अकà¥à¤Ÿà¥‚बर का महिना और घूमने की पà¥à¤°à¤¬à¤² इचà¥à¤›à¤¾ की कही न कही तो जाना है लेकिन कà¥à¤› समठही नहीं आ रहा था कà¥à¤¯à¥‹à¤•ि मनोज को अà¤à¥€ छà¥à¤Ÿà¥à¤Ÿà¥€ नहीं मिल सकती थी, आखिर मे यही निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ हà¥à¤† कि सरिसà¥à¤•ा राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ उदà¥à¤¯à¤¾à¤¨ पास ही है और कà¤à¥€ हम वहा गठà¤à¥€ नहीं है तो à¤à¤• बार तो जा ही सकते है, वैसे तो वहा शेर दिखना बहà¥à¤¤ मà¥à¤¶à¥à¤•िल है लेकिन कम से कम वनà¥à¤¯ जीवन का लà¥à¤¤à¥à¤«à¤¼ तो उठा ही सकते है। शनिवार की रात को निकलने का निशà¥à¤šà¤¯ हà¥à¤† जिससे की सोमवार की सà¥à¤¬à¤¹ तक वापिस आ सके, इस बार हम चार ही लोग मै, à¤à¤—वानदास जी, मनमोहन और मनोज ही थे इसलिठइंडिगो बà¥à¤• कर दी कà¥à¤¯à¥‹à¤•ि रासà¥à¤¤à¤¾ à¤à¥€ छोटा था इसलिठबड़ी गाडी करने से कोई फायदा नहीं था।
शाम को ८ बजे गाडी सबसे पहले मेरे पास आ गयी, मेरी तयà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥€ पूरी थी इसलिठबिना देर किये मै गाड़ी मे बैठगया। पहली बार इस गाड़ी से जा रहे थे और डà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤µà¤° à¤à¥€ नया था जिसका नाम लकी था, मैंने पहले उसको आइटीओ चलने के लिठकहा जहा से मनोज और मनमोहन को लेना था, उनको लेने दे बाद हमने à¤à¤‚डेवालान से à¤à¤—वानदास जी को लिया और डà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤µà¤° को हरी à¤à¤‚डी दे दी कि अब वो गà¥à¤¡à¤—ाà¤à¤µ होते हà¥à¤ अलवर चले, गाड़ी का मà¥à¤¯à¥‚जिक सिसà¥à¤Ÿà¤® ख़राब था जो हमारे लिठबà¥à¤°à¥€ बात थी कà¥à¤¯à¥‹à¤•ि हम सà¤à¥€ गानों के शौक़ीन है, लेकिन अब कà¥à¤› हो नहीं सकता था इसलिठअपना धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ बातो पर केनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¿à¤¤ किया। हमारे मनमोहन जी की आदत है कि गाड़ी मे कोई à¤à¥€ कमी होने पर वो उसके पैसे काटने का à¤à¤²à¤¾à¤¨ कर देते है, इस बार à¤à¥€ उसने à¤à¤• हजार रूपये काटने का à¤à¤²à¤¾à¤¨ कर दिया कà¥à¤¯à¥‹à¤•ि गाने की सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ नहीं थी, वैसे हम ये पैसे काटते नहीं है सिरà¥à¤« मजे लेने के लिठकरते है। जंगल से हमको सà¥à¤¬à¤¹ १० बजे तक फà¥à¤°à¥€ हो जाना था और फिर उसके बाद पूरा दिन था इसलिठदिन का सदà¥à¤ªà¤¯à¥‹à¤— करने के लिठहमने à¤à¤¾à¤¨à¤—ढ़ जाने का निशà¥à¤šà¤¯ किया। à¤à¤¾à¤¨à¤—ढ़ à¤à¤• विशà¥à¤µ पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ है और सबसे जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ à¤à¥à¤¤à¤¹à¤¾ जगहों मे से à¤à¤• है। à¤à¤¾à¤¨à¤—ढ़ के नाम से ही à¤à¤• अजीब सा रोमांच पैदा हो गया था।
रासà¥à¤¤à¤¾ छोटा ही था और हम सब मसà¥à¤¤à¥€ करते हà¥à¤ जा रहे थे इसलिठडà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤µà¤° à¤à¥€ हमारे साथ घà¥à¤²à¤®à¤¿à¤² गया, वैसे à¤à¥€ वो हमउमà¥à¤° ही था तो कोई समसà¥à¤¯à¤¾ नहीं थी। अलवर पहà¥à¤šà¤¨à¥‡ से à¤à¤• घंटा पहले मनमोहन ने पेशाब जाने के लिठगाड़ी रà¥à¤•वाने को बोला लेकिन सब मसà¥à¤¤à¥€ मे थे इसलिठडà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤µà¤° ने à¤à¥€ मजाक मे गाडी नहीं रोकी, उसने कà¥à¤› देर बाद फिर बोला लेकिन फिर à¤à¥€ गाडी नहीं रोकी, लगà¤à¤— दस मिनट बाद मनमोहन ने बà¥à¤°à¤¾ सा मà¥à¤¹ बनाया और बोला की “सॉरी, नियंतà¥à¤°à¤£ नहीं हà¥à¤†, गाडी गनà¥à¤¦à¥€ हो गयी”, इस बार सब हडबडा गया और तà¥à¤°à¤‚त डà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤µà¤° ने à¤à¥€ गाडी रोक दी, लेकिन à¤à¤¸à¤¾ कà¥à¤› नहीं था, मनमोहन फिर बोला, “शराफत का जमाना नहीं है इसलिठये सब करना पड़ता है” फिर डà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤µà¤° की तरफ देखा और बोला, ” बेटा लकी तेरे दोसौ रूपये और कट गये। हम सब à¤à¥€ हस पड़े और फिर अलवर की तरफ चल दिà¤à¥¤
हम लगà¤à¤— साढ़े बारह बजे अलवर पहà¥à¤š गà¤à¥¤ किसीने à¤à¥€ à¤à¥‹à¤œà¤¨ नहीं किया था इसलिठसबसे पहले कोई ढाबा ढूà¤à¤¢à¤•र पेट à¤à¤° के खाने का निशà¥à¤šà¤¯ किया फिर उसके बाद कोई होटल देखकर सोने का। हमें उमà¥à¤®à¥€à¤¦ नहीं थी कि वहा कोई ढाबा खà¥à¤²à¤¾ नहीं मिलेगा लेकिन काफी देर तक इधर उधर à¤à¤Ÿà¤•ने के बाद à¤à¥€ कà¥à¤› à¤à¥€ खाने को नहीं मिला, हम काफी दूर तक देख आये थे लेकिन सब कà¥à¤› बंद था, तà¤à¥€ à¤à¤• गाड़ी हमारे पास आई तो हमने उनसे अपनी समसà¥à¤¯à¤¾ बताई तो उसने हमें à¤à¤• जगह बताई जो वहा से पांच-छ किलोमीटर दूर थी, हम तà¥à¤°à¤‚त वहा पहà¥à¤šà¥‡ और पहà¥à¤šà¤¤à¥‡ ही खà¥à¤¶ à¤à¥€ हो गठकि ढाबा खà¥à¤²à¤¾ ही था और बंद करने की तैयारी चल रही थी, हमने जलà¥à¤¦à¥€ से ऑरà¥à¤¡à¤° दिया और बहà¥à¤¤ जलà¥à¤¦à¥€ ही खाना सामने आ à¤à¥€ गया, खाना सà¥à¤µà¤¾à¤¦à¤¿à¤¸à¥à¤Ÿ था, हमने आराम से खाया, à¤à¥à¤—तान किया और वापिस होटल की तलाश मे आ गà¤, २ से जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ का समय हो गया था इसलिठअलवर बिलकà¥à¤² सà¥à¤¨à¤¸à¤¾à¤¨ था, हमने à¤à¤• दो होटल देखे लेकिन किराया जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ था, वैसे à¤à¥€ हमें दो-तीन घंटे ही सोना था इसलिठजà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ पैसे हम नहीं देना चाहते थे, आखिर मे à¤à¤• छोटा सा होटल देखकर हमने वहा २ कमरे ले लिà¤, दोनों कमरे के सात सौ रूपये तय हà¥à¤ तो हमने पाà¤à¤š सौ रूपये अगà¥à¤°à¤¿à¤® दिठऔर जलà¥à¤¦à¥€ से अपना सामान कमरों मे रख दिया। कमरे इतने अचà¥à¤›à¥‡ नहीं थे और बाथरूम की दशा तो और à¤à¥€ ख़राब थी इसलिठतà¤à¥€ निशà¥à¤šà¤¯ किया की सà¥à¤¬à¤¹ उठकर सीधा सरिसà¥à¤•ा जायेगे बिना नहाये, बाद मे देखा जाà¤à¤—ा कि कà¥à¤¯à¤¾ करना है। सà¥à¤¬à¤¹ छ बजे का अलारà¥à¤® लगाकर हम सो गठताकि सात बजे तक हम सरिसà¥à¤•ा उदà¥à¤¯à¤¾à¤¨ के पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° पर पहà¥à¤š कर समय से परमिट ले सके।
सà¥à¤¬à¤¹ हम समय पर उठगठऔर जलà¥à¤¦à¥€ से होटल वाले का हिसाब करके सरिसà¥à¤•ा के लिठनिकल पड़े। हम सात बजे से पहले ही वहा पहà¥à¤š गà¤, जब तक बà¥à¤•िंग खिड़की नहीं खà¥à¤²à¥€ थी, जैसे ही खिड़की खà¥à¤²à¥€ हमने अपनी जानकारी वहा दी, जिपà¥à¤¸à¥€ बà¥à¤•िंग के छबीस सौ रूपये हमें बताये गठजिनमे से सात सौ रूपये खिड़की पर ही ले लिठगठऔर बाकी हमें जिपà¥à¤¸à¥€ के देने डà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤µà¤° को देने थे, हमने डà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤µà¤° लकी का नाम à¤à¥€ लिखवा लिया था ताकि वो à¤à¥€ जंगल का आनंद ले सके। हम अपने जिपà¥à¤¸à¥€ के डà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤µà¤° और गाइड से मिले और उनको पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•à¥à¤·à¤¾ करने के लिठबोला कà¥à¤¯à¥‹à¤•ि वहा की कैंटीन खà¥à¤² गयी थी इसलिठहमने सोचा कि चाय पी कर चला जाये। चाय पीकर हम जिपà¥à¤¸à¥€ मे बैठगà¤, डà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤µà¤° ने à¤à¥€ जीप आगे बढ़ा दी
इस टà¥à¤°à¤¿à¤ª मे शà¥à¤°à¥‚ से ही लग रहा था कि जंगल मे कà¥à¤› देखने को नहीं मिलेगा और वैसे à¤à¥€ हम जिम कॉरà¥à¤¬à¥‡à¤Ÿ कई बार जा चà¥à¤•े थे और ३-४ महीने पहले ही रनà¥à¤¥à¤®à¥à¤¬à¥‹à¤° à¤à¥€ गठथे तो उनकी तà¥à¤²à¤¨à¤¾ मे सरिसà¥à¤•ा बहà¥à¤¤ कम है लेकिन जंगल की वादियों मे घà¥à¤¸à¤¤à¥‡à¤¹à¥€ à¤à¤• ताजगी और रोमांच का à¤à¤¹à¤¸à¤¾à¤¸ हो जाता है निगाहे चोकनà¥à¤¨à¥€ हो जाती है और कान à¤à¥€ आस पास की आवाज सà¥à¤¨à¤¨à¥‡ के लिठबैचैन हो जाते है। जंगल मे पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ करते ही हिरन, सांà¤à¤°, नीलगाय, लंगूर आदि तो दिखने लगे थे लेकिन शेर को नामोनिशान नहीं था वैसे à¤à¥€ à¤à¤• समय था जब सरिसà¥à¤•ा मे शेर खतà¥à¤® हो गठथे लेकिन फिर रनà¥à¤¥à¤®à¥à¤¬à¥‹à¤° से ३ शेर लाये गठवैसे à¤à¥€ हमने जंगल मे देखा की अà¤à¥€ à¤à¥€ बहà¥à¤¤ सारे गाà¤à¤µ जंगल के अनà¥à¤¦à¤° बसे हà¥à¤ है, हर थोड़ी दूरी पर कोई न कोई गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥€à¤£ दिख ही जाता था तो à¤à¤¸à¥‡ मे किसी खतरनाक जानवर का दिखना मà¥à¤¶à¥à¤•िल ही था। गाइड ने बताया की इन सà¤à¥€ गाà¤à¤µ को जलà¥à¤¦à¥€ ही हटाया जाà¤à¤—ा। ये जरूरी à¤à¥€ है जो जगह जानवर के लिठउस पर इंसान का होना कà¤à¥€ à¤à¥€ जानवर को पसंद नहीं आता।
गाइड से पूछने पर पता चला की हाल फिलहाल तो शेर की कोई हलचल वहा नहीं दिखी है, अब हम इतनी बार जंगल जा चà¥à¤•े है कि à¤à¤• विशेषजà¥à¤ž की तरह ही गाइड और डà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤µà¤° से बात करते है। तà¤à¥€ हमारे डà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤µà¤° लकी ने १-२ बिसà¥à¤•à¥à¤Ÿ जीप से बाहर हिरनों की तरफ फ़ेंक दिठतो हमने तà¥à¤°à¤‚त उसको डांटा, वो बोला सर कोई गलत चीज़ नहीं फेंकी है, इससे कà¥à¤¯à¤¾ नà¥à¤•सान होगा। हमने बोला à¤à¤¾à¤ˆ वो पà¥à¤°à¤¾à¤•ृतिक चीज़े खाते है उनको ये गनà¥à¤¦à¥€ आदत मत डालो, अगर बाद मे उनकी इचà¥à¤›à¤¾ फिर से ये खाने की हà¥à¤ˆ तो कहा से लायेगे, किसी हिरन की मादा ने फरमाइश कर दी कि वही वाले बिसà¥à¤•à¥à¤Ÿ चाहिठतो उस बेचारे हिरन की गृहसà¥à¤¥à¥€ ही टूट जायेगी। वैसे मजाक अपनी जगह है लेकिन जंगल मे इस तरह से कà¥à¤› à¤à¥€ फेंकना गलत ही है। जैसी की उमà¥à¤®à¥€à¤¦ थी कि कोई शेर नहीं दिखा इसलिठहमने डà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤µà¤° को à¤à¥€ बोल दिया कि वो बाहर चल सकता है और वैसे à¤à¥€ समय हो ही गया था। इस समय हमारे मन मे à¤à¤¾à¤¨à¤—ढ़ जाने की पà¥à¤°à¤¬à¤² इचà¥à¤›à¤¾ थी कà¥à¤¯à¥‹à¤•ि इतना कà¥à¤› सà¥à¤¨ रखा था इन किलो के बारे मे कि अब इनà¥à¤¤à¤œà¤¾à¤° नहीं हो रहा था। बाहर आते ही हमने जिपà¥à¤¸à¥€ डà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤µà¤° को बचे हà¥à¤ २० ० ० रूपये दिठऔर अपनी गाड़ी मे बैठगठऔर लकी को à¤à¥€ इशारा कर दिया कि जलà¥à¤¦à¥€ से à¤à¤¾à¤¨à¤—ढ़ की तरफ चले।
à¤à¤¾à¤¨à¤—ढ़ और सरिसà¥à¤•ा के बीच की दूरी लगà¤à¤— à¥à¥¦-८० किलोमीटर है, सरिसà¥à¤•ा से आगे थानागाजी, अजबगढ़ होते हà¥à¤ à¤à¤¾à¤¨à¤—ढ़ जाया जा सकता है। अà¤à¥€ कà¥à¤› à¤à¥€ खाने की इचà¥à¤›à¤¾ नहीं थी इसलिठहमने पहले à¤à¤¾à¤¨à¤—ढ़ जाने का ही निशà¥à¤šà¤¯ किया फिर वहा से वापिस आने के बाद ही खाने के बारे मे कà¥à¤› सोचेगे वैसे à¤à¥€ à¥à¥¦-८० किलोमीटर ही दूरी थी तो सोचा कि à¤à¤• सवा घंटा ही लगेगा पहà¥à¤šà¤¨à¥‡ मे लेकिन थोड़ी देर मे ही अचà¥à¤›à¥€ सड़क का रासà¥à¤¤à¤¾ खतà¥à¤® हो गया और ख़राब रासà¥à¤¤à¤¾ शà¥à¤°à¥‚ जो योजना थी उससे दà¥à¤—ना समय लगा पहà¥à¤šà¤¨à¥‡ मे।
à¤à¤¾à¤¨à¤—ढ़ के बारे मे कहा जाता है कि वहा की राजकà¥à¤®à¤¾à¤°à¥€ रतà¥à¤¨à¤¾à¤µà¤¤à¥€ बहà¥à¤¤ खूबसूरत थी और लोग उसके रूप के दीवाने थे, वही à¤à¤• साधू à¤à¥€ था जो रतà¥à¤¨à¤¾à¤µà¤¤à¥€ को बहà¥à¤¤ चाहता था, वो साधू काले जादू मे माहिर था। à¤à¤• बार राजकà¥à¤®à¤¾à¤° बाजार मे इतà¥à¤° खरीद रही थी तो उस साधू ने उस इतà¥à¤° पर मंतà¥à¤° पढ़ दिठजिससे कि वो इतà¥à¤° लगाते ही राजकà¥à¤®à¤¾à¤°à¥€ उसकी दीवानी हो जाठलेकिन राजकà¥à¤®à¤¾à¤° इतà¥à¤° देखते ही उसकी चाल समठगयी और उसने वो इतà¥à¤° की शीशी à¤à¤• पतà¥à¤¥à¤° पर पटक दी, अब वो पतà¥à¤¥à¤° ही साधू का दीवाना हो गया और उसके पीछे पड़ गया और उसको कà¥à¤šà¤² दिया लेकिन मरते मरते उस साधू ने पूरे à¤à¤¾à¤¨à¤—ढ़ को शà¥à¤°à¤¾à¤ª दे दिया कि वो सà¤à¥€ लोग à¤à¥€ जलà¥à¤¦à¥€ ही मर जायेगे और उनकी आतà¥à¤®à¤¾à¤“ को मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ नहीं मिलेगी जलà¥à¤¦à¥€ ही उसका शà¥à¤°à¤¾à¤ª सच हो गया अजबगढ़ और à¤à¤¾à¤¨à¤—ढ़ के बीच यà¥à¤¦à¥à¤§ जिसमे सà¤à¥€ लोग मारे गà¤, तब से अब तक यही कहा जाता है कि वो सà¤à¥€ आतà¥à¤®à¤¾à¤ आज à¤à¥€ उसी किले मे à¤à¤Ÿà¤•ती है और दिन छिपते ही उन आतà¥à¤®à¤¾à¤“ का किले पर कबà¥à¤œà¤¼à¤¾ हो जाता है, ये à¤à¥€ कहा जाता है कि आज à¤à¥€ वहा जिनà¥à¤¨à¥‹à¤‚ का बाजार लगता है और रात मे तलवारों के टकराने, चीखने और चूडियो की खनखनाहट की आवाज आती है। अब ये किले आरà¥à¤•ियोंलाजिकल सरà¥à¤µà¥‡ आफ इंडिया के नियंतà¥à¤°à¤£ मे है और दिन छिपने के बाद यहाठरूकने की सखà¥à¤¤ मनाही है।
हम लगà¤à¤— १ बजे वहा पहà¥à¤šà¥‡, रासà¥à¤¤à¤¾ ख़राब होने की वजह से इतना समय लग गया था लेकिन मजाक मसà¥à¤¤à¥€ करते हà¥à¤ समय का पता ही नहीं लगा, तरह तरह के अनà¥à¤®à¤¾à¤¨ हम रासà¥à¤¤à¥‡ मे लगा रहे थे जैसे हमने à¤à¤• बà¥à¤œà¥à¤°à¥à¤— से रासà¥à¤¤à¤¾ पà¥à¤›à¤¾ तो उसने ठेठराजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€ सà¥à¤Ÿà¤¾à¤‡à¤² मे रासà¥à¤¤à¤¾ तो बता दिया लेकिन फिर बोला कि मà¥à¤à¥‡ à¤à¥€ बैठा लो लेकिन जगह ही नहीं थी इसलिठबैठा नहीं सकते थे, थोडा आगे निकलते ही मनमोहन बोला ” सर जी अगर अà¤à¥€ आपके बीच मे वो ताऊ पà¥à¤°à¤•ट हो जाठऔर बोले लो मे तो अनà¥à¤¦à¤° आ गया तो कà¥à¤¯à¤¾ होगा।” किले मे पहà¥à¤šà¤¨à¥‡ पर हमने गाड़ी अनà¥à¤¦à¤° ले जाने की कोशिश की तो वहा लोगो ने मना कर दिया कि गाड़ी बाहर पारà¥à¤•िंग मे ही खड़ी हो सकती है तो हमने उसको अनà¥à¤¦à¤° दिखाया की वहा पहले से २-३ गाड़िया खड़ी थी तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने बताया कि वो à¤à¤¾à¤à¤¸à¥€ की रानी की टीम थी जो शूटिंग के लिठआई थी और उनके पास परमिशन थी फिर हमने बहस नहीं की गाड़ी से बाहर आ गà¤, पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° के पास ही à¤à¤¾à¤°à¤¤ सरकार का बोरà¥à¤¡ लगा था जिस पर साफ़ लिखा था की सूरà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥à¤¤ के बाद वह रूकना वरà¥à¤œà¤¿à¤¤ है। हमने अनà¥à¤¦à¤° पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ किया, वहा हनà¥à¤®à¤¾à¤¨ जी का à¤à¤• मंदिर à¤à¥€ है जिसके बारे मे कहा जाता है कि उन आतà¥à¤®à¤¾à¤¯à¥‹ का रौब उस मंदिर के अनà¥à¤¦à¤° नहीं चलता, उस किले मे सबसे सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ जगह वही है। थोडा सा आगे चले तो वहा बहà¥à¤¤ सारे बचà¥à¤šà¥‡ आ गठजिनमे हर à¤à¤• के पास पानी था और वो हमसे जिद कर रहे थे की पानी पी लीजिये, हमें पà¥à¤¯à¤¾à¤¸ तो लग रही थी लेकिन उस किले मे हम कà¥à¤› à¤à¥€ खाना पीना नहीं चाहते थे इसलिठसबको मना करते रहे लेकिन वो बचà¥à¤šà¥‡ à¤à¥€ पीछा छोड़ने को तैयार नहीं थे, बड़ी मà¥à¤¶à¥à¤•िल से उनसे पीछा छà¥à¤¡à¤¼à¤¾à¤•र हम आगे बढे, वहा सब जगह सिरà¥à¤« खंडहर ही खंडहर थे, वहा के बाजार, नरà¥à¤¤à¤•ियो की हवेली सà¤à¥€ के खंडहर थे लेकिन देखकर लग रहा था की अपने ज़माने मे वो बहà¥à¤¤ खूबसूरत रहे होगे। उस समय वहा पर सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ लोग जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ थे जो शूटिंग देखने के लिठआये हà¥à¤ थे लेकिन परà¥à¤¯à¤Ÿà¤• तो शायद १-२ ही थे। सच कहू तो मà¥à¤à¥‡ किले देखने का कà¤à¥€ शौक नहीं रहा सारे खंडहर à¤à¤• जैसे ही लगते है लेकिन अब निरà¥à¤¦à¥‡à¤¶ जी के पोसà¥à¤Ÿ पढ़कर थोड़ी रूचि जागने लगी है। दोपहर का समय होने की वजह से धà¥à¤ª बहà¥à¤¤ तेज लग रही थी इसलिठकिले मे ऊपर जाने का मेरा मन नहीं था। महल के गेट पर शूटिंग चल रही थी जिसको देखकर मà¥à¤à¥‡ थोडा ताजà¥à¤œà¥à¤¬ हà¥à¤† कà¥à¤¯à¥‹à¤•ि à¤à¤¾à¤à¤¸à¥€ की रानी सीरियल काफी पहले आता था और उसमे à¤à¤¾à¤à¤¸à¥€ की रानी बड़ी à¤à¥€ हो गयी थी लेकिन यहाठपर अà¤à¥€ à¤à¥€ वो ही पहले वाली à¤à¤¾à¤à¤¸à¥€ की रानी थी, बाद मे पता लगा कि वो शूटिंग à¤à¤¾à¤à¤¸à¥€ की रानी के लिठनहीं जी टीवी के सीरियल फियर फाइलà¥à¤¸ के लिठथी जो कि à¤à¥‚तो की सचà¥à¤šà¥€ घटनाओ पर है। à¤à¤¾à¤à¤¸à¥€ की रानी की शूटिंग के दौरान उन लोगो को à¤à¥€ à¤à¥€ à¤à¤¾à¤¨à¤—ढ़ मे बहà¥à¤¤ कà¥à¤› रहसà¥à¤¯à¤®à¤¯ लगा था और उनके कैमरे à¤à¥€ ख़राब हो गठथे इसलिठबाद मे फियर फाइलà¥à¤¸ के लिठà¤à¥€ à¤à¤ªà¤¿à¤¸à¥‹à¤¡ तैयार किया जा रहा था। बाद मे मैंने à¤à¥€ ये à¤à¤ªà¤¿à¤¸à¥‹à¤¡ यूटà¥à¤¯à¥‚ब पर देखा। हमने थोड़ी सी शूटिंग देखी और फिर मे और मनमोहन बाहर घास पर छाव देखकर बैठगà¤, à¤à¤—वानदास जी और मनोज ऊपर चले गठजिससे की ऊपर से फोटो à¤à¥€ लिठजा सके। घास पर बैठकर बड़ा अचà¥à¤›à¤¾ लग रहा था, वहा पर बहà¥à¤¤ सारे बनà¥à¤¦à¤° और लंगूर थे।

à¤à¤¾à¤à¤¸à¥€ की रानी शूटिंग फियर फाइलà¥à¤¸ के लिà¤
थोड़ी देर बाद à¤à¤—वानदास जी और मनोज à¤à¥€ आ गठतो हमने वापिस चलने का मन बनाया वैसे à¤à¥€ तेज à¤à¥‚ख à¤à¥€ लग रही थी, वही पर à¤à¤¦à¤¿à¤–ाई अ क पेड़ à¤à¥€ था जो पानी के à¤à¤• छोटे से कà¥à¤£à¥à¤¡ के पास था और वहा जंजीर लगायी हà¥à¤ˆ थी, उस पेड़ के पास जाना मना था, कहा à¤à¥€ जाता है की वहा पर साà¤à¤ª पेड़ से लिपटे रहते है। हमने à¤à¥€ कोशिश नहीं की आगे जाने की और वापिसी के लिठचल दिà¤à¥¤ वहा पर बहà¥à¤¤ से सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ लोग थे तो हमने उनसे वहा की सचà¥à¤šà¤¾à¤ˆ जानने की कोशिश की लेकिन वो लोग इस बारे मे बात ही नहीं करना चाहते थे जबकि वो हमारी उमà¥à¤° के थे लेकिन उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ बात करते हà¥à¤ à¤à¥€ डर लगता था। मनोज राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€ ही है और राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€ बोल à¤à¥€ लेता है तो उसने बोला कि मे कà¥à¤› पता करता हूठऔर वो à¤à¤• बड़ी बड़ी सफ़ेद मूछों वाले बà¥à¤œà¥à¤°à¥à¤— (ताऊ) की तरफ बढ़ गया और हम आगे आकर ठीक नरà¥à¤¤à¤•ियो की हवेली के खंडहर के चबूतरे पर बैठगà¤à¥¤ थोड़ी देर बाद मनोज वापिस आया और बोला ” सर वो यही पास के ही रहने वाले है और कह रहे है की ये सच है और अà¤à¥€ à¤à¥€ रात को आतà¥à¤®à¤¾à¤ यहाठघूमती है, उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कोई विशेष दिन à¤à¥€ महीने का बताया जिस दिन वहा बाजार लगता है।” लेकिन हम बोले की तà¥à¤® बात किस से कर रहे थे कà¥à¤¯à¥‹à¤•ि हमें तो कोई दिख ही नहीं रहा था और तà¥à¤® अकेले अकेले ही बडबडा रहे थे। वो बोला ” कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ डरा रहे हो सर जी”
काफी देर à¤à¥€ हो चà¥à¤•ी थी इसलिठहम तेजी से बाहर की तरफ चल दिठअà¤à¥€ बाहर निकले नहीं थे कि हमें २ महिलाये दिखी जो मंदिर के सामने की तरफ à¤à¤• à¤à¥‹à¤ªà¤¡à¥€ सी मे बैठी थी उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने हमें बà¥à¤²à¤¾à¤¯à¤¾ और बोली की पानी पी लीजिये, हमारी हंसी छूट गयी कà¥à¤¯à¥‹à¤•ि ये à¤à¥€ हमारे लिठà¤à¤• रहसà¥à¤¯ ही बन गया था की हर कोई पानी ही कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ पूछ रहा है। जलà¥à¤¦à¥€ ही हम बाहर आ गठऔर गाडी मे बैठगà¤, वैसे à¤à¥€ वहा बाहर खाने पीने के लिठकà¥à¤› नहीं था इसलिठरासà¥à¤¤à¥‡ मे कही फल लेने का विचार किया और गाड़ी वापिसी के लिठघà¥à¤®à¤¾ ली। लगà¤à¤— साढ़े तीन बजे होगे और हम à¤à¥€ चाहते थे कि ६ बजे तक अलवर पहà¥à¤š जाठजिससे की समय से होटल मे कमरा लेकर, नहा धो कर रात के कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® की तैयà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥€ करे।
वापिस आते हà¥à¤ à¤à¤• बार विचार हà¥à¤† कि सिलिसिढ़ चला जाठलेकिन फिर विचार तà¥à¤¯à¤¾à¤— दिया कà¥à¤¯à¥‹à¤•ि à¤à¥€à¤² देखने का मन किसी का नहीं था इसलिठगाडी à¤à¤• बार उधर से निकाल जरूर ली कि कम से कम जगह देख ली जाठजिससे कि कà¤à¥€ à¤à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯ मे आये तो मन बनाया जा सकता है, रासà¥à¤¤à¥‡ मे नटनी का बाड़ा नाम की à¤à¤• जगह थी, कहा जाता है कि वो नटनी दो पहाड़ो के बीच रसà¥à¤¸à¥€ बाà¤à¤§ कर उस पर चलती थी और à¤à¤• दिन उस रसà¥à¤¸à¥€ से गिर कर ही उसकी मौत हो गयी, à¤à¤¸à¤¾ वो अपने बचà¥à¤šà¥‹ के लिठकरती थी इसलिठउसकी याद मे वहा à¤à¤• मंदिर à¤à¥€ बना दिया गया। लोग वहा रूकते है और मंदिर मे दरà¥à¤¶à¤¨ à¤à¥€ करते है, हमने दरà¥à¤¶à¤¨ तो नहीं किये लेकिन थोड़ी देर वहा रà¥à¤•े और फिर वापिस चल दिà¤à¥¤ लगà¤à¤— साढ़े छ बजे हम अलवर पहà¥à¤š गठऔर सबसे पहले à¤à¤• होटल ढूà¤à¤¢à¤¾ जिससे की नहा धो कर थोडा सा आराम कर ले। होटल वाले ने कमरे मे à¤à¤• अतिरिकà¥à¤¤ बेड लगाने के वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ कर दी थी और कमरा à¤à¥€ अचà¥à¤›à¤¾ था, साड़ी सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤ थी, टीवी, à¤à¤¸à¥€ आदि और किराया था १२०० रूपये। हम जलà¥à¤¦à¥€ से नहाये कà¥à¤¯à¥‹à¤•ि कà¥à¤› खरीदारी à¤à¥€ करनी थी, मनमोहन ने तो जाने से मना कर दिया लेकिन हम तीनो बाजार की तरफ चले गà¤, वहा का कलाकंद बहà¥à¤¤ मशहूर है इसलिठवो ख़रीदा और कà¥à¤› सामान रात के लिठलिया और वापिस कमरे मे आ गà¤à¥¤ मनमोहन सो गया था इसलिठउसको उठाया और कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® की तैयारी शà¥à¤°à¥‚ करने को कहा। वैसे à¤à¥€ हमें सà¥à¤¬à¤¹ जलà¥à¤¦à¥€ निकलना था ताकि मनोज और मनमोहन ऑफिस समय से पहà¥à¤š जाà¤à¥¤
सà¥à¤¬à¤¹ हम लगà¤à¤— छ साढ़े छ बजे वापिसी के लिठनिकले और साढ़े दस बजे उन दोनों को उनके ऑफिस उतार दिया, रासà¥à¤¤à¥‡ मे हम à¤à¤• जगह ही रà¥à¤•े जहा से हमारे डà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤µà¤° लकी ने पोसà¥à¤¤ ख़रीदा था। वैसे तो पोसà¥à¤¤ नशा करने के लिठहोता है लेकिन कà¥à¤› लोग काम के लिठà¤à¥€ इसका पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— करते है। सरकारी ठेका मिलता है इसको बेचने का और à¤à¤• निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ मातà¥à¤°à¤¾ तक इसको ख़रीदा जा सकता है। लकी ने à¤à¤• मजेदार घटना सà¥à¤¨à¤¾à¤ˆ वो बोला सर इसको खाने से à¤à¤• जूनून सवार हो जाता है और अगर किसी आदमी को कोई काम दे दो तो वो काम खतà¥à¤® होने तक नहीं रà¥à¤•ता, उसके गाà¤à¤µ मे उसके रिशà¥à¤¤à¥‡à¤¦à¤¾à¤° की जमीन है जहा पर उनको पेड़ पौधों की कटाई छटाई करानी थी तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने किसी मजदूर को बोला जो पोसà¥à¤¤ खा कर काम मे लग गया और अगले दिन आकर बताया कि काम हो गया लेकिन काम जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ समय का था तो मालिक ने जाकर निरीकà¥à¤·à¤£ किया तो पता लगा की सिरà¥à¤« कटाई छटाई करनी थी लेकिन उसने छटाई तो की नहीं और जोश मे आकर सब कà¥à¤› काट दिया।
इस तरह à¤à¤• छोटी लेकिन मजेदार यातà¥à¤°à¤¾ खतà¥à¤® हà¥à¤ˆ à¤à¤¾à¤¨à¤—ढ़ के उस रहसà¥à¤¯à¤®à¤¯ ससà¥à¤ªà¥‡à¤‚स के साथ जो कब तक ससà¥à¤ªà¥‡à¤‚स रहेगा पता नहीं।
हमने फोटो तो बहà¥à¤¤ सारे खीचे थे लेकिन घर आने पर कैमरा १० मिनट के लिठमेरे à¤à¤¤à¥€à¤œà¥‡ के पास था, अब पता नहीं वो फोटो कैसे डिलीट हो गà¤à¥¤ उसने किये या इसमें à¤à¥€ कोई रहसà¥à¤¯ है। ऊपर के सà¤à¥€ फोटो गूगल बाबा की देन है।
गुप्ताजी बहुत अच्छा विवरण दिया है… सरिस्का में शेर तो कभी दिखता नही… हम गये थे कई बर्ष पहले पांडूपोल तक घूम कर आये थे
भानगढ़ में क्या आपको लगा कि वहां भूत हैं??
धन्यवाद SS जी,
शेरो के लिए रंथाम्बोर ही अच्छी जगह है लेकिन सरिस्का भी अच्छी जगह है, जंगल का माहौल एक अलग ही आनंद देता है। जब तक न देखो तो कुछ भी नहीं कहा जा सकता लेकिन जैसा कहा जाता है और जैसा लोगो ने महसूस किया है उससे तो यही लगता है कि कही न कही कुछ तो है।
बहुत बढ़िया और मजेदार वर्णन है. मैंने भी कुछ साल पहले अक्टूबर के महीने में है सरिस्का की यात्रा की थी जिसके बारे में घुमक्कड पर लिखा भी था (https://www.ghumakkar.com/2011/02/02/alwar-sariska-trip-first-day/). फोटो डिलीट होने की बात पढकर अच्छा नहीं लगा, फोटो के साथ बहुत सारी यादें जुडी होती हैं.
धन्यवाद दीपेन्द्र जी,
आपका लेख मैंने पढ़ा, बहुत अच्चा वर्णन है।
वो फोटो सिर्फ मेरे नहीं थे बाकी तीन लोग भी मेरे साथ थे उन सबकी यादे भी डिलीट हो गयी। अलग से किसी ने एक फोटो भी नहीं लिया था।
कहानी का आनंद लिया!
Thanks for liking the post.
लेख साझा करने के लिए शुक्रिया, सौरभ भाई…बढ़िया लेखन! फोटो गायब होने का कितना दुःख होता है ये मैंने हाल ही में अनुभव किया है जहाँ मेरी सभी यात्राओं की फोटू (जो मेरे लैपटॉप में थी) एक चोर की बलि चढ़ गयी…:(
भानगढ़ के बारे में लोग चाहें कुछ भी कहें, पर मेरा व्यक्तिगत अनुभव बहुत ही शानदार रहा है…इस जगह के भूतिया लगने के बजाय मुझे तो यह जगह बड़ी रोमांटिक और रोमांचक लगी…यहाँ में पिछले मानसून के दौरान अकेले ही घूमने गया था…इस जगह की खुबसूरती हर मायने में बेजोड़ है…चाहे वो किले के चारों और फैली अरावली की छोटी छोटी हरी भरी पहाड़ियाँ हो, यहाँ मौजूद मंदिरों का भव्य अलंकरण हो, किले व बाज़ार के अवशेष हों, या फिर इस पूरे क्षेत्र में व्याप्त खुबसूरत वन्यजीवों की भरमार हो…यहाँ पहली बार इतनी संख्या पीले सिर वाली चिड़िया और पानी वाले साँप देखकर तो मैं दंग रह गया था…और बंदरों, लंगूरों के तो कहने ही क्या…वहीँ कहीं मिमियाती बकरियां और उन पर गुर्राते कुत्तों की फ़ौज और घास चरती शांत स्वाभाव गायों की टोलियाँ सब मिलकर एक जंगल की सी अनुभूति दे रहे थे….
कानूनी तौर पर ए.एस.आई के अधीन लगभग सभी पुरातात्विक महत्व की इमारत के खुलने और बंद होने होने का समय क्रमशः सूर्योदय के पश्चात् व सूर्यास्त से पहले होता है चाहे वो देश के किसी भी हिस्से में क्यों ना हो…जगह के भूतिया होने को पुख्ता करने के लिए इस तरह के नोटिस लेख में दिखाना थोडा जायज नहीं लगता ऐसी मेरी व्यक्तिगत सोच है….
अगर आपको झीलें थोड़ी भी पसंद हैं तो, सिलीसेढ़ आपको बिलकुल भी निराश नहीं करेगी…छोटी छोटी पहाड़ियों और टापुओं से घिरी झील वास्तव में देखने लायक है…और उस पर भी अगर आपको एडवेंचर स्पोर्ट्स का शौक है तो यहाँ आपके लिए कुछ बढ़िया विकल्प मौजूद हैं…नटनी का बाड़ा एक नई जगह पता चली, अगली बार जरुर जाने का प्रयास रहेगा….मनोरंजक लेख के लिए पुनः धन्यवाद!
धन्यवाद विपिन भाई।
मेरे सारे फोटो भी लैपटॉप मे ही है इसलिए सबसे पहले आज उनका बैकअप ही लेता हूँ। वाकई मे फोटो खोने का दुःख बहुत हुआ था खासकर कि सभी दोस्तों के फोटो भी उसमे ही थे।
जगह वाकई मे बहुत खूबसूरत है और उस ख़ूबसूरती के बहुत से फोटो लिए भी गए थे लेकिन अफ़सोस सभी खो गए। अकेले ही इतनी दूर जाना भी हिम्मत का काम है।
सही कहा आपने की चाहे लोग कुछ भी कहे लेकिन जगह बहुत अच्छी है फिर वहा भूत है या नहीं इसका पता तो रात को रूककर ही लगेगा और जरूरी भी नहीं कि रात रुकने पर भी कुछ नजर आये। जहा तक भूतो के अस्तित्व का सवाल है तो मेरे व्यक्तिगत अनुभव ऐसे रहे है कि मे उनके अस्तित्व को नकार नहीं सकता।
उस समय हम बहुत ज्यादा थक गए थे इसलिए सिलीसेढ़ मे अंदर नहीं गए क्योकि वहा प्रवेश करते ही टिकट लेना होता है और समय था नहीं इसलिए पैसे बेकार करने से कोई फायदा नहीं था।
अंत मे आपके इतनी सुन्दर टिपण्णी के लिए धन्यवाद।
सौरभ भाई
बहुत अच्छा लेख है आपका … आपका वृतांत बहुत मनोरंजक था …मनमोहन भाई ने आपका खूब मरोरंजन किया और ड्राईवर भी चुटकी लेने से बाज न आया . आपको सिलीसेढ़ झील के दर्शन कर ही लेने चाहिए थे .
मैं विपिन की बात से सहमत हूँ क्यूंकि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अंतर्गत आने वाले सभी प्राचीन स्थलों पर सूर्यास्त के बाद न रुकने की चेतावनी लिखी गयी है।
अगर कोई भूत या आत्मा यहाँ विचरण करती है तो उस से मिलकर उसका प्रोयजन ज़रूर पूछना चाहूँगा किसी दिन। आपकी भानगढ़ की फोटोज के खो जाने का मुझे खॆद है । क्यूंकि अगर फोटोज होते तो आपकी लेखनी में और भी चाँद तारे लग जाते ।
लेख पढ़कर मज़ा आया खासकर आप दोस्तों की मस्ती देखकर ।
धन्यवाद
धन्यवाद शेखावत जी अपना समय निकालने और टिपण्णी के लिए,
वाकई मे मस्ती इतनी ज्यादा की थी कि यहाँ वो सब लिखा ही नहीं, वैसे हमारी सभी यात्राओ मे ऐसा ही मजा रहता है बशर्ते अपने ग्रुप के सभी सदस्य साथ हो।
मैंने भी काफी कोशिश की है भूतो से प्रयोजन जानने कि लेकिन अफ़सोस वो बोलते नहीं सिर्फ एहसास कराते है।
उम्मीद तो यही करते है कि कभी घुमक्कड़ परिवार के सदस्यों के साथ भी घूमने का मौका मिलेगा और ऐसी ही मस्ती भी होगी।
धन्यवाद।
सरिस्का के जंगल और रहस्यमयी भानगढ़ के बारे में जानकर अच्छा लगा | आपके लेख से ज्ञात हुआ की भानगढ़ में लोग केवल पानी के लिए ही क्यों पूछ रहे थे बाकी खाने-पीने के सामान के लिए क्यों नही……?
लेख साझा करने के लिए धन्यवाद….
समय निकालने के लिए धन्यवाद् रितेश जी,
शायद गर्मी की वजह से ही वो लोग पानी को पूछ रहे थे या हो सकता है कि पानी पिलाना वहा ज्यादा शुभ कार्य हो।
टिप्पणी के लिए धन्यवाद। उम्मीद है जल्दी ही आप भी किसी नई जगह ले कर चलेगे
Hi Saurabh,
The trip seemed like lot of fun with your friends.
So did you figure out who the Tau was! The story did send chill up the spine.
Bhangarh has been on my to-do-list for some time now. Hopefully I will be able to get there this rainy season.
Thanks for mentioning me in the post – I am honoured.
I am pretty sure the transplanted tigers are also gone.
If possible, please please correct typos of the word ‘Rajkumari’.
Enjoyed the post!
Thanks for liking the post Nirdesh Ji.
It was really a great fun for us. Hahaha….. can’t say about the tau but it was also a great fun.
All the best for your journy of Bhangarh. Hopefully it will be a great experience for you and we will be getting a great post from you on this.
I was also thinking the same on transplanted tigers but recently Ms Mala has spotted a tiger in Sariska and she has posted the pictures also last month in her post.
You deserve the honour sir. What you are doing is great.
Nandan Ji can help to correct typo of the word “राजकुमारी”
At last again thanks for giving your time on the post.
बड़ी सरपट यात्रा रही सौरभ । भानगढ़ के पीछे न जाने कितनी कहानिया हैं । खैर । सरिस्का में सुना है की अब टाइगर दीखता है, कभी कभी ।
टाइपो ठीक कर दिया गया है । फोटोज के खो जाने का खेद है पर अगर गूगल से फोटो लगाना उचित नहीं हैं । कभी अगर आपको ज़रुरत पड़े तो या तो घुमक्कड़ की पुरानी पोस्ट्स से साभार फोटो लें , या wikimedia से । जय हिन्द ।
टिप्पणी के लिए धन्यवाद् नंदन जी,
हमारी सभी यात्रा सरपट ही रहती है, १ या २ रात से ज्यादा का कार्यक्रम बन ही नहीं पाता। सरिस्का मे शेर भी दिखते है ये माला जी की पोस्ट से ही पता लगा नहीं तो ऐसा लगने लगा था की वहा से शेर फिर से खत्म हो गए है।
आगे से मे भी याद रखूगा की फोटो विकिमीडिया या घुमक्कड़ से ही लू। धन्यवाद। जय हिन्द।
सौरभ जी,
आपके लेख ने हमारी भानगढ़ की यादे ताजा कर दी .
आपके लेखनी की शैली ने इसे और भी मनोरंजक बना दिया है. आपकी यात्रा का, लकी और मनमोहनजी के साथ हमने भी पूरा आनंद लिया।
पानी का क्या रहस्य है ?
आत्माओं का अस्तित्व – यह प्रश्ण तो उस विधा से है जहाँ प्रश्ण ज्यादा होते है और उत्तर कम। ऐसी अवस्था में प्रश्नों को संपूर्ण मर्यादा देनी चहिये, यह मै मानता हूँ :-)
धन्यवाद्
धन्यवाद औरोजीत जी,
आनंद तो हमने भरपूर लिया था उसको बातो मे बयाँ नहीं किया जा सकता।
आपने लेख पसंद किया उसके लिए धन्यवाद।
आत्माओ के अस्तित्व के प्रशन पर तो बहुत लम्बी चर्चा की जा सकती है। मे सहमत हूँ आपसे।
M bhi waha gaya tha 2014 k starting m pandupol aur naarayani mata tak aur maine bhi waha bhautbs jaanwar dekhe aur tiger k aawaz suni thi bhaut log waha group m hokar tiger kaintazaar kr rahe the pr wo nhi aaaya
प्रीय मित्र
आपका कैमरे से फोटो यदि delete हो गई तो कोई बड़ी बात नहीं है वो सभी बापस आ जाएगी, क्या photos memory card में save की थीं?
या कैमरे में थीं?
कोई फर्क नहीं पड़ता.
आपको अपने Computer या Laptop में एक software “Delete File Recover” or “File Recovery” Google से Download कर लें और Tools Follow कर Repair कर लें.
धन्यबाद
प्रीय मित्र
आपका कैमरे से फोटो यदि delete हो गई तो कोई बड़ी बात नहीं है वो सभी बापस आ जाएगी, क्या photos memory card में save की थीं?
या कैमरे में थीं?
कोई फर्क नहीं पड़ता.
आपको अपने Computer या Laptop में एक software “Delete File Recover” or “File Recovery” Google से Download कर लें और Rools Follow कर Repair कर लें.
धन्यबाद
Khup changli story ahe mala khup avdatat romanchya story mi pan taken