देर शाम शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤—र पहà¥à¤‚च कर वहां की विशà¥à¤µà¤ªà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ बà¥à¤²à¥‡à¤µà¤¾à¤°à¥à¤¡ रोड पर काफी à¤à¤Ÿà¤•ने के बाद à¤à¥€ जब हमें अपने मतलब का कोई होटल समठनहीं आया तो ‘लौट के बà¥à¤¦à¥à¤§à¥‚ घर को आये’ वाले अंदाज़ में हम वापिस उसी नà¥à¤¯à¥‚ कोहना खान रोड पर पहà¥à¤‚च गये जिसे हम नकार चà¥à¤•े थे। “नगरी – नगरी, दà¥à¤µà¤¾à¤°à¥‡ – दà¥à¤µà¤¾à¤°à¥‡ ढूंढूं रे सांवरिया†गà¥à¤¨à¤—à¥à¤¨à¤¾à¤¤à¥‡ हà¥à¤ हमने à¤à¤• – à¤à¤• होटल में खोजबीन करनी आरंठकी कि कहां रà¥à¤•ा जा सकता है। महिलाओं को हमने नीचे सड़क पर कार में ही बैठे रहने को कहा। उन दोनों ने इसमें कोई आपतà¥à¤¤à¤¿ नहीं की कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि दो-दो मंज़िल चढ़ कर कमरे देखने जाना, फिर वापिस आना उनको कषà¥à¤Ÿà¤•र अनà¥à¤à¤µ हो रहा था। वैसे à¤à¥€, दोनों को अपने-अपने पति की विवेक बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ पर à¤à¤²à¥‡ ही यकीन न हो, पर पति के साथ जो दूसरा बनà¥à¤¦à¤¾ जा रहा था, उसकी बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ और पसनà¥à¤¦ पर पूरा à¤à¤°à¥‹à¤¸à¤¾ था!  हम à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ पतियों की यही तà¥à¤°à¤¾à¤¸à¤¦à¥€ है। दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ में हर इंसान उनको होशियार, समà¤à¤¦à¤¾à¤° मानता है, सिवाय उनकी अपनी पतà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के! à¤à¤¸à¤¾ कà¥à¤¯à¥‚ं होता है रे?
जैसा कि मà¥à¤à¥‡ अगले दिन सूरà¥à¤¯ के पà¥à¤°à¤•ाश में सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ हà¥à¤†, यह सड़क वासà¥à¤¤à¤µ में डल à¤à¥€à¤² के कà¥à¤› à¤à¤¾à¤— को पाट कर बनाई गई है, जैसे मà¥à¤‚बई में नरीमन पà¥à¤µà¤¾à¤‡à¤‚ट पर समà¥à¤¦à¥à¤° को पाट कर backbay reclamation point बनाया गया है। नà¥à¤¯à¥‚ कोहना खान रोड (New Kohna Khan Road)  पर सिवाय होटल और ढाबों के आपको और कà¥à¤› à¤à¥€ नज़र नहीं आता। इस सड़क पर आगे की ओर बढ़ जायें – लगà¤à¤— आधा किलोमीटर, तो सड़क डल à¤à¥€à¤² में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ कर जाती है और फिर संकरी होते होते à¤à¥€à¤² में विलीन हो जाती है।
मà¥à¤à¥‡ अपनी आंखों से वहां का अदà¥â€Œà¤à¥à¤¤ दृशà¥à¤¯ देखने का अवसर तो नहीं मिला पर मैने पढ़ा है कि रामेशà¥à¤µà¤°à¤®à¥â€Œ में धनà¥à¤·à¥à¤•ोडि à¤à¥€ ठीक इसी पà¥à¤°à¤•ार से है जहां सड़क समà¥à¤¦à¥à¤° में घà¥à¤¸à¤¤à¥€ चली जाती है और दो à¤à¤• किलोमीटर चल कर समà¥à¤¦à¥à¤° में समापà¥à¤¤ हो जाती है।  उसके आगे रामसेतॠहै जिसे हमारी केनà¥à¤¦à¥à¤° सरकार तोड़ देने के लिये आकà¥à¤² – वà¥à¤¯à¤¾à¤•à¥à¤² है ताकि अपनी परियोजना को आगे बढ़ा सके। सड़क के बाईं ओर बंगाल की खाड़ी और दाईं ओर हिनà¥à¤¦ महासागर ठाठें मारता है। आकाश से देखें तो à¤à¤¸à¤¾ लगता है मानों पà¥à¤°à¤à¥ राम ने धनà¥à¤· की पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¤‚चा पर बाण संधान किया हà¥à¤† हो। यह पतली सी सड़क धनà¥à¤· पर चढ़े हà¥à¤ बाण जैसी पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ होती है। लगà¤à¤— à¤à¤¸à¤¾ ही नज़ारा नà¥à¤¯à¥‚ इस कोहना खान रोड पर à¤à¥€ है।
शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤—र में à¤à¤•मातà¥à¤° यही सड़क à¤à¥€à¤² को reclaim करके बनाई गई हो, à¤à¤¸à¤¾ नहीं है। अगर हम किसी ऊंचे सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ से (जैसे शंकराचारà¥à¤¯ परà¥à¤µà¤¤) डल à¤à¥€à¤² पर निगाह डालें तो पायेंगे कि à¤à¥€à¤² में अतिकà¥à¤°à¤®à¤£ करने वाली à¤à¤¸à¥€ अनेकों संकरी गलियां हैं। इनमें से कई गलियां लकड़ी के फटà¥à¤Ÿà¥‹à¤‚ से तैयार किये गये पà¥à¤² के रूप में हैं। उस पà¥à¤² में से घरों के लिये, या सही कहें तो, हाउस बोट के लिये पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° दिखाई देते हैं।
इस सड़क की à¤à¤• और विशेषता यह है कि उस सड़क पर परà¥à¤¯à¤Ÿà¤•ों की à¤à¤°à¤®à¤¾à¤° होने के कारण सà¥à¤•ूटर, मोटर साइकिल, हाथ ठेली पर ऊनी वसà¥à¤¤à¥à¤° बेचने वाले हर रोज़ सà¥à¤¬à¤¹-शाम à¤à¤°à¤ªà¥‚र मातà¥à¤°à¤¾ में दिखाई देते हैं। रात को हम खाना खा कर लौटे तो à¤à¥€ वहां बहà¥à¤¤ à¤à¥€à¤¡à¤¼ लगी थी और सà¥à¤¬à¤¹ आठबजे तक वहां à¤à¤¸à¥‡ दà¥à¤•ानदारों का अंबार लग चà¥à¤•ा था। कà¥à¤› सà¥à¤•ूल à¤à¥€ आस-पास रहे होंगे कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि छोटे-छोटे, पà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥‡ – पà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥‡, दूधिया रंग के कशà¥à¤®à¥€à¤°à¥€ बचà¥à¤šà¥‡ à¤à¥€ सà¥à¤•ूली वेषà¤à¥‚षा में आते-जाते मिले। कà¥à¤› छोटे बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ को जबरदसà¥à¤¤à¥€ घसीट कर सà¥à¤•ूल ले जाया जाता अनà¥à¤à¤µ हो रहा था तो कà¥à¤› अपनी इचà¥à¤›à¤¾ से जा रहे थे।
à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ सेना की à¤à¤• पूरी बटालियन वहां सà¥à¤¥à¤¾à¤ˆ कैंप बनाये हà¥à¤ थी। हमारे होटल के बिलà¥à¤•à¥à¤² सामने सड़क के उस पार सेना के सशसà¥à¤¤à¥à¤° जवान केबिन बना कर उसमें पहरा दे रहे थे। मà¥à¤à¥‡ आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯ हो रहा था कि यहां तो बिलà¥à¤•à¥à¤² शानà¥à¤¤à¤¿ है फिर इतनी सतरà¥à¤•ता की कà¥à¤¯à¤¾ जरूरत है? पर जैसा कि à¤à¤• सेना के अधिकारी ने मà¥à¤à¥‡ अगली सà¥à¤¬à¤¹ गप-शप करते हà¥à¤ बताया कि यहां शांति इसीलिये है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि हर समय सेना तैयार है। अगर हम गफलत कर जायें तो कब कहां से हिंसा वारदात शà¥à¤°à¥ हो जाये, कà¥à¤› नहीं कहा जा सकता।   दो दिन बाद, 18 मारà¥à¤š को हिनà¥à¤¦à¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨ और पाकिसà¥à¤¤à¤¾à¤¨ के बीच में à¤à¤• दिवसीय कà¥à¤°à¤¿à¤•ेट मैच था ।
हमारा डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤° पà¥à¤°à¥€à¤¤à¤® पà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥‡ गà¥à¤²à¤®à¤°à¥à¤— से लौटते समय बहà¥à¤¤ तनाव में था कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि दोपहर तक पाकिसà¥à¤¤à¤¾à¤¨ का पलड़ा à¤à¤¾à¤°à¥€ नज़र आ रहा था। वह बोला कि अगर पाकिसà¥à¤¤à¤¾à¤¨ मैच जीत गया तो शाम होते – होते कशà¥à¤®à¥€à¤° की सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ विसà¥à¤«à¥‹à¤Ÿà¤• हो जायेगी । शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤—र में à¤à¥€ कब हिंसा शà¥à¤°à¥ हो जाये, कà¥à¤› नहीं कहा जा सकता। और अगर, à¤à¤—वान करे,  हिनà¥à¤¦à¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨ जीत गया तो ये सब दà¥à¤® दबा कर अपनी खोल में छिपे रहेंगे। खैर, उस दिन गà¥à¤²à¤®à¤°à¥à¤— से शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤—र में वापिस आते आते हम कार में आंखों देखा हाल सà¥à¤¨à¤¤à¥‡ हà¥à¤ आ रहे थे और यह सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ हो गया था कि यह मैन à¤à¤¾à¤°à¤¤ ही जीतने जा रहा है और अब दंगे की संà¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ नगणà¥à¤¯ ही है।  इसीलिये, हम रातà¥à¤°à¤¿ में निशà¥à¤šà¤¿à¤‚त à¤à¤¾à¤µ से सड़कों पर घूमते रहे थे। खैर !
ये सब बातें तो बाद की हैं, फिलहाल तो मैं अपनी बातों का सà¥à¤Ÿà¥€à¤¯à¤°à¤¿à¤‚ग घà¥à¤®à¤¾ कर आपको वापिस अपने होटल में ही लिये चलता हूं।
होटल कोहिनूर में जब हमें कमरे दिखाये गये तो लगा कि अब जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ सोचने विचारने की जरूरत नहीं है और कार में से अपना सामान मंगवा लिया जाये। 800 रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ किराया जब हमारे बाà¥à¤°à¥à¤—ेनर à¤à¤¾à¤ˆ पंकज को उचित अनà¥à¤à¤µ हो रहा था तो मà¥à¤à¥‡ आपतà¥à¤¤à¤¿ होने का तो पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ ही नहीं उठता था।  मैने अपने कमरे की खिड़की में से बाहर à¤à¤¾à¤‚क कर देखा तो मà¥à¤¶à¥à¤•िल से २०० मीटर दूर होने के बावजूद, कà¥à¤› अनà¥à¤¯ होटलों के पीछे छिप गई डल à¤à¥€à¤² तो नज़र नहीं आ रही थी, पर अंधेरे में, à¤à¥€à¤² के उस पार à¤à¤• पहाड़ी जरूर नज़र आई जिसमें ऊपर à¤à¤• दिये जैसा कà¥à¤› टिमटिमाता महसूस हो रहा था। अगले दिन हम इस पहाड़ी पर à¤à¥€ पहà¥à¤‚चे जो वासà¥à¤¤à¤µ में शंकराचारà¥à¤¯ परà¥à¤µà¤¤ है। रातà¥à¤°à¤¿ में जो टिमटिमाता हà¥à¤† दिया अनà¥à¤à¤µ हो रहा था, वह शंकराचारà¥à¤¯ मंदिर से आ रहा पà¥à¤°à¤•ाश था।
मैं और पंकज घर से चले थे तो हमारे पास दो-दो फोन थे, à¤à¤• – à¤à¤• पà¥à¤°à¥€-पेड और दूसरा पोसà¥à¤Ÿ-पेड था। मेरे पास लैपटॉप और फोटोन के माधà¥à¤¯à¤® से net connectivity à¤à¥€ थी। सहारनपà¥à¤° से चलने से पहले, Photon Customer Care पर फोन करके मैने पà¥à¤·à¥à¤Ÿà¤¿ कर ली थी कि पोसà¥à¤Ÿ पेड कनेकà¥à¤¶à¤¨ होने के कारण फोटोन कशà¥à¤®à¥€à¤° में à¤à¥€ चलता रहेगा और रोमिंग का à¤à¥€ कोई चकà¥à¤•र नहीं है। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने बड़े गरà¥à¤µ से बताया था कि कशà¥à¤®à¥€à¤° से कनà¥à¤¯à¤¾à¤•à¥à¤®à¤¾à¤°à¥€ तक पूरा à¤à¤¾à¤°à¤¤ à¤à¤• है।
पंकज का पोसà¥à¤Ÿà¤ªà¥‡à¤¡ फोन रासà¥à¤¤à¥‡ में गिर ही चà¥à¤•ा था। पà¥à¤°à¥€-पेड फोन हम दोनों के ही बनà¥à¤¦ थे। शाम होते – होते मेरे पास पंकज के लिये फोन आने शà¥à¤°à¥ हो गये। वासà¥à¤¤à¤µ में पंकज ने मेरा पोसà¥à¤Ÿ पेड नंबर अपने घर में दे दिया और घर वालों ने वह नंबर सारी दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ को दे दिया।  उसके घर से à¤à¥€ दिन में दस-बारह बार फोन आते थे कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि माता-पिता को बेटे-बहू और पोते की चिनà¥à¤¤à¤¾ लगी रहती थी।  रोमिंग के इलाके में मेरे फोन पर इतना हैवी टà¥à¤°à¥ˆà¤«à¤¿à¤• देख कर मेरी पतà¥à¤¨à¥€ के à¤à¤¾à¤² पर तनाव की रेखाà¤à¤‚ उà¤à¤°à¤¤à¥€ दिखाई पड़ती थीं ।
à¤à¤• बार उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने मà¥à¤à¥‡ कहा à¤à¥€ कि इमरजेंसी में किसी का फोन इसà¥à¤¤à¥‡à¤®à¤¾à¤² करना और वह à¤à¥€ रोमिंग में, जायज़ है परनà¥à¤¤à¥ “और कà¥à¤¯à¤¾ हाल चाल हैं, कहां – कहां घूम रहे हो, कैसा मौसम है, बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ की बहà¥à¤¤ याद आ रही हैâ€Â आदि – आदि बातों के लिये दूसरों का फोन इसà¥à¤¤à¥‡à¤®à¤¾à¤² करना और वह à¤à¥€ रोमिंग में? मैने समà¤à¤¾à¤¯à¤¾ कि रोमिंग को हम लोगों ने हौवà¥à¤µà¤¾ बना डाला है, रोमिंग को लेकर consciousness बनी रहती है कि पता नहीं कितना बिल हो गया होगा, पर à¤à¤¸à¤¾ नहीं है।
जरा सोचो, जब हम बीस हज़ार अपने घूमने पर खà¥à¤¶à¥€ – खà¥à¤¶à¥€ खरà¥à¤š कर सकते हैं तो रोमिंग के नाम पर अगर अगले महीने १०० रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ का फालतू बिल आ à¤à¥€ गया तो कà¥à¤¯à¤¾ फरà¥à¤• पड़ जायेगा? अगर पंकज के फोन के बजाय मेरा फोन खो गया होता तो पंकज अपने फोन से हमारी बात कराने कतई à¤à¥€ संकोच न करता।”
“ठीक है। आपका मामला, आप जानों। इसके बाद उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने इस बात को पूरी तरह से अपने दिल से निकाल दिया। उन पांच – छः दिनों में मेरी जेब में जब à¤à¥€ वाइबà¥à¤°à¥‡à¤¶à¤¨ के कारण गà¥à¤¦à¤—à¥à¤¦à¥€ होती तो मैं चà¥à¤ªà¤šà¤¾à¤ª अपना फोन निकाल कर पंकज के हाथ में दे दिया करता था कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि मेरे कशà¥à¤®à¥€à¤° पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¸ के दौरान मेरे लिये कोई फोन नहीं आता था। बैंक में à¤à¥€ और मितà¥à¤°à¥‹à¤‚ को à¤à¥€ पता था कि मैं छà¥à¤Ÿà¥à¤Ÿà¥€ पर घूमने गया हà¥à¤† हूं पर पंकज को तो अपना बिज़नेस जारी रखना था।   खैर !
नà¥à¤¯à¥‚ कोहना खान रोड सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ कोहिनूर होटल में अपने – अपने कमरों में अपना सामान टिका कर, नहा-धो कर हम पà¥à¤¨à¤ƒ कार में बैठे और बà¥à¤²à¥‡à¤µà¤¾à¤°à¥à¤¡ रोड पर “पंजाबी तड़का†शà¥à¤¦à¥à¤§ शाकाहारी à¤à¥‹à¤œà¤¨à¤¾à¤²à¤¯ में पहà¥à¤‚च गये। वाह, कà¥à¤¯à¤¾ बात है! पूरे हिनà¥à¤¦à¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨ à¤à¤° से परà¥à¤¯à¤Ÿà¤• अपनी – अपनी बà¥à¤¯à¥‚टी कà¥à¤µà¥€à¤¨ को बगल में दबा कर शायद इसी रेसà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤‚ में आ पहà¥à¤‚चे थे।
à¤à¥€à¤¡à¤¼ काफी थी, अपने लिये à¤à¤• खाली टेबिल की इंतज़ार में हम खड़े रहे और कà¥à¤¦à¤°à¤¤ की इस हसीन दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ को निहारते रहे। टेबिल मिलते ही बैरा छाती पर आ खड़ा हà¥à¤†, आरà¥à¤¡à¤° लिया और दस मिनट में ही गरà¥à¤®à¤¾à¤—रà¥à¤®, सà¥à¤µà¤¾à¤¦à¤¿à¤·à¥à¤Ÿ और मनà¤à¤¾à¤µà¤¨ खाना हमारे सामने था। à¤à¥€à¤¡à¤¼ के कारण फà¥à¤°à¤¸à¤¤ से आरà¥à¤¡à¤° लेना, आधा घंटे में आरà¥à¤¡à¤° सरà¥à¤µ करना – यह सब वहां संà¤à¤µ नहीं था। पर à¤à¤¸à¥‡ रेसà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤‚ अचà¥à¤›à¥‡ खाने की गारंटी हà¥à¤† करते हैं। महीने à¤à¤° पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ सबà¥à¤œà¤¼à¥€ फà¥à¤°à¤¿à¤œ में से निकाल कर गरà¥à¤® करना और गà¥à¤°à¤¾à¤¹à¤•ों को परोस देना और हाई-फाई बिल पेश कर देना ये बड़े-बड़े फैंसी होटलों में होता है, ढाबे टाइप रेसà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤‚ में नहीं!
होटल में लौट कर आधा-पौना घंटा फेसबà¥à¤• पर बिताया गया, सà¥à¤Ÿà¥‡à¤Ÿà¤¸ अपडेट करते हà¥à¤ दोसà¥à¤¤à¥‹à¤‚ को बताया कि अà¤à¥€ हाल – फिलहाल तो शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤—र सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° लग नहीं रहा है। न तो सड़कों पर सफाई दिखाई देती है और न ही हरियाली। बस à¤à¤• बà¥à¤²à¥‡à¤µà¤¾à¤°à¥à¤¡ रोड चमचमा रही है जो वी.आई.पी. इलाका है। बाकी सारा शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤—र कानपà¥à¤° और अलीगढ़ जैसा ही गनà¥à¤¦à¤¾ है।
जमà¥à¤®à¥‚ कशà¥à¤®à¥€à¤° की सरकार तो हमें उतà¥à¤¤à¤° पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ की मायावती सरकार से à¤à¥€ जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ गई गà¥à¤œà¤¼à¤°à¥€ पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ होती है जो यातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से टैकà¥à¤¸ वसूलना तो जानती है पर शहर को सजाने – संवारने में उसे कोई रà¥à¤šà¤¿ नहीं है।   हमारे मितà¥à¤°à¥‹à¤‚ ने हमें तà¥à¤°à¤¨à¥à¤¤ ढाढस बंधाया “डोंट वरी, अà¤à¥€ तो कशà¥à¤®à¥€à¤° पहà¥à¤‚चे हो, आगे बहà¥à¤¤ खूबसूरती मिलेगी।“ चलो, उमà¥à¤®à¥€à¤¦ पर ही तो दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ कायम है, यह सोच कर हमने फेसबà¥à¤• से साइन ऑफ किया, लैपटॉप पर दिन à¤à¤° की फोटो टà¥à¤°à¤¾à¤‚सà¥à¤«à¤° कीं, कैमरे को चारà¥à¤œà¤¿à¤‚ग पर लगाया और नींद के आगोश में समा गये।
अगला दिन सà¥à¤¬à¤¹ शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤—र à¤à¥à¤°à¤®à¤£ के लिये तय था जिसमें डल à¤à¥€à¤² में शिकारे पर à¤à¥à¤°à¤®à¤£, शंकराचारà¥à¤¯ परà¥à¤µà¤¤ के दरà¥à¤¶à¤¨, चशà¥à¤®à¤¾à¤¶à¤¾à¤¹à¥€, निशातबाग, शालीमार बाग आदि समà¥à¤®à¤¿à¤²à¤¿à¤¤ थे। आगे की यातà¥à¤°à¤¾ के लिये आपका साथ बना रहेगा, इसी इचà¥à¤›à¤¾ और विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ के साथ, अब शà¥à¤ रातà¥à¤°à¤¿ !
बहुत खुब लिखा है, और फोटो भी काफी सुंदर हैं . फोन वाला किस्सा, रोमिंग में कॉल पड़ जाएगी, थोडा घूमने में टेंशन देता है. अगर आप स्विच ऑफ रखते तो जयादा घुमने का मजा आता. मेरे पास प्री पेड मोबाइल है, मुझे फ़ोन रसीव करने के भी पैसे लगते हैं. पर मैं तो सिर्फ चेक करता हूँ कौन फोन कर रहा है, भारत में पहले STD से फ़ोन हो जाता था, पर अब मोबाइल फ़ोन के क्रांति के बाद SDT मिलना दूभर हो गया है.
इतना अच्छा लिखने और फोटो के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
आपको पोस्ट व फोटो पसन्द आईं, इसके लिये धन्यवाद शर्मा जी ! बिज़नेस मैन के लिये, जिसको ग्राहकों के फोन की प्रतिक्षण इंतज़ार रहती है, फोन बन्द कर के रख देना असंभव सा है। जो व्यापारी इसलिये घूमने नहीं जा सकते थे कि उनकी अनुपस्थिति में ग्राहक वापिस चले जायेंगे, अब फोन और ई-मेल के सहारे अपने ग्राहकों के नियमित संपर्क में बने रह पाते हैं । विश्व के किसी भी कोने में हों, उनके clients जरूरत पड़ने पर उनके संपर्क में बने रहते हैं तो काम चलता रहता है। हमारे कश्मीर में रहते हुए एक क्लायंट का फोन पंकज के पास आया कि मेरे चार एयर टिकट कैंसिल होने हैं और दो दिन बाद की तारीख के बुक होने हैं। अगर ऐसे में पंकज से फोन पर संपर्क न हो पाये तो वह क्लायंट अपने सिर के सारे बाल नोच लेता !
कई फोटो को एक फ्रेम में सेट कर पेश करना बहुत अच्छा लगा, इनका कथ्य भी कहानी का एक पैरा बन गया है। इसपर आचार्य चतुरसेन की एक कहानी याद आती है कि बम्बई में किस प्रकार दो दोस्तों, एक फोटोग्राफर व एक कवि में ठन जाती है और शर्त लग जाती है कि फोटोग्राफर दोस्त फोटो के माध्यम से शेर कहेंगे मतलब फोटो देखते ही वह शेर अपने आप जुबान पर आ जायेगा। दिये गये शेर पर कश्मीर में कई हप्तों भटकने के पश्चात किसी सभ्रांत युवती के पिता के सहयोग से फोटो खींची जाती है और बम्बई में उन्हें शर्त जीता माना जाता है। फ़ोटो खींचना और उसे सार्थक रूप से पेश करना भी एक बहुत बड़ी कला है।
आज का आपका लेख पढकर कश्मीर की डल झील देखने के प्रति लगाव में कमी आई है जैसे पानी के विषय मे आमिर खान के पिछले एपिसोड में जानकारी पाकर कि बृन्दावन मथुरा के मन्दिरों में भी जो यमुना के पानी का इस्तेमाल हो रहा है वह दिल्ली का मल-मूत्र है, मथुरा-बृन्दावन सहित पूरे बृज भूमि की यात्रा की चाहना बुझ सी गई।
आशा है कि आप अपने विवरणों में एक घुमक्कड की दैनिक आवश्यताओं की पूर्ति सम्बन्धित जानकारियों का समुचित समावेश करते रहेंगें।
प्रिय श्रीनिवास शर्मा जी,
आपके कमेंट और सराहना के लिये हार्दिक आभार ! हम लोग भी हाउस बोट में इसीलिये नहीं ठहरे थे क्योंकि ड्राइवर महोदय ने बोल दिया “सर, हाउस बोट में रहते हुए हमारी जितनी भी गंदगी है, सब डल में ही जाती है। खाना वगैरा उसी डल के पानी को उबाल कर बनाया जाता है” बस, हमारी धर्मप्राण महिलायें तो बिदक गईं “हमें नहीं रहना हाउसबोट में ! हाउस बोट तो अंग्रेज़ों के लिये होती थीं, इसीलिये हर हाउस बोट में एक छोटा सा इंग्लैंड का हिस्सा पानी पर तैरता रहता है – ये कहावत अस्तित्व में आई! इस अंग्रेज़ों को साफ सफाई से, शुद्धता और पवित्रता से कुछ लेना – देना नहीं है! हम तो होटल में ही रहेंगे। ”
एक बार मेरे पिताजी ने मुझसे एक प्रश्न किया, “एक व्यक्ति रात को सोते समय अपने सिरहाने पानी का लोटा रख कर सोता है ताकि रात को प्यास लगे तो पानी पी सके। रात भर वह सोता रहता है अतः लोटे में रखा हुआ पानी ऐसा का ऐसा रखा रह जाता है। सुबह को वह उठ कर जंगल जाने के लिये लोटा ले कर चल पड़ता है। अब अगर शौच के लिये बैठने से पहले उसे प्यास लग जाये तो भी वह उस लोटे का पानी नहीं पीता / नहीं पीना चाहता । ऐसा क्यों होता है?” आशा है, आप इसका जवाब दे सकेंगे।
ये प्रयोग बढिया है कई फोटो को एक साथ पिरोने को क्योंकि जब फोटो खींचते हैं तो लगता है कि सबको दिखाय जाये और जब छांटने की बारी आती है तो बडा मुश्किल हो जाता है । रोमिंग की बात सही है ज्यादा से ज्यादा 200 रू के आसपास बिल आ सकता है उसके लिये इतना परेशान क्यों होना
भाई मनु, मैने कस्मीर में हर रोज़ 500 के करीब फोटो खींची थीं ! जब से डिजिटल कैमरे अस्तित्व में आये हैं, किफायतशारी तो तेल लेने चली गई है। अब तो मशीनगन एप्रोच है। पहले हम एक – एक फोटो खींचते हुए सोचते थे कि क्या ये वास्तव में शटर दबाने लायक है? जब इसका प्रिंट बन कर आयेगा तो मन दुखेगा तो नहीं उसके पैसे देते हुए ? पर अब, न तो प्रिंट बनवाये जाते हैं, न ही निगेटिव पर खर्च आता है। इसी लापरवाही की वज़ह से मेरी फोटोग्राफी पहले से बहुत खराब हो गई है।
सुशांत जी बहुत अच्छे फोटोस, बहुत प्यारा वर्णन, धन्यवाद, वन्देमातरम.
वन्दे मातरम् प्रवीण गुप्ता जी ! आपका धन्यवाद !
आपके लेख पर टिपण्णी देना अब एक इम्तिहान माफिक हो गया है, अगर कोई साधारण सा कमेन्ट लिखो तो लगता है की क्यों खामखा समय बर्बाद कर रहे हो लेखक का | इस मूल्य जागरूक दुनिया में अपनी प्रासंगिकता बरकरार रखने के लिए एक लिंक छोड़े जा रहा हूँ | कुछ तो फैयदा हो घुमक्कड़ को दिन रात पढने का
https://www.ghumakkar.com/2009/07/31/dhanushkodi-–-no-land-only-sand/
@ सुरिंदर शर्मा जी – हिन्दुस्तान में अब मोबाइल फ़ोन रखना बहुत आसान है | रोमिंग के लिए लोग अब बहुत कम चिंता करतें हैं , क्योंके बहुत से बहुत हुआ तो १००-२०० रुपैये वो भी एक कॉर्नर केस है , सामान्यतः इससे कम ही लगता है |
आने वाले समय में ये भी ख़तम हो जाएगा ऐसा TRAI (Telephone Regulator) का सुझाव है |
डीयर नन्दन,
घुमक्कड़ डॉट कॉम ने मुझे इन तीन – चार पोस्ट में ही इतना कुछ दे दिया है कि अब मैं हर समय गाता-गुनगुनाता रहता हूं और मेरे इस बेसुरे गायन से मेरी बीवी बहुत दुःखी है।
इस मूल्य जागरुक दुनिया में आपकी प्रासंगिकता तो स्वयंसिद्ध है नन्दन जी ! एक लेखक के लिये एक संपादक भगवान के समकक्ष होता है। मुझे संपादक की मेज़ के नीचे रखी जाने वाली एक गोल – गोल सी रद्दी की टोकरी से बहुत ही ज्यादा डर लगता है। द सहारनपुर डॉट कॉम का संपादक होने के नाते मैं भी अपने संपादकीय विशेषाधिकारों का यदा-कदा इस्तेमाल कर लेता हूं और लोगों की कविताओं – कहानियों पर कैंची चला देता हूं पर फिर मेरी बीवी जब देखती है कि मेरी पोस्ट घुमक्कड़ डॉट कॉम से वापिस आ गई है तो कहती है – “अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे ! “
आपने जो लिंक भेजा है, उसकी पावती देना भूल गया था। रात को घर पहुंच कर विस्तार से उसे बांचता हूं फिर आपसे पुनः संपर्क साधा जायेगा !
ये तो शुरूआत है आगे आगे देखियेगा होता है क्या ? क्योंकि यहां के अन्य लेखको की तरह श्रीमति जी कुछ ही दिनो में घुमक्कड को सौत मानने वाली हैं पक्का और फिर लडाई होगी कि पहले पोस्ट लिखते हो फिर कमेंट करते हो फिर पोस्ट पढते हो तो एक गाना याद आता है कि ‘ सारा सारा दिन जब काम करोगे तो बात कब करोगे ‘?
घर वालों ने वह नंबर सारी दुनिया को दे दिया।
अफ़सोस मुझे नहीं दिया नहीं तों दो चार कॉल मैं भी ठुकवा देता,
आप भी ले लो जी ! आपका फोन आये तो जहे-किस्मत, जहे नसीब ! स्वर्ग से देवताओं के फोन कब – कब आते हैं ! 9808334836. ये मेरा प्रि-पेड वाला नंबर है जी, जिसे कश्मीर में जाकर सांप सूंघ गया था !
Sushantji, you have an acute eye for detail and it is amazing how unerringly accurate your observations are.
हम भारतीय पतियों की यही त्रासदी है। दुनिया में हर इंसान उनको होशियार, समझदार मानता है, सिवाय उनकी अपनी पत्नियों के! ऐसा क्यूं होता है रे, बाबूमोशाई? (I know that the last word is inserted by me but a commentator can take liberties too)
“ठीक है। आपका मामला, आप जानों।”
You could have been talking of my “वामंगिनी”!!!
Dear DL,
It is really very difficult to find new ways, new expressions to convey my gratitude to you.
As regards wives’ under-valuation of their ‘dear’ husbands, they neither allow anyone to criticize their respective husbands nor allow them being praised. Usually, a husband’s worth is evaluated from the amount of money he hands over to his wife on 1st of every month. If a person is praising a husband, he must support his feelings of adoration for the husband with a nice amount of cheque also !!!! Otherwise, even Bharat Ratna wouldn’t mean a thing as far as wives are concerned. :)
Thanks again.
Cordially,
Sushant
Undervaluation, dear Sushant? Devaluation would be more appropriate and husbands get devalued much faster than the Indian Rupee, which is the worst performing Asian currency at the moment. I wonder what Mrs. Shubhra Mukherjee feels about her lesser half, who has just been sworn in as our new President today.
Dear DL,
It is a shame that a person occupying as august a post as the President of India considers this ultimate elevation of his career ‘blessings’ of Sonia Ma’m and shows his endless gratitude and solidarity personally towards her. Who is controlling India?
When S. Manmohan Singh was asked some 8 years back by the reporters, “Did you expect to become a PM before the elections?” “PM ? Arey, main to khada ho paya ye bhi Sonia Ji ke haath ka kamaal hai.” :)
The presidency sunk to an all time when the Emergency Ordinance was signed in 1975 and has more or less remained there after that with the presidency of Dr. Kalam being the glorious exception.
Way back in 1982, when Zail Singh became the President, he said, “Had Madam (Indira Gandhi) given me a broom and asked me sweep the floor, I would have done it.” Together, the madams have shown their “kamaal” and the results are there for all to see. Now, abject sycophancy and obsequiousness are essential credentials for anyone aspiring to become the first citizen of the country.
very good post, nice photographs.over crowding ,cheating and filth all over discourages one to proceed on some tour.don’t know,how things will change and when.
Dear Ashok Sharma,
Thanks a lot. Our various state governments feel that in democracy, everyone should be allowed to behave as he or she like to behave. No discipline, no punishment for any misdeeds. They don’t want to annoy anyone. After all, they are the voters.
But even a child loves and respects his parents if they are strict. If a child is not reprimanded by his parents for any wrongdoings, he loses respect towards his parents and even feels insecure.
Kaash, hamare administrators ye baat samajh paate.
वह सुशांत जी कश्मीर में रह कर भी रामेश्वरम राम सेतु के बारे में सुंदर सोच ….. काश सबी ऐसा सोच सकते.—-
दल में हाउस बोट में ठहराना कश्मीर की सुगंध नहीं दुर्गन्ध मिलती है
अगले अंक में तो सुन्दरता ही मिलेगी ब्यूटी के साथ
धन्यवाद अन्जान जी ! मेरा प्रयास रहेगा कि जल्द ही आप तक अगली पोस्ट पहुंचाऊं । पर मेरा परिवार इस समय एक crisis से गुज़र रहा है। कल रात से अपने एक चचेरे भाई के आपरेशन के सिलसिले में देहरादून में हॉस्पिटल में आया हुआ हूं। पूरी रात आपरेशन चलता रहा है। भगवान मेरे भाई को शीघ्र स्वास्थ्य लाभ दें, इसके लिये कृपया आप सब भी दुआ करें ।
Rab rakha.
ईश्वर करे वो जल्द स्वास्थय लाभ लें
God Bless your cousin Brother.
Sorry to hear about the surgery on your cousin. Hope he gets well soon; the prayers and best wishes for a speedy recovery from all ghumakkars are with him.
ab jakar man shant hua .aapke is pure vritant ke lie bas ek hi baat, KYA BAAT,KYA BAAT KYA BAAT
भगवान शायद आप सब की दुआएं ही कुबूल कर लें ! आपका आभार !
ईश्वर से प्रार्थना है कि आपके भाई जल्दी स्वस्थ होकर घर वापस आयें.
hum sab ki duvayein aapke sath hain
accha post tha.
Pls thumbnails ki tarah photo na dalke bade photo daliye.
ek post mein aap 20 photo daal sakte hain
apko padhna accha ladta hai.
bhagawaan apke pariwar mein sabko swasth rakhein
सुशांत जी,
हमेशा की तरह उम्दा लेखन एवं लाज़वाब तस्वीरें. बस इस बार हास्य व्यंग्य बाणों की थोड़ी कमी रह गई……….अब हम क्या करें सुशांत जी, आपने अपनी शुरूआती पोस्ट्स से हमें पेट दुखने तक हंसने की आदत लगा दी है तो अब आपकी पोस्ट आते ही आँखें चमकने लगती हैं……………………कुल मिला कर आपने हमें हास्य (आदम) खोर बना दिया है. चलिए कोई बात नहीं अगली पोस्ट का इंतज़ार करते हैं.
धन्यवाद.
सभी घुमक्कड़ साथियों, लेखकों और पाठकों से करबद्ध क्षमा याचना अपनी इस दीर्घकालिक अनुपस्थिति के लिये जिसके चलते आप सब के कमेंट्स के जवाब भी नहीं दिये जा सके और न ही घुमक्कड़ साइट पर आगमन हो पाया ! हर रोज़ जब मेरे मोबाइल पर घुमक्कड़ की मेल एलर्ट आती हैं तो लगता है कि मैं बहुत कुछ ’मिस’ करता चला जा रहा हूं परन्तु अचानक बैंक में भी व्यस्तताएं बढ़ती चली गई हैं ! फिर भी, अभी अपनी ताज़ा – तरीन अमृतसर यात्रा का संस्मरण लिख रहा हूं जिसे लेकर शीघ्र ही आप सब की सेवा में हाज़िर हो पाऊंगा।