अà¤à¥€ तक आप पॠचà¥à¤•े हैं कि बैंक के कारà¥à¤¯ से इनà¥à¤¦à¥Œà¤° जाने का कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® बना तो उस दौरान खाली समय में घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ी करने का संकलà¥à¤ª लेकर मैं किस पà¥à¤°à¤•ार सहारनपà¥à¤° सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ पर अमृतसर से इनà¥à¤¦à¥Œà¤° जाने वाली à¤à¤•à¥à¤¸à¤ªà¥à¤°à¥‡à¤¸ टà¥à¤°à¥‡à¤¨ तक पहà¥à¤‚चा। मोहन जोदड़ो की खà¥à¤¦à¤¾à¤ˆ में निकले अपने टू-टीयर वातानà¥à¤•ूलित डबà¥à¤¬à¥‡ में अपनी सहयातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ डॉट कॉम के लेखकवृंद से परिचय कराते – कराते इनà¥à¤¦à¥Œà¤° जा पहà¥à¤‚चा। इंदौर सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ से गंगवाल बस अडà¥à¤¡à¥‡ और फिर तीन घंटे तक टैकà¥à¤¸à¥€ को करà¥à¤«à¥à¤¯à¥‚गà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤ धार में घà¥à¤¸à¤¾à¤¨à¥‡ का असफल पà¥à¤°à¤¯à¤¤à¥à¤¨ करके अनà¥à¤¤à¤¤à¤ƒ वापिस इनà¥à¤¦à¥Œà¤° आया, होटल में कमरा लिया! नहा-धोकर राजा-बेटा बन कर बैंक जा पहà¥à¤‚चा। अब आगे !
ये आर.à¤à¤¨.टी. – आर.à¤à¤¨.टी. कà¥à¤¯à¤¾ है?
जब से मà¥à¤à¥‡ पता चला था कि पà¥à¤°à¥‡à¥›à¥€à¤¡à¥‡à¤‚ट होटल, जिसमें मà¥à¤à¥‡ अपने पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¸ के दौरान रà¥à¤•ना है, आर à¤à¤¨ टी मारà¥à¤— पर है, मन में उतà¥à¤¸à¥à¤•ता हो रही थी कि à¤à¤²à¤¾ आर à¤à¤¨ टी से इनà¥à¤¦à¥Œà¤° के किस राजा का नाम हो सकता है? मलà¥à¤¹à¤¾à¤° राव, तà¥à¤•ोजी राव, अहिलà¥à¤¯à¤¾à¤¬à¤¾à¤ˆ जैसे नाम ही बार-बार सà¥à¤¨à¤¨à¥‡ में आ रहे थे मगर इनमें से कोई à¤à¥€ नाम फिट नहीं बैठरहा था। कई लोगों से पूछा पर सब ने यही कहा कि हर कोई आर à¤à¤¨Â टी ही कहता है।  अनà¥à¤¤à¤¤à¤ƒ à¤à¤• समà¤à¤¦à¤¾à¤° सा इंसान खोज कर उससे पूछा कि “à¤à¤¾à¤ˆà¤¸à¤¾à¤¹à¤¬, ये आर.à¤à¤¨.टी. कà¥à¤¯à¤¾ है†तो उतà¥à¤¤à¤° सà¥à¤¨ कर मैं सनà¥à¤¨ रह गया कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि उतà¥à¤¤à¤° मिला, रवीनà¥à¤¦à¥à¤° नाथ टैगोर ! ये तो बगल में छोरा, नगर में ढिंढोरा वाला मामला हो गया था। खैर।Â
आर.à¤à¤¨.टी. मारà¥à¤— से जावरा कंपाउंड इलाके की दूरी आधा किमी à¤à¥€ नहीं है अतः पैदल चलना बहà¥à¤¤ आननà¥à¤¦à¤¦à¤¾à¤¯à¤• अनà¥à¤à¤µ हो रहा था। फरवरी का मौसम वैसे à¤à¥€ कसà¥à¤Ÿà¤®-मेड लग रहा था। हमारी बैंक शाखा सियागंज से जावरा कंपाउंड में अà¤à¥€ हाल ही में सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤°à¤¿à¤¤ हà¥à¤ˆ थी और मेरी देखी हà¥à¤ˆ नहीं थी। पूरी बारीकी से शाखा का निरीकà¥à¤·à¤£ परीकà¥à¤·à¤£ किया गया। सारे सà¥à¤Ÿà¤¾à¤« से à¤à¥€ परिचय हà¥à¤†à¥¤Â दोपहर को जब à¤à¥‚ख लगने लगी तो बैंक से à¤à¤• अधिकारी मà¥à¤à¥‡ à¤à¤• हलवाई की दà¥à¤•ान पर लेगये और चाट खिलाई! मà¥à¤à¥‡ बड़ा आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯ हà¥à¤† कि इंदौर वासी खाना खाने के समय à¤à¥€ खाना नहीं खाते, बलà¥à¤•ि चाट खाते हैं। शाम को सारे सà¥à¤Ÿà¤¾à¤« को होटल में आने का आदेश देकर तक मैं चार बजे वापिस होटल में आ गया। बैंक में बà¥à¤ˆ काम कर रहे थे, लगातार ठक-ठक से मेरा जी घबराने लगा था। शाम को छः बजे से साà¥à¥‡ सात बजे तक सà¥à¤Ÿà¤¾à¤« की मीटिंग ली गई और फिर उनको विदा करने के बाद सोचा कि अब कà¥à¤¯à¤¾ किया जाये। कहां जायें?
सैंटà¥à¤°à¤² मॉल
गूगलदेव से पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ जानकारी के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° सैंटà¥à¤°à¤² मॉल आर.à¤à¤¨.टी. मारà¥à¤— पर ही था। खाना मॉल में ही खा लूंगा, यह सोच कर मैं होटल से बाहर सड़क पर निकल आया। हलà¥à¤•ी – हलà¥à¤•ी बूंदाबांदी हो रही थी। तà¤à¥€ मà¥à¤•ेश à¤à¤¾à¤²à¤¸à¥‡ का फोन आ गया और उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने बताया कि उनका बाहर जाने का कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® आगे सरक गया है और अब वह रविवार को मेरा साथ दे सकते हैं। इससे पहले दो बार पहले à¤à¥€ मà¥à¤•ेश से मेरी बातचीत सहारनपà¥à¤° में रहते हà¥à¤ फोन से हà¥à¤ˆ थी। वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤—त परिचय कà¥à¤› नहीं था पर यह घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ डॉट कॉम का पà¥à¤°à¤¤à¤¾à¤ª ही कहना चाहिये कि हम दोनों ही à¤à¤• दूसरे से मिलने के लिये वà¥à¤¯à¤¾à¤•à¥à¤² थे।  मैं सड़क पर चलते हà¥à¤ फोन पर बात करते-करते à¤à¤• विशालकाय मॉल तक आगया जो कि सैंटà¥à¤°à¤² मॉल ही सिदà¥à¤§ हà¥à¤ˆ!  कमाल है à¤à¤ˆ!   इसका मतलब गूगलदेव की बात सही थी।  मॉल के पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° पर खड़े – खड़े ही मैने मà¥à¤•ेश को बताया कि कल शनिवार को २ बजे तक का बैंक होगा, उसके बाद मैं पूरी तरह से उनके निरà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¤¾à¤¨à¥à¤¸à¤¾à¤° ही चलूंगा। यही तय पाया गया कि मैं अगले दिन इनà¥à¤¦à¥Œà¤° से अधिकतम तीन बजे धार वाली बस पकड़ कर घाटाबिलोद के लिये चल पड़ूंगा।
हमारी धार शाखा का à¤à¤• सà¥à¤Ÿà¤¾à¤« अधिकारी शनिवार को इंदौर शाखा में उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ था और उसे तीन बजे इंदौर से धार सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ अपने घर के लिये निकलना था। वह और मैं साथ-साथ इंदौर से घाटाबिलोद तक जायेंगे, यह कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® मैने अगले दिन सà¥à¤¬à¤¹ बैंक में पहà¥à¤‚चते ही निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ कर लिया था। पर खैर, फिलहाल तो सैंटà¥à¤°à¤² मॉल की बात करें।
बिना जेब में धेला लिये मॉल दरà¥à¤¶à¤¨
सैंटà¥à¤°à¤² मॉल कैसा था, कहां था? आर.à¤à¤¨.टी. मारà¥à¤— कà¥à¤² जमा १ किमी लंबी सड़क है जिसके à¤à¤• छोर पर होटल पà¥à¤°à¥‡à¥›à¥€à¤¡à¥‡à¤‚ट और दूसरे छोर पर सैंटà¥à¤°à¤² मॉल है। दोनों छोरों के बीच में अहिलà¥à¤¯à¤¾ बाई होलà¥à¤•र विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ है। सैंटà¥à¤°à¤² मॉल वाला छोर महातà¥à¤®à¤¾ गांधी चौक पर समापà¥à¤¤ होता है। जब इस चौक का नाम महातà¥à¤®à¤¾ गांधी चौक रख दिया गया तो सà¥à¤µà¤¾à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤• रूप से वहां गांधी जी की à¤à¤• पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤à¤¾ की à¤à¥€ सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ की गई। यह à¤à¥€ हो सकता है कि पहले पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾ रखी गई हो और फिर चौक का नामकरण किया गया हो। मैने इस मामले में जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ आर. à¤à¤‚ड डी. करने की जरूरत नहीं समà¤à¥€à¥¤Â सबसे विचितà¥à¤° संयोग तो ये देखिये कि जिस सड़क पर ये गांधी जी à¤à¤• लॉन के बीच में बà¥à¤¤ की तरह से खड़े हà¥à¤ पाये गये, उस सड़क का नाम à¤à¥€ महातà¥à¤®à¤¾ गांधी मारà¥à¤— ही निकला! पर खैर, फिलहाल तो सैंटà¥à¤°à¤² मॉल की बात करें।
जब मैने मॉल के पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° की, तथा वहां अपना अंग पà¥à¤°à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨ करने के लिये खड़ी हà¥à¤ˆ नयी नवेली रकà¥à¤¤à¤µà¤°à¥à¤£ शैवरले बीट à¤à¤²à¤Ÿà¥€ कार की फोटà¥à¤à¤‚ उतारनी शà¥à¤°à¥ की तो वहां खड़े हà¥à¤ सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ करà¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¥€ ने मà¥à¤à¥‡ कà¥à¤› नहीं कहा। पर जब मैं मॉल में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ करने हेतॠआगे बà¥à¤¾ तो उसने बड़े आदर से मà¥à¤à¥‡ कहा कि मैं कृपया मॉल के अनà¥à¤¦à¤° किसी दà¥à¤•ान में चितà¥à¤° न लूं। मैने कहा कि दà¥à¤•ान के अनà¥à¤¦à¤° के न सही, बाहर कॉरिडोर के तो ले सकता हूं तो वह बोला, यहां सब दà¥à¤•ान और कॉरिडोर à¤à¤• ही बात है। मैने जैंटिलमैन की तरह से पकà¥à¤•ा पà¥à¤°à¥‹à¤®à¤¿à¤¸ कर लिया कि फोटो नहीं खींचूंगा। पर फिर à¤à¥€ अनà¥à¤¦à¤° जो फोटो मैने खींचीं सो आपकी सेवा में पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ हैं।
संà¤à¤µà¤¤à¤ƒ तीसरी मंजिल पर जाकर à¤à¤• ओर खेल कूद की दà¥à¤•ानें और दूसरी ओर खाने पीने के रेसà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤‚ दिखाई दिये। जेब में हाथ मार कर देखा तो पता चला कि मेरे सारे पैसे तो होटल में ही छूट गये हैं। अब दोबारा किसी à¤à¥€ हालत में होटल जाने और वापिस आने का मूड नहीं था। पैंट की, शरà¥à¤Ÿ की जेब बार – बार देखी पर à¤à¤Ÿà¥€à¤à¤® कारà¥à¤¡ के अतिरिकà¥à¤¤ कà¥à¤› नहीं मिला।  कैमरे के बैग की à¤à¤• जेब में हाथ घà¥à¤¸à¤¾à¤¯à¤¾ तो मà¥à¥œà¤¾ तà¥à¥œà¤¾ सा १०० रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ का à¤à¤• नोट हाथ में आ गया। उस समय मà¥à¤à¥‡ ये १०० रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ इतने कीमती दिखाई दिये कि बस, कà¥à¤¯à¤¾ बताऊं ! छोले à¤à¤Ÿà¥‚रे का जà¥à¤—ाड़ तो हो ही सकता था। वही खा कर मॉल से बाहर निकल आया। सोचा इस बार सड़क के दूसरे वाले फà¥à¤Ÿà¤ªà¤¾à¤¥ से वापस होटल तक जाया जाये। सड़क का डिवाइडर पार कर उधर पहà¥à¤‚चा तो à¤à¤• छोटा सा अषà¥à¤Ÿà¤•ोणीय (या शायद षटà¥â€Œà¤•ोणीय रहा होगा) à¤à¤µà¤¨ दिखाई दिया जिसकी छत पर à¤à¤• सà¥à¤¤à¤‚ठà¤à¥€ था। सà¤à¥€ दीवारों पर जैन धरà¥à¤® से संबंधित आकृतियां उकेरी गई थीं। यह जैनियों की किसी संसà¥à¤¥à¤¾ का कारà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ था, जिसमें छोटे-छोटे दो कमरे बैंकों ने à¤à¤Ÿà¥€à¤à¤® के लिये किराये पर à¤à¥€ लिये हà¥à¤ थे। à¤à¤Ÿà¥€à¤à¤® देख कर मेरी जान में जान आई और मैने तà¥à¤°à¤¨à¥à¤¤ कà¥à¤› पैसे निकाल लिये कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि मेरी जेब में अब सिरà¥à¤« १० रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ का ही à¤à¤• नोट बाकी था।
वरà¥à¤·à¤¾ तो रà¥à¤• चà¥à¤•ी थी पर सड़कें गीली थीं। गीली सड़क पर सà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤Ÿ लाइटà¥à¤¸ और वाहनों की लाइटें अचà¥à¤›à¤¾ दृशà¥à¤¯ उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ कर रही थीं। वापिस होटल में आया तो टी.वी. चला कर धार से संबंधित समाचार देखे। ’सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ दिन à¤à¤° तनावपूरà¥à¤£ किनà¥à¤¤à¥ नियंतà¥à¤°à¤£ में’ बताई जा रही थी।  टी.वी. की चैनल उलटते – पà¥à¤²à¤Ÿà¤¤à¥‡ रात के बारह बज गये और अनà¥à¤¤à¤¤à¤ƒ मैं सो गया।
इनà¥à¤¦à¥Œà¤° की पैदल घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ी
सà¥à¤¬à¤¹ छः बजे आंख खà¥à¤²à¥€à¤‚ तो खिड़की से बाहर à¤à¤¾à¤‚क कर अंधेरा ही पाया। नितà¥à¤¯ करà¥à¤® से निवृतà¥à¤¤ होते होते साà¥à¥‡ छः बज गये।  फिर सवाल मन में आया कि अब कà¥à¤¯à¤¾ करूं? लगा कि दिन में तो बैंक में रहना है, अगर इंदौर में घूमना है तो à¤à¤¸à¥‡ ही सà¥à¤¬à¤¹ या शाम को टाइम निकालना पड़ेगा। मैं अपने टà¥à¤°à¥ˆà¤• सूट में ही,  हवाई चपà¥à¤ªà¤² पहन कर और कंधे पर कैमरा लटका कर सड़क पर आ गया।  इस लोकल छाप वेश à¤à¥‚षा में कंधे पर Nikon का DSLR देख कर जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾à¤¤à¤° लोग मà¥à¤à¥‡ किसी न किसी समाचार पतà¥à¤° का पतà¥à¤°à¤•ार समà¤à¤¤à¥‡ रहे। कà¥à¤› ने तो पूछा à¤à¥€ कि कौन से पेपर से हूं ! मैने बता दिया – घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ डॉट कॉम से !
होटल से इस बार सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ की दिशा पकड़ी और आधे अंधेरे – आधे उजाले में, सड़क पर कहीं – कहीं रà¥à¤•े हà¥à¤ पानी से अपने को बचाते हà¥à¤, अंदाज़े से सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ की दिशा में बà¥à¤¤à¤¾ चला गया। आगे à¤à¤• फà¥à¤²à¤¾à¤ˆà¤“वर मिला उसे छोड़ कर आगे बà¥à¤¾ तो रेलवे की बाउंडà¥à¤°à¥€ वाल à¤à¥€ आगई जिसके काफी ऊपर से फà¥à¤²à¤¾à¤ˆà¤“वर जा रहा था! सोचा कि रेलवे लाइन के उस पार जाना है तो फà¥à¤²à¤¾à¤ˆ ओवर से जाना ही सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ रहेगा अतः फà¥à¤²à¤¾à¤ˆà¤“वर की जड़ में मौजूद सीà¥à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ खोज निकालीं जिन पर चॠकर सीधे फà¥à¤²à¤¾à¤ˆà¤“वर पर जा पहà¥à¤‚चा। सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ के उस पार जाकर देखा कि नीचे उतरने के लिये फिर सीà¥à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ मौजूद हैं, अतः फटाफट नीचे उतर आया। अब मैं सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ की सियागंज वाली दिशा में आ चà¥à¤•ा था। संकरी गली में से निकल कर सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ के मà¥à¤–à¥à¤¯ पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° तक आ गया।  इस समय मैं अपने आपको वासà¥à¤•ोडिगामा के कम नहीं समठरहा था। सोचा कि पहले तो रेलवे सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ की आर.à¤à¤‚ड डी. की जाये। बस, à¤à¤• पà¥à¤²à¥‡à¤Ÿà¤«à¥‰à¤°à¥à¤® टिकट खरीदा और पहà¥à¤‚च गया पà¥à¤²à¥‡à¤Ÿà¤«à¥‰à¤°à¥à¤® पर!   वैसे मैं अपने सहारनपà¥à¤° रेलवे सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ पर पà¥à¤²à¥‡à¤Ÿà¤«à¤¾à¤°à¥à¤® टिकट खरीदने की जहमत नहीं उठाता पर à¤à¤• अनजाने शहर में रिसà¥à¤• लेना उचित नहीं लगा, अतः पांच रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ का खून मंजूर कर लिया।  अमृतसर से इंदौर आने वाली टà¥à¤°à¥‡à¤¨ पà¥à¤¨à¤ƒ पà¥à¤²à¥‡à¤Ÿà¤«à¥‰à¤°à¥à¤® पर पदारà¥à¤ªà¤£ कर रही थी जिसकी बहन मà¥à¤à¥‡ कल यहां तक लाई थी ।   मैं मीटर गेज़ वाली दिशा में जाने के लिये ओवरबà¥à¤°à¤¿à¤œ पर चà¥à¤¾, पà¥à¤²à¥‡à¤Ÿà¤«à¤¾à¤°à¥à¤® नं० १ पर उतरा और बाहर निकल आया।
वाह, कà¥à¤¯à¤¾ बात है! सामने ही à¤à¤• कोयले का इंजन सजा कर रखा हà¥à¤† था। उसकी à¤à¥€ आर.à¤à¤‚ड डी. की गई। वहां से आगे बà¥à¤¾ तो गà¥à¤µà¤¾à¤²à¤Ÿà¥‹à¤²à¥€ थाना मिल गया। वहां पर पोहे जलेबी की कई सारी दà¥à¤•ानें थीं। हे à¤à¤—वान, इन इंदौर वालों की मति सà¥à¤§à¤¾à¤°à¥‹ ! जब देखो, पोहा – जलेबी ! खैर, सौà¤à¤¾à¤—à¥à¤¯ से मà¥à¤à¥‡ दोनों ही आइटम à¤à¤¾à¤¤à¥‡ हैं अतः मैंने २४ घंटे के इंदौर पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¸ में तीसरी बार पोहा – जलेबी का à¤à¥‹à¤— लगाया। वहां से आगे बà¥à¤¾ तो खà¥à¤¦ को महातà¥à¤®à¤¾ गांधी रोड वाले फà¥à¤²à¤¾à¤ˆà¤“वर के नीचे पाया। आगे बà¥à¤¾ तो दोबारा सैंटà¥à¤°à¤² मॉल पर आ पहà¥à¤‚चा। रात को यह लाल रंग का मॉल जितना हलचल से à¤à¤°à¤ªà¥‚र और गà¥à¤²à¥ˆà¤®à¤°à¤¸ दिखाई दे रहा था, सà¥à¤¬à¤¹ उतना ही उजाड़ और उदास! आर à¤à¤¨ टी मारà¥à¤— को पीछे छोड़ते हà¥à¤ महातà¥à¤®à¤¾ गांधी मारà¥à¤— पर ही आगे बà¥à¤¾ तो महसूस होने लगा कि इनà¥à¤¦à¥Œà¤° मूलतः à¤à¤• अचà¥à¤›à¤¾, समà¤à¤¦à¤¾à¤°à¥€ से बसाया हà¥à¤† शहर है। हमारे सहारनपà¥à¤° में तो कहीं फà¥à¤Ÿà¤ªà¤¾à¤¥ हैं ही नहीं पर यहां फà¥à¤Ÿà¤ªà¤¾à¤¥ न सिरà¥à¤« à¤à¤°à¤ªà¥‚र थे अपितॠसà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° à¤à¥€ थे।  वहीं à¤à¤• नवगà¥à¤°à¤¹ पारà¥à¤• मिला । उसमें पà¥à¤°à¤µà¤¿à¤·à¥à¤Ÿ हà¥à¤† तो देखा कि अनेकानेक सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ – पà¥à¤°à¥à¤· अपना वज़न कम करने की दà¥à¤°à¤¾à¤¶à¤¾ में पारà¥à¤• में तेज़ – तेज़ चकà¥à¤•र लगा रहे थे। à¤à¤• ई-लाइबà¥à¤°à¥‡à¤°à¥€ à¤à¥€ दिखाई दी जो सà¥à¤¬à¤¹ के समय बनà¥à¤¦ थी। नवगà¥à¤°à¤¹ पारà¥à¤• छोड़ कर आगे बà¥à¤¾ तो पता चला कि मेरी दाईं ओर इंदौर हाई कोरà¥à¤Ÿ मौजूद है। गà¥à¤°à¤¿à¤² के बीच में से कैमरा घà¥à¤¸à¤¾ कर मà¥à¤–à¥à¤¯ à¤à¤µà¤¨ का à¤à¤• चितà¥à¤° लिया। आगे मोड़ पर हाईकोरà¥à¤Ÿ में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ हेतॠमà¥à¤–à¥à¤¯ दà¥à¤µà¤¾à¤° था और बहà¥à¤¤ खूबसूरत लॉन दिखाई दे रहा था। पर सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ करà¥à¤®à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ ने अनà¥à¤¦à¤° नहीं जाने दिया।  मैने कहा कि मà¥à¤–à¥à¤¯ à¤à¤µà¤¨ के अनà¥à¤¦à¤° थोड़ा ही जा रहा हूं, सिरà¥à¤« लॉन तक, पर नहीं, मना कर दिया गया। यू. पी. हो या à¤à¤®.पी. – पà¥à¤²à¤¿à¤¸ सब जगह à¤à¤• जैसी ही है।
अब तक साà¥à¥‡ आठसे अधिक का समय हो चà¥à¤•ा था, अतः अंदाज़े से à¤à¤¸à¥€ सड़क पकड़ी जो होटल पà¥à¤°à¥‡à¥›à¥€à¤¡à¥‡à¤‚ट के आस-पास कहीं जा कर निकलने की उमà¥à¤®à¥€à¤¦ थी। पर जब यह सड़क आर.à¤à¤¨.टी. मारà¥à¤— पर जा कर खà¥à¤²à¥€ तो सामने अहिलà¥à¤¯à¤¾ बाई होलà¥à¤•र विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ का मà¥à¤–à¥à¤¯ पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° दिखाई दिया जो रात को फोन पर बात करते करते मेरी दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से चूक गया था।  वहां से बाईं ओर की सड़क पकड़ कर दो-चार मिनट में ही अपने होटल तक पहà¥à¤‚चा और बिसà¥à¤¤à¤° पर पसर गया। इतना पैदल चलने का à¤à¤²à¤¾ अब कहां अà¤à¥à¤¯à¤¾à¤¸ रह गया था! वैसे à¤à¥€ मेरी हवाई चपà¥à¤ªà¤² à¤à¤•à¥à¤¯à¥‚पà¥à¤°à¥‡à¤¶à¤° वाली थी जिसमें रबर की ही सही, पर नà¥à¤•ीली कीलों का बिसà¥à¤¤à¤° बना हà¥à¤† था। गीज़र से गरà¥à¤® पानी लेकर मैने अपने पैरों की तन-मन से खूब सेवा की और उनको दरà¥à¤ªà¤£ सा चमकाया।
होटल का मैनà¥à¤¯à¥‚ कारà¥à¤¡ और उसमें लिखे हà¥à¤ रेट देख कर मà¥à¤à¥‡ रूम सरà¥à¤µà¤¿à¤¸ का इसà¥à¤¤à¥‡à¤®à¤¾à¤² करने की इचà¥à¤›à¤¾ नहीं थी। दर असल, मेरी यातà¥à¤°à¤¾ का समसà¥à¤¤ वà¥à¤¯à¤¯ बैंक के जिमà¥à¤®à¥‡ था और मैं अनावशà¥à¤¯à¤• रूप से बिल बà¥à¤¾à¤¨à¥‡ को अनà¥à¤šà¤¿à¤¤ मान रहा था। वैसे तो मैं रासà¥à¤¤à¥‡ में ही पोहा और जलेबी खा चà¥à¤•ा था पर उसके बाद इतने किलोमीटर पैदल चल कर à¤à¤¸à¤¾ लग रहा था कि वह पोहा जलेबी खाये हà¥à¤ कई घंटे बीत चà¥à¤•े होंगे।  अतः बैंक जाते हà¥à¤ जावेरा कंपाउंड में ही à¤à¤• साउथ इंडियन रेसà¥à¤Ÿà¥‹à¤°à¥‡à¤‚ट दिखाई दिया तो वहां उतà¥à¤¥à¤ªà¤® और छाछ पीकर मूछों को ताव देता हà¥à¤† बैंक जा पहà¥à¤‚चा।
जिस शहर के लोगों को मॉल संसà¥à¤•ृति बहà¥à¤¤ à¤à¤¾à¤¨à¥‡ लगती है, वहां दवाइयों की दà¥à¤•ानों को à¤à¥€ मॉल ही कहा जाता है। हमारा बैंक जिस जावेरा कंपाउंड नामक विशाल कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में है वहां ’मेडिमॉल’ के नाम से सैंकड़ों दà¥à¤•ानें सिरà¥à¤« दवाइयों की ही थीं। मà¥à¤à¥‡ à¤à¤• वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ ने बताया कि इस बिलà¥à¤¡à¤¿à¤‚ग कांपà¥à¤²à¥‡à¤•à¥à¤¸ में चार सौ से अधिक दà¥à¤•ानें हैं और सà¤à¥€ कैमिसà¥à¤Ÿ हैं। मà¥à¤à¥‡ लगा कि अगर इस शहर में खाने के बजाय खसà¥à¤¤à¤¾ कचौरी और चाट ही खाई जाती है तो दवाई की चार सौ कà¥à¤¯à¤¾, चार हज़ार दà¥à¤•ानें à¤à¥€ कम पड़ेंगी।
आज मेरे लिये इंदौर शाखा के कà¥à¤› महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ गà¥à¤°à¤¾à¤¹à¤•ों के साथ मà¥à¤²à¤¾à¤•ात तय थी। वह बैठक संपनà¥à¤¨ करते करते दो बज गये। बैंक के अधिकारी मà¥à¤à¥‡ पà¥à¤¨à¤ƒ उस कचौरी की दà¥à¤•ान पर लेजाने लगे तो मैने हाथ जोड़ कर कà¥à¤·à¤®à¤¾ याचना करके कहा कि मà¥à¤à¥‡ तो दाल- रोटी और सबà¥à¥›à¥€ ही चाहिये। जब मेरे सहकरà¥à¤®à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ ने कहा कि इसके लिये तो होटल पà¥à¤°à¥‡à¥›à¥€à¤¡à¥‡à¤‚ट ही सबसे अचà¥à¤›à¤¾ विकलà¥à¤ª है तो मैने à¤à¥€ कहा कि à¤à¤¸à¤¾ है तो यही सही ! अपने धार वाले सहकरà¥à¤®à¥€ को लेकर बैंक से होटल आया। खाना खाया, आटो पकड़ा और पà¥à¤¨à¤ƒ गंगवाल बस अडà¥à¤¡à¥‡ पर पहà¥à¤‚चे ! चूंकि धारा १४४ वगैरा हटा ली गई थी और बसें सà¥à¤¬à¤¹ से ही सामानà¥à¤¯ रूप से चल रही थीं, अतः हमें अडà¥à¤¡à¥‡ से बाहर निकलती हà¥à¤ˆ धार जाने वाली à¤à¤• बस दिखाई दी तो लपक कर उसमें चॠलिये। उस बस पर धार नहीं, कà¥à¤› और गंतवà¥à¤¯ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ लिखा हà¥à¤† था अतः मैं अकेला होता तो शायद उस बस को छोड़ बैठता परनà¥à¤¤à¥ मेरे साथ à¤à¤• सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ बैंककरà¥à¤®à¥€ था अतः उसकी जानकारी मेरे à¤à¥€ काम आई। यह बस अनà¥à¤¯ बसों की तà¥à¤²à¤¨à¤¾ में बहà¥à¤¤ तीवà¥à¤°à¤—ामी साबित हà¥à¤ˆ और इसने १ घंटे में ही मà¥à¤à¥‡ घाटाबिलोद उतार दिया।
जिन पाठकों को नहीं पता होगा, उनकी जानकारी के लिये बताना उचित रहेगा कि घाटाबिलोद à¤à¤• छोटा कसà¥à¤¬à¤¾ है जो इनà¥à¤¦à¥Œà¤° – धार राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ राजमारà¥à¤— कà¥à¤°à¤®à¤¾à¤‚क ५९ पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है और इसे इनà¥à¤¦à¥Œà¤° और धार के लगà¤à¤— मधà¥à¤¯ में माना जा सकता है। मà¥à¤•ेश घाटाबिलोद से चार किमी और आगे (धार की ओर) सेजवाया नामक गà¥à¤°à¤¾à¤® में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ रà¥à¤šà¤¿ सà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤¿à¤ªà¥à¤¸ लि. नामक कंपनी में गà¥à¤£à¤µà¤¤à¥à¤¤à¤¾ नियंतà¥à¤°à¤£ अधिकारी हैं और कंपनी के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ निरà¥à¤®à¤¿à¤¤ आवासीय कालोनी में कंपनी दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ ही पà¥à¤°à¤¦à¤¤à¥à¤¤ अपारà¥à¤Ÿà¤®à¥ˆà¤‚ट में अपने पà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥‡ से परिवार के साथ रहते हैं।  मà¥à¤à¥‡ उमà¥à¤®à¥€à¤¦ थी कि दो-à¤à¤• घंटे मà¥à¤•ेश से मà¥à¤²à¤¾à¤•ात करके मैं इनà¥à¤¦à¥Œà¤° वापिस आ जाऊंगा, पर फिर à¤à¥€ अपने कैमरे वाले बैग में मैने रात के मतलब के कपड़े रख लिये थे ताकि यदि वहीं रà¥à¤•ने का मूड बना तो असà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ न हो।  मेरी और मà¥à¤•ेश की आयॠमें परà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ अंतर है अतः मेरा साथ उनको कितना रà¥à¤šà¤¿à¤•र रहेगा, मà¥à¤à¥‡ पता नहीं था अतः मैं मानसिक रूप से होटल में ही वापिस आने की तैयारी से ही गया था।
à¤à¤•à¥à¤¸à¤ªà¥à¤°à¥‡à¤¸ टाइप की बस मिल जाने के कारण मैं समय से पहले ही घाटाबिलोद पहà¥à¤‚च गया था। मà¥à¤•ेश à¤à¤¾à¤²à¤¸à¥‡ को मेरे साà¥à¥‡ पांच बजे से पहले पहà¥à¤‚च पाने की कोई आशा नहीं थी।  मैने फोन किया तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कहा कि मैं वहीं बस सà¥à¤Ÿà¥ˆà¤‚ड के आस-पास रà¥à¤•ूं और वह मà¥à¤à¥‡ लेने आ रहे हैं।  वह अपने उचà¥à¤š अधिकारी से अनà¥à¤®à¤¤à¤¿ लेकर मà¥à¤à¥‡ लेने आयेंगे। इस पर मैने कहा कि यदि à¤à¤•-आधा किमी की ही दूरी है तो कोई जरूरत नहीं है, मैं पैदल ही आराम से पहà¥à¤‚च सकता हूं, पर उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कहा कि नहीं, मैं वहीं रà¥à¤•ूं कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि रासà¥à¤¤à¤¾ पैदल आने लायक नहीं है।
घाटाबिलोद बस सà¥à¤Ÿà¥ˆà¤‚ड के पास ही à¤à¤• शासकीय उचà¥à¤š माधà¥à¤¯à¤®à¤¿à¤• विदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ और उसमें मां सरसà¥à¤µà¤¤à¥€ का à¤à¤• मंदिर बना हà¥à¤† दिखाई दे रहा था। à¤à¤• पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾ सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ विवेकाननà¥à¤¦ की à¤à¥€ थी। मà¥à¤à¥‡ लगा कि ये तो कोई अपनी ही विचारधारा के लोगों दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ संचालित संसà¥à¤¥à¤¾ है।  जिजà¥à¤žà¤¾à¤¸à¤¾à¤µà¤¶ मैने उसमें पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ किया और मां सरसà¥à¤µà¤¤à¥€ की पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾ का चितà¥à¤° लेने लगा। तà¤à¥€ कà¥à¤°à¥à¤¤à¤¾ धोती जैकेट पहने हà¥à¤ à¤à¤• दाà¥à¥€à¤µà¤¾à¤²à¥‡ सजà¥à¤œà¤¨ आये और बोले कि अगर चितà¥à¤° लेना चाहते हैं तो मैं मंदिर का दà¥à¤µà¤¾à¤° खोल देता हूं, आप आराम से चितà¥à¤° ले लें। दो-चार चितà¥à¤° लेने के बाद परिचय हà¥à¤† । उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने बताया कि वह इस विदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ के पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤¾à¤šà¤¾à¤°à¥à¤¯ हैं। कà¥à¤› और à¤à¥€ अधà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• वहां थे, उन सब से परिचय हà¥à¤†, मधà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ की à¤à¤¾à¤œà¤ªà¤¾ सरकार की करà¥à¤®à¤ ता की काफी सारी पà¥à¤°à¤¶à¤‚सा उनके शà¥à¤°à¥€à¤®à¥à¤– से सà¥à¤¨à¥€à¥¤Â जब मैने कहा कि सड़कों की हालत तो यहां बहà¥à¤¤ खराब है तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने बताया कि ये सरकार सड़कों के निरà¥à¤®à¤¾à¤£ को ही सबसे अधिक पà¥à¤°à¤¾à¤¥à¤®à¤¿à¤•ता दे रही है और बहà¥à¤¤ तेज़ी से सड़कों का जाल पूरे मधà¥à¤¯à¤ªà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ में बिछाया जा रहा है। यह सड़क à¤à¥€ आज टूटी हà¥à¤ˆ दिखाई दे रही है, परनà¥à¤¤à¥ दो महीने में शायद पूरी नई बन चà¥à¤•ी होगी।
पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤¾à¤šà¤¾à¤°à¥à¤¯ जी की धरà¥à¤®à¤ªà¤¤à¥à¤¨à¥€ तब तक सब के लिये चाय ले आई थीं। मà¥à¤•ेश का पà¥à¤¨à¤ƒ फोन आया कि वह मोटर साइकिल पर आ रहे हैं और विदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ से ही मà¥à¤à¥‡ पिक अप कर लेंगे अतः मैं यहीं रà¥à¤•ा रहूं। मà¥à¤à¥‡ लग रहा था कि मैं मà¥à¤•ेश को पहचानूंगा कैसे? मैने उनके कà¥à¤› चितà¥à¤° घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ साइट पर ही देखे थे।  पर जब वह सामने आकर खड़े हà¥à¤ तो बिना नाम की पà¥à¤·à¥à¤Ÿà¤¿ किये ही हम गले लग गये। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने मà¥à¤à¥‡ अपनी मोटर साइकिल पर पीछे बैठाया और सेजवाया के लिये चल पड़े।
असली कहानी तो अब शà¥à¤°à¥ होने जा रही है दोसà¥à¤¤ !
सुशांत जी,
पुनः दिलचस्प वर्णन तथा सुन्दर छायाचित्र। फोटोग्राफी के प्रति आपका जूनून तो हमें मांडू में देखने को मिला था। बाज बहादुर तथा रूपमती के प्रेम के किस्से सुनाते मांडू के स्मारकों के हर एक हिस्से को अपने कैमरे में कैद करने की लालसा में जैसे आप खो से गए थे, और हम लोग हर दस मिनट के बाद आपको खोजते रहते थे।
मुझे अटल विश्वास है की आगे आनेवाली पोस्ट्स में मांडू के एतिहासिक स्मारकों के चित्रों को देखकर घुमक्कड़ के सभी पाठक आपकी छायाचित्राकारी के कायल हुए बिना नहीं रह सकेंगे।
आपसे एक विशेष अनुरोध है की मांडू की पोस्ट में आप बाज बहादुर तथा रानी रूपमती की कहानी को जरुर स्थान दिजियेगा.
अगली पोस्ट का बेसब्री से इंतज़ार रहेगा.
प्रिय मुकेश,
आपकी इच्छा सिर माथे ! मांडू का वर्णन विस्तृत रखने का प्रयास करूंगा। पर मांडू तक पहुंचने से पहले भी तो बहुत कुछ है। :D
सुशांत जी,
आपने जो घाटा बिल्लोद कस्बे का परिचय दिया उसमें एक चीज़ और जोड़ना चाहता हूँ। यह कस्बा चम्बल नदी के किनारे बसा है, वही चम्बल नदी जिसकी गोद में खेलकर फूलन देवी, मलखान सिंह, लाखन सिंह, सीमा परिहार और ददुआ जैसे दस्युओं नें आतंक की वो आंधियां चलाईं जिसे रोकने के लिए एम.पी., यु.पी. और राजस्थान पुलिस को पसीने आ गए। चम्बल नदी पान सिंह तोमर जैसे बागियों की भी कर्मस्थली रही है।
आपने चम्बल नदी के पुल को पार करके ही घाटा बिल्लोद में प्रवेश किया था।
प्रिय मुकेश,
चंबल के बीहड़ों के बारे में पुख्ता जानकारी देने के लिये हार्दिक धन्यवाद जी !
श्री सुशांत जी
मुकेश जी के अनुसार अब आप भी चम्बल रिटर्न हो गए है जहा आतंकवादी नहीं बागी पाए जाते है। आपने फोटो की तारीफ सुनने के तो आप आदी हो चुके है लेकिन बिना तारीफ किये रह भी नहीं सकते। ऐसे ऐसे फोटो जिन पर शायद हम जैसे आम लोगो का ध्यान भी नहीं जाता आपके कैमरे से खिचे जाने के कारण खास हो गए है।
आप इंदौर से कई प्रकार की नमकीन लेकर भी जरूर आये होगे क्योकि वो बहुत मशहूर है, मै तो जब गया था तब १० पैकेट तो लोगो के ऑर्डर पर लाया ही था। वहा लोग खाने मे सब्जी के साथ नमकीन भी लंच मे आकर आते थे और चाट तो वहा की मशहूर है ही।
आपके द्वारा दिया गया वर्णन उपयोगी तो है ही साथ ही मनोरंजक भी है। उम्मीद है आगे भी बहुत कुछ पढने और देखने को मिलेगा। धन्यवाद
प्रिय सौरभ गुप्ता,
हां जी, सुना तो यही है कि अब मैं चंबल रिटर्न्ड हूं पर बाग़ी नहीं हूं ! मुझे भी यही लगता है कि यदि किसी व्यक्ति को बहुत अधिक प्रताड़ित किया जाये और उसके अंदर की सहनशक्ति जवाब देने लगे तो या तो वह विद्रोही हो जाता है या फिर स्वयं को ही समाप्त कर लेता है।
कैमरे से कुछ अच्छे – अच्छे फोटो लेने का प्रयास करता तो हूं पर उसके लिये किसी स्थान की या दृश्य की आत्मा में प्रवेश करना पड़ता है। भागते – दौड़ते फोटो खींचने से यह संभव नहीं है। किसी भी नयी जगह जाओ तो सब कुछ नया और फोटो खींचने योग्य अनुभव होता है । डिजिटल कैमरे और भारी भरकम कैपेसिटी वाले मैमोरी कार्ड सहज उपलब्ध होने के कारण फोटो खींचने में किफायतशारी तो अब तेल लेने चली गई है। अब तो कैमरा ऐसे ही चलता है जैसे AK-47 चलाई जा रही हो। परन्तु मैं इसे सही नहीं मानता।
सहारनपुर भी मिठाइयों और नमकीनों के मामले में अति समृद्ध नगर है, और मुझे चूंकि नमकीन आदि का ज्यादा कुछ शौक नहीं है अतः इन्दौर से नमकीन आदि कुछ नहीं लाया। सिर्फ इंदौर से सहारनपुर तक के सफर के लिये जितना नाश्ता-पानी आवश्यक था, बस उतना ही साथ रखा था। सहारनपुर वाले अपने किसी रिश्तेदार के यहां जाते हैं तो रिश्तेदारों की फरमाइश यहां की नमकीन की ही रहती है।
आपको पोस्ट अच्छी लगी, जानकर खुशी हुई।
bahuth sunder varnan !
धन्यवाद महेश जी !
सर्वप्रथम शहीदों को अभिषेक कश्यप का सहृदय नमन…. जिनकी वजह से आज हम आजादी की सांस लेते हैं…
सिंघल जी बहुत ही बढ़िया शुरुआत है.. लगातार जुड़े हुए हैं हम.. पैदल भ्रमण में जो मजा है वो पेट्रोल वाले टट्टूओ में कहाँ है.?
हाहा..
और बिना पैसे के मॉल में जाने का तो अननद ही अद्भुत है.. :D
और गजब है इंदोरियन जो टैगोर जी को आर०एन० टी० कर दिया .. हाहा…
और आखिर में मेरा सच्चा प्यार मीटर गेज रेलवे .. बस पोस्ट पड़ना सार्थक हो गया.. ये लाइन एक समय में दिल्ली से रामेश्वरम तक को जोड़ने वाली मीटर गेज थी.. जो आज बड़ी लाइन की भेंट चड़ते इतनी सी रह गयी है.. आज (मई २०१३) भी ये फतेहाबाद (MP) से अकोला (महाराष्ट्र) तक जुडी हुई है.. इन्दोर ,उज्जैन, महो, आदि कुछ और मुख्य जगह है जो इस छोटी प्यारी सी रेल लाइन से जुड़े हुए हैं.. लेकिन दुखद रूप से कुछ दिन और बस.. चलिए ऐसे ही घूमते रहिये..आपसे मिलना होगा कभी.. मन करता है की मैं भी लिखू घुमक्कड़ पर.. लेकिन आप लोगो के आगे बस सहम जाता हु :D हाहा
प्रिय अभिषेक कश्यप,
आपका हार्दिक धन्यवाद । मीटर गेज़ ट्रेन से सफर करने की इच्छा थी अतः उज्जैन – इंदौर – महू रेल मार्ग पर स्थित एक प्राकृतिक झरने सहित पर्यटन स्थल जाने का कार्यक्रम बनाया तो था परन्तु नन्दन व मुकेश ने मांडू के लिये जबरदस्त संस्तुति की तो फिर उस यात्रा को अगली बार के लिये टाल दिया है।
Hello Sushant ji,
Accha laga apki post padhke. Photos are really beautiful.
Central Mall ke 5th floor pe Rajasthani Style “Chokhi Dhani ” ka modernised mall version hai.Uska naam hai “Village” . Kabhi Jaaye to try kar sakte hai. Waise Indore me hi isi tarah ki ek aur jagah hai “Nakhrali Dhani” Rau me. Mai use jaroor recommend karungi agar aap next time jaayenge Indore . Nakhrali Dhani Shaam ko jaane ke liye bahut hi badhiya jagah hai.Rajasthani Khana bhi bahut tasty hai.
Waiting for next post….Keep writing
Thank you Abhee,
I have to be extra alert for my health so don’t venture much into spicy treats. Basically I love sweets far more than spicy dishes. So, when I go there with my wife, she will enjoy all these things much more !
Thank you for liking the post.
I just came back from Indore city……through your post.
Very nice description of a city…at night & in the morning.
If I will have a chance to visit Indore in future, will definitely remember this.
Nice to note that two unknown faces of ‘ghumakkars’ are eagerly waiting to meet each other…will wait for the exciting stories to come.
Dear Amitava,
Thank you very much for coming to the posts and taking pains to leave your comments here. There are lots of things remaining to be told about Indore / Dhar / Mandu. Will take my own time to bring all of those things for the enjoyment of my ghumakkar friends.
प्रिय सुशांत , आप की जुझारुता को प्रणाम करता हूँ , आलमोस्ट अनुष्ठान कराने योग्य है । क्या कहने । एक एक जगह का समुचित , एक्चुअली उड़ेल उड़ेल कर , विवरण और मौका देख कर थोड़ी हंसी – मसखरी का छोंक , मतलब उन्गिलियाँ चाट लीं ।
तो मतलब इंदौर-धार की सड़क अभी भी गड़बड़ है । २००९ में भी यही हाल था । तो अभी तक की गणना के हिसाब से मुकेश जी शायद सबसे ज्यादा घुमक्कड़ों से फेस टू फेस मिलें हैं । बहुत अच्छे । आगे के इंतज़ार में ।
परमप्रिय नन्दन,
इन्दौर से धार एक बार आने – जाने के बाद दोबारा अगले दिन पुनः उसी मार्ग पर यात्रा करने वाले निश्चय ही वीर-चक्र के हकदार बनते हैं। मेरी तो हिम्मत हुई नहीं यद्यपि मुझे धार शाखा के लिये पुनः जाना चाहिये था। अब मुख्यमंत्री की ओर से जब ग्रीन सिग्नल मिलेगा कि आ जाओ, सड़क बना दी है, तभी धार की ओर रुख करूंगा।
आपको पोस्ट अच्छी लग जाये तो बस, पैसे वसूल !
एक कहावत है : सौह्बते आलाह तुझे आलाह बनाए और सौह्बते साला तुझे साला बनाए | वाह ! क्या बात है, तनावांत जी कि सोहबत का यह असर कि हमारे आदरणीय नंदन जी भी श्रीरंग में टिप्प्णी कर रहे हैं, मसखरी के छौंक में उंगली डुबो-डुबो कर चाट रहे हैं. हा हा…
क्षमा करना, कैंची ना चला देना नंदन जी.
Sushant Ji, Namaskar.
Your post was absolutely tasty like the Khasta Kachoris of Rajasthan . Ihave heard that Indire is fast food capital of India so you must have indulged in some despite your digestive system . Isn,t it? Waiting for Mandy where the beautiful song ‘NAAM GUM JAYEGA ‘ was picturised on Hema Ji and Jeetendra Ji.
Dear Rakesh Bawa,
Thank you very much for the tasty comment. I didn’t know that ’नाम गुम जायेगा, चेहरा ये बदल जायेगा’ was shot at Mandu only. Thank you for the information.
प्रिय सुशान्त जी….
इंदौर की बारे में विस्तृत सामग्री से भरा लेख मुझे बहुत पसंद आया …आपकी फोटोग्राफी ने हमें अचंभित कर रखा है….अभी आपसे बहुत कुछ सीखना हैं…|
इंदौर के बारे आपके और कविता जी लेख पढ़कर इंदौर के बारे में काफी कुछ जानने को मिला…यदि अवसर मिला तो हम भी इंदौर को अपने नैनो से अवलोकन जरुर करेगे….
धन्यवाद…
प्रिय रितेश,
आपका प्यारी सी टिप्पणी के लिये हार्दिक आभार। हम सभी एक दूसरे से जीवन भर सीखते ही रहते हैं। पर हां, आयु में आपसे अधिक होने के कारण हो सकता है कि किसी – किसी विषय में मेरे पास सूचनाओं का भंडार आप से बड़ा हो गया हो। उसे बांट लेने में कोई हर्ज़ नहीं है।
इन्दौर में ओंकारेश्वर, इन्द्रेश्वर आदि ज्योतिर्लिंग व उज्जैन जैसे नगर हैं जहां तक मेरी पहुंच नहीं हो पायी । ये सब दर्शनीय स्थल भविष्य के लिये छोड़ आया हूं। पर फिर भी, बैंक के समय के बाद, सुबह – शाम जितना भी समय निकाल सका – देखता रहा हूं। वह सब आप सब को समर्पित करता जा रहा हूं।
Hi Sushantji,
Enjoying Indore with you. The steam locomotive and your bogie has the same vinatge, so why is the bogie still running? But then Bansalji is too busy these days to answer that!
Nice to have two Ghumakkars chilling out.
Thanks for sharing a totally different take on a city.
Dear Nirdesh Ji,
Thanks a lot for the appreciation.
प्रिय सुशांत जी
सुन्दर पोस्ट प्रकाशित करने के लिए धन्यवाद। कुछ एक फोटो तो बहुत ही सुन्दर हैं, वैसे भी मै पहले भी कह चुका हूँ कि फोटो किसी भी लेख को जीवन्तता प्रदान करते हैं। एक आलोचना भी ,कुछ एक फोटो जबरदस्ती ठूसे गए प्रतीत होते हैं। जिनकी आवश्यकता नहीं थी।
प्रिय रस्तोगी जी,
आपने पोस्ट व फोटो देखीं, आपका हार्दिक आभार ! यह सही है कि फोटो आलेख को जीवन्तता प्रदान करते हैं । बहुत सारे लोग तो सिर्फ फोटो ही देखते हैं, लेख पढ़ने का समय नहीं निकाल पाते।
मेरी जो – जो भी फोटो ठूंसी हुई लगी हों, कृपया hint कर दें ताकि मैं उनको हटा दूं । अनावश्यक फोटो से पाठकों का समय व्यर्थ करना मुझे कतई रुचिकर नहीं ।
प्रिय सुशांत जी ,
नहीं – नहीं हटाने जैसी कोई बात नहीं है। हो सकता है कि मुझे लगा हो पर आप की नजर में उनमे कुछ खास हो तभी आपने उनको लगाया है। जैसे पुलिस स्टेशन आदि। हाँ मै आपकी इस बात से पूर्णतया सहमत हूँ कि मै भी सबसे पहले फोटो ही देखता हूँ। बाद में समय निकाल कर लेख पढता हूँ। और समय नहीं मिला तो …………
from the Pictures of sweet shop (The omnipresent poha – jalebi in Indore). I recognize the both person. We ,too, went to this shop for breakfast on our Omkareshwar-Mahakaleshwar Trip. Then, None of us was familiar with Poha .We were surprised to see people eating dried yellow rice with Jalebi. We asked this person about this dish. He replied ‘Poha”.
We ordered for pranthas, now he was surprised . He asked us to wait and when we get it ,taste was so spicy that none us finish single pranthas.
घौर कलियुग है तनावंत जी, गुरुदेव रविंदर नाथ टेगौर जी के नाम पर जो सङ्क है उसे R.N.T. Road कहा जाता है और वह् भी इन्दौर में ! हां कहीं दक्षिण भारत के किसी शहर में होता तो समझा जा सकता था
Nice write up with excellent pics.
Thanks
बहुत सुंदर वर्णन किया है आपने सुशांत जी ! रात की फोटो भी बहुत अच्छी लग रही है ! मुझे तो वो नो पार्किंग वाला फोटो बहुत अच्छा लगा ! थोड़ा-2 समय निकाल कर ही आप लोगों के पोस्ट पढ़ पाता हूँ, अगले लेखो को भी जल्द ही पढ़ुंगा !