यात्रा: कभी ख़ुशी कभी ग़म

किसी ने सच ही कहा है की घुमक्कड़ी एक नशा है, और जो इसके मोहपाश में बांध जाता है उसके दिमाग में हर समय घुमक्कड़ी का कीड़ा कुलबुलाते रहता है.
घुमक्कड़ी एक एहसास है… ह्रदय में दबी जिज्ञासाओं को शांत करने का, हमारी ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक धरोहरों को आत्मसात करने का, जीवन को गतिशीलता प्रदान करने का, सर्वधर्म समभाव का, वसुधैव कुटुम्बकम की नीति का, ज्ञानार्जन का, नवसृजनात्मक विचारों का,सामाजिक तथा नैतिक उत्थान का, उत्साह एवं उल्लास का.
घुमक्कड़ अपनी घुमक्कड़ी की क्षुधा को शांत करने के लिए हर समय प्रयासरत रहते हैं. घुमक्कड़ी जब दिल ओ दिमाग पर हावी होती है तो मौसम का मिजाज, जेब के हालात, व्यस्तता आदि चीजें गौण हो जाती हैं. ऐसा ही कुछ हाल हमारा भी है, कहीं घुमने जाने के ख़याल भर से मन मयूर नाच उठता है, और अगर ये घुमक्कड़ी हमें भगवान के द्वार तक ले जाती है तो इससे ज्यादा लुभावनी चीज और कोई हो ही नहीं सकती, एक यात्रा ख़त्म हुई नहीं की दूसरी की तैयारी चालु हो जाती है, हमारे बच्चे भी अब घुमक्कड़ी के आदि हो गए हैं, हर समय पूछते रहते हैं मम्मा अब कहाँ जायेंगे?

We, The family

इस पोस्ट के माध्यम से मैं आपके साथ शेयर करना चाहती हुं अपनी लेटेस्ट ट्रिप से जुडी कुछ यादें जो हमें जीवन भर याद रहेंगी. हर एक यात्रा हमें कुछ न कुछ नया सिखा जाती है, ऐसी ही कुछ यादें हमारी इस यात्रा से भी जुडी हैं…………………….

जैसे की आपने मुकेश जी की पिछली तीन पोस्ट्स में पढ़ा, हमारी यह धार्मिक यात्रा २६ जनवरी से २९ जनवरी के बिच चली, इन चार दिनों में हमने महाराष्ट्र के मराठवाडा क्षेत्र को बहुत करीब से देखा. वहां का खान पान, संस्कृति, व्यवहार आदि में जैसे हम रम गए थे. हमारी इस यात्रा में हमने हिंगोली, नांदेड, परभणी, औंढा, बसमथ, परली आदि जगहों का अवलोकन किया जो हमारे लिए एक अभूतपूर्व अनुभव रहा.
जैसा की आप जानते हैं की हर यात्रा में हमें कुछ खट्टे और कुछ मीठे अनुभवों से सामना होता है, इन अनुभवों से हमारे साथ कुछ ऐसी यादें जुड़ जाती हैं जो हमारा जीवन जीने का तरीका और सोचने का नजरिया ही बदल देती हैं, ऐसी ही कुछ यादें हमारे साथ भी इस यात्रा के दौरान जुड़ गईं.

1.
ट्रेन का छुट जानाएक बड़ी त्रासदी:
सबसे पहले मैं आपलोगों को बताना चाहूंगी की 26 तारीख को हमने अकोला से नांदेड के लिए काचिगुडा एक्सप्रेस में आरक्षण करवा के रखा था. महू से अकोला के लिए जो हमारी ट्रेन थी उसका अकोला पहुँचने का समय सुबह नौ बजे का था और अकोला से काचिगुड़ा एक्सप्रेस का निकलने का समय साढ़े नौ बजे का था, थोड़ी सी रिस्क तो दोनों ट्रेनों के समय को देखकर लग ही रही थी लेकिन हमारी कोलोनी में रहने वाले कुछ लोगों ने (जो कई सालों से इसी कोम्बिनेशन से अपने घर यानी नांदेड जाते हैं) हमें बताया की नांदेड जाने वाली ट्रेन तभी छूटेगी जब महू वाली ट्रेन अकोला पहुंचेगी, यानी कनेक्टिंग ट्रेन है, लेकिन कहते हैं न की भगवान भी भक्त की परीक्षा लिए बिना दर्शन नहीं देते हैं, अंततः वही हुआ जो होना था, जब हमारी ट्रेन अकोला रेलवे स्टेशन पर पहुंची तब तक हमारी अगली ट्रेन निकल चुकी थी.
यह पता चलने के बाद हम बहुत हताश और निराश हो गए, फिर किसी तरह महाराष्ट्र परिवहन की बसों में दो जगह बसें बदलकर, थककर चूर हो जाने के बाद शाम को साढ़े छः बजे नांदेड पहुंचे (अगर ट्रेन मिस न होती तो दो बजे पहुँच जाते).

                                                                                                                                                                       Akola Railway Station

 

                                                                                                                                             In train, waiting for Akola to arrive

2. औंढा नागनाथ मंदिर में पुजारी जी का आत्मीय व्यवहार:

आम तौर पर हमारी यह राय होती है की मंदिरों के पण्डे पुजारी हमेशा भक्तों से मोटी दक्षिणा प्राप्त करने के लिए लालायित रहते हैं और बड़े ही मतलबपरस्त होते हैं, मैं भी इस बात से इनकार नहीं करती हुं, ऐसा होता है लेकिन हर बार और हर जगह नहीं. कभी कभी इसका उल्टा भी होता है, ऐसा ही कुछ हमारे साथ भी हुआ जब हम औंढा नागनाथ मंदिर में गए.

हम जब भी अपनी धार्मिक यात्रा पर जाते हैं (ज्यादातर शिवालयों पर ही जाते हैं) तो यहाँ भगवान का अभिषेक करना नहीं भूलते, बल्कि यह कहुं की हमारा मुख्य उद्देश्य ही अभिषेक करना होता है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी, क्योंकि हम दोनों के यह विचार हैं की जब हम हज़ारों रुपये तथा समय खर्च करके भगवान के दर्शन के लिए जाते हैं और बिना भगवान को स्पर्श किये कुछ सेकंडों के लिए दर्शन कर के वापस आ जाएँ तो फिर यात्रा का मतलब ही क्या है? और वैसे भी भगवान शिव की लिंगमुर्ती  को स्पर्श करने का ही महत्व है.

मंदिर में प्रवेश करने के बाद हमारा पहला काम होता है, किसी अच्छे पंडित को ढूंढ़ कर अभिषेक के लिए बात करना अतः हमने मंदिर के एक पंडित दीक्षित जी जिनका जिक्र मुकेश जी ने अपनी पोस्ट में किया है, से अभिषेक के लिए बात कर ली. पंडित जी के द्वारा करवाया गया हमारा वह अभिषेक हमें हमेशा याद रहेगा, उनका प्रेमपूर्ण व्यवहार, मृदु तथा सहयोगी स्वभाव हमारे मानसपटल पर अंकित हो गया है, यहाँ तक की हमारे बच्चे भी आज तक उन्हें याद करते हैं.

3. एक अन्य अविस्मरणीय घटना (खट्टा नहीं कटु अनुभव):
यहीं हमारे साथ एक ऐसी घटना घटी जिसे याद करके रोंगटे खड़े हो जाते हैं यहाँ तक की इस घटना से बच्चे तक भी प्रभावित हुए. ऐसा भी नहीं हुआ की किसी ने हमारा पर्स चुरा लिया या हमारा सामन चोरी हो गया, या किसी को चोट लग गयी, या कोई बीमार हो गया ऐसा कुछ भी नहीं हुआ……….फिर आखिर ऐसा क्या हुआ जिसे याद कर के हमारी रूह काँप उठती है? क्या हुआ? यह एक ऐसी घटना थी जो हमारी साथ इतने सालों में पहली बार घटी, अपनी एक छोटी सी लापरवाही या गलती की वजह से हमने तीन घंटे मानसिक यंत्रणा झेली……….हम इतने मजबूर हो गए थे की हमें अपने आप पर तरस आ रहा था, हम अपने आप को कोस रहे थे……शायद आप में से किसी के साथ ऐसी घटना न घटी हो………लेकिन सावधान, घट सकती है, मेरी इस आपबीती से हमने तो सबक लिया ही आपलोग भी ले लीजिये……….. खैर मैं तो अपने भोले बाबा से यही प्रार्थना करती हुं की ऐसी परिस्थिति से किसी का सामना न हो………… चलिए अब आपको और ज्यादा रहस्य में न रखकर बताती हुं……….

सबसे पहले मैं आपको यह बता दूँ की हम दोनों इस बात पर एकमत हैं की सफ़र में ज्यादा नकद पैसे (कैश) साथ में लेकर नहीं चलना चाहिए, पैसे गुम होने या चोरी होने का जोखिम रहता है, साथ में ए.टी.एम. कार्ड तो होता ही है जब भी आवश्यकता हुई पैसे निकले जा सकते हैं. बस अपने इसी विश्वास के साथ हमने घर से कुछ हज़ार रुपये साथ रखे थे जो की धीरे धीरे खर्च होते चले जा रहे थे, जब हम नांदेड से औंढा के लिए निकले तब तक हमारे पास कैश काफी कम हो गया था, लेकिन हमें लग रहा था की पास में ए.टी.एम. कार्ड है कभी भी निकाल लेंगे. औंढा में हमसे अपेक्षाकृत ज्यादा पैसे खर्च हो गए, और अंततः हमारी जेब पूरी तरह से खाली हो गई, लेकिन हमें पूरा विश्वास था की तहसील प्लेस है, इतना बड़ा तीर्थ स्थान है, रोजाना देश के कोने कोने से पर्यटक आते हैं एकाध ए.टी.एम. तो होगा ही….लेकिन जब हम बस स्टॉप पर आये और हमने ए.टी.एम. का पता किया तो हमारे होश फाख्ता हो गए पता चला की औंढा में एक भी ए.टी.एम. नहीं है, हमें औंढा से परली जाना था जो की लगभग साढ़े तीन घंटे का रास्ता था, हमारे पास सिर्फ दो सौ रुपये थे और बस का किराया था 300 रुपये लेकिन हम हिम्मत करके बस में बैठ गए क्योंकि फिर परली के लिए बस कुछ घंटों के बाद ही थी.

हम इसी परेशानी में आपस में एक दुसरे से बात कर रहे थे, मैं बार बार अपना पर्स टटोल रही थी और मुकेश बारी बारी से अपनी सारी जेबें टटोल रहे थे, हमारे चेहरों से परेशानी स्पष्ट झलक रही थी, पास की ही सिट पर एक महाराष्ट्रियन परिवार बैठा था जिन्हें परली तक जाना था, आखिर उन्होंने हमसे पूछ ही लिया  की क्या परेशानी है, हमने थोडा संकोच करते हुए अपनी परेशानी उन्हें बता दी, उन्होंने हमें कहा की आप चिंता मत करो और हमें सौ रुपये का नोट दे दिया हमने उन्हें थैंक्स कहा और कहा की परली में उतरते ही ए.टी.एम. से पैसे निकाल कर आपको दे देंगे, अब हमारे पास बस का किराया तो हो गया लेकिन कंडक्टर को किराया देने के बाद हम फिर खाली हो गए और परली पहुँचने तक हमें बिना पैसों के ही काम चलाना था. हमारे पास ए.टी.एम. कार्ड था जिसमें पर्याप्त पैसा था, हमारे पास प्लेटिनम मास्टर क्रेडिट कार्ड था, मेरे पास पर्याप्त ज्वेलरी थी लिकिन उस समय ये सब धरे के धरे ही रह गए.

शक्लो सूरत, हाव भाव, रहन सहन, बात व्यवहार से हम संभ्रांत लग रहे थे लेकिन हम ही जानते थे की उस समय हमसे गरीब कोई नहीं था. हमने संस्कृति को तो समझा दिया था की बेटा सफ़र में कुछ मांगना मत, परली पहुंचकर आपको जो चाहिए दिला देंगे, लेकिन हमें शिवम् का डर था क्योंकि एक तो वो छोटा है और थोडा जिद्दी स्वभाव का है, और उसकी फरमाइशों की फेहरिश्त कभी ख़त्म नहीं होती है, अगर उसने कुछ मांग लिया और वह बिगड़ गया तो सम्हालना मुश्किल हो जायेगा.

                                                                                                                                                                Shivam, The naughty boy

बस में अगर कोई भिखारी भी आता तो मैं सर निचे कर लेती, क्योंकि देना चाहती थी लेकिन पर्स में एक रूपया भी नहीं था, बस में कोई बच्चा कुछ खाता तो मैं शिवम् को समझाती की बेटा कुछ मांगना मत हमारे पास पैसे ख़त्म हो गए हैं, तो वह कहता की क्या आप मुझे इतने इतना चटोरा समझती हो, यह भगवान का ही चमत्कार था की हमारा जिद्दी बेटा उस समय इतना समझदार हो गया था. मुकेश इस सफ़र की शीघ्र समाप्ति के लिए बार बार भगवान से दुआ मांग रहे थे.

अंततः तीन घंटे की भयंकर मानसिक यंत्रणा के बाद हम परली पहुँच गए, ए.टी.एम. बस स्टैंड के करीब ही था अतः सबसे पहले ए.टी.एम. से पैसे निकाल कर उस सज्जन पुरुष को उनके पैसे तथा ढेर सारा धन्यवाद दिया तब हमारी जान में जान आई, और ईश्वर से यह वादा किया की हमें कभी मौका मिला तो इस तरह से मज़बूरी में फंसे लोगों की हरसंभव मदद करेंगे.

आज तक हम इस घटना से हतप्रभ हैं, हमें समझ में नहीं आता ऐसे कैसे हुआ. मैं इसे लापरवाही नहीं कहूँगी क्योंकि यह हमारा पहला टूर नहीं था, कई बार कई दिनों के लिए पहले भी जाते रहे हैं लेकिन यह सब हमारे साथ जीवन में पहली बार हुआ, मुकेश इन सब मामलों में बहुत सावधान रहते हैं तथा हर काम बड़ी प्लानिंग से करते हैं, फिर अचानक हमसे इतनी बड़ी भूल कैसे हो गई……….हम आज तक नहीं समझ पा रहे हैं.

                                                                                                                                                                           A.T.M. - Laid us down

 

4 . महाराष्ट्र परिवहन की बसों में स्थानीय सहयात्रियों का प्रेमपूर्ण तथा सहयोगात्मक रवैया:

एक और बात महाराष्ट्र के इस टूर में हमारे दिल को छू गई, और वो था महाराष्ट्र परिवहन की बसों में हमारे साथ सहयात्रियों का मधुर व्यवहार. बस में जैसे ही लोगों को पता चलता की हम एम. पी. से महाराष्ट्र घुमने आए हैं, तो लोग अपनी सीट से खड़े होकर हमें सीट दे देते थे, जब हम मना करते तो उनका वक्तव्य होता ” आप हमारे मेहमान हैं और हमारा फ़र्ज़ है आपकी सहायता करना”. ऐसा एक जगह नहीं पुरे टूर के दौरान लगभग हर जगह हुआ.


5.
हमने क्या सिखा?
मैं अपना यह कड़वा अनुभव लेकर आपके सामने इसलिए आई, की इस तरह की परेशानी और किसी के साथ न आये. हम समझते हैं की आजकल तो हर जगह ए.टी.एम. उपलब्ध है, और इसी भरोसे की वजह से हम लापरवाह हो जाते हैं. जब ऐसी जगह जो की एक प्रसिद्द तथा व्यस्त धार्मिक पर्यटन स्थल है तथा जिसे एक तहसील का दर्जा प्राप्त है वहां ए.टी.एम. नहीं है तो फिर ऐसी सुविधा के भरोसे रहने से क्या मतलब? यह सुविधा हमें कभी दिन में तारे भी दिखा सकती है. उस दिन और उसी पल से हमने ये सबक लिया की आज के बाद कभी भी यात्रा के दौरान ए.टी.एम. पर आश्रित नहीं रहेंगे.
लेकिन चुंकि हम एक धर्म स्थल पर भगवान के दर्शनों के लिए गए थे और यह सर्वविदित है की भगवान हमेशा अपने भक्तों की परीक्षा लेते हैं, अतः जो भी हुआ ठीक ही हुआ, हम दोनों उस विकट परिस्थिति में भी संयमित रहे और भगवान से किसी भी प्रकार की कोई शिकायत नहीं की क्योंकि हमारी यह परेशानी लम्बी न होकर क्षणिक थी, सो कुछ देर में ही बेडा पार हो गया.

6.अंत भला तो सब भला:

इस सफ़र में हमें कभी ख़ुशी मिली तो कभी गम लेकिन एक सबसे महत्वपूर्ण बात यह है की सारी परेशानियों के बावजूद हम जिस उद्देश्य से गए थे उसमें हम जरुर सफल हुए, यानी तीनों धार्मिक स्थलों नांदेड गुरुद्वारा, औंढा नागनाथ और परली वैद्यनाथ में हमें बड़े अच्छे से दर्शन एवं पूजन करने का मौका मिला. भोले बाबा के दर्शन एवं अभिषेक से हमारी सारी थकान चुटकियों में दूर हो गई. वैसे भी महात्मा गाँधी ने कहा है – Worship is a sin without sacrifice यानि त्याग के बिना पूजा एक पाप है.

                                                                                                                                                           Phir Milenge.........................

अपनी इस आपबीती के साथ ही अब इस लेख को यहीं समाप्त करती हूँ………..फिर से उपस्थित होउंगी आप लोगों के समक्ष अपनी अगली प्रस्तुति के साथ.

 

20 Comments

  • Silentsoul says:

    कविताजी सबसे पहले तो बधाई आपका पहला लेख प्रकाशित होने पर. बड़ी जरूरी यादें है. खास तौर पर पैसे कम होने वाली… आजकल लोग इतनी धोखा-धड़ी करते हैं कि वास्तविक जरूरतमंदो को भी लोग बेईमान समझ लेते हैं…. खैर अच्छा हुआ आपको ईश्वर ने मुसीबत से बचा लिया

  • Ritesh Gupta says:

    कविता जी…..नमस्कार
    आपका ghumakkar.com स्वागत हैं .
    आपकी यात्रा के अनुभवों को पढ़ा…बहुत अच्छा लगा..
    यात्रा के समय ऐसा सब कुछ तो होता ही रहता हैं …हर बार कुछ न कुछ नया सीखने को मिलता हैं .. और वही हमारे अनुभव बन जाते हैं.
    लेख पढ़कर हमें भी अपने साथ घटी घटनाये भी याद हो आई….ट्रेन छूटने वाला मामला हमारे संग भी हो चुका हैं….
    सही कहा ! यात्रा : कभी खुशी कभी गम …यात्रा के समय हम लोगो को खुशी और गम दोनों के लिए तैयार रहना चाहिए..
    माफ करना! एक छोटी सी सलाह देना चाहूँगा की आपको अपने लेख में थोड़ा सा मात्राओ पर ध्यान देने की जरुरुत हैं…
    धन्यवाद

  • Welcome to Ghumakkar.com Kavita jee……………………………

    On the debut , This one is a excellent innovation.superb…………………..

    All the parts were nice especially that third one where your money got exhausted…………………

    I want to tell with 100 % conviction and faith that the person who gave you 100 rupee note was himself God or his messenger. People say that they can’t see God, but they don’t understand his LEELA ans always raise doubts whether he is present there or not ??????

    People sometimes feel that God does not have pity on themselves, but they don’t understand that pity is already there , you need to recognise it………………………………

    Anyway congratulations on this good one and keep posting……………………..

  • ashok sharma says:

    travelling without cash and with debit/credit card but no ATM is very much possible in our country.i had once been in the same situation and it was really a very-very bad situation.you reminded me of that day.your post is quite good and pics are good too.

  • Kavita Bhalse says:

    साइलेंट सोल जी,
    मेरी पहली पोस्ट पर सबसे पहले कमेन्ट करने तथा इसे पसंद करने के लिए आभार. ईश्वर की कृपा से हमारी परेशानी कुछ घंटों में हल हो गई थी, लेकिन उससे जुडी कड़वी यादें हमें हमेशा याद रहेंगी. उस समय हमारे पास सबकुछ था जैसे डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड वगैरह पर नकद नारायण नदारद थे, और इस घटना से हमें नकद नारायण का मूल्य समझ में आ गया.

    धन्यवाद.

  • Kavita Bhalse says:

    रितेश जी,
    घुमक्कड़ पर लिखने का यह मेरा पहला प्रयास है, और आपने इसे सराहा, आपको ह्रदय से धन्यवाद. आपकी सलाह के लिए भी धन्यवाद, अगली पोस्ट से मात्राओं पर विशेष ध्यान रखूंगी.
    हिन्दी लिटरेचर में पोस्ट ग्रेजुएट होने के नाते मेरे लेखन में मात्राओं की गलती कभी नहीं होती है लेकिन चूँकि मजबूरीवश हिन्दी टायपिंग के लिए गूगल ट्रांसलिटरेट महोदय की मदद लेनी होती है, जहाँ से सारी गलतियों का जन्म होता है.
    धन्यवाद.

    • Ritesh Gupta says:

      कविता जी …..
      आप ने अपना लेख बहुत ही अच्छी तरह से लिखा हैं …कभी कभी सोफ्टवेयर गलती से त्रुटि हो जाती हैं ..
      ऐसे ही परेशानी का सामना मुझे अपने पहले लेख में करना पड़ा था, पर अब मुझे इस समस्या का हल मिल गया हैं.
      गूगल ट्रांसलिटर साफ्टवेयर मैंने अपने कंप्यूटर की लेंगुएजे में इंस्टाल कर लिया..अब इस साफ्टवेयर की साहयता से मैं कंप्यूटर पर कही भी सीधे रोमन में टाइप करते हुए हिंदी लिख सकता हू और इस साफ्टवेयर में मौजूद सब्द्कोश से सही शब्द का चुनाव भी हो जाता हैं… आप भी ऐसा कर का देखे शायद आप की भी समस्या का हल हो जाये. यह सोफ्टवेयर कंप्यूटर चाहे ओनलाइन या ऑफलाइन दोनों ही दिशा में कार्य करता हैं …..
      शायद यह जानकारी आपके और अन्य हिंदी लेखक काम आये…
      धन्यवाद

  • Kavita Bhalse says:

    विशाल जी,
    आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद. मैं आपकी बात से पूर्णतः सहमत हूँ की हमारी मदद के लिए आगे आने वाला व्यक्ति कोई देवदूत ही होगा. वैसे भी भगवान् अपने भक्तों की सहायता के लिए हर युग में अवतार लेते रहते हैं पर हम उन्हें पहचान नहीं पाते हैं.

  • Kavita Bhalse says:

    अशोक शर्मा साहब,
    प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद. आपने ठीक ही कहा, इस तरह की स्थिति से दो चार होना हमारे देश में संभव है लेकिन हमने कभी सोचा नहीं था की ऐसा भी हो सकता है, खैर इस घटना से हमें अच्छा सबक मिला है.
    धन्यवाद.

  • Kavita Bhalse says:

    सभी घुमक्कड़ साथियों,

    अपनी इस पोस्ट के माध्यम से मैं अपने सभी घुमक्कड़ साथियों को महाशिवरात्रि की शुभकामनायें प्रेषित करना चाहती हूँ और ईश्वर से प्रार्थना करती हूँ की सभी घुमक्कड़ साथियों को यात्रा के रूप में अपने शिवालयों पर बुलाते रहें.

    हैप्पी घुमक्कड़ी.

    • Silentsoul says:

      महाशिवरात्रि की आप सबको बधाई…

      लगता है मुकेश जी ने मेरा बदरीनाथ यात्रा विवरण नहीं पढ़ा.. उनकी टिप्पणी का इंतजार है

  • Mukesh Bhalse says:

    प्रिय कविता,
    घुमक्कड़ पर आपकी पहली पोस्ट प्रकाशित होने पर मेरी ओर से ढेर सारी शुभकामनायें. इस यात्रा में हमारे साथ हुई उस ए.टी.एम. वाली त्रासदी में आपने भी बहुत हिम्मत और धैर्य का परिचय दिया इसके लिए आपको धन्यवाद. चुंकि इस घटना को जन्म देने में थोड़ी सी लापरवाही मेरी भी थी, अतः मैं क्षमा प्रार्थी भी हुं. घुमक्कड़ पर आपकी शुरुआत बड़े ही अच्छे ढंग से हुई है, ईश्वर से प्रार्थना है की आप इस मंच की हर उंचाई को छुएँ.

  • Kavita Bhalse says:

    प्रिय ,मुकेश जी
    आपको तो सबसे पहले धन्यवाद देती हूँ क्योकि पोस्ट लिखने के लिए आपने प्रेरित किया तो ही में लिख पाई और आपका सहयोग समय समय पर मिलता रहा इस कारण मेरी यह पोस्ट पूर्ण हो सकी.

  • Nandan says:

    घुमक्कड़ पर स्वागत नहीं करूंगा , क्योंकि आपका परिवार पूरे तौर पर घुमक्कड़ से जुड़ा हुआ है पर आपका पहला लेख के प्रकाशन पर तो बधाई बनती है , आशा है की मुकेश ने पोहा जलेबी से इसे मनाया होगा :-)

    व्यग्तिगत, विशुद्ध अनुभवों का ही समुद्र है घुमक्कड़ और इन अनुभवों से निकलती है व्यावहारिक सुझाव जो हम लोग आपस में बाँट लेतें हैं | यही दुआ करूंगा की भविष्य में आपके और किसी भी और घुमक्कड़ के साथ पैसे ख़तम होने वाली घटना न घटे.

    एक बार फिर से बधाई कविता जी.

  • Kavita Bhalse says:

    नंदन जी,
    आपकी प्रतिक्रिया का बेसब्री से इंतज़ार था. आपकी यह बात “घुमक्कड़ पर स्वागत नहीं करूंगा” मेरे दिल को छू गई. आपके इन शब्दों में मुझे जो आत्मीयता और अपनत्व महसूस हुआ उसे मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकती. बधाई के लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद.

  • होता है जीवन में ऐसा ऊँट-पटाँग वाक्या भी हो ही जाता है, जब हम किथे हाथ किथे टाँगा फ़ैंक ले कोई फ़र्क नहीं पडता है। हम सब ऐसी गलती से ही तो सीखते है, यही बात लिखने में भी लागू होती है। यह आपकी पहली यानि शुरुआती पोस्ट है अब लगे रहिये, लेकिन एक गडबड होने वाली है आप दोनों मियाँ बीबी एक साथ एक जगह पर जाओगे तो पोस्ट अलग-अलग कैसे लिखोगे। अब मजा आयेगा, एक परिवार लेखक दो, वैसे आने वाले समय में गुडिया भी जल्द ही लिखने लगेगी। फ़िर मैं कहूँगा लो जी आज जाकर शिव के त्रिशूल के दर्शन हुए, जय भोले नाथ।

    • Kavita Bhalse says:

      संदीप जी ,
      सबसे पहले तो आप को धन्यवाद देती हूँ पोस्ट को पढने के लिए. आपने अपनी व्यस्त दिनचर्या से समय निकाल कर मेरी पोस्ट पर कमेन्ट किया. आपने सही कहा की दोनों एक जगह पर जाते हैं तो पोस्ट कौन लिखेगा? मैं इस बारे में यह कहना चाहूंगी की हमारे टूर की पोस्ट तो मुकेश जी ही लिखेंगे, उनका लेखन मुझे बहुत पसंद है. मैं तो बस बीच बीच में अपने लेख (घुमक्कड़ इनसाईट के अंतर्गत) तथा अपने यात्रा के अनुभवों को कभी ख़ुशी कभी गम शीर्षक के अंतर्गत लिखती रहूंगी और आपलोगों से शेयर करती रहूंगी.
      थैंक्स.

  • Kavita ji,

    Very good writing and travelling without money very tough. My daughter was in India and we always worried here what happend if she not have money. She had credit card, debit card and some time she told us she not have cards with her and she need money. Then Western Union it deliver money any part of world in minutes. But ID proof required to obtain money. In future if anytime this problem exists just relax, Western Union or Money Gram can solve problem.

    Thanks and Regards,

  • Kavita Bhalse says:

    सुरिंदर शर्मा जी,
    आपने लेख को पढ़ा तथा पसंद किया, आपका बहुत बहुत शुक्रिया. हमारी समस्या यह थी की हमारे पास भी डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड सब कुछ था लेकिन उस एरिया में ATM उपलब्ध नहीं होने के कारण यह समस्या आई थी, अब जहाँ ATM भी नहीं हो वहां वेस्टर्न यूनियन या मनीग्राम का ऑफिस होने की तो उम्मीद ही नहीं की जा सकती. खैर, आपकी सलाह बहुत बहुमूल्य है, उसके लिए धन्यवाद.

  • Manoj Makker says:

    Kavita ji, your style of narration is superb. Hope to read from your pen.

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