गढ़वाल घुमक्कड़ी: भविष्य बद्री

इस यात्रा में वे सभी जगहें जहाँ हमें मुफ्त रहने का ठिकाना मिला हमारे लिए सबसे यादगार रही, चाहे वो रुद्रप्रयाग में स्वामीजी के साथ उमरा नारायण मंदिर हो या कर्णप्रयाग में मास्टर सलीम का आशियाना या पिछली रात आश्रम में जोगियों संग, ये ना सिर्फ रहने के ठिकाने थे बल्कि यहाँ हमें सीखने को भी बहुत कुछ मिला और ये किसी भी घुमक्कड़ी को काफी हद तक सार्थक बनाता है. आज सुबह जब हम उठे तो स्वामीजी ने बताया कि कल रात आश्रम के बाहर किसी जीव की आवाजें सुनाई दी थी और सम्भवतः ये भालू ही था, ऐसा सुनकर हमारे तो रोंगटे खड़े हो गए थे. रोजमर्रा की जरुरी गतिविधियों को अंजाम देकर, हम लोग आश्रम के किचन में नाश्ते के लिए आमंत्रित किये गए जहाँ हरियाणा से आये युवा मस्त मलंग जोगी महाराज अपने मोबाइल में भजन सुनते हुए रोटियां सेक रहे थे…हाई-टैक जोगी…वैसे इस आश्रम के सभी जोगी साधक जीवन का सही मायनों में अनुसरण कर रहे थे.

किचन में रोटियाँ सेकते जाट जोगी...

किचन में रोटियाँ सेकते जाट जोगी…

वास्तव में घुमक्कड़ प्रजाति की असली नुमाईंदगी तो ये जोगी ही करते हैं, ना कहीं पहुँचने की चिंता ना कहीं ठहरने की, ना खाने की फ़िक्र ना पहनने की, ना समय की टेंशन ना किसी वाहन की, ना कोई सर्दी ना कोई गर्मी, बस चलते रहते हैं इसी आशा में कि उपरवाला कुछ ना कुछ बंदोबस्त तो कर ही देगा. अपनी पिछली यात्राओं में कुछ ऐसे जोगियों से मुलाकात हुई जो भारत के विभिन्न कोनों से देशाटन पर निकले थे और इनमे से कई तो मीलों मीलों की दूरी पैदल ही नाप जाते हैं और यहाँ पर भी सभी साधू देश के विभिन्न प्रान्तों से आये थे, धन्य हो ऐसे महान घुमक्कड़! खैर नाश्ता करने के बाद अब वक्त था आश्रम और जोगियों को अलविदा कहने का, वैसे ये जगह इतनी पावन और दिलकश लगी कि यहाँ से जाने का मन ही नहीं कर रहा था. यहाँ हमें इतना कुछ मिला और इसपर जाते जाते एक और उपहार, रास्ता दिखाने के लिए एक गाइड (एक प्यारा सा डॉगी) और वो भी मुफ्त, घुमक्कड़ों की हो गई बल्ले बल्ले! तो बस फिर क्या, गाइड साब आगे आगे और हम सब पीछे पीछे चल पड़े इन खुबसूरत फिज़ाओं का मजा लेते हुए.

मार्गदर्शन करते हुए गाइड साब और उनके पीछे पुनीत, दीपक और मैं...

मार्गदर्शन करते हुए गाइड साब और उनके पीछे पुनीत, दीपक और मैं…

रास्ते की साथी, एक मीठी जल धारा...

रास्ते की साथी, एक मीठी जल धारा…

जलधारा का आनंद लेते हुए विपिन...

जलधारा का आनंद लेते हुए विपिन…

आश्रम से मंदिर तक का रास्ता घनी झाड़ियों के बीच से गुजरते हुए बेहद खुबसूरत है जहाँ कहीं कहीं बहते हुए मीठे जल की धारा ना चाहते हुए भी आपको दो पल रुकने को मजबूर कर देती है. चढाई इस कदर थी कि योगियों द्वारा वर्णित दृश्य अभी भी आँखों से दूर ही लग रहे थे जबकि हम मंदिर के आस पास ही थे. ऐसा सोचते हुए हम लोग चले ही जा रहे थे कि अचानक से झाड़ियाँ ख़त्म सी होने लगी और ये क्या…ओह माय गॉड…आँखों के सामने एक ऐसा दृश्य था मानो कोई खुबसूरत सा ‘पिक्चर पोस्टकार्ड’ देख रहे हों! ऐसा मनमोहक नज़ारा आज से पहले कभी नहीं देखा था, दूर दूर तक फैला विशाल कुदरती हरा कारपेट, उसके पीछे असंख्य पेड़ों के झुरमुट और उसके भी पीछे स्तब्ध कर देने वाली हिमालय की बर्फ़ीली चोटियाँ…अविस्मरनीय व अद्वितीय नज़ारा! यहाँ आने पर हमें प्रकृति की गोद में ऐसा शानदार तोहफ़ा मिलेगा इसकी हमने कल्पना भी नहीं की थी, ना जाने कहाँ से पूरे शरीर में एक नई उर्जा की लहर सी दौड़ पड़ी. और हम लोग बावलों की तरह उस कुदरती मंज़र को एकटक निहारते हुए उसका मजा लेने लगे.

लोजी आप भी लेलो कुदरत के नजारों के मजे...

लोजी आप भी लेलो कुदरत के नजारों के मजे…

दो बावले, पुनीत और दीपक...

दो बावले, पुनीत और दीपक…

तीसरा बावला, विपिन...

तीसरा बावला, विपिन…

उस सम्मोहन से थोडा बाहर आये तो महसूस किया कि अरे ये सब तो दिख गया पर भई भगवान् बद्रीश कहाँ छुपे बैठे हैं…सामने एक छोटी कुटिया दिखाई दी तो बढ़ चले उसी ओर, पूछ्तात करने. कुटिया के बाहर एक भाई साहब स्नान में मग्न थे, हमने आवाज़ लगाई और मंदिर के बारे में पूछा तो बोले “रुको कपड़े पहनकर आता हूँ”. भाई साहब अपने साथ कुछ सामग्री लिए कुटिया से बाहर आये और बोले “चलो मैं ले चलता हूँ मंदिर, पूजा भी करवा दूंगा”. बाद में पता चला भाई साहब पुजारी थे और अपने साथ पूजा की सामग्री लेकर आये थे. यहाँ मंदिर के पास पहुँचते ही एक बड़ा असभ्य सा अनुभव हुआ हमारे साथ, जिस समय हम लोग मंदिर के अन्दर जा रहे थे तो वहीँ पास एक कुटिया के बाहर खड़े एक साधू ने ऐसे अपशब्दों के बाण चलाने शुरू किये कि कुछ समय के लिए तो हमारे होश ही उड़ गए थे. पहले तो हमें लगा कि कोई पागल है लेकिन बाद में पता चला कि कुटिया के अन्दर तपस्या में लीन अघोरी साधू का चेला है. ऐसा पता चलने पर हमें पिछली रात अघोरियों के बारे में बताई गई बातों का प्रमाण मिलने लगा. मंदिर में दर्शन करने के बाद जब हम लोग कुटिया के समीप गए तो वो चेला हमें भी गुस्से से कहने लगा कि बाबा अभी तपस्या में लीन हैं, थोड़ी देर सब्र करो, अभी दर्शन देंगे. हमने मन ही मन सोचा जिसका चेला ऐसा है तो गुरु कैसा होगा…ऐसा सोचते हुए हम लोग बिना अघोरी बाबा के दर्शन किये आस पास घूमने लगे.

टोली पूजा सामग्री लिए हुए पंडित जी के साथ...

टोली पूजा सामग्री लिए हुए पंडित जी के साथ…

अघोरी बाबा की कुटिया के बाहर दीपक, भगवा वस्त्र पहने उनका चेला और स्वेत वस्त्र धारी एक बाबा जिन्हें हिंदी नहीं आती थी...

अघोरी बाबा की कुटिया के बाहर दीपक, भगवा वस्त्र पहने उनका चेला और स्वेत वस्त्र धारी एक बाबा जिन्हें हिंदी नहीं आती थी…

अब जरा मंदिर के बारे में जानकारी! घने जंगलात के बीच एक साधारण और छोटा सा पत्थरों का ढ़ांचा जिसके अन्दर विराजमान हैं शिलारूप में भगवान् बद्रीश. इस शिला के बारे में यहाँ एक कथा प्रचलित है जिसके अनुसार एक बार एक ग्वाला अपनी गाय को ढूंढ़ते ढूंढ़ते इस शिला के पास पहुंचा जहाँ उसकी गाय आश्चर्यजनक रूप से शिला पर दूध अर्पण करती पायी गई. ऐसा निरंतर रूप से कुछ दिनों तक चलता रहा तो ग्वाले ने पाया कि इस शिला पर कोई आकृति सी उभर रही थी और जब धीरे धीरे इस बात की खबर लोगों तक पहुँची तो लोगों ने इसे दिव्य चमत्कार मानते हुए यहाँ इस शिला को भगवान् बद्रीश के रूप में पूजना शुरू कर दिया. यहाँ का मंदिर व माहौल हर मायने में वर्तमान बद्रीनाथ मंदिर से बिलकुल विपरीत है, चाहे वो मंदिर का भवन हो, मंदिर की साज सज्जा हो, भगवान् की मूर्ति की साज सज्जा हो, मानवीय हस्तक्षेप हो, या इसके आस पास की अचंभित कर देने वाली खूबसूरती, इस पावन स्थल पर देखने में सब कुछ बिलकुल साधारण व बिलकुल सरल सा लगता है, पर महसूस करने में अद्वितीय जिसकी कहीं कोई बराबरी नहीं, भगवान् बिलकुल अपने अछूते रूप में, न्यूनतम मानवीय साज सज्जा के साथ. यहाँ आकर लगता है मानो भगवान् बद्रीश मंदिर के अन्दर और माता बाहर, प्रकृति के रूप अपने शुद्धतम और साक्षात रूप में विराजमान हैं, ईश्वर के इस रूप में दर्शन पाकर वाकई हम लोग अपने आप आप को धन्य समझते हैं! शायद इन्ही सब वजहों से इस घाटी को तपोवन कहा जाता है. लेकिन शायद आने वाली पीढ़ियों को ये दृश्य और इस तरह का मंदिर देखने को ना मिले.

साधारण से लगने वाले भविष्य बद्री मंदिर के बाहर विपिन और पुनीत...

साधारण से लगने वाले भविष्य बद्री मंदिर के बाहर विपिन और पुनीत…

चलिए अब जरा इस मंदिर के धार्मिक महत्व की जानकारी भी पहुंचा दें आप तक. जैसा कि नाम से ज्ञात है भविष्य बद्री (2744 मी), अथार्त भगवान् बद्रीश का भविष्य का ठिकाना. पर भई ऐसा क्यों? जब भगवान् बद्रीनाथ में विराजमान हैं तो इस मंदिर की क्या आवश्यकता? वो इसलिए कि एक प्रचलित मान्यता के अनुसार जोशीमठ के वर्तमान नरसिंह मंदिर में रखी भगवान् नरसिंह की स्वयंभू शिलारूपी मूर्ति का एक हाथ धीरे धीरे पतला होता जा रहा है और जिस दिन ये हाथ पूरी तरह से गायब हो जायेगा उसी दिन बद्रीनाथ में मौजूद नर नारायण पर्वत आपस में मिल जायेंगे और इसी के साथ बद्रीनाथ जाना लोगों के लिए असंभव हो जायेगा. ऐसा होने पर भगवान् को अपने नए घर भविष्य बद्री में पूजा जायेगा.

लोजी आप भी दर्शन करलो शिलारूप में भगवान् बद्री नारायण के!

लोजी आप भी दर्शन करलो शिलारूप में भगवान् बद्री नारायण के!

मंदिर दर्शन के पश्चात् मेरे मन में तीव्र इक्छा थी जंगलों के पीछे बर्फ़ीली चोटियों की ओर जाने की. मेने साथियों को चलने को कहा तो थकान के मारे दोनों ने साफ़ ना कर दी, पुनीत वैसे ही जख्मी था. मैंने उनसे कहा कि तुम लोग रुको मैं जरा ऊपर तक होकर आता हूँ, यहाँ भी हमारे गाइड साब (प्यारे डॉगी) ने हमारा साथ नहीं छोड़ा और उनके मार्गदर्शन में हम लोग घने जंगल की ओर बढ़ने लगे, जंगल के पास आते ही एक अजीब तरह का डराने वाला सन्नाटा सब तरफ पसरा पड़ा था. गाइड साब मुझसे लगभग 20 – 30 मी आगे ही रहते मार्गदर्शन के लिए और बीच बीच में पीछे मुड़कर देखते कि बंदा आ रहा है कि नहीं. जंगल इतना घना था कि कुछ डर सा लगने लगा और पिछली रात वाली भालू की घटना भी रह रहकर मन में आती रही और फिर पुनीत और दीपक को ऐसे अकेले छोड़ना भी अच्छा नहीं लग रहा था. इसलिए इस कार्यक्रम को यहीं रद्द करके गाइड साब को आवाज़ लगाई और वापिस अपनी टोली में शामिल होने चल पड़े.

जंगलों की बीच से झाँकती बर्फ़ीली चोटियाँ...

जंगलों की बीच से झाँकती बर्फ़ीली चोटियाँ…

एक और मनोहारी दृश्य...

एक और मनोहारी दृश्य…

जंगल से लिया गया हरे कुदरती कारपेट का एक फोटो...

जंगल से लिया गया हरे कुदरती कारपेट का एक फोटो…

नीचे उतरते हुए एक जलधारा के पास दीपक और विपिन...

नीचे उतरते हुए एक जलधारा के पास दीपक और विपिन…

मंदिर से वापसी भी कुछ कम रोमांचकारी नहीं थी, उतरते वक्त हम किसी दूसरी पगडंडी पर थे यहाँ भी रास्ते में हमें कुछ छोटे आश्रम मिले, इसलिए यहाँ रुकने के लिए इन आश्रमों के आलावा दूसरा कोई उपाय नहीं है. अगर कोई चाहे तो रात को तपोवन रूककर जहाँ रुकने के लिए कुछ अतिथि विश्राम गृह और लॉज उपलब्ध हैं, अगले दिन सुबह सुबह चढ़ाई करके और दर्शन करके शाम तक रुकने के जोशीमठ या आगे जा सकता है, कोई भीड़ भाड़ नहीं है इसलिए आराम से दर्शन किये जा सकते हैं.

रास्ते में मिले कुछ अन्य आश्रम...

रास्ते में मिले कुछ अन्य आश्रम…

रास्ते से नीति घाटी का एक विहंगम दृश्य...

रास्ते से नीति घाटी का एक विहंगम दृश्य…

नीचे उतरते वक्त हम लोग फिर उसी आश्रम से होते हुए गुजरे जहाँ रात बसेरा किया था तो स्वामी जी ने भोजन का न्योता भी दे डाला. चलिए एक बार फिर सही, कुछ और ज्ञान प्राप्त हो जायेगा. जब हमने उन्हें मंदिर पर घटी चेले वाली घटना के बारे में बताया तो उन्होंने हँसते हुए कहा कि वो अघोरी हैं और उनके लिए ये एक आम बात है. फिर उन्होंने पूछा कि क्या तुमने बाबा के दर्शन किये? हमने कहा ‘नहीं’ और उन्हें इसका कारण भी बताया तो वे बोले कि अरे वो अघोरी बाबा नहीं, वहाँ एक और गुफा है जिसमे एक सिद्ध तपस्वी ध्यान साधना करते हैं. इसके आलावा जब मैंने उनसे उन जंगलों के पीछे के माहौल के बारे में पूछा तो वो बोले “तुम लोग वहाँ भी नहीं गए?”. वे बोले जितनी खूबसूरती तुम लोगों में इस तरफ देखी थी उससे कहीं अद्भुत मंज़र तो जंगल के उस पार है, खुबसूरत खास के मैंदान और आँखों के सामने साक्षात खड़ी बर्फ़ीली हिमालयी चोटियाँ. ऐसा वर्णन सुनकर मुझे उस तरफ ना जा पाने का थोडा मलाल जरुर रहा, पर हमेशा की तरह इसे दुबारा यहाँ आने का एक अवसर मान कर मन को किसी तरह मना लिया.

आश्रम में भोजन का इंतज़ार करते पुनीत और विपिन...

आश्रम में भोजन का इंतज़ार करते पुनीत और विपिन…

भोजन के पश्चात, साधुजनों को साधुवाद देकर हम लोग नीचे उतरने लगे. हमारे गाइड साब अभी भी हमारा साथ छोड़ने को राज़ी नहीं थे, स्वामीजी ने भी कहा कि कोई बात नहीं तुम लोगों को नीचे छोड़कर चला आयेगा वापिस. यहाँ से नीचे के रास्ते में हम कई बार रास्ता भटके यहाँ तक कि हमारे गाइड साब भी रास्ता भटक गए, कई बार तो हमें ऐसी तीखी ढलानों से अपना रास्ता बनाना पड़ा जहाँ कोई रास्ता था ही नहीं, थोडा डर तो लग रहा था उतरने में, पर था बड़ा रोमांचकारी, ऐसे रोमांच में पुनीत भी जैसे अपना सारा दर्द भूल गया था और उतरने का आनंद ले रहा था.

एक बिना रास्ते के तीखी ढलान जिस पर से हमारी टोली नीचे उतरी थी...

एक बिना रास्ते के तीखी ढलान जिस पर से हमारी टोली नीचे उतरी थी…

घुमक्कड़ टोली सड़क पर जीत का जश्न मनाती हुई...

घुमक्कड़ टोली सड़क पर जीत का जश्न मनाती हुई…

जीत को दर्शाता एक और खुबसूरत साथी जिसे हमने ‘विक्ट्री माउंटेन’ का नाम दिया...

जीत को दर्शाता एक और खुबसूरत साथी जिसे हमने ‘विक्ट्री माउंटेन’ का नाम दिया…

पुनीत गाइड साब को वापिस जाने के लिए कहता हुआ...

पुनीत गाइड साब को वापिस जाने के लिए कहता हुआ…

वास्तव में हम एक गलत मार्ग पर आ गए थे जो कि सलधार (जहाँ से हमने चढ़ाई शुरू की थी) से भी करीब 4 – 5 किमी आगे नीति घाटी की ओर था. खैर जैसे जैसे हमें सड़क मार्ग नज़र आने लगा और हम लोग यत्र तत्र रास्ता बनाते बनाते आखिरकार सड़क मार्ग तक आ ही गए थे. एक निर्जन सड़क जहाँ हमारे सिवाय कोई मानव नहीं दिख रहा था, सड़क पर आकर अपनी विजय की ख़ुशी में कुछ फोटो खींचने लगे और फिर…

क्रमशः…

36 Comments

  • Praveen Wadhwa says:

    Stunning picture, unbelievable that this place lies in India.
    Kamaal kar diya Vipin Bhai.
    Aab to yahan aana hi padega.

    • Vipin says:

      Thank you very much Praveen Ji for liking the post. अगली बार जाएँ तो हमें भी साथ ले चलियेगा, आपके साथ पैदल घुमक्कड़ी करने का मजा ही कुछ और है…

  • विपिन जी राम राम, क्या खूब फोटो हैं आपके, बिलकुल वाल पेपर लग रहे हैं. हिमालय की असली ख़ूबसूरती और हरियाली आपने दिखाई हैं. ये जाट जोगी क्या है समझ नहीं आया हैं, जाट भी और जोगी भी..धन्यवाद..वन्देमातरम…

    • Vipin says:

      लेख और फोटोज पसंद करने के लिए बहुत शुक्रिया, प्रवीण जी. ये हरियाणा से आये जाट साधक थे जिन्होंने गृहस्थ त्यागकर सन्यास ग्रहण कर लिया था…बड़े मस्त मलंग ठेठ जाट भाईयों की तरह…:)…

  • Surinder Sharma says:

    Very good description nice photos. Thanks a lot for share journsy

  • bhupendra singh raghuwanshi says:

    विपिन जी,
    बहुत ही अच्छा विवरण दिया है फोटो तो गजब के हे.
    इतना शानदार लेख पड़ कर मन मस्त हो गया.
    अगले भाग का इंतजार …………….
    जल्दी आना
    भूपेंद्र

    • Vipin says:

      आपकी टिपण्णी पढ़कर हमारा भी मन मस्त हो गया, भूपेंद्र जी, शुक्रिया! अगली प्रस्तुति जल्द ही…

  • Biswajit Ganguly says:

    Dear Vipin , Awesome locations with ultimate ghumakkari. Anand aur paramanand dono ki anubhuti karaa di aapney. Yeh sab dekhne ke baad videsh ghumney ka koi auchitya nahi reh jaata. Ishwer ne upney haathon se rachaa hey inn lubhavni aur aloukik jagahon ko. Hriday se aapka dhanyavaad aisey anoothey sthano ke darshan karwaaney ke liye. the foremost thing that I felt while going through the post is your passion for travelling and down to earth approach with very honest narration not bothering about the comforts and maintaining cohesiveness is some thing essence of group travelling. marvellous experience, very satisfying reading and enlightning are some of the few things I felt while reading the post. thanks once again and wish you lots of Ghumakkari in 2013

    • Vipin says:

      बिस्वजीत जी, आपके प्यार के लिए तहे दिल से शुक्रिया. सोचिये जब आपको पढ़कर इतना मजा आया तो हमें ये सब अनुभव करके कितना मजा आया होगा…

  • Ritesh Gupta says:

    विपिन जी….
    शानदार वर्णन और वर्णन से भी शानदार आपके द्वारा लगाए गए…खूबसूरत चित्र…..| आपके गाईड साहब बहुत बढ़िया लगे…जिन्होंने आपका बहुत साथ दिया…| एक बात बताओ की आश्रम में साधुओ में आपसे खाने और ठहरने के पैसे लिए थे ? वो लोग अपने खाने और पैसे का बंदोबस्त कैसे करते होगे….?
    जय हो भविष्य बद्री की….

    • Vipin says:

      लेख और फोटोज पसंद करने के लिए धन्यवाद, रितेश भाई. ऐसे गाइड हमें और भी कई अन्य यात्राओं में मिले हैं. नहीं यहाँ साधुओं ने हमसे कुछ लिया नहीं, बल्कि दिया ही दिया, न सिर्फ खाना, रहना, बल्कि अपना ज्ञान भी…पहाड़ों में लोग साधू/महात्माओं का बड़ा सम्मान करते हैं और जरुरत अनुसार उन्हें इस तरह की सामग्री समय समय पर देते रहते हैं…इसके अलावा कई साधू छोटी मोटी घरेलु सब्जियाँ वगेरह भी उगाते हैं, वैसे भी पहाड़ी साधुओं की जरूरतें काफी कम होती हैं, जितना मिल गया, जैसा मिल गया उसी में संतुष्ट…

  • SilentSoul says:

    एक अनछुई जगह का जबरदस्त विवरण.. हिमाच्छादित चोटियों के चित्र बहुत मनमोहक है.

    अघोरी की गाली तो सुना है किस्मत वालों को मिलती है

    • Vipin says:

      पोस्ट सराहने के लिए शुक्रिया एस एस जी. ओहो…हम लोग किस्मत वाले बनने से थोडा चूक गए…दरअसल अघोरी साधू के ये प्रवचन हमारे पंडित जी के लिए थे…चलिए कोई बात नहीं…अगर अब कभी कोई अघोरी अपशब्द कहेगा तो कम से कम बुरा तो नहीं मानेगें, सोच लेंगे हम किस्मत वाले हैं…:)…

  • ashok sharma says:

    very good post,very-very good photographs.

  • Abhee K says:

    Hi,

    Jaldi jaldi me apka post dekha,abhi tak padh nahi payi.Jaldi hi padungi. Anyways, photos bahut hi badhiya hai.Accha laga jaankar ki India me itni khubsurat jagah bhi hai…

    Keep travelling, keep writing

    • Vipin says:

      शुक्रिया अभीरुची जी, फोटोज पसंद करने के लिए. ऐसे हीरे कई जगह बिखरे पड़े हैं, बस इन्हें खोजने की जरुरत है…this is raw beauty created by Almighty without any human interference…

  • D.L.Narayan says:

    वाह भाई, विपिन, आप ने तो कमाल कर दिया। इतनी सुन्दर और बेहतरीन विवरण भविष्य बद्री के बारे में आपने लिखा और इतनी मनमोहक दृश्यों से सजाया की मुझे एक आध्यात्मिक अनुभूति महसूस हुवा। जितनी भी तारीफ़ करूं कम ही होगी। बहुत बहुत धन्यवाद।

    • Vipin says:

      उत्साह वर्धन के लिए शुक्रिया डी एल जी. हमें भी कुछ ऐसी ही अनुभूति हुई थी यहाँ आकर…

  • svkinnal says:

    Bhaiya, apka e ghumakkadi bahut sundar hai. photos bahut achche hai. English me ho to bahut sundar lagta tha.

    • Vipin says:

      शुक्रिया Svkinnal जी पोस्ट और फोटोज पसंद करने के लिए…जब मैं अंग्रेजी में लिखता था तो कुछ लोग बोलते थे हिंदी में होता तो और मजा आता….:)…

  • rakesh kush says:

    विपिन सर …
    वाह मजा आ गया ,आपकी पोस्ट को पढ़कर ,फोटो बहुत ही सुन्दर तथा मन को उल्लास को भर देने वाले हैं, पहाड़ो में घुमक्कड़ी का अपना ही
    अलग मजा है,पहाड़ो के रोमांच ,उनकी सुन्दरता .उनका रहस्य,हिमालय की बर्फीली चोटिया ,इनका एक अलग ही नशा है ,इंसान चाहे जितना
    भी तरक्की कर ले ,ऊँची ऊँची इमारते बना ले,पर प्रकति की सुन्दरता के आगे कुछ भी नहीं ,आपकी सभी तस्वीरों में ये सारी बाते झलकती हैं ,
    आपके गाइड साहब ने आपका अच्छा मार्गदर्शन किया ,उनको कुछ इनाम(बिस्कुट,आदि )जरुर देना चाहिए था ..खैर पहाड़ो के इंसान तो इंसान
    उस जगह के कुत्ते भी बहुत विनम्र होते है ..लगे रहिये इसी तरह घुमक्कड़ी में ..

    • Vipin says:

      शुक्रिया राकेश जी, मुझे ख़ुशी है की आपको पोस्ट पसंद आयी. कुदरत की कारीगरी के बारे में आपसे शत प्रतिशत सहमत हूँ…लेख में लिखना भूल गया हमने जोशीमठ के पास सैनिक छावनी से कुछ बिस्कुट के पैकेट लिए थे जो हमने गाइड साब को खूब खिआये थे…शायद यही वजह थी की वो जाते जाते भी हमारा साथ छोड़ने को राजी नहीं थे….वैसे उनकी मदद का क़र्ज़ चुकाना मुश्किल है…आपसे एक विनम्र निवेदन है अगर आप मुझे सिर्फ विपिन पुकारें तो मुझे ज्यादा अच्छा लगेगा…लेख पढने के लिए धन्यवाद!

  • Nandan Jha says:

    Very beautiful pics Vipin.

    Your observation about Jogi is right on dot, they are indeed the greatest Ghumakkars. Himalayas never cease to amaze and looking at these pics (even in the kind of winter we are all in today, at Delhi), it is just out of the world. Thank you for sharing.

  • Vipin says:

    Thanks for appreciating the post & photos, Nandan!

  • Nirdesh says:

    Hi Vipin,

    Amazing beauty of our mountains. I have never been to this part of the country.

    Though right now, I wish I was somewhere warm because Delhi winter has literally frozen me.

  • Vipin says:

    I am glad you like the post, Nirdesh Ji. I wish the same about दिल्ली की सर्दी…

  • “दो बावले, पुनीत और दीपक” वाली फोटो पर मुझे आपत्ति है । जब कोई हाथ में पानी की बोतल लेकर जंगल के लिये जाये तो उसकी फोटो तो कम से कम नहीं खींचनी चाहिये ! पर इस समय भी इन लोगों ने जींस क्यों पहन रखी है? हा हा हा हा !

    अब पोस्ट और चित्रों की बार-बार क्या तारीफ करनी ! बाकी सब ने जो कुछ कहा, वह मिला-जुला कर मेरी तरफ से कॉपी-पेस्ट मान लेना !

    • Vipin says:

      हा हा..इन बावलों की फोटू देखकर अधिकतर लोग यही बात कहते हैं! सभी लेख पढने और प्रतिक्रिया देने के लिए हार्दिक धन्यवाद, सुशान्त जी.

  • इसे victory mountain कहूं या दक्षिण भारत का चित्र ? ऐसा ही एक पर्वत माथेरान में भी था, जिसके मध्य में से होते हुए सूर्यास्त होता है!

  • V.B.S. RAJPUT says:

    Thanks for beautiful yatra along with photographs. kindly e mail full size photo of Kali Shankar Math as shown above.

  • Dear Vipin ji, Thanks for sharing this Superb story with amazing photography !!

    SUPERB ……..

    गढ़वाली होने के बावजूद मैं आजतक गढ़वाल के इन खूबसूरत स्थानों का भ्रमण नहीं कर पाया, मुझे इस बात का अफसोस है।

    • Vipin says:

      Thank you so much for reading an older post, Gajender Ji. देवभूमि वाकई है ही इतनी खुबसूरत के वहां बारम्बार जाने का मन करता हैं…:)

  • rakesh kush says:

    विपिन भैया …आज फिर से आपकी पोस्ट को पढ़ा…हर बार ही उतना मज़ा आता है जितना की पहली बार पढ़ने से …आपके इस पोस्ट मे हर चित्र उत्तराखंड की सुंदरता एक उत्तम उदाहरण प्रस्तुत करता है..कृपया बताए की आपने यात्रा कौन से महीने मे की थी…..10 दिन बाद ही फिर से अकेले ही चोपता,तुंगनाथ,बद्रीनाथ निकलने का प्लान है मेरा…………

    • Vipin says:

      शुक्रिया राकेश भाई…ये जगह देखकर आज भी मेरा दिल खुश हो जाता है, यादें ताजा हो गयी अपनी भी…:)…ये यात्रा गर्मियों में की गयी थी जिसका अंदाजा आप हमारे कपड़ों से लगा सकते हैं…आपकी गढ़वाल घुमक्कड़ी के लिए ढेरों शुभकामनाएँ…उम्मीद है आपकी ओर से इस पर एक शानदार सीरीज पढ़ने को मिलेगी…:)

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