डचेस फॉल की रोमांचकारी यातà¥à¤°à¤¾ और पचमà¥à¥€ à¤à¥€à¤² में थोड़ा वक़à¥à¤¤ बिता कर हम सब तà¥à¤°à¤‚त जिपà¥à¤¸à¥€ में सवार हो कर चल पड़े धूपगॠकी ओर जो कि पचमà¥à¥€ से करीब 10-12 किमी दूरी पर है ।
धूपगॠपचमà¥à¥€ की नहीं वरन पूरे मधà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ की सबसे ऊà¤à¤šà¥€ पहाड़ी है । समà¥à¤¦à¥à¤° तल से इसकी ऊà¤à¤šà¤¾à¤ˆ 1359 मीटर है। धूपगॠतक जाने के लिये अंतिम 3 किमी का रासà¥à¤¤à¤¾ काफी घà¥à¤®à¤¾à¤µà¤¦à¤¾à¤° है और पहली बार मंजिल तक पहà¥à¤à¤šà¤¨à¥‡ के पहले ही सिर à¤à¤¾à¤°à¥€ होने लगा । पर जिपà¥à¤¸à¥€ के बाहर निकलते ही चारो ओर की छटा देख कर मन पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ हो उठा । वहाठपहà¥à¤à¤šà¤¨à¥‡ तक सूरà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥à¤¤ होने में सिरà¥à¤« 15 मिनट ही रह गठथे । इसलिये वहाठकी चोटी पर ना चॠके हम सूरà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥à¤¤ बिनà¥à¤¦à¥ की ओर चल पड़े ।
धूपगॠचूंकि यहाठका सबसे ऊà¤à¤šà¤¾ शिखर है इसलिठयहाठसे सूरà¥à¤¯ पहाड़ों के पीछे जा नहीं छà¥à¤ªà¤¤à¤¾ । वो तो बादलों के बीच में ही धीरे धीरे मलिन होता अपना असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ खो बैठता है और अचानक से आ जाती है à¤à¤• हसीन शाम । कैसे घटता है ये मंजर वो इन छवियों के माधà¥à¤¯à¤® से खà¥à¤¦ ही देख लीजिà¤à¥¤
शाम के साथ à¤à¤• सफेद धà¥à¤‚ध à¤à¥€ परà¥à¤µà¤¤à¥‹à¤‚ के चारों ओर फैल गई थी । मानो ये अहसास दिलाना चाहती हो कि सूरà¥à¤¯ को हटाकर उसके पूरे सामà¥à¤°à¤¾à¤œà¥à¤¯ की मिलà¥à¤•ियत अब इसी के कबà¥à¤œà¥‡ में है। धà¥à¤‚ध की चादर के बीच खड़े इस हरे à¤à¤°à¥‡ पेड़ को देख कर मन मà¥à¤—à¥à¤§ हो रहा था।
शाम का अà¤à¤§à¥‡à¤°à¤¾ ठंडक के साथ तेजी से बà¥à¤¨à¥‡ लगा तो हमें धूपगॠसे लौटना ही पड़ा। धूपगॠकी ये शाम बहà¥à¤¤ कà¥à¤› पंडित विनोद शरà¥à¤®à¤¾ की इन पंकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की याद दिला रही थी
बà¥à¤ गई तपते हà¥à¤ दिन की अगन
साà¤à¤ ने चà¥à¤ªà¤šà¤¾à¤ª ही पी ली जलन
रात à¤à¥à¤• आई पहन उजला वसन
पà¥à¤°à¤¾à¤£ ! तà¥à¤® कà¥à¤¯à¥‚ठमौन हो कà¥à¤› गà¥à¤¨à¤—à¥à¤¨à¤¾à¤“
चांदनी के फूल तà¥à¤® मà¥à¤¸à¥à¤•राओ…..
डूबते सूरज की लाली और धूपगॠमें बिताई उस हसीन शाम की मधà¥à¤° सà¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤ लिये जब हम होटल पहà¥à¤à¤šà¥‡ तो देखा कि होटल में काफी चहल – पहल है। पता चला कि अहमदाबाद से सà¥à¤•ूली बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ की à¤à¤• बड़ी टोली आई है जो होटल के गलियारों में धमाचौकड़ी मचा रही थी।
सà¥à¤¬à¤¹ उन सबको à¤à¤• साथ तैयार होता और कतार लगा कर नाशà¥à¤¤à¤¾ करना देखना सà¥à¤–द अनà¥à¤à¤µ था। वैसे à¤à¥€ जहाठढेर सारे बचà¥à¤šà¥‡ हों वहाठआस पास का वातावरण सरस हो ही जाता है। आज का पहला मà¥à¤•ाम बी फॉल था । बी फॉल पचमà¥à¥€ से मातà¥à¤° 2 किमी दूरी पर है । डचेस फॉल की तरह यहाठजाने के लिठनीचे की ओर उतरना तो पड़ता है पर पहले तो जंगल के बीच से होते हà¥à¤ समतल रासà¥à¤¤à¥‹à¤‚ पर और …
…फिर ठीक à¤à¤°à¤¨à¥‡ तक जाती हà¥à¤ˆ सीà¥à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से। डचेश फॉल में तो नीचे उतरना इतना जोखिम à¤à¤°à¤¾ था कि बीच में रà¥à¤• कर चितà¥à¤° लेने की हिमà¥à¤®à¤¤ ही नहीं होती थी। पर यहाठगिरने फिसलने का डर नहीं था इसलिठअपने कैमरे का सही सदà¥à¤ªà¤¯à¥‹à¤— कर पाठ। तो सबसे पहले देखिये उस जगह से नीचे गिरते à¤à¤°à¤¨à¥‡ का दृशà¥à¤¯ जहाठसे नीचे जाने के लिठसीà¥à¤¿à¤¯à¤¾à¤ शà¥à¤°à¥ होती हैं ।
à¤à¤²à¥‡ ही यहाठसीà¥à¤¿à¤¯à¤¾à¤ थीं पर जंगलों की विकरालता वैसी ही थी । पर इसका फायदा ये था की बाहर खिली कड़ी धूप à¤à¥€ हमें छूने से कतरा रही थी ।
सीà¥à¤¿à¤¯à¤¾à¤ उतरते उतरते घने जंगल के बीच पानी की à¤à¤• लकीर दिखने लगी । हम बी फाल के बिलकà¥à¤² करीब आ चà¥à¤•े थे । बी फाल या जमà¥à¤¨à¤¾ पà¥à¤°à¤ªà¤¾à¤¤ निशà¥à¤šà¤¯ ही पचमà¥à¥€ का सबसे खूबसूरत पà¥à¤°à¤ªà¤¾à¤¤ है । पचमà¥à¥€ का मà¥à¤–à¥à¤¯ जल सà¥à¤°à¥‹à¤¤ à¤à¥€ यही है । करीब १५० फीट की ऊà¤à¤šà¤¾à¤ˆ से गिरती धाराओं को देखना और ठीक उनके नीचे जाकर उनकी शीतल तड़तड़ाहट को शरीर पर महसूस करना à¤à¤• रोमांचक अनà¥à¤à¤µ था।
बी फॉल से हम लोग रीछगॠगठजो à¤à¤• पà¥à¤°à¤¾à¤•ृतिक गà¥à¤«à¤¾ है । पचमà¥à¥€ पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¸ का हमारा ये आखिरी पड़ाव था ।
अगली सà¥à¤¬à¤¹ हम वापस नागपà¥à¤° की राह पर थे । सौंसर से कà¥à¤› दूर आगे ही सड़à¥à¤• के किनारे à¤à¤• संतरे का बाग दिखा । हम जैसों के लिठतो ये अजूबे की बात थी । तो सारे लोग बाग में पेड़ों का निरीकà¥à¤·à¤£ करने उतर लिये। बागान का मालिक बड़ा à¤à¤²à¤¾ आदमी निकला । घूम घूम कर उसने ना केवल हमें अपना बाग दिखाया बलकि रसदार संतरे à¤à¥€ खिलाये। अब आपको वो संतरे खिला तो सकता नहीं तो तसवीर से ही काम चलाइठ।
अनà¥à¤¯ परà¥à¤¯à¤Ÿà¤¨ सà¥à¤¥à¤²à¥‹à¤‚ की अपेकà¥à¤·à¤¾ पचमà¥à¥€ à¤à¥€à¥œ à¤à¤¾à¥œ से अपने आप को दूर रखकर अपनी नैसरà¥à¤—िक सà¥à¤‚दरता बनाये हà¥à¤ है । अगर आपको सतपà¥à¥œà¤¾ के जंगलों को करीब से महसूस करना है। अगर आप पà¥à¤°à¤•ृति के अजà¥à¤žà¤¾à¤¤ रहसà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को खोजने के लिये चार पहियों की गाड़ी की बजाठअपने चरणों को जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ सकà¥à¤·à¤® मानते हों, तो पचमà¥à¥€ आप ले लिये à¤à¤• आदरà¥à¤¶ जगह है।
Manish Bhai,
Wah, kyaa Baat Hai.
Your post took me down the memory lane and I was reminded of the first “Bandish”, which I learnt from my music teacher. It was based on “Raga Yaman Kalyan” and the “Bole” were:
Piya Ki Nazariya Jadhu Bhari,
Moh Liyo Man Prem Bhari”
Theek usi tarah, aapke is aalekh in mera man moh liya hai.
I don’t have adequate words for your brilliant description. The pictures of sunset at Pachmari are simply awesome.
I have not visited Madhya Pradesh for a long time, despite the fact my younger sister lives there. You have put Pachmarhi on my radar.
Aap likhte rahiye aur hum sab ko apne alekhon se enlighten karte rahiye.
P.S. I wish I could type in Hindi.
Incidentally, the new look of ghumakkar is very refreshing.
वाह! राम भाई आप ने शास्त्रीय संगीत सीखा हुआ है। ये तो कमाल की बात है। शु्क्रिया इस प्यारी बंदिश के भाव से आलेख की तुलना करने के लिए। कभी एक शाम मेरे नाम पर भी तशरीफ़ लाइए। मैंने शास्त्रीय संगीत में तो तालीम नहीं ली पर संगीत और शेर ओ शायरी में कुछ अच्छा सुन और सुनवा पाने के लिए हमेशा तत्पर रहता हूँ।
आप की इस टिप्पणी ने मन को एक संतोष दिया है कि मैं अपनी बात सही ढ़ंग से पहुँचाने में कुछ हद तक कामयाब रहा हूँ।
Thanks Manish for sharing the last part. Indeed a memorable ride.
शुक्रिया नंदन निरंतर हौसला बढ़ाने के लिए! आपके बार बार कहने पर ही एक अंग्रेजी वेब साइट पर इस तरह का प्रयोग कर सका।
very good picture and writening thanking you this sunset seen now as well as kanyakumari
Thank manish
इस सफ़र में साथ बने रहने के लिए शुक्रिया कागरा जी !
मनीष, बहुत ही सुंदर वृतांत व्यक्त किया है आपने पचमढ़ी क्षेत्र का. नागपुर का होने के बावजूद अभी तक वहाँ जाने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ है. आपका वृतांत एक प्रेरणा सोत्र है वहाँ जाने के लिए.धन्यवाद.
अक़्सर हम अपने आस पास के बहुत इलाके बहुत दिनों तक नहीं देख पाते। अब देखिए ना पास होते हुए भी ना मैं झारखंड के जंगलों में विचरण कर पाया हूँ और ना ही बोध गया और पारसनाथ जैसे जाने माने धार्मिक स्थल देख पाया हूँ।
मीठे संतरों का आनंद तो हम उठा नही पाए और पंचमढ़ी की यात्रा भी ख़तम हो गयी| हमें तो दो तरफ़ा मार पड़ी मनीष भाई|
मुझे आपसे पूरी सहानुभूति है :)
Manish,
This was quite an informative post on Pachmarhi.
The appeal was enhanced by your stylish writing. One cannot but think of,
” Yeh simat-ti saanjh, yeh viraan jungle ka sira,
yeh bikharti raat, yeh chaaro taraf sahami dhara….’
Thanks, Auro.
आपकी प्रतिक्रियाओं में उद्धृत कविताओं की पंक्तियाँ इस पोस्ट का मोल और बढ़ा गईं। शुक्रिया इस सफ़र में साथ चलने का !
Manish,
This beautiful travelogue about a not so well known gem is like a breath of fresh air. Your story flows easy and refreshes the mind just like the waterfall at duchess falls would have felt on a tired body. The use of hindi for the post and the poetry make it stand above the rest. Eagerly waiting for your next post.
Thanks Tarun for your kind words! This series is over but you can catch me on my travel blog.