कà¥à¤› वरà¥à¤· पहले की बात है, शाम को लगà¤à¤— छः बजे बैंक से लौटा तो घर में घà¥à¤¸à¤¤à¥‡ ही बातचीत कà¥à¤› इस ढंग से शà¥à¤°à¥ हà¥à¤ˆ –
शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¤à¥€ जी –  “बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ की à¤à¤• दिन के लिये हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° घूमने की इचà¥à¤›à¤¾ है।“
मैं – “कब ?â€
बड़ा बेटा – “आज ही चलें?â€Â शनिवार है, कल की छà¥à¤Ÿà¥à¤Ÿà¥€ है, कल शाम तक वापिस आ जायेंगे!â€
मैं – पर इतनी जलà¥à¤¦à¥€ सब कà¥à¤› कैसे होगा?â€
शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¤à¥€ जी – “अगर आपको चलने में कोई दिकà¥à¤•त नहीं है तो इंतज़ाम à¤à¥€ हो ही जायेगा। आपको तो कोई परेशानी नहीं है ना?â€
मैं – “पर वहां रात को ठहरेंगे कहां? शनिवार है, बहà¥à¤¤ à¤à¥€à¤¡à¤¼ होगी। रात को ठहरने की à¤à¥€ जगह नहीं मिलेगी।“
छोटा बेटा – “हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° में तो हज़ारों होटल, धरà¥à¤®à¤¶à¤¾à¤²à¤¾, आशà¥à¤°à¤® हैं, कहीं न कहीं जगह मिल ही जायेगी!â€
शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¤à¥€ जी – “बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ का बहà¥à¤¤ मन है तो बना लेते हैं पà¥à¤°à¥‹à¤—à¥à¤°à¤¾à¤® !â€
मैं – “देख लो, अगर आधा घंटे में निकल सकें तो ठीक है, वरना रात को निकलना ठीक नहीं रहेगा।“
बड़ा बेटा – “फिर मैं गाड़ी बाहर निकाल लूं?â€
मैं – “गाड़ी तो निकल जायेगी पर पहले जाने की तैयारी तो कराओ! अटैची – सूटकेस में सामान लगाना नहीं लगाना है कà¥à¤¯à¤¾?â€
छोटा बेटा – “हà¥à¤°à¥à¤°à¥‡ ! अटैची तो गाड़ी में पहले से ही रख दी है हमने !†आपकी ही इंतज़ार कर रहे थे!â€
मैं – “कà¥à¤¯à¤¾ मतलब ? बिना मà¥à¤à¤¸à¥‡ पूछे ही? अगर मैं मना कर देता तो?â€
शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¤à¥€ जी – “घूमने जाने के लिये आप मना कर दें ! हो ही नहीं सकता ! आधी रात को à¤à¥€ कहीं घूमने जाने को कह दूं तो नींद में उठकर ही चल दोगे!â€Â बस, इसी विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ से हमने सब सामान गाड़ी में पहले से ही रख रखा है।  चलो, उठो ! अब मà¥à¤‚ह फाड़े हमें कà¥à¤¯à¤¾ ताक रहे हो? कà¥à¤› चाय-कॉफी चाहिये तो दे देंगे, वरना गाड़ी बाहर निकालो और चलो !â€Â इतना कह कर तीनों à¤à¤• दूसरे को देख कर अरà¥à¤¥à¤ªà¥‚रà¥à¤£ ढंग से मà¥à¤¸à¥à¤•à¥à¤°à¤¾à¤¯à¥‡ और फिर खीसें निपोर दीं ! मà¥à¤à¥‡ लगा कि मेरा परिवार मेरी नस-नस से वाकिफ़ है।
तो साब! à¤à¤¸à¥‡ बना हमारा हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° का पà¥à¤°à¥‹à¤—à¥à¤°à¤¾à¤® जिसमें मेरा कतई कोई योगदान नहीं था। घर के ताले – कà¥à¤‚डे बनà¥à¤¦ कर के हम चारों अपनी बà¥à¤¢à¤¼à¤¿à¤¯à¤¾ कार में बैठे, रासà¥à¤¤à¥‡ में सबसे पहले पंपे पर गाड़ी रोकी, पांच सौ रà¥à¤ªà¤²à¥à¤²à¥€ का पैटà¥à¤°à¥‹à¤² गाड़ी को पिलाया, गाड़ी में फूंक à¤à¤°à¥€Â (मतलब हवा चैक कराई) और हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° की दिशा में चल पड़े! मारà¥à¤¤à¤¿ कार में और चाहे कितनी à¤à¥€ बà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤¯à¤¾à¤‚ हों, पर à¤à¤• अचà¥à¤›à¥€ बात है! हवा-पानी-पैटà¥à¤°à¥‹à¤² चैक करो और चल पड़ो ! गाड़ी रासà¥à¤¤à¥‡ में दगा नहीं देती !
चल तो दिये पर कहां ठहरेंगे, कà¥à¤› ठिकाना नहीं ! गरà¥à¤®à¥€ के दिन थे, शनिवार था – à¤à¤¸à¥‡ में हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° में बहà¥à¤¤ अधिक à¤à¥€à¤¡à¤¼ होती है। नेहा इतनी impulsive कà¤à¥€ नहीं होती कि बिना सोचे – विचारे यूं ही घूमने चल पड़े पर बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ की इचà¥à¤›à¤¾ के आगे वह à¤à¥€ नत-मसà¥à¤¤à¤• थी! मन में यह बात à¤à¥€ थी कि अगर हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° में कोई à¤à¥€ सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤œà¤¨à¤• जगह ठहरने के लिये नहीं मिली तो किसी न किसी रिशà¥à¤¤à¥‡à¤¦à¤¾à¤° के घर जाकर पसर जायेंगे! “आपकी बड़ी याद आ रही थी, कल रात आपको सपने में देखा, तब से बड़ी चिनà¥à¤¤à¤¾ सी हो रही थी ! सोचा, मिल कर आना चाहिये!† अपनी पà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥€ बड़ी बहना को छोटी बहिन इतना कह दे तो परà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ है, फिर आवाà¤à¤—त में कमी हो ही नहीं सकती!
कार डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µ करते हà¥à¤ मà¥à¤à¥‡ अकà¥à¤¸à¤° à¤à¤¸à¥‡ लोगों पर कोफà¥à¤¤ होती है जो टà¥à¤°à¥ˆà¤«à¤¿à¤• सैंस का परिचय नहीं देते। मैं यह कह कर कि “इन लोगों को तो गोली मार देनी चाहिये†अपना गà¥à¤¸à¥à¤¸à¤¾ अà¤à¤¿à¤µà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤ कर लिया करता हूं! बचà¥à¤šà¥‡ मेरी इस आदत से परिचित हैं और उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अब इसे à¤à¤• खेल का रूप दे दिया है। जब à¤à¥€ सड़क पर कà¥à¤› गलत होता दिखाई देता है तो मेरे कà¥à¤› कहने से पहले ही तीनों में से कोई न कोई बोल देता है, “आप शांति से डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µ करते रहो! गोली तो इसे हम मार देंगे।†मà¥à¤à¥‡ à¤à¥€ हंसी आ जाती है और गà¥à¤¸à¥à¤¸à¤¾ काफूर हो जाता है।
देहरादून/रà¥à¤¡à¤¼à¤•ी/देवबनà¥à¤¦ की ओर से सहारनपà¥à¤° आते समय जब सहारनपà¥à¤° ४ किमी रह जाता है तो “राकेश कैमिकलà¥à¤¸ मोड़†नाम से à¤à¤• अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¤¼à¥€ के वाई “Y†आकार का मोड़ आता है। बाईं ओर वाली मà¥à¤–à¥à¤¯ सड़क देहरादून चौक और घंटाघर होते हà¥à¤ बस अडà¥à¤¡à¥‡ चली जाती है। दाईं ओर वाली सड़क इस गरीब घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ के घर तक आती है इस लिये सà¥à¤µà¤¾à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤•तः, इसे जनता रोड कहते हैं। “राकेश कैमिकलà¥à¤¸â€ नामकरण के पीछे कोई पà¥à¤°à¤¾à¤—ैतिहासिक यà¥à¤— से चली आ रही किंवदंती हो, à¤à¤¸à¤¾ नहीं है। वहां सचमà¥à¤š में ही राकेश कैमिकलà¥à¤¸ नाम की à¤à¤• फैकà¥à¤Ÿà¤°à¥€ है जिसकी ऊंची – ऊंची चिमनियां काला धà¥à¤†à¤‚ उगलती रहती हैं। इस फैकà¥à¤Ÿà¤°à¥€ के पास ही अब टà¥à¤°à¤¾à¤‚सपोरà¥à¤Ÿ नगर बनाया गया है, जिसे बसाने के लिये सहारनपà¥à¤° विकास पà¥à¤°à¤¾à¤§à¤¿à¤•रण को नाकों चने चबाने पड़ रहे हैं कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि अà¤à¥€ सारे टà¥à¤°à¤¾à¤‚सपोरà¥à¤Ÿà¤° शहर के बीच में गलियों में हैं और शहर से चार किमी दूर शराफत से आने को तैयार नहीं हैं और पà¥à¤°à¤¶à¤¾à¤¸à¤¨ उंगली टेढ़ी करना नहीं चाह रहा है। कà¥à¤² मिला कर तà¥à¤°à¥‡à¤¤à¤¾ यà¥à¤— का हाल दोबारा देखने में आ रहा है।
विनय न मानत जलधि जड़, गये तीन दिन बीति !
बोले राम सकोप तब, à¤à¤¯ बिन होहिं न पà¥à¤°à¥€à¤¤à¤¿ ॥
पà¥à¤°à¤à¥ शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® तीन दिन तक समà¥à¤¦à¥à¤° देवता से विनती करते रहे थे कि à¤à¤¾à¤ˆà¤¸à¤¾à¤¬, हमारी सेना को जाने दो, बहà¥à¤¤ जरूरी काम है, आपकी à¤à¤¾à¤à¥€ सीता वहां लंका में हमारी पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•à¥à¤·à¤¾ कर रही हैं और १ महीने का अलà¥à¤Ÿà¥€à¤®à¥‡à¤Ÿà¤® दिये हà¥à¤ बैठी हैं। पर समà¥à¤¦à¥à¤° अपने आप को बड़ा तीसमार खां समà¤à¤¤à¥‡ हà¥à¤ अकड़े बैठा था।  परनà¥à¤¤à¥ लाल-लाल आंखें करके जब शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® ने धनà¥à¤· की पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¤‚चा पर शर संधान किया तो समà¥à¤¦à¥à¤° à¤à¤¾à¤ˆà¤¸à¤¾à¤¬ को समठआया कि गलत फंस गये! ये तो मामला उलटा पड़ गया!  तà¥à¤°à¤¨à¥à¤¤ à¤à¤—वान जी को “वेरी वेरी सॉरी†बोला, आवाà¤à¤—त की, रासà¥à¤¤à¤¾ दिया तब जाकर मामला सà¥à¤²à¤Ÿà¤¾à¥¤Â कà¥à¤› – कà¥à¤› à¤à¤¸à¤¾ ही सहारनपà¥à¤° में à¤à¥€ हो रहा है। सहारनपà¥à¤° के टà¥à¤°à¤¾à¤‚सपोरà¥à¤Ÿà¤°à¥‹à¤‚ को सà¥à¤§à¤¾à¤°à¤¨à¥‡ में दो मिनट लगेंगे परनà¥à¤¤à¥ हमारा शासन-पà¥à¤°à¤¶à¤¾à¤¸à¤¨ पà¥à¤°à¤à¥ शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® के अनà¥à¤à¤µà¥‹à¤‚ से शिकà¥à¤·à¤¾ à¤à¥€ नहीं ले रहा है। ले à¤à¥€ à¤à¤²à¤¾ कैसे? हमारी सरकार तो सà¥à¤ªà¥à¤°à¥€à¤® कोरà¥à¤Ÿ में हलफनामा दिये बैठी है कि à¤à¤—वान शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® कà¤à¥€ हà¥à¤ ही नहीं, यह तो कालà¥à¤ªà¤¨à¤¿à¤• कहानी है!
मेरे साथ में यही समसà¥à¤¯à¤¾ है, बात की रौ में बहता-बहता मैं न जाने कहां से कहां पहà¥à¤‚च जाता हूं। अचà¥à¤›à¤¾ à¤à¤²à¤¾ अपनी मारà¥à¤¤à¤¿ ज़ैन में बीवी – बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ के साथ बैठा हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° जा रहा था पर बीच में à¤à¤• मिनट को ही सही, शà¥à¤°à¥€ रामेशà¥à¤µà¤°à¤®à¥â€Œ à¤à¥€ हो आया। चलो, खैर!  हम इसी जनता रोड को पकड़ कर जब देहरादून रोड पर आकर निकले तो सहारनपà¥à¤° से चार किमी बाहर आ चà¥à¤•े थे।
ये सफ़र है या suffer ?
सहारनपà¥à¤° से हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° जाना हो तो रà¥à¤¡à¤¼à¤•ी होते हà¥à¤ हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° जाना होता है। इसके लिये दो विकलà¥à¤ª हैं। या तो हम देहरादून रोड पर लगà¤à¤— 15 किमी चल कर गागलहेड़ी-à¤à¤—वानपà¥à¤° संपरà¥à¤• मारà¥à¤— पकड़ कर रà¥à¤¡à¤¼à¤•ी जाते हैं या फिर देहरादून रोड पर ही 24 किमी चल कर छà¥à¤Ÿà¤®à¤²à¤ªà¥à¤° पहà¥à¤‚चते हैं और वहां से दाईं ओर रà¥à¤¡à¤¼à¤•ी के लिये घूमते हैं।
यू.पी. रोडवेज़ (जिसका नाम à¤à¤²à¥‡ ही लगà¤à¤— 40 साल पहले उतà¥à¤¤à¤° पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ राजà¥à¤¯ सड़क परिवहन निगम कर दिया गया था पर आज à¤à¥€ रोडवेज़ नाम से ही जानी जाती है) अपनी बसें छà¥à¤Ÿà¤®à¤²à¤ªà¥à¤° से होते हà¥à¤ ही रà¥à¤¡à¤¼à¤•ी – हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° ले कर जाती है।  गागलहेड़ी – à¤à¤—वानपà¥à¤° संपरà¥à¤• मारà¥à¤— का सà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¥à¥à¤¯ अधिकांशतः खराब ही रहता है। सच कहें तो बेचारा मर-मर कर जीता है।
इस सड़क पर à¤à¤• किलोमीटर चलने पर बाईं ओर लोक निरà¥à¤®à¤¾à¤£ विà¤à¤¾à¤— का à¤à¤• निरीकà¥à¤·à¤£ à¤à¤µà¤¨ है। अगर इस १ किलोमीटर तक नई सड़क बनी हà¥à¤ˆ हो तो इसका अरà¥à¤¥ है कि अà¤à¥€ दस-पांच दिन पहले मà¥à¤–à¥à¤¯à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ का आगमन हà¥à¤† होगा जिसके कारण लोक निरà¥à¤®à¤¾à¤£ विà¤à¤¾à¤— को यह à¤à¤• किमी की सड़क बनाने को मजबूर होना पड़ा । पर, चूंकि मà¥à¤–à¥à¤¯à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ को तो कà¤à¥€ – कà¤à¥€ ही यहां आना होता है अतः सड़क सिरà¥à¤« à¤à¤• सपà¥à¤¤à¤¾à¤¹ à¤à¤° की आयॠवाली बनाई जाती है। सड़क पर इतà¥à¤¤à¤¾ महंगा तारकोल डाल कर जनता के खून पसीने की कमाई को बरबाद कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ किया जाये?
अतः पी.डबà¥à¤²à¥à¤¯à¥‚.डी. के देशà¤à¤•à¥à¤¤ इंजीनियरों ने ठेकेदारों के साथ संयà¥à¤•à¥à¤¤ उपकà¥à¤°à¤® में à¤à¤• नई तकनीक ईजाद कर ली है। बजरी और रेत बिछाने से ही दो-चार दिन का काम चल जाता है, तारकोल से सड़क का मà¥à¤‚ह काला करने की जरूरत नहीं होती।  बस, थोड़ा सा बाद में कोलतार का सà¥à¤ªà¥à¤°à¥‡ कर देते हैं ताकि वाहन चालकों और यातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को नई सड़क की खà¥à¤¶à¤¬à¥‚ आती रहे।
इस निरीकà¥à¤·à¤£ à¤à¤µà¤¨ को पार कर लेने के बाद में तो सड़क बनाने की इस औपचारिकता की à¤à¥€ आवशà¥à¤¯à¤•ता नहीं रहती है। अतः इससे आगे, जिन लाखों गढà¥à¤¢à¥‹à¤‚ को जनता सड़क के नाम से बà¥à¤²à¤¾à¤¤à¥€ है, वह वासà¥à¤¤à¤µ में कà¥à¤¯à¤¾ हैं, इस विषय पर अà¤à¥€ विचार-विमरà¥à¤¶ चल रहा है। गागलहेड़ी – à¤à¤—वानपà¥à¤° मारà¥à¤— के मृतà¥à¤¯à¥ शैया पर पड़े होने के बावजूद कà¥à¤› लोगों को यह गलतफहमी रहती है कि इस सड़क का उपयोग कर के वह चौदह किलोमीटर का रासà¥à¤¤à¤¾ बचा लेंगे यानि, à¤à¤• लीटर बेशकीमती पैटà¥à¤°à¥‹à¤²!  जब हमने गागलहेड़ी पहà¥à¤‚च कर à¤à¤• वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ से राय ली कि इस सड़क का कà¥à¤¯à¤¾ हाल है तो उसने ठीक à¤à¤¸à¥‡ अंदाज़ में मà¥à¤‚ह लटकाया जैसे असà¥à¤ªà¤¤à¤¾à¤² में आई.सी.यू. के बाहर मरीज़ के घरवाले मà¥à¤‚ह लटकाये बैठे रहते हैं। वह वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ बोला, “जी, बस, सांस चल रही है!â€
हमें यही उचित समठआया कि हम छà¥à¤Ÿà¤®à¤²à¤ªà¥à¤° वाला मारà¥à¤— पकड़ें à¤à¤²à¥‡ ही वह १४ किमी लंबा कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ न हो! पर छà¥à¤Ÿà¤®à¤²à¤ªà¥à¤° का मारà¥à¤— à¤à¥€ à¤à¤¸à¤¾ मिला कि २४ किमी की इस यातà¥à¤°à¤¾ में हमारी कार के कराहने की आवाज़ें आने लगीं – “इस बà¥à¤¢à¤¼à¤¾à¤ªà¥‡ में मेरी à¤à¤¸à¥€ दà¥à¤°à¥à¤—ति कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ कर रहे हो?â€Â पर à¤à¤• बार छà¥à¤Ÿà¤®à¤²à¤ªà¥à¤° पहà¥à¤‚चने के बाद वहां से रà¥à¤¡à¤¼à¤•ी और फिर रà¥à¤¡à¤¼à¤•ी से हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° तक का मारà¥à¤— ठीक – ठाक था। रà¥à¤¡à¤¼à¤•ी से हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° मारà¥à¤— (यानि, नई दिलà¥à¤²à¥€ – हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° राजमारà¥à¤—) पर तो नेताओं का विशेष तौर पर आना जाना लगा रहता है अतः ये सड़क तो बिलà¥à¤•à¥à¤² à¤à¤¸à¥€ है जैसे हेमामालिनी के गाल (बकौल, लालू पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ यादव) !
हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° तो आ गया पर रà¥à¤•ा कहां जाये?
रासà¥à¤¤à¥‡ में बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ ने कà¥à¤› खाने – पीने की बात की तो उनको यह कह कर चà¥à¤ª कर दिया गया कि पहले हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° पहà¥à¤‚च कर ठहरने की जगह की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ हो जाये, उसके बाद खाने-पीने की सोचेंगे! बस, इसी विचार से हम गाड़ी à¤à¤—ाये लिये चले गये और हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° में सबसे पहले माहेशà¥à¤µà¤°à¥€ धरà¥à¤®à¤¶à¤¾à¤²à¤¾ पर गाड़ी रोकी कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि हमारे à¤à¤• पड़ोसी ने, जो अपने नाम के आगे माहेशà¥à¤µà¤°à¥€ लिखते हैं, ने मेरी पतà¥à¤¨à¥€ को विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ दिलाया था कि माहेशà¥à¤µà¤°à¥€ धरà¥à¤®à¤¶à¤¾à¤²à¤¾ बहà¥à¤¤ बड़ी है, बहà¥à¤¤ साफ-सà¥à¤¥à¤°à¥€ है, बड़ा अचà¥à¤›à¤¾ इंतज़ाम है।
धरà¥à¤®à¤¶à¤¾à¤²à¤¾ में इतना सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ है कि कà¤à¥€ धरà¥à¤®à¤¶à¤¾à¤²à¤¾ पूरी तरह से à¤à¤°à¤¤à¥€ ही नहीं।“  अगर हम तीरà¥à¤¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤°à¥€ की à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ से जाते तो हमें इस धरà¥à¤®à¤¶à¤¾à¤²à¤¾ के बाद आगे कà¥à¤› और देखने की आवशà¥à¤¯à¤•ता अनà¥à¤à¤µ नहीं होती पर हम तो टूरिसà¥à¤Ÿ वाली मानसिकता लिये हà¥à¤ थे अतः सोचा, और आगे देखते हैं। हरिदà¥à¤µà¤¾à¤°-ऋषिकेश मारà¥à¤— पर à¤à¤• होटल पर रà¥à¤•े पर दड़बे जैसे कमरे के वह इतने पैसे मांग रहा था कि मेरा मन किया कि इसे à¤à¥€ “गोली मार दी जायेâ€!
वहां से आगे बढ़े तो à¤à¥€à¤®à¤—ोड़ा कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में कà¥à¤› बहà¥à¤¤ अचà¥à¤›à¥‡ – अचà¥à¤›à¥‡ आशà¥à¤°à¤® दिखाई दिये। शà¥à¤°à¥€ गंगा सà¥à¤µà¤°à¥‚प आशà¥à¤°à¤® के मà¥à¤–à¥à¤¯à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤° पर  पहà¥à¤‚चे तो सामने पà¥à¤°à¤¾à¤‚गण में बहà¥à¤¤ à¤à¤µà¥à¤¯ मंदिर दिखाई दिया। कार बाहर ही रोक कर मैं पतà¥à¤¨à¥€ को लेकर अनà¥à¤¦à¤° रिसेपà¥à¤¶à¤¨ पर पहà¥à¤‚चा और पूछा कि कमरा मिल सकता है कà¥à¤¯à¤¾? मैनेजर महोदय ने पूछा कि हम कितने लोग हैं? मैने बताया कि हम दो – हमारे दो! बोले, family suite ले लीजिये। किराया 320 रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ !
उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने à¤à¤• करà¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¥€ को चाबी देकर कहा कि इनको कमरे दिखा दो। इस suite को हम देखने गये तो पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° से घà¥à¤¸à¤¤à¥‡ ही à¤à¤• बरामदा जिसमें दाईं ओर à¤à¤• रसोई, बाईं दिशा में à¤à¤• बाथरूम और à¤à¤• टॉयलेट, सामने अगल- बगल में दो बड़े-बड़े कमरे! ये कमरे वातानà¥à¤•ूलित नहीं थे पर हमें वातानà¥à¤•ूलित कमरों में रà¥à¤•ने का न तो कोई कà¥à¤°à¥‡à¤œà¤¼ था और न ही उस आशà¥à¤°à¤® में रात को आठबजे गरà¥à¤®à¥€ का आà¤à¤¾à¤¸ हो रहा था। बस, फौरन से पेशà¥à¤¤à¤° हमने पैसे जमा किये, अपनी आई.डी. वगैरा दिखाई और अपने suite की चाबी ले ली! मनपसनà¥à¤¦ कमरे और वह à¤à¥€ इतने ससà¥à¤¤à¥‡ !
अब तो हम शेर हो गये थे। बस, बाहर सड़क पर खड़ी हà¥à¤ˆ अपनी कार में से अटैची – बैग आदि निकाले, बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ को साथ लिया और अपना सामान कमरों में रख लिया। वापिस बाहर रिसेपà¥à¤¶à¤¨ पर आये और पूछा कि खाना खाने जा रहे हैं, कितने बजे तक लौट सकते हैं? हमें बताया गया कि ११ बजे मà¥à¤–à¥à¤¯ दà¥à¤µà¤¾à¤° बनà¥à¤¦ हो जायेगा उसके बाद कार अनà¥à¤¦à¤° नहीं आ सकेगी। हां, थोड़ी – बहà¥à¤¤ देर हो जाये तो छोटा दरवाज़ा खोल कर अनà¥à¤¦à¤° आया जा सकता है।
हम फटाफट कार में बैठे और लगà¤à¤— पांच किमी की यातà¥à¤°à¤¾ करके पà¥à¤¨à¤ƒ हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° के मà¥à¤–à¥à¤¯ बाज़ार में पहà¥à¤‚चे और अपर बाज़ार में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ à¤à¤• à¤à¥‹à¤œà¤¨à¤¾à¤²à¤¯ में à¤à¤• मेज घेर ली। à¤à¥‹à¤œà¤¨à¤¾à¤²à¤¯ का नाम याद नहीं आ रहा परनà¥à¤¤à¥ वह मनसा देवी रोप वे के आसपास à¤à¤• सà¥à¤µà¥€à¤Ÿà¤¶à¥‰à¤ª-कम-रेसà¥à¤Ÿà¥‹à¤°à¥‡à¤‚ट था।  खा – पी कर घड़ी देखी, साढ़े नौ बजने को थे। सोचा कि आधा घंटा हर की पैड़ी पर चल कर बैठते हैं परनà¥à¤¤à¥ कार को हर की पैड़ी की ओर जाने की पà¥à¤²à¤¿à¤¸ वालों ने अनà¥à¤®à¤¤à¤¿ नहीं दी।
अतः हम घूम कर पà¥à¤¨à¤ƒ बाईपास मारà¥à¤— पर गये और पारà¥à¤•िंग में गाड़ी खड़ी कर पैदल पà¥à¤² से हर की पैड़ी के सामने वाले घाट पर पहà¥à¤‚च गये। हर की पैड़ी का मोह तà¥à¤¯à¤¾à¤—ने की पà¥à¤°à¤®à¥à¤– वज़ह यही थी कि हम किसी à¤à¥€ पà¥à¤°à¤•ार ११ बजे से पहले – पहले अपने आशà¥à¤°à¤® में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ करना चाहते थे।  हर की पैड़ी जाने का अरà¥à¤¥ होता, à¤à¤• पà¥à¤² और पार करना, जूतों को सà¥à¤Ÿà¥ˆà¤‚ड पर जमा करवाना, हाथ – धोना और तब हर की पैड़ी पर पहà¥à¤‚चना। गरà¥à¤®à¥€ में सà¥à¤¨à¤¾à¤¨à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की उस समय à¤à¥€ हर की पैड़ी पर à¤à¥€à¤¡à¤¼ थी, फरà¥à¤¶ गीला था अतः सामने वाले दà¥à¤µà¥€à¤ª पर सूखे फरà¥à¤¶ पर बैठकर अपने पांव पानी में डाल लिये और उस सà¥à¤¨à¤¿à¤—à¥à¤§ जलवायॠका मज़ा लेते रहे।
मैं जब à¤à¥€ हर की पैड़ी पर जाता हूं, वरà¥à¤· 1978 की à¤à¤• घटना याद आती है। आज तक à¤à¥€ इस घटना ने मेरी सà¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿ का पीछा नहीं छोड़ा, उसकी वज़ह यही है कि मैं उस दिन मरते – मरते बचा था। वासà¥à¤¤à¤µ में हम विदà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का à¤à¤• गà¥à¤°à¥à¤ª à¤à¤• कैंप के लिये हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° आया हà¥à¤† था। हर रोज़ सà¥à¤¬à¤¹-शाम हम हर की पैड़ी पर आते थे। जिन साथियों को तैरना आता था, उनसे तैरना à¤à¥€ सीखना शà¥à¤°à¥ किया। दो ही दिनों में मà¥à¤à¥‡ ये गलतफहमी हो गई थी कि मà¥à¤à¥‡ अब तैरना आगया है।
हर की पैड़ी पर, महिला सà¥à¤¨à¤¾à¤¨à¤¾à¤—ार के ठीक ऊपर टापू को जोड़ने वाला à¤à¤• सदियों पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¤¾ पà¥à¤² है, उसके दाईं ओर हम नदी में छलांग लगाते और पानी की धारा के साथ-साथ पà¥à¤² के नीचे से तैरते हà¥à¤ पà¥à¤² के बाईं ओर आते और बाहर निकल आते थे। पर à¤à¤• बार जब तैरते – तैरते मैं बाईं ओर आया और नीचे पांव टिकाना चाहा पर नदी की तलहटी नहीं मिली जहां खड़ा हो सकूं। सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ ही था कि मैं तट से थोड़ा जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ ही दूर हो गया था।
पानी का बहाव बहà¥à¤¤ तीवà¥à¤° था और मैं अनचाहे ही आगे की ओर बढ़ता जा रहा था। मेरे साथियों को यह आà¤à¤¾à¤¸ नहीं हà¥à¤† कि मैं किसी संकट में हूं और मैं घबराहट में ’बचाओ – बचाओ’ की आवाज़ à¤à¥€ नहीं निकाल पा रहा था। उन कà¥à¤·à¤£à¥‹à¤‚ में, जीवन कितना कà¥à¤·à¤£à¤à¤‚गà¥à¤° है, इसका अहसास मà¥à¤à¥‡ हà¥à¤†à¥¤Â मà¥à¤à¥‡ लगा कि यदि मैं इसी पà¥à¤°à¤•ार आगे बढ़ता रहा तो जल का पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¹ और तेज होता जायेगा और मà¥à¤à¥‡ बचाने वाला कोई नहीं होगा। à¤à¤¸à¥‡ में मैं गोल मंदिर की ओर बढ़ने का पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ करूं तो शायद जान बच जाये। उन मंदिरों की ओर जल का पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¹ कम होता है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि मंदिर पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¹ में बाधा उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ करते हैं।
बस, उन दो दिनों में जितना à¤à¥€ तैरना सीख पाया था, संकट की उस घड़ी में उस समसà¥à¤¤ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ को उपयोग में लाते हà¥à¤ मैं हाथ-पैर मारते हà¥à¤ टापू की ओर से गोल मंदिर यानि, हर की पैड़ी की ओर बढ़ता रहा और जब गोल मंदिर की बिलà¥à¤•à¥à¤² बगल में पहà¥à¤‚च कर पानी में सीधा खड़ा हà¥à¤† तो कà¥à¤› लोगों को अपनी ओर अजीब सी निगाहों से ताकता हà¥à¤† पाया। शायद उन लोगों को मेरे चेहरे पर मौत साफ-साफ लिखी हà¥à¤ˆ दिखाई दे रही होगी। असà¥à¤¤à¥ !
बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ का मन पानी में से बाहर पैर निकालने का नहीं हो रहा था। उनकी ममà¥à¤®à¥€ ने उनको सिंडà¥à¤°à¥ˆà¤²à¤¾ वाली कहानी याद दिलाई कि जिस पà¥à¤°à¤•ार घड़ी का कांटा १२ पर आते ही रथ, घोड़े, कोचवान और कीमती वसà¥à¤¤à¥à¤° गायब हो गये थे वैसे ही हमारे आशà¥à¤°à¤® का दरवाज़ा à¤à¥€ ११ बजते ही बंद हो जायेगा।
पारà¥à¤•िंग से गाड़ी लेकर हम ११ बजे से पांच मिनट पहले ही आशà¥à¤°à¤® के मà¥à¤–à¥à¤¯ दà¥à¤µà¤¾à¤° में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ कर गये तो लगा कि मैदान मार लिया। पर, अनà¥à¤¦à¤° उस विशालकाय पà¥à¤°à¤¾à¤‚गण में कारों की गिनती करते – करते हमें गश आ गया। कहीं पारà¥à¤•िंग की जगह शेष ही नहीं थी। अंत में à¤à¤• बहà¥à¤¤ अटपटी सी जगह पर गाड़ी खड़ी करनी पड़ी जहां हमारी गाड़ी खड़ी होने के कारण कम से कम बीस कारों का रासà¥à¤¤à¤¾ रà¥à¤• गया था और वह आशà¥à¤°à¤® के मà¥à¤–à¥à¤¯ दà¥à¤µà¤¾à¤° तक नहीं जा सकती थीं। मैने à¤à¤• कागज़ पर बहà¥à¤¤ मोटे – मोटे अकà¥à¤·à¤°à¥‹à¤‚ में अपने suite का कà¥à¤°à¤®à¤¾à¤‚क लिखा और उस कागज़ को अपनी कार के शीशे पर वाइपर से दबा दिया और à¤à¤—वान का नाम लेकर अपने कमरों में आ गये।
रात बिताई सोय के, दिवस बितायो घूम
थकान के कारण हम कब सो गये, कà¥à¤› पता नहीं चला। सà¥à¤¬à¤¹ ४ बजे के करीब हमारे कमरे का दà¥à¤µà¤¾à¤° खटखटाया गया ।  बाहर निकल कर देखा तो कोई सजà¥à¤œà¤¨ और सजनी खड़े थे और चाहते थे कि हम अपनी कार हटा लें ताकि वह अपनी इनोवा निकाल सकें। वह हमसे कतई नाराज़ नहीं लगे बलà¥à¤•ि हमारी इस समà¤à¤¦à¤¾à¤°à¥€ पर फिदा थे कि हमने अपने कमरे का नंबर कार पर लिख छोड़ा था।
अगर हम à¤à¤¸à¤¾ न करते तो वह निशà¥à¤šà¤¯ ही अपने सिर के बाल, और शायद हमारे à¤à¥€ नोंच लेते!  मà¥à¤à¥‡ अब यही तरीका समठआया कि कार को बाहर सड़क पर ही खड़ी कर दिया जाये, हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° वालों के हिसाब से तो सà¥à¤¬à¤¹ ४ बजे अचà¥à¤›à¥€ à¤à¤²à¥€ सà¥à¤¬à¤¹ हो ही चà¥à¤•ी थी। कार मà¥à¤–à¥à¤¯ दà¥à¤µà¤¾à¤° से बाहर निकाली तो न जाने कितने à¤à¤—वा वसà¥à¤¤à¥à¤°à¤§à¤¾à¤°à¥€, नागा साधॠलकड़ी की खड़ाऊं पर खड़ताल करते हà¥à¤ गंगा सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ के लिये जाते हà¥à¤ दिखाई दिये।
अनेकानेक महिलाà¤à¤‚ à¤à¥€ गंगा घाट की ओर जाती मिलीं !  वापस कमरे पर आकर मà¥à¤à¥‡ दोबारा सोने का मन नहीं हà¥à¤† और मैं आशà¥à¤°à¤® की शोà¤à¤¾ निहारता हà¥à¤† इधर-उधर घूमता रहा। पांच बज गये तो वापस आकर तीनों को जगाया और नितà¥à¤¯ करà¥à¤® से निवृतà¥à¤¤ होकर जलà¥à¤¦à¥€ से चंडी देवी यातà¥à¤°à¤¾ के लिये निकलने को कहा। घूमने के शौक में बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ ने आनाकानी नहीं की और फटाफट तैयार हो गये। हम लोग सà¥à¤¬à¤¹ छः बजे अपनी कार में बैठचà¥à¤•े थे।
बाहर मà¥à¤–à¥à¤¯ दà¥à¤µà¤¾à¤° के पास ही चाय की कà¥à¤› दà¥à¤•ानें देख कर पतà¥à¤¨à¥€ का मन डोल गया। बोलीं कि à¤à¤• कप चाय सà¥à¤¡à¤¼à¤• ली जाये तो कà¥à¤› सà¥à¤«à¥‚रà¥à¤¤à¤¿ आये।  मैं चाय को मना कर देता तो चंडी देवी के दरà¥à¤¶à¤¨ वहीं अपने सामने ही हो जाते, पहाड़ पर चढ़ने की आवशà¥à¤¯à¤•ता ही नहीं पड़ती अतः खोखे वाले से कहा, “à¤à¤¾à¤ˆ, à¤à¤• सà¥à¤ªà¥‡à¤¶à¤² चाय बना दो – दूध कम, चीनी कम, पतà¥à¤¤à¥€ जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾! और हां, अपने à¤à¤—ौने में जो चाय पतà¥à¤¤à¥€ पड़ी है, उसे पà¥à¤²à¥€à¤œà¤¼ फेंक दो !â€
रोप-वे बनà¥à¤¦, अतः पैदल चढ़ाई
पतà¥à¤¨à¥€ को चाय पिला कर हम चंडी देवी यातà¥à¤°à¤¾ पर निकल पड़े। इससे पूरà¥à¤µ मैं चंडी देवी दरà¥à¤¶à¤¨ हेतॠदसियों बार जा चà¥à¤•ा था पर यह कई वरà¥à¤· पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ बात थी। उन दिनों चंडीदेवी के दरà¥à¤¶à¤¨à¤¾à¤°à¥à¤¥ रोपवे की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ नहीं थी। पैदल ही, ऊबड़-खाबड़ पतà¥à¤¥à¤°à¥‹à¤‚ पर चलते हà¥à¤, बहà¥à¤¤ थका देने वाली चढ़ाई चढ़ कर हम चंडी देवी मंदिर तक पहà¥à¤‚चते थे। गंगा की नीलधारा पर लगà¤à¤— à¤à¤• किमी लंबे पà¥à¤² को पार कर हम उस पार सड़क पर पहà¥à¤‚चे जो वासà¥à¤¤à¤µ में नजीबाबाद, मà¥à¤°à¤¾à¤¦à¤¾à¤¬à¤¾à¤¦ की ओर जाती है।
रोप वे पर पहà¥à¤‚चे तो पता चला कि लगà¤à¤— à¤à¤• घंटे बाद सेवा आरंठहोगी। मà¥à¤à¥‡ और बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ को लगा कि à¤à¤• घंटा कौन इंतज़ार करे, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ न हम पैदल ही चल पड़ें? à¤à¤• घंटे में तो तीन-चौथाई मारà¥à¤— पैदल ही तय कर लेंगे ! पतà¥à¤¨à¥€ की ओर पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨à¤µà¤¾à¤šà¤• निगाह दौड़ाई तो वह à¤à¥€ तैयार हो गई ! à¤à¤²à¤¾ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ न होती? ताज़ा – ताज़ा चाय जो पेट में पहà¥à¤‚च चà¥à¤•ी थी! कà¥à¤› किमी तक तो साथ देगी ही ! हाई वे पर टà¥à¤°à¤• डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤° à¤à¥€ तो ढाबों पर यही कहते हैं – “à¤à¤¾à¤ˆ, दो – सौ किमी वाली चाय बना देना !â€
कार को पारà¥à¤•िंग में खड़ी करके हम “वीर तà¥à¤® बढ़े चलो, धीर तà¥à¤® बढ़े चलो !†गाते हà¥à¤ उतà¥à¤¸à¤¾à¤¹ से चंडी देवी दरà¥à¤¶à¤¨ को पैदल ही चल पड़े! हम सोच रहे थे कि इस तीन किमी के पैदल मारà¥à¤— पर चलने वाले  धीर-वीर शायद हम अकेले ही होंगे पर रासà¥à¤¤à¥‡ में हमें सैंकड़ों दरà¥à¤¶à¤¨à¤¾à¤°à¥à¤¥à¥€ आते-जाते मिले जिनमें बचà¥à¤šà¥‡ और महिलाà¤à¤‚ à¤à¥€ थे! सड़क à¤à¥€ अचà¥à¤›à¥€ बनी हà¥à¤ˆ थी जबकि मेरी पूरà¥à¤µ सà¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿ में यहां सड़क नाम की कोई चीज़ नहीं थी – बस कचà¥à¤šà¥€ पथरीली, कंटीली पगडंडियां हà¥à¤† करती थीं !
Law of Relativity सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° हमें लगा कि मानों हम à¤à¤•à¥à¤¸à¤ªà¥à¤°à¥‡à¤¸ हाईवे पर चल रहे हैं!  पर कà¥à¤› किमी चल कर जैसे – जैसे चढ़ाई तीखी होती गई, वैसे वैसे हम सब के उतà¥à¤¸à¤¾à¤¹ का पारा à¤à¥€ नीचे उतरता गया और अलà¥à¤Ÿà¥€à¤®à¥‡à¤Ÿà¤²à¥€ जब हम मंदिर तक पहà¥à¤‚चे तो हम चारों की टांय-टांय फिसà¥à¤¸ हो चà¥à¤•ी थी। बचà¥à¤šà¥‡ बोले, “हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° घà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥‡ के लिये लाये थे, और इतनी थकान तो अà¤à¥€ से हो गई !†अब कà¥à¤¯à¤¾ घूमेंगे ?â€Â  पतà¥à¤¨à¥€ ने à¤à¥€ उनका ही साथ दिया, “अरे तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ पापा बस à¤à¤¸à¥‡ ही हैं। मैं तो जाने कब से à¤à¥‡à¤² रही हूं!â€Â  मैने à¤à¥€ कह दिया, “मैं किसी को घà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥‡ नहीं लाया। तà¥à¤®à¥à¤¹à¥€à¤‚ लोग मà¥à¤à¥‡ जबरदसà¥à¤¤à¥€ पकड़ लाये हो।
ऊपर पैदल आने की à¤à¥€ मैने कोई जिद नहीं की थी ! ठोक-बजा कर तीनों से पूछ लिया था, जब सब ने “हां†की तब आये हैं ! बड़ा बेटा बोला, “अरे नहीं पापा, हम तो à¤à¤¸à¥‡ ही मजाक कर रहे हैं। हम दोनों को तो पैदल आने में बहà¥à¤¤ मज़ा आया। रोप वे में तो तीन मिनट में ऊपर आ जाते, कà¥à¤¯à¤¾ मज़ा आता! ममà¥à¤®à¥€ जरूर थक गई हैं, सो अà¤à¥€ चाय पिला देते हैं! फà¥à¤°à¥‡à¤¶ हो जायेंगी।â€Â मैने कहा, “तो फिर ठीक है, वापसी à¤à¥€ पैदल ही करेंगे!†छोटा बेटा बोला, “अब इतना à¤à¥€ मज़ा नहीं आया कि वापिस à¤à¥€ पैदल ही जायें! टà¥à¤°à¥‰à¤²à¥€ शà¥à¤°à¥ हो गई है। वापिस तो इसी से चलेंगे।“
चंडी देवी मंदिर विषयक जà¥à¤žà¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿
ऊपर परà¥à¤µà¤¤ शिखर पर दो मà¥à¤–à¥à¤¯ मंदिर हैं – à¤à¤• देवी अंजना का और दूसरा चंडी देवी का ! दोनों ही मंदिरों को देख कर मैं आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯ चकित रह गया। मेरी पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ सà¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿ ( 1975 से 1980) के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° तो यहां सिरà¥à¤« चंडी देवी के मंदिर के नाम पर à¤à¤• जीरà¥à¤£ – शीरà¥à¤£ गà¥à¤‚बद में मां चंडी देवी की पिंडी विराजमान थी। अंजना देवी का à¤à¥€ कोई मंदिर यहां था, à¤à¤¸à¤¾ मà¥à¤à¥‡ याद ही नहीं था।
पर अब तो विशालकाय पà¥à¤°à¤¾à¤‚गण, दो à¤à¤µà¥à¤¯ मंदिर, दरà¥à¤¶à¤¨à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की à¤à¥€à¤¡à¤¼ को पंकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¿à¤¤ करने के लिये लोहे के पाइप से बनाये गये संकीरà¥à¤£ मारà¥à¤—, पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ की और à¤à¤œà¤¨à¥‹à¤‚ -कीरà¥à¤¤à¤¨à¥‹à¤‚ की सी-डी और डी.वी.डी. की ढेर सारी दà¥à¤•ानें। और इन सब के अलावा ऊषा बà¥à¤°à¥‡à¤‚केट का कारà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ जो रोप वे को संचालित करता है। मà¥à¤à¥‡ à¤à¤¸à¤¾ लगा ही नहीं कि मैं इसी मंदिर में दरà¥à¤¶à¤¨à¤¾à¤°à¥à¤¥ पहले à¤à¥€ आता रहा हूं। शायद मैं इतिहास-पà¥à¤°à¥à¤· बनने के करीब हूं! बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ को जब अपनी यà¥à¤µà¤¾à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ की बात बताऊंगा तो उनको लगेगा कि मैं इतिहास का कोई चैपà¥à¤Ÿà¤° पढ़ा रहा हूं।

मनà¥à¤¨à¤¤ मांगने हेतॠबांधी गई चà¥à¤¨à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ और धागे
हम सब ने पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ खरीदा, और चंडीदेवी दरà¥à¤¶à¤¨ के लिये लोहे के पाइपों से बनाई गई लाइन में लग गये। कोई बहà¥à¤¤ विशेष à¤à¥€à¤¡à¤¼ नहीं थी कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि रोप वे का संà¤à¤µà¤¤à¤ƒ पहला ही राउंड शà¥à¤°à¥ हà¥à¤† था। दरà¥à¤¶à¤¨ किये और मंदिर की परिकà¥à¤°à¤®à¤¾ करते हà¥à¤ बाहर निकले। इस चंडी देवी मंदिर के इतिहास का जहां तक पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ है, पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ कथा के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° इस पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾ की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ आदि शंकराचारà¥à¤¯ ने 8वीं शती में की थी किनà¥à¤¤à¥ मंदिर वरà¥à¤· 1929 में सà¥à¤šà¤¤ सिंह नाम के राजा ने बनवाया था।
चंडी देवी वासà¥à¤¤à¤µ में मां पारà¥à¤µà¤¤à¥€ का सà¥à¤µà¤°à¥‚प मानी जाती हैं जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने देवताओं की पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ पर शà¥à¤‚ठऔर निशà¥à¤‚ठनामक दो दैतà¥à¤¯à¥‹à¤‚ का वध करने के लिये चंडिका का सà¥à¤µà¤°à¥‚प धारण किया था। इन दोनों दैतà¥à¤¯à¥‹à¤‚ का अपराध ये था कि इनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने इनà¥à¤¦à¥à¤° को सà¥à¤µà¤°à¥à¤— के सिंहासन से चà¥à¤¯à¥à¤¤ कर के सà¥à¤µà¤°à¥à¤— पर कबà¥à¤œà¤¼à¤¾ जमा लिया था और बाकी सारे देवताओं को à¤à¥€ सà¥à¤µà¤°à¥à¤— से बाहर कर दिया था। मेरे विचार में तो जो चरितà¥à¤°à¤¹à¥€à¤¨ राजा हर समय “सांसà¥à¤•ृतिक कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤®à¥‹à¤‚†में, विशेष कर मेनका और उरà¥à¤µà¤¶à¥€ के मायाजाल में उलà¤à¤¾ रहता है, उसके साथ à¤à¤¸à¥€ समसà¥à¤¯à¤¾à¤“ं का जब-तब आते रहना नितानà¥à¤¤ सà¥à¤µà¤¾à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤• ही है।
इनà¥à¤¦à¥à¤° के बारे में हर कोई जानता है कि वह चरितà¥à¤° के मामले में थोड़ा ढीले ही हैं। कà¤à¥€ गौतम ऋषि की पतà¥à¤¨à¥€ अहिलà¥à¤¯à¤¾ को पटाने की कोशिश करते पाये जाते हैं तो कà¤à¥€ किसी और सà¤à¥à¤¯ महिला को! ये हाल तो तब है जब मेनका और उरà¥à¤µà¤¶à¥€ जैसी अपà¥à¤¸à¤°à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ उनके चारों ओर हमेशा नृतà¥à¤¯ करती रहती हैं। बाकी देवताओं को à¤à¥€ कà¥à¤› मेहनत – मजूरी करने का न तो शौक है और न ही अà¤à¥à¤¯à¤¾à¤¸ है। परिणाम यही होता कि जब कोई दैतà¥à¤¯ सेना सà¥à¤µà¤°à¥à¤— पर आकà¥à¤°à¤®à¤£ करती है तो इनà¥à¤¦à¥à¤° तो à¤à¥‹à¤—-विलास में लिपà¥à¤¤ रहने के कारण यà¥à¤¦à¥à¤§ के लिये तैयारी नहीं कर पाते और बाकी सारे आरामतलब देवता à¤à¥€ तà¥à¤°à¤¾à¤¹à¤¿à¤®à¤¾à¤®à¥â€Œ – तà¥à¤°à¤¾à¤¹à¤¿à¤®à¤¾à¤®à¥â€Œ कहते हà¥à¤ à¤à¤¾à¤—ते नज़र आते हैं।
मज़बूर होकर कà¤à¥€ दà¥à¤°à¥à¤—ा तो कà¤à¥€ चामà¥à¤‚डा तो कà¤à¥€ चंडिका देवी को अपने इन आरामतलब नागरिकों की रकà¥à¤·à¤¾ के लिये आना पड़ता है। हां, तो इस बार जब मां पारà¥à¤µà¤¤à¥€ के पास देवतागण रोते कलपते गये तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने चंडिका का रूप धरा और शà¥à¤‚ठऔर निशà¥à¤‚ठदैतà¥à¤¯à¥‹à¤‚ का संहार कर दिया। इन नील गिरि परà¥à¤µà¤¤ पर वह कà¥à¤› समय रà¥à¤•ी थीं, और यहीं शà¥à¤‚ठऔर निशà¥à¤‚ठनाम से दो परà¥à¤µà¤¤ चोटियां à¤à¥€ मौजूद हैं।

चंडी देवी मंदिर की सीढ़ियों पर पतà¥à¤¨à¥€ और बड़ा पà¥à¤¤à¥à¤°
2900 मीटर यानि लगà¤à¤— 9,500 फीट की ऊंचाई पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ इस सिदà¥à¤§ पीठके दरà¥à¤¶à¤¨à¤¾à¤°à¥à¤¥ अब रोप वे संचालित की जाती है । इस रोपवे की लंबाई à¤à¥€ 740 मीटर बताई जाती है यानि 2430 फीट ! मंदिर में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ के लिये सà¥à¤¬à¤¹ 6 बजे से रातà¥à¤°à¤¿ 8 बजे तक दà¥à¤µà¤¾à¤° खà¥à¤²à¥‡ रहते हैं।
चंडी देवी दरà¥à¤¶à¤¨ के बाद हम अंजना देवी के दरà¥à¤¶à¤¨ के लिये बगल में ही सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ दूसरे मंदिर में à¤à¥€ पहà¥à¤‚चे। बंदरों का आतंक सरà¥à¤µà¤¤à¥à¤° वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ है। à¤à¤¿à¤–ारी à¤à¥€ अनगिनत संखà¥à¤¯à¤¾ में मौजूद हैं। कà¥à¤› पूरे शरीर पर सिंदूर पोत कर à¤à¥€à¤– मांगते हैं तो कà¥à¤› काली सà¥à¤¯à¤¾à¤¹à¥€ और तेल पोत कर सोचते हैं कि अब अचà¥à¤›à¥€ à¤à¥€à¤– मिलेगी। कà¥à¤› तो जबरदसà¥à¤¤à¥€ आपको टीका लगाने का पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ करते हैं। मेरे विचार में पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• हिनà¥à¤¦à¥‚ मंदिर के बाहर à¤à¤¿à¤–ारियों की उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ शरà¥à¤®à¤¿à¤¨à¥à¤¦à¤—ी का कारण है। मà¥à¤à¥‡ सà¥à¤µà¤°à¥à¤£à¤®à¤‚दिर के बाहर à¤à¤• à¤à¥€ à¤à¤¿à¤–ारी के दरà¥à¤¶à¤¨ नहीं हà¥à¤!
वापसी के लिये हम रोप वे टिकट काउंटर पर गये, टिकट खरीदे गये और संकà¥à¤·à¤¿à¤ªà¥à¤¤ सी लाइन में लग कर रसà¥à¤¸à¥€ से लटक रही बीसियों कार में से à¤à¤• में बैठा दिये गये। हमारी कार नीचे की ओर बढ़ी तो मैने बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ को हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° के à¤à¥‚गोल का पà¥à¤°à¥‡à¤•à¥à¤Ÿà¤¿à¤•ल अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ कराना आरंठकर दिया। “वो देखो, सामने दूसरे पहाड़ पर मनसा देवी। ये हमारे दाईं ओर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ ऋषिकेश से आरही गंगा की मà¥à¤–à¥à¤¯ धारा जिसे नील धारा कहते हैं।
यह हर की पैड़ी के लिये विशेष तौर पर लाई गई छोटी धारा। ये शिव जी की विशालकाय मूरà¥à¤¤à¤¿, ये रही कार पारà¥à¤•िंग जहां रात हमने अपनी कार खड़ी की थी, ये देखो महिलाà¤à¤‚ नहा रही हैं। मेरी पतà¥à¤¨à¥€ ने तà¥à¤°à¤‚त टोका, “आपको नहाती हà¥à¤ˆ सिरà¥à¤« महिलाà¤à¤‚ ही कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ दिखी, पà¥à¤°à¥à¤· à¤à¥€ तो नहा रहे हैं!† मैने इस टोकाटाकी से बिना घबराये अपना पà¥à¤°à¥‡à¤•à¥à¤Ÿà¤¿à¤•ल चालू रखा। “ लाल और à¤à¤—वा रंग मीलों दूर से नज़र आता है, मà¥à¤à¥‡ रंग बिरंगी साड़ियां दूर से दिखाई दे रही हैं, सिरà¥à¤« इसीलिये।
तà¥à¤® मेरे बारे में गलत धारणा मत बनाया करो! अरे हां, वह देखो – हर की पैड़ी का घंटाघर, ये देखो इतने सारे पà¥à¤² जो कà¥à¤‚ठके कारण बनाने पड़ते हैं। वह जो कई मंजिला इमारत दिख रही है, वह à¤à¤¾à¤°à¤¤ माता मंदिर है।  ये देखो, जहां वह आग दिखाई दे रही है, वो खड़खड़ी है, वहां पर किसी की चिता जल रही है।  मैं इससे पहले कि धरती के à¤à¥€à¤¤à¤° छिपे हà¥à¤ खनिजों का वरà¥à¤£à¤¨ शà¥à¤°à¥ कर पाता, हमारी रोप-वे कार नीचे वाले सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ पर आकर टिक गई और हम सब बाहर निकले। अचà¥à¤›à¤¾ सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° सा रोप वे सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ बनाया गया है। हरियाली à¤à¥€ है, पà¥à¤·à¥à¤ª à¤à¥€ हैं, विशाल कार-पारà¥à¤•िंग à¤à¥€ है।

चंडी देवी से वापसी हेतॠरोपवे पर अपनी बारी की पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•à¥à¤·à¤¾

बालà¥à¤Ÿà¥€ नà¥à¤®à¤¾ टà¥à¤°à¤¾à¤²à¥€ जिसमें चार सवारी बैठाई जाती हैं।
à¤à¤¸à¥‡ घà¥à¤®à¤¾à¤¤à¥‡ हैं सà¥à¤Ÿà¥€à¤¯à¤°à¤¿à¤‚ग
वहां से बाहर निकल कर हमने बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ से पूछा कि बोलो à¤à¤¾à¤ˆ लोगों, अब कà¥à¤¯à¤¾ विचार है! बड़ा बेटा बोला, “आपने सारे हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° के दरà¥à¤¶à¤¨ तो ऊपर से ही करा ही दिये हैं।  अब कौन सी जगह à¤à¤¸à¥€ बची है, जो दिखाई नहीं दी है? मैने कहा कि ठीक है।  गरà¥à¤®à¥€ अà¤à¥€ से ही बहà¥à¤¤ अधिक हो गई है। मंदिरों में घूम कर कà¥à¤¯à¤¾ करेंगे । लचà¥à¤›à¥€à¤µà¤¾à¤²à¤¾ चलते हैं।  वहीं दोबारा नदी में नहायेंगे। उसके बाद,  वहीं से देहरादून तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ चाचाजी के घर चलेंगे। रात तक अपने सहारनपà¥à¤° वापिस !â€
हमारे बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ को और उनकी माता को कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® की ये रूपरेखा पसनà¥à¤¦ आई और हमने रासà¥à¤¤à¥‡ में गोà¤à¥€ के परांठे और दही का नाशà¥à¤¤à¤¾ किया, कोलà¥à¤¡ डà¥à¤°à¤¿à¤‚क की दो लीटर वाली बोतल ली, कार में से अपनी गंगाजली निकाल कर à¤à¤°à¥€ और चल दिये लचà¥à¤›à¥€à¤µà¤¾à¤²à¤¾ की ओर !  नाशà¥à¤¤à¤¾ करते करते देहरादून फोन कर के पूछ à¤à¥€ लिया कि à¤à¤¾à¤ˆ घर पर हैं à¤à¥€ या नहीं !
मेरे साथ – साथ हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° में चंडीदेवी दरà¥à¤¶à¤¨ करने और फिर लचà¥à¤›à¥€à¤µà¤¾à¤²à¤¾ चलने के लिये आपका आà¤à¤¾à¤° !  मज़ा आया कà¥à¤› ?
कल को ही समापन किशà¥à¤¤ में चलेंगे देहरादून में बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¾ टैंपिल के दरà¥à¤¶à¤¨ करने और फिर घर वापसी। बाय, बाय, टा-टा !






chak de phatte post.
haa haa haa. Thank you Parveen Ji.
इसे कहते हैं घुमक्कड़ परिवार।।। आनंद आ गया पढ़ कर।कृपया गोलिया घर ही छोड कर जाया करा किजीये सामने से हम जैसे भी आ रहे होते हैं :) :) अपने बढ़िया इन्टरप्रेट किया है तुलसी के दोहे को।
शुक्रिया घूमते रहिये
I very seriously doubt about the height of Chandidevi temple as mentioned above. I got it from wikipedia. Please correct it, if needed and let me know also.
बहुत सुंदर वर्णन !
सुशांत जी
सही लपेटा इन्द्र देवता को.
प्रिय सुशांत जी…
आपने पूछा, मज़ा आया कुछ ? मजा कुछ नहीं बहुत आया आपका लेख पढ़कर कर….| पतित पावनी गंगा माँ के किनारे बसे हरिद्वार पर हम कई बार चुके हैं……सारा कि सारा हरिद्वार कई बार घूम चुके हैं….चंडी देवी मंदिर रोपवे से ही गए थे …. | पुरानी यादे ताजा कराने के लिए और चंडी देवी मंदिर के पौराणिक कथा के लिए धन्यवाद | फोटो बहुत अच्छे लगे ….|
आपकी जानकारी के लिए चंडी देवी मंदिर के ऊँचाई समुंद्र तल से लगभग 480 मीटर (1440 फीट) हैं….| यह ऊँचाई मैंने गूगल अर्थ से ली हैं….बाकी नेट और ब्लॉग पर 300 मीटर बताई गयी हैं….जो शायद गलत ही हैं….|
धन्यवाद
छा गए सुशांत साहब, बहुत खूब। इस पोस्ट के व्यंग्य बाण तो माशा अल्लाह लोट पोट कर गए। ” मैं चाय को मना कर देता तो चंडी देवी के दर्शन वहीं अपने सामने ही हो जाते” और “इंद्र लोक का बखान” पढ़कर तो हंस हंस कर पागल ही हो गए, शुक्र है ज्यादा पागल नहीं हुए वर्ना अपनी तो आखिरी घुमक्कड़ी आगरा की ही होती।
सुशांत साहब एक बात पूछना चाहता हूँ यह हर की ‘पैड़ी’ है या ‘पौड़ी’ है? क्योंकि अब तक मैंने हर जगह “हर की पौड़ी” लिखा हुआ पढ़ा है और आपने पैड़ी लिखा है।
अगली किश्त के इंतज़ार में।
धन्यवाद प्रिय मुकेश जी, हर की पैड़ी और हर की पौड़ी का जहां तक संबंध है, मैने एक जांच आयोग बैठाया था, जिसने हाथ के हाथ अपनी रिपोर्ट पेश कर दी है। कृपया देखें – https://www.ghumakkar.com/wp-content/uploads/2012/11/HarKiPaidi.jpg
ha………,kamaal kar dia sirji,tufani doura wah kya baat.aapko padhna main kya kahun prashansha ke shabd nahi hain hamare paas.mujhe bhi meri pahli haridwar yatra yaad dila di,8 saal ka tha ,main bhi 1978 me pehli baar gaya tha,jis tarah ganga ki lehro me aap dubne se bache usi tarah humsab (maa,(papa ab nahi hain),bhai aur behan)chandi devi utarte waqt shotcut ke chakkar me rasta bhatak gae bari muskil se niche utar paaye the.lachchhiwala kahan hai jara jaldi darshan kara dijiye,aur haridwar me mansa devi ropway ke paas yadi khana badhia khaye honge to restaurent nischit hi hoshiarpuri hoga.ek baat aur bhimgoda me ashram ganga ke kinara hai ya nahi?
Dear s s jee,
Aap to bus aap hain,
baldev swami
दूध कम, चीनी कम और पत्ती तेज़, ये तो सैम २ सैम हो गया है | पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जब भी कभी चाय पी तो सबसे पहले ये निर्देश देना पड़ता है वरना श्रीमतीजी कहती है की हर बार तुम्हे याद दिलाना पड़ेगा की क्या बोलना है | एक बार मैं भी एक महेश्वरी आश्रम में रुका हूँ, निर्णय मंडल कोई और था, हम तो ड्राईवर माफिक जहाँ कहो वहां रुक गए थे |
तूफानी दौरा चलता रहे, अगले लेख की ओर अग्रसर | आपके जवाब नहीं आये कमेंट्स पर, शायद व्यस्त हैं | जय हिन्द |
@ नन्दन ! same to same to achhi baat hai, shame to shame nahin hona chahiye Ji. hahaha.
@ Baldev Swami – aapko mohabbat ke liye shukriya Ji.
@Rajesh Priya – Since Hardwar, Rishikesh and Mussoorie are very near to us, we have several memories associated with these places. thank you for liking the post.
@Ritesh Gupta – 1440 ft makes more sense. 9000+ ft. height is too much for Chandidevi temple. Even Mussoorie is 5700 ft. only.
@desi traveler – Thank you dear. Yes, my children are very fond of travelling like me.
@rastogi – इन्द्र देवता के बारे में कभी अच्छा सुनने को मुझे आज तक मिला ही नहीं ! हमेशा उनकी लंपटता के किस्से ही सुनने को मिले हैं। वैसे यह भी सुना है कि इन्द्र तो पदवी का नाम है न कि किसी देवता विशेष का ! जो भी देवलोक का राजा बने, उसे इन्द्र ही कहा जाता है।
@Mahesh Semwal – Thank you for the cryptic message.
सुशांत जी, क्या बताऊ बस …
पहला , मजा आ गया सच्ची में….वैसे गंगा मैया के प्यार और आशीर्वाद से मैं पिछले एक साल से हरिद्वार वासी हो गया हूँ और ना जाने उस से पहले भी कितनी ही बार यहाँ आता रहा हूँ, लिकिन आपकी पोस्ट पढ़ कर ऐसा लग रहा है के अभी भी हरिद्वार चल दूँ….लेकिन मै मजबूर हूँ …
दूसरा, यही के आपका और मेरा शौंक फोटोग्राफी काफी मिलते जुलते से लगते है, सो लगता का माज आएगा जब मिल बैठेंगे दो …..
तीसरा , आज कल जहाँ आप रह रहे है , कभी छोटे वाले बचपन में मैं भी वहीँ रहता था, यानी के सहारनपुर , माधोनगर ! यहीं से मैंने अपनी कच्ची की पढ़ाई की थी कैंब्रिज स्कूल से ….
सो आज मुझे मेरा बचपन भी याद आ गया …सो धन्यवाद ..लिखते रहिएगा …..हम पढ़ते रहेंगे