हरिद्वार में वैसाखी और मुंडन

इससे पहले की मैं अपना यात्रा वृतांत प्रारम्भ करूँ, आप सभी पाठकों को मेरा सादर नमस्कार।

पिछले कुछ दिनों से एक अति महत्वपूर्ण कार्य करने की हमने सोच रखी थी और वो कार्य था अपनी पुत्री का मुंडन।  दिल्ली वासी होने के नाते कुछ लोगों ने मुंडन कालकाजी मंदिर में करने का विकल्प दिया तो तो कुछ ने कहा की अपने घर के समीप स्थित मलय मंदिर में ही करवा लो।  किन्तु मन में बारम्बार केवल एक ही जगह का नाम आ रहा था और वो था हरिद्वार।

मार्च का महीना मौसम की दृष्टि से थोड़ा अनुकूल लग रहा था किन्तु अगले डेढ़ माह तक कोई मुहूर्त न होने (खरमास चल रहा था) के कारण हमने अपनी योजना को थोड़ा आगे खिसका दिया और यह तय किया की अगले माह 13 अप्रैल (वैसाखी) के दिन हम लोग हरिद्वार के लिए निकलेंगे और 14 अप्रैल (सक्रांति) के दिन मुंडन संस्कार करवा लेंगे। सबकुछ सुनिश्चित कर लेने के पश्चात् अब बारी थी ठहरने की व्यवस्था करने की।  थोड़ा गूगल किया तो एक नवनिर्मित होटल ‘हयात प्लेस’ का पता चला जो की हरिद्वार से लगभग 14 किलोमीटर पहले बहादराबाद नाम की जगह पर स्थित है।  हमने सोचा की अपनी गाडी से जा रहे है तो थोड़ा पहले रुकना ठीक रहेगा और फिर आराम से गाड़ी निकालकर अगले दिन सुबह हरिद्वार चले जायेंगे।  बाकी होटल में किसी भी प्रकार कोई कमी तो नजर नहीं आयी और यह हमें पूर्णतः सुरक्षित भी लगा।  

होटल सुनिश्चित कर लेने के बाद अब बारी थी किसी स्थानीय पंडित जी से बात करने की जो तय समय और स्थान पर हमे मिल जाये और हमारा काम सही ढंग से पूरा कर दे।  एक बार फिर से गूगल की सहायता ली और एक ऐसी वेबसाइट का पता चला जो मात्र 3500 रुपये में हरिद्वार में ही पंडित, पूजा सामग्री और नाई की व्यवस्था करवा देते है। हमें लगा की इससे बेहतर और क्या होगा की सब कुछ हमें रेडीमेड मिल जायेगा और आराम से सारी प्रक्रिया भी पूरी हो जायेगी।  बिना समय गंवाए हमने 501 रुपये वेबसाइट के बताये हुए अकाउंट में ऑनलाइन ट्रांसफर कर दिए और शीघ्र ही हमे हरिद्वार के एक पंडित जी का फ़ोन नंबर व्हाट्सअप के माध्यम से प्राप्त भी हो गया।  दिये गये नंबर पर संपर्क साधने के बाद हमने पंडित जी से 14 अप्रैल को सुबह 10:30 बजे हर की पौढ़ी पर बच्ची के मुंडन संस्कार हेतु मिलने के लिये कहा जो की उन्होंने स्वेच्छा से स्वीकार भी कर लिया।

तो पाठकों 13 अप्रैल, वैशाखी के दिन, सुबह 6:30 बजे हम तीन लोग (पति, पत्नी और सुपुत्री) अपनी विश्वसनीय मारुती स्विफ्ट में सवार होकर निकल पड़े दिल्ली से हरिद्वार की तीन दिवसीय यात्रा पर।  योजना के अनुसार हमे 11 बजे तक या उससे पहले हरिद्वार पहुँच जाना चाहिए था ताकि होटल में चेक इन करने के बाद थोड़ा आराम करके हम लोग शाम को गंगा मैया की आरती में शामिल हो सकते। किन्तु हमे बिलकुल भी यह अनुमान नहीं था की आज तो वैशाखी का पर्व है और लाखों श्रद्धालु लोग स्नान करने के लिए हरिद्वार की तरफ जायेंगे।और फिर सरकारी अवकाश भी तो बहुत सारे पड़ रहे थे इस सप्ताह में जिसका फायदा हर कोई  उठाना चाहता था।  दिल्ली से मेरठ तक हमने बिना किसी रूकावट के अपनी यात्रा तय की और थोड़ी देर ‘चीतल ग्रैंड’ में रूककर नाश्ता भी किया।  तत्पश्चात हम लोग अपनी आगे की यात्रा पर निकल पड़े किन्तु कहानी में अभी पहला ट्विस्ट आना बाकि था।  

तो हुआ यूँ की हम लोग अभी आधी दूरी तय कर चुके थे और लगभग आधा रास्ता अभी बाकी था जो कि अगले 2 घंटे में पूरा हो जाता किन्तु यहाँ तो हाईवे पर भयंकर जाम लगा हुआ था जिसका कारण था अत्यधिक यात्रियों की संख्या, जो सभी पावन स्नान के लिये हरिद्वार की तरफ निकले थे। जहां हम लोग दोपहर 12 बजे तक पहुँचने वाले थे वहां हमें जाम से जूझते हुए दोपहर का 1 बज गया।  धीरे धीरे कछुए की चाल से गाडी चलते हुए लक्सर की तरफ जाने वाले मार्ग पर पहुँच गयी और ट्रैफिक पुलिस ने हमे उसी मार्ग से हरिद्वार जाने की लिए कहा। यहाँ पर हम दुविधा में पड़ गये की हमारा हयात प्लेस होटल तो बहादराबाद मार्ग पर है और यदि हम लक्सर की तरफ से जायेंगे तो हम सीधे हर की पौढ़ी पर पहुंचेंगे, जिसकी वजह से हमे अपनी होटल बुकिंग कैंसिल करवानी पड़ेगी।  खैर हमने और कोई विकल्प न होने की वजह से लक्सर की तरफ गाडी घुमा दी और होटल में फ़ोन करके बोल दिया की रोड डायवर्सन के कारण अब हमारा वहां पहुंचना नामुमकिन है। 

किसी तरह हम लोग लक्सर होते हुये पहुँच गये हरिद्वार, हर की पौढ़ी, किन्तु यहाँ भी ट्रैफिक बहुत ज्यादा था और हम लोग चाहकर भी अपनी गाडी को कहीं रोककर होटल नहीं तलाश पा रहे थे।  हमने ‘यू टर्न’ लेकर अपनी गाडी वापिस दिल्ली वाले मार्ग की तरफ घुमाई और लगभग 3 किलोमीटर चलने के बाद अचानक एक चमत्कार हुआ और हमारे सामने बहुत सारे होटल दिखाई देने लगे।  उन्ही में से एक होटल ‘क्रिस्टल गंगा हाइट्स’ हमे बहुत पसंद आया जो की स्पेसियस होने के साथ ही कार पार्किंग भी उपलब्ध करवा रहा था।  यहाँ पर हमने एक ‘सुईट’ अगले तीन दिनों के लिये बुक किया जिसका टैरिफ (विथ ब्रेकफास्ट)  6000 रूपए पर-डे के हिसाब से तय हुआ।  इस होटल की सबसे अच्छी खासियत यह थी की बिलकुल हाईवे पर स्थित है और होटल के गेट पर ही आपको बैटरी रिक्शा वाले आकर पिक कर लेते है है और हर की पौढ़ी, मनसा देवी या फिर चंडी देवी मंदिर जहाँ भी आप जाना चाहे आपको ले जाते हैं।  इस होटल की एक और ख़ास बात यह है की यहाँ का खाना बेहद लाजवाब है, और होटल स्टाफ भी काफी फ्रेंडली है। इसके अतिरिक्त, हमने यहाँ कुछ जरुरी सामान ‘ब्लिंकिट अप्प’ के माध्यम से भी मंगवाया जो की बड़ी ही आसानी से मात्र दस मिनट में हम तक पहुँच गया।  अब क्यूंकि आधा दिन हरिद्वार पहुँचने में ही बीत गया था इसलिए शाम को गंगा आरती में जाने का हमारा प्लान आज कैंसिल हो गया और हमने होटल में ही आराम किया, फिर शाम को डाइनिंग एरिया में जाकर डिनर किया और वापिस रूम में आकर सो गये।  

होटल ‘क्रिस्टल गंगा हाइट्स’

अगले दिन दिनांक 14  अप्रैल को हमने सुबह जल्दी से सारा काम निबटाया, होटल में ब्रेकफास्ट किया और होटल के गेट से एक बैटरी रिक्शा लेकर पहुँच गए सीधा हर की पौढ़ी जहाँ पर पहले से ही असंख्य श्रद्धालु गंगा मैया में डुबकी लगा रहे थे।  खैर हमारा स्नान वाला तो कोई काम नहीं था और हमे केवल बच्ची का मुंडन ही करवाना था इसलिए यहाँ पहुँच कर पहले तो अपने ऑनलाइन वाले पंडित जी जो फ़ोन किया और उन्हें अपनी लोकेशन बताई, उसके बाद एक फोटोग्राफर भैया से मुंडन की फोटोज लेने के लिये बात की और उसके बाद वहीँ घाट के पास एक ढाबे वाले से जरूरतमंद लोगों को भोजन वितरण करने हेतु अपना आर्डर दे दिया।  सारा काम योजनाबद्ध  तरीके से हो रहा था और कुछ ही समय में पंडित जी भी हमे मिल गये किन्तु उन्होंने हमे दस मिनट वहीँ पर बैठकर प्रतीक्षा करने को कहा क्यूंकि वो किसी और कार्य में व्यस्त थे।  हमे कोई समस्या नहीं थी अतः हमने उनकी प्रतीक्षा करना मुनासिब समझा।  किन्तु अभी कहानी में दूसरा ट्विस्ट आना बाकि था।  धूप से बचने को मैंने एक छाता खरीद लिया था जिसकी ओट में हम तीन लोग अपने ऑनलाइन पंडित जी की गंगा किनारे प्रतीक्षा कर रहे थे किन्तु गर्मी इतनी अधिक लग रही थी की पंद्रह मिनट का वो इंतज़ार भी बड़ा भारी लगने लगा।  खैर हमने अपने ऑनलाइन पंडित जी को फ़ोन किया जो उन्होंने नहीं उठाया फिर मैसेज किया जो उन्होंने नहीं देखा।  मुझे लगा की शायद वो यहीं कहीं आस  पास होंगे इसलिए खुद ही चलकर उन्हें बुला लाता हूँ और अभी थोड़ा सा ही चला था की देखा की हमारे ऑनलाइन पंडितजी किन्ही दो बच्चो वाले परिवार की पूजा पाठ करवाने में व्यस्त थे।  दोनों बच्चों को देखकर लग रहा था की दोनों ही मुंडन हेतु आये हुये थे और उनका कार्यक्रम शुरू हुये थोड़ा ही समय हुआ था जिसमे आराम से एक से डेढ़ घंटे का समय लगने वाला था।  

यह बात मुझे कदापि अच्छी नहीं लगी क्यूंकि एक हफ्ते पहले से ही मैंने पंडित जी को सुबह साढ़े दस बजे के लिये बोल रखा था और हम सही समय पर पहुँच भी गये थे।  जब सारी बात सारा कार्यक्रम पहले से ही तय था तो पंडित जी को हमे इस प्रकार प्रतीक्षा नहीं करवानी चाहिये थी, दिल में यही गुमान लिये मैं वापिस अपनी जगह पर आया और अपनी धर्मपत्नी से कहा की अब हम इस पंडित से मुंडन नहीं करवायेंगे।  बस इतना बोलने की देर था की अगले ही क्षण एक पंडित और एक नाई स्वयं हमारे पास आकर बोले की आइये हम आपका मुंडन कार्य पूर्ण कर देते हैं। मैंने भी अब मन बना लिया था की बिना देर किये अब हमें उनकी सेवा ले लेनी चाहिये।  देखते ही देखते पूजा आरम्भ हो गयी, फोटोग्राफर आ गया और पंडित जी ने दो चार मंत्र बोलकर अपनी दक्षिणा भी ले ली।  नाई महाराज ने भी हाथ की सफाई दिखाते हुए पांच छह मिनट में अपना काम निपटा दिया और हम लोग मात्र 20 – 25  मिनट में अपनी पूजा पाठ संपन्न कर चुके थे।  

मुंडन कार्य

की तभी अपने ऑनलाइन पंडित जी हमे ढूंढते हुये उस स्थान पर पहुँच गये जहाँ हमारी पूजा का कार्यक्रम चल रहा था।  अपने हाथ से ‘कस्टमर’ निकलता देख ऑनलाइन पंडित जी क्रोध से तमतमा रहे थे और उन्होंने हमे यह बोलकर दोषारोपण करना शुरू किया की आप लोग मेरा इंतज़ार किये बिना चले गये और मेरा फ़ोन भी नहीं उठा रहे।  अंततः उनको ठंडा करने के लिए मुझे थोड़ा गर्म होना पड़ा और दो चार शब्दों का आदान-प्रदान होते ही वो वहां से रफूचक्कर हो गये। कहीं न कहीं न उन्हें इस बात का आभास था की गलती उन्ही की थी किन्तु हाथ से दक्षिणा निकलते हुये देखकर वो व्याकुल हो गये।  मामले को ज्यादा तूल न देते हुये हमने भी हंसी ख़ुशी बेटी का मुंडन संस्कार पूर्ण किया और सीधे पहुँच गये ढाबे वाले के पास जहाँ हमने भोजन वितरण हेतु बात कर रखी थी।  इन ढाबे वालो के पास भोजन की कोई कमी नहीं होती और यह लोग पहले से ही खाना बनाकर रख लेते हैं, बस आपको इन्हे धन भुगतान करना है और हाथोंहाथ आपका भोजन वितरित हो जाता है जिसकी व्यवस्था भी यही लोग कर देते है।  और इस प्रकार हमारा आज का दिन भी आधा निकल गया और हम बैटरी रिक्शा लेकर वापिस अपने होटल आ गये।           

भोजन वितरण

अगले दिन दिनांक 15 अप्रैल को हम लोगों ने माँ मनसा देवी मंदिर जाने का तय किया जिसके लिये हम लोग होटल से साढ़े नौ बजे तक निकल गये थे।  योजनाबद्ध तरीके से होटल के गेट से बैटरी रिक्शा लिया और उड़नखटोला टिकट काउंटर पर पहुंचकर मैंने टिकट के लिये लाइन लगायी।  बच्चे के साथ पैदल मार्ग से जाना और वो भी धूप में थोड़ा कठिन लग रहा था इसलिये हमने उड़नखटोला से जाना ही सही समझा। टिकट लेने में मुझे आधा घंटा लग गया और उसके बाद उड़नखटोला लेने के लिए एक घंटा इंतज़ार किया। तत्पश्चात हम लोग माँ मनसा देवी के मंदिर में पहुँच पाये और अच्छे से दर्शन करने के बाद हमने वहां से वापिस अपने होटल में आने का तय किया क्यूंकि बच्ची भी थोड़ा थकने लगी थी और हम भी गर्मी से थोड़ा चिंतिति हो रहे थे।  

माँ मनसा देवी के मंदिर में

उड़नखटोले से नीचे आये, फिर कदमताल करते हुये रिक्शा स्टैंड पर पहुंचे और अंततः एक ऑटो लेकर वापिस अपने होटल में आ गये जहाँ हमने ठीक से आराम और दोपहर का भोजन भी किया।  इन सब प्रक्रियाओं में हमारे तीन दिन कब बीत गये हमे पता ही नहीं चला और अगले दिन दिनांक 16  अप्रैल को प्रातः साढ़े नौ बजे के आस पास हमने अपने होटल से दिल्ली तक की यात्रा शुरू की जिसमे करीब चार घंटे की यात्रा करके हम लोग सकुशल अपने घर पहुँच गये। घर आते ही सबसे पहले ईश्वर का धन्यवाद दिया की हमारी यात्रा सफल और सुरक्षित रही और साथ ही बेटी का मुंडन संस्कार भी ठीक से हो गया। अपने इस छोटे से यात्रा वृतांत को अब मैं यहीं पर पूर्ण करता हूँ और आशा करता हूँ की आप सभी को यह वृतांत पसंद आया होगा।  

जय गंगा मैया।                         

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