à¤à¤• घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ के लिये, घर के दायरे मे सिमट कर रह जाना यदि उसकी अपेकà¥à¤·à¤¾à¤“ं के लिये तिमिर की अवसà¥à¤¥à¤¾ का सूचक है, तो अनायास ही मिला कोई à¤à¤¸à¤¾ निमनà¥à¤¤à¥à¤°à¤£, जो उसके कदम घर की दहलीज़ से खींच बाहर की दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ में ले जाने में सहायक हो, सूरज की वो किरण बन सामने आता है, जो उसके अंत:मन को अपने जगमग पà¥à¤°à¤•ाश से आलोकित कर जाती है | पाà¤à¤µ में चकà¥à¤•र होना, शायद ये मà¥à¤¹à¤¾à¤µà¤°à¤¾ हम जैसे लोगो के लिये ही बना है, जो à¤à¤¸à¥‡ मौको को हाथों-हाथ लेते है | à¤à¤¸à¤¾ ही à¤à¤• अपरिहारà¥à¤¯ संयोग बना जब लैसडाउन मे अपना रिसोरà¥à¤Ÿ चलाने वाले बिषà¥à¤Ÿ परिवार की तरफ़ से हमे उनके सबसे छोटे à¤à¤¾à¤ˆ दिनेश की शादी का निमंतà¥à¤°à¤£ मिला(जिनसे आप à¤à¥€ मेरी कà¥à¤› लैसडाउन की पोसà¥à¤Ÿà¥‹à¤‚ की वजह से परिचित हो)| पारमà¥à¤ªà¤°à¤¿à¤• à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ शादीयों की तरह उनके पà¥à¤°à¥‹à¤—ाम का कई दिनो तक फैला हà¥à¤† होना और नवमà¥à¤¬à¤° के महीने की, शादियों और बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ की पढ़ाई, दोनों के ही नजरिये से महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ उपयोगिता, और फिर शादी की तिथि का काम काजी दिन पर होना! à¤à¤¸à¥‡ अनेक अपरिहारà¥à¤¯ कारक थे, जो हमारी राह में अवरोध बन मà¥à¤¹à¤ बाये सामने खड़े थे | मगर, बिषà¥à¤Ÿ परिवार दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ à¤à¥‡à¤œà¤¾ गया निमंतà¥à¤°à¤£ निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ तौर पर ही, हमारे और उनके सà¥à¤¨à¥‡à¤¹ की अतिरेकता को दरà¥à¤¶à¤¾à¤¨à¥‡ का à¤à¤• परà¥à¤¯à¤¾à¤¯ था जो वासà¥à¤¤à¤µ में à¤à¤¾à¤µ-विà¤à¥‹à¤° ही कर गया | अचà¥à¤›à¤¾ लगता है, यह महसूस करके जब आपके दरà¥à¤¶à¤¾à¤¯à¥‡ पà¥à¤°à¥‡à¤® और à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¤“ं को दूसरी तरफ़ से à¤à¥€ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¤¾à¤¨ मिलता है, जब संबंध वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¤¾à¤¯à¤¿à¤•ता से इतर आतà¥à¤®à¥€à¤¯à¤¤à¤¾ के सà¥à¤¤à¤° पर उतर आते हैं | मगर जैसे इतना ही परà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ नही था, इस निमनà¥à¤¤à¥à¤°à¤£ के चंद रोज़ के à¤à¥€à¤¤à¤° ही मà¥à¤à¥‡ और हमारी घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ी के साथी आदरणीय शà¥à¤°à¥€ पà¥à¤°à¥‡à¤® तà¥à¤¯à¤¾à¤—ी जी को रोजाना ही किसी ना किसी à¤à¤¾à¤ˆ के इतने फ़ोन आये कि हमारे लिये इसे टाल पाना समà¥à¤à¤µ नही रह गया | मगर, वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤°à¤¿à¤•ता à¤à¥€ सामने खड़े होकर मà¥à¤à¤¹ चिड़ा रही थी, तो à¤à¤¸à¥‡ में हमारे और तà¥à¤¯à¤¾à¤—ी जी के परिवार ने आपस में बैठकर यह तय किया कि फिलहाल इस शादी पर दोनों परिवारों से à¤à¤•-à¤à¤• वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ ही चला जाये, बाकी फिर कà¤à¥€ जब मौका लगेगा, देखा जायेगा |
हालंकि दिनेश समवेत समसà¥à¤¤ बिषà¥à¤Ÿ à¤à¤¾à¤‡à¤¯à¥‹à¤‚ का हठपूरà¥à¤£ आगà¥à¤°à¤¹ था कि सबने सपरिवार पहले लैंसडाउन में आना है, मगर à¤à¤¸à¤¾ कर पाना, जब वà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¹à¤°à¤¿à¤•ता के धरातल पर किसी à¤à¥€ तरह से समà¥à¤à¤µ ना हो पाया तो हमने ये निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ किया कि सीधा रूड़की ही जाया जायेगा, जहाठबारात को लैंसडाउन से चलकर पहà¥à¤à¤šà¤¨à¤¾ था | मंगलवार का दिन, तारीख 19 नवमà¥à¤¬à¤°, गà¥à¤¡à¤—ाà¤à¤µ से रूडकी लगà¤à¤— 5 घंटे की डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤¿à¤‚ग तो हो ही जाती है, यदि सीधा अपनी मंजिल पर ही जाना हो ! मगर पशà¥à¤šà¤¿à¤®à¥€ उतà¥à¤¤à¤° पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶, जहाठहमारे तà¥à¤¯à¤¾à¤—ी जी के अपने गाà¤à¤µ से लेकर तमाम नाते-रिशà¥à¤¤à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ के घर हों, और जाने वाले केवल दो विशà¥à¤¦à¥à¤¦ घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़, तो ये सोचना à¤à¥€ वासà¥à¤¤à¤µ में ही बेमानी सा लगने लगता है कि हम अपने घर से लगà¤à¤— सवा दौ सौ किमी दूर महज à¤à¤• शादी में हाजिरी à¤à¤° कर आ जाà¤à¤ | अत: आदरणीय तà¥à¤¯à¤¾à¤—ी जी ने नितानà¥à¤¤ ही निजी और साधारण सी यातà¥à¤°à¤¾ के पथ में कà¥à¤› नये कà¥à¤·à¤¿à¤¤à¤¿à¤œ और जोड़कर, इसे à¤à¤• विसà¥à¤¤à¥ƒà¤¤ आयाम दे दिया | समसà¥à¤¯à¤¾ तो केवल à¤à¤• बार घर छोड़ने à¤à¤° की होती है, इसके बाद तो आप और आसमान में उड़ता à¤à¤• पंछी, दोनों ही अपने अपने गगन में मà¥à¤•à¥à¤¤ à¤à¤¾à¤µ से अपने डैनों को लहरा ही सकते हो, खास तौर पर जब आप जानते हैं कि आज तो आप बंधन मà¥à¤•à¥à¤¤ à¤à¥€ हो तो पà¥à¤°à¤«à¥à¤²à¥à¤²à¤¿à¤¤ मन से अपनी गाड़ी कà¤à¥€ और कहीं मोड़ à¤à¥€ सकते हो और रोक à¤à¥€ सकते हो |
तो, कà¥à¤› à¤à¤¸à¤¾ पà¥à¤°à¥‹à¤—à¥à¤°à¤¾à¤® बना कि मà¥à¤à¤¹-अंधेरे ही à¤à¥‹à¤° की बेला मे घर से निकला जायेगा, जिस से सडकों पर अपेकà¥à¤·à¤¾à¤•ृत कम à¤à¥€à¤¢à¤¼-à¤à¤¾à¤¢à¤¼ मिले और अपनी इस यातà¥à¤°à¤¾ में राह में पड़ने वाले कà¥à¤› à¤à¤¸à¥‡ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ को à¤à¥€ शामिल कर लिया जायेगा, यहाठकà¥à¤› पूरà¥à¤µ परिचितों से मà¥à¤²à¤¾à¤•ात होनी अवà¥à¤¶à¥à¤¯à¤®à¥à¤à¤¾à¤µà¥€ है | दोपहर बाद का समय पà¥à¤°à¤•ाजी में तà¥à¤¯à¤¾à¤—ी जी के à¤à¤• à¤à¤¸à¥‡ परिचित के यहाठरà¥à¤• कर बिताने का नियत हà¥à¤†, जिनका कोलà¥à¤¹à¥‚ इस समय ताज़े बनने वाले गà¥à¤¢à¤¼ की महक से सरोबार है | और, उसके बाद का समय हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° के समीप पीरान कलियर में सूफी संत हजरत साबिर अली की दरगाह में सज़दा करने के लिये, तथा फिर उसके बाद दिनेश और उसके परिवार के साथ, कà¤à¤¯à¥à¤•ि उनका à¤à¥€ बरात के साथ गौधूलि की बेला तक ही रà¥à¤‡à¤•ी पहà¥à¤à¤š पाना अपेकà¥à¤·à¤¿à¤¤ था |
सब कà¥à¤› पूरà¥à¤µ नियोजित ढंग से रहा और राह में रà¥à¤•ते रà¥à¤•ते हम दोपहर बाद पà¥à¤°à¤•ाजी जाने वाली सडक पर थे | गंग नहर के साथ-साथ, à¤à¤• à¤à¤¸à¥€ सड़क पर चलना रोमांचक है, जो केवल 8 से 10 फà¥à¤Ÿ ही चौड़ी है और अगर आपके आगे या सामने से कोई à¤à¤¸à¤¾ गनà¥à¤¨à¥‡ से लदा फदा टà¥à¤°à¤¾à¤²à¤¾ या बà¥à¤—à¥à¤—ी वाला मिल जाता है, तो सोचिये उसे पार कर आगे निकल पाना कितना कषà¥à¤Ÿà¤¦à¤¾à¤¯à¥€ होता होगा |  मगर “उदà¥à¤¯à¤®à¥‡à¤¨ हि सिधà¥à¤¯à¤‚ति कारà¥à¤¯à¤¾à¤£à¤¿ न मनोरथै:†के à¤à¤¾à¤µà¤¾à¤¨à¥à¤¸à¤¾à¤° चलते रहिये, आखिरकार कà¤à¥€ तो आपको मौका मिलेगा और आप आगे निकल पाने में सफल हो कर अपने गनà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ की और कà¥à¤› और तीवà¥à¤° गति से बड़ पायेंगे |

गंग नहर के साथ-साथ जाती सà¥à¤¨à¤¸à¤¾à¤¨ सड़क, जिस पर सफ़र आज à¤à¥€ रोमांचक तो है ही

जब आपके आगे गनà¥à¤¨à¥‡ से लदा कोई टà¥à¤°à¤¾à¤²à¤¾ या बà¥à¤—à¥à¤—ी हो, तो आप सिवाय मौका मिलने के अलावा और कà¥à¤¯à¤¾ कर सकते हैं
बहरहाल रफà¥à¤¤à¤¾-रफà¥à¤¤à¤¾ ही सही, आप राह की इन दà¥à¤¶à¥à¤µà¤¾à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से निजात पाते हà¥à¤¯à¥‡ पà¥à¤°à¤•ाजी में उस गाà¤à¤µ तक पहà¥à¤à¤š जाते हो, यहाठपूरा कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° गनà¥à¤¨à¥‡ की खेती से लहलहा रहा है | खेतों में जगह-जगह पर लगे कोलà¥à¤¹à¥‚ इस गनà¥à¤¨à¥‡ के रस से गà¥à¤¡à¤¼ बना रहे हैं, जिससे पूरे आसपास के वातावरण में à¤à¤• अजब सोंधी सी ताजे बनते गà¥à¤¡à¤¼ की महक बिखरी हà¥à¤ˆ है | पà¥à¤°à¤•ाजी के हमारे मेजबान टिंकू के घर चाय-पान से निवृत हो कर हम उनके खेत में लगे कोलà¥à¤¹à¥ पर बनते हà¥à¤ गà¥à¤¡à¤¼ को देखने चल दिये | यहाठमैं आपको ये à¤à¥€ बता दूठकि मà¥à¤œà¤«à¥à¤«à¤°à¤¨à¤—र के आस-पास के इन कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ में इस गà¥à¤¡à¤¼ को मिठाई के नाम से जाना जाता है |

आईये, किसी कोलà¥à¤¹à¥‚ पर चलकर गà¥à¤¡à¤¼ बनाने की पà¥à¤°à¤•िया समà¤à¤¤à¥‡ हैं
तो आइये आपको परत दर परत इस गà¥à¤¡à¤¼ उरà¥à¤«à¤¼ मिठाई के बनने की पà¥à¤°à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ बताते है | सबसे पहले गनà¥à¤¨à¥‡ का वजन किया जाता है, फिर उसे रोलर में डालकर उसका रस निकाला जाता है, जिसे गनà¥à¤¨à¥‡ की पिराई करना कहते हैं | यह रस à¤à¤• बड़ी सी हौद में इकटà¥à¤ ा होता रहता है रहता है जहाठसे à¤à¤• नाली के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ इसे लोहे के बने बड़े-बड़े कड़ाहों में पहà¥à¤à¤šà¤¾à¤¯à¤¾ जाता है | कà¥à¤°à¤®à¤¾à¤—त तरीके से बनी à¤à¤Ÿà¥à¤Ÿà¥€à¤¯à¥‹à¤‚ में, अलग-अलग चरणों में, à¤à¤• के बाद दूसरी और फिर तीसरी कड़ाही में इस रस को उबाला जाता है, और, फिर बीच-बीच में कà¥à¤› रसायन à¤à¥€ इसमें मिलाये जाते हैं, जो वैसे तो उचित पà¥à¤°à¤•िया नही है कà¥à¤¯à¥‚ंकि ये रसायन हमारे शरीर में जा कर विषाकà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ डालते है, परनà¥à¤¤à¥ इनकी वजह से à¤à¤• तो इस गà¥à¤¡à¤¼ के बनने मे लगने वाला समय काफी कम हो जाता है और दूसरा इसका रंग बहà¥à¤¤ अचà¥à¤›à¤¾ निकल कर आता है, जिसकी बाजार में अपेकà¥à¤·à¤¾à¤•ृत अधिक मांग है | आम शहरी गà¥à¤°à¤¾à¤¹à¤• अपने सà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¥à¥à¤¯ से समà¤à¥Œà¤¤à¤¾ करने को तैयार रहता है परनà¥à¤¤à¥ रंग और सà¥à¤µà¤¾à¤¦ से नही! बहरहाल, गà¥à¤¡à¤¼ बनाने की विधि अपेकà¥à¤·à¤¾à¤•ृत आसान है और गाà¤à¤µ के आम किसान और मजदूर इसे आसानी से बना लेते हैं | जिस चीज़ की हमने कमी महसूस की, वो थी ‘ऱाब’ की, जिसे इस समय कोई à¤à¥€ कोलà¥à¤¹à¥‚ नही बना रहा था | बस दो à¤à¤¸à¥€ चीज़े हैं जो आपका धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ विचलित करती हैं, पहला इसे बनाने में काफी अधिक शà¥à¤°à¤® शकà¥à¤¤à¤¿ लगती है, और दूसरा इसे बनाने की पà¥à¤°à¤•िया में साफ़-सफाई का बिलà¥à¤•à¥à¤² खà¥à¤¯à¤¾à¤² नही रखा जाता |

Step B, फिर इस गनà¥à¤¨à¥‡ की पिराई अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ इसका रस निकाला जाता है

step C, फिर इस रस को लोहे के बड़े-बड़े कड़ाहों में चरणबदà¥à¤¦ तरीकों से à¤à¤• निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ सà¥à¤¤à¤° तक उबाला जाता है, इसके साथ ही इसमें कà¥à¤› रसायन à¤à¥€ मिलाà¤à¤‚ जाते हैं

Step D, इस पà¥à¤°à¤•िया का अहम चरण है, इसे à¤à¤• खास रंग तथा कंसिसà¥à¤Ÿà¥‡à¤‚सी तक लाना

Step E फिर इस तैयार गà¥à¤¡à¤¼ को सेट होने के लिये इस तरह से बिछा दिया जाता है

Step F, इस पà¥à¤°à¤•िया का अंतिम मगर महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ चरण, रस निकलने के बाद गनà¥à¤¨à¥‡ के छिलके, जिसे खोई कहते है, सà¥à¤–ाया जाता है, जो फिर कोलà¥à¤¹à¥‚ की à¤à¤Ÿà¥à¤Ÿà¥€ में जलाने के काम आता है
मगर, हमे मानना पड़ेगा, यह हिनà¥à¤¦à¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨à¥€ मिठाई à¤à¤¸à¥‡ ही बनती है और सदियों से हमारे अनेको सांसà¥à¤•ृतिक और धारà¥à¤®à¤¿à¤• उतà¥à¤¸à¤µà¥‹à¤‚ का à¤à¤• आवशà¥à¤¯à¤• ततà¥à¤µ बन, हमारा मà¥à¤à¤¹ मीठा करवाती आ रही है | टिंकू ने हमे बताया कि होली के करीब जब इन गनà¥à¤¨à¥‹ का रस अचà¥à¤›à¥€ तरह से पक जायेगा, तब अपने परिवार और परिचितों के लिये बिना रसायन मिलाये मिठाई और सिरका बनाया जायेगा, और इस दफ़ा वो किसी à¤à¥€ तरह इसे हमारे लिये à¤à¤¿à¤œà¤µà¤¾à¤¨à¥‡ की à¤à¥€ वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ करेगा | वाकई, आज के इस à¤à¥Œà¤¤à¤¿à¤•वादी यà¥à¤— में à¤à¥€ गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥€à¤£ जीवन सरल और निशà¥à¤šà¤² है जबकि हमारा निज सà¥à¤µà¤¾à¤°à¥à¤¥ और वितृषà¥à¤£à¤¾ से à¤à¤°à¤¾ !
घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ के साथियों के लिये हमने इसका à¤à¤• छोटा सा वीडियो à¤à¥€ बनाया है ,जो आप यहाठदेख सकते हैं |
समय की सà¥à¤ˆà¤¯à¤¾à¤‚,  अपनी रफ़तार से आगे सरक रही हैं, अत: रात मे à¤à¤• बार दà¥à¤¬à¤¾à¤°à¤¾ से लौटने का वादा कर, पà¥à¤°à¤•ाजी से विदा लेकर हम रूढ़की की तरफ बढ़ चले | रूढ़की शहर पार करके हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° की तरफ लगà¤à¤— 24 किमी दूर पीरान कलियर गाà¤à¤µ पड़ता है जो यदि हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° की तरफ से आया जाये तो वहाठसे 12 किमी के आसपास है | सब कà¥à¤› ठीक चलते चलते अचानक ही हमारी गाड़ी की अगली खिड़की के पावर विंडो ने काम करना बंद कर दिया | सारे यतà¥à¤¨ करके देख लिये, शीशा बीच में ही अटका पढ़ा था, फौरन रूड़की शहर वापिस लौटकर à¤à¤• कार मैकेनिक को ढूà¤à¤¢à¤¾, जिसने अगले दरवाजे की सारी पैकिंग वगैरह खोल कर, सिदà¥à¤§ किया कि इसका पà¥à¤²à¤— खराब हो गया है, अब ये तो बड़ा और à¤à¤‚à¤à¤Ÿ का काम था, मगर उसने किसी तरह शीशा ऊपर चढ़ा दिया और कनैकà¥à¤¶à¤¨ हटा दिया, जिससे कोई गलती से शीशा नीचे ना कर दे, कà¥à¤¯à¥‚ंकि शीशा à¤à¤• बार नीचे उतर कर ऊपर नही जा पाता | बहरहाल, चलताऊ काम हो गया, मगर इस सब में à¤à¤• महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ घंटा निकल गया | लेकिन अब हम निशà¥à¤šà¤¿à¤‚त होकर अपनी कार कहीं à¤à¥€ खडी कर सकते थे | इस अकसà¥à¤®à¤¾à¤¤ हà¥à¤¯à¥‡ अवरोध की वजह से हमारे पीरान गाà¤à¤µ पहà¥à¤‚चते-पहà¥à¤à¤šà¤¤à¥‡, शाम की धà¥à¤‚धिलका छानी शà¥à¤°à¥‚ हो गयी थी, अब समर समय के साथ à¤à¥€ था, अत: रà¥à¤•ने की जगह सब कà¥à¤› जलà¥à¤¦à¥€ जलà¥à¤¦à¥€ करना था | तमाम तरह के à¤à¤‚à¤à¤¾à¤µà¤¾à¤¤à¥‹à¤‚ से पार पाते हà¥à¤¯à¥‡, आखिरकार गौधूली की  बेला में हम इस गाà¤à¤µ में पहà¥à¤‚चे | बिलà¥à¤•à¥à¤² साधारण सा गाà¤à¤µ है, यूपी के तमाम दूसरे गाà¤à¤µà¥‹à¤‚ की तरह ही, तरकà¥à¤•ी से बिलà¥à¤•à¥à¤² अछूता, गाà¤à¤µ में अंदर की तरफ जाती कचà¥à¤šà¥€-पकà¥à¤•ी सढ़क और दूर तक फैला मिटटी का मैदान | हाà¤, गाà¤à¤µ के पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर पतà¥à¤¥à¤° का बना à¤à¤• बड़ा सा गेट, इस गाà¤à¤µ की कà¥à¤› विलकà¥à¤·à¤£à¤¤à¤¾ की मà¥à¤¨à¤¾à¤¦à¥€ सा करता पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ होता है, मगर इतना समय नही निकाल पाये कि चंद पल रà¥à¤• कर, इस गेट की फोटो उतार पाते, कà¥à¤¯à¥‚ंकि जंग अब घड़ी की सà¥à¤ˆà¤“ं के साथ à¤à¥€ थी, और इधर शाम अब अपना सà¥à¤°à¤®à¤ˆ रूप बदल, कालिमा की तरफ़ बड़ने को अगà¥à¤°à¤¸à¤° थी | अत: फोटो का मोह छोड़ सीधे इमाम साहब की खानकाह में सजदा करने पहà¥à¤‚चे | à¤à¤¸à¥€ रवायत है कि हजरत साबिर अली की दरगाह पर दसà¥à¤¤à¤• देने से पहले इमाम साहब और शाह बाबा की दरगाह पर हाजिरी à¤à¤°à¤¨à¥€ पडती है, और दोनों जगहें à¤à¤• दूसरे से लगà¤à¤— 2 किमी की दूरी पर हैं | पहले हमने यहीं इमाम साहब की दरगाह पर अपना सजदा किया और अपनी मनà¥à¤¨à¤¤ का धागा बाà¤à¤§à¤¾ | बाहर सेहन में कितने ही धागे और अरà¥à¤œà¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ लोग अपनी मनोकामनायों की पूरà¥à¤¤à¥€ हेतॠबाà¤à¤§ गये थे |

अपनी अरà¥à¤œà¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ इस पà¥à¤°à¤•ार से लोग लगा जाते हैं,

हम à¤à¥€ अपनी फरियाद दरà¥à¤œà¤¼ करवाने पहà¥à¤‚चे इस दरगाह में

इमाम साहब की मज़ार पर चादर चड़ा कर दà¥à¤† करते शà¥à¤°à¥€ तà¥à¤¯à¤¾à¤—ी जी

कà¥à¤› नजरें इनायत और रहम की आस में हमने à¤à¥€ अपनी हाज़री à¤à¤°à¥€
“खà¥à¤¸à¤°à¥‹ सोई पीर है, जो जानत पर पीर!
जो पर पीर न जानई, सो काफ़िर-बेपीर!!â€
कई दफा तो अपने देश के हालात देख कर लगता है कि धरà¥à¤® ही सब बà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤¯à¥‹à¤‚ की जढ़ है, पर à¤à¤¸à¥€ जगहों पर आम लोगों की इतनी अपार आसà¥à¤¥à¤¾ देख कर लगता है कि यदि ये à¤à¥€ उनके जीवन में ना हो तो इनका जीवन और à¤à¥€ दà¥à¤°à¥‚ह और दà¥à¤¶à¥à¤µà¤¾à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से à¤à¤¾à¤°à¥€ हो जाये | इसी बहाने, कम से कम किसी अकीदे तथा चमतà¥à¤•ार की डोर से तो बंधे रहते हैं, और इस बात से à¤à¥€ कà¥à¤› संतोष पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर लेते है कि हमने अपनी दà¥à¤ƒà¤– तकलीफें बाबा तक पहà¥à¤‚चा दी हैं, शायद अब तो कà¥à¤› हल निकल ही आयेगा | à¤à¤¸à¥€ आसà¥à¤¥à¤¾ और अपनी पà¥à¤•ार सà¥à¤¨à¥€ जाने का जजà¥à¤¬à¤¾ ही उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ जीने के लिये जरूरी संबल पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करता रहता है | वो, कहते हैं ना कि गम बाà¤à¤Ÿà¤¨à¥‡ से उसका à¤à¤¹à¤¸à¤¾à¤¸ कम हो जाता है, तो बस, फिर कोई दीन-दà¥à¤–ी और मज़लूम जब à¤à¤¸à¥‡ किसी दर पर अपनी अरà¥à¤œà¥€ लगा आता है तो उसके आने वाले दिन इस सà¥à¤–द à¤à¤¹à¤¸à¤¾à¤¸ में कट जाते हैं कि अपने तईं वो जो कर सकता था कर दिया, अब तो डोर उसके हाथ में ही है | अपनी नियति का तो मनà¥à¤·à¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤•ार नही कर सकता मगर उसे बदलने का हर संà¤à¤µ यतà¥à¤¨ तो वो करता ही रहता है | धरà¥à¤® और आसà¥à¤¥à¤¾ की आपनी सीमायें और समसà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ तो हैं, मगर यदि इनके हाथों से इसका आलमà¥à¤¬à¤¨ à¤à¥€ ले लिया जाये, तो निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ ही वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ परिसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹ में आम जन का जीवन और à¤à¥€ जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ दà¥à¤°à¥‚ह और दà¥à¤·à¥à¤•र हो जायेगा |
दरगाह काफी बड़ी और खà¥à¤²à¥€ जगह में बनी है, और हर धरà¥à¤® के मानने वाले, यहाठआपको दिख जाते हैं | दरगाह के परिसर में ही à¤à¤• मदरसा à¤à¥€ चल रहा है | अब यहाठसे निवरà¥à¤¤ हो हमने अपना रà¥à¤– अगले और महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ सà¥à¤¥à¤² हजरत साबिर पाक की दरगाह की तरफ किया |
हजरत साबिर पाक का नाम सà¤à¥€ धरà¥à¤®à¥‹ के मानने वालों के दिलों में अपना à¤à¤• ख़ास मà¥à¤•ाम रखता है | अजमेर के खà¥à¤µà¤¾à¤œà¤¾ की दरगाह के बाद, यह दूसरा à¤à¤¸à¤¾ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ है, यहाठसबसे जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ दरà¥à¤¶à¤¨à¤¾à¤°à¥à¤¥à¥€ आते हैं | साबिर पाक, बाबा फरीद के à¤à¤¾à¤‚जे à¤à¥€ थे और शागिरà¥à¤¦ à¤à¥€ | वैसे तो उनके जलाल के बारे में अनेको-अनेक किसà¥à¤¸à¥‡-कहानियाठसà¥à¤¨à¤¾à¤¨à¥‡ वाले मिल जाते हैं, पर जो मैं आप से साà¤à¤à¤¾ करना चाहता हूà¤, वो उनका नाम साबिर पड़ने से समà¥à¤¬à¤‚धित है | मैंने सà¥à¤¨à¤¾ है कि, बाबा फरीद की बहन हज़ जाने से पहले अपने बेटे को अपने à¤à¤¾à¤ˆ के पास छोड़ गयी | बाबा फरीद ने उस बचà¥à¤šà¥‡ को लंगर के इंतजामात में लगा दिया | बारह सालों के बाद, बहन जब हज से लौट कर आई तो देखा, उसका बेटा सूख कर काà¤à¤Ÿà¤¾ हो चà¥à¤•ा है, उसने इस बारे में बाबा से शिकायत की | बाबा ने उस बचà¥à¤šà¥‡ को बà¥à¤²à¤¾à¤•र पà¥à¤›à¤¾,â€à¤¤à¥‚ने इन बारह सालों में खाना कà¥à¤¯à¥‚ठनही खाया?†उस बचà¥à¤šà¥‡ ने उतà¥à¤¤à¤° दिया, “आपने मà¥à¤à¥‡ लंगर की सेवा-समà¥à¤à¤¾à¤² का काम दिया था, खाने के लिये नही कहा था |†तो फिर इस पेट की à¤à¥‚ख का कà¥à¤¯à¤¾?  बस, जब à¤à¥‚ख, हाल-बेहाल कर देती, तो समीप के जंगल में जा कर कà¥à¤› कंद-मूल ही पेट की जठरागà¥à¤¨à¤¿ को शांत करने का जरिया बन जाते | बाबा फरीद ने उसे अपने अंग लगा कर कहा, तू तो बड़ा साबिर (सहन-शकà¥à¤¤à¤¿ वाला) है और उसे तालीम देनी शà¥à¤°à¥‚ की तबसे उस का नाम साबिर ही हो गया | तालीम के बाद बाबा फरीद से विदा लेकर हजरत साबिर, हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° के समीप कलियर में आ गये और उनके नाम का जलवा दूर दूर तक फ़ैल गया, और उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ मानने वाले कलियर कहलाये जाने लगे | बाबा फरीद के à¤à¤• और मà¥à¤°à¥€à¤¦ हजरत निजामà¥à¤¦à¥à¤¦à¥€à¤¨ औलिया के नाम से मशहूर हà¥à¤¯à¥‡ और उनके मानने वाले आगे चलकर निजामी कहलाये |
साबिर पाक की दरगाह का जलवा, मैं नही जानता कि कà¥à¤¯à¥‚ठऔर कबसे, कà¥à¤› अदृशà¥à¤¯ ताकतों और ऊपरी हà¥à¤µà¤¾à¤¯à¥‹à¤‚ से पीड़ित बीमारों के लिये उमà¥à¤®à¥€à¤¦ की आखरी किरण बन गया | à¤à¥‚त-पà¥à¤°à¥‡à¤¤, जिनà¥à¤¨ और जिनà¥à¤¨à¤¾à¤¤ अपना असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ रखते हैं या नही, सदियों से विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ नकारता आया है, मगर जन मानस आज à¤à¥€ इन पर विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ करता है, कà¥à¤¯à¥‚ंकि कà¥à¤› पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨à¥‹à¤‚ पर विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ à¤à¥€ मौन ही रहता है | और इस जगह, जहाठतक आप की नजर जाती है, दूर-दूर तक à¤à¤¸à¥‡ बीमार अपनी दिमागी कमजोरियों के चलते, रोते-बिलखते, या कà¥à¤› ऊट-पटाà¤à¤— सी हरकतें करते नजर आते हैं | गरीबी, बिमारी और आधà¥à¤¨à¤¿à¤• चिकितà¥à¤¸à¤¾ पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤²à¥€ से निराश लोगो का यहाठडेरा लगा रहता है |
शाम का वो समाठà¤à¤• अजब सा मंजर बयाठकर रहा था, दरगाह की जाली पकड़, लोग साबिर-साबिर करते चीख रहे थे, चिलà¥à¤²à¤¾ रहे थे और उनके विलाप और रूदन से माहौल में à¤à¤• अजीब सी मà¥à¤°à¥à¤¦à¤¨à¥€ सी छायी हà¥à¤¯à¥€ थी | समीप में ही नंगे फरà¥à¤¶ पर ही बैठे, à¤à¤¸à¥‡ मरीजों के परिवार वाले, बेबसी और लाचारी के à¤à¤¾à¤µà¥‹à¤‚ से अपनी कातर आà¤à¤–ों में केवल इतनी इलà¥à¤¤à¤¿à¤œà¤¾ लिये कि पीर साबिर का जलाल उनके दà¥à¤ƒà¤– दूर करेगा | इतना दà¥à¤ƒà¤–, इतनी तकलीफ और बेकसी के मारे लाचार चेहरे,, आप यहाठकोई फोटो नही उतार सकते, कैमरा आपके पास होते हà¥à¤¯à¥‡ à¤à¥€ इतनी बेबस और बिलखती रूहों की बैचैनी और नम आà¤à¤–ों से अपने किसी अज़ीज़ को इस  हालत में देखते उनके परिजनों की वà¥à¤¯à¤¥à¤¿à¤¤ दशा, आपके हाथ जैसे जम जाते हैं, नही इस जगह और à¤à¤¸à¥‡ हालातों की कोई फोटो नही ! बस, हज़रत साबिर पाक की मजार पर यही दà¥à¤† कर चले आये कि इन सब की बैचैन रूहों को करार दे, तसलà¥à¤²à¥€ दे, शानà¥à¤¤à¤¿ दे | साबिर पाक की दरगाह à¤à¤• सूफी दरवेश की है, किसी दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾à¤µà¥€ बादशाह की नही, अत: आपको यहाठकोई आलीशान à¤à¤µà¤¨ नही दिखेगा और ना ही बेहतरीन नकà¥à¤•ाशी वाले à¤à¤°à¥‹à¤–े और मेहराब, कोई छतरी और मीनार à¤à¥€ नही, ये तो बस à¤à¤• खà¥à¤²à¤¾ हà¥à¤† à¤à¤¸à¤¾ दर है, जिसमे रोजाना दीन-दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ से परेशान हजारों लोग, इस खानकाह में अपनी रूहानी शानà¥à¤¤à¤¿ की तलाश में अपने आप या अपने परिवार वालों दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ लाये जाते हैं | इसलिये आपको यहाठहर कदम पर सादगी और पाक़ीजगी का दीदार होता है |

हज़रत साबिर पाक की दरगाह के बाहर लगा बाज़ार

इसी बाज़ार की à¤à¤• दूकान के आगे, कà¥à¤› यहाठका जायका चख लिया जाये
यहाठसे बाहर आते ही आपको अपनी उस मंजिल की तरफ बढ़ना है, जिसके लिये आप घर की चौखट से बाहर निकले थे | वहीं से बात करके पता चला कि बारात रूड़की पहà¥à¤à¤š चà¥à¤•ी है, इसलिये हम à¤à¥€ जलà¥à¤¦à¥€ से हजरत साबिर पाक की खानकाह को नमन कर वहाठसे निकले | नहर के साथ साथ घà¥à¤ªà¥à¤ª अà¤à¤§à¥‡à¤°à¥€ सडक पर लगà¤à¤— 10-12 किमी का सफर, जो UP की क़ानून-वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ के मौजूदा हालातों के मदà¥à¤¦à¥‡à¤¨à¤œà¤° निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ ही बेहद खतरनाक है, मगर ये गà¥à¤£à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤• रूप से आपके काफी समय को बचा देता है | जिस मोड़ से हमे अब गंग नहर के साथ-साथ गà¥à¤œà¤°à¤¨à¤¾ था, वहीं मोड़ पर खड़े लडकों ने हमे आगाह किया इस रासà¥à¤¤à¥‡ को लेने के लिये, लेकिन जब देखा हम जायेंगे तो इसी रासà¥à¤¤à¥‡ से ही, तो उन à¤à¤²à¥‡ मानà¥à¤·à¥‹à¤‚ ने हमे सलाह दी कि à¤à¥ˆà¤¯à¤¾ à¤à¤²à¥‡ कोई हाथ दे या कैसे à¤à¥€ रà¥à¤•ने के लिये ईशारा करे, बस आप रà¥à¤•ना नही | उनकी बात गाà¤à¤ बाà¤à¤§ और आगे के लिये रासà¥à¤¤à¤¾ समठहमने उस राह पर अपनी कार बड़ा दी | सड़क छोटी है, और पूरà¥à¤£ अंधकारमय à¤à¥€, किसी आपदा की सूरत में आप किसी मदद की आशा नही कर सकते à¤à¤²à¥‡ ही आपके सामने से कोई और गाड़ी à¤à¥€ गà¥à¤œà¤° रही हो, कà¥à¤¯à¥‚ंकि जिस मनोसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ के पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ में आप हो, समà¥à¤à¤µà¤¤: दूसरे वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ à¤à¥€ उसी मनोदशा में हों | मगर समय की किफ़ायत और मूलतय: अपने बचपन से à¤à¤¸à¥‡ ही कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° देखते रहने की वजह से हमे इस पथ को चà¥à¤¨à¤¨à¥‡ में कोई संकोच नही हà¥à¤† | मगर रासà¥à¤¤à¤¾ आराम से कटा और à¤à¤¸à¤¾ कà¥à¤› खतरनाक नही लगा कà¥à¤¯à¥‚ंकि उस समय लगà¤à¤— साढ़े आठका समय था और अà¤à¥€ कारें तो कà¥à¤¯à¤¾ बाइक सवार à¤à¥€ इस मारà¥à¤— का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— कर रहे थे | हाà¤, कई जगहों पर सढ़क की हालत खसà¥à¤¤à¤¾ थी, ऊपर से घटाटोप अनà¥à¤§à¤•ार, कार की रौशनी में ही हमने सढ़क पर विचरती कई नील गाय और गीदढ़ तथा लोमड़ी को à¤à¥€ देखा, मगर इतनी हिमà¥à¤®à¤¤ नही जà¥à¤Ÿà¤¾ पाये कि आराम से गाड़ी रोक कर उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ निहार सकें | बस, जब तक मà¥à¤–à¥à¤¯ सड़क यानी कि राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ राजमारà¥à¤— नही मिल गया, राम-राम और साबिर-साबिर à¤à¤œà¤¤à¥‡ रहे !
रूढ़की पहà¥à¤à¤šà¤¤à¥‡-पहà¥à¤à¤šà¤¤à¥‡ ही हमने रासà¥à¤¤à¥‡ में ही दिनेश के सबसे बड़े à¤à¤¾à¤ˆ शिवचरण जी से बात करके, बारात के रà¥à¤•ने की जगह की जानकारी ले ली थी | बस, अगले 15-20 मिनट में हम उस जगह पर पहà¥à¤à¤š गये जहाठबारातियों के रà¥à¤•ने का इंतजाम था | और फिर, अगले आधे घंटे में अपने कपड़े-लतà¥à¤¤à¥‡ बदल कर बारात का हिसà¥à¤¸à¤¾ बन गये | बरसों बाद किसी à¤à¤¸à¥€ बारात का हिसà¥à¤¸à¤¾ बनकर अचà¥à¤›à¤¾ लगा, जिसमे आज à¤à¥€ गायक बैंड के साथ चलते हà¥à¤¯à¥‡ लड़के और लड़की की आवाज बदल–बदल कर गाता है, अनà¥à¤¯à¤¥à¤¾ NCR में तो इनकी जगह à¤à¤¾à¤‚गड़ा पारà¥à¤Ÿà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ ने ले ली है | कà¥à¤¯à¥‚ंकि बारात गढ़वाल से थी तो सà¥à¤µà¤¾à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤• है कि हिंदी और पंजाबी गानों के साथ-साथ कà¥à¤› गढ़वाली तड़का à¤à¥€ हो, सो “बबली तेरो मोबाइल…..†की धà¥à¤¨ पर थिड़कते और लढ़खड़ाते बरातियों के साथ हम à¤à¥€ जब जनवासे में पहà¥à¤‚चे तो बरात के सà¥à¤µà¤¾à¤—त सतà¥à¤•ार से निवृत होते ही हमने दिनेश को उसके जीवन के इस बेहद महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ दिन के लिये अपनी शà¥à¤à¤•ामनाये दी और उसके सà¥à¤–ी और उजà¥à¤œà¤µà¤² दामà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¯ जीवन की मंगल कामनाये करते हà¥à¤¯à¥‡ समसà¥à¤¤ बिषà¥à¤Ÿ परिवार से विदा ली |

और उसे कैसे à¤à¥‚ल सकते हैं, जिसकी वजह से ये यातà¥à¤°à¤¾ हà¥à¤ˆ

हमारी शà¥à¤à¤•ामनाà¤à¤‚, दिनेश को जीवन के à¤à¤• महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ चरण में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ करने पर
अब à¤à¤• बार फिर से रात की नीरवता को चीरते हà¥à¤¯à¥‡ हम सडक पर थे कà¥à¤¯à¥‚ंकि रà¥à¤¡à¤¼à¤•ी से शीघà¥à¤° अति शीघà¥à¤°à¤¤à¤® हमे रात बिताने के लिये, पà¥à¤°à¤•ाजी पहà¥à¤à¤šà¤¨à¤¾ था और फिर वहाठसे पौ फटते ही गà¤à¤—ा किनारे बसे पशà¥à¤šà¤¿à¤®à¥€ उतà¥à¤¤à¤° पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ के गाà¤à¤µà¥‹à¤‚ में से सà¥à¤¬à¤¹ की धà¥à¤à¤§ और कोहरे के सामà¥à¤°à¤¾à¤œà¥à¤¯ में से रासà¥à¤¤à¤¾ बनाते हà¥à¤¯à¥‡ दिलà¥à¤²à¥€ की तरफ़ गमन करना था…. इति


अवतार जी,
आपका लेख घुमक्कड़ी के अतिरिक्त हमारी ग्रामीण पृष्ठभूमी की झलक जैसे कि गुड का बनाने कि प्रक्रिया, खेत-खलिहान में सूखते झाड़-फूस, पक्की किन्तु संकरी सड़के और उनपर दौड़ते भारी-भरकम वाहन आदि का भी अच्छा व्याख्यान करने वाला सुन्दर व् समायोजित वर्णन प्रतीत होता है. वैसे में खुद भी गढ़वाली संस्कृति से ही ताल्लुक रखता हूँ किन्तु इस प्रकार की ग्रामीण शादी में शामिल होने का अभी तक कोई अवसर नही मिला।
उस दिन में स्वयं भी तिलक नगर, दिल्ली में एक भव्य पंजाबी शादी में शामिल हुआ था किन्तु आपके यात्रा वृत्तांत के समक्ष यह भव्यता थोड़ी सूक्ष्म पड़ गयी, आखिरकार हजरत साबिर पाक जी का रहमो-कर्म जो था आपके साथ.
एक और जादुई लेख हेतु धनयवाद।
अरुण
बहुत शुक्रिया अरुण भाई आपकी टिप्पणी के लिये।
मुझे ख़ुशी है कि आप समय निकाल कर मेरी पोस्ट पड़ते भी हो और उस पर हौसला बड़ाने वाली प्रतिकिर्या भी देते हो। इसके लिये आपको बहुत बहुत साधुवाद!
Dear Avtarji,
It took me a long time to read your extensive marriage trip coupled with visiting the rural life and revered places. Long time, because I was too involved in the virtual tour with you. So well written, I believe you can author a series of books on travels. Making of Jaggery (Mithai) in a crude rural style with every minute mechanism is a WOW! I don’t think I could think of writing upon such subjects. The fear and dare driving on Gang-Nahar, Kawariyans road reminded me of similar journey on the route few years back, voluntarily chosen to enjoy the serenity alongwith the canal but never tried again because of obvious reasons. Narrow, bumpy and multiple road breakers soon vanished the thrill and we were left repenting our decision. However, today after reading your post, I bounced back to see the route again soon. Overall, a very matured writing with adequate photographs.
Keep traveling
Ajay
Hi Ajay ji
Thank you very much for all the encouraging words you bestowed on me. You are right that this road is especially laid for the kanwariyas. If one has an ample of time in one’s kitty and little adventures too, then this road provides excellent landscapes all along the whole stretch. On the one hand you have the canal and the another with dense forests of bamboos. Undoubtedly the area has a rich flora and fauna, but at the same time the quality and safety of one’s traveling is a big issue hereu, no denying!
Watching the production of jeggry and getting the opportunity of tasting it on its raw stages is quite an experience really!
I like spending some quality time in villages and small towns because what you loose out in your city life, it has the capacity to return it with enormous valour to you.
Thanx for all your support!
Dear Pahwa Ji
namaskar
You have written a nice post with a great combination of Religious and rural touch. The words which you have picked to write this journey are really in a good compilation . Before a long back i also went there to Visit this great Place of Baba SABIR Sahib Piran kaliyar . You have written a new and different story for further awareness to all concerned Ghumakkars. Usually people likes to visit on popular places but a real Ghumakkar should discover the unexplored places also , like u.
Thanks for nice experience and knowledge sharing.
Parmender
(Ghaziabad, UP )
Thanx a lot Parminder ji.
You are always been so nice through all your comments.
There is one thing i like to know, why kliyar is famous for all the super natural and mental problems. I do hope, you will provide me the precise reason for that.
Thanx again.
बेहद महत्वपूर्ण दिन के लिये शुभकामनाये |
Hi S S Kushwaha ji
आपकी शुभाशीष कामनायों के लिये आपका कोटि-कोटि धन्यवाद !
अवतार जी, आपकी इस घुमक्कड़ी ने वो पाला पड़ती सर्दी में नंगे पाँव ठंडी रेतीली मिट्टी पर कोल्हू की ओर भागता बचपन, तथा जून की तपती दोपहरी में नंगे पाँव लिए तरबूज के खेतों की ओर भागते बचपन की ललक, याद दिला दी. मुद्रारहित, कभी लक्षित कभी अलक्षित यायावरी. जिस प्रकार शिव मानस पूजा में लिखा है : सज्चार: पदयों: प्रदक्षिण विधि: स्तोत्राणी सर्व गिरो | अवतार तुम चाहे शादी में जाओ अथवा दोस्ती-रिश्तेदारी में, तुम्हारा कहीं भी आवागमन एक घुमक्कड़ी है, जो निस्संदेह इस मंच के ग्रंथागार में रखने योग्य है घुमक्कड़ी के इस साधक को मेरे अतीत का सलाम | अवतार और तनावांत (सुशांत) के लेखों को मैं इस तरह से तालिकाबद्ध करता हूँ : अवतार घुमक्कड़ी की रसोई है तथा सुशांत घुमक्कड़ी का रिसाला.
धन्यवाद.
आदरणीय त्रिदेव सर
आपकी एक टीप का महत्व और प्रभाव किसी भी लेख के ऊपर भारी होता है। जिस साफगोई और बेबाकी से आप बात रखते हैं, वो कम से कम मेरे जैसों के लिये तो एक अमूल्य धरोहर है, जो सीखने के लिये असीम सम्भवनायें खोल देती हैं। कुछ लिखना या कुछ पड़ना इतना महत्वपूर्ण नही है जितना उसमे से कुछ पा जाना। यदि किसी रचना का कुछ पढ़ कर, कुछ याद आ जाये तो लिखने वाले और पड़ने वाले, दोनों का मनोरथ सफल है।
आशा करता हूँ आप अपना स्नेहयुक्त वरदहस्त सदैव यूँ ही बनायें रखेंगे… सादर
क्षमा करना, आज बार-बार बिजली भाग रही है इसलिए अधूरी टिप्पणी स्थापित कर दी, बड़े ही उम्दा चित्र, सजीव चित्रण और हां, श्लोक का अर्थ उनके लिए जो न समझ पाए : मेरा चलना फिरना आपकी परिक्रमा है तथा संपूर्ण शब्द स्तोत्र हैं.
आदरणीय त्रिदेव सर
आपका कुछ लिख देना ही किसी पोस्ट को सार्थक बना देता है, कोई रचना, साहित्य हो सकती है, इस पर शायद कोई अचम्भा ना करे पर कोई एक टीप किस तरह से साहित्य हो सकती है उसके लिये आपके लिखे शब्द ही प्रत्यक्ष प्रमाण हैं!
श्लोक तथा उसके भावानुवाद के लिये आभारी हूँ…. सादर
Hi Avtarji,
Surprising and pleasant writeup about gur making – it brought back memories of both the gur making in our village and the taste of home made gur we used to have in the winter months. Team it up with freshly roasted shakar kandi and the old days are back.
Had no idea about Hazrat Sabir Dargah. And that it attracts so many devotees. I have seen such petitions written on paper at Hazrat Nizamuddin’s chilla and Feroz Shah Kotla. I have visited his uncle’s Baba Farid chilla in the forests of Mehrauli.
There is so much to know and to visit – Thanks for the introduction and for sharing!
Hi Nirdesh ji
Preparation of gud at this time of early winter is at full swing in western UP, which is also.the sugar elt of northern India. Moreover the famous Gud Mundi of Hapur is near to it. I know, you already have familiar to all this nut it could be uuseful and informative for any other vivid reader of ‘Ghumakkar’.
Sir, I too was unfamiliar to Kaliyar and.even Hazrat Sabir, untill I went to the place and saw the devotion in the hearts and eyes of the people. It is famous but why only for the illment of supernaturals, why? A mystry too me, still…
But a must place to visit
Thanx for reminding the divine tastes of roasted sweat potatoes in these chilly days.
Sorry, Nirdesh ji, my net connection was disturbing me on laptop, so I wrote the reply on mobile. Now I am watching lots of spelling mistakes, which might be happened because of small size of keypad.
I do hope, you will understand this genuine mistake and pardon me for this. Thanks.
A very different post. Very interesting read. Kuchh hat ke padne ko mila.
preparation of jaggery is indeed very dirty and flies are all around. Once I happened to see this process and could not eat gur for long time.
Hi SS Sir
I know, during these days you are busy with family and celebrating Xmas with extensive traveling etc. But you extract some time for reading and posting your comment
I must really appreciate your love and admiration for Ghumakkari, which is commandable.
I agree, there
Ops!
Soory. net connection ditched me for completing the comment. Sir, you are right by saying that the people responsible for making gud etc. do not care for hygienes. In fact in our country normally we do avoid this factor, although it is related to our health.
People spend lakhs of rupees on marriages and decorations, but if you see how the ‘halwaies’ preparing the food, probably you will not swallow it down easily.
Anyway, SS sir, you spared some time from your busy schedule for reading and making your comment, I am really thankful for this.
जहाँ न जाय रवि , तहाँ जाय कवि। कुछ ऐसा ही हमारे घुमक्कड़ परिवार के प्रिया लेखक अवतार सिंह जी के साथ है। एक साधारण सी यात्रा को विशिष्ट बना देना ही एक लेखक की कृति होती है।
एक अच्छे लेखन के लिए बधाई।
Hi Kamlansh sir,
Really thankful for your comment. It is indeed very true that initially it was just any other traveling, one has to do for fulfilling some social obligations, but by climbing it with the preparation of gud making and visiting Sabir Kaliyar’s dargah, its purpose and scope had widened. Thanx.
Bha ji you proved that how a simple journey/travelling is special for everybody………beautiful defined.i would like to add when v travel in Punjab from Phagwara to Hoshiarpur n Dasuya to Jalandhar v use to find number of Kulhari’s on roadside making gur…..now it shows how important these r.Beside than it there is quoting in Punjab…..Farmer will not give u a piece of sugar cane but may hanover lot of gur in free.Thanks a lot Sir.
Hi Dr. Ghandhi
Yes sir, it was indeed an ordinary travel for a personal reason but adding some small stop overs with in it make this journey purposeful.
Your experiences with the farmers of Punjab are quite appropriate. Basically all the small farmers of India are very generous and meet with an open heart with city people but they can not get the same from the other side.
Thank you for commenting and wish you a very happy and new year.
Dear Mr. Singh – I could read this only now. I was on road most of last two weeks.
The Gang-Nahar was a brilliant drive when it came up initially. Though it was meant for Kanwariays, they decided to not take the offer so it came to our kitty. Over time the road has not been maintained well and now it is in pretty bad condition. The regular NH-58 has seen good times though and it is much better. I went to Lansdowne in Novmember and NH58 till ‘Cheetal Grand’ was pretty good.
Your thoughts about religion echo with me, if not this then probably a lot of misery wont have any outlet of hope and miracle. All said, we all pray that more of us get to get a good meal and a roof over their heads.
Wishing and your loved ones a great year ahead.
Hi Nandan
Thanx a lot for spending some moments on my post for reading it and posting your comment.
I am under the impression that the road of Gang nehar is still used by the kanwariyas during the month of ‘Sawan’. Although in the peak days the administration open the whole NH58 for the kanwariyas and restrict the general traffic on this road. Thus kanwariyaas need not to take that route for their destination as they roam free on NH58 at their will.
I must appreciate your thoughts on religion.
I am sure you must have enjoyed your trip of December end, which we definitely going to read in the coming days.
Wishing you and your loved ones a great year ahead :)
Avtar Ji
This is much more and way beyond the ” Off beat places”. Liked that you wrote about it and wrote so beautifully.
Thanks jaishree ji
You are kind enough for appreciating the post.
प्रिय अवतार सिंह जी,
पता नहीं, आज कितने दिन बाद अचानक घुमक्कड़ साइट पर आ टपका ! निश्चय ही, आपकी ये पोस्ट ही मुझे याद कर रही होगी ! सन् 2004-05 के आस-पास पिरान कलियर शरीफ मेरा भी एक बार जाना हुआ है – उस दिन वहां मेला लगा हुआ था। बहुत भीड़ थी, और बड़े अजीबो-गरीब दृश्य भी देखने को मिले। जैसे एक औरत पर कुछ भूत – प्रेत जैसा कुछ आया हुआ था और वह फर्श पर बाल बिखेरे हुए इस तरह से हिल-डुल रही थी कि बस ! ग्रामीण परिवेश में और भिन्न-भिन्न धर्मावलंबियों द्वारा सजाये गये इस धार्मिक आयोजन को देख कर मैं पूरी तरह से कंफ्यूज़ हो गया था। आज आपका आलेख पढ़ कर (पर अभी पूरा ठीक से नहीं पढ़ा है, दोबारा पढ़ने वाला हूं ) आनन्द आ रहा है। गुड़ बनाने की प्रक्रिया से परिचित हूं, जब भी सर्दियों में सहारनपुर – देहरादून मार्ग पर यात्रा होती है तो बिहारीगढ़ के आस-पास शाम को कोल्हू चलते देखता हूं, मन करता है कि कुछ घंटे रु कर फोटोग्राफी की जाये, पर रुकता कभी नहीं ! एक बार रुक कर पीने के लिये एक ग्लास पानी मांगा था तो वहां मौजूद व्यक्ति एक गंदे से प्लास्टिक के जग में गन्ने का रस ले आया था ! उसका आतिथ्य ग्रहण करूं या अपनी सेहत की चिन्ता करूं – अगेन कंफ्यूज़न !
पहले एक बार ठीक से पढ़ लूं, फिर दोबारा लिखूंगा ! प्रणाम !
Hi Sushant ji
आप से उम्मीद है आप जल्दी-जल्दी आयें और फिर बहुत समय से आपकी कोई पोस्ट भी नहीं आई। आप जानते हीं हैं कि मेरे आलावा भी इस साईट पर ऐसे सैंकड़ो पाठक है जो आप की लेखन शैली के मुरीद हैं।
उम्मीद है जल्द ही आप अपने चाहने वालों के लिये किसी यात्रा संस्मरण को लेकर आयेंगे।
प्रस्तुत पोस्ट में आये क्षेत्र आपके नजदीक के ही हैं, अत: इन जगहों के बारे में आप और अच्छी जानकारी रखते हैं। क्लीयर के अलावा राजस्थान स्थित बालाजी में हनुमान मन्दिर भी ऐसे पीड़ितों के लिये काफी विख्यात है। हिमाचल में भी ऐसे एक स्थान के बारे में मैंने सुना है। विज्ञान और आधुनिक चिकित्सा प्रणाली की पहुंच ना होने के कारण ही शायद आम जन इन जगहों पर अपना ठोर ढूंढता है, मगर कई बार जब साधन सम्पन्न लोग भी ऐसी जगहों पर मिलते हैं तो हम जैसे भी सोचने को मजबूर हो जाते हैं कि शायद कुछ तो ऐसा है जो समय और काल के बोध से परे है।
गुढ़ के बारे में आप का कहना सही है कि इसे बनाने में साफ सफाई का प्रश्न तो विचारणीय है ही।
बिहारी गढ़ की बात करके आपने वहां मिलने वाले पकोड़ों की याद ताजा करवा दी।
आशा है आपका स्नेह जल्दी-जल्दी मिलता रहेगा…… सादर
Mujhe aapka ye aalekh boht accha lga. Main wha se boht baar aa-jaa chuka hu pr aajtak iss nazar se nazaara nhi dekha. Aap mera blog bhi pdh skte h.