कहना चाहूँगा की यहाँ पर एक लेखक अपने अनुभव, ज्ञान और अपने सोच के आधार पर लेख लिखता हैं । यदि आपने लेख पढ़ा हैं और पसंद आया तो उसके प्रोह्त्सान हेतु टिप्पणी जरुर करे, न पसंद की दशा में मर्यादित, शालीन भाषा में टिप्पणी करनी चाहिए । जहाँ तक संभव हो अपने लेख में स्वयं के द्वारा खींचे गए फोटो/चित्रों का प्रयोग करे यदि जरुरत पर पड़े तो बाहर के चित्र उसके लिंक और धन्यवाद सहित डाले । अपने लेख में किसी ऐसे विषय वस्तु/ चित्र का प्रयोग न करे जिससे किसी के धर्म और मन को ठेस पहुचती हो । मैं तो चाहता हूँ कि आप खूब घूमने जाए पर घूमने के बाद यहाँ पर हम सब से अपनी यात्रा की कहानी और बाते हमसे जरुर बाँटे । लगता है कुछ न कहने कि कह कर भी कुछ अधिक लिख दिया…..LOL । आप सभी का साथ हमेशा घुमक्कड़ परिवार से बना रहे । धन्यवाद !

घुमक्कड़ – धन्यवाद रीतेश जी, हमसे बात करने के लिए, अपने बारे में इतना सब साझा करने के लिए और घुमक्कड़ की इस कारवां की मशाल को लेकर आगे  बढ़ते हुए | 

आप इसी तरह लिखते रहे, पढतें रहें, घुमते रहें और घुमक्कड़ी को आगे बढ़ातें रहें | 

55 Comments

  • Surinder Sharma says:

    Nice Interview. Congratulaitons to Ritesh Ji and Nandan Ji

  • Congratulations Ritesh.
    It’s really nice to know you as a person also.

    @Nandan, the thought behind this site is really good. There are many blogs available but this is very unique. Thank you for this platform.

    It’s a really nice concept to introduce a person, whom you have never met before (most of the time) and only know through his/her write up, till 15th morning every month.

  • vinaymusafir says:

    Badhai ho!
    Aapke bare mein aur jaan kar khushi huyi.
    isi tarah ghumte rahiye aur apne lekhon ke jariye hamein bhi ghumate rahiye.

  • Ritesh,
    Its a great beginning of the day on ghumakkar with the interview of our beloved author and friend. This interview enabled us to know some untouched aspects of your life, your spirit of ghumakkari and your great thoughts.

    Your contribution in enriching the treasure of Hindi posts on ghumakkar can never be forgotten. Your enchanting posts are liked by everyone on ghumakkad and they are the precious gems of ghumakkar. Your Manali and Rohtang series left an immortal image on our mind and soul.

    Nandan,
    Thank you very much for presenting to us the interview of such a great ghumakkar. Thiswas a fabulous interview. I want to ask you a question, from where do you get such interesting, particular and straight questions for interviews?

    Thanks.

    • Ritesh Gupta says:

      Mukesh Ji….

      I am very thankful for your such a lovely comment & Thanks for Congratulation. Your comment always encourage me. you are also good writer and I like your writing ……

      Thanks again …

  • Vipin says:

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  • rastogi says:

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  • Sanjay Kaushik says:

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  • Anil Sharma says:

    Aap sabhi ko Awara ki tarf say pranam,mai aap sab kay liye aparichit hu kyo ki yaha pahli bar likh raha hu.Agar aap mujhay izazat day to mai agali bar apna pura vivran likhunga.

  • Ritesh Gupta says:

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  • SilentSoul says:

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    • Ritesh Gupta says:

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  • kavitabhalse says:

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    • Ritesh Gupta says:

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  • Abheeruchi says:

    Hello Ritesh ji,

    Congratulation .Apke baare me jaankar accha laga. Aur apne jo question Ghumakkar ke baare me puccha wo mere mind me kab se chal raha tha,accha hua aapne puch liya.

    Nandan ji- Very nice interview

    Thanks

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  • Anand Bharti says:

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    Nandan jee ,
    Thanks for nice interview.

    • Ritesh Gupta says:

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  • D.L.Narayan says:

    Congratulations once again, Ritesh bhai. It is a pleasure to know more about you and your family. You are already close to us through your writing and after reading this interview, you have become even closer. It is amazing how Nandan is able to elicit so many details in such an unobtrusive manner.

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    • Ritesh Gupta says:

      D.L. ji….

      Its my pleasure that you have commenting ……..big thanks for congratulation to me.

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  • Nandan Jha says:

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  • Nandan Jha says:

    @ Surinder Sharma – Thank you Sir.

    @ Amitava – Thank you. It is sustainable only because of the efforts and contributions from all of us.

    @ Mukesh – Thank you. The credit for the question is shared by entire Editorial team, led by Vibha. I would pass the compliment.

    @ Kavita – Thank you.

    @ Abhee – Thank you.

    @ Anand – Thanks from entire team.

    @ Vishal – Please call me Nandan. :-). Thanks. It was nice meeting you the other day at Andheri.

    @ DL – Really ? Guess, I can do more. May be there is a ‘Hard Talk’ version coming up some day. he he.

  • AUROJIT says:

    Hi Ritesh,

    Congrats once again.

    This interview hasgiven us so many more information about a vishishtha ghumakkar…. really enjoyed it.

    Thanks, Auro.

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  • Nandan Jha says:

    Thank you Auro, Deependra.

  • Archana says:

    Congratulations Ritesh!

    With time, Ghumakkar is getting more Hindi authors into the community. We are so glad that Google got you introduced to Ghumakkar and that now, Google will again have your name cached in it because of your stories @ Ghumakkar :)

    It is so nice to see that you have had such a wonderful journey here and we wish to see many more stories from you!

    Goodluck and Keep travelling!

    Cheers!

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    • Ritesh Gupta says:

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  • JATDEVTA says:

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    • Ritesh Gupta says:

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    • Ritesh Gupta says:

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    • rajesh srhrawat says:

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  • Mahesh Semwal says:

    Congrats Ritesh !!!!!

  • Nandan Jha says:

    @ Manu – ??????? ??? ?? ??? | ???? ??? ?? ??? ??? ?? ??? ??? ??? ??? ??? ?? ??????? | ??? ????, ??????? ????? ?? ????? ???? ??? ???? ?? ?? ????? ?????????? ??????? ??? ?? ??? ??? ????? ?? ??????? ???? ?? ??? ??????? ?? ???? ??????? ????? | ??? | ???? ??????? ?? ??????? ?? ????? ?? ??????? ??? | ?? ????? |

  • Manish Kumar says:

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  • Nice interview, its really very good platform to share your travelling experiences.

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