पिछले साल अपà¥à¤°à¥ˆà¤² में कोलकाता जाना हà¥à¤† था, à¤à¤• परियोजना के सिलसिले में और तà¤à¥€ मैंने ये पà¥à¤°à¤µà¤¿à¤·à¥à¤Ÿà¤¿ लिखी थी। अपने बाकी के यातà¥à¤°à¤¾ विवरणों से ये सफ़र अलग सा था कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि यहाठहम घूमने नहीं बलà¥à¤•ि काम के सिलसिले में गठथे। ये पहले ही सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ कर दूठकि किसी à¤à¥€ शहर का सही आकलन वहाठरहने वाला बाशिंदा ही कर सकता है। बाहर से जो लोग आते हैं वे सिरà¥à¤« सतही तौर पर वो बातें कह पाते हैं जो उनके अलà¥à¤ª पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¸ के दौरान उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ नज़र आती हैं। आप इस आलेख को इसी दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से लें….
छोटे शहरों के पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥€ अगर अकसà¥à¤®à¤¾à¤¤ ही अपने आप को à¤à¤• महानगरीय वातावरण में डाल दें तो वो कैसा महसूस करेंगे !
à¤à¤¾à¤—ती दौड़ती जिंदगियों के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ कौतूहल à¤à¤°à¥€ निगाह…
अपार जनसमूह के बीच अपने खो जाने का à¤à¤¯…
गाड़ियों की चिलà¥à¤² पों के बीच टà¥à¤°à¤¾à¤«à¤¿à¤• में फà¤à¤¸à¥‡ होने की खीज…
à¤à¤¸à¥€ ही कà¥à¤› à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ मेरे मन में à¤à¥€ उà¤à¤°à¥€à¤‚ जब राà¤à¤šà¥€ की शांति का तà¥à¤¯à¤¾à¤— कर मैं कारà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ के काम के सिलसिले में कोलकाता पहà¥à¤à¤šà¤¾à¥¤ कोलकाता मेरे लिठकोई नया शहर नहीं । साल में à¤à¤• या दो बार इस नगरी के चकà¥à¤•र लग ही जाते हैं। हावड़ा सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ से निकलते ही हावड़ा बà¥à¤°à¤¿à¤œ की विशाल संरचना आपको मोहित कर देती है । पर ये समà¥à¤®à¥‹à¤¹à¤¨ जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ देर बना नहीं रहता । टैकà¥à¤¸à¥€, बस और आमजनमानस की à¤à¤¾à¤°à¥€ à¤à¥€à¤¡à¤¼ के बीच अपने को पाकर आप जलà¥à¤¦ ही अपने गंतवà¥à¤¯ सà¥à¤¥à¤² तक पहà¥à¤à¤š जाना चाहते हैं ।
अपने तीन दिनों के कोलकाता पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¸ के दौरान अलग – अलग अनà¥à¤à¤µà¥‹à¤‚ से गà¥à¤œà¤°à¤¾ । इन अनà¥à¤à¤µà¥‹à¤‚ में à¤à¤•रूपता नहीं है । कह सकते हैं कि हरà¥à¤· और विषाद का मिशà¥à¤°à¤£ हैं ये । इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ जोड़कर इस शहर के बारे में कोई बड़ी तसवीर ना बना लीजिà¤à¤—ा कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि इस उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ से मैंने ये पà¥à¤°à¤µà¤¿à¤·à¥à¤Ÿà¤¿ नहीं लिखी ।
हमारी टैकà¥à¤¸à¥€ कलकतà¥à¤¤à¤¾ से हावड़ा के सफर पर जा रही है । डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤° के बातचीत के लहजे से हम सब जान चà¥à¤•े हैं कि ये बंदा अपने मà¥à¤²à¥à¤• का है । पूछा à¤à¤¾à¤ˆ किधर के हो ? छूटते ही जवाब मिला देवघर से । जैसे ही उसे पता चला कि हम सब राà¤à¤šà¥€ से आठहैं, à¤à¤¾à¤°à¤–ंड के बारे में अपना सारा जà¥à¤žà¤¾à¤¨ वो धारापà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¹ बोलता गया । थोड़ी देर बाद à¤à¤• उदासी उसकी आवाज में तैर गई । पहले गाठà¤à¥ˆà¤‚स हांकते थे साहब, अब कलकतà¥à¤¤à¤¾ जैसे शहर में इस टैकà¥à¤¸à¥€ को हाà¤à¤• रहे हैं। शहर से कà¤à¥€-कà¤à¤¾à¤° बाहर जाना होता है तो खेत खलिहान देख के बड़ा संतोष मिलता है । अपनी जड़ से उखड़ने का मलाल हर वरà¥à¤— को सताता है, पर रोजी रोटी की जà¥à¤—त उससे कहीं बड़ी समसà¥à¤¯à¤¾ है जो उस गाà¤à¤µ, उन खेतों की छवि को धूमिल किठरहती है ।
खैर, कà¥à¤› देर शांति बनी रही ।
फिर बात राजनीति पर छिड़ गई कि मधॠकोड़ा à¤à¤¾à¤°à¤–ंड के लिठकà¥à¤¯à¤¾ कर रहे हैं । मैंने कहा करेंगे कà¥à¤¯à¤¾ वैसे à¤à¥€ कोलिजन की सरकार में तलवार की मà¥à¤¯à¤¾à¤¨ पर बैठे हैं । पर मेरी इस बात पर उसने कहा कि जिस तरह अमरीका में दो दलों से लोकतंतà¥à¤° चलता है वैसा ही कà¥à¤› à¤à¤¾à¤°à¤–ंड में होना चाहिठतà¤à¥€ विकास को कà¥à¤› दिशा मिल सकेगी । उसकी राजनीतिक समठपर मैं चकित रह गया । जिसने हाईसà¥à¤•ूल से ऊपर की पढ़ाई नहीं की वो अमेरिका के राजनीतिक परिवेश की खबर रखता है …ये शायद अपने देश में ही संà¤à¤µ है ।
हमारी टीम हावड़ा में à¤à¤• बंद पड़ी सरकारी मिल का निरीकà¥à¤·à¤£ करने गई थी । वहाठà¤à¤• नई मिल लगाने की योजना है । देखना ये था कि ये निवेश हमारी कंपनी के लिठकितना लाà¤à¤•ारी है । लगà¤à¤— दो साल से बंद पड़ी मिल में अब मà¥à¤¶à¤•िल से १५० करà¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¥€ रह गठहैं । बाकी सब ने वी. आर. à¤à¤¸ ले रखा है । पर बाकी के मजदूर अà¤à¥€ à¤à¥€ आस लगाठबैठे हैं कि उनकी मिल à¤à¤• ना à¤à¤• दिन चलेगी । ऊपर से कहीं à¤à¥€ यूनियन के हलà¥à¤²à¥‡ हंगामे की बात नहीं, बस à¤à¤• उमà¥à¤®à¥€à¤¦ उन हाथों को फिर मशीनों पर चलते देखने की । कà¥à¤¯à¤¾ ये वही बंगाल है मैं समठनहीं पा रहा था ? हमारे आने से उनके चेहरे की चमक देखती ही बनती थी । पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ पड़ी जंग खाती मशीनों के बारे में इतने फकà¥à¤° से बताते कि साहब ये जापान से आई थी अà¤à¥€ à¤à¥€ तेल डालने से जम कर चलेगी । पर हम सब कहाठजà¥à¤¡à¤¼à¥‡ थे उनकी à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¤“ं से । हमारे लिठतो बस वो सिरà¥à¤« लोहे का टà¥à¤•ड़ा थीं जिनका वजन ही उनकी à¤à¤• खासियत थी । अपना काम निपटा कर वहाठसे तो चले आठपर उन आशाओं का बोठà¤à¥€ शायद अदृशà¥à¤¯ सा साथ चला आया।
सà¥à¤¬à¤¹ का अखबार पं बंगाल को लड़कियों के शारीरिक शोषण में पहला सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ दे रहा था। रेडियो मिरà¥à¤šà¥€ की उदघोषिका गीतों के बीच इस संबंध में अपने पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ रख रही है और शरà¥à¤®à¤¿à¤¨à¥à¤¦à¤—ी का अहसास शà¥à¤°à¥‹à¤¤à¤¾à¤“ं के मन से उà¤à¤° रहा है पर कà¥à¤¯à¤¾ ये काफी है ? कम से कम मेरे लिठये बात विसà¥à¤®à¤¿à¤¤ करने वाली थी कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि बंगाल में नारी जागरà¥à¤•ता , शिकà¥à¤·à¤¾ और समाज में उनकी à¤à¤¾à¤—ीदारी अनà¥à¤¯ राजà¥à¤¯à¥‹à¤‚ से बेहतर है।
शाम के सात बज रहे हैं। मैं कोलकाता के मà¥à¤–à¥à¤¯ केंदà¥à¤° सà¥à¤ªà¤²à¥‡à¤¨à¥ˆà¤¡ में हूठ। कोलकाता में सà¥à¤ªà¤²à¥‡à¤¨à¥ˆà¤¡ इलाके का वही महतà¥à¤¤à¥à¤µ है जो दिलà¥à¤²à¥€ में कनाट पà¥à¤²à¥‡à¤¸ का चौरंगी की सड़कें खरीददारों और विकà¥à¤°à¥‡à¤¤à¤¾à¤“ं से अटी पड़ी हैं । माहौल à¤à¤• छोटे शहर के हिसाब से à¤à¤• उतà¥à¤¸à¤µ का है। यà¥à¤µà¤• यà¥à¤µà¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤ चà¥à¤¸à¥à¤¤ चमकदार पोशाकों में हर जगह हà¤à¤¸à¤¤à¥‡ खिलखिलाते नजर आ रहे हैं। हमेशा वाली नमी की अधिकता , आज चल रही तेज हवाओं से महसूस नहीं हो रही है । नà¥à¤¯à¥‚ मारà¥à¤•ेट में हमेशा की तरह अंतिम बारगेन पà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤¸ बोल कर खरीददार à¤à¤¾à¤— रहे हैं और विकà¥à¤°à¥‡à¤¤à¤¾ तेज कदमों से उनका पीछा कर अंतिम मूलà¥à¤¯ पर उनकी रजामंदी की कोशिश कर रहे हैं । पर उधर उस छोटी सी दà¥à¤•ान में à¤à¥€à¤¡à¤¼ कैसी ? अरे ये तो संगीत से जà¥à¤¡à¤¼à¥€ लगती है…उससे कà¥à¤¯à¤¾ जनाब ये कोलकाता है ..यहाठसंगीतपà¥à¤°à¥‡à¤®à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की कमी नहीं ।
रातà¥à¤°à¤¿
के ९.३० बज चà¥à¤•े हैं । मेरे à¤à¤• सहयोगी पान खाने के लिठचार सितारा होटल से बाहर निकले हैं । पान का रस लेते हà¥à¤ वापस लौट ही रहे हैं कि बगल में हाथों से चलाता à¤à¤• रिकà¥à¤¶à¤¾à¤µà¤¾à¤²à¤¾ दौड़ता हà¥à¤† आता है और कहता है ..
जाबे…?
मितà¥à¤° जवाब देते हैं नहीं यार यहीं होटल में जा रहा हूà¤, तà¥à¤°à¤‚त पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥à¤¤à¥à¤¤à¤° मिलता है
चाहिठ? सà¥à¤•ूल, कालेज सब मिलेगा
अब वसà¥à¤¤à¥à¤¸à¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ à¤à¤¾à¤‚पते हà¥à¤ तेज कदमों से घबराठहà¥à¤ होटल की चौहदà¥à¤¦à¥€ में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ करते हà¥à¤ राहत की सांस लेते हैं
अगले दिन वापसी की शाम हम सब बेलूर मठमें है । मठपरिसर के अंदर घà¥à¤¸à¤¤à¥‡ ही मन पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ हो जाता है । नदी की ओर से आती शीतल हवा, सरà¥à¤µà¤¤à¥à¤° हरियाली और बीच बीच में बने à¤à¤µà¥à¤¯ मंदिर । पर परिसर के अंदर का ये खूबसूरत नागफनी अपनी ओर अनायास ही धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ खींच लेता है । मन सोच में पड़ जाता है । कैसा रूप है इसका ऊपर से कितना à¤à¤µà¥à¤¯ कितना सà¥à¤°à¤šà¤¿à¤¤ पर नजदीक से देखो तो कांटे à¤à¥€ नजर आते हैं । बहà¥à¤¤ कà¥à¤› अपने शहर की तरह जिसकी मिटà¥à¤Ÿà¥€ में ये उगा है !
मनीष जी , घुमक्कड़ आपका स्वागत करता है |
कोलकाता का लेख अत्यंत मनोहरणीय है | वास्तव में राजनीतिक पार्टियों का कोलीयशण नहीं, कोल्लिज़न ही है | मैं कभी कोलकाता नहीं गया पर जाना चाहता हूँ | किसी दिन निश्च्छित तौर पर ज़रूर |
आपके और लेखों को पढ़ने की आशा लिए हुए |
Manish ji,
Bahut Badiya likha hai. Hindi mein padne ka kuch apnaa hi majja hai.
Welcome aboard. Your simple and vivid narration about Kolkata is commendable. Aapke lekh mein Taazgi hai.
Jaisa Nandan ji in likha hai – Look forward to your frorthcoming posts.
Thanx Nandan & Ram for liking this post.
पढ़ कर ओस की बूँद सी ताज़गी और विरह अपना देश छूटने का- एक साथ अनुभव हुआ.
बहुत सुंदर
Yesterday I looked at ghumakkar from my mozilla browser and saw only ???? in your post and then mailed to Nandan, shouldn’t the hindi write-ups be differently placed than the English one, keeping in mind the global readership.
When I was able to see the blog in IE, I felt I was so very wrong. Its so well written. It has thoughts that can only be expressed in one’s mother tongue. And as a reader I loved the freshness of reading in Hindi. Thanks Manish for the wonderful post.
On the contrary to my yesterdays comment, I wish to see many more posts in Hindi. BTW I still don’t know how to write in Hindi on blogs. Please help …
MK – Go to http://quillpad.in/hindi/ and type. Its phonetic based. Once done , copy the text from there and paste it here.
मैने कोशिश करके देखा. यह काम कर रहा है. शुक्रिया नंदन. मैने जयश्री कि टिप्पणी को भी हिन्दी में बदल दिया है क्योंकि कल वो यह टिप्पणी हिन्दी में लिखना चाह रही थी