पà¥à¤°à¤¿à¤¯ मितà¥à¤°à¥‹à¤‚,
आज इस यातà¥à¤°à¤¾ का अंतिम चरण है। हम पांच दिन पहले अपनी कार से गाज़ियाबाद के लिये निकले थे, वहां से नई दिलà¥à¤²à¥€ à¤à¤¯à¤°à¤ªà¥‹à¤°à¥à¤Ÿ से वायà¥à¤¯à¤¾à¤¨ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ उदयपà¥à¤° पहà¥à¤‚च गये। पांच दिन के लिये airport-to-airport टैकà¥à¤¸à¥€ की।
सहेलियों की बाड़ी देखी, अंबराई में खाना खाया, होटल वंडरवà¥à¤¯à¥‚ पैलेस में ठहरे। अगले ही दिन टैकà¥à¤¸à¥€ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पिंडवारा होते हà¥à¤ माउंट आबू पहà¥à¤‚चे । बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤•à¥à¤®à¤¾à¤°à¥€ ईशà¥à¤µà¤°à¥€à¤¯ विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ के जà¥à¤žà¤¾à¤¨ सरोवर परिसर में अपना ठिकाना बनाया, शाम को Sunset Point और नकà¥à¤•ीलेक देखी।
अगले दिन माउंट आबू का सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ à¤à¥à¤°à¤®à¤£ किया जिसमें दिलवाड़ा मंदिर, अनादरा पारà¥à¤•, गà¥à¤°à¥ शिखर, पीस पारà¥à¤•, मधà¥à¤¬à¤¨ आदि देखे । शाम को पà¥à¤¨à¤ƒ नकà¥à¤•ी à¤à¥€à¤² और अगले दिन सà¥à¤¬à¤¹ उदयपà¥à¤° हेतॠवापसी ! उदयपà¥à¤° पहà¥à¤‚च कर à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ लोक कला मंडल, महाराणा पà¥à¤°à¤¤à¤¾à¤ª मैमोरियल, सिटी पैलेस, गà¥à¤²à¤¾à¤¬ पारà¥à¤• (यानि सजà¥à¤œà¤¨ सिंह पारà¥à¤•), विंटेज कार कलेकà¥à¤¶à¤¨ तक पहà¥à¤‚चे,खाना खाया और अब आगे !
शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ मंदिर
पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ कारों को न देख पाने से मेरा दिल टूट चà¥à¤•ा था और à¤à¤—à¥à¤¨ हृदय लिये मैं टैकà¥à¤¸à¥€ में आ बैठा और हम सब चल पड़े शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ मंदिर के दरà¥à¤¶à¤¨ हेतà¥à¥¤ मैने अपना कैमरा à¤à¥€ पैक करके पीछे रख दिया था और मेरे हाथ में कैमरा न देख कर सब समठचà¥à¤•े थे कि मैं कोप à¤à¤µà¤¨ में पड़ा हà¥à¤† हूं।
48 किमी की यातà¥à¤°à¤¾ में कà¥à¤› खास सà¥à¤®à¤°à¤£à¥€à¤¯ रहा हो, à¤à¤¸à¤¾ मà¥à¤à¥‡ नहीं लगता। मà¥à¤à¥‡ सड़क मारà¥à¤— की यातà¥à¤°à¤¾à¤à¤‚ सिरà¥à¤« तब अचà¥à¤›à¥€ लगती हैं जब सà¥à¤Ÿà¥€à¤¯à¤°à¤¿à¤‚ग मेरे हाथ में हो और सड़क हरे à¤à¤°à¥‡ पेड़ों से यà¥à¤•à¥à¤¤ हो और पहाड़ी मारà¥à¤— हो। इस यातà¥à¤°à¤¾ में मैने नींद का जम कर लà¥à¤¤à¥à¤« लिया। जब हमारी टैकà¥à¤¸à¥€ शà¥à¤°à¥€ नाथदà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ मंदिर से करीब आधा किमी पहले रà¥à¤•ी तो मेरी à¤à¥€ नींद खà¥à¤²à¥€à¥¤ बाबूराम ने कहा कि आगे संकरा बाज़ार है, जहां कार नहीं जा सकती है, अतः आगे मंदिर तक, (जिसे वहां हवेली कहा जाता है), पैदल ही जाइये। अतः हम सब सामान कार में ही छोड़ कर — (कैमरा à¤à¥€ :( ) शà¥à¤°à¥€ नाथ जी मंदिर की ओर चल पड़े। रासà¥à¤¤à¥‡ में खिलौनों व कपड़ों की, हैंडीकà¥à¤°à¤¾à¤«à¥à¤Ÿ की, gifts and novelties की, पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ व मिठाइयों की दà¥à¤•ानें थीं। उनमें से ही किसी à¤à¤• से हमने पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ à¤à¥€ खरीद लिया।
शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥à¤œà¥€ à¤à¤—वान शà¥à¤°à¥€à¤•ृषà¥à¤£ का ही दूसरा नाम है। यह विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ किया जाता है कि धरà¥à¤®à¤¾à¤‚ध औरंगजेब के आतंक के चलते बृज (वृनà¥à¤¦à¤¾à¤µà¤¨, मथà¥à¤°à¤¾, उ.पà¥à¤°.) में गोवरà¥à¤§à¤¨ परà¥à¤µà¤¤ में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ शà¥à¤°à¥€à¤œà¥€ को सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤°à¤¿à¤¤ करने का निशà¥à¤šà¤¯ किया गया था। जिस वाहन में शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥ जी को ले जाया जा रहा था, वह à¤à¤• सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर पहिया धंस जाने से रà¥à¤• गया और उसने आगे बढ़ने से साफ इंकार कर दिया। पंडित जी ने इसे à¤à¤—वतà¥â€Œ इचà¥à¤›à¤¾ के रूप में सà¥à¤µà¥€à¤•ार करते हà¥à¤ ठीक उसी सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥ जी को सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ करने का निशà¥à¤šà¤¯ कर लिया। उदयपà¥à¤° से 48 किमी दूर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ यह सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ नाम से विखà¥à¤¯à¤¾à¤¤ हà¥à¤†à¥¤ आज यहां पर à¤à¤• छोटा सा कसà¥à¤¬à¤¾ है जिसके मधà¥à¤¯ में हवेली है और सारी सड़कें इसी हवेली की ओर ही आकर समापà¥à¤¤ होती हैं।
शà¥à¤°à¥€ कृषà¥à¤£ के अननà¥à¤¯ à¤à¤•à¥à¤¤ वलà¥à¤²à¤à¤¾à¤šà¤¾à¤°à¥à¤¯ के सà¥à¤ªà¥à¤¤à¥à¤° गà¥à¤¸à¤¾à¤ˆà¤‚ जी, जो गोवरà¥à¤§à¤¨ पर शà¥à¤°à¥€à¤œà¥€ की सेवा में रहते थे, उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने à¤à¤• बार वृंदावन से दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¿à¤•ा जाते समय मेवाड़ में सिंहद (कहीं सिंहगढ़ तो नहीं? ) नामक सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ देखा जो पà¥à¤°à¤¾à¤•ृतिक सौनà¥à¤¦à¤°à¥à¤¯ से à¤à¤°à¤ªà¥‚र था। वह वहां दो दिन रहे और इस दौरान महाराणा उदयसिंह उनसे मिलने के लिये आये। महाराणा उदय सिंह से गà¥à¤¸à¤¾à¤ˆà¤‚ जी के बारे में सà¥à¤¨ कर बाद में उनकी महारानी à¤à¥€ उनके दरà¥à¤¶à¤¨ हेतॠआईं जो मीराबाई की पà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ थीं। उनकी पà¥à¤¤à¥à¤°à¤µà¤§à¥ अजबा कà¥à¤®à¤¾à¤°à¥€ मेवाड़ थीं। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने à¤à¥€ गà¥à¤¸à¤¾à¤ˆà¤‚ जी से दीकà¥à¤·à¤¾ गà¥à¤°à¤¹à¤£ की।
जब गà¥à¤¸à¤¾à¤ˆà¤‚ जी दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¿à¤•ा के लिये पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤¨ करने लगे तो अजबा कà¥à¤®à¤¾à¤°à¥€ मेवाड़ वà¥à¤¯à¤¥à¤¿à¤¤ होने लगीं। इस पर गà¥à¤¸à¤¾à¤ˆà¤‚ जी ने उनको कहा, “चिंता मत करो, खà¥à¤¦ शà¥à¤°à¥€à¤œà¥€ यहां आकर तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ दरà¥à¤¶à¤¨ देंगे।“ गà¥à¤¸à¤¾à¤ˆà¤‚ जी का यह वाकà¥à¤¯ à¤à¤—वान शà¥à¤°à¥€à¤•ृषà¥à¤£ के जी के जंजाल बन गया। गà¥à¤¸à¤¾à¤ˆà¤‚ जी के वचन की रकà¥à¤·à¤¾ के लिये उनको बà¥à¤°à¤œ से मेवाड़ नितà¥à¤¯ आने-जाने हेतॠM.S.T. बनवानी पड़ गई। अजबा कà¥à¤®à¤¾à¤°à¥€ और शà¥à¤°à¥€à¤•ृषà¥à¤£ कà¤à¥€ साथ – साथ चौपड़ खेलते थे तो कà¤à¥€ बांसà¥à¤°à¥€ वादन का निरà¥à¤®à¤² आननà¥à¤¦ लेते थे।
à¤à¤• दिन जब शà¥à¤°à¥€à¤œà¥€ बà¥à¤°à¤œ वापिस जाने के लिये उठने लगे तो अजबा बोलीं, “आपको हर रोज़ इतनी दूर आना – जाना पड़ता है, आप यहीं कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ नहीं आ जाते? शà¥à¤°à¥€à¤œà¥€ ने कह दिया कि à¤à¤ˆ, इसके लिये तो फिलहाल सॉरी ! जब तक मेरे परम सखा गà¥à¤¸à¤¾à¤ˆà¤‚ जी बà¥à¤°à¤œ में मेरे साथ हैं, मैं उनको छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगा। हां, उनके गो-लोक गमन के बाद इस दिशा में गंà¤à¥€à¤°à¤¤à¤¾ से सोचा जायेगा। सोचना कà¥à¤¯à¤¾ है, मैं उस समय तक के लिये यहां आऊंगा जब तक कि गà¥à¤¸à¤¾à¤ˆà¤‚ जी पà¥à¤¨à¤ƒ जनà¥à¤® न लें। उनके पà¥à¤¨à¤ƒ अवतरण के बाद मैं फिर उनके ही पास चला जाऊंगा।
वृंदावन में आकर à¤à¤—वान जी मेवाड़ में अजब कà¥à¤®à¤¾à¤°à¥€ से किया गया वायदा à¤à¤¸à¥‡ ही à¤à¥‚ल गये जैसे मैं कशà¥à¤®à¥€à¤° यातà¥à¤°à¤¾ शà¥à¤°à¥ƒà¤‚खला के तीन पोसà¥à¤Ÿ लिख कर आगे लिखना à¤à¥‚ल गया हूं ! अचानक à¤à¤• दिन उनको याद आया पर गà¥à¤¸à¤¾à¤ˆà¤‚ जी के वंशज उनको किसी à¤à¥€ हालत में वृनà¥à¤¦à¤¾à¤µà¤¨ से जाने नहीं देंगे, यह सोच कर उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने सोचा कि कà¥à¤› और जà¥à¤—ाड़ करना पड़ेगा। बस उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने औरंगजेब की मति à¤à¥à¤°à¤·à¥à¤Ÿ कर दी और वह हिनà¥à¤¦à¥‚ मंदिरों पर हमले करने के लिये कà¥à¤–à¥à¤¯à¤¾à¤¤ हो गया। à¤à¤¸à¥‡ में वृनà¥à¤¦à¤¾à¤µà¤¨ से शà¥à¤°à¥€ कृषà¥à¤£ को सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर पहà¥à¤‚चाने, मेवाड़ पहà¥à¤‚चने और वहां जाकर गाड़ी का पहिया धरती में फंसने की लीलाà¤à¤‚ पà¥à¤°à¤à¥ ने रचीं ।
यह सब 17वीं शताबà¥à¤¦à¥€ की बात है जो आपको सà¥à¤¨à¤¾ रहा हूं । यह सब घटना चकà¥à¤° गरà¥à¤—संहिता के गिरिराज खंड में अंकित है। नाथदà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ में मंदिर की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ और शà¥à¤°à¥€à¤œà¥€ के पà¥à¤°à¤¾à¤•टà¥à¤¯ से बहà¥à¤¤ सदियों पहले ही ये à¤à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯à¤µà¤¾à¤£à¥€ हो चà¥à¤•ी थी। यह तो आप सब को पता ही होगा कि à¤à¤—वान शà¥à¤°à¥€à¤•ृषà¥à¤£ का जनà¥à¤® ईसा से 3228 वरà¥à¤· पूरà¥à¤µ 19/20 जà¥à¤²à¤¾à¤ˆ को 12.39 मधà¥à¤¯à¤°à¤¾à¤¤à¥à¤°à¤¿ में रोहिणी नकà¥à¤·à¤¤à¥à¤° में मथà¥à¤°à¤¾ में हà¥à¤† था। राधा उनसे दो वरà¥à¤· बड़ी थीं और उनका जनà¥à¤® 25 सितंबर को 12.48 दोपहर में बरसाना में हà¥à¤† था। कृषà¥à¤£ à¤à¤µà¤‚ राधा वासà¥à¤¤à¤µ में à¤à¤• ही आतà¥à¤®à¤¾ के दो नाम हैं जो केवल दà¥à¤µà¤¾à¤ªà¤° यà¥à¤— में ही दो à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨-à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ सà¥à¤µà¤°à¥‚पों में पà¥à¤°à¤•ट हà¥à¤ˆ थीं वह à¤à¥€ à¤à¤• खास वज़ह से! अब आप पूछेंगे कि ये खास वज़ह कà¥à¤¯à¤¾ थी? तो साहब, वज़ह ये थी कि राधा à¤à¤•à¥à¤¤à¥‹à¤‚ को केवल यह जà¥à¤žà¤¾à¤¨ देने के लिये आई थीं कि à¤à¤—वान को पाना हो तो à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ में à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ का संगम परमावशà¥à¤¯à¤• है। सिरà¥à¤« बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ के सहारे à¤à¤—वान को नहीं पाया जा सकता , उनको पाना है तो शà¥à¤¦à¥à¤§ हृदय और उसमें असीमित दिवà¥à¤¯ पà¥à¤°à¥‡à¤® आवशà¥à¤¯à¤• है। आई बात समठमां ?
शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥ जी मंदिर में à¤à¤—वान की लौकिक उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ की à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ बहà¥à¤¤ गहरी है और यह à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ ही शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥à¤œà¥€ मंदिर को विशà¥à¤µ के अनà¥à¤¯ मंदिरों से विलग, à¤à¤• दिवà¥à¤¯ सà¥à¤µà¤°à¥‚प पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करती है। हमारे वहां जाने के बाद, सà¥à¤¨à¤¾ है कि वहां पर नये, à¤à¤µà¥à¤¯ मंदिर परिसर का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ कारà¥à¤¯ चल रहा है जो लगà¤à¤— पूरà¥à¤£ होने को है। पर जो विशिषà¥à¤Ÿ बात मैं आपको बताने जा रहा हूं वह ये है कि à¤à¤• दिन à¤à¤—वान शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥ जी ने à¤à¤• à¤à¤•à¥à¤¤ को रात को सà¥à¤µà¤ªà¥à¤¨ में आकर कहा कि उठो और हवेली के दà¥à¤µà¤¾à¤° पर जाकर देखो कà¥à¤¯à¤¾ हो रहा है। इतना अधिक शोर है कि मैं सो à¤à¥€ नहीं सकता।
यदि किसी ने मेरे कषà¥à¤Ÿà¥‹à¤‚ की ओर धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ नहीं दिया तो मैं यहां से चला जाऊंगा। वह à¤à¤•à¥à¤¤ हड़बड़ा कर उठगया और हवेली के पास जाकर बैठगया। ऊफ, टà¥à¤°à¤• में से उतारी जा रही निरà¥à¤®à¤¾à¤£ सामगà¥à¤°à¥€, पतà¥à¤¥à¤°à¥‹à¤‚ आदि का इतना अधिक शोर वहां पर था कि किसी का à¤à¥€ इतने शोरगà¥à¤² में वहां सोना असंà¤à¤µ ही था। बात शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ टैंपल बोरà¥à¤¡ के सदसà¥à¤¯à¥‹à¤‚ और बोरà¥à¤¡ के अधà¥à¤¯à¤•à¥à¤· गोसà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी तक पहà¥à¤‚ची तो उनको अपनी à¤à¥‚ल का अहसास हà¥à¤† और उसके बाद रात में शोरगà¥à¤² बिलà¥à¤•à¥à¤² न हो, à¤à¤¸à¤¾ पà¥à¤°à¤¬à¤¨à¥à¤§ किया गया। à¤à¤¸à¥‡ अनेको दृषà¥à¤Ÿà¤¾à¤‚त वहां सà¥à¤¨à¥‡ जाते हैं और हम किसी का यही विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ है कि शà¥à¤°à¥€à¤•ृषà¥à¤£ वहां पर लौकिक रूप में à¤à¥€ विराजमान रहते हैं।
शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ में शà¥à¤°à¥€à¤•ृषà¥à¤£ की सबसे पà¥à¤°à¤¿à¤¯ सà¥à¤¥à¤²à¥€ उनकी गौशाला है जहां पर 2000 गायों को पाला जारहा है जिनकी सेवा 50 गà¥à¤µà¤¾à¤² करते हैं। कहते हैं कि यदि शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥ जी अपने सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर दिखाई न दें तो वह गौशाला में ही होते हैं।
शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥ मंदिर का सà¥à¤µà¤¾à¤®à¤¿à¤¤à¥à¤µ Nathdwara Temple Act, 1959 के उपबनà¥à¤§à¥‹à¤‚ के आधीन गठित बोरà¥à¤¡ के पास है। आप जो à¤à¥€ चढ़ावा वहां पर चढ़ाते हैं, वह सब बोरà¥à¤¡ की ही संपतà¥à¤¤à¤¿ मानी जाती है किसी पंडे या पà¥à¤œà¤¾à¤°à¥€ की नहीं। यहां तक कि शà¥à¤°à¥€à¤œà¥€ के दरà¥à¤¶à¤¨ से पूरà¥à¤µ व बाद में उनके शà¥à¤°à¥ƒà¤‚गार के लिये सà¥à¤µà¤°à¥à¤£à¤¾à¤à¥‚षण à¤à¥€ गहनाघर अधिकारी पंडितों को देते हैं और दरà¥à¤¶à¤¨ के बाद में अपने अधिकार में वापिस ले लेते हैं। यदि सà¥à¤µà¤°à¥à¤£à¤¾à¤à¥‚षणों में कोई à¤à¥€ कमी पाई जाये तो उसके लिये गोसà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤—त रूप से जिमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤° होते हैं। इस सेफ की तीन चाबी à¤à¥€ तीन लोगों के नियंतà¥à¤°à¤£ में रहती हैं। à¤à¤• अधिशासी अधिकारी के पास, à¤à¤• गोसà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ के पास और à¤à¤• गहनाघर अधिकारी के पास। तीनों चाबी लगा कर ही सेफ खोली जा सकती है। बैंकों में à¤à¥€ तो à¤à¤¸à¤¾ ही किया जाता है।
इस मंदिर में à¤à¤—वान के दरà¥à¤¶à¤¨ करने के लिये अलग – अलग समय निरà¥à¤§à¤¾à¤°à¤¿à¤¤ हैं। आप जब à¤à¥€ शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ मंदिर में जायें तो दरà¥à¤¶à¤¨ के समय का धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ रखें –
मंगला – 5.15 a.m. to 6 a.m.
शà¥à¤°à¤‚गार – 7.15 a.m. to 7.30 a.m.
गà¥à¤µà¤¾à¤² – 9.15 a.m. to 9.30 a.m.
राजà¤à¥‹à¤— – 11.30 a.m. to 12.30 p.m.
उदà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¨ – 03.30 p.m. to 03.45 p.m.
à¤à¥‹à¤— – 04.30 p.m. to 04.45 p.m.
आरती – 05.15 p.m. to 06.00 p.m.
शयन
जब हम लोग मंदिर पहà¥à¤‚चे तो पता चला कि उदà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¨ दरà¥à¤¶à¤¨ होचà¥à¤•े हैं और मंदिर के कपाट बनà¥à¤¦ हैं जो अब 4.30 पर खà¥à¤²à¥‡à¤‚गे। हम मंदिर की सीढ़ियों पर ही बिलà¥à¤•à¥à¤² दरवाज़े से सट कर बैठगये ताकि कपाट खà¥à¤²à¥‡à¤‚ तो हम सीधे à¤à¤—वानजी के शà¥à¤°à¥€à¤šà¤°à¤£à¥‹à¤‚ में जा कर गिरें और हमें उनके चरण-सà¥à¤ªà¤°à¥à¤¶ का सà¥à¤– मिल सके।
हमारा नंबर कहीं कट न जाये इसलिये हम अपनी जगह से हिले तक नहीं। पर जब 4.30 पर मंदिर के कपाट खà¥à¤²à¥‡ तो कोई और दरवाज़ा खोला गया जिसके आगे काफी सारे लोग पंकà¥à¤¤à¤¿ में पहले से ही लगे हà¥à¤ खड़े थे। दà¥à¤µà¤¾à¤° खà¥à¤²à¤¨à¥‡ से दो-चार मिनट पहले ही किसी ने हमें इशारा किया था कि पंकà¥à¤¤à¤¿ तो वहां लगी हà¥à¤ˆ है ! हम हड़बड़ी में उठकर वहां à¤à¤¾à¤—े और लाइन में सबसे पीछे लग गये। सिरà¥à¤« 15 मिनट के लिये दरà¥à¤¶à¤¨ हेतॠमंदिर के कपाट खà¥à¤²à¥‡ और दरà¥à¤¶à¤¨à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की लंबी – चौड़ी पंकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ ! हम कब में को मंदिर के गरà¥à¤à¤—ृह में धकियाये जाकर बाहर धकेल à¤à¥€ दिये गये, कà¥à¤› पता ही नहीं चला।
दरà¥à¤¶à¤¨ सिरà¥à¤« सà¥à¤µà¤ªà¥à¤¨ जैसा सा लगता है। मà¥à¤à¥‡ इस बात का बहà¥à¤¤ मलाल रहा कि मंदिर के कपाट पूरे दिन कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ नहीं खोल कर रखे जा सकते? केवल 15 मिनट के लिये दà¥à¤µà¤¾à¤° खोल कर सैंकड़ों दरà¥à¤¶à¤¨à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के लिये आपाधापी के दृशà¥à¤¯ दिन में सात बार उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ करना नाथदà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ मंदिर बोरà¥à¤¡ के लिये कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ आवशà¥à¤¯à¤• है? कà¥à¤¯à¤¾ कृतà¥à¤°à¤¿à¤® रूप से à¤à¥€à¤¡à¤¼ पैदा करके मंदिर के पà¥à¤°à¤¤à¤¿, दरà¥à¤¶à¤¨à¥‹à¤‚ के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ उतà¥à¤•ंठा और जिजà¥à¤žà¤¾à¤¸à¤¾ बढ़ाई जानी अनिवारà¥à¤¯ है? न कैमरा ले जाने देंगे, न ठीक से दरà¥à¤¶à¤¨ ही करने देंगे – मत करने दो, हम à¤à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯ में कà¤à¥€ आयेंगे ही नहीं !
à¤à¤—वान तो हमारे हृदय में ही बसते हैं, सिरà¥à¤« इस à¤à¤µà¤¨ के अनà¥à¤¦à¤° ही उनके दरà¥à¤¶à¤¨ किये जा सकते हैं, à¤à¤¸à¤¾ à¤à¥à¤°à¤® हम नहीं पालते। हम अपने घर में ही मंदिर की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ करके जी à¤à¤° के नितà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¤à¤¿ दरà¥à¤¶à¤¨ कर लिया करेंगे, जितना मन करेगा लडà¥à¤¡à¥‚ गोपाल की सेवा और आतिथà¥à¤¯ कर लिया करेंगे ! रखो अपना मंदिर अपने ही पास ! नमसà¥à¤¤à¥‡ !
खिनà¥à¤¨ मन से हम मंदिर से पांव घसीटते से वापस टैकà¥à¤¸à¥€ तक आये। नया बाज़ार नामक उस सड़क पर न कà¥à¤› खरीदा, न कà¥à¤› देखा। चà¥à¤ªà¤šà¤¾à¤ª टैकà¥à¤¸à¥€ में बैठकर वापिस उदयपà¥à¤° के लिये चल दिये। बाज़ार में पहà¥à¤‚च कर महिलाओं ने खरीदारी कर कर के अपना गम गलत किया। पà¥à¤¨à¤ƒ बावरà¥à¤šà¥€ में खाना खाया और हम वापिस अपने होटल में आ गये।
1 अपà¥à¤°à¥ˆà¤² ! यानि हमारी वापसी का दिन
आज हमारा à¤à¥€à¤²à¥‹à¤‚ के इस खूबसूरत नगरी उदयपà¥à¤° में अंतिम दिन था और घूमने के लिये काफी सारी जगह बची हà¥à¤ˆ थीं। मसलन, बागौर की हवेली, नेहरू पारà¥à¤•, सà¥à¤–ाड़िया सरà¥à¤•िल वगैरा – वगैरा। अतः सà¥à¤¬à¤¹ जलà¥à¤¦à¥€ उठे। बाबू को à¤à¥€ हमने सà¥à¤¬à¤¹ आठबजे आने के लिये कह रखा था। हमने यह à¤à¥€ सोचा हà¥à¤† था कि आज दिन में 12 बजे होटल से चैक आउट कर देंगे कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि 3 बजे तो हम à¤à¤¯à¤°à¤ªà¥‹à¤°à¥à¤Ÿ के लिये पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤¨ करने ही वाले हैं। दिन à¤à¤° बाहर घूमेंगे फिरेंगे, खायेंगे पियेंगे। होटल में वापस आ कर करना ही कà¥à¤¯à¤¾ है। होटल वालों से बात की तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कहा कि अगर हम चाहें तो चैक आउट करके अपना लगेज़ नीचे रिसेपà¥à¤¶à¤¨ के बगल में उनके à¤à¤• कमरे में रख सकते हैं। दिन में जब जाना हो, ले जायें। हमने इस पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤µ को सहरà¥à¤· सà¥à¤µà¥€à¤•ार कर लिया। गरà¥à¤®à¥€ काफी अधिक थी, गाड़ी कई – कई घंटे धूप में पारà¥à¤•िंग में खड़ी रहती थी
अतः खाने पीने का सामान, नाशà¥à¤¤à¤¾ आदि उसमें खराब होने का खतरा रहता था।
उदय कोठी
हम जब à¤à¥€ अपने होटल से बाहर निकलते थे तो लेक पिछोला होटल की बगल में हनà¥à¤®à¤¾à¤¨ मंदिर और हनà¥à¤®à¤¾à¤¨ घाट के नाम से à¤à¤• घाट देखा करते थे। इसके ठीक सामने उदय कोठी नाम से à¤à¤• à¤à¤µà¥à¤¯ बहà¥à¤®à¤‚जिला होटल à¤à¥€ दिखाई देता था। सड़क पर जो बोरà¥à¤¡ लगा हà¥à¤† था, उस पर लिखा हà¥à¤† था कि इस हैरिटेज होटल की rooftop पर à¤à¤• सà¥à¤µà¤¿à¤®à¤¿à¤‚ग पूल है। मैने अपनी शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¤à¥€ जी से कहा कि आओ जरा देखें तो सही कि इस होटल में कà¥à¤¯à¤¾ – कà¥à¤¯à¤¾ है। वह संकोच करती रहीं कि अगर होटल वालों ने मना कर दिया तो? मैने कहा कि मना करेंगे तो वापस! पर रिसेपà¥à¤¶à¤¨ पर जाकर हमने कहा कि हम आपके होटल का सà¥à¤µà¤¿à¤®à¤¿à¤‚ग पूल (तरणताल) देखना चाहते हैं तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने हमारा सà¥à¤µà¤¾à¤—त किया और कहा कि शौक से पूरा होटल देखिये। वासà¥à¤¤à¤µ में इस होटल की सबसे ऊपर की मंजिल (शायद पांचवी या छटी मंजिल होगी) पर तरणताल देख कर तबीयत मचल उठी कि इस गरà¥à¤®à¥€ में थोड़ी सी तैराकी हो जाये पर फिर मन को काबू में करके सिरà¥à¤« कà¥à¤› फोटो खींच कर वापिस आ गये।
बागौर की हवेली
आपको याद होगा कि अपने होटल से निकल कर सà¥à¤¬à¤¹ – सà¥à¤¬à¤¹ पैदल घूमते हà¥à¤, मैं अकेला ही पिछोला के पà¥à¤² को पार करके जगदीश मंदिर तक गया था और रासà¥à¤¤à¥‡ में बागौर हवेली का विशालकाय पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤° दिखाई दिया था। आज सोचा कि ये हवेली à¤à¥€ देख ली जाये। पिछोला के गंगौर घाट पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ इस हवेली का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ किसी महाराणा ने नहीं बलà¥à¤•ि कई सारे महाराणाओं के कालखंड में उनके पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ रहे अमर चनà¥à¤¦ बादवा ने कराया था। यदि विकीपीडिया ने सही बताया है तो ये शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¾à¤¨ बादवा जी 1751 तक 1778 तक महाराणा पà¥à¤°à¤¤à¤¾à¤ª सिंह दà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯, राजसिंह दà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯, अरि सिंह और हमीर सिंह के पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ रहे।
अमरचनà¥à¤¦ की मृतà¥à¤¯à¥ के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤à¥â€Œ इस हवेली का नियंतà¥à¤°à¤£ मेवाड़ के राजघराने के पास आ गया और मेवाड़ घराने के à¤à¤• रिशà¥à¤¤à¥‡à¤¦à¤¾à¤° नाथ सिंह ने इसे कबà¥à¤œà¤¾ लिया। सनà¥â€Œ 1878 में महाराणा सजà¥à¤œà¤¨ सिंह ने इस हवेली का विसà¥à¤¤à¤¾à¤° कराया और यहां à¤à¥€ à¤à¤• तà¥à¤°à¤¿à¤ªà¥‹à¤²à¤¿à¤¯à¤¾ टाइप का गेट बनवाया। वरà¥à¤· 1947 के बाद इस हवेली पर राजà¥à¤¯ सरकार का अधिकार हो गया और इसके दà¥à¤°à¥à¤¦à¤¿à¤¨ आ गये। राजà¥à¤¯ सरकार ने अपने करà¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को रहने के लिये इसके 138 कमरे आबंटित कर दिये और इन करà¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ ने इस हवेली की शान में à¤à¤¸à¥€ – à¤à¤¸à¥€ गà¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤–ियां कीं कि बस! पर गीता में à¤à¤—वान शà¥à¤°à¥€à¤•ृषà¥à¤£ ने बताया है कि जब जब धरती पर धरà¥à¤® की हानि होती है, संतों को पीड़ित किया जाता है, तब – तब मैं अवतार लेकर साधॠ– संतों के परितà¥à¤°à¤¾à¤£ के लिये और विनाशाय च दà¥à¤·à¥à¤•ृतामà¥â€Œ धरà¥à¤® की पà¥à¤¨à¤ƒ सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ के लिये अवतार लेता हूं।
इस बार शà¥à¤°à¥€à¤•ृषà¥à¤£ ने West Zone Culture Centre के रूप में जनà¥à¤® लिया और इस हवेली को न केवल मà¥à¤•à¥à¤¤ कराया बलà¥à¤•ि इसे à¤à¤• संगà¥à¤°à¤¹à¤¾à¤²à¤¯ के रूप में विकसित किया। पशà¥à¤šà¤¿à¤®à¥€ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° सांसà¥à¤•ृतिक केनà¥à¤¦à¥à¤° के अधिकारियों ने यहां तक सोचा कि इस हवेली की वासà¥à¤¤à¥à¤•ला सà¥à¤µà¤¯à¤‚ में दरà¥à¤¶à¤¨à¥€à¤¯ है अतः इसका पà¥à¤¨à¤°à¥à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤° करके इस वासà¥à¤¤à¥à¤•ला को सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ रखा जाना वांछनीय है।
धनà¥à¤¯ हैं पà¥à¤°à¤à¥ आप! आपकी लीला अपरमà¥à¤ªà¤¾à¤° है। पहले इसे महाराषà¥à¤Ÿà¥à¤°, गोवा, राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ और गà¥à¤œà¤°à¤¾à¤¤ की लोककलाओं और लोकसंसà¥à¤•ृति के संगà¥à¤°à¤¹à¤¾à¤²à¤¯ के रूप में विकसित करने की बात थी, पर बाद में सिरà¥à¤« मेवाड़ की राजसी संसà¥à¤•ृति तक इसे सीमित रखे जाने पर सहमति बनी। बागौर की हवेली के जीरà¥à¤£à¥‹à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤° के लिये जब सांसà¥à¤•ृतिक केनà¥à¤¦à¥à¤° के अधिकारियों ने मेवाड़ के राजघराने से संपरà¥à¤• कर उनकी सहायता मांगी तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने यह शरà¥à¤¤ रख दी होगी कि इस हवेली में केवल मेवाड़ राजघराने की संसà¥à¤•ृति व कलाकृतियों का ही पà¥à¤°à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨ होना चाहिये।
138 कमरे, बीसियों आंगन, जीने, बà¥à¤°à¥à¤œ, सà¥à¤¨à¤¾à¤¨à¤¾à¤—ार, अरà¥à¤µà¤¾à¤šà¥€à¤¨, पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨, आधà¥à¤¨à¤¿à¤• कलाकृतियां देखते देखते जब हम थक कर चूर हो चà¥à¤•े थे तो नीचे पà¥à¤°à¤¥à¤® तल पर à¤à¤• कमरे में पोलिà¤à¤¸à¥à¤Ÿà¤°à¥€à¤¨ (polystyrene) से बनाई गईं विशà¥à¤µ à¤à¤° के पà¥à¤°à¤®à¥à¤– à¤à¤µà¤¨à¥‹à¤‚ की अनà¥à¤•ृतियों (replica) à¤à¥€ नज़र पड़ी जिनमें आइफल टावर, पीसा की à¤à¤• ओर को à¤à¥à¤•ी हà¥à¤ˆ मीनार, ताजमहल, चार मीनार के अतिरिकà¥à¤¤ जीप, कार, बस आदि à¤à¥€ वहां दिखाई दीं। मà¥à¤à¥‡ लगता है कि आप यदि इनमें से कà¥à¤› सामान खरीदना चाहें तो बेशक खरीद सकते हैं।
बागौर की हवेली देखने के लिये पà¥à¤°à¤¤à¤¿ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ 25 रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ खरà¥à¤š करना कोई महंगा सौदा नहीं है, खास कर तब जबकि कैमरे के लिये अलग से कà¥à¤› न देना पड़े। हम बागौर की हवेली में सà¥à¤¬à¤¹ के समय गये थे पर शाम को 7 बजे यहां टैरेस पर sound and light show होता है, उसे देखना हर किसी के लिये रà¥à¤šà¤¿à¤•र हो सकता है। वैसे संगà¥à¤°à¤¹à¤¾à¤²à¤¯ को देखने का समय 10 बजे से सायं 5.30 बजे निरà¥à¤§à¤¾à¤°à¤¿à¤¤ है।
बागौर की हवेली को बाय-बाय, टाटा करके हमने फतेह सागर à¤à¥€à¤² की ओर रà¥à¤– किया कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि हम टैकà¥à¤¸à¥€ से आते जाते नेहरू पारà¥à¤• को देख कर ललचाते रहते थे। यह नेहरू पारà¥à¤• फतेह सागर à¤à¥€à¤² के मधà¥à¤¯ में ही सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है।
फतेह सागर à¤à¥€à¤² और नेहरू पारà¥à¤•
उदयपà¥à¤° अपनी जिन à¤à¥€à¤²à¥‹à¤‚ के कारण विशà¥à¤µ पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ है उनमें फतेह सागर à¤à¥€à¤² à¤à¥€ à¤à¤• है। अगर आप सोच रहे होंगे कि फतेह सागर à¤à¥€à¤² का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ महाराणा फतेह सिंह ने किया होगा तो आप सरासर गलत हैं। इस कृतà¥à¤°à¤¿à¤® à¤à¥€à¤² का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ 1678 में महाराणा जय सिंह ने किया था। पर बाद में महाराणा फतेह सिंह ने इसका विसà¥à¤¤à¤¾à¤° किया और यह à¤à¥€à¤² उनके नाम को समरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ हो गई। उदयपà¥à¤° के उतà¥à¤¤à¤°-पशà¥à¤šà¤¿à¤® में और पिछोला à¤à¥€à¤² के उतà¥à¤¤à¤° में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ यह à¤à¥€à¤² जयसमंद à¤à¥€à¤² के बाद दूसरी कृतà¥à¤°à¤¿à¤® à¤à¥€à¤² है जिसका निरà¥à¤®à¤¾à¤£ निशà¥à¤šà¤¯ ही उदयपà¥à¤° को रेगिसà¥à¤¤à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ के लिये पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ को सूखे से बचाने के लिये किया गया होगा। ढाई किमी लंबी, डेढ़ किमी चौड़ी और साढ़े गà¥à¤¯à¤¾à¤°à¤¹ मीटर तक गहराई वाली इस à¤à¥€à¤² के मधà¥à¤¯ में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ तीन टापà¥à¤“ं में से सबसे बड़े टापू पर नेहरू पारà¥à¤• है। इस पारà¥à¤• में जाने के लिये नाव का सहारा लिया जाता है। इन à¤à¥€à¤² को पानी तीन मारà¥à¤—ों से मिलता है और à¤à¤• मारà¥à¤— का उपयोग मानसून के दिनों में पानी की अधिकता से निपटने के लिये किया जाता है ताकि à¤à¥€à¤² में से फालतू पानी को निकाला जा सके।
दूसरे वाले टापू पर सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° से पानी के फवà¥à¤µà¤¾à¤°à¥‡ लगाये गये हैं और तीसरे टापू पर नकà¥à¤·à¤¤à¥à¤°à¤¶à¤¾à¤²à¤¾ (solar observatory) है। हम लोग सिरà¥à¤« नेहरू पारà¥à¤• तक ही सीमित रहे जिसमें नाव की आकार का à¤à¤• रेसà¥à¤Ÿà¥‹à¤°à¥‡à¤‚ट à¤à¥€ बनाया गया है। लोग बताते हैं कि वहां पर à¤à¤• चिड़ियाघर à¤à¥€ है, जिसकी अब मà¥à¤à¥‡ याद नहीं है। हो सकता है उस समय वह न रहा हो या उसमें जानवर न होकर सिरà¥à¤« चिड़िया ही हों !
नेहरू पारà¥à¤• से आप चाहें तो बोटिंग के मजे ले सकते हैं। वहां पर बहà¥à¤¤ तेज़ à¤à¤¾à¤—ने वाले हॉणà¥à¤¡à¤¾ वाटर सà¥à¤•ूटर à¤à¥€ थे जिस पर जाट देवता जैसे पराकà¥à¤°à¤®à¥€ घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ à¤à¥€à¤² की परिकà¥à¤°à¤®à¤¾ कर रहे थे। वैसे यदि आप उस सà¥à¤•ूटर की सवारी करना नहीं जानते तो à¤à¥€ कोई दिकà¥à¤•त नहीं है। उनका आपरेटर आपको डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤¿à¤‚ग सीट पर बैठा कर खà¥à¤¦ सारे कंटà¥à¤°à¥‹à¤² अपने हाथ में ले लेता है। आप यदि सà¥à¤Ÿà¥€à¤¯à¤°à¤¿à¤‚ग à¤à¥€ ठीक से नहीं पकड़ सकते तो मेरी तरह से आप à¤à¥€ इन सब à¤à¤‚à¤à¤Ÿà¥‹à¤‚ से दूर ही रहें।
नेहरू पारà¥à¤• से निकलते – निकलते हमें डेढ़ बज गया था और अब खाना खा कर होटल सामान उठाने के लिये जाना था ताकि समय से à¤à¤¯à¤°à¤ªà¥‹à¤°à¥à¤Ÿ पहà¥à¤‚चा जा सके। हमारी वापसी हेतॠवही 38 सीटर लघà¥à¤¯à¤¾à¤¨ मौजूद था पर इस बार à¤à¤¯à¤°-होसà¥à¤Ÿà¥‡à¤¸ बदल गई थी।
इस यातà¥à¤°à¤¾ में जिन बातों ने मà¥à¤à¥‡ बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ किया वह थीं – उदयपà¥à¤° वासियों के मन में अपने शहर के लिये गौरव की à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ । हसीन ने जो कà¥à¤› कहा था, यदि वह कम हो तो à¤à¤• किसà¥à¤¸à¤¾ और सà¥à¤¨ लीजिये । फिर हम अपने रसà¥à¤¤à¥‡, आप अपने रसà¥à¤¤à¥‡ ! किसà¥à¤¸à¤¾ ये है कि होटल पहà¥à¤‚च कर हमने अपना सामान टैकà¥à¤¸à¥€ में रखवाया, होटल को à¤à¥à¤—तान किया और अपनी टैकà¥à¤¸à¥€ में बैठे ही थे कि होटल का मालिक/मैनेजर à¤à¤¾à¤—ा-à¤à¤¾à¤—ा आया और मेरे हाथों में मेरा कैमरा सौंपता हà¥à¤† बोला – “आपका कैमरा काउंटर के बगल में सोफे पर छूट गया था। अपने घर जाकर आप ये तो कà¥à¤› दिन बाद à¤à¥‚ल जाते कि किस होटल में और कहां कैमरा छोड़ा था, पर सारी ज़िà¥à¤¦à¤—ी हर किसी से यही कहते कि उदयपà¥à¤° गये थे, वहां मेरा कैमरा खो गया।“ मैं अचरज से उसे देखता ही रह गया। उस दिन से आज तक मैं अपने सहारनपà¥à¤° वासियों को ये किसà¥à¤¸à¤¾ जब-तब बताया करता हूं ताकि सहारनपà¥à¤° वासी à¤à¥€ अपने शहर का समà¥à¤®à¤¾à¤¨ करना, और सहारनपà¥à¤° के समà¥à¤®à¤¾à¤¨ में ही अपना समà¥à¤®à¤¾à¤¨ करना सींखें।
रातà¥à¤°à¤¿ में सà¤à¥€ à¤à¤¯à¤°à¤ªà¥‹à¤°à¥à¤Ÿ पर टà¥à¤°à¥ˆà¤«à¤¿à¤• बढ़ जाता है, नई दिलà¥à¤²à¥€ à¤à¤¯à¤°à¤ªà¥‹à¤°à¥à¤Ÿ पर à¤à¥€ लैंडिंग के लिये कोई रन वे खाली नहीं था अतः हमारा वायà¥à¤¯à¤¾à¤¨ दस मिनट तक ऊपर ही ऊपर दिलà¥à¤²à¥€ à¤à¤¯à¤°à¤ªà¥‹à¤°à¥à¤Ÿ के चकà¥à¤•र लगाता रहा। मैने à¤à¤¯à¤° होसà¥à¤Ÿà¥‡à¤¸ से कहना चाहा कि गाज़ियाबाद में हमारी सड़क बिलà¥à¤•à¥à¤² रन वे जैसी ही है, चाहें तो वहीं उतार लें पर फिर बाकी यातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का ख़याल करके इस सà¥à¤à¤¾à¤µ को अपने दिल के अनà¥à¤¦à¤° वापिस रख लिया। वायà¥à¤¯à¤¾à¤¨ की खिड़की में से हमें दिलà¥à¤²à¥€ के वह दृशà¥à¤¯ दिखाई दे रहे थे, जो हमने इससे पहले कà¤à¥€ नहीं देखे थे। वायà¥à¤¯à¤¾à¤¨ का पैटà¥à¤°à¥‹à¤² खतà¥à¤® होने तक वह हमें वहीं घà¥à¤®à¤¾à¤¤à¤¾ रहता तो à¤à¥€ हमें बà¥à¤°à¤¾ लगने वाला नहीं था।
गाज़ियाबाद पहà¥à¤‚चे तो रातà¥à¤°à¤¿ के साढ़े दस बज चà¥à¤•े थे। बड़ा बेटा à¤à¥€ वहां मौजूद था। सबसे पहले उसने मेरे कैमरे का मैमोरी कारà¥à¤¡ निकाल कर अपने लैपटॉप में लगाया और मेरी सारी फोटो अपने पास सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ कर लीं। रात को बड़ी दीदी के घर पर ही रà¥à¤• कर यातà¥à¤°à¤¾ के खरà¥à¤šà¥‹à¤‚ का हिसाब-किताब किया गया, घर के बाकी सदसà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को किसà¥à¤¸à¥‡ सà¥à¤¨à¤¾à¤¯à¥‡ गये और अगले दिन सà¥à¤¬à¤¹ हम अपनी कार में सामान लाद कर वापिस सहारनपà¥à¤° के लिये चल पड़े।
आप सबने इस यातà¥à¤°à¤¾ में जिस तरह रà¥à¤šà¤¿ पूरà¥à¤µà¤• हमारा साथ दिया, वह निशà¥à¤šà¤¯ ही बहà¥à¤¤ सà¥à¤–द और पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤• है। मà¥à¤à¥‡ जितना मज़ा उदयपà¥à¤° और माउंट आबू में घूमने में आया था, उससे कà¥à¤› अधिक मज़ा इस यातà¥à¤°à¤¾ का किसà¥à¤¸à¤¾ आप सब के सामने बांचने में आया है। उदयपà¥à¤° और माउंट आबू के बारे में आपको बताने के पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ में मà¥à¤à¥‡ कहीं – कहीं अपने तथà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को पà¥à¤·à¥à¤Ÿà¤¿ करने के लिये उदयपà¥à¤° से संबंधित साहितà¥à¤¯ और विकीपीडिया जैसी वेबसाइट का à¤à¥€ सहारा लेना पड़ा। यही कारण है कि इस शà¥à¤°à¥ƒà¤‚खला को लिखना शà¥à¤°à¥ करने से पहले मैं उदयपà¥à¤° के बारे में जितना जानता था, आज उससे बेहतर जानने लगा हूं। फिर à¤à¥€, मामला पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¤¾ हो चà¥à¤•ा है अतः कहीं – कहीं कà¥à¤› गलतियां हो गई हों, à¤à¤¸à¤¾ पूरà¥à¤£à¤¤à¤ƒ संà¤à¤µ है। अतः आप सब से अनà¥à¤°à¥‹à¤§ है कि मेरी गलतियों के लिये कà¥à¤·à¤®à¤¾ करते हà¥à¤, यदि कहीं पर à¤à¥‚ल सà¥à¤§à¤¾à¤° की आवशà¥à¤¯à¤•ता हो तो मà¥à¤à¥‡ अवशà¥à¤¯ ही सूचित करें।
à¤à¤• बार पà¥à¤¨à¤ƒ आप सब को नमसà¥à¤•ार सहित !













































Sorry everyone. Due to some technical glitch, this post remained invisible for almost 6 hours. I even got some messages asking me as to why the post was not appearing on the screen. Everything had to be re-done. Thank you very much for your affectionate queries.
These were the comments which this post had attracted before it vanished into thin air.
SilentSoul had written :
मनोरंजक विवरण रही सु.सि जी. पूरी कहानी में आखिर एक आपकी फोटो भी आ ही गई. विटेज कारें तो आपने देख ली थी फिर कोप भवन क्यो ???
ये बात आपकी ठीक है कि यात्रा करने से ज्यादा उसे दुबारा याद करने का आता है
कुछ चित्र फालतू लग रहे है जैसे वाटर स्कूटर के इतने फोटो लगाने की आवश्यकता नही थी |
Parveenkr commented like this :
रात्रि में सभी एयरपोर्ट पर ट्रैफिक बढ़ जाता है, नई दिल्ली एयरपोर्ट पर भी लैंडिंग के लिये कोई रन वे खाली नहीं था अतः हमारा वायुयान दस मिनट तक ऊपर ही ऊपर दिल्ली एयरपोर्ट के चक्कर लगाता रहा। मैने एयर होस्टेस से कहना चाहा कि गाज़ियाबाद में हमारी सड़क बिल्कुल रन वे जैसी ही है, चाहें तो वहीं उतार लें पर फिर बाकी यात्रियों का ख़याल करके इस सुझाव को अपने दिल के अन्दर वापिस रख लिया। वायुयान की खिड़की में से हमें दिल्ली के वह दृश्य दिखाई दे रहे थे, जो हमने इससे पहले कभी नहीं देखे थे। वायुयान का पैट्रोल खत्म होने तक वह हमें वहीं घुमाता रहता तो भी हमें बुरा लगने वाला नहीं था।
great humor. great story-telling. but ye dil mange more. ab vapis kashmir pe aa jaiye.
Nandan Jha reacted in the following manner :
प्रिय सुशांत जी ,
श्री नाथ जी वाले अध्याय में मैं आपके साथ हूँ । ये फोटो न खींचना , कुछ ही समय के लिए दर्शन की सुविधा पुरानी बातें हो गयीं । सफारी सूट का ज़माना गया , अब तो सोशल मीडिया की हलचल है । यूरोप की तरह एक रीनैसां लाना होगा सुशांत जी । बागौर हवेली का तो कुछ नहीं मालूम था । बढ़िया चित्र, एक में तो उस असुर की गर्दन ही दबोच ली है मैम ने ।
सागर के मनोहारी चित्र , होटल मेनेजर को एक माध्यम बनाते हुआ जाते जाते एक मेसेज जनता जनार्दन के लिए,और अपने आपको रोकते रोकते भी एक चुटकी वायुयान में । उदयपुर की ये मनमोहक सीरीज समाप्त होने पर ऐसा लग रहा है की जैसे स्टेशन पर कोई सामन छुट गया हो । वाकई ।
खैर , थोडा “…..यह तो आप सब को पता ही होगा कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म ईसा से 3228 वर्ष पूर्व 19/20 जुलाई को 12.39 मध्यरात्रि …….” पर खुलासा करें । थोडा और बताएं , जितना भी संक्षेप में नार्मल आदमी की काबिलियत को देखते हुए ।
आपका प्रिय,
नंदन
और कल बारह बजे ‘घुमक्कड़ ऑफ़ दी इयर ‘ की घोषणा है , देखना न भूलें ।
Dear Icelandic SS Ji,
आपको पोस्ट अच्छी लगी, हम धन्य हुए ! हमने विंटेज कारें कहां देखी थीं? मैने लिखा तो था कि कारों के ये चित्र Eternal Mewar के सौजन्य से हैं। सो, मेरा कोपभवन में जाना पूर्णतः जायज़ था! Report (re-port) का शाब्दिक अर्थ ही है – To carry again. किसी भी मनोरंजक / दुःखद घटनाक्रम को दोबारा लिखना या याद करना सुखद / दुःखद तो होता ही है।
फोटो कम से कम हों, आगे ऐसा प्रयास करूंगा ।
@Nandan Jha : थैंचू जी ! वास्तव में ही अगर मंदिर जाने वाले दर्शनार्थियों की संख्या में अचानक कमी हो जाये तो पंडों – पंडितों के सारे नखरे ढीले हो जायेंगे, पर सवाल तो यही है कि पहल कौन करे ? इसीलिये मुझे अब गुरुद्वारे ज्यादा मन भाने लगे हैं । और अगर साथ में गुरुजी का लंगर भी हो तो सोने में सुहागा हो जाता है। :D
भगवान श्रीकृष्ण और राधा के जन्म के बारे में यह जानकारी नाथद्वारा की एक वेबसाइट पर quote की गई थी। लिंक भेजने का प्रयास करूंगा ।
Dear Sushantji, I was trying all evening to read your blog but I was getting some error message and I thought that something was wrong with my PC. Glad to know that the problem lay somewhere else.
It is said that when Lord Krishna died, the Dwapara Yuga ended and Kaliyuga began. Tradition tells us that Kaliyuga started in 3102 BC and that Lord Krishna lived for 125 years. So, the birth date given by you is surprisingly quite accurate. When I first read the data given by you, my first reaction was scepticism; how can anyone know the exact date and time of someone born so long ago: But we celebrate Janmashtami every year and know that Rohini is his birth star. So, pinpointing the date and time is really not as difficult a task as we assume it to be. Complex tasks have simple solutions!
Your frustration at the negative experiences in popular temples mirrors my own. God is everywhere, yet we seek Him/Her/It in temples. However, instead of focusing on the idol alone, one must enjoy the ambience, the architecture, the traditions which have survived for thousands of years; then, the disappointment is gradually replaced by wonder and then we can feel the spiritual vibrations in the shrine.
The palaces you have shown us are a wonderful reminder of the creative genius of our ancestors. The skill and artistry is amazing indeed. When you can enjoy vintage architecture, then why worry about vintage cars? By the way, the photographs have come out very well.
Dear DL,
‘Thanks’ is indeed a very small word to convey to you.
I found a link on web http://hindi.webdunia.com/religion-sanatandharma-history/%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%8F-%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A5%81-%E0%A4%94%E0%A4%B0-%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A4%B5%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%B0-1120413045_1.htm. Strangely the age of Earth / Universe arrived it through Hindu system of calculation and western system of calculation come pretty close to each other.
All of us are aware about ‘sankalp’ which we have to do on some occasions when we take water in our hand and the brahmin preacher intones – “जंबू द्वीपे, भरतखंडे, आर्यावर्त देशे, वैवस्वत मन्वन्तरे….. ” They themselves perhaps don’t understand all of it but nonetheless, they perform it for us as a routine.
I agree with you about enjoying the ambiance of a temple but in this particular case, we were stuck to the door for hours, being afraid of missing darshan. We didn’t see anything there and that was really the reason of my outburst!
Dear Sushant,
Good Photos, excellent narration. You describe plane journey so beautifuly, I am thinking I have to enjoyed it in small plane. Thanks a lot
Dear Surinder Sharma Ji,
Thanks for the encouraging words. I have submitted my story of Shimla and it should be before you in next week. Thinking of writing my experiences of some more places too.
Sushant Singhal
Your post and pictures made Udaipur even greater than it is actually.
Very nice and colorful post.
Dear Praveen Wadhwa, (Referring you as PW reminds me of Password ! )
Thank you very much but I feel that Udaipur is really one of the finest travel destinations in my country and the credit goes to both – the people and the places.
Superb Series Sushant jee,
Enjoyed every bit of it. Photos were superb and so was description.This will be very helpful in my journey to Udaipur and Nathdwara . Did you go to Ekling jee Temple?
Rajasthan has attracted me a lot especially more after my yatra to Pushkar , Ajmer and Jaipur. But I had always wished to visit Udaipur and Nathdwara first but Lord took me to Jaipur first. So nothing is our hands.
Nice information on Radha jee and Shree Krishna (Krishnaism) , That they are one. Male and female part. The same goes for Shiva and Shakti for Shaivism , Laxmi – Narayan for Vaishnavism , Sita Ram for those who follow Ram, Bhairavi – Bhairav for tantriks , God Father and Mother Nature for Christians and Allah and Duniya for Muslims etc . But it is the people who don’t understand, they all are one.
One question : the above timings of the temple you have given are timings for which the Kapaat are open or for they closed ?
Thanks for the wonderful series . Hope to have many more .
please clarify?
Dear Vishal,
Thank u for never failing to oblige me with your generous comments. Heartiest congratulations for sharing the limelight as Ghumakkar of the Year. All of you really deserve it.
While returning from Shri Nath Ji temple at Nathdwara, we had stopped en route to yet another series of temples which was perhaps midway between Nathdwara and Udaipur. I can’t recollect the name of the temple complex but there were 8 or 10 ancient temples and after having darshan and paying our respect to the gods here, we had moved on. I do have some pictures of this temple complex which I had taken in low light (after sunset). Since I couldn’t remember any details of this temple complex which I could write about, I didn’t mention it in my post.
Of course, the time table reproduced by me above refers to the timings when one may have darshan i.e. when the temple doors are open.
Almost all the great philosophers, rishi, muni and other spiritual leaders have arrived at the same conclusion that Shiv and Shakti, Krishna and Radha …… are two sides of the same coin. Even when you learn about the atom, there is a nucleus (Proton) and electrons are dancing around it in their orbit. They are aptly referred to as Shiv and Shakti in Hindu mythology. They are at the root of this whole universe. Even those things which we consider to be static (say a molecule of calcium, Ferrum (iron), Argentum (Silver), Aurum (gold) etc., this non-stop dance of the Shakti is going on.
I had read somewhere a beautiful piece which said something to this effect : Shiv and Shakti remained in tight embrace for thousands and thousands of yug. Then Shakti woke up and started a circular dance around Shiv and the energy so generated by this dance, the whole universe came into being.
I hope these are references to inert and active state of molecule and atom only !
The time is too less to have darshan peacefully.
प्रिय सुशान्त जी ,
आपने उदयपुर घूमने में काफी समय दिया …यदि हमने इतना समय दिया होता तो हम भी आपकी बताई कई सारी जगह घूम लेते | खैर फतेहसागर लेक और नेहरु पार्क तो देखा हैं …. फतेहसागर झील के बीच में बना नेहरु पार्क वाकई में बहुत सुन्दर हैं……और नेहरु पार्क के पुल जुड़ा रेस्तरा में बैठ कर तेज हवा के बीच चाय-काफी पीने का आनंद की कुछ और हैं….| नाथद्वारा में भी हमने उद्यापन वाले ही दर्शन किये थे….प्रभु के दर्शन तो हुए पर बहुत ही आनन फानन में भीड़ के बीच | सच कहा भगवान तो दिल में बसते हैं…एक बात और नाथ द्वारा में जो प्रसाद मिलता हैं वो पहले से ही भोग लगाया हुआ होता हैं……सीधे खरीदो और घर ले जाओ…| उदयपुर से लगभग १७ किमी० दूर श्री नाथ जी पुराना मंदिर जिसे घसियार मंदिर के नाम से जानते है… प्रभु श्री नाथ जी पहले कई वर्षों तक घसियार मंदिर में रहे थे बाद में नाथद्वारा पहुंचे थे…..|
बढ़िया पोस्ट और ढेर सारे उदयपुर की कहानी कहते चित्रों के लिए धन्यवाद….
प्रिय रितेश,
आपको पोस्ट अच्छी लगी, हार्दिक आभार ! अगर समय निकाला जा सके तो निश्चय ही काफी विस्तार से किसी शहर का अध्ययन किया जा सकता है। हवाई यात्रा से समय तो बचता ही है वरना दो दिन तो हमारे यात्रा में ही निकल जाते । पर मुझे रेल यात्रा के बारे में लिखने में बहुत मज़ा भी आता है।
घसियार मंदिर तो हम नहीं गये थे।
Dear Sushant Sir,
Please find my mobile number – 07898909043. Welcome to Indore.
Thanks.
Thank u for the contact number, Mukesh Ji. I think I have replied to this comment via personal email also. :)
Hello Sushant ji,
Itni sundar stories padh ke dil khush ho gaya.
Waise to Udaipur mera aur mere papa ka nanihal hai, par distances ke kaaran pehle humara jaana bahut kam hua karta tha par jab bhi jaate the nathadwara,eklingi jaate the.Mere bete ka mundan karane main nathadwara hi gayi thi wo bhi kariban 5-7 saal baad. Humein sab ne dara diya tha ki bahut bhid milegi.Infact mere husband is decision se thode khush bhi nahi the ki itni bhid me chhote bacche ko kyo le jaana.Phir bhi hum gaye. car park kar ke hum ab mandir ki taraf badhe to ek ladke ne mere husband ko kaha ki wo guide hai aur shortcut me le jaake bahut acche darshan karayega,hum pehle maane nahi par baad me mere husband maan gaye.Usne humse perhead 50/- mange, jo hum agree kar gaye.Aap vishwash nahi karenge par usne hume bahut hi alag raaste se le gaya aur kappat khulte se hi hum bhagwan ke saamne the ekdum first line me.Hum waha pure 15 min khade rahe,koi dhakka nahi aur akhir main hum khud hi nikal aaye ki bahut der tak darshan kar liye ab chale.
Next time agar koi jaaye aur agar aisa reasonable guide milta hai to mujhe lagta hai use 50/- per head dena worth hoga.Just sharing information for future visitors.
Udaipus se kareeb 65-70 km dur ek aur badhiya mandir hai bhagwaan dwarkadheesh ji ka.Us jagah ka naam hai KANKROLI , next time jaaye to ye mandir bhi dekhiyega,accha lagega.
Thanks for such a wonderful series.
Hi Abhee,
आपका प्यारा सा कमेंट पाकर बहुत अच्छा लगा पर उत्तर देने में विलंब हुआ उसके लिये क्षमा याचना ! आपका ये कहना तो सही है कि 50 रुपये प्रति व्यक्ति गाइड को देना कोई महंगा सौदा नहीं है पर गाइड का मतलब अगर “मंदिर के अंदर लाइन में सबसे आगे खड़ा कर सकने की क्षमता वाला व्यक्ति” है तो हम उसे गाइड कैसे कह सकते हैं? वह तो पुजारी महोदय का दलाल हुआ ना ? स्वाभाविक रूप से उसे 50 रुपये में से सिर्फ दस ही रुपये मिल रहे होंगे। और फिर, यह सब व्यवसायिकता हिन्दू मंदिरों में ही क्यों दिखाई देने लगी है? अगर लोग कसम खा लें कि एक सप्ताह तक कोई भी किसी भी मंदिर में प्रवेश नहीं करेगा तो इन सब पंडों – पुराहितों के दिमाग ठिकाने आ जायेंगे ! पर ये कैसे हो ?
हम सब सिर्फ अपने बारे में सोचें तो 50 – 50 रुपये देकर हम एक गलत प्रथा को जन्म देने के दोषी बन जाते हैं भले ही हमें दर्शन का लाभ मिल रहा होगा। आशा है, आप इसे अन्यथा नहीं लेंगी !
Dear Sushantji,
The photos have come out real incredible. And how come you do not post photos with you in them. Or you dont trust your camera with anyone?
Please share your camera specs. Maybe you can give a small tutorial on photography – especially taking photos in the sun and there is lot of whiteout. The top of the building fade in the sun. Is White Balance of any help here?
Lovely epic series.
Dear Nirdesh Ji,
Thanks a lot for liking the photographs. In this post my favourite photographs are of the Honda scooter rushing in Fatehsagar Lake. The trail left behind by the scooter came out satisfactorily.
I would be immensely happy to write whatever I can, about photography. However, I am already fond of your photographs and wanted to learn one or two things from you too. In fact, interaction of this kind is going to benefit all of those who are interested.
If Nandan permits me, I will write a ghumakkar Insight on photography. Although the topic is very lengthy, I will touch a few points at a time and too concerning travel photography only.
Sushant Singhal