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हिमाचल डायरी : रेणुका जी झील और पाँवटा साहेब की तरफ… भाग 4

अब समय है कैम्प रोंक्स से विदा लेने का

गतांक से आगे….

[ पिछले अंक तक आपने हमारी कैम्प रोक्स के भीतर की गतिविधियों के बारे में जाना, अब आगे…. ]

रेणुकाजी झील की दूरी कैम्प रोक्स से 43 किमी के लगभग है | नाहन की तरफ वापसी के रास्ते पर, कोई 10 किमी पहले ही, बायीं और एक सढ़क निकलती है जो कि आपको रेणुकाजी झील की तरफ ले जाती है | धूप, बादल और बरसात इन तीनो की लुका-छिपी आज भी यूँ ही जारी है, मगर रास्ता साफ़ है, और सढ़क ठीक-ठाक | पूरा क्षेत्र कुदरती खूबसूरती से सरोबार है, हालांकि सैलानी हिमाचल के इस पूर्वी भाग में अपेक्षाकृत कम ही नजर आते है | कम ऊंचाई और सम्पर्क के सीमित साधन सम्भवतः इसका कारण हो सकते है, अन्यथा नाहन और उसके आस-पास का भू भाग किसी भी तरह से हिमाचल के दूसरे हिस्सों से खूबसूरती में कम नही !   

यदि आप चाहें तो कैम्प रोंक्स से मुख्य सढ़क तक का सफर पैदल भी तय कर सकते हैं

पैदल चलते यदि थक जाएँ तो मार्ग में आते ऐसे चश्मे आपकी थकावट दूर कर देते हैं

रेणुकाजी पहुँचने से कुछ पहले, बडोलिया में, सहसा ही आप का सामना लगभग 100 फीट ऊंचे एक विशालकाय झरने से होता है | दूर पहाढ़ की ऊंचाई से पूरे वेग के साथ गिरती अथाह जल धारा, जब वायु के आवरण को चीर कर सैंकड़ों फीट नीचे धरती की सतह से टकराती है तो अपने आस-पास के वातावरण में एक अद्भुत् कम्पन और गर्जना का निर्माण करती है, असंख्य जल कण विखंडित हो कर अपने चारो तरफ कुहासे का एक ऐसा प्रभा मंडल बना देते है जो दूर से देखने भर से भी दर्शनीय और अनुपम हो जाता है, और आप कुदरत के इस बेहतरीन नजारे को देखकर निश्चित ही सम्मोहित हो जाते हैं | इस झरने के उद्गम का तो पता नही, मगर जिस जगह से इसका जल नीचे गिरता है तथा फिर धरती की वह सतह जिसे यह छूता है, दोनों जगहों पर आपको एक एक मन्दिर दिख जायेगा | भले ही आप की मंजिल यह झरना नही बल्कि रेणुकाजी झील है, मगर आप इतने निष्ठुर और संवेदनहीन नही हो सकते कि ऐसे दुर्लभ दृश्य को रुके बगैर, अपने कैमरे के लैंस के आगे से यूँ ही जाने दें |

रेणुकाजी की राह में आया यह झरना, एक बोनस ही है

झरने से गिरते पानी ने जिस खड्ड का रूप ले लिया है, उस पर बने इस पुल को पार कर आप को प्रस्थान करना है

आप चाहें तो हमारे पूर्वजों की इस दूरदृष्टि के लिये सराहना कर सकते हैं कि यहाँ यहाँ उन्होंने प्रकृति को अपने विलक्षण रूप में पाया उन्होंने उसे सर्व सुलभ और सुरक्षित बनाये रखने के लिये उस पर धर्म का आवरण ओढ़ दिया, मगर शायद उन्हें भी यह अंदाजा नही रहा होगा कि एक दिन हम संख्या में इतने ज्यादा हो जायेंगे कि ऐसे अद्भुत प्राकृतिक नज़ारों को ही एक दिन अपने सरंक्षण के लाले पढ़ जायेंगे और फिर ऊपर से तथाकथित विकास और बाज़ार आधारित अंधाधुंध औधोगिककरण, जिसके कारण आज सुदूर हिमालय की ऊंची चोटियों से लेकर समुद्र और रेगिस्तान तक धरती का कोई भी कोना बिना धार्मिक आग्रहों और प्रदूषण से बच नही सका है | हिमाचल का यह आखिरी पूर्वी छोर कुछ हद तक तथाकथित विकास के इन सोपानो से बचा हुआ है, यह एक बढ़ी राहत की बात है | जिस जगह पर विशाल जलराशी गिरती है, वहाँ ये पानी एक छोटी नदी का रूप ले लेता है, इसी के मुहाने पर एक छोटा सा मन्दिर है, जो सम्भवतः आस-पास के क्षेत्र में रहने वालों के लिये धार्मिक आस्था का केंद्र है | इस नदी के ऊपर से बने एक पुल को पार करके आपको आगे रेणुकाजी झील के लिये प्रस्थान करना है |

झील शब्द तो स्वयम में ही स्त्री लिंग है, इसलियें रेणुका नाम तो अपेक्षित है, परन्तु पूरे रास्ते भर हमे जो भी साइन बोर्ड दिखे, सभी पर झील का नाम रेणुकाजी लिखा हुआ है, हमे आश्चर्य तो है, परन्तु इससे एक अंदाजा भी लग जाता है कि सम्भवतः इसका कोई धार्मिक कारण अवश्य होगा, परन्तु इसके मिथकीय इतिहास से अभी तो हम सर्वथा अनभिज्ञ हैं, हमने तो केवल इतना भर सुना था कि इसकी आकृति एक लेटी हुई महिला सरीखी है और इसके काफी बढ़े हिस्से पर कमल के फूल खिलते हैं |

इधर हमारी यात्रा जारी है और अब जिस जगह पर पहुंचे हैं, वह परशुराम और रेणुकाजी का मन्दिर है | एक ही प्रांगण में रेणुकाजी के मन्दिर के साथ ही परशुरामजी का मन्दिर…, मस्तिक से स्मृति का धुंधलका मिटने लगा, याद आया कि रेणुका जी तो परशुराम की माता जी थी, कुछ हमने याद किया, कुछ इस मन्दिर से पता चला, तो कुल मिलाकर जो जानकारी इकट्ठी हुई, उसका सार कुछ इस प्रकार है-

हिमाचल के इसी पर्वतीय क्षेत्र के जंगलो की कंदराओं में ऋषि जमदग्नि अपनी पत्नी रेणुका के साथ एक आश्रम में रहते थे | असुर सहसत्रजुन की नीयत डोली और ऋषि पत्नी रेणुका को पाने की अभिलाषा में उसने ऋषि जमदग्नि का वध कर दिया | रेणुका ने अपने सत की रक्षा और दुष्ट असुर से बचने हेतु स्वयम् को जल में समाधिष्ठ कर लिया, बाद में परशुराम और देवतायों ने असुर का वध किया, और ऋषि व रेणुका को नव जीवन दिया और फिर ठीक उस जगह से एक जल धारा फूटी जिससे इस झील का निर्माण हुआ | मिथक कुछ भी हो, परन्तु आस पास के क्षेत्र के निवासियों में इस जगह का धार्मिक महत्व है और वह इस दंत कथा को मानते भी हैं इसका सबसे बढ़ा ज्वलंत प्रमाण तो यह ही है कि स्थानीय निवासी जब इस झील में नौका विहार के लिये जाते हैं तो अपने जूते-चप्पल किनारे पर ही उतार देते हैं |

आखिर परशुराम और रेणुका मन्दिर तक तो हम पहुँच ही गए हैं

इस तीर्थ की पौराणिक गाथा बताता एक पटल

मन्दिर का प्रांगण ऐसे ही प्राणियों की उपस्थिति के कारण खुशगवार है

रेणुकाजी मन्दिर के भीतर वरहा भगवान् की मूर्ति

और इधर, इस मन्दिर के सामने जो विशाल ताल है, इसे परशुराम ताल कहते है | इसमे प्रचुर मात्रा में जलीय प्राणी मौजूद हैं, तमाम तरह की मछलियों के अलावा, कछुओं की भी कुछ प्रजातियाँ आपको यहाँ दिख जायेंगी और फिर ढेर सारी बतखें भी | निश्चित तौर पर यह मन्दिर और इसके आसपास का वातावरण मनोहर हैं, रमणीक भी और सबसे अच्छा पक्ष भीढ़-भाढ़ मुक्त भी है | यहीं से आपको जानकारी मिलती है कि रेणुका झील यहाँ से कुछ दूरी पर ही स्थित है, और आप अपनी गाढ़ी द्वारा वहां तक जा सकते हैं |

कुछ मिनटों में ही, इस ताल से कुछ दूरी पर ही स्थित रेणुका झील पर आप अपने को पाते हैं, जहाँ आप का सामना कुछ सरकारी कर्मचारियों से होता है जो आपको बताते हैं कि यदि केवल झील को देखना है तो आपके बायीं तरफ सारी झील ही है और उसका कोई शुल्क नही, और यदि आप ने चिड़ियाघर भी देखना है तो उसका शुल्क 50/- रुपैया है | बच्चे खुद से ही फैसला कर लेते हैं कि वो तो जरूर देखना है, पैसों का भुगतान करते ही आप के जाने के लिये गेट खोल दिया जाता है | अब आप स्वतंत्र है, झील के ही किनारे पर बने एक छोटे से चिड़ियाघर को देखने के लिये जिसमे जानवरों के नाम पर केवल शेर, भालू और तेदुआ ही है | वैसे यदि हिमाचल सरकार चाहे तो इस में अन्य प्रकार के जानवर रख कर इसे और भी आकर्षित बना सकती है, केवल इन तीन प्रजाति के जानवरों के दम पर इसे मिनी जू का नाम देना कुछ ज्यादती ही है, हाँ, एक अच्छा पक्ष यह है कि कम लोग और कम जानवरों के कारण यहाँ कोई रोक टोक नही, आप आराम से उन्हें निहार भी सकते हो और अपने मन माफिक उनके चित्र भी उतार सकते हो| सामने ही विशालकाय झील है, इसमें कोई दो राय नही कि समुद्र तल से 660 मीटर की ऊंचाई पर, और दिल्ली से कुल मिलाकर लगभग साढ़े तीन सौ किमी की दूरी पर स्थित यह झील अपनी परिक्रमा में ढाई किमी लम्बी है, जो शायद पूरे हिमाचल में सबसे बढ़ी है | इसकी सतह कई जगहों पर कमल के फूलों के दल से आच्छादित है, जो इसे आपल्वित्ल कर एक अद्भुत द्रश्य संयोजन कर रहे हैं, निश्चित ही एक नयनाभिराम चित्र आपकी आँखों के सामने हैं | अभी तक आपने जो सोचा, वैसा ही पाया, मगर इस झील की महिला जैसी आकृति कैसे दिखे, इसके लिये आपको यहाँ से लगभग 8 किमी और ऊपर की तरफ जामु चोटी पर जाना पढ़ेगा, जिसके बारे में मान्यता है कि ऋषि जमदग्नि यहाँ तपस्या करते थे, वहीं एक छोटा सा मन्दिर भी है, उस ऊंचाई से देखने पर आपको इस झील की आकृति भी लेटी हुई महिला की भांति नजर आएगी और वहाँ से आप आसपास का नजारा भी देख सकते है | इस चिड़ियाघर के साथ ही लगा हुआ सरंक्षित वन्य क्षेत्र भी है, यहाँ आप सफारी भी कर सकते है और यदि भाग्यशाली हुए तो कई प्रकार के जंगली जानवरों को उनके प्राकृतिक परिवेश में भी देख सकते हैं | मगर यदि आप परिवार के साथ हैं तो आपको कई प्रकार के लोभों का दमन भी करना पड़ता है, अत: हमने इन दोनों ही स्थानों के अन्वेषण को फिलहाल के लिये स्थगित कर दिया |

और यह है रेणुकाजी झील

यहाँ-तहाँ खिले कमल दल झील की सतह को एकरस होने से बचाते हैं

सजीव दृश्य देखने में अधिक सुंदर हैं, जिसे कैमरा पकढ़ नही सकता

झील के समीप ही बना मिनी जू

शेर तो निश्चित ही सबके आकर्षण का केंद्र होता ही है

इनको इतने करीब से देखने का रोमांच भी कम नही

अगर बीच में यह लोहे की जाली न हो तो…..

हमने सुना है कि, कार्तिक की एकादश को जो सम्भवतः अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से नवम्बर में पढ़ती है, इस जगह पर एक बहुत बढ़ा मेला लगता है, जिसमे दूर दराज के क्षेत्रों से आये लोग शामिल होते है और अपने आने वाले समय के लिए कोई मनौती मांगते है या फिर जिनकी कोई मनोकामना पूरी हो चुकी होती है, वो भी अपना शुकराना अदा करने आते है |

दिन ढलने को है, जब हम यहाँ से निकलने का फैसला करते हैं क्यूंकि अब तक भूख का प्रकोप भी हावी होना शुरू हो गया है, सफर में खाना आपको एक उत्साही उत्तेजना प्रदान करने का कारक होता है, और इधर खाने को कुछ उपलब्ध नही | हाँ, हमने सुना है कि हिमाचल पर्यटन विभाग (hptdc) का एक होटल है और रात बिताने वाले पर्यटक वहाँ रुक सकते हैं परन्तु हमारी मंजिल अभी और आगे है | राह में ऐसी कोई जगह नही यहाँ पर आप परिवार के साथ रुक कर कुछ खा पी सकें | वापिस ददाहू में आया जाता है, यहाँ एक छोटा सा बाज़ार है, वहीँ किसी हलवाई की दुकान से कुछ खाने का सामान लिया गया और किसी फलवाले से कुछ फल, कहीं से ढूंढ कर त्यागी जी किलो-दो किलो ऐसे सेब ले आये जो कि शायद इस क्षेत्र में ही पाए जाते हैं, रंग रूप में बेहद साधारण, परन्तु इनका स्वाद जिव्हा के सम्पर्क में आते ही अच्छा लग रहा था रसीला और हल्का खट्टापन लिये हुए ! एक बार पेट पूजा हो जाने के बाद हमने सढ़क पर लगे साइन बोर्डो को देखा, कुछ स्थानीय निवासियों से राह की ठोर ली और अपनी कार उस रास्ते पर आगे बढ़ा दी, जिस पर हमसे आगे, पांवटा साहिब का बोर्ड लगाये हुए एक बस थी, जो अपने आप में ही तमाम यात्रिओं के बोझ तले दबी हुई प्रतीत हो रही थी |

अब समय है, ददाहू से पांवटा साहिब का रास्ता पकड़ने का

इन फिसलती चट्टानों को देखकर यूँ क्यूँ लगता है कि दरअसल इनका निशाना तो आप थे

अब यह बस भी आपकी हमराह है

सर्पीली सड़क पर रेंगती बस

वैसे, रेणुका जी से पाँवटा साहिब जाने के लिये दो रास्ते हैं, आप वाया नाहन जा सकते हैं, जिसकी दूरी लगभग 80 किमी से ऊपर है या फिर उस रास्ते को चुन सकते हैं, जिसे हमने चुना और इस रास्ते से कुल दूरी 45 किमी के आस पास है, जाहिर है आप छोटा रास्ता ही चुनेगे, और वही हमने चुना भी | खैर, हमारी और इस बस की यात्रा एक समान समय पर शुरू हुई और इससे पहले कि हम इस सफर का कुछ आनंद ले पाते, तारकोल की सड़क का स्थान कच्चे रास्ते ने ले लिया ! अब ये तो सरासर नाइंसाफी है कि आपने एक रास्ता चुन लिया, कुछ किलोमीटर भी तय कर लिये और अब आपका सामना इन दुर्गम सीधी चढ़ाई वाले रास्तों पर कच्ची सडक से हो जाये | मानसून का मौसम है, कई जगहों पर पानी के पोखर बीच रास्ते पर हैं, कच्चे पत्थर सढ़क पर छितरे पढ़े हैं जिन पर गाढ़ी का दबाव पढ़ते ही वो पीछे की तरफ सरकते हैं, सढ़क पर न रौशनी की कोई व्यवस्था न सुरक्षा के लिये कोई रेलिंग, कच्ची संकरी सढ़क, जिसके एक तरफ पहाढ़ है तो दूसरी तरफ खाई और बीच बीच में आता कोई वाहन | यदि सढ़क पर नियमित रूप से दो तरफा ट्रैफिक हो तो आप हर पल सजग रहते हैं परन्तु यदि एक वाहन के गुजरने के बाद दूसरे का कोई ठिकाना ही न हो तो आपके लिये कई बार अपनी एकाग्रता को लम्बे समय तक रख पाना मुश्किल हो जाता है और फिर जिसकी वजह से आपकी यात्रा का जोखिम भी कई गुणा अधिक बढ़ जाता है और मार्ग में लगने वाला समय भी | हमारी चिंता इस रास्ते को लेकर अब यह भी है कि यदि कहीं बरसात मिल जाये अथवा अँधेरा जल्दी गहराने लगे तो इस राह पर यात्रा करना और भी अधिक दुरूह हो जायेगा |

ददाहू से और नाहन से जो रास्ता पाँवटा साहिब की तरफ आता है, धौला कुआँ के समीप आपस में मिल जाता है | इसके एक तरफ यदि कालासर वाइल्ड लाइफ सेंचुरी है तो दूसरी तरफ सिम्बल्वाडा वाइल्ड लाइफ, और यहाँ से माजरा होते हुए आपको उस राजमार्ग पर ले आता है, जिस पर पाँवटा साहिब स्थित है, 20 किमी के लगभग का यह रास्ता खतरनाक तो है, मगर रोमाँच में भी कम नही, गिरी नदी से घिरी इस घाटी में, कई जगहों पर चट्टानों में किसी विशेष खनिज(मिनरल) की उपस्थिति के कारण बहते हुए पानी का रंग यदि कहीं दूध की तरह धवल है, तो थोढ़ा और आगे जाने पर एकदम से श्याम वर्ण का कहीं, हल्का हरा रंग लिये हुए है तो कहीं किसी और रंग में… कहीं शुष्क और कठोर चट्टानों के मध्य किसी दरार में अद्भुत् फूल खिले हैं | शिवालिक की यह पहाड़ियाँ वाकई में इस मायने में अद्भुत् हैं कि एक ही तरफ यहाँ आपको चट्टान का रंग स्लेटी मिलेगा तो किसी का सुरमई तो कहीं पीलापन लिये लाल | कच्चे रास्ते के बाद एक बार फिर से अपने आप को तारकोल में लिपटी सढ़क पर पाते हैं तो चालक सहित सभी के चेहरे पर एक राहत की साँस आती है | लेकिन क्या यह हमारी परीक्षा का अंत है ? अभी तो हम बीच राह में ही हैं | हाँ, लक्ष्य हमारा सही है और इसकी प्राप्ति के प्रयास भी सही दिशा में | राह में मिलने वाले साइन बोर्ड और स्थानीय निवासी भी हमारी यात्रा के मार्ग को सही दिशा में अग्रसर होने की पुष्टि कर रहे हैं | इस हिसाब से हमे अगले आधे घंटे में पांवटा साहिब पहुँच जाना चाहिए | शाम के पाँच बज चुके हैं और सूरज बढ़ी तेजी के साथ अस्ताँचल की तरफ बढ़ रहा है | एक नई उमंग, और नए उत्साह के साथ हम आगे बढ़ ही रहे हैं कि बीच मार्ग से गुजरने वाली एक बरसाती नदी ने हमारा मार्ग अवरुद्ध कर दिया | नदी का वेग प्रबल तो है ही, ऊपर से बीच में बढ़े बढ़े गड्डे भी हैं, यदि कहीं बीच गड्डे या बालू में चक्का फँस गया तो ? नदी अपने तल से लगभग तीन फीट ऊपर बह रही है, स्थानीय निवासी बता रहे हैं कि अभी का तो पता नही पर हाँ अभी दो घंटे पहले एक आल्टो रुक गयी थी, जिसे ट्रेक्टर से खिंचवा कर बाहर निकाला गया, दो पहिया वाहनों के लिये बगल में ही एक पक्का पुल है, वो तो उस पर से गुजर कर पार जा रहे हैं और इधर कोई दूसरी गाड़ी भी नहीं, जिसे देख कर ही सही, उसका अनुसरण किया जा सके | अनिश्चय और अनिर्णय की स्थिति में आधा घंटा गुजर गया है पाँवटा साहिब इस नदी को पार करते ही केवल दस-बारह किमी की दूरी पर रह जायेगा, इतना करीब और इतनी दुविधा ! पीछे से एक ओमनी आती है, हमे तसल्ली होती है कि यदि ये स्थानीय निवासी हुआ तो हम भी इसका अनुसरण कर लेंगे, मगर वो भी हमारे साथ ही आकर खड़ा हो गया और उल्टा हमारे ही निर्णय लेने की प्रतीक्षा करने लग ! और, इधर हम तो खुद ही अनिर्णय के भँवर में फंसे हैं, जिस बस ने हमारे साथ ही यात्रा की शुरुआत की थी, वो भी इस जगह पर पहुँच चुकी है और हमारे देखते ही देखते नदी में उतर गईं, मगर उसका गुजरना हमे और भ्रम कि स्थिति में डाल गया क्यूंकि हमने महसूस किया कि बस के बड़े पहियों के बावजूद यह अंदाजा लगाना मुश्किल नही कि गड्डे हमारे अंदाज से भी अधिक गहरे है |

इस बरसाती खड्ड को कैसे पार किया जाए, तल की गहराई का अंदाजा लगाते गुणी जन

एक स्थानीय ट्रेक्टर वाला प्रस्ताव करता है कि दौ सौ रुपईये लेगा और रस्से से गाड़ी बाँध कर पार करवा देगा | एक बार तो हाँ करने का जी करता है, आखिर अँधेरा सामने मुँह बाये खड़ा है और कोई राह सूझ नही रही मगर असल समस्या तो पानी के स्तर को लेकर है यदि इंजन में पानी मार कर गया तो? और अपने घर से इतनी दूर, क्या ऐसा खतरा उठाना उचित होगा ? जब सही राह न सूझे तो अरदास ही एक मात्र सहारा होती है “ गोबिन्दा मेरे गोबिन्दा प्राण आधारा मेरे गोबिन्दा “हमे यूँ अनिश्चय के भँवर में फँसा देख एक सुलझा हुआ स्थानीय ग्रामीण समीप आकर कहता है, आप यूँ परिवार के साथ खतरा मत उठाओ, तीन किमी पीछे जाकर एक दूसरा रास्ता आपको बाहर ले जायेगा और फिर एक पुल पार करके आप राज मार्ग पर आ जायोगे, जितने पैसे यहाँ ट्रेक्टर वाला ले रहा है उतने में आप वहाँ पहुँच जाओगे | पहली बार में ही उसका सुझाव जम जाता है, आखिर नई गाढ़ी के साथ अनजान शहर में इतना बढ़ा जोखिम मोल नही लिया जा सकता, झटपट हमने कार घुमाई और उलटे रास्ते पर चल दिये, हमे देख ओमनी वाला भी हमारे पीछे हो गया है, रास्ता जंगल में से हो कर है, मगर सडक साफ़ सुथरी और सुनसान | इधर सूर्य ने अपना दिन भर का सफर समाप्त किया तो उधर हमने एक बार फिर राज मार्ग पकड़ लिया, परिवार के साथ ऐसे क्षण बहुत तनाव और उलझन भरे होते हैं, जिन्हें शब्दों में व्यक्त करना बहुत मुश्किल है | अँधेरा जब घिरने लगता है तो दृश्य बहुत तेजी के साथ आँखों के सामने से ओझल होना शुरू हो जाते हैं | सफर खूबसूरत इतना है कि कई जगहों पर रुकने का मन करता है | मकई से लदे-फदे खेत है जिन पर टंगे हरे भुट्टे सुनहरी जुल्फों के साए तले आपको अपनी तरफ आकर्षित कर रहे हैं, मगर आप उन्हें रुक कर तोड़ना तो क्या निहारना भी गवारा नही कर सकते | वर्षा ऋतु का यह अप्रतिम सौंदर्य यूँ हमारी आँखों के सामने से फिसला जा रहा है और हम एक पल भी रुकने का जोखिम नही ले सकते | त्यागी जी की सख्त ताकीद हैं कि पाँवटा साहिब पहुँचने से पहले गाढ़ी नही रुकेगी और अंततः नही रुकी ! आखिर सभी बाधाओं से पार पाते हुए हम उस राजमार्ग पर पहुँच ही गये जहाँ से पाँवटा साहिब गुरूद्वारे की दूरी अब महज 7 किमी की रह गयी है | सडक पर मार्ग दर्शक साइन बोर्ड है और रौशनी भी, अत: अब कोई दिक्कत नही | शीग्र ही हम पाँवटा साहिब गुरूद्वारे के सामने विशाल खुले मैदान की पार्किंग में अपनी गाढ़ी लगा रहे है | दिन भर के रोमांचक सफर के बाद गुरु चरणों में सकूँ के कुछ पलों को बिताने की आशा में कार के शीशे जैसे ही नीचे किये तो गुरूद्वारे से आ रही कीर्तन ध्वनी कानो में रस घोलने लगी | तय हुआ कि सामान अभी यहीं रहे पहले जा कर दर्शन किये जाएँ और कमरों का इंतजाम |

और फिर आखिर हमने उस मंजिल को छू ही लिया ….

अब यह हमारी तलाश का अंत है या फिर एक नये संघर्ष की शुरुआत, नही पता ! अभी तो मन में इच्छा है बस जल्दी से जल्दी जाकर उस गुरु के चरणों में शीश नवां दे जिसकी तलाश में हम घँटो हिमाचल की अनदेखी, अनजानी वादियों की धूल फाँकते रहे, कई बार ह्तोसाहित भी हुये मगर मन में हर पल आस की इक डोर बंधी रही कि जो हमे यहाँ तक खींच लाया है वो हमे अपने दीदार से आखिर कब तक महरूम रखेगा …. तो फिर मिलते हैं, यायावरों के एक नये अनुभव के विवरण के साथ अगले अंक में ….. जल्द ही ….. क्रमशः

 

हिमाचल डायरी : रेणुका जी झील और पाँवटा साहेब की तरफ… भाग 4 was last modified: October 5th, 2025 by Avtar Singh
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