जिंदगी में कितनी ही बार à¤à¤¸à¤¾ होता है कि जो सामने सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ दिखता है उसका असली रंग पास जा के पता चलता है। अब इतनी बà¥à¤¿à¤¯à¤¾ धूप, सà¥à¤µà¤šà¥à¤› नीले आकाश को देख किसका मन बाहर विचरण करने को नहीं करता ! सो निकल पड़े हम सब गाड़ी के बाहर…..
पर ये कà¥à¤¯à¤¾ बाहर पà¥à¤°à¤•ृति का à¤à¤• सेनापति तांडव मचा रहा था, सबके कदम बाहर पड़ते ही लड़खड़ा गये, बचà¥à¤šà¥‡ रोने लगे, कैमरे को गले में लटकाकर मैं दसà¥à¤¤à¤¾à¤¨à¥‡ और मफलर लाने दौड़ा । जी हाà¤, ये कहर वो मदमसà¥à¤¤ हवा बरसा रही थी जिसकी तीवà¥à¤°à¤¤à¤¾ को 16000 फीट की ठंड, पैनी धार पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ कर रही थी । हवा का ये घमंड जायज à¤à¥€ था। दूर दूर तक उस पठारी समतल मैदान पर उसे चà¥à¤¨à¥Œà¤¤à¥€ देने वाला कोई नहीं था, फिर वो अपने इस खà¥à¤²à¥‡ सामà¥à¤°à¤¾à¤œà¥à¤¯ में à¤à¤²à¤¾ कà¥à¤¯à¥‚ठना इतराये । खैर जलà¥à¤¦à¥€-जलà¥à¤¦à¥€ हम सब ने कà¥à¤› तसवीरें खिंचवायीं ।
अब इन तसवीरों की कृतà¥à¤°à¤¿à¤® मà¥à¤¸à¥à¤•à¥à¤°à¤¾à¤¹à¤Ÿ पर कतई ना जाइयेगा, वो सिरà¥à¤« हम ही जान सकते हैं कि उस वकà¥à¤¤ कà¥à¤¯à¤¾ बीत रही थी। इसके बाद नीचे उतरने की जà¥à¤°à¥à¤°à¤¤ किसी ने नहीं की और हम गà¥à¤°à¥‚डांगमार पहà¥à¤à¤š कर ही अपनी सीट से खिसके।
धारà¥à¤®à¤¿à¤• रूप से ये à¤à¥€à¤² बौदà¥à¤§ और सिख अनà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के लिठबेहद मायने रखती है । कहते हैं कि गà¥à¤°à¥‚नानक के चरण कमल इस à¤à¥€à¤² पर पड़े थे जब वो तिबà¥à¤¬à¤¤ की यातà¥à¤°à¤¾ पर थे । ये à¤à¥€ कहा जाता है कि उनके जल सà¥à¤ªà¤°à¥à¤¶ की वजह से à¤à¥€à¤² का वो हिसà¥à¤¸à¤¾ जाड़े में à¤à¥€ नहीं जमता ।
गनीमत थी कि 17300 फीट की ऊà¤à¤šà¤¾à¤ˆ पर हवा तेज नहीं थी । à¤à¥€à¤² तक पहà¥à¤à¤š तो गये थे पर इतनी चà¥à¤¾à¤ˆ बहà¥à¤¤à¥‹à¤‚ के सर में दरà¥à¤¦ पैदा करने के लिये काफी थी। मन ही मन इस बात का उतà¥à¤¸à¤¾à¤¹ à¤à¥€ था कि आखिर सकà¥à¤¶à¤² इस ऊà¤à¤šà¤¾à¤ˆ पर पहà¥à¤à¤š ही गये।
à¤à¥€à¤² का दृशà¥à¤¯ बेहद मनमोहक था। दूर दूर तक फैला नीला जल और पारà¥à¤¶à¥à¤µ में बरà¥à¤« से लदी हà¥à¤ˆ शà¥à¤µà¥‡à¤¤ चोटियाठगाहे-बगाहे आते जाते बादलों के à¤à¥à¤‚ड से गà¥à¤«à¥à¤¤à¤—ू करती दिखाई पड़ रहीं थीं । दूर कोने में à¤à¥€à¤² का à¤à¤• हिसà¥à¤¸à¤¾ जमा दिख रहा था । हम लोगों को वो नजदीक से देखने की इचà¥à¤›à¤¾ हà¥à¤ˆ, तो चल पड़े नीचे की ओर ।
बरà¥à¤« की परत वहाठजà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ मोटी नहीं थी। हमने देखा कि à¤à¤• ओर की बरà¥à¤« तो पिघल कर टूटती जा रही है! पर हमारे मितà¥à¤° को उस पर खड़े हो कर तसवीर खिंचवानी थी । हमने कहा à¤à¤‡à¤¯à¤¾ आप ही जाइये तसवीर हम खींच देते हैं । à¤à¥€à¤² के दूसरी ओर सà¥à¤¨à¤¹à¤°à¥‡ पतà¥à¤¥à¤°à¥‹à¤‚ के पीछे गहरे नीले आकाश उफà¥à¤« कà¥à¤¯à¤¾ नज़ारा था वो à¤à¥€!
दरअसल चारों ओर की खूबसूरती à¤à¤¸à¥€ थी कि मैंने इस बात को नज़रअंदाज़ कर दिया कि मैं 17000 फीट से अधिक की ऊà¤à¤šà¤¾à¤ˆ पर हूà¤à¥¤ à¤à¥€à¤² के बगल की पहाड़ी पर चà¥à¤¨à¥‡ का दिल हो आया तो वहां दौड़कर जा पहà¥à¤à¤šà¥‡à¥¤
खैर वापसी की यातà¥à¤°à¤¾ लंबी थी इसलिये à¤à¥€à¤² के किनारे दो घंटे बिताने के बाद हम वापस चल पड़े । अब नीचे उतरे थे तो ऊपर à¤à¥€ चà¥à¤¨à¤¾ था पर इस बार ऊपर की ओर रखा हर कदम जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ ही à¤à¤¾à¤°à¥€ महसूस हो रहा था । सीà¥à¥€ चॠतो गये पर तà¥à¤°à¤‚त फिर गाड़ी तक जाने की हिमà¥à¤®à¤¤ नहीं हà¥à¤ˆ ।
कà¥à¤› देर विशà¥à¤°à¤¾à¤® के बाद सà¥à¤¸à¥à¤¤ कदमों से गाड़ी तक पहà¥à¤à¤šà¥‡ तो अचानक याद आया कि à¤à¤• दवा खानी तो à¤à¥‚ल ही गये हैं। अचानक ही पानी के घूà¤à¤Ÿ के साथ हाथ और पैर और फिर शरीर की ताकत जाती सी लगी । कà¥à¤› ही पलों में मैं सीट पर औंधे मà¥à¤à¤¹ लेटा था । शरीर में आकà¥à¤¸à¥€à¤œà¤¨ की कमी कब हो जाठइसका जरा à¤à¥€ पूरà¥à¤µà¤¾à¤à¤¾à¤¸ नहीं होता । खैर मेरी बेहोशी की ये अवसà¥à¤¥à¤¾ सिरà¥à¤« 2 मिनटों तक रही और फिर सब सामानà¥à¤¯ हो गया ।
वापसी में हमें चोपटा घाटी होते हà¥à¤¯à¥‡ लाचà¥à¤‚ग तक जाना था । इस यातà¥à¤°à¤¾ की सबसे बेहतरीन तसवीरें मेरी समठसे मैंने लाचà¥à¤‚ग की उस निराली सà¥à¤¬à¤¹ की थीं । आखिर कà¥à¤¯à¤¾ खास था उस सà¥à¤¬à¤¹ में ! उसकी बात करेंगे अगले हिसà¥à¤¸à¥‡ में…..
चलते चलते नंदन ,विà¤à¤¾ और घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ की टीम का शà¥à¤•à¥à¤°à¤—à¥à¤œà¤¼à¤¾à¤° हूठकि इस मंच पर साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥à¤•ार की शकà¥à¤² में कà¥à¤› गà¥à¤«à¤¼à¥à¤¤à¤—ू करने का मौका दिया।
वाह मनीष भाई वाह, बस मज़ा आ गया।
आप की पोस्ट पढ़कर मन प्रसन्न हो जाता है, जैसे ही घुमक्कड़ की साईट खोलते हैं और यदि आपकी पोस्ट नज़र आ जाती है तो आँखें चमक जाती हैं और जम के बैठ जाते हैं एक एक शब्द का रसास्वादन करने के लिए। यह सब आपकी विशिष्ठ भाषा शैली तथा हमारे मात्रभाषा प्रेम की वजह से होता है। आपको धन्यवाद् हमें मात्रभाषा रूपी नाव में बैठा कर अपने शब्दों की पतवार के सहारे नयनाभिराम तथा सुन्दर स्थानों की सैर कराने के लिए।
मुकेश, तारीफ़ के लिए शुक्रिया ! हिन्दी के प्रति अनुराग बनाए रखिए।
Manish – Thanks for talking to us and for the fab interview. I enjoyed the conversation thoroughly.
You are a master story teller, please think about writing short stories for kids. My little one is 6 year old and I read stories for her and a lot of them are no where close to your expressions, think about it. May be something like ‘xyz kay kisse’ kind of series.
Well you can only write about the things you are passionate about Nandan. If I enjoy something I express it & that is reflected in my writing whether travel or music.
Hi Manish,
the 4 parts so far have been riveting. Actually, after reading your first part, I waited for a few more parts to come along so that I could read them together –
Enjoying travelling with you… go on…
Auro.
साहसिक यात्रा का सुन्दर वर्णन, पढते-पढते ही आपके साथ वहीं पहुच गया भीषण ठण्ड में।
अब जाकर कुछ मजा आया है, सफ़र का