हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° – ऋषिकेश
अपने होटल से हम गंगा सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ करने के इरादे से हर की पौड़ी जैसे ही पहà¥à¤‚चे, हमारे होश उड़ गà¤, वंहा पर à¤à¤¯à¤‚कर à¤à¥€à¤¡à¤¼ देखकर. फिर विचार किया कि ऋषिकेश सà¥à¤µà¤°à¥à¤—ाशà¥à¤°à¤® चला जाà¤, वंही पर माठगंगा में डà¥à¤¬à¤•ी लगायेगे. हरकी पौड़ी और गंगा जी को पार करके हम ऋषिकेश मारà¥à¤— पर पहà¥à¤‚चे. à¤à¤• थà¥à¤°à¥€à¤µà¥à¤¹à¥€à¤²à¤° में बैठकर हम लोग सीधे सà¥à¤µà¤°à¥à¤—ाशà¥à¤°à¤® पर पहà¥à¤à¤š गà¤. करीब ३५-४० मिनट का समय हम लोगो को लगा. और करीब २० रूपये सवारी के हिसाब से हमने किराया दिया. हम लोग शिवानंद à¤à¥‚ला या फिर राम à¤à¥‚ला पार करके सà¥à¤µà¤°à¥à¤—ाशà¥à¤°à¤® पर पहà¥à¤à¤š गà¤. फिर हमने और बचà¥à¤šà¥‹ ने माठगंगा में डà¥à¤¬à¤•ी लगाई. माठगंगा में सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ करके मन पवितà¥à¤° हो गया. पता नहीं कà¥à¤¯à¤¾ बात हैं कि माठगंगा में कितनी बार à¤à¥€ सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ करो मन नहीं à¤à¤°à¤¤à¤¾ हैं. और à¤à¤• खास बात ओर हैं कि कितनी ही गरà¥à¤®à¥€ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ न हो, गंगा जी में सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ करके सà¥à¤¡à¤¼à¤•ी आ जाती है.
ऋषिकेश हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° से करीब २५ किलोमीटर दूर हैं. इसको हिमालय का पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤° à¤à¥€ कहा जाता है. ऋषिकेश हिनà¥à¤¦à¥à¤“ के सबसे पवितà¥à¤° सà¥à¤¥à¤²à¥‹à¤‚ में से à¤à¤• हैं. ऋषिकेश को केदारनाथ, बदरीनाथ, गंगोतà¥à¤°à¥€, यमà¥à¤¨à¥‹à¤¤à¥à¤°à¥€ आदि का पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° à¤à¥€ कहा जाता है. यह कहा जाता हैं कि यंहा पर à¤à¤—वान विषà¥à¤£à¥ ऋषिकेश अवतार में पà¥à¤°à¤•ट हà¥à¤ थे. इसलिठइस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ का नाम ऋषिकेश हैं. वैसे तो ऋषिकेश में सैकड़ो मंदिर आशà¥à¤°à¤® हैं, पर समय अà¤à¤¾à¤µ के कारण में कà¥à¤› ही मंदिरों और आशà¥à¤°à¤®à¥‹ में जा सका.
यंहा सà¥à¤µà¤°à¥à¤—ाशà¥à¤°à¤® पर गंगा जी का बहाव बहà¥à¤¤ तेज हैं, गहराई बहà¥à¤¤ है, तो सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ करते समय à¤à¤• तो किनारे पर ही नहाये, और यंहा पर जंजीरे à¤à¥€ पड़ी हà¥à¤ˆ हैं, जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ पकड़कर सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ कर सकते है. बचà¥à¤šà¥‹ को सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ कराते समय बचà¥à¤šà¥‹ का धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ रखे, उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ आगे मत जाने दे. à¤à¤• बात का और धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ रखे कि यंहा पर अपने सामान का धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ रखे, यदि à¤à¤• मिनट को à¤à¥€ आप कि नज़र चूक गयी तो आपका सामान गायब हो जाà¤à¤—ा. ये गलती हमारे से हà¥à¤ˆ थी. मेरी पतà¥à¤¨à¥€ नीलम का परà¥à¤¸ साफ़ हो गया था.
नहा धोकर फोटो à¤à¥€ जरा फोटो à¤à¥€ खिचवाले
à¤à¤• नौका के सहारे दोनों à¤à¤¾à¤ˆ
सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ करने के बाद à¤à¥‚ख बहà¥à¤¤ जोर कि लगती हैं. खाना खाने के लिठयंहा के मशहूर चोटीवाला होटल में पहà¥à¤à¤š गà¤. चोटीवाला होटल यंहा पर, और बहà¥à¤¤ ही मशहूर होटल है. यंहा के खाने का ज़वाब नहीं है. खाना थोडा सा महंगा जरूर हैं, पर सà¥à¤µà¤¾à¤¦à¤¿à¤·à¥à¤Ÿ है. यंहा कि खास बात हैं कि चोटीवाला का पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤• सà¥à¤µà¤°à¥à¤ª à¤à¤• वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ होटल के मेंन गेट पर बैठा रहता हैं, जिसका चितà¥à¤° मैंने नीचे दिया हैं. इस होटल में बड़े बड़े फिलà¥à¤®à¤¸à¥à¤Ÿà¤¾à¤° à¤à¥€ खाना खा चà¥à¤•े हैं. वैसे खाने पीने के लिठयंहा पर बहà¥à¤¤ सारे होटल हैं. तीरà¥à¤¥ यातà¥à¤°à¥€ अपने बज़ट के हिसाब से उनमे खाना खा सकते है.
चोटीवाला होटल का à¤à¤• जीता जागता पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•
à¤à¥‹à¤œà¤¨ करने के बाद हम वंहा पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ मंदिरों और आशà¥à¤°à¤®à¥‹ के दरà¥à¤¶à¤¨ करने के लिठनिकल पड़े. सबसे पहले सà¥à¤µà¤°à¥à¤—ाशà¥à¤°à¤® के दरà¥à¤¶à¤¨ किये. इसका निरà¥à¤®à¤¾à¤£ बिरला परिवार ने करवाया हैं. इस आशà¥à¤°à¤® में ठहरने के लिठकमरे आदि बने हà¥à¤ हैं, जिनमे दूरदराज से आने वाले यातà¥à¤°à¥€ ठहरते है. à¤à¤• समसà¥à¤¯à¤¾ यंहा पर बहà¥à¤¤ लगी कि किसी à¤à¥€ आशà¥à¤°à¤® या फिर धरà¥à¤®à¤¶à¤¾à¤²à¤¾ में कà¥à¤²à¥‹à¤• रूमॠका सिसà¥à¤Ÿà¤® नहीं हैं. जिससे यातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को अपना सामान रखने कि बहà¥à¤¤ समसà¥à¤¯à¤¾ आती हैं. हमारे जैसे यातà¥à¤°à¥€ जिनके साथ थोडा बहà¥à¤¤ बैग आदि होते हैं, वो परेशान हो जाते हैं, और अपना सामान उठाये हà¥à¤ घूमना पड़ता हैं.
सà¥à¤µà¤°à¥à¤—ाशà¥à¤°à¤® पर गंगा जी के किनारे à¤à¤• टावर
सà¥à¤µà¤°à¥à¤—ाशà¥à¤°à¤® के बराबर में ही गीता à¤à¤µà¤¨ आशà¥à¤°à¤® हैं, जंहा से आप गीता पà¥à¤°à¥‡à¤¸ गोरखपà¥à¤° कि पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•े खरीद सकते हैं. यंही से आप लोग गीता à¤à¤µà¤¨ वालो कि आयà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦à¤¿à¤• दवाईया à¤à¥€ खरीद सकते हैं. गीता पà¥à¤°à¥‡à¤¸ कि सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ सेठहनà¥à¤®à¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ पोदà¥à¤¦à¤¾à¤° ने कि थी. और जितना कारà¥à¤¯ गीता पà¥à¤°à¥‡à¤¸ गोरखपà¥à¤° ने हिंदू धरà¥à¤® के लिठकिया हैं, शायद ही किसी ने किया हैं. इस पà¥à¤°à¥‡à¤¸ ने हिंदू धरà¥à¤® के पर उपलबà¥à¤§ पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•ों का पà¥à¤°à¤•ाशन किया हैं. आज तक करीब ५ करोड पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•े पà¥à¤°à¤•ाशित हो चà¥à¤•ी हैं. जो कि à¤à¤• वरà¥à¤²à¥à¤¡ रिकारà¥à¤¡ है.
गंगा जी और दूसरे किनारे का à¤à¤• दृशà¥à¤¯
à¤à¤—वान शिव धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ मà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾ में
à¤à¤—वान शिव कि यह मूरà¥à¤¤à¤¿ गंगा जी के अंदर परमारà¥à¤¥ निकेतन के सामने सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ हैं. परमारà¥à¤¥ निकेतन à¤à¤• बहà¥à¤¤ ही बड़ा और à¤à¤µà¥à¤¯ आशà¥à¤°à¤® हैं. इस के पà¥à¤°à¤¾à¤‚गन में बहà¥à¤¤ सारे मंदिर बने हà¥à¤ हैं. इस आशà¥à¤°à¤® के संसà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤• और संरकà¥à¤·à¤• सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ चिदानंद जी महाराज हैं. सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ चिदानंद जी फिलà¥à¤® सà¥à¤Ÿà¤¾à¤° विवेक ओबेराय और उनके परिवार के कà¥à¤²à¤—à¥à¤°à¥ à¤à¥€ हैं. ये लोग हर साल इनके पास जरूर आते हैं और कà¥à¤› दिन जरूर बिताते हैं. यंहा पर नितà¥à¤¯ गंगा आरती का आयोजन होता हैं, जो कि देखने वाला दृशà¥à¤¯ होता हैं. परमारà¥à¤¥ निकेतन ऋषिकेश में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ सबसे à¤à¤µà¥à¤¯ और शानदार आशà¥à¤°à¤® है.
परमारà¥à¤¥ निकेतन का मà¥à¤–à¥à¤¯ दà¥à¤µà¤¾à¤°
परमारà¥à¤¥ निकेतन में ही à¤à¤• और सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° कृति
राणा के साथ महाराणा अमन
à¤à¤—वान शिव की à¤à¤• और मूरà¥à¤¤à¤¿
à¤à¤—वान शà¥à¤°à¥€ कृषà¥à¤£ अपनी गाय के साथ
आज के दिन à¤à¤• परेशानी वाली बात और थी कि, गरà¥à¤®à¥€ बहà¥à¤¤ पड़ रही थी. और गरà¥à¤®à¥€ कि वजह से हालत खराब थी सब लोग à¤à¤—वान जी से ये दà¥à¤† कर रहे थे कि ठंडा मौसम हो जाà¤, तà¤à¥€ à¤à¤—वान जी ने मà¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ सà¥à¤¨ ली और बड़े जबरदसà¥à¤¤ बादल घà¥à¤®à¤¡à¤¼ आये. और आंधी तूफ़ान आना शà¥à¤°à¥‚ हो गया. ज़बरदसà¥à¤¤ बारिश शà¥à¤°à¥‚ हो गयी थी. मौसम बहà¥à¤¤ ही सà¥à¤¹à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ हो गया था. à¤à¤• और ऊंचे पहाड़ और दूसरी और माठगंगा कà¥à¤¯à¤¾ दृशà¥à¤¯ था.
आसमान में घटाये और à¤à¤—वान जी
पेड़ के ऊपर गणेश जी की आकृति
यह पीपल का पेड़ परमारà¥à¤¥ निकेतन परिसर में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ हैं. इस पीपल के पेड़ पर धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ से देखिये, आपको à¤à¤—वान शà¥à¤°à¥€ गणेश कि आकृति बनी नज़र आà¤à¤—ी. है ना à¤à¤—वान का चमतà¥à¤•ार..
करीब à¤à¤• घंटा बारिश होती रही. और हम लोग आशà¥à¤°à¤® में विशà¥à¤°à¤¾à¤® करते रहे. बारिश रà¥à¤•ते ही हम लोग आशà¥à¤°à¤® से निकलकर नाव में जा बैठे, सोचा कि नाव कि सवारी à¤à¥€ हो जायेगी और दूसरी ओर à¤à¥€ पहà¥à¤à¤š जायेंगे. ऊपर बादल थे, ठंडी हवाठचल रही थी, और गंगा जी में नाव में बैठकर अलग ही आनंद का अनà¥à¤à¤µ हो रहा था.
इस तरह से हम दà¥à¤¸à¤°à¥‡ किनारे पर पहà¥à¤à¤š गà¤. मौसम बहà¥à¤¤ ही सà¥à¤¹à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ हो गया था. वंही सामने ही हम लोग सीढियों पर बैठकर मौसम का आनंद लेने लगे. तà¤à¥€ सामने से रिवर राफà¥à¤Ÿà¤¿à¤‚ग करने वालो कि बोट आ गयी. यह à¤à¤• बहà¥à¤¤ ही खतरनाक खेल हैं. ऋषिकेश से ऊपर शिव पà¥à¤°à¥€ से ये लोग बोट के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ गंगा जी कि खतरनाक लहरों और बड़ी बड़ी चटà¥à¤Ÿà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ से जूà¤à¤¤à¥‡ हà¥à¤, ऋषिकेश तक पहà¥à¤à¤šà¤¤à¥‡ है. इस खेल में कà¤à¥€ कà¤à¥€ जान पर à¤à¥€ बन जाती है. बचà¥à¤šà¥‡ उन लोगो कि तरफ हाथो से इशारा करके उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ विशॠकरने लगे, उन लोगो ने à¤à¥€ जवाब में विशॠकिया.
गंगा जी में राफà¥à¤Ÿà¤¿à¤‚ग
गंगा जी के दूसरे किनारे से लिया गया फोटो
शिवानंद à¤à¥‚ला और गंगा जी
यह पà¥à¤² सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ शिवानंद और शिवानंद आशà¥à¤°à¤® के कारण शिवानंद à¤à¥‚ला कहलाता हैं. हम लोग समय अà¤à¤¾à¤µ के कारण इससे थोड़ी ही दूर लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ à¤à¥‚ला नहीं जा पाठथे.
गंगा जी में à¤à¤• नाव यातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को ले जाती हà¥à¤ˆ
गंगा जी सà¥à¤µà¤°à¥à¤—ाशà¥à¤°à¤® और पीछे नीलकंठपरà¥à¤µà¤¤
दिन में ही अà¤à¤§à¥‡à¤°à¤¾ हो गया
बादल इतने जबरदसà¥à¤¤ थे कि दिन में ही अनà¥à¤§à¤•ार सा हो गया था. काफी थक चà¥à¤•े थे, और सीढियों पर बैठकर विशà¥à¤°à¤¾à¤® करने लगे, वंही पर à¤à¤• चाय वाला, à¤à¤• à¤à¥‡à¤²à¤ªà¥à¤°à¥€ वाला , और à¤à¤• छोले वाला खड़ा था. à¤à¤• à¤à¤• कप चाय, और à¤à¥‡à¤²à¤ªà¥à¤°à¥€, छोले आदि मंगा लिà¤, और चाय कि चà¥à¤¸à¥à¤•ी के साथ माठगंगा कि लहरों का, और मौसम का मज़ा लेने लगे.
इसके साथ ही हमारी हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° ऋषिकेश यातà¥à¤°à¤¾ पà¥à¤°à¥€ हो चà¥à¤•ी थी. थà¥à¤°à¥€ वà¥à¤¹à¥€à¤²à¤° में बैठकर हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° कि और चल दिà¤. और बस में बैठकर रात ९ बजे तक मà¥à¤œà¤¼à¤«à¥à¤«à¤¼à¤°à¥à¤¨à¤—र आ गà¤. वनà¥à¤¦à¥‡à¤®à¤¾à¤¤à¤°à¤®.
गजब के फोटो है गुप्ता जी,
विवरण तो अभी नहीं पढ़ा है, बाद में पढूंगा, तब बताऊंगा
राम राम प्रवीन जी…..
बहुत अच्छा लगा आपकी हरिद्वार यात्रा पढ़ कर….फोटो बहुत शानदार लगे…|
दो तीन बार हरिद्वार ऋषिकेश जा चुका काफी कुछ याद हो आया आपके लेख से , आपकी बताई सभी जगह घूम चुका हूँ | क्या आप ऋषिकेश के त्रिवेणी घाट नहीं गए थे ? चित्रों से मालूम पड़ता हैं की ऋषिकेश में काफी कुछ बदल गया हैं |
ऋषिकेश में गंगा किनारे बैठकर मन को जो शांति मिलती हैं उसका वर्णन नहीं किया जा सकता ….|
कल में मैं अपनी अगली यात्रा पर निकल रहा हूँ….कुमाऊ की तरफ (नैनीताल, अल्मोड़ा, जागेश्वर और समय मिला तो पाताल भुवनेश्वर भी )
आपका लेख मुझे बहुत पसंद आया ….धन्यवाद!
प्रवीण जी,
बहुत अच्छा यात्रा वृत्तांत लिखा है. बढ़िया फोटो. गंगा जी कलयुग का महान तीर्थ है . चोटीवाला का प्रतीक स्वरुप व्यक्ति हमने भी देखा था पर होटल के अन्दर नहीं जाना हुआ. आप ऐसे ही अपना यात्रा वृत्तांत लिखते रहें .
शुक्रिया
विवरण भी फोटो के जैसा बेहतरीन लगा, शीर्षक में थोड़ा अजीब लगा कि ऋषिकेश का नाम क्यों नहीं लिखा?
दरअसल यह यात्रा वृत्तान्त हरिद्वार और स्वर्गाश्रम का हैं. इस यात्रा मैं हम ऋषिकेश मैं नहीं रुके थे. इसलिए ऋषिकेश के किसी भी स्थान के बारे मैं नहीं बताया हैं. वैसे ऋषि केश को भी हम हरिद्वार का ही अंग समझते हैं. यह पूरा क्षेत्र कुम्भ मेला क्षेत्र कहलाता हैं. पर यह चार जिलो मैं बंटा हुआ हैं. हरिद्वार जिला, ऋषिकेश देहरादून जिले मे, मुनि की रेती टिहरी जिले मैं, और स्वर्गाश्रम पौड़ी जिले मैं आते हैं.
ऋषिकेश के बहुत ही अच्छे फोटो हैं. चोटीवाला का नाम सुना था आपने फोटो भी दिखा दिए.
प्रवीण जी बहुत ही अछे फोटो है खास करके गंगा जी के. संदीप भाई कि बात बराबर है हरिद्वार कि जगह ऋषिकेश होना चाहिए था, विवरण भी बहुत बढ़िया है. गंगा जी में आप डूबकी लगा रहे हो और मजा हमें आ रहा है . सच में मुझे हरिद्वार और ऋषिकेश में गंगा में स्नान करने कि भी बहुत इच्छा है.
बनारस में तो नहीं नहाया . प्रयाग में थोडा संगम पर स्नान किया था . लेकिन अब भी मन तृप्त नहीं हुआ है.
दर्शन कराने के लिए कोटि कोटि धन्यवाद.
बहुत ही सुन्दर वर्णन और खूबसूरत तस्वीरें, प्रवीण भाई.
वाकई, मज़ा आ गया, धन्यवाद.
बहुत अच्छे गुप्ता जी,
सभी कुछ बहुत हे सुंदर, थोड़ी सी और सुंदरता बढा दूँ ?
मैं खुद हर महीने हरिद्वार गंगा स्नान के लिए जाता हूँ, लेकिन “समय हो तो” स्नान के लिए, ठहरने के लिए और खाने के लिए मैं हमेशा ऋषिकेश को तवज्जो देता हूँ.
खाने के मामले में आपने “गीता भवन” का जिक्र नहीं किया ? चोटी वाला तो एक नाम है जो बिकने लगा है, अगर एक बार आप “गीता भवन” की दूकान मैं पहुँच जाओगे, तो खाए बिना तो क्या बिना परोसा लिए बहार नहीं आ पाओगे. यहाँ शुद्ध देसी घी की मिठाइयाँ और पूरी सब्जी मिलती है. बहुत हे जायज रेट. हम तो यहाँ उस समय से खाते आ रहे हैं जब पूरी 17 रु. किलो मिलती थी. चोंकिये मत यहाँ “पूरी” पहले तोल में ही मिलती थी. अब शायद 12 रु. की चार मिलती हैं, सब्जी फ्री :), स्वाद ऐसा जैसे की भंडारे में बैठ के खा रहे हों (घबराओ मत निचे नहीं बैठना पड़ेगा टेबल कुर्सी, बिलकुल साफ़ सुथरे लगे मिलेंगे). ये दुकान गीता भवन वालों की है जिसे तो धर्मार्थ “No Profit No Loss” पे चला रहे हैं. यहाँ से आते टाइम आप काजू की बर्फी, गूंद के लड्डू, मेथी के लड्डू, भाई और क्या लिखू मुंह में तो पानी आ गया याद करके, हाँ देसी घी की जलेबी, नमकीन में समोसे, कचोरी सब मिलता है, मैं नहीं समझता की जो एक बार यहाँ चला जायेगा कहीं और कुछ खा पायेगा.
बाकि सचमुच बहुत हे बढ़िया हैं, नीलकंठ की कसर रह गई बस, लेकिन जब आप लक्ष्मण झूला ही नहीं जा पाए तो मैं समझ सकता हूँ समय की कितनी मारामारी रही होगी….
जय राम जी की..
संजय जी गीता भवन की इस दुकान के बारे में हमें मालुम नहीं था, अबकी बार जायेंगे तो जरूर खाने का आनंद लेंगे. धन्यवाद बहुत बहुत..
ओहो गंगा जी के पास बारिश हो जाये तो भाई साहब सोने पे सुहागा
बहुत अच्छा सुनाया है ….. और भाई सुड़की तो आयेगी ही ग्लेशियर का ताज़ा-ताज़ा पानी होता है भाई….
मज़ा आ गया ….
ऋषिकेश के बारे में अच्छी जानकारी प्रवीण जी और गीता भवन के बारे में , धन्यवाद् कौशिक जी, भी बहुत अच्छी जानकारी है | अगर आप थोडा बाहर के खाने के इच्छुक है तो एक जगह है, गंगा कैफे , (नीलकंठ महादेव रास्ते पर) , वहां पर पहले मंजिल पर बैठ कर गंगा के दर्शन करते हुए बढ़िया खाना मिलता है |
अभी 22 ता0 को रिषीकेश में था 23 को हम लोगो ने भी रिवर राफिटंग की । बडा मजा आया । पहले मै भी इन लोगो के लिये हाथ हिलाता था अब देखा लोग राम झूला और लक्ष्मण झूला से हमारे लिये हाथ हिला रहे थे
बढिया दर्शन
अपन तो रिषीकेश में हों तो त्रिवेणी घाट के सामने मेन रोड पर राजस्थानी का खाना खाना नही भूलते । इस बार नीलकंठ के रास्ते पर कोयल रेस्टोरेंट में खाया वो भी बढिया था
प्रवीण जी,
मुझे तो इस पोस्ट में सबसे अच्छा लगा- पेड़ पर गणेश जी की आकृति, चोटीवाला का जीता जगता प्रतीक और शिव जी की श्वेत मूर्ति. बाकी आपका वर्णन तो निर्विवाद रूप से लाजवाब था ही.