इस बार जब दिमाग में घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ी का कीड़ा कà¥à¤²à¤¬à¥à¤²à¤¾à¤¯à¤¾ तो मन à¤à¤¾à¤—ा पंजाब की ओर! दर असल सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ मंदिर के चितà¥à¤° कहीं दिखाई देते हैं तो यह अदà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯, à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• पूजा सà¥à¤¥à¤²à¥€ अपनी ओर खींचती लगती है। मन करता रहा है कि मैं à¤à¥€ वहां जाऊं और कà¥à¤› समय शांति से वहां बिताऊं।  जब से कà¥à¤› जानने समà¤à¤¨à¥‡ लायक आयॠहà¥à¤ˆ, तब से ही सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ मंदिर से जà¥à¤¡à¤¼à¥€ अनेकानेक घटनायें, निरà¥à¤®à¤¾à¤£, विधà¥à¤µà¤‚स और पà¥à¤¨à¤°à¥à¤¨à¤¿à¤°à¥à¤®à¤¾à¤£ की गाथायें सà¥à¤¨à¤¤à¤¾, पढ़ता चला आ रहा हूं! और वहीं बगल में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ जलियांवाला बाग जिसमें जनरल डायर के आदेश पर हà¥à¤ कतà¥à¤²à¥‡à¤†à¤® के बारे में पढ़ कर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। मà¥à¤à¥‡ लगता रहा है कि मेरे लिये इन सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ के दरà¥à¤¶à¤¨ हेतॠजाना अतà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤¶à¥à¤¯à¤• है, à¤à¤²à¥‡ ही साथ में कोई जाये या न जाये।
इस वरà¥à¤· जून से तो अमृतसर दरà¥à¤¶à¤¨ हेतॠअकà¥à¤²à¤¾à¤¹à¤Ÿ कà¥à¤› अधिक ही हो गई थी। अपने à¤à¤• मितà¥à¤°, जिनका नाम संजीव बजाज है, और जो साइकिल पर सहारनपà¥à¤° से कनà¥à¤¯à¤¾à¤•à¥à¤®à¤¾à¤°à¥€ होकर आ चà¥à¤•े हैं, उन से बात की तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कहा कि पगला गये हो, इस सड़ी गरà¥à¤®à¥€ में अमृतसर जाओगे? दशहरा- दीवाली के आस-पास जाने का पà¥à¤°à¥‹à¤—à¥à¤°à¤¾à¤® बना लेंगे। यदि यही बात हमारी शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¤à¥€ जी ने कही होती तो हमने साफ तौर पर नकार दी होती। पर चूंकि यह सलाह à¤à¤• घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ मितà¥à¤° की ओर से पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हà¥à¤ˆ थी तो हमने सोचा कि अवशà¥à¤¯ ही इसमें कà¥à¤› सार होगा, हमारी à¤à¤²à¤¾à¤ˆ होगी, अतः माने लेते हैं ! फलसà¥à¤µà¤°à¥‚प, यातà¥à¤°à¤¾ अकà¥à¤¤à¥‚बर तक के लिये टाल दी गई! अकà¥à¤¤à¥‚बर में उन मितà¥à¤° के साथ हमने दो टिकट जाने-आने के जनशताबà¥à¤¦à¥€ के बà¥à¤• करा लिये पर यातà¥à¤°à¤¾ से तीन दिन पूरà¥à¤µ उनका फोन आ गया कि सà¥à¤¶à¤¾à¤¨à¥à¤¤ à¤à¤¾à¤ˆ, वेरी सॉरी, पà¥à¤°à¥‹à¤—à¥à¤°à¤¾à¤® पोसà¥à¤Ÿà¤ªà¥‹à¤¨ करना पड़ेगा – बहà¥à¤¤ बड़ी à¤à¤®à¤°à¤œà¥‡à¤‚सी आ गई है। हमने कहा, “नथिंग डूइंग ! इमरजेंसी से तो हम तब à¤à¥€ नहीं डरे थे, जब इंदिरा गांधी ने पूरे देश में इमरजेंसी लगा दी थी। तब à¤à¥€ हम à¤à¥‡à¤¸ बदल – बदल कर पà¥à¤²à¤¿à¤¸ को चकमा दे-दे कर घूमते रहे, लोकतंतà¥à¤° की अलख जगाते रहे ! अब à¤à¤²à¤¾ कà¥à¤¯à¤¾ खाक डरेंगे ! अगर आप नहीं जा पा रहे हैं तो कोई समसà¥à¤¯à¤¾ नहीं, à¤à¤• टिकट कैंसिल करा देते हैं ! मैं और मेरा कैमरा काफी हैं। सवा लाख से à¤à¤• लड़ाऊं, तब गोविनà¥à¤¦ सिंह नाम कहाऊं !â€
तो साहेबान, अपà¥à¤¨ अपने दोनों बैग पैक करके (à¤à¤• में कपड़े, दूसरे में लैपटॉप व कैमरा) नियत तिथि को नियत समय पर नियत रेलगाड़ी पकड़ने की तमनà¥à¤¨à¤¾ दिल में लिये सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ जा पहà¥à¤‚चे। ये नियत तिथि, नियत समय, नियत रेलगाड़ी सà¥à¤¨à¤•र आपको लग रहा होगा कि मैं जरूर कोई अजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€ पंडित हूं जो यजमान को संकलà¥à¤ª कराते समय “जंबू दà¥à¤µà¥€à¤ªà¥‡, à¤à¤°à¤¤ खंडे, वैवसà¥à¤µà¤¤ मनà¥à¤µà¤¨à¥à¤¤à¤°à¥‡, आरà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤°à¥à¤¤ देशे†के बाद अमà¥à¤• घड़ी, अमà¥à¤• पल, अमà¥à¤• नगर बोल देता है। हमारे वातानà¥à¤•ूलित कà¥à¤°à¥à¤¸à¥€à¤¯à¤¾à¤¨ में, जो कि इंजन के दो डिबà¥à¤¬à¥‹à¤‚ के ही बाद में था, पहà¥à¤‚चने के लिये हमें बहà¥à¤¤ तेज़ à¤à¤¾à¤— दौड़ करनी पड़ी कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि किसी “समà¤à¤¦à¤¾à¤°â€ कà¥à¤²à¥€ ने हमें बताया था कि C1 आखिर में आता है अतः हम बिलà¥à¤•à¥à¤² पà¥à¤²à¥‡à¤Ÿà¤«à¥‰à¤°à¥à¤® के अनà¥à¤¤ में खड़े हो गये थे। जब टà¥à¤°à¥‡à¤¨ आई और C1 कोच हमारे सामने से सरपट निकल गया तो हमने उड़न सिकà¥à¤– मिलà¥à¤–ासिंह की इसà¥à¤Ÿà¤¾à¤‡à¤² में सामान सहित टà¥à¤°à¥‡à¤¨ के साथ-साथ दौड़ लगाई। परनà¥à¤¤à¥ अपने कोच तक पहà¥à¤‚चते पहà¥à¤‚चते हमारी सांस धौंकनी से à¤à¥€ तीवà¥à¤° गति से चल रही थी। हांफते हांफते अपनी सीट पर पहà¥à¤‚चे तो देखा कि हमारी सीट पर à¤à¤• यà¥à¤µà¤¤à¥€ पहले से ही विराजमान है। तेजी से धकधका रहे अपने दिल पर हाथ रख कर, धौंकनी को नियंतà¥à¤°à¤£ में करते हà¥à¤ उनसे पूछा कि वह – मेरी – सी – ट पर – कà¥à¤¯à¤¾ – कररर – रररही – हैं !!! उनको शायद लगा कि मैं इतनी मामूली सी बात पर अपनी सांस पर नियंतà¥à¤°à¤£ खोने जा रहा हूं अतः बोलीं, मà¥à¤à¥‡ अपने लैपटॉप पर काम करना था सो मैने विंडो वाली सीट ले ली है, ये बगल की सीट मेरी ही है, आप इस पर बैठजाइये, पà¥à¤²à¥€à¤œà¤¼à¥¤
मैने बैग और सूटकेस ऊपर रैक में रखे और धमà¥à¤® से अपनी पà¥à¤¶ बैक पर बैठगया और कपालà¤à¤¾à¤¤à¥€ करने लगा। दो-चार मिनट में शà¥à¤µà¤¾à¤¸-पà¥à¤°à¤¶à¥à¤µà¤¾à¤¸ सामानà¥à¤¯ हà¥à¤† और गाड़ी à¤à¥€ अपने गंतवà¥à¤¯ की ओर चल दी। मिनरल वाटर वाला आया, à¤à¤• बोतल ली, खोली और डेली डà¥à¤°à¤¿à¤‚कर वाले अंदाज़ में मà¥à¤‚ह से लगा कर आधी खाली कर दी! बीच में महिला की ओर गरà¥à¤¦à¤¨ à¤à¤• आध बार घà¥à¤®à¤¾à¤ˆ तो वही सिंथेटिक इसà¥à¤®à¤¾à¤‡à¤²! मैने अपना बैग खोल कर उसमें से अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¤¼à¥€ की à¤à¤• किताब निकाल ली ! (बैग में यूं तो हिनà¥à¤¦à¥€ की à¤à¥€ किताब थी पर बगल में पढ़ी लिखी यà¥à¤µà¤¤à¥€ बैठी हो तो अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¤¼à¥€ की किताब जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ उपयà¥à¤•à¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ होती है।) किताब का टाइटिल “Same Soul Many Bodies†देख कर वह बोली, “Do you believe in what the author has said in this book?â€Â मैने कहा, “पहले पढ़ तो लूं, फिर बताऊंगा कि यकीन है या नहीं !†असल में मà¥à¤à¥‡ विंडो वाली सीट पसनà¥à¤¦ है पर मेरी वह सीट उसने हथिया ली थी अतः मà¥à¤à¥‡ उस पर थोड़ा – थोड़ा गà¥à¤¸à¥à¤¸à¤¾ आ रहा था। मेरा यह सपाट जवाब सà¥à¤¨ कर उसने अपना लैपटॉप निकाल लिया और सà¥à¤¡à¥‹à¤•ू खेलने बैठगई ! मैं à¤à¥€ अपनी किताब में मसà¥à¤¤ हो गया। मà¥à¤à¥‡ नहीं मालूम कि कब यमà¥à¤¨à¤¾à¤¨à¤—र, अंबाला, लà¥à¤§à¤¿à¤¯à¤¾à¤¨à¤¾ और जालंधर आये । बाहर वैसे à¤à¥€ अंधेरा था और à¤à¤¸à¥€ कोच की खिड़की से रातà¥à¤°à¤¿ में बाहर का कà¥à¤› नज़र à¤à¥€ नहीं आता है।
हमारी गाड़ी रात को 10.20 पर अमृतसर सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ पर पहà¥à¤‚चनी तय थी पर वह 10 बजे ही पहà¥à¤‚च गई। मैने उस महिला को हिला कर पूछा कि अगर उसकी अनà¥à¤®à¤¤à¤¿ हो तो मैं उतर जाऊं? दर असल वह जाने कब सà¥à¤¡à¥‹à¤•ू खेलते खेलते थक कर सो गई थी और उसका सिर मेरे कंधे पर आकर अटक गया था। इस चिंता में कि कहीं उसके सिर की जà¥à¤à¤‚ मेरे सिर तक न पहà¥à¤‚च जायें, मैं जागता रहा पर सोई हà¥à¤ˆ शेरनी को जगाना नहीं चाहिये, अतः उसे जगाया à¤à¥€ नहीं! अब अमृतसर आने पर तो जगाना ही था। उसने आंखें खोलीं, सॉरी कह कर सीधी हà¥à¤ˆ और मैने फटाफट अपना दोनों बैग उतारे और सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ पर उतरा !
जैसा कि मेरी आदत है, मैने अमृतसर आने से पहले à¤à¥€ गूगल मैप का काफी घोटा लगाया था। हमारा C1 कोच पà¥à¤²à¥‡à¤Ÿà¤«à¥‰à¤°à¥à¤® के à¤à¤• छोर पर था और मà¥à¤à¥‡ जहां से रिकà¥à¤¶à¤¾ – टैंपो आदि मिलने की उमà¥à¤®à¥€à¤¦ थी, वह सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पà¥à¤²à¥‡à¤Ÿà¤«à¥‰à¤°à¥à¤® का दूसरा छोर था। पर मेरे पास लà¥à¤¢à¤¼à¤•ाने वाला बैग होने के कारण मन को कोई कषà¥à¤Ÿ नहीं था, मजे से टà¥à¤°à¥‰à¤²à¥€ को लà¥à¤¢à¤¼à¤•ाते – लà¥à¤¢à¤¼à¤•ाते Exit point देखता-देखता आधा किलोमीटर से अधिक चलता रहा तब कहीं जाकर बाहर निकलने का रासà¥à¤¤à¤¾ मिला। दर असल, अमृतसर सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ पर पà¥à¤²à¥‡à¤Ÿà¤«à¤¾à¤°à¥à¤® नं० १ से बाहर निकलने के बजाय मैं दूसरी दिशा से बाहर निकलना चाहता था कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ मंदिर दूसरी दिशा में ही है।  यदि पà¥à¤²à¥‡à¤Ÿà¤«à¤¾à¤°à¥à¤® नं० १ से बाहर जाओ तो फà¥à¤²à¤¾à¤ˆà¤“वर से होते हà¥à¤ रेलवे लाइन पार करके दूसरी दिशा में ही जाना होता है।  फालतू में लंबा चकà¥à¤•र कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ काटना?  वैसे à¤à¥€ जो इंसान पà¥à¤²à¥‡à¤Ÿà¤«à¤¾à¤°à¥à¤® नं- १ की दिशा से बाहर निकले और फिर सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ मंदिर जाने की बात कहे तो इसका सीधा सा मतलब है कि वह अमृतसर पहली पहली बार आया है। खैर।
बाहर कà¥à¤› टैंपो वाले खड़े थे । उनमें सवारियां à¤à¥€ पहले से मौजूद थीं । à¤à¤• के डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤° ने अपनी बगल में बैठने के लिये इशारा करते हà¥à¤ कहा, सामान पीछे रख कर यहां बैठजाओ। परनà¥à¤¤à¥, सामान पीछे (यानि, पिछली सीट के à¤à¥€ पीछे डिकà¥à¤•ी जैसी खà¥à¤²à¥€ जगह में) रख कर आगे डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤° के पास बैठना मà¥à¤à¥‡ अपने पैर पर खà¥à¤¦ कà¥à¤²à¥à¤¹à¤¾à¤¡à¤¼à¥€ मारने जैसा ही लगा। à¤à¤²à¤¾ आप ही बताइये, वहां से कौन कब मेरा सूटकेस लेकर रासà¥à¤¤à¥‡ में उतर गया, मà¥à¤à¥‡ कà¥à¤¯à¤¾ पता चलता?  टैंपो का आइडिया छोड़ कर à¤à¤• रिकà¥à¤¶à¥‡ से कहा, “हरमंदिर साहब! बोलो कितने पैसे?â€Â  (अमृतसर से बाहर के लोग जिसे सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ मंदिर के नाम से पà¥à¤•ारते हैं, वह वासà¥à¤¤à¤µ में हरमंदिर साहब हैं। मैने सोचा कि हरमंदिर साहब कहने से मैं ’लोकल’ माना जाऊंगा और मà¥à¤à¥‡ ठगने की कोशिश नहीं की जायेगी ! )  वह बोला, “तीस रà¥à¤ªà¤¯à¥‡à¥¤â€œÂ मेरी जानकारी के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° यह राशि बिलà¥à¤•à¥à¤² जायज़ थी पर मैं हिंदà¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨à¥€ हूं और पंकज मेरे साथ हो या न हो, दोसà¥à¤¤ तो उसी का हूं, अतः बोला, “कà¥à¤¯à¤¾ बात कर रहे हो? मैं कोई बाहर का थोड़ा ही हूं । यहां से तो बीस रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ होते हैं।“ पर वह बोला, “नहीं साब, तीस रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ बिलà¥à¤•à¥à¤² जायज़ बताये हैं, जलà¥à¤¦à¥€ से बैठो !â€Â मà¥à¤à¥‡ लगा कि चलो, फालतू नौटंकी करने से कà¥à¤¯à¤¾ फायदा!  बैठे लेते हैं।
हरमंदिर साहब, जिसे उसकी सà¥à¤µà¤°à¥à¤£à¤¿à¤® आà¤à¤¾ के कारण दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ मंदिर नाम से जानती है, जाने के लिये गांधी गेट में से होकर व हॉल बाज़ार के मधà¥à¤¯ में से जाते हैं। रात के साढ़े दस बज रहे थे, हाल बाज़ार बनà¥à¤¦ था परनà¥à¤¤à¥ यह तो सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ ही लग रहा था कि ये यहां का अतà¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ और वà¥à¤¯à¤¸à¥à¤¤ बाज़ार है। सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ के बाहर रिकà¥à¤¶à¥‡ में बैठा था तो लगा था कि सारा शहर सोया पड़ा है, परनà¥à¤¤à¥ सà¥à¤µà¤°à¥à¤£à¤®à¤‚दिर तक पहà¥à¤‚चते-पहà¥à¤‚चते à¤à¥€à¤¡à¤¼ बढ़ती चली गई और सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ मंदिर के बाहर तो वासà¥à¤¤à¤µ में इतनी à¤à¥€à¤¡à¤¼ थी। इतनी अधिक à¤à¥€à¤¡à¤¼Â कि अगर कोई मां अपने जà¥à¤¡à¤¼à¤µà¤¾à¤‚ बेटों का हाथ थामे न रहे तो मां और दोनों बेटे के बिछड़ जाने की, और इसके बाद à¤à¤• और नयी बॉलीवà¥à¤¡ फिलà¥à¤® के निरà¥à¤®à¤¾à¤£ और हिट होने की पकà¥à¤•ी संà¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ थी। खैर, रिकà¥à¤¶à¥‡ से उतरा और पैसे देने के लिये परà¥à¤¸ टटोला तो उसमें 500 से छोटा कोई नोट ही नहीं था। बड़ा नोट देख कर रिकà¥à¤¶à¥‡ वाला फैल गया। मैने उसे शानà¥à¤¤ करते हà¥à¤ कहा कि à¤à¤• मिनट रà¥à¤•ो, मैं पैसे खà¥à¤²à¤µà¤¾ कर देता हूं। दो दà¥à¤•ानदारों से छà¥à¤Ÿà¥à¤Ÿà¥‡ पैसे मांगे तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने मà¥à¤‚डी हिला दी ! तीसरी दà¥à¤•ान फालूदा वाले की थी, मैने उससे à¤à¤• फालूदा कà¥à¤²à¥à¤«à¥€ बनाने को कहा । जब उसने फालूदा, कà¥à¤²à¥à¤«à¥€ और उस पर थोड़ा सा रूह अफज़ा डाल कर पà¥à¤²à¥‡à¤Ÿ मेरी ओर बढ़ाई तो मैने कहा, “à¤à¤¾à¤ˆ, पहले रिकà¥à¤¶à¥‡ को विदा कर दूं, फिर आराम से खाउंगा! ये 500 पकड़ो और मà¥à¤à¥‡ 30 रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ दे दो।“ अपने बैग दà¥à¤•ान में ही छोड़ कर, खà¥à¤²à¥‡ पैसे लेकर मैं रिकà¥à¤¶à¥‡ तक आया, उसे विदा किया, वापिस कà¥à¤²à¥à¤«à¥€ खाने के लिये पहà¥à¤‚चा तो दà¥à¤•ानदार पूछने लगा कि कमरा चाहिये कà¥à¤¯à¤¾? कितने तक का चाहिये? मैं ससà¥à¤¤à¤¾ सा कमरा दिला देता हूं !â€Â मà¥à¤à¥‡ अंगूर फिलà¥à¤® की याद हो आई!â€Â मेरे पास इतने पैसे तो नहीं थे कि संजीव कà¥à¤®à¤¾à¤° की तरह मैं à¤à¥€ हर तरफ “गैंग†देखने लगूं, पर हां, कमीशन खोरी का डर अवशà¥à¤¯ था।
कà¥à¤²à¥à¤«à¥€ खा कर, दोनों बैग उठा कर मैं चला तो वह दà¥à¤•ानदार à¤à¥€ मेरे से दो कदम आगे – आगे मà¥à¤à¥‡ रासà¥à¤¤à¤¾ दिखाता हà¥à¤† बाज़ार सराय गà¥à¤°à¥ रामदास पर चल पड़ा! (बाज़ार का ये नाम है, ये बात मà¥à¤à¥‡ बाद में, होटल दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ दिये गये विज़िटिंग कारà¥à¤¡ से पता चली)। मà¥à¤à¥‡ उसका साथ-साथ जाना अचà¥à¤›à¤¾ तो नहीं लगा पर फिर लगा कि दिखा रहा है तो देख लेते हैं! मेरे साथ कोई जबरदसà¥à¤¤à¥€ तो कर नहीं सकता, अलà¥à¤Ÿà¥€à¤®à¥‡à¤Ÿà¤²à¥€ कमरा फाइनल तो मà¥à¤à¥‡ ही करना है। हम जिस होटल / गैसà¥à¤Ÿ हाउस में à¤à¥€ जाते, मैं मन ही मन यही कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾ करता रहा कि बताये जा रहे किराये में इस दà¥à¤•ानदार का कमीशन कितना होगा! दà¥à¤•ानदार के साथ à¤à¤• होटल और दो गैसà¥à¤Ÿ हाउस देख लेने के बाद मà¥à¤à¥‡ इतना à¤à¤°à¥‹à¤¸à¤¾ हो गया कि अब मैं अपने आप अपने मतलब की जगह ढूंढ़ सकता हूं और मà¥à¤à¥‡ इन सरदार जी की जरूरत नहीं है। अतः उनको हारà¥à¤¦à¤¿à¤• धनà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦ बोल कर विदा किया और फिर मैं कमरे की तलाश में आगे चल पड़ा । हर गली में गैसà¥à¤Ÿ हाउस और होटल थे, बस समसà¥à¤¯à¤¾ थी तो सिरà¥à¤« यही कि रात के गà¥à¤¯à¤¾à¤°à¤¹ बज रहे थे अतः लग रहा था कि जलà¥à¤¦à¥€ से जलà¥à¤¦à¥€ कोई जगह पकà¥à¤•ी कर लेनी चाहिये। वहीं à¤à¤• गली में होटल गोलà¥à¤¡à¤¨ हैरिटेज के नाम से à¤à¤• होटल मिला !
होटल गोलà¥à¤¡à¤¨ हैरिटेज के सौमà¥à¤¯ सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ के मैनेजर
उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कमरे दिखाये – 650 में बिना वातानà¥à¤•ूलन और 850 में वातानà¥à¤•ूलन सहित ! मौसम बहà¥à¤¤ खà¥à¤¶à¤¨à¥à¤®à¤¾ था, à¤.सी. की कतई कोई जरूरत अनà¥à¤à¤µ नहीं हो रही थी, फालतू पैसे खरà¥à¤š करने की इचà¥à¤›à¤¾ à¤à¥€ नहीं थी अतः 650 वाला कमरा ’पसनà¥à¤¦â€™ कर लिया जिसमें सारी चैनल सहित टी.वी., गीज़र व इंटरकॉम आदि सामानà¥à¤¯ सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ उपलबà¥à¤§ थीं। होटल रिसेपà¥à¤¶à¤¨ पर पà¥à¤°à¤µà¤¿à¤·à¥à¤Ÿà¤¿ करने के बाद मà¥à¤à¥‡ मेरे सामान सहित कमरे में पहà¥à¤‚चा दिया गया। मà¥à¤à¥‡ रातà¥à¤°à¤¿ में सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ मंदिर देखने और फोटो खींचने की बेचैनी थी सो फटाफट नहा धोकर कैमरा उठा कर नीचे आया और पूछा कि गेट कब तक खà¥à¤²à¤¾ है? बताया गया कि पूरी रात खà¥à¤²à¤¾ रहेगा, कà¤à¥€ à¤à¥€ आ सकते हैं ! उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने यह à¤à¥€ कहा कि आप इस छोटे से गेट से निकल जाइये तो सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ मंदिर सामने ही है। जूते – चपà¥à¤ªà¤² पहन कर जाने की à¤à¥€ जरूरत नहीं, चपà¥à¤ªà¤² यहीं छोड़ जाइये – “काहे को चपà¥à¤ªà¤² जमा कराना, टोकन लेना।“ मà¥à¤à¥‡ लगा कि ये होटल वाला सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ का बहà¥à¤¤ अचà¥à¤›à¤¾ है।
à¤à¤š.डी.à¤à¤«.सी. बैंक और à¤.टी.à¤à¤®. पर लगा हà¥à¤† नकà¥à¤¶à¤¾
हॉल बाज़ार की ओर से सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ मंदिर हेतॠपà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤°
रात के १२ बजे à¤à¥€ पंखों की सफाई के बहाने कार सेवा
जैसा कि दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ जानती ही है, सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ मंदिर के चार पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° हैं ! मैं हॉल बाज़ार वाली दिशा से पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ कर रहा था, जिसे घंटाघर वाली साइड à¤à¥€ कहा जाता है।  (पर घंटाघर तो विपरीत दिशा में à¤à¥€ बना हà¥à¤† है, फिर इसी को घंटाघर वाली साइड कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ कहते हैं?) मंदिर में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ करने से पूरà¥à¤µ मैने सिर ढकने के लिये 10 रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ में à¤à¤• à¤à¤—वा वसà¥à¤¤à¥à¤° à¤à¥€ खरीदा। बाद में मंदिर के पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° पर देखा कि पà¥à¤²à¤¾à¤¸à¥à¤Ÿà¤¿à¤• की à¤à¤• बड़ी सी बालà¥à¤Ÿà¥€ में सैंकड़ों वसà¥à¤¤à¥à¤° रखे हà¥à¤ हैं जिसमें से आप à¤à¥€ à¤à¤• वसà¥à¤¤à¥à¤° लेकर उसे अपने सिर पर बांध सकते हैं। वापिस जाते समय आप उसे वहीं बालà¥à¤Ÿà¥€ में छोड़ जाते हैं।  हाथ धोने के लिये खूब सारी टोंटियां और पैर धोने के लिये फरà¥à¤¶ में आठफà¥à¤Ÿ चौड़ा, छः इंच गहरा तालाब बनाया गया था ताकि आप टखनों तक à¤à¤°à¥‡ हà¥à¤ उस पानी में से होते हà¥à¤ मंदिर में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ करें। कई वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को मैने देखा कि उस पानी को उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने चरणामृत की तरह से पान à¤à¥€ किया। मैं à¤à¤—वान के चरण धोकर चरणामृत गृहण कर सकता हूं पर उस पानी को जिसमें न केवल मैने बलà¥à¤•ि और à¤à¥€ अनेकानेक शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤²à¥à¤“ं ने अपने पांव धोये हों, पीने को मेरा मन तैयार नहीं हà¥à¤†à¥¤Â खैर, उस डà¥à¤¯à¥‹à¤¢à¤¼à¥€ में से अनà¥à¤¦à¤°, à¤à¥€à¤² में हरमंदिर साहब का जगमगाता और à¤à¤¿à¤²à¤®à¤¿à¤²à¤¾à¤¤à¤¾ हà¥à¤† दृशà¥à¤¯ देख कर मैं चमतà¥à¤•ृत रह गया और चितà¥à¤°à¤–िंचित सा उसे ताकता रहा।   सीढ़ियां उतर कर परिकà¥à¤°à¤®à¤¾ पथ पर पहà¥à¤‚चा तो वहां अरà¥à¤¦à¥à¤§à¤°à¤¾à¤¤à¥à¤°à¤¿ के कारण बहà¥à¤¤ à¤à¥€à¤¡à¤¼ तो नहीं दिखाई दी परनà¥à¤¤à¥ फिर à¤à¥€ दो-तीन सौ लोग अवशà¥à¤¯ उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ थे। पता चला कि रातà¥à¤°à¤¿ 11.15 से सà¥à¤¬à¤¹ 3 बजे तक मंदिर के कपाट बनà¥à¤¦ रहते हैं। परिकà¥à¤°à¤®à¤¾ पथ के बरामदों में हज़ारों की संखà¥à¤¯à¤¾ में सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ – पà¥à¤°à¥à¤· और बचà¥à¤šà¥‡ फरà¥à¤¶ पर ही घोड़े बेच कर सोये हà¥à¤ थे।    अगर मेरे पास दो बैग न होते, जिनकी रकà¥à¤·à¤¾ करना मेरा परम करà¥à¤¤à¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ था तो मैं à¤à¥€ उन बरामदों में खà¥à¤¶à¥€ खà¥à¤¶à¥€ सोने के लिये ततà¥à¤ªà¤° था।
मà¥à¤à¥‡ वहां पर फोटो खींचते हà¥à¤ देख कर à¤à¤• सजà¥à¤œà¤¨ मेरे पास आये और अपना कैमरा मà¥à¤à¥‡ देकर बोले कि मैं à¤à¤• फोटो उनका à¤à¥€ खींच दूं ! उनकी पतà¥à¤¨à¥€ के साथ उनके कà¥à¤› चितà¥à¤° खींच कर मैने कहा कि अगर आपकी ई-मेल आई.डी. है तो à¤à¤• फोटो मैं अपने कैमरे से खींच सकता हूं जो शायद बेहतर आयेगा कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि मैं अपने कैमरे को जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ बेहतर ढंग से समà¤à¤¤à¤¾ हूं। उनका फोटो मैं उनको ई-मेल कर दूंगा। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने खà¥à¤¶à¥€-खà¥à¤¶à¥€ फोटो खिंचवाई और अपना विज़िटिंग कारà¥à¤¡ दिया । रात को दो बजे अपने कमरे में पहà¥à¤‚च कर मैने फोटो लैपटॉप में अंतरित कीं और उनकी फोटो उनको सपà¥à¤°à¥‡à¤® ई-मेल कर दी।
सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ मंदिर परिसर में लगà¤à¤— दो-ढाई घंटे परिकà¥à¤°à¤®à¤¾ पथ पर घूमते फिरते मैं अनिरà¥à¤µà¤šà¤¨à¥€à¤¯ सà¥à¤– का अनà¥à¤à¤µ करता रहा ! निसà¥à¤¸à¥€à¤® शांति, चिनà¥à¤¤à¤¾-विहीन मन, à¤à¤• अबूठसी पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¾!  हरमंदिर साहब में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ उस समय बनà¥à¤¦ हो चà¥à¤•ा था, अतः वहां परिकà¥à¤°à¤®à¤¾ पथ के छोरों पर बनी हà¥à¤ˆ छबील, à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• पेड़ “बेरी बाबा बà¥à¤¢à¥à¤¢à¤¾ साहिब†आदि के दरà¥à¤¶à¤¨ करता रहा, उन पर लिखे हà¥à¤ विवरण को पढ़ता रहा। बार – बार मैं कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾ लोक में विचरते हà¥à¤ कà¥à¤› सौ वरà¥à¤· पूरà¥à¤µ के काल-खंड में पहà¥à¤‚च जाता था और मेरे नेतà¥à¤°à¥‹à¤‚ के सामने बेरी के पेड़ के नीचे अपना आसन जमाये बैठे बाबा बà¥à¤¢à¥à¤¢à¤¾ सिंह साहिब आ जाते थे जिनके पास खà¥à¤¦à¤¾à¤ˆ के लिये फावड़े, तसले आदि रखे थे। वे उसी पेड़ की छाया में बैठे हà¥à¤ सरोवर की खà¥à¤¦à¤¾à¤ˆ और हरमंदिर साहब का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ कराया करते थे और मज़दूरों को हर रोज शाम को उनको à¤à¥à¤—तान किया करते थे। à¤à¤¸à¤¾ ही à¤à¤• दूसरा पवितà¥à¤° सà¥à¤¥à¤² – अड़सठतीरà¥à¤¥ – थड़ा साहिब वहां पर है जहां पर सनॠ1577 में गà¥à¤°à¥ रामदास जी ने अमृत सरोवर की खà¥à¤¦à¤¾à¤ˆ करवाई थी और सनॠ1588 में हरमंदिर साहब की नींव रखवाई गई थी!  इन पावन तीरà¥à¤¥à¥‹à¤‚ को अपनी आंखों से देख कर, सà¥à¤ªà¤°à¥à¤¶ कर शरीर में à¤à¤• सिहरन सी होती रही। लगता था कि मैं शायद यहां पहले à¤à¥€ कà¤à¥€ आया हूं जबकि निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ रूप से यह मेरी पà¥à¤°à¤¥à¤® अमृतसर यातà¥à¤°à¤¾ थी।
परिकà¥à¤°à¤®à¤¾ पथ के पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ तीन पवितà¥à¤° वृकà¥à¤·à¥‹à¤‚ में से à¤à¤• का वरà¥à¤£à¤¨
छबील पर चौबीसों घंटे सेवा चलती रहती है!
अरà¥à¤¦à¥à¤§à¤°à¤¾à¤¤à¥à¤°à¤¿ में जगमगाता हà¥à¤† अकाल तखà¥à¤¤ साहिब
सà¥à¤µà¤°à¥à¤£à¤¿à¤® आà¤à¤¾ बिखेरता हरमंदिर साहिब का नयनाà¤à¤¿à¤°à¤¾à¤® दृशà¥à¤¯
बरामदे में से हरमंदिर साहब का à¤à¤¿à¤²à¤®à¤¿à¤²à¤¾à¤¤à¤¾ सà¥à¤µà¤°à¥‚प
रातà¥à¤°à¤¿ १२ बजे दरà¥à¤¶à¤¨à¥€ डà¥à¤¯à¥‹à¤¢à¤¼à¥€ पर à¤à¥€à¤¡à¤¼ नहीं होती !
रात को १२ बजे कार सेवा –चांदी के छतà¥à¤° की पालिश
दरà¥à¤¶à¤¨à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की पंकà¥à¤¤à¤¿ में सà¥à¤¬à¤¹ लगने का विचार बना कर वापिस होटल के अपने कमरे में चला आया। सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ मंदिर में दो – à¤à¤• बातें जो मà¥à¤à¥‡ सबसे अधिक विशिषà¥à¤Ÿ लगीं । बावजूद इस तथà¥à¤¯ के कि मैं सिकà¥à¤– नहीं हूं, मà¥à¤à¥‡ कà¥à¤·à¤£ à¤à¤° को à¤à¥€ à¤à¤¸à¤¾ नहीं लगा कि मैं किसी अनà¥à¤¯ धरà¥à¤® के पूजा सà¥à¤¥à¤² पर आया हूं। वहां मौजूद à¤à¤• à¤à¥€ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ ने, यानि सेवादार ने मेरे पà¥à¤°à¤¤à¤¿ à¤à¤¸à¤¾ à¤à¤¾à¤µ नहीं रखा कि मैं उनका अपना आदमी नहीं हूं! सबने मà¥à¤à¥‡ नितानà¥à¤¤ सà¥à¤µà¤¾à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤• रूप में सà¥à¤µà¥€à¤•ार किया। दूसरी बात ये कि कैमरा लेकर घूमने और फोटो खींचने पर कहीं कोई पाबनà¥à¤¦à¥€ नहीं थी। (जैसा कि मà¥à¤à¥‡ अगले दिन सà¥à¤¬à¤¹ पता चला, सिरà¥à¤« हरमंदिर साहब के सà¥à¤µà¤°à¥à¤£à¤¿à¤® à¤à¤µà¤¨ के अंदर कैमरा पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— करना मना था। यहां तक कि, अगर गले में कैमरा लटका हà¥à¤† है तो à¤à¥€ वहां किसी को कोई दिकà¥à¤•त नहीं थी। ऊपर की मंजिल पर जाकर मैने वहां से अनà¥à¤¯ à¤à¤µà¤¨à¥‹à¤‚ के दृशà¥à¤¯ अपने कैमरे में कैद करने आरंठकिये तो à¤à¤• सजà¥à¤œà¤¨ ने बड़े समà¥à¤®à¤¾à¤¨ के साथ मà¥à¤à¥‡ इंगित किया कि मैं à¤à¤¸à¤¾ न करूं ! यह उस सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ से सरà¥à¤µà¤¥à¤¾ विपरीत था जो मà¥à¤à¥‡ मनसा देवी मंदिर, हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° में और à¤à¥€ न जाने किस – किस मंदिर में à¤à¥‡à¤²à¤¨à¥€ पड़ी है। मनसा देवी मंदिर में तो à¤à¤• वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ मà¥à¤à¤¸à¥‡ लड़ने को तैयार हो गया था और उस जमाने में मेरे कैमरे की फिलà¥à¤® बरबाद करने पर उतारू था। पतà¥à¤°à¤•ार होने का रौब ग़ालिब कर मैने उसे काबू किया था)।
शेष अगले अंक में …. सà¥à¤¬à¤¹ हरमंदिर साहिब के दरà¥à¤¶à¤¨, जलियांवाला बाग दरà¥à¤¶à¤¨ और शाम को वाघा बारà¥à¤¡à¤° !