संगà¥à¤°à¤¹à¤¾à¤²à¤¯ से सौ दो सौ कदमों की दूरी पर हमें साकà¥à¤·à¤¾à¤¤ मगरमचà¥à¤› का दरà¥à¤¶à¤¨ करने का मौका मिल गया। तार की जाली के पीछे का घर गौरी का था। गौरी इस पà¥à¤°à¤œà¤¨à¤¨ केंदà¥à¤° (Crocodile Reproduction Centre) की पहली पीढ़ी से तालà¥à¤²à¥à¤• रखती है। 1975 में इस पà¥à¤°à¤œà¤¨à¤¨ केंदà¥à¤° में लाठगठअंडों को कृतà¥à¤°à¤¿à¤® ढंग से निषेचित कर इसका जनà¥à¤® हà¥à¤† था। दरअसल इसी साल (1975) यूà¤à¤¨à¤¡à¥€à¤ªà¥€ के विशेषजà¥à¤ž डॉ à¤à¤š आर बसà¥à¤Ÿà¤°à¥à¤¡ (Dr. H.R.Bustard) ने यहाठनमकीन पाने वाले मगरमचà¥à¤› की लà¥à¤ªà¥à¤¤ होती पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤¤à¤¿ को पालो और छोड़ो (Rear and Release) कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® के तहत बचाने का पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ किया। करीब बारह साल की अवधि तक चले इस कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® के दौरान मगरमचà¥à¤›à¥‹à¤‚ की संखà¥à¤¯à¤¾ यहाठ96 से बढ़कर 1300 के ऊपर हो गई।
तो बात हो रही थी गौरी की। गौरी का ये नामाकरण उसके हलà¥à¤•े रंग की वज़ह से हà¥à¤† है। गौरी के परिवार को शà¥à¤°à¥ करने के लिठउसके बाड़े में दो बार नर मगरमचà¥à¤›à¥‹à¤‚ को छोड़ा गया। पर गौरी को उनका साथ कà¤à¥€ नहीं रास आया। साथियों के साथ कई बार उसकी जम कर लड़ाई हà¥à¤ˆà¥¤ à¤à¤¸à¥‡ ही à¤à¤• यà¥à¤¦à¥à¤§ में उसे अपनी दायीं आà¤à¤– गà¤à¤µà¤¾à¤¨à¥€ पड़ी। तब से वो अपने इस बाड़े में अकेली रहती है।
सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ से मगरमचà¥à¤› सà¥à¤¸à¥à¤¤ जीव होते हैं। गौरी को नजदीक से देखने के लिठहम उसके बाड़े के अंदर गà¤à¥¤ गौरी को पानी से बाहर निकालने के लिठà¤à¤• जीवित केकड़ा पानी के बाहर फेंका गया। कà¥à¤› ही देर में गौरी ने हमारी आà¤à¤–ों के सामने उस केकड़े का काम तमाम कर दिया और फिर à¤à¤• गहरी शांति उसके चेहरे पर छा गई।

à¤à¥‹à¤œà¤¨ गà¥à¤°à¤¹à¤£ करने के बाद की शांति जैसे यहाठकà¥à¤› हà¥à¤† ही ना हो..
सच पूछिठतो बाड़े के अंदर खड़े होकर ये सब देखना मेरे लिठपूरी यातà¥à¤°à¤¾ का सबसे à¤à¤¯à¤¾à¤µà¤¹ दृशà¥à¤¯ था।
गौरी को उसी हालत में छोड़कर हम मगरमचà¥à¤› के शावकों को देखने आगे बढ़ गà¤à¥¤ कीचड़ में लोटते ये शावक किसी à¤à¥€ तरह से à¤à¥‹à¤²à¥‡ नहीं लग रहे थे इसलिठजब हमारे गाइड ने इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ हाथ से उठा कर देखने की पेशकश की तो हम सब à¤à¤•बारगी सकपका गà¤à¥¤

कीचड़ में लोटना इन शावकों को खूब पसंद है।
हमारी à¤à¤¿à¤à¤• को देखते हà¥à¤ वहाठके à¤à¤• करà¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¥€ ने à¤à¤• शावक को हाथ से उठाया और हम सब ने बारी बारी उसे छू à¤à¤° लिया।
à¤à¤¿à¤¤à¤°à¤•निका में हमारा आखिरी पड़ाव था इकाकà¥à¤²à¤¾ (Ekakula Sea Beach) का समà¥à¤¦à¥à¤° तट। सà¥à¤¬à¤¹ करीब साढ़े दस बजे हम डांगमाल से मोटरबोट के ज़रिठइकाकà¥à¤²à¤¾ की ओर बढ़ गà¤à¥¤ धूप तेज थी इसलिठनौका के ऊपरी सिरे पर बैठना उतना पà¥à¤°à¥€à¤¤à¤¿à¤•र नहीं रह गया था। आकाश में हलà¥à¤•े हलà¥à¤•े बादल थे । उनमें से कोई बड़ा बादल जब हमारी नौका के पास आता तो हम ऊपर चले जाते और बादल की छाà¤à¤µ के नीचे मंद मंद बहती बयार का आनंद लेते। पर à¤à¤¸à¥‡ सà¥à¤–द अंतराल पà¥à¤°à¤¾à¤¯à¤ƒ कà¥à¤› मिनटों में खतà¥à¤® हो जाते और हमें वापस नौका के अंदर लौट आना पड़ता।
करीब डेढ़ घंटे सफ़र तय करने के बाद हम समà¥à¤¦à¥à¤° के बिलà¥à¤•à¥à¤² सामने आ चà¥à¤•े थे। पर इकाकà¥à¤²à¤¾ के तट तक पहà¥à¤à¤šà¤¨à¥‡ के लिठछोटी नौका की जरूरत होती है कà¥à¤¯à¥‚à¤à¤•ि कम गहरे पानी में मोटरबोट तो चलने से रही। इकाकà¥à¤²à¤¾ तट से डेढ किमी दूर आकर हमारी मोटरबोट रà¥à¤• गई। पर छोटी नौका के आने में à¤à¤• घंटे का विलंब हो गया ।

इकाकà¥à¤²à¤¾ के पहले शà¥à¤°à¥ हो जाते हैं मैनगà¥à¤°à¥‹à¤µ के ये जंगल...
छोटी नौका से की गई यातà¥à¤°à¤¾ कम रोमांचकारी नहीं रही। वैसे à¤à¥€ पानी के बहाव को हाथ से छूते हà¥à¤ महसूस करना हो तो इससे बढ़िया विकलà¥à¤ª कोई दूसरा नहीं। वो तो नाविकों की समà¤à¤¦à¤¾à¤°à¥€ थी नहीं तो हम सब तो पूरे पानी में ही गोता लगा लेते। बड़ी नौका से छोटी नौका में उतरते समय धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ नहीं रहा और à¤à¤¾à¤°à¥€ लोग à¤à¤• किनारे जा बैठे। नौका को ये बरà¥à¤¦à¤¾à¤¶à¥à¤¤ नहीं हà¥à¤† और उसने बाà¤à¤¯à¥€ ओर बीस डिगà¥à¤°à¥€ का टिलà¥à¤Ÿ कà¥à¤¯à¤¾ लिया हम लोगों को लगा कि गठपानी में। पर नाव खेने वालों ने ततà¥à¤ªà¤°à¤¤à¤¾ से अपना सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ बदलकर नाव को संतà¥à¤²à¤¿à¤¤ किया और हमारी जान में जान आई।
इकाकà¥à¤²à¤¾ के समà¥à¤¦à¥à¤° तट के दूसरी तरफ मैनगà¥à¤°à¥‹à¤µ के जंगल हैं। पर डांगमाल के विपरीत यहाठइनकी सघनता कम है और ये अपेकà¥à¤·à¤¾à¤•ृत और हरे à¤à¤°à¥‡ दिखते हैं।

वैसे ये तो बताइठपेड़ों के तने में बने इन गोल छिदà¥à¤°à¥‹à¤‚ में कौन रहता होगा?
किनारे तक तो पहà¥à¤à¤š गठपर अगली मà¥à¤¶à¥à¤•िल लकड़ी के बने पà¥à¤² तक पहà¥à¤à¤šà¤¨à¥‡ की थी। लो टाईड (low tide) होने की वज़ह से पà¥à¤² और पानी के सà¥à¤¤à¤° में काफी अंतर आ गया था। ख़ैर वो बाधा à¤à¥€ नाविकों की मदद से पार की गई।

वैधानिक चेतावनी : Low Tide में पà¥à¤² तक पहà¥à¤à¤šà¤¨à¥‡ के लिठसà¥à¤¥à¥‚लकाय शरीरवालों को à¤à¤¾à¤°à¥€ परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।
पà¥à¤² पार करते ही इकाकà¥à¤²à¤¾ का फॉरेसà¥à¤Ÿ गेसà¥à¤Ÿ हाउस दिखता है। परà¥à¤¯à¤Ÿà¤• या तो इसकी डारमेटà¥à¤°à¥€ में रà¥à¤• सकते हैं या बाहर बनाठगठटेंट में। हम à¤à¤• टेंट में अंदर घà¥à¤¸à¥‡ तो देखा कि अंदर दो सिंगल बेड और शौच की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ है। सामने इकाकà¥à¤²à¤¾ का साफ सà¥à¥à¤¥à¤°à¤¾ और बेहद खूबसूरत समà¥à¤¦à¥à¤° तट हमारा सà¥à¤µà¤¾à¤—त कर रहा था। रेत की विशाल चादर को पहले à¤à¤¿à¤—ोने की होड़ में लहरें लगी हà¥à¤ˆ थी। हम पहले तो समà¥à¤¦à¥à¤° तट के समानांतर à¤à¥‹à¤ªà¤¡à¤¼à¥€à¤¨à¥à¤®à¤¾ शेड में जा बैठे और कà¥à¤› देर तक शांत मन से समà¥à¤¦à¥à¤° की लीलाओं को निहारते रहे।

इस सà¥à¤µà¤šà¥à¤› सà¥à¤‚दर तट पर आती इन लहरों को कितनी ही देर निहारो.. मन नहीं à¤à¤°à¤¤à¤¾.
नहाने का मन तो बहà¥à¤¤ हो रहा था पर दिन के दो बजे की धूप और वापस तà¥à¤°à¤‚त लौटने की बंदिश की वजह से हम समà¥à¤¦à¥à¤°à¥€ लहरों में जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ दूर आगे नहीं बढ़े। कहते हैं शाम के समय नदी के मà¥à¤¹à¤¾à¤¨à¥‡ से सूरà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥à¤¤ देखने का आनंद ही कà¥à¤› और है। इकाकà¥à¤²à¤¾ के समà¥à¤¦à¥à¤° तट का फैलाव दूर दूर तक दिखता है। पहले यहाठसमà¥à¤¦à¥à¤° के किनारे काफी जंगल थे जो समà¥à¤¦à¥à¤°à¥€ कटाव के कारण अब कम हो गठहैं।
वैसे सà¥à¤¬à¤¹ सà¥à¤¬à¤¹ अगर आप इकाकà¥à¤²à¤¾ के तट से चहलक़दमी करना शà¥à¤°à¥ करें तो करीब à¤à¤• सवा घंटा के बाद वैसे ही à¤à¤• सà¥à¤‚दर समà¥à¤¦à¥à¤°à¥€ तट तक पहà¥à¤à¤š जाà¤à¤à¤—े। ये समà¥à¤¦à¥à¤° तट कोई और नहीं गाहिरमाथा का समà¥à¤¦à¥à¤° तट है जो कि विलà¥à¤ªà¥à¤¤à¤ªà¥à¤°à¤¾à¤¯ ओलाइव रिडले पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤¤à¤¿ के कछà¥à¤“ं दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ अंडा देने की à¤à¤• पà¥à¤°à¤®à¥à¤– जगह है। कहते हैं कि इस पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤¤à¤¿ के कछà¥à¤ यहाठहजारों वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ से अंडे देते आ रहे हैं पर कà¥à¤› दशकों पहले ही इसके संरकà¥à¤·à¤£ में लगे लोगों की इस पर नज़र पड़ी। 1997 में गाहिरमाथा के इस इलाके को मेरीन वनà¥à¤¯ जीव शरण सà¥à¤¥à¤² का नाम दिया गया। इनके गाहिरमाथा में आगमन नवंबर से शà¥à¤°à¥ हो जाता है और तीन चार महिने चलता है। पर हमारे पहà¥à¤à¤šà¤¨à¥‡ तक ये पà¥à¤°à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ शà¥à¤°à¥ नहीं हà¥à¤ˆ थी। वैसे गाहिरमाथा में कछà¥à¤“ं के अंडे देने की पà¥à¤°à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ बड़ी दिलचसà¥à¤ª होती है। जानना चाहें तो यहाठदेखें।
दिन का à¤à¥‹à¤œà¤¨ करने के बाद हम लोग वापस चल पड़े। दिन की कड़ी धूप गायब हो चà¥à¤•ी थी और रिमà¤à¤¿à¤® रिमà¤à¤¿à¤® बारिश होने लगी थी। हलà¥à¤•ी फà¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡à¤‚ और ठंडी हवा के बीच à¤à¥€à¤—ने का आनंद à¤à¥€ हमने उठाया। आधे घंटे बाद आकाश से बादल छà¤à¤Ÿ चà¥à¤•े थे और गगन इंदà¥à¤°à¤§à¤¨à¥à¤·à¥€ आà¤à¤¾ से उदà¥à¤¦à¥€à¤ªà¥à¤¤ हो उठा था। à¤à¤¸à¤¾ लग रहा था कि ये नज़ारा à¤à¤—वन ने मानो à¤à¤¿à¤¤à¤°à¤•निका के विदाई उपहारसà¥à¤µà¤°à¥‚प दिखाया हो। आप à¤à¥€ देखिठना…

पानी को चीरती नाव और आकाश की ये छटा.. आनंदम आनंदम
à¤à¤¾à¤°à¤¤ सरकार ने à¤à¤¿à¤¤à¤°à¤•निका को यूनेसà¥à¤•ो की वरà¥à¤²à¥à¤¡ हेरिटेज साइट में शà¥à¤®à¤¾à¤° करने का आगà¥à¤°à¤¹ किया है जिसकी सà¥à¤µà¥€à¤•ृत होने की पूरी उमà¥à¤®à¥€à¤¦ है। अगर आप à¤à¥€à¤¡à¤¼ à¤à¤¾à¤¡à¤¼ से दूर मैनगà¥à¤°à¥‹à¤µ के जंगलों के बीच अपना समय बिताना चाहते हैं तो ये जगह आपके लिठउपयà¥à¤•à¥à¤¤ है..
यातà¥à¤°à¤¾ संबंधित कà¥à¤› महतà¥à¤¤à¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ जानकारी
à¤à¤¿à¤¤à¤°à¤•निका में विदेश से पहà¥à¤à¤šà¤¨à¥‡ के लिठसबसे नजदीकी विमान अडà¥à¤¡à¤¾ à¤à¥à¤µà¤¨à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° है जो à¤à¤¾à¤°à¤¤ के पूरà¥à¤µà¥€ राजà¥à¤¯ उड़ीसा की राजधानी है और à¤à¤¿à¤¤à¤°à¤•निका के गà¥à¤ªà¥à¤¤à¥€ चेक पोसà¥à¤Ÿ से मातà¥à¤° १२० किमी दूरी पर है। दिलà¥à¤²à¥€ और कलकतà¥à¤¤à¤¾ से नियमित उड़ानें à¤à¥à¤µà¤¨à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° के लिठहैं। सड़क मारà¥à¤— से à¤à¥à¤µà¤¨à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° से à¤à¤¿à¤¤à¤°à¤•निका पहà¥à¤à¤šà¤¨à¥‡ का रासà¥à¤¤à¤¾ इस शà¥à¤°à¥ƒà¤‚खला की पहली कड़ी में बता चà¥à¤•ा हूà¤à¥¤ वैसे देशी परà¥à¤¯à¤Ÿà¤• à¤à¥à¤µà¤¨à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° के आलावा इस जगह à¤à¤¦à¥à¤°à¤• के रासà¥à¤¤à¥‡ à¤à¥€ आते हैं।
इस पूरे इलाके को देखने के लिठदो रातें, तीन दिन का समय परà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ है। इसमें से पहली रात डाà¤à¤—माल और दूसरी रात आप इकाकà¥à¤²à¤¾ में बने वन विà¤à¤¾à¤— के गेसà¥à¤Ÿ हाउस में बिता सकते हैं। अगर आप उड़ीसा पहली बार आ रहे हैं तो आप अपनी इस यातà¥à¤°à¤¾ में à¤à¥à¤µà¤¨à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤°, कोणारà¥à¤•, पà¥à¤°à¥€ और चिलका को शामिल कर सकते हैं।
निजी टूर आपरेटरों दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ संचालित कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® का विवरण आप यहाठदेख सकते हैं । इनके पैकेज में à¤à¤¯à¤°à¤ªà¥‹à¤°à¥à¤Ÿ से आपको रिसीव कर आपके घूमने, खाने और रहने और राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ उदà¥à¤¯à¤¾à¤¨ में घà¥à¤¸à¤¨à¥‡ का परमिट की सारी सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤à¤ रहती हैं। इनकी दरों के लिठआप इनके जाल पृषà¥à¤ पर इनसे संपरà¥à¤• कर सकते हैं।
सरकारी वन विà¤à¤¾à¤— के गेसà¥à¤Ÿ हाउस के रेट व फोन नंबर यहाठउपलबà¥à¤§ हैं और इसके लिठराजनगर के वन विà¤à¤¾à¤— के डिविजनल फॉरेसà¥à¤Ÿ आफिसर से संपरà¥à¤• किया जा सकता है। यहाठके सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ लोग आम à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯à¥‹à¤‚ की तरह ही हैं। हिंदी व अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥€ बोल à¤à¤²à¥‡ ना पाà¤à¤ पर आसानी से समठलेते हैं।
वह मनीष जी मजा आ गया. गौरी को देख कर.
सच मुच बहुत सुंदर है गौरी और उसकी कहानी जिसमे उसने अपनी दाई आँख गवा दी……………
मगर मच के बच्चे का फोटो भी अच्छा है…………….
मंग्रोव जंगल का वर्णन ही बहुत अच्छा है…………………
समुद्र और बादल के फोटो भी अच्छे है………………………
और आखिर में आपने काफी महत्त्वपूर्ण जानकारी का पाराग्राफ लिखा है , धन्यवाद यह मेरी यात्रा में काम आयेगा……………..
काफी अच्छी सीरीस है. काफी बेहतरीन मनोरंजन के लिए फिर से धन्यवाद……………..
शु्क्रिया विशाल इस श्रृंखला को पसंद करने के लिए !
मनीष जी , गौरी से मुलाकात वाकई में हसीन थी ……….और उनके शावको से तो और भी ………….मुझे पुरी जाना है आपके टूर आपरेटर वाले लिंक पर क्लिक किया तो वो पेज नाट फाउंड बता रहा है ……………इस लेख और सीरीज की जितनी तारीफ की जाये कम है
मनु लिंक की ओर ध्यान दिलाने का शुक्रिया। इसे दुरुस्त कर दिया है।
वैसे पुरी के साथ चिलका को भी अपने कार्यक्रम में आप शामिल कर सकते हैं।
मनीष जी मै पुरी भुवनेश्वर और कोणार्क जा चुका हूं पर इस बार दोबारा जा रहा हूं । फिर से पुरी में दो दिन और एक रात जबकि एक दिन पुरी से भुवनेश्वर जाने और घूमने के लिये रखा है ………क्या ऐसा कर सकते हैं कि पुरी और कोणार्क एक दिन में और चिलका झील एक दिन में या ये तीनो एक दिन में और एक दिन में नंदनकानन ……….बताईयेगा जरूर
जब आप पुरी जा चुके हैं तो पुरी में दूsरी सुबह आप चिल्का (सतपाड़ा) के लिए प्रस्थान कर सकते हैं और शाम तक वापस पुरी लौट सकते हैं।
Alternatively:
भुवनेश्वर में नंदनकानन देखने के लिए कम से कम आधा दिन चाहिए। इसके आलावा खंडगिरि, उदयगिरि और धौली जैसे ऐतिहासिक स्मारक और आप जैसे श्रद्धालुओ के लिए लिंगराज मंदिर में पूजन अनिवार्य है। इन सबको देखने के लिए आपको डेढ़ दिन चाहिए। फिर आप पुरी की ओर निकल सकते थे। वहाँ शाम को मंदिर में दर्शन कर व सुबह समुद्र स्नान के बाद आप चिलका जा के लौट शाम छः सात बजे तक लौट सकते हैं।
भुवनेश्वर,पुरी और चिलका के बारे में एक बार अपने ब्लॉग पर लिखा था
http://travelwithmanish.blogspot.in/search/label/%E0%A4%AD%E0%A5%81%E0%A4%B5%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0
http://travelwithmanish.blogspot.in/search/label/%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%95%E0%A4%BE
बढ़िया चित्र और उतना ही बढ़िया विवरण… गौरी (Femme Fatale), का चित्रण रोमांचक था
धन्यवाद सराहने के लिए !
Very well written post about some beautiful places.as usual, away from the eyes of authorities, hence not much published and hidden from the eyes of tourists.photographs are very good.this country of ours is full of such treasures,but we are not able to exploit there potential to any extent.
But that day is not far off when such places will be on the world tour map as hot favorites.
It’s true. Bhitarkanika is mostly frequented by local Oriya people or ever inquisitive bengali community from the neighbouring state. On the flip side one can say that due to less tourism these places have not been spoiled by uncaring tourists.
beautiful pics and extremely helpful. Crocodile pics are really nice. Seldom see a place where crocodoles are available in so much amount
Because of success of the crocodile breeding form their nos. are ever increasing. Even during our boat ride we could see the ‘ghariyals’ swimming just below the water surface with their eyes and part of mouth visible. Croco’s are generally seen on muddy wetlands by the side of the river in this wildlife sanctuary.
यह श्रृंखला बहुत ही ज्ञानवर्धक रही हम लोगो के लिए | फोटो सभी अच्छे लगे …….गौरी के बारे में जानकर अच्छा लगा |
शुक्रिया रीतेश !
Thanks, Manish, for the eagerly awaited encounter with Gauri. Surprising that her appetite was satisfied with just a crab. It sure must have been tasty going by the expression on her face.
The hyperlinks provided by you were useful too. Thanks also for translation of certain terms like rear and release. I wish you had also provided the translation for प्रजनन केंद्र. It took me a while to figure out that prajanan meant breeding!
“पेड़ों के तने में बने इन गोल छिद्रों में कौन रहता होगा?”…..कठफोडवा (woodpeckers)?
Sad that the travelogue is over and looking forward to more from you.
“Surprising that her appetite was satisfied with just a crab.”
She must have been fed earlier in the morning. Crab was just a “lollypop ” to bring her out from water. As u know a crocodile will not move an inch unless absolutely necessary. :)
“I wish you had also provided the translation for प्रजनन केंद्र.”
Your wish is my command ! वो कहते हैं ना जो हुक्म मेरे आका :p
“पेड़ों के तने में बने इन गोल छिद्रों में कौन रहता होगा?”…..कठफोडवा (woodpeckers)?
Frankly speaking DL, I don’t know the correct answers. अब उसके अंदर हाथ डाल कर देखा तो नहीं। Woodpeckers may have created it but its nice cozy place for a water snake to rest under low tides.
मनीष जी,
आपसे अनुरोध है कि आप शीघ्र ही अपने सूटकेस पैक कीजिये और किसी और जगह घूम कर आइये ताकि हमें आपकी और पोस्ट्ज़ पढने को मिलें। :)
किसी मगरमच्छ को इतना अलर्ट कभी नहीं देखा। वैसे यह गौरी एक बहुत ही रोचक किरदार है। बिलकुल जैसे कोई वारियर प्रिन्सेज़। शावकों को देख कर नैश्नल ज्यौग्राफिक की डाक्यूमेन्टरीज़ याद आ गयी जिनमें मगरमच्छ माँओं को अपने शावकों को अपने मुंह में भर कर पानी तक ले जाते हुए दिखाया जाता है। ममता इतने नुकीले दांतों को भी कितना सुरक्षित बना देती है।
बहुत अच्छी श्रृंखला थी।
‘Warrior Princess’ बड़ा अच्छा किरदार चुना है आपने गौरी के व्यक्तित्व के लिए !
शावकों के साथ मगरमच्छों को तो मैं यहाँ नहीं देख पाया क्यूँकि बच्चों को यहाँ अलग रखा गया था। श्रृंखला पसंद करने के लिए शुक्रिया !
मनीष जी,
हमेशा की तरह सुन्दर प्रस्तुति. गौरी तथा मगरमच्छ के शावकों का विवरण तथा छायाचित्र बड़े सुन्दर थे. इकाकुला के समुद्र तट तथा मैनग्रोव के जंगलों के बारे में जानकारी तथा चित्र बड़े ही अच्छे लगे.
आपकी अगली पोस्ट के इंतज़ार में.
शु्क्रिया मुकेश जी…
Great series Manish. Guess logs like these would make more people travel to Bhitarkanika and beyond.
There is another area near Mahanadi River basin Satakosia WLS near Tikripada which is untouched and as enchanting. Hope I will visit it some day.
Hello Manish Ji,
It was great information about the lesser known places. Orissa indeed has some beautiful locations at par with other popular tourists destinations. I checked last two links and it was really helpful, thanks for posting that.
Waiting for your new series :-)
Amit
Congrats Amit ! From now we will share the wedding location and wedding anniversary :)
Congrats Amit ! From now on we will share the wedding location and wedding anniversary :)
मनीष जी, बहुत शानदार श्रंखला और पोस्ट।
आप तो समुद्र तटों के उस्ताद हो। पूर्वी भारत के समुद्र की हर किलोमीटर की जानकारी आपके पास है। हमने तो जी ले देकर पुरी देखा है उसका अनुभव शानदार रहा।
शु्क्रिया नीरज ! हमारे पास समुद्र है तो आपके करीब हिमालय.. :)
मनीष जी, एक बात समझ नहीं आई। भेड के बच्चे को मेमना कहते हैं, हिरण के बच्चे को छौना, कुत्ते के बच्चे को पिल्ला, गाय के बच्चे को बछडा। फिर मगरमच्छ के बच्चे को शावक क्यों कहेंगे जबकि शावक तो शेर के बच्चे होते हैं?
शावक शब्द का प्रयोग सिर्फ शेर के लिए किया जाता है ऐसा नहीं है। शावक का अर्थ अंग्रेजी में young ones भी है यानि नन्हा बच्चा। यहाँ देखें
http://dict.hinkhoj.com/words/meaning-of-%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%95-in-english.html
मनीष जी, हो सकता है कि शावक शब्द का इस्तेमाल सभी प्राणियों के बच्चों के लिये किया जाता हो लेकिन मेरी स्मृति के अनुसार शेर या बाघ के बच्चों को ही शावक कहते हैं। जैसे कि ’पिल्ला’ शब्द से केवल कुत्ते के बच्चे का ही खाका खिंचता है। जिस प्रकार बिल्ली के बच्चे को पिल्ला नहीं कह सकते तो हर जानवर के बच्चे को शावक कैसे कह देंगे? यह मेरा अपना आइडिया है। मेरे दिमाग में शावक शब्द पढते ही शेर या बाघ के बच्चे का चित्र खिंच जाता है, तो जी आपकी पोस्ट में मगरमच्छ के बच्चे के बदले शावक पढते समय मैं कंफ्यूज सा रहा कि यहां शेर का बच्चा कहां से आ गया।
और आपकी दी गई इस लिंक से मेरी जिज्ञासा शान्त नहीं हुई है। असल में यह साइट चीते और तेंदुए में कोई फरक नहीं कर रही है। इसकी नजर में दोनों शब्द एक ही जानवर को इंगित करते हैं। काकड जो हिरण की एक प्रजाति है, इसके शब्दकोश में है ही नहीं। तो इसके द्वारा दी गई जानकारी या अनुवाद मोटे तौर पर लाभकारी हो सकते हैं लेकिन बारीक तौर पर नहीं।
है कोई जो मुझे यह बता सके कि शावक केवल शेर बाघ के बच्चे ही होते हैं या सभी जानवरों के बच्चों को शावक कह देंगे।
http://www.bhaskar.com/article/MP-OTH-1932866-3038416.html :)
http://hindi.webdunia.com/entertainment-tourism-news/%E0%A4%85%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%A5-%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%A5%E0%A5%80-%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%95-%E0%A4%95%E0%A5%8B-%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BE-%E0%A4%86%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A4%BE-1111108048_1.htm
वैसे अगर फिर भी आपकी जिज्ञासा शांत नहीं हुई हो तो वही मानिए जो आपका मन कह रहा है।
ह्म्म्म्म, आप सही कह रहे हैं।
शावक का अर्थ छोटा या नवजात बच्चा ही होता है, चाहे वो किसी भी जानवर का हो।
और मनीष जी, ऐसा नहीं कहते कि जो आपका मन करे। मैं अज्ञानतावश मात्र शेर के बच्चे को ही शावक मानता था। आज आपकी पोस्ट में जो पढा, उससे मुझे जिज्ञासा हुई और अब पता चल गया है कि शावक किसे कहते हैं। अगर किसी मामले में खासकर इसी तरह के मामले में तर्क-वितर्क करना पडे तो कोई बुराई नहीं है।
धन्यवाद।
गौरी- नाम सुंदर किंतु थी भयावह. इकाकुला- नाम भयावह(ड्रेक्युला के समान) किंतु है मनमोहक.
आपका हर लेख लय-ताल-छन्द में गुनगुनाता हुआ होता है.
वो पुरानी कहावत है ना जयश्री..आँख का अंधा नाम नयनसुख ! वैसे इकाकुला से ड्रेकुला की साम्यता पर आपकी टिप्पणी से ही ध्यान गया।
मनीष जी
धन्यवाद् इतने सुन्दर आलेख/ सिरीस के लिए.
भितरकनिका के बारे में यह मेरी पहली जानकारी थी, हालाँकि मै खुर्दा बालूगांव एरिया में करीब दो साल रहा हूँ. हमारा पड़ाव पुरी, चिल्का लेक और इनके आस पास के कुछ स्थान, , यही होते थे.
आपके व्याख्यान वाकई बड़े ही नायब और रोमांचक है.
छोटा बच्चा वाली तस्वीर तो टूरिस्म के इश्तिहार जैसी है.
आपका प्रशंसक
Auro.
It was first time when I heard about Bhitarkanika. Thanks for taking us to new places like this.