दोसà¥à¤¤à¥‹à¤‚ पिछले कà¥à¤› अरसे से में घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ का लगातार पाठक रहा हूठपर यहाठपर लिखने की कोशिश पहली बार कर रहा हूà¤, वैसे तो घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ी का आनंद हमने कई बार उठाया है पर कà¤à¥€ सोचा ना था की आपनी घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ी को शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ में पिरोने की गà¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤–ी à¤à¥€ करूà¤à¤—ा, पर यहाठपर आप सà¤à¥€ महान घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ों के अनà¥à¤à¤µà¥‹à¤‚ को पड़ने के बाद थोड़ी हिमà¥à¤®à¤¤ जà¥à¤Ÿà¤¾ रहा हूठकà¥à¤› लिखने की, आपको शायद मेरे लेख में फोटो की कमी खले कà¥à¤¯à¥à¤•ी फोटो खीचने की मामले में हम थोड़े से अनाड़ी है और खà¥à¤¬à¤¸à¥‚रत जगहों पर à¤à¥€ सिरà¥à¤« आपने परिवार की फोटो खीचते रहते है, पर à¤à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯ की यातà¥à¤°à¤¾à¤“ में à¤à¤• अचà¥à¤›à¥‡ घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़  की तरह नेसरà¥à¤—िक सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤°à¤¤à¤¾ की फोटो लेने की कोशिश जरà¥à¤° करूà¤à¤—ा।
बरसो पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ बात है, जब २८ जून २०११ के रात के ढाई बजे हर तरफ घनगोर अà¤à¤§à¥‡à¤°à¤¾ जगमग हो रहा था और वीरान सडको पर सिरà¥à¤« कà¥à¤¤à¥à¤¤à¥‹ का शोर सà¥à¤¨à¥‡ दे रहा था में आपनी बड़ी दीदी के घर (वैशाली गाजियाबाद) पर जीजा जी के साथ बातचीत में मशगà¥à¤² था की तà¤à¥€ अचानक à¤à¤• अदà¥à¤à¥à¤¤ घटना घटी और मैंने मजाक में जीजा जी से मनाली चलने की बात कही। बस फिर कà¥à¤¯à¤¾ था मजाक में कही बात को कà¥à¤› ही पलों में हमने बड़ी गंà¤à¥€à¤°à¤¤à¤¾ से ले लिया और जाने का बजट बनाने में जà¥à¤Ÿ गà¤, अरे à¤à¤¾à¤ˆ किसी à¤à¥€ यातà¥à¤°à¤¾ के लिठजेब में तरी होना à¤à¥€ तो जरà¥à¤°à¥€ है ना।
आपने दीदी और जीजाजी की पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ मनाली यातà¥à¤°à¤¾ (जो की उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने वॉलà¥à¤µà¥‹ बस के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ करी थी) के अनà¥à¤à¤µ आधार पर ये तय करा गया की à¤à¤• तो बस का किराया बहà¥à¤¤ जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ होता है ऊपर से आप आपनी पसंद की जगह पर रà¥à¤• à¤à¥€ नहीं सकते, उसके अलावा बस तक आने जाने की परेशानी और मनाली में फिर से घà¥à¤®à¤¨à¥‡ के लिठटैकà¥à¤¸à¥€ की जरà¥à¤°à¤¤, सो इन सब से बचने के लिठघर से ही टैकà¥à¤¸à¥€ करके चला जाये। पर मà¥à¤à¥‡ यह बात नहीं जची और मैंने कहा की टैकà¥à¤¸à¥€ का खरà¥à¤š à¤à¥€ तो बहà¥à¤¤ होगा उससे तो आचà¥à¤›à¤¾ है की खà¥à¤¦ ही डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µ करके आपनी गाड़ी से चले जिस पर मेरी दीदी ने कहा की ममà¥à¤®à¥€ और पापा नहीं मानेगे तो उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ मानाने की जिमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¥€ मैंने ले ली।
उसके बाद हम सब ने सà¥à¤¬à¤¹ इस पर बात करने का सतà¥à¤¯ बचन देकर सोने का फैसला करा, लेकिन अपने छोटे से मजाक की इतनी सारी रà¥à¤ªà¤°à¥‡à¤–ा बनती देख मà¥à¤à¥‡ रात à¤à¤° नींद ही नहीं आई और में खà¥à¤²à¥€ आà¤à¤–ों से सà¥à¤¬à¤¹ तक मनाली के सपने देखता रहा। सà¥à¤¬à¤¹ उठकर आपनी शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¤à¥€ जी (जो की घर पर आगरा में थी) को फ़ोन पर आपने उचà¥à¤š विचारो से अवगत कराया तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने हमेशा की तरह मजाक मानकर कह दिया की ठीक है हमारे घर बापसी पर इसके बारे में बात करेंगे, घर आने पर जैसे तैसे हमने ममà¥à¤®à¥€ जी और पापा जी से अपनी गाड़ी (मारà¥à¤¤à¥€ वैगनआर) को खà¥à¤¦ चला कर मनाली जाने की अनà¥à¤®à¤¤à¤¿ ले ली और जाने का जो शà¥à¤ मà¥à¤¹à¥‚रà¥à¤¤ निकलवाया वो था ०ॠजà¥à¤²à¤¾à¤ˆ २०११ का पवितà¥à¤° दिन।
दूसरी मà¥à¤–à¥à¤¯à¤¾ अड़चन थी कारà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ से छà¥à¤Ÿà¥à¤Ÿà¥€ लेना जिसके लिठहमें जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ मेहनत नहीं करनी पड़ी . अपने इस यातà¥à¤°à¤¾ के सà¥à¤µà¤ªà¥à¤¨ के सच होने की पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•à¥à¤·à¤¾Â कर रहे थे की तà¤à¥€ à¤à¤• दिन हमारी फ़ोन पर बात हमारे परम मितà¥à¤° पावा जी (जो की फरीदाबाद में रहते है और हम से उमà¥à¤° में मातà¥à¤° १५-१८ बरà¥à¤· बड़े है) से हà¥à¤ˆ जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ हमने आपने पà¥à¤²à¤¾à¤¨ के बारे में बताया, तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने तà¥à¤°à¤‚त ही फ़ोन पर हमारी पहले डाट लगा दी की इतने लमà¥à¤¬à¥‡ रासà¥à¤¤à¥‡ डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µ करना ठीक नहीं है पर हमारे ना मानने पर हमें à¤à¤• आदेश दिया की à¤à¤• काम करना आपनी वैगनआर मà¥à¤à¥‡ फरीदाबाद में दे जाना और मेरी फोरà¥à¤¡ फिगो (टॉप मॉडल जो की उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने १ साल पहले ही ली थी) ले जाना कà¥à¤¯à¥à¤•ी फिगो डीजल गाड़ी है जो की हमें वैगनआर के पेटà¥à¤°à¥‹à¤² के खरà¥à¤š से बहà¥à¤¤ ससà¥à¤¤à¥€ पड़ेगी।
बस फिर कà¥à¤¯à¤¾ था आपने मितà¥à¤° के à¤à¤¸à¥‡ ममता मयी पà¥à¤¯à¤¾à¤° के आगे हम कà¥à¤› à¤à¥€ न कह पाठऔर ४ जà¥à¤²à¤¾à¤ˆ २०११ को आपनी शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¤à¥€ जी के साथ आपनी धनà¥à¤¨à¥‹ में सवार होकर दीदी के घर के लिठआगरा से वैशाली गाजियाबाद चल दिà¤à¥¤Â ५ जà¥à¤²à¤¾à¤ˆ २०११ को में और जीजा जी फरीदाबाद मेरे मितà¥à¤° पावा जी के घर गठऔर आपनी धनà¥à¤¨à¥‹ को देकर पावा जी की बसंती को आपने साथ ले आये।
जीजा जी की नाईट शिफà¥à¤Ÿ होने के कारन ॠजà¥à¤²à¤¾à¤ˆ की सà¥à¤¬à¤¹ ५ बजे हम पाà¤à¤š लोगो का मनाली के लिठपà¥à¤°à¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤¨ होना था। । पाà¤à¤š लोग ??? अरे मेरी ८ महीने की à¤à¤¾à¤‚जी à¤à¥€ तो थी न “पीहूâ€â€¦. ६ जà¥à¤²à¤¾à¤ˆ की शाम को जीजाजी के ऑफिस जाने के बाद से ही दीदी और हमारी पतà¥à¤¨à¥€ जी जाने की पैकिंग और रसà¥à¤¤à¥‡ में खाने के लिठमठरी (4 दिन के हिसाब से रासà¥à¤¤à¥‡ में हलà¥à¤•ा फà¥à¤²à¥à¤•ा खाने को) बनाने में लग गयी। पà¥à¤°à¥‹à¤—à¥à¤°à¤¾à¤® कà¥à¤› इस तरह से था की सà¥à¤¬à¤¹ जीजा जी ऑफिस से थके हà¥à¤ आयेंगे इसीलिठसà¥à¤¬à¤¹ डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µ में करूà¤à¤—ा और वो पीछे की सीट पर आराम कर लेंगे। पर हà¥à¤† कà¥à¤› à¤à¤¸à¤¾ की जाने की ख़à¥à¤¶à¥€ में रात २ बजे तक तो मà¥à¤à¥‡ ही नींद नहीं आई थी और दीदी और शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¤à¥€ जी तो पता नहीं कब तक तैयारी में ही लगी रही।
सà¥à¤¬à¤¹Â लगà¤à¤— ६ बजे, हम घर से निकल कर आनंद विहार पहà¥à¤šà¥‡ गाड़ी में सिरà¥à¤« ₹ १००० का डीजल डलवाया कà¥à¤¯à¥à¤•ी बाकि का हम अमà¥à¤¬à¤¾à¤²à¤¾ से खरीदने वाले थे। पर ये कà¥à¤¯à¤¾ गूगल देवता की मदत से जो रासà¥à¤¤à¥‡ का नकà¥à¤¶à¤¾ मैंने निकल था वो तो में घर पर ही à¤à¥‚ल गया और जी टी रोड तक पहà¥à¤šà¤¨à¥‡ का रासà¥à¤¤à¤¾ मà¥à¤à¥‡ नहीं पता था इसीलिठहम दिलà¥à¤¹à¥€ में ही रासà¥à¤¤à¤¾ à¤à¤Ÿà¤• गà¤à¥¤ इसे कहते है सर मà¥à¤¡à¤¼à¤¤à¥‡ ही ओले पड़ना ……
बरहाल किसी तरह हम पूछते हà¥à¤ जी. टी. रोड तक पहà¥à¤š गठपर इसमें समय बहà¥à¤¤ ख़राब हà¥à¤†, à¤à¥€à¤¡à¤¼ की कमी और अचà¥à¤›à¥‡ रासà¥à¤¤à¥‡ के कारन गाड़ी चलने में मà¥à¤à¥‡ बड़ा मजा आ रहा था, सà¥à¤¬à¤¹ का मौसम à¤à¥€ बहà¥à¤¤ आचà¥à¤›à¤¾ था, और में à¤à¥€ पावा जी की गाड़ी के साथ à¤à¥€ आपना सामंजसà¥à¤¯ बिठा चà¥à¤•ा था, सà¥à¤¬à¤¹ लगà¤à¤— साढ़े आठबजे पीहू की नींद खà¥à¤² गयी जिसे की हमने सà¥à¤¬à¤¹ सोते हà¥à¤ ही गाड़ी में लिटा दिया था और उसके सà¥à¤¬à¤¹ के विविध à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€ पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤°à¤£ के साथ ही जीजा जी की à¤à¥€ आà¤à¤– खà¥à¤² गयी जिनमे आà¤à¥€ तक सही से नींद à¤à¥€ नहीं आयी थी। शानदार रोड पर नियमित रफ़à¥à¤¤à¤¾à¤° पर “बसंती’ चली जा रही थी।
घर से निकले हà¥à¤ हमें लगà¤à¤— ३ घंटे हो चà¥à¤•े थे और अब कà¥à¤› नाशà¥à¤¤à¥‡ की पà¥à¤•ार पेट से निकल कर जà¥à¤¬à¤¾ पर आने लगी थी, पर इस की तैयारी हमारी दीदी और शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¤à¥€ जी ने घर पर ही कर ली थी यहाठतक की उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने पहले दिन का दोपहर का खाना à¤à¥€ बना कर रख लिया था। सो आब बारी थे नाशà¥à¤¤à¥‡ की जिसमे की हमें गरमा गरà¥à¤® चाय, बà¥à¤°à¥‡à¤¡ सैंडविच और 4 दिन के हिसाब से बनायीं गयी मटà¥à¤ ी मिली। नाशà¥à¤¤à¤¾ करने की बाद बसंती तो फिर से हवा से बात करने लगी लेकिन हम चारो (पीहू के अलावा) को कà¥à¤› कमी सी लग रही थी इसीलिठहमने उस कमी को दूर करने के लिठमटà¥à¤ ी के डबà¥à¤¬à¥‡ को आगे वाली सीटो के बीच हैणà¥à¤¡ बà¥à¤°à¥‡à¤• के पास रख लिया और करनाल पहà¥à¤šà¤¨à¥‡ के आसपास हमें à¤à¤¹à¤¸à¤¾à¤¸ हà¥à¤† की ४ दिन चलने वाली मटà¥à¤ ी का डबà¥à¤¬à¤¾ ४ घंटे में खाली हो चà¥à¤•ा है।
करनाल पार करने की बाद मौसम बड़ा ही आचà¥à¤›à¤¾ हो चà¥à¤•ा था, काफी घने काले बादल छाये हà¥à¤ थे और ठंडी तेज हवा à¤à¥€ चल रही थी, मैंने गाड़ी साइड में खड़ी करी और आपनी शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¤à¥€ जी के साथ कà¥à¤› फ़ोटो खीचने के लिठगाड़ी से बहार आ गया। लेकिन ये कà¥à¤¯à¤¾ आà¤à¥€ फ़ोटो खीचना शà¥à¤°à¥‚ ही करा था की ये घनघोर घटा तेज बारिश के रूप में हमारे सफ़र को और खà¥à¤¶à¤¨à¥à¤®à¤¾ करने के लिठबरसने लगी, अब हà¥à¤† ये की à¤à¤• तो में वैसे ही ८०-९० से ऊपर गाड़ी चलने की कà¤à¥€ कोशिश तक नहीं करता हॠऔर बारिश के बाद तो मेरी गाड़ी की रफ़à¥à¤¤à¤¾à¤° और à¤à¥€ थोडा कम हो गयी. जिसकी बजह से हमें अमà¥à¤¬à¤¾à¤²à¤¾ पहà¥à¤šà¤¨à¥‡ में बहà¥à¤¤ समय लगा।
अमà¥à¤¬à¤¾à¤²à¤¾ पहà¥à¤šà¤¨à¥‡ तक बारिश और तेज हो चà¥à¤•ी थी जिसकी बजह से शहर में कई जगह पानी à¤à¤° गया था, हमारा सबसे पहला उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ गाड़ी में डीजल à¤à¤°à¤¬à¤¾à¤¨à¤¾ था इसीलिठहमने à¤à¤• पेटà¥à¤°à¥‹à¤² पंप जो की शहर के मधà¥à¤¯ था वहा से गाड़ी का टैंक फूल करवाया और उसी पेटà¥à¤°à¥‹à¤² पंप से बनà¥à¤¨à¥‚र वाला रासà¥à¤¤à¤¾ पूछा, बताये रासà¥à¤¤à¥‡ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° हम पेटà¥à¤°à¥‹à¤² पंप से बहार निकलकर राजपà¥à¤°à¤¾ बाले रासà¥à¤¤à¥‡ की तरफ चले जहा पर हमें टोल टैकà¥à¤¸ के बूथ से ठीक पहले सीधे हाथ पर मà¥à¤¡à¤¼à¤¨à¤¾ था, पर ये कà¥à¤¯à¤¾ हम जैसे ही राजपà¥à¤°à¤¾ बाले रासà¥à¤¤à¥‡ की तरफ चले सामने सड़क पर पानी à¤à¤¸à¥‡ à¤à¤°à¤¾ था जैसी की कोई छोटी नदी बह रही हो हमें अब इस छोटी नदी को पार करना था पर इस नेक कारà¥à¤¯ के लिठमैंने गाड़ी की कपà¥à¤¤à¤¾à¤¨ वाली गदà¥à¤¦à¥€ आपने जीजा जी को सौप दी। जीजा जी ने à¤à¥€ बखूà¤à¥€ इस साहसिक कारà¥à¤¯ को अंजाम दिया कà¥à¤› ही दूर चलने पर हमें वो टोल पà¥à¤²à¤¾à¤œà¤¾ दिखयी दिया जहा से की हम सीधे हाथ की तरफ मà¥à¤¡à¤¼ गà¤à¥¤
यहाठके आगे सिंगल रूट था पर वो काफी चौड़ा था और वहाठगाड़ी चलाने में कोई दिकà¥à¤•त नहीं थी दोनों तरफ खेत और बीच में वो रासà¥à¤¤à¤¾ बड़ा ही सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° लग रहा था जहा से हम खरड़ होते हà¥à¤ रोपड़ जाने वाले मà¥à¤–à¥à¤¯à¤¾ मारà¥à¤— पर कà¥à¤°à¤¾à¤²à¥€ टोल पà¥à¤²à¤¾à¤œà¤¾ के पास पहà¥à¤šà¥‡, टोल लेने के बाद मà¥à¤¶à¥à¤•िल से ५-१० मिनट ही चले होंगे की फिर से à¤à¤• और टोल पà¥à¤²à¤¾à¤œà¤¾ आया जहा पर फिर से हमें टोल कटबाना पड़ा। कà¥à¤› समय के बाद हम रोपड़ जिसे की अब रूपनगर कहते है पहà¥à¤š गठथे पर हम शहर में ना जाकर मà¥à¤–à¥à¤¯à¤¾ मारà¥à¤— से ही सीधे हाथ की तरफ मà¥à¤¡à¤¼ गà¤, दोपहर लगà¤à¤— १२:३० से १ बजे का समय हो रहा होगा à¤à¥‚ख जोरो से लग रही थी इसीलिठहमारे घर से लाये हà¥à¤ खाने को खाने के लिठरà¥à¤•ने की कहा गया, पर जीजा जी बोले की पहले ही काफी लेट है इसीलिठà¤à¤¸à¥‡ ही चलती गाड़ी में खा लेंगे। खाना तो चलती गाड़ी में खा लिया पर खाना खाने के बाद कà¥à¤¯à¥à¤•ी सà¥à¤¬à¤¹ से ही सफ़र कर रहे थे इसीलिठà¤à¤• अचà¥à¤›à¥‡ ढाबे पर चाय पीने के लिठहमने गाड़ी रोक दी।
वहाठचाय पीने के दोरान पता लगा की वहाठसे “नैना देवी” का मंदिर पास में ही है, तो सरà¥à¤µ सहमति से निरà¥à¤£à¤¯ लिया गया की पहले नैना देवी के दरà¥à¤¶à¤¨ कर लेते है फिर आगे का सफ़र तय करा जायेगा. ढाबे से निकलने के बाद हमारा अगला उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ नैना देवी का मंदिर था, थोड़ी देर में शायद आनंदपà¥à¤° साहिब से आगे निकलने पर हमें पहाड़िया मिलनी शà¥à¤°à¥‚ हो गयी जिनà¥à¤¹à¥‡ देखकर हम सà¤à¥€ की ख़à¥à¤¶à¥€ का कोई ठीकाना ही नहीं था, पहाड़ियो पर गाड़ी तो जीजा जी चला रहे थे पर अब हम à¤à¥€ पीछे की सीट पर सतरà¥à¤• मà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾ में बेठकर धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ आगे के रासà¥à¤¤à¥‡ पर लगाये हà¥à¤ थे और सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° नजरो का आनंद लिठजा रहे थे।
थोड़ी देर में हम पूछते पाछते नैना देवी के मंदिर के नीचे तक पहà¥à¤š गठथे जहा पर गाड़िया बड़ी ही बेतरतीब से पारà¥à¤• करी हà¥à¤ˆ थी, वहाठमूलत जो पारà¥à¤•िंग थी वो बड़ी ही सीधी सी पहाड़ी पर ऊपर जाकर थी जहाठगाड़ी चढ़ाने की हिमà¥à¤®à¤¤ दिखने की हमने सोचा तक नहीं और वही पहाड़ी के नीचे ही और गाडियो की तरह ही हम à¤à¥€ आपनी गाड़ी à¤à¤• तरफ खड़ी करके और सामने दà¥à¤•ान पर बेठी à¤à¤• आंटी को कà¥à¤› पैसे देकर गाड़ी की देखà¤à¤¾à¤² करने का बोल कर नंगे पैर माता के दरà¥à¤¶à¤¨ को चल दिà¤à¥¤
सामने से देखने पर कà¥à¤› दà¥à¤•ानो के छोटे से à¤à¥à¤£à¥à¤¡ की तरह दिखने वाले रासà¥à¤¤à¥‡ से होते हà¥à¤ हम आगे बढ़े तो मंदिर तक पहà¥à¤šà¤¨à¥‡ के लिठसीडिया शà¥à¤°à¥‚ हो जाती है, वही ऊपर की तरफ चढ़ते हà¥à¤ ही हमें कà¥à¤› à¤à¤•à¥à¤¤ देवी माठकी बड़ी सी छड़ी लेकर देवी के दरबार में जाते हà¥à¤ दिखे जो की बड़े ही सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° माठके à¤à¤œà¤¨ गाते हà¥à¤ जा रहे थे।
à¤à¤µà¤¨ तक पहà¥à¤šà¤¨à¥‡ के लिठलगà¤à¤— à¥à¥¦à¥¦ सीडिया चढ़ना पड़ता है जिनà¥à¤¹à¥‡ चढ़ने में हमारी जो हालत हà¥à¤ˆ वो में बता नहीं सकता, जैसे तैसे हम ऊपर à¤à¤µà¤¨ तक पहà¥à¤šà¥‡ वहाà¤Â पर दरà¥à¤¶à¤¨à¥‹à¤‚ के लिठलमà¥à¤¬à¥€ लाइन लगी हà¥à¤ˆ थी जिसमे खड़े होने के थोड़ी देर बाद हमारा à¤à¥€ à¤à¤¾à¤—à¥à¤¯ उदय हà¥à¤† और हमें माठके दरà¥à¤¶à¤¨ का लाठमिला। माठके दरà¥à¤¶à¤¨ के बाद हम लोगो ने मंदिर के पीछे ही लंगर में पà¥à¤°à¤¶à¤¾à¤¦ गà¥à¤°à¤¹à¤£ करा और वापस नीचे उतरने लगे। नैना देवी के मंदिर और दरà¥à¤¶à¤¨à¥‹à¤‚ में हमें कà¥à¤² मिलकर लगà¤à¤— २.५ से ३ घंटे का समय लगा । लगà¤à¤— ५ बजकर १५ मिनट पर हम फिर से अपनी वसंती में सवार होकर आपनी अगली और मà¥à¤–à¥à¤¯à¤¾ मंजिल मनाली की तरफ चल दिà¤à¥¤
उपाध्याय जी,
घुमक्कड़ के मंच पर आपका हार्दिक स्वागत है। बहुत सुन्दर पोस्ट के साथ आपने शुभारम्भ किया, मनोरंजक लेख तथा मोहक चित्रों से सजी यह पोस्ट प्रशंसनीय है। घुमक्कड़ पर एक और हिंदी लेखक का आगमन…….. उत्तम ……अति उत्तम।
अब यदि विशुद्ध तथा निष्पक्ष समीक्षा कि बात की जाय, तो मैं यह बताना चाहूंगा की आपके लेख में वर्तनी (spelling) की बहुत ज्यादा गलतियां थी। आपको सलाह देना चाहूंगा की टाईप करने के बाद तथा पोस्ट प्रकाशित होने से पहले एक बार ध्यान से प्रूफ रीडिंग कर लेना परम आवश्यक होता है। ‘करा’ शब्द के स्थान पर ‘किया’ का प्रयोग करना ज्यादा उचित है।
खैर इसके अलावा आपकी पोस्ट मुझे बहुत पसंद आई, आपकी भाषा शैली थोड़ा सा हास्य का पुट लिए हुए थी जिसने आपके लेख को रोचक तथा मनोरंजक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
ऐसे ही घूमते रहें और घुमक्कड़ पर लिखते रहें। आशा है आपके ख़ज़ाने से घुमक्कड़ के पाठकों को एक से एक बेशकीमती यात्रा वृत्तांत पढने को मिलते रहेंगे।
Welcome aboard Jitendra.
Your story is finally up here, after a lot of hard work from you. By 5 you are at Naina Devi so I am guessing that you are not going to reach Manali anytime soon :-). I was last there on this route (till Karoli, on the way to Jahu in HP) in July and now one doesn’t need to go to Chandigarh for Ropar.
Look forward to next part, soon. Wishes.
उपाध्याय जी,
घुमक्कड़ पर आपका स्वागत है. यात्रा वृत्तांत तो काफी रोचक प्रतीत हो रहा है तथा लग रहा है कि पूरे सफ़र का आपने अपने परिवार के साथ बहुत ही आनंद उठाया है. वैसे आपकी बात शत-प्रतिशत सत्य है कि परिवार के साथ ही असली मजा आता है. मित्रो के साथ हम केवल स्वतंत्रता का अनुभव करते है किन्तु परिवार के साथ यात्रा करने का अर्थ है पूर्ण रूप से सन्तुष्टी।
वैसे भालसे जी द्वारा अंकित किये गए बिंदु भी उचित ही है किन्तु आपके लेख को एक समीक्षक की दृष्टि से न देखते हुए यदि एक पाठक बनकर पढ़ा जाए तो आपके सफ़र में शामिल हुआ जा सकता है. अंततः अनेक भूलो द्वारा अर्जित सद्ज्ञान को ही तो अनुभव कहते है.
घूमते रहिये, लिखते रहिये और अपना अनुभव हमारे साथ बांटते रहिये।
अरुण
उपाध्याय जी
घुमक्कड़ पर आपकी पहली पोस्ट वो भी हिंदी में बधाई। लेख रोचक है पर फोटो आपके निजी तो ठीक आये है पर प्राकृतिक फोटो वैसे सुन्दर नहीं आ पाये है आशा है अगली कड़ी में ये शिकायत दूर हो जायेगी।
welcome to Ghumakkar. nice post, interesting way of narrative.
Hi Jitendra ji
Congrats for your Ist post.
A very nice and sincere effort to write this travelogue, which quite reflects in each word of it.
Keep it up in this interesting way.
Content is nice and descriptive, but I too endorse the advice given by Mukesh Bhalse ji, correct spellings are very necessary to enjoy a good piece of writing.
I hope, you will take it in a positive way and try to correct the mistakes, before sending it to Ghumakkar.
Thanx for sharing.
नमस्कार मुकेश जी
सबसे पहले आपका बहुत-बहुत धन्यवाद, एक अभिभावक अथवा अपने से बड़े हमेशा ही अच्छे मार्गदर्शक की तरह आपको आगे बढ़ने की प्रेरणा के साथ साथ गलतियों को सुधारने के लिए भी आपका मार्गदर्शन करते है। कुछ ऐसे ही वात्सल्य का अनुभव मैंने आपकी विशुद्ध तथा निष्पक्ष समीक्षा में किया, अपने मेरे लेख को पड़ा, सराहा और गलतियों को भी समझाया, जिन्हे में भविष्य में सुधारने की कोशिश करूँगा।
नंदन जी नमस्कार,
मेरे लेख को प्रकाशित करने के लिए में आपका जितना भी शुक्रिया अदा करू कम है, मनाली तो हम रात में ही पहुचे थे पर किस तरह ये आपको जल्द ही आगले लेख में बताता हुँ।
अरुण जी
आपने सही कहा परिवार के साथ यात्रा करने पर पूर्ण रूप से सन्तुष्टी का अनुभव होता है, पर ये तो अपना-अपना नजरिया होता है कुछ लोगो को स्वतंत्रता पसंद होती है तो कुछ को परिवार के साथ की पावंदी। हमारे साथ सफ़र में शामिल होने के लिए आपका धन्यवाद।
laddha jee,
प्राकृतिक फ़ोटो चलती गाड़ी में शीशे के अंदर से खीचे थे इसीलिए अच्छे नहीं आये है आगे से कोशिश करेंगे के फ़ोटो सही प्रकार से ले सके। सुझाव के लिए धन्यवाद।
अशोक जी / अवतार जी ,
मेरा उत्साह वर्धन करने के लिए आपका धन्यवाद , अवतार जी की लेखन शैली का तो में मुरीद हुँ, अगर कभी उसका १ % भी लिख सका तो शायद में तो खुद को लेखक ही घोषित कर दूंगा। आपकी टिप्पड़ी के लिए एक बार फिर से धन्यवाद।
जीतेन्द्र जी,
हर कमेंट के निचे एक ‘reply’ का ऑप्शन होता है आप वहीं क्लिक करके अपना रिप्लाई लिख सकते हैं। ऐसा करने से आपका रिप्लाई कमेंट के निचे ही (सही जगह पर) आ जायेगा।
हैलो जीतेन्द्र जी,
सर्वप्रथम आपको पहली पोस्ट के प्रकाशन पर बधाई और आगे की पोस्ट के लिए शुभकामनाएँ…..
यह जानकर अच्छा लगा की घुमक्कड़ पर मेरे आलावा अब आप भी आगरा से हो…..
आपकी शुरुआत अच्छी रही ….कुछ कमियां है जैसा की हमारे और लेखक ने ऊपर के टिप्पणी में कहा है ….बस उन्हें सुधारने की जरूरत है…… आपकी यह यात्रा पढ़कर कर मुझे भी अपनी मनाली की यात्रा याद हो आई….उसके बारे में घुमक्कड़ पर मैं पहले ही लिख चुका हूँ…..आप भी देखिये…..
https://www.ghumakkar.com/manali%E2%86%92beautiful-hill-town-of-himachal-pradesh/
ऐसे ही लिखते रहिये…..धन्यवाद…..
रीतेश….आगरा से….
https://www.ghumakkar.com/agra-to-manali-via-noidadelhi-by-car-%E0%A4%8F%E0%A4%95-%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%BE-%E0%A4%B8%E0%A4%AB%E0%A4%BC%E0%A4%B0-%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%80/
नमस्कार रीतेश जी
मैंने आपकी मनाली की पोस्ट पड़ी है, और हमेशा ही इस बात पर गर्व भी करा है की आपने घुमक्कड़.कॉम पर हमारे शहर के नाम रोशन कर रखा है। गलतियों को सुधारने का प्रयत्न करूँगा।
जितेन्द्र उपाध्याय
आगरा से….