सà¤à¥€ घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ साथियों को कविता की ओर से ………ॠनमः शिवाय……….इस शà¥à¤°à¤‚खला की पिछली पोसà¥à¤Ÿ में मैंने आपलोगों को à¤à¤—वान शà¥à¤°à¥€ कृषà¥à¤£ की नगरी दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा का परिचय करवाया. और आइये अब मैं आपलोगों को लेकर चलती हूठशà¥à¤°à¥€ नागेशà¥à¤µà¤° जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग जो की दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा से ही लगा हà¥à¤† है…….
जैसा की आपलोग जानते हैं की दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा से करीब 16 किलोमीटर की दà¥à¤°à¥€ पर à¤à¤—वान शिव के बारह जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚गों में से à¤à¤• शà¥à¤°à¥€ नागेशà¥à¤µà¤° जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है, दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा के आसपास सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ दरà¥à¤¶à¤¨à¥€à¤¯ सà¥à¤¥à¤²à¥‹à¤‚ के दरà¥à¤¶à¤¨ के लिठजो बस चलती है वही बस रà¥à¤•à¥à¤®à¤£à¤¿ मंदिर के दरà¥à¤¶à¤¨ के बाद यातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को नागेशà¥à¤µà¤° जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग लेकर जाती है तथा वहां से गोपी तालाब होते हà¥à¤ बेट दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा जाती है. हमने à¤à¥€ बेट दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा सहित अनà¥à¤¯ सà¥à¤¥à¤²à¥‹à¤‚ के दरà¥à¤¶à¤¨à¥‹à¤‚ के लिठबस में बà¥à¤•िंग करवाई थी (जिसका वरà¥à¤£à¤¨ मैंने अपनी पिछली पोसà¥à¤Ÿ में किया है). सारे सहयातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के साथ पहले दिन हमने à¤à¥€ नागेशà¥à¤µà¤° के दरà¥à¤¶à¤¨ किये लेकिन यह बस यहाठसिरà¥à¤« 15 मिनट के लिठरà¥à¤•ी थी और हम जैसे शिव à¤à¤•à¥à¤¤à¥‹à¤‚ के लिठजà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग मंदिर दरà¥à¤¶à¤¨ के लिठयह समय परà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ नहीं था अतः अगले दिन हमने अलग से नागेशà¥à¤µà¤° मंदिर आने की योजना बना ली.
अगले दिन सà¥à¤¬à¤¹ से हम लोग नहा धोकर होटल से निकल गठऔर निचे चौराहे पर आकर ऑटो वालों से नागेशà¥à¤µà¤° जाने के लिठबात की. हमने 200 रà¥. में नागेशà¥à¤µà¤° के लिठऑटो तय कर लिया तथा करीब 10 बजे नागेशà¥à¤µà¤° के लिठनिकल पड़े. सà¥à¤¬à¤¹ का समय था मौसम à¤à¥€ अचà¥à¤›à¤¾ था, और उस पर ऑटो रिकà¥à¤¶à¤¾ की सवारी…………….इस पंदà¥à¤°à¤¹ किलोमीटर के सफ़र में मज़ा आ गया. मà¥à¤à¥‡ ऑटो रिकà¥à¤¶à¤¾ की सवारी बड़ी अचà¥à¤›à¥€ लगती है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि यह तीन तरफ से खà¥à¤²à¤¾ रहता है, पà¥à¤°à¤¾à¤•ृतिक हवा आती है और बाहर देखने के लिठà¤à¥€ सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤œà¤¨à¤• होता है.
नागेशà¥à¤µà¤° जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग मंदिर जिस जगह पर बना है वहां कोई गाà¤à¤µ या बसाहट नहीं है, यह मंदिर सà¥à¤¨à¤¸à¤¾à¤¨ तथा वीरान जगह पर बना है, निकटसà¥à¤¥ शहर दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा ही है जो यहाठसे पंदà¥à¤°à¤¹ किलोमीटर दूर है. शिव महापà¥à¤°à¤¾à¤£ के दà¥à¤µà¤¾à¤¦à¤¾à¤¶à¥à¤œà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग सà¥à¤¤à¥‹à¤¤à¥à¤°à¤‚ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° नागेशं दारà¥à¤•ावने अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ नागेशà¥à¤µà¤° जो दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा के समीप वन में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है.
यहाठपर मंदिर परिसर में à¤à¤—वान शिव की पदà¥à¤®à¤¾à¤¸à¤¨ मà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾ में à¤à¤• विशालकाय मूरà¥à¤¤à¤¿ à¤à¥€ सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है जो यहाठका मà¥à¤–à¥à¤¯ आकरà¥à¤·à¤£ है. इस मूरà¥à¤¤à¤¿ के आसपास पकà¥à¤·à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का à¤à¥à¤£à¥à¤¡ मंडराते रहता है तथा à¤à¤•à¥à¤¤à¤—ण यहाठपकà¥à¤·à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के लिठअनà¥à¤¨ के दाने à¤à¥€ डालते है जो यहीं मंदिर परिसर से ही ख़रीदे जा सकते हैं.
शिव की विशाल मूरà¥à¤¤à¤¿ बहà¥à¤¤ दूर रोड से ही दिखाई देने लग जाती है, यह मूरà¥à¤¤à¤¿ बहà¥à¤¤ ही सà¥à¤‚दर है तथा à¤à¤•à¥à¤¤à¥‹à¤‚ का मन मोह लेती है. दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा से करीब 45 मिनट में हम नागेशà¥à¤µà¤° पहà¥à¤à¤š गà¤. मंदिर पहà¥à¤à¤š कर सबसे पहले हमने जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग के दरà¥à¤¶à¤¨ किये, à¤à¥€à¤¡à¤¼ लगà¤à¤— न के बराबर थी अतः हमें दरà¥à¤¶à¤¨à¥‹à¤‚ में बिलकà¥à¤² à¤à¥€ मà¥à¤¶à¥à¤•िल नहीं आई. दरà¥à¤¶à¤¨ के बाद अब हमें यहाठपर अà¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• करना था अतः हमने मंदिर समिति से जानकारी ली और 250 रà¥. जमा करवा कर रूदà¥à¤° अà¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• के लिठपरà¥à¤šà¥€ ले ली. यहाठपर गरà¥à¤à¤—ृह में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ की अनà¥à¤®à¤¤à¤¿ सिरà¥à¤« उनà¥à¤¹à¥€ शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤²à¥à¤“ं को होती है जो अà¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• करवाते हैं.
मंदिर के नियमों के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° गरà¥à¤à¤—ृह में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ से पहले à¤à¤•à¥à¤¤ को अपने वसà¥à¤¤à¥à¤° उतार कर समीप ही सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ à¤à¤• ककà¥à¤· में जहाठधोतियाठरखी होती हैं, जाकर धोती पहननी होती है उसके बाद ही गरà¥à¤à¤—ृह में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ किया जा सकता है. चूà¤à¤•ि उस समय मंदिर में जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ à¤à¥€à¤¡à¤¼ नहीं थी अतः हमने खूब अचà¥à¤›à¥‡ से जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग का पंचामृत, दूध तथा जल से अà¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• किया. अà¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• के बाद à¤à¥€ बहà¥à¤¤ देर तक गरà¥à¤à¤—ृह में हम जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग के सामने बैठे रहे. मैं हमेशा जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग यातà¥à¤°à¤¾ पर जाते समय अपना पूजा का आसन तथा रà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾à¤•à¥à¤· की माला साथ में रख लेती हूà¤, यहाठà¤à¥€ मैंने अपना यह सामान निकाला और रà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾à¤•à¥à¤· की माला से ॠनमः शिवाय का जाप करने बैठगई. हमारा à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ à¤à¤¾à¤µ देख कर मंदिर के मà¥à¤–à¥à¤¯ पà¥à¤œà¤¾à¤°à¥€ जी बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤ तथा उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने आशीरà¥à¤µà¤¾à¤¦ सà¥à¤µà¤°à¥à¤ª मà¥à¤à¥‡ जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग पर चढ़ा à¤à¤• चांदी का बेलपतà¥à¤° दिया जिसे पाकर मैं इतनी खà¥à¤¶ हà¥à¤ˆ की बता नहीं सकती.
यहाठकी à¤à¤• और विशेषता है की यहाठपर अà¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• सिरà¥à¤« गंगाजल से ही होता है, तथा अà¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• करने वाले à¤à¤•à¥à¤¤à¥‹à¤‚ को मंदिर समिति की ओर से गंगाजल निशà¥à¤²à¥à¤• मिलता है.
अà¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• के बाद हम पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ लेकर मंदिर से बाहर आ गà¤, बाहर आकर शिव जी की उस विशाल पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾ के सामने हमने à¤à¥€ बहà¥à¤¤ देर तक पकà¥à¤·à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को दाना चà¥à¤—ाया तथा फोटोगà¥à¤°à¤¾à¤«à¥€ की.
नागेशà¥à¤µà¤° जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग à¤à¤• परिचय:
गà¥à¤œà¤°à¤¾à¤¤ राजà¥à¤¯ के जामनगर जिले में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ तीरà¥à¤¥ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा धाम से लगà¤à¤— 16 किलोमीटर की दà¥à¤°à¥€ पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ नागेशà¥à¤µà¤°, à¤à¤—वान शिव के बारह जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚गों में से दसवें कà¥à¤°à¤® के जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग के रूप में विशà¥à¤µ à¤à¤° में पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤¦ है. नागेशà¥à¤µà¤° जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग के सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ को लेकर à¤à¤•à¥à¤¤à¥‹à¤‚ में मतैकà¥à¤¯ नहीं है. कà¥à¤› लोग मानते हैं की यह जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤— महाराषà¥à¤Ÿà¥à¤° के हिंगोली जिले में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ औंढा नागनाथ नामक जगह पर है, वहीठअनà¥à¤¯ लोगों का मानना है की यह जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–ंड राजà¥à¤¯ के अलà¥à¤®à¥‹à¤¡à¤¼à¤¾ के समीप जागेशà¥à¤µà¤° नामक जगह पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है, इन सारे मतà¤à¥‡à¤¦à¥‹à¤‚ के बावजूद तथà¥à¤¯ यह है की पà¥à¤°à¤¤à¤¿ वरà¥à¤· लाखों की संखà¥à¤¯à¤¾ में à¤à¤•à¥à¤¤ गà¥à¤œà¤°à¤¾à¤¤ में दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा के समीप सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ नागेशà¥à¤µà¤° जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग मंदिर में दरà¥à¤¶à¤¨, पूजन और अà¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• के लिठआते हैं.
नागेशà¥à¤µà¤° मंदिर:
नागेशà¥à¤µà¤° के वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ मंदिर का पà¥à¤¨à¤°à¥à¤¨à¤¿à¤°à¥à¤®à¤¾à¤£, सूपर केसेटà¥à¤¸ इंडसà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€ के मालिक सà¥à¤µà¤°à¥à¤—ीय शà¥à¤°à¥€ गà¥à¤²à¤¶à¤¨ कà¥à¤®à¤¾à¤° ने करवाया था. उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने इस जीरà¥à¤£à¥‹à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤° का कारà¥à¤¯ 1996 में शà¥à¤°à¥‚ करवाया, तथा इस बीच उनकी हतà¥à¤¯à¤¾ हो जाने के कारण उनके परिवार ने इस मंदिर का कारà¥à¤¯ पूरà¥à¤£ करवाया. मंदिर निरà¥à¤®à¤¾à¤£ में लगà¤à¤— 1.25 करोड़ की लागत आई जिसे गà¥à¤²à¤¶à¤¨ कà¥à¤®à¤¾à¤° चेरिटेबल टà¥à¤°à¤¸à¥à¤Ÿ ने अदा किया. नागेशà¥à¤µà¤° जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग के परिसर में à¤à¤—वान शिव की धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ मà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾ में à¤à¤• बड़ी ही मनमोहक अति विशाल पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾ है जिसकी वजह से यह मंदिर को दो किलोमीटर की दà¥à¤°à¥€ से ही दिखाई देने लगता है, यह मूरà¥à¤¤à¤¿ 125 फीट ऊà¤à¤šà¥€ तथा 25 फीट चौड़ी है. मà¥à¤–à¥à¤¯ दà¥à¤µà¤¾à¤° साधारण लेकिन सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° है. मंदिर में पहले à¤à¤• सà¤à¤¾à¤—à¥à¤°à¤¹ है, जहाठपूजन सामगà¥à¤°à¥€ की छोटी छोटी दà¥à¤•ानें लगी हà¥à¤ˆ हैं. सà¤à¤¾à¤®à¤‚ड़प के आगे तलघर नà¥à¤®à¤¾ गरà¥à¤à¤—ृह में शà¥à¤°à¥€ नागेशà¥à¤µà¤° जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ है.

नागेशà¥à¤µà¤° मंदिर परिसर में विशाल शिव पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾.
गरà¥à¤à¤—ृह:
गरà¥à¤à¤—ृह सà¤à¤¾à¤®à¤‚ड़प से निचले सà¥à¤¤à¤°Â पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है, जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग मधà¥à¤¯à¤® बड़े आकार का है जिसके ऊपर à¤à¤• चांदी का आवरण चढ़ा रहता है. जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग पर ही à¤à¤• चांदी के नाग की आकृति बनी हà¥à¤ˆ है. जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग के पीछे माता पारà¥à¤µà¤¤à¥€ की मूरà¥à¤¤à¤¿ सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ है. गरà¥à¤à¤—ृह में पà¥à¤°à¥à¤· à¤à¤•à¥à¤¤ सिरà¥à¤« धोती पहन कर ही पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ कर सकते हैं, वह à¤à¥€ तà¤à¥€ जब उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अà¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• करवाना है.
मंदिर समय सारणी:
मंदिर सà¥à¤¬à¤¹ पांच बजे पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤ƒ आरती के साथ खà¥à¤²à¤¤à¤¾ है, आम जनता के लिठमंदिर छः बजे सà¥à¤¬à¤¹ खà¥à¤²à¤¤à¤¾ है. à¤à¤•à¥à¤¤à¥‹à¤‚ के लिठशाम चार बजे शà¥à¤°à¥ƒà¤‚गार दरà¥à¤¶à¤¨Â होता है तथा उसके बाद गरà¥à¤à¤—ृह में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ बंद हो जाता है. शयन आरती शाम सात बजे होती है तथा रात नौ बजे मंदिर बंद हो जाता है.
विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ पूजाà¤à¤:
नागेशà¥à¤µà¤° जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग मंदिर में मंदिर पà¥à¤°à¤¬à¤‚धन समिति के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ à¤à¤•à¥à¤¤à¥‹à¤‚ की सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ के लिठरà¥. 105 से लेकर रà¥. 2101 के बीच विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ पà¥à¤°à¤•ार की पूजाà¤à¤ सशà¥à¤²à¥à¤• समà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ कराई जाती हैं. जिन à¤à¤•à¥à¤¤à¥‹à¤‚ को पूजन अà¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• करवाना होता है, उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ मंदिर के पूजा काउंटर पर शà¥à¤²à¥à¤• जमा करवाकर रसीद पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करनी होती है, ततà¥à¤ªà¤¶à¥à¤šà¤¾à¤¤ मंदिर समिति à¤à¤•à¥à¤¤ के साथ à¤à¤• पà¥à¤°à¥‹à¤¹à¤¿à¤¤ को अà¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• के लिठà¤à¥‡à¤œà¤¤à¥€ है जो à¤à¤•à¥à¤¤ को लेकर गरà¥à¤à¤—ृह में लेकर जाता है तथा शà¥à¤²à¥à¤• के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° पूजा करवाता है.
रहने की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ तथा परिवहन:
नागेशà¥à¤µà¤° जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग मंदिर ओखा तथा दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा के बीचोबीच सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है. वीरान जगह पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ होने की वजह से यहाठठहरने की कोई वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ उपलबà¥à¤§ नहीं है, अतः यातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा या ओखा में ही ठहरना होता है. दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा से नागेशà¥à¤µà¤° के लिठआवागमन के साधन में ऑटो रिकà¥à¤¶à¤¾ सबसे सà¥à¤²à¤ है. ऑटो रिकà¥à¤¶à¤¾ का किराया दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा-नागेशà¥à¤µà¤°-दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा की राउंड टà¥à¤°à¤¿à¤ª के लिठलगà¤à¤— 250 रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ है. Â
दोपहर तक हम नागेशà¥à¤µà¤° से वापस दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा अपने होटल आ गà¤, कà¥à¤› देर आराम किया और फिर से à¤à¤—वान दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ाधीश के दरà¥à¤¶à¤¨ के लिठदà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ाधीश मंदिर चले आये, लाइन में लगे और कà¥à¤› ही देर में हमें फिर à¤à¤—वान दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ाधीश के दरà¥à¤¶à¤¨ बहà¥à¤¤ अचà¥à¤›à¥‡ से हो गà¤. कई बार बचà¥à¤šà¥‡ मंदिर में लाइन में लगने से न नà¥à¤•à¥à¤° करते हैं तो मैं और मà¥à¤•ेश उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ समà¤à¤¾à¤¤à¥‡ हैं की हम लोग इतनी दूर कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ आते है? à¤à¤—वान के दरà¥à¤¶à¤¨ के लिठही न तो फिर जितनी बार और जितनी देर दरà¥à¤¶à¤¨ का मौका मिले करना चाहिà¤.
अगले दिन सà¥à¤¬à¤¹ हमारा राजकोट से उजà¥à¤œà¥ˆà¤¨ के लिठटà¥à¤°à¥‡à¤¨ में रिजरà¥à¤µà¥‡à¤¶à¤¨ था, अतः सà¥à¤¬à¤¹ करीब छः बजे ही हम दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा से बस में राजकोट के लिठबैठगà¤. और अंततः राजकोट से उजà¥à¤œà¥ˆà¤¨ होते हà¥à¤ अपने घर वापस आ गà¤.
इस तरह से हमारी सोमनाथ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा की यह यातà¥à¤°à¤¾ कई सारी सà¥à¤–द सà¥à¤®à¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के साथ संपनà¥à¤¨ हà¥à¤ˆ. अब अगली बार फिर किसी और यातà¥à¤°à¤¾ के अनà¥à¤à¤µà¥‹à¤‚ के साथ उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ होउंगी घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ पर…………….लेकिन तब तक के लिठ…………बाय ………हैपà¥à¤ªà¥€ घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ी.
Thanks for Darshan and info of Nageshwar.
When Gulshan Kumar was there work of the temple was done at super pace, And also there were many projects . After his death work became slow and all the projects stopped………………..
vishal ji,
विशाल जी,
सबसे पहले टिप्पणी देने के लिए धन्यवाद. मैं आपसे सहमत हूँ की गुलशन कुमार जब तक जिंदा थे तब तक धार्मिक तथा पारमार्थिक कार्यों के लिए बहुत सहायता करते थे. उनके स्वर्गवासी होने के बाद सच में उनके द्वारा प्रारंभ किये गए पारमार्थिक कार्य लगभग बंद ही हो गए, सच बात है जिसकी श्रद्धा उसी के साथ चली जाती है.
Thanks.
मैंने जब यह स्थल देखा था तो सच में मुझे एक बार भी ऐसा नहीं लगा की यह कोई प्राचीन मंदिर है, कारण कुछ भी हो, २५० अभिषेक के लिए तो फिर गंगा जल तो फ्री में देना ही था,
हर इंसान के अपने विचार होते है जबकि मेरा कहना है की भगवन भाव के भूखे है ना की पूजा सामग्री के, नहीं तो गरीब तो भगवान को मानते ही नहीं, मेरे जैसे तो दूर से राम राम कर चले आते है,
आपका लेख बहुत बढ़िया लगा सब कुछ विस्तार से बताया गया, अब देखते है अगला लेख कौन सा होगा?
संदीप जी,
आपने लेख को पढ़ा, अपने विचार रखे उसके लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद. आपने बिलकुल सही कहा की भगवान् भाव के भूखे हैं न की पूजा सामग्री के, लेकिन कोरी भावना से भी कुछ नहीं होता, श्रद्धा तथा प्रेम प्रकट करने के लिए थोडा सा पैसा भी खर्च करना होता है. आप किसी से खूब प्रेम करते हैं लेकिन उसे खुश करने के लिए अंटी से एक रुपया भी ढीला नहीं करना चाहते तो ऐसे प्रेम और भक्ति भावना से क्या मतलब.
धन्यवाद.
बहुत विस्तार से वर्णन किया कविता जी… चित्र भी बहुत सुंदर आये हैं….
शिव की इतनी बड़ी मूरती बनाई पर इसके चेहरे पर मूर्तिकार वो खूबसूरती नही ला पाया
जागेश्वर से इसका कोई मतभेद नही… क्योंकि जागेश्वर सब ज्योतिर्लिगों का उदगम स्थल है…
जो लोग पुजारी व व्यवस्थाओं पर प्रश्न उठाते है उन्हे सोचना चाहिये कि हर मंदिर पहले राजाओं द्वारा दिये धन से चलता था, अब लोगों के चढावे से…पुजारियों को मंदिर की व्यवस्था भी देखनी है अपना पालन पोषण भी करना है… कोई भारत सरकार तो पैसा देती नही…
अगल भाव से ही पूजा करनी है तो कैलाश मानसरोवर जाओ… वहां न पुजारी है न पंडे, न अभिषेक न गंगा जल… केवल शिव…शिव और शिव
ओम् अक्षरायः नमः
साइलेंट जी,
पुजारियों तथा पंडितों के बारे में आपने जो विचार प्रकट किये हैं, पढ़कर मज़ा आ गया. आजकल मैंने इस विषय पर लोगों के विचार जानकार अपने होंठों पर ऊँगली रख ली थी, और सोचा था की मैं कुछ नहीं बोलूंगी लेकिन आज आपने मेरे विचारों का थोडा सा पक्ष लिया तो मैं बोलने पर मजबूर हो गई हूँ. सच है की पण्डे और पुजारियों की आजीविका का साधन मात्र जजमान द्वारा चढ़ाई हुई दक्षिणा होती है जो उनके परिवार के पालन पोषण में सहायक होती है. और वे भी कोई जोर जबरदस्ती हमारी जेब से नहीं निकालते हैं यह तो हमारी श्रद्धा पर निर्भर करता है की हम देना चाहते हैं या नहीं.
मुरुदेश्वर में भगवान् शिव की विश्व की दूसरी सबसे विशाल मूर्ति स्थापित है, और इतनी ऊँची मूर्ति होने के बावजूद भी इस मूर्ति में भगवान् शिव का चेहरा बहुत ही सुन्दर दिखाई देता है.
थैंक्स.
अधिकतर युवा पीढ़ी ये विचार रखती है.. व पंडितों को पुजारियों को व मंदिरो को खूब गालियां देते है… उनके लालच के किस्से सुनाते है व मज़ाक बनाते हैं… …..
हमारे मंदिरों को अगर ईमानदार ट्रस्ट के हवाले किया जाये तो ये शिकायतें दूर हो सकती है… वैष्णों देवी का पहले का हाल और अब के हाल में जमीन आसमान का फर्क है… जगमोहन ने सब बदल कर रख दिया
मै तो केवल हिमालय के मंदिरों में घूमा हूं और आज तक मैने कभी किसी पंडित को लालच करते या यात्रियों का पैसा हजम करते नही देखा….हमने केदारनाथ के पांडे को 11000 रु दिये जिसमे 10000 के वो कंबल खरीद कर ले गया ताकि यात्रियों को सर्दी से बचा सके… (एक मेरी पोस्ट आयेगी जिसमें मै ये सब बताउंगा शायद जून मे).
कोई भगवान के पास मुश्कले उठा कर जाता है… कोई मेरे जैसी तकलीफ नही उठा सकता तो पैसे से मंदिर की मदद कर देता है….अगर भगवान ने पैसा दिया है तो उसके नाम पर खरचना चाहिये….नही दिया तो खाली नमस्कार से वो खुश हो जाता है…
पंडे क्या कर रहे है…. ये विवाद बना कर हम वास्तव मे नकारात्मक उर्जा पैदा करते है…इससे हमारे सिवा किसी को नुक्सान नही होता…या तो हम व्यवस्था को बदले.. या चुप रहे… मेरी पहली घुमक्कड़ी खट्टी-मीठी दुबारा पढ़े.. वहां मैने जो ज्वालाजी व लक्षमण द्वारा सफाई का विवरण दिया.. वो इस संदर्भ मे बिल्कुल सटीक है.
आशा है मेरे विचारों को विवाद नही बनाया जायेगा व जो मै कहना चाहता हूं उसे समझा जायेगा…
(वैसे विवाद मेरे साथ हमेशा चलते है…जहा SS वहां विवाद… नंदन से पूछ लो बेशक…LOL )
कविता जी, बढ़िया और लाभकारी वर्णन उन सभी घुमक्कड़ों के लिए जो यहाँ की यात्रा का प्लान कर रहे हैं | मैं भी पिछले हफ्ते झारखण्ड में जसीडिह के करीब स्थित ‘बाबा वैद्यनाथ ‘ के शहर देबघर में था | शायद ज्योतिर्लिंग के बारे में देबघर को लेकर थोडा मतभेद है , खैर मौका लगा तो एक छोटी पोस्ट ज़रूर लिखूंगा | जय हिंद |
नंदन जी,
पोस्ट पढने तथा सुन्दर शब्दों में प्रतिक्रिया प्रेषित करने के लिए धन्यवाद. आपकी बैद्यनाथ धाम की पोस्ट का तो हम एक अरसे से इंतज़ार कर रहे हैं, और आप कह रहे हैं की मौका मिलेगा तो लिखूंगा, ऐसा नहीं चलेगा आपको लिखना ही पड़ेगा. हम तो ज्योतिर्लिंगों के बारे में पढने तथा चित्र देखने के लिए लालायित रहते हैं. एक निवेदन और है नंदन जी यह पोस्ट आप हिन्दी में ही लिखियेगा.
थैंक्स.
पूरी कोशिश रहेगी कविता जी |
हेल्लो कविता नमस्कार, यह मेरा पहला कमेन्ट होगा घुमक्कड पर.
मैं एक घुमक्कड की पाठक हूँ . घुमक्कड मुझे बहुत अच्छा लगने लगा है. पिछले दो महीने से मैं सारी पोस्ट पढ़ रही हूँ खास तौर पे धार्मिक तो पढ़ ही लेती हूँ. आपका विवरण काफी सुंदर और पूरी तरह से जानकारी देता है हर एक चीज़ की. मैंने वैसे सारे ज्योतिर्लिंग , आदिशंकराचार्य वाले चार धाम , छोटे चार धाम ( उत्तराखंड),काफी शक्तिपीठ और बहुत से श्री हरी के मंदिरों के दर्शन किये है.
लेकिन यह बात तो मैंने काफी जगह देखी है की आज कल ट्रस्ट के नाम पे जो लूट मार होती है पंडो ( अधिकारीयों) द्वारा, उससे मन को काफी दुःख होता है. आपने और साइलेंटसौल पंडितो के पालन पोषण की बात की. सभी जगह आज कल ट्रस्ट पंडो को महीने का वेतन देता है जो महीने के खर्च के लिए काफी होता है. उसके बाद पंडितो को पूजा अभिषेख की अलग से दक्षिणा मिलती है. और पंडितो की धर्मस्थल पर खुदकी धरमशाला और होटल तो रहती है. मंदिर के प्रसाद में भी पंडो की आमदनी होती है. ऊपर से ज्योतिष और रत्न शास्त्र से उनके हाथ घी में डूबे हुए है. मैंने कितनी जगह थोड़े पैसो के लिए भक्तो की भक्ति का अपमान होते हुए भी देखा है इन यात्राओ में.
यह बात क्या उचित है क्या की जो अभिषेख करे उनको ही गर्बग्रह में प्रवेश मिले ?
और रही बात राजा महाराजाओ की तभी पुजारी पूजा ही करते थे न की पूजा के नाम पे लूट मार. ना वह ज़माना रहा .
तो यह बात यहाँ छेड़ने का कोई मतलब ही नहीं. जैसे आजकल हर मंदिरों में चप्पल ,मोबाइल रखने और कैमेरा रखने के पैसे लिए जाते है , यह सेवाए तो मुफ्त में भी उपलब्ध कर सकते है. और आजकल ट्रस्टो में कोम्पेतिशन हो रहा की कौनसा ट्रस्ट बड़ा है . कही सोने का द्वार बनाने की कोशिश होती है तो कही चांदी का कलश. और इसका जीता जागता उदाहरण है शिरडी. जो सादगी पहले शिरडी में थी वोह अब कहाँ !
और आजके ज़माने में भक्त को भगवान का दर्शन लेने के लिए डोनेशन के द्वारा अभिषेख के द्वारा ऐसे अलग अलग तरीको से पैसे देकर जाना पड़ता है . और यही बात तो सबसे दुःख दायक है.
और भक्तजन बड़े भाव से इतनी दूर यात्रा पर आते है और ऐसी घटनाएं उनके साथ होती है यही तो दुःख दायक कहानी है.
रूही .
प्रिय रुही जी,
आपका कथन उचित है… पर इसके लिये क्या केवल पंडो को गालियां निकालने से काम चल जायेगा ??? आप स्वंय बताइये आपने कुछ किया इसे बदलने के लिये ??
मै मानता हूं कि ट्रस्ट व पंडे पैसे बनाते है… क्योंकि हम देते हैं.. मत जाओ ऐसे मंदिरों में… भगवान क्या वहीं बैठा है ??
मन चंगा तो कठोती में गंगा
हरि व्यापक सर्वत्र समाना… प्रेम से प्रकट भये हम जाना
मै हिमाचल में बाबा बालक नाथ मंदिर में गया वहां स्त्रियों का प्रवेश वर्जित है.. मैने मुख्य पुजारी से बात की.. पर वो कहने लगा कि सदियों की परम्परा है हम तुम्हारे कहने से क्यो बदलें…. मै वहीं से मंदिर छोड़ कर चला आया और दर्जनो बार वहां से निकल कर ज्वाला जी गया पर कभी उसे मंदिर मे नही गया… अगर मै बदलाव नही ला सकता तो बहिष्कार तो कर सकता हू… बाबा बालक नाथ शायद मेरे निर्णय पर अधिक खुश हुए हों..
मंदिर में अगर गलत हो रहा है तो मत जाओ वहां…. जाओ कैलाश मानसरोवर जहां न मंदिर है न पुजारी… हम लोग ही पंडो को बिगाड़ते है… अपनी सुविधाओं के लिये उन्हे रिश्वत देते है.. जो बाद में उनकी आदत बन जाती है…
हम स्वंय जिम्मेदार है इसके… और फिर खुद ही दूसरो पर उंगलिया उठाते है…
अगर बिहार मे लालू है या उ.प. में मायावती है… तो बिहारी व उ.प. के लोग जिम्मेदार हैं…. लालू व माया नही
रूही,
नमस्कार सबसे पहले तो में आपको धन्यवाद देती हूँ की आपने मेरा लेख पढ़ा और टिपण्णी पर प्रतिक्रिया दी और अब में आपका घुमक्कड़.कॉम पर स्वागत करती हूँ .आपके विचार बिलकुल सही हैं पर जब हम कुछ बदलाव नहीं कर पाते हैं यां आवाज़ नहीं उठा पाते हैं इस दिशा में हम कुछ नहीं कर पाते हैं तो फिर हमें इन सब को स्वीकार कर लेना चाहिए यह सिर्फ धार्मिक संस्थानों पर नहीं हर जगह व्याप्त हैं.
सीलेंट सौल जी से में पूरी तरह से सहमत हूँ. क्यूंकि आज में चाहूं तो भी कुछ नहीं कर पाऊँगी हम अपने आप को बदल सकते हैं जो सदियों से चला आ रहा हे उसको नहीं बदल सकते.
धन्यवाद.
Thanks for Darshan and info of Nageshwar.
कविता जी नमस्कार और धन्यवाद कि आपने नागेश्वर ज्योर्तिलिंग के इतनी अच्छे और विस्तृत तरीके से दर्शन कराये ………हम जब द्धारिका पहुंचे और अपनी गाडी से नागेश्वर ज्योर्तिलिंग गये तो वहां हमारे अलावा कोई भी नही था ………हमने दर्शन किये और आपको पता ही होगा कि एक छोटा सा गेट लगा रखा है शिवलिंग के पास और उसे बंद रखते हैं जो पर्ची कटायेगा उसे ही अंदर जाने देंगे तो हमने अपने तरीके से उनकी इस व्यवस्था का विरोध करते हुए बिलकुल पास से और बडे प्यार से दर्शन किये और चल दिये जबकि उसी मंदिर में मैने देखा कि किताबे ,सीडी ,कैसेट ,माला और पता नही क्या क्या मंदिर के अंदर ही बेचा जा रहा था । मंदिर के अंदर दुकान होना मुझे बिलकुल अच्छा नही लगा , केदारनाथ जी में भी हमने दूर से दर्शन किये जबकि कई वी आई पी लोग अंदर बैठे थे , घृष्णेश्वर में हमारे साथी मा0 जी ने कुर्ता उतारने से मना कर दिया और दूर से ही हाथ जोड लिये , जगन्नाथ पुरी में पंडित ने हमारे हाथ से प्रसाद लेकर कुछ पैसे देने को कहा तो मैने कहा कि हम रसीद कटवा लेंगे तो उसने पास से दर्शन करवाने को मना कर दिया ,रामेश्वरम में मेरे साथी लालाजी जाने से पहले हरिद्धार से जल लेकर आये थे तो 50 रू देकर तब उनका जल मंदिर वालो ने चढवाया ,बद्रीनाथ जी में तो भगवान की कृपा से हमारे पास 10 रू थे और चार आदमियो ने 10 रू के प्रसाद को ही हाथ लगाकर एक साथी से चढवा दिया बाकी ने हाथ जोड लिये क्योंकि अगर मुझे कहीं मौका मिला है तो मैने मंदिर ट्रस्ट की रसीद जरूर कटाई है पर वहीं जहां इसके लिये जिद या बंधन नही था ।
हमने तिरूपति में 500 रू देकर 8 घंटे में दर्शन किये जबकि फ्री में 3 दिन तक में नम्बर आता है वहां बाल भी बिकते हैं और पदमनाभम उसके बारे में तो आपने सुना होगा एक आदमी के विरोध के कारण आज उसके खजाने के बारे में सबको पता चला और मैने इतना पैसा होने के बाद भी छोटे छोटे बच्चो को भीड में कुचले जाते और पानी के लिये बिलखते देखा है ,और भी बहुत सारे हर जगह के मै आपको बता सकता हूं पर फिर ये मेरी पोस्ट नंदन जी इनसाइट में शामिल कर लेंगे इसलिये डरता हूंLOL पर मुझे लगता है कि मुझे भगवान का आर्शीवाद फिर भी मिला है क्या आपको ऐसा नही लगता कि मुझ जैसे को वो फिर भी बार बार बुलाते हैं नही तो मेरे अरबपति पडौसी को नही बुलाते ………रूही जी के , आपके और हमारे दददा जी के जाट देवता और मेरे सबके अपने अपने विचार है जो न कभी बदलेंगे ना बदले हैं पांचो अंगुलिया एक समान नही हुई कभी ना होंगी …….सब अच्छे हो जायेगे तो सतयुग आ जायेगा सब बुरे होंगे तो कलयुग इसलिये अपने अपने मन के भावो का आनंद लो क्यों व्यर्थ की बहस में पडते हो ऐसी ही यात्राऐ कराते रहो और हमें भी घुमाते रहो
कुछ भी किसी को भी बुरा लगे मेरी बात कोई हो ऐसी तो क्षमा चाहता हूं मेरा इरादा कभी किसी की व्यक्तिगत भावना दुखाने का भी नही होता धार्मिक तो बहुत बडी बात है
नमस्कार ,
आपकी प्रतिक्रया पढकर अच्छा लगा . जो मैं कहना चाहा वोही आपने दोहरा दिया. और साइलेंटसौल से नम्र विनंती है की आप हिमालय के अलावा अन्य स्थलों पे गए नहीं हो. तो उसके बारे में आपको कुछ भी पता नहीं है , तो आप उसके ऊपर प्रतिक्रिया नहीं करे वोही ठीक होगा.
और मैंने यही किया कैलाश को हर जगह पाया ना गंगाजल चढ़ाया ना अभिषेख किया सिर्फ शिव शिव कर रही हूँ. और मुझे यह देख के अच्छा लगा की मेरे जैसे और भी लोग है . इसका मतलब यह नहीं है की पैसे बच्चा रहे है . वोह एक तरह से बदलाव ही ला रहे है. उनके भाव में भक्ति में कमी नहीं है. तो उनके भाव के ऊपर आप टिपणी मत किया करो केवल पैसो की बात लेकर . यह ठीक नहीं है.
मैंने आपकी पिछली पोस्ट में एक प्रतिक्रया पढ़ी थी जहां बदलाव की बात लिखी गयी थी और मैं उससे बिलकुल सहमत हूँ. बदलाव आएगा यह तो निश्चित है . उसका समर्थन करे, ना तो “हम कुछ नहीं कर सकते” इस हीन भावना में रहे. आप लोगोको आपकी थोड़ी सी सोच बदलने की जरूरत है.
Keep Writing and Doing this great work. bye.
कविता जी….
ॐ नमः शिवाय……….जय नागेश्वर बाबा की….|
आपने श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का वर्णन बहुत अच्छे से किया…|
लेख के माध्यम से आपने अपनी शिव पूजा और उनके प्रति अपनी भक्ति को बरकरार रखा हैं | लेख से हमें शिव के इस ज्योतिर्लिंग की भौगोलिक स्थिति के बारे में काफी कुछ जानने को मिला | वैसे किसी न किसी ज्योतिर्लिंग प्रकट होने के पीछे कोई न कोई कारण / इतिहास होता हैं पर आपने उसका यहाँ पर कोई वर्णन नहीं किया …इतिहास इस ज्योतिर्लिंग की उत्पति जानने की उत्सुकता वश अंतरजाल (Internet) पर मुझे कुछ जानने को मिला, उसका लिंक इस प्रकार हैं :→ http://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0_%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%B0,_%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A4%BE |
सुन्दर शब्द माला से श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग से हमरा परिचय कराने के लिए ….धन्यवाद…|
आपके अगले लेख की प्रतीक्षा रहेगी…|
मनु जी,
मुझे ऐसा लग रहा है की आप इस पुराने विवाद को कई दिनों से पढ़ रहे हे और आपसे रहा नहीं गया और आप इस विवाद में कूद ही पड़े इससे पहले भी एक विवाद हुआ था नीरज जी का और हल आप ही ने किया था इस बार भी इसका समापन आप ही से होगा शायद. क्यूंकि यह कुछ ज्यादा लम्बा खीच रहा हैं.और हर कोई इसको व्यक्तिगत रूप से ले रहा हैं समाज का सारा रोष धार्मिक संस्थानों से ही हैं. हम सकारात्मक सोच के साथ मंदिर जाते हैं तो कुछ बुराई नज़र नहीं आती या फिर हमें इस तरह का माहोल देखने को नहीं मिला हैं इसलिए कभी कोई समस्या नहीं रही .अब आप पहले से अपनी सोच इस तरह की बना लेते हैं तो हर तरफ बुराई ही नज़र आती हैं अब मुझे ऐसा लग रहा हैं की अपनी पोस्ट में वही लिखू जोआप लोग पसंद करते हैं. तो मेरे मन में कही कुछ टीस रहेगी पर चलेगा. मनु जी इस बात से तो में आपका समर्थन करती हूँ की अगर एक ही परिवार में चार सदस्य हैं तो चारो की सोच अलग हैं.
धन्यवाद
विवाद कुछ नही है…
हर किसी की अपना तरीका है… अगर आप पैसे देकर गंगाजल चढ़ाती है तो ये आपकी मरजी
मैं किसी मंदिर का बहिष्कार करता हूं ये मेरी मरजी…
हम दोनो ठीक है…. गड़बड़ तब होगी जब आप मुझे गलत ठहराएं… या मैं आपको गलत बताऊं
तो जो हो रहा है…जो जैसा कर रहा है ठीक है.. यही आध्यात्मिक सोच होगी
नही कविता जी , भगवान के लिये मै विवादो से बचना चाहता हूं ..नीरज वाले विषय पर मैने अपनी राय दी थी और उसके बाद …? कुछ नही कभी नही ……..इस बार भी ये मेरी अपनी सोच और राय है और इसके बाद कुछ नही कभी नही …कविता जी क्या मै आपके लेख पर अपने विचार नही रख सकता ? मैने ऐसा नही माना इसलिये अपने विचार रखे किसी का सहमत होना या ना होना जरूरी नही ………कोई मेरा समर्थन करे मुझे उससे भी खुशी नही और कोई असमर्थन उससे दुख नही आप हर बात को अन्यथा लेंगी तो हमें कुछ लिखने से पहले भी सोचना पडेगा
मनु जी,
मुझे लग रहा है शायद आप मेरी कमेन्ट को ठीक से समझ नहीं पाए या आपने कमेन्ट पढने में जल्दी कर दी क्योंकि मैंने तो अपनी पूरी कमेन्ट में आपकी तारीफ़ ही की है और यह लिखा है की इस मसले को हल करने के लिए (मेरा सपोर्ट करने के लिए) आप इसमें कूद ही पड़े, क्यों की आप आजकल विवादों से दूर रहने की कोशिश करते हैं. नीरज जाट जी वाला मामला भी आपने ही हल किया था तो मैं तो आपकी तारीफ़ कर रही थी आपने पता नहीं क्यों इसे गलत समझ लिया. आपको पूरा हक है मेरी पोस्ट पर आकर अपने विचार रखने का, बल्कि हम तो आपकी कमेन्ट का ही इंतजार करते रहते है.
थैंक्स.
और हाँ मनु जी मैंने कहाँ आपकी बात को अन्यथा लिया. आपको कोई बहुत बड़ी ग़लतफ़हमी हुई है लगता है. मेरा अनुरोध है की आप एक बार फिर से dhyan से meri kament को padhen और फिर mujhe batayen की मैंने आपकी kis बात को अन्यथा लिया है.
Kavitaji,
A detailed description by putting sub-headings along with beautiful pics on Bhagwan Nageshwras Jyotirlingam.
Vayam Shivmayam Shankarmayam Jyotirlingaamayam ch:
I was wishing to comment more but a diversion towards arguements about “‘panda’s” has taken place.
SSji bahut vidywan hain, Ruhi ji bahut mature hain, Manu vivaadon ke achchhay salaahkaar hain. Magar meri mano to aap sabhi “Shivmanas Pooja” parho, aapko Jatdevta Sandeep ki baat jyada pasand aayegi.
Per main jaanu sun ke is jaat ne khud Shivmanas Pooja nahin parhi hogi.
त्रिदेव जी,
पोस्ट को पढने तथा सुन्दर शब्दों में प्रशंसा के लिए धन्यवाद.
भट्ट जी आप लोगों का ऋषिकेश में इंतज़ार कर रहे हैं | जय शिव. चलो ऋषिकेश |
https://www.ghumakkar.com/2012/05/06/rain-rain-rain/
सभी पाठकों से मेरा विनम्र निवेदन है की कृपया मेरी पोस्ट पर कमेन्ट के जरिये किसी भी प्रकार का विवादित संवाद न करें. अगर आप मेरी पोस्ट की समीक्षा (सकारात्मक या नकारात्मक ) के लिए कुछ लिखते हैं तो आपका हार्दिक स्वागत है.
धन्यवाद.
रूही जी आप पहली बार इस साईट पर अपनी राय लेकर आई, पहली बार में ही आप छा गयी, आज तक मैंने आप जितना सुलझा हुआ इंसान नहीं देखा है, आपने सत्य का साथ दिया, जाट देवता आपको सैल्यूट करता है।
अगल भाव से ही पूजा करनी है तो कैलाश मानसरोवर जाओ… वहां न पुजारी है न पंडे, न अभिषेक न गंगा जल… केवल शिव
70000 से ज्यादा खर्च करके भी तो भाव से पूजा करने जाते है लोग, फिर तो उन लोगों का इतना रुपया बेकार जाता होगा ? क्योंकि बिना अभिषेक के पूजा तो कुछ लोग मानते ही नहीं है, अब यह पता करना पड़ेगा की कैलाश जाने वाले लोग शिव के भगत है भी की नहीं ? क्योंकि वहाँ न अभिषेक न गंगा जल,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,फिर क्यों जाते है लोग वहाँ ?????????
जियो रे म्हारे जाट देवता, घना दरुस्त कह्या, खुश रहो.
Thanks for removing my comments because whatever my pure intention was to give a neutral opinion about Bhakt and his bhakti because his bhakti was questioned just for monetary basis and for their own views . And I also didn’t want to hurt anybody on public platform or any other way. So i am glad for that . Thanks everyone and i will keep reading and if I feel there is necessity to share my opinion then definately I will comment on it.
Dear Ruhi Jee – Ghumakkar respects, encourages and supports everyone’s views. We do have a ‘Comment Guidelines’ and whenever we curate any comment, we always reach out to the person to explain our intention. You would be getting something in email soon. I would probably curate this comment as well, after that. :-)
I look forward to read your views, opinions and wise comments on Ghumakkar and would send you more info via email. Wishes.
घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ बिरादरी को सादर नमसà¥à¤•ार। आप सà¤à¥€ को साधà¥à¤µà¤¾à¤¦ कि आप दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ दी गयी जानकारियाठà¤à¤µà¤‚ विवरण लोगों के उन सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ पर à¤à¥à¤°à¤®à¤£ को अतà¥à¤¯à¤§à¤¿à¤• सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤œà¤¨à¤• बना देते हैं। अà¤à¥€ हाल ही, मैं दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा पर कविता जी का लेख पॠरहा था। अतà¥à¤¯à¤‚त ही सà¥à¤‚दर। मैं à¤à¥€ अपने परिवार के साथ वहाठशीघà¥à¤° ही जानेवाला हूà¤à¥¤ इसलिठकविता जी को पà¥à¤¨à¤ƒ धनà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦à¥¤ मैं आप सब (घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ बिरादरी) से कà¥à¤› इन बिनà¥à¤¦à¥à¤“ं को और अचà¥à¤›à¥‡ से अपने लेखों में समà¥à¤®à¤¿à¤²à¤¿à¤¤ करने कि विनती करता हूठजो शायद घूमने जाने वाले लोगों के लिठऔर जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ मददगार हो सके:- (1) करने/नहीं करने/धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ देने योगà¥à¤¯ वे बिनà¥à¤¦à¥ बतायें जो उस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ विशेष के लिठजरूरी हो। ये बिनà¥à¤¦à¥ मनà¥à¤¦à¤¿à¤° में केमरा आदि ले जाने कि सà¥à¤µà¥€à¤•ृति, मनà¥à¤¦à¤¿à¤° दरà¥à¤¶à¤¨ के समय, मनà¥à¤¦à¤¿à¤° में दरà¥à¤¶à¤¨ हेतॠकोई विशेष वेषà¤à¥‚षा यदि जरूरी हो, सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ à¤à¥à¤°à¤®à¤£ हेतॠयातायात के साधनों, टहरने कि वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤“ं, सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ संबंधी विषयों, तथा à¤à¤¸à¤¾ कोई à¤à¥€ विषय जिसके बारे में आप बताया जाना आवशà¥à¤¯à¤• महसूस करें (2) धारà¥à¤®à¤¿à¤• सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ कि यातà¥à¤°à¤¾à¤“ं में बà¥à¤œà¥à¤°à¥à¤—ों à¤à¤µà¤‚ शारीरिकरूप से कमजोर वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का à¤à¥€ सà¥à¤µà¤¯à¤‚ या परिवारजनों के साथ जाना होता है। अतः उनकी जरूरतों के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° जैसे पैदल चलने कि दूरी, ऊंचाई पर चà¥à¤¾à¤ˆ चà¥à¤¨à¥‡, तथा कोई à¤à¥€ अनà¥à¤¯ आवशà¥à¤¯à¤• जानकारी जो उनके à¤à¥à¤°à¤®à¤£ में सहायक हो सके। (3) कोई à¤à¥€ à¤à¤¸à¥€ जानकारी जो आप उस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ विशेष के बारे में बताना आवशà¥à¤¯à¤• समà¤à¥‡à¤‚। इस आशा के साथ कि आप के मारà¥à¤—दरà¥à¤¶à¤• लेख यातà¥à¤°à¤¾ करने/घूमने वालों के लिठअधिकाधिक मददगार हों।
Kavita Ji Auto walo se rate badha di h 400 kar diye h b
jay bhole