बहुत दिन हुए किन्तु कहीं घूमना फिरना नहीं हो पा रहा था, आखिर होता भी कैसे क्यूंकि हमारी पांच माह की बेटी ने हमे पूर्ण रूप से व्यस्त जो कर रखा था और उसके ऊपर दिल्ली की सर्दी। खैर दिल्ली की सर्दी मार्च माह के मध्य आते-आते अपने अंतिम चरण तक पहुँच चुकी थी और अब यह लगने लगा था की शायद हमे अब कहीं छोटी मोटी ट्रिप कर लेनी चाहिए। लेकिन हमारा सबसे पहला संशय अपनी बेटी को लेकर था जो की केवल पांच माह की थी और हमे कोई पूर्वानुमान नहीं था की क्या इतने छोटे बच्चे के साथ कहीं पहाड़ों का सफर किया जा सकता है अथवा नही? अपने इस संशय को जब हमने अपने डॉक्टर के समक्ष रखा तो उन्होंने पूरी गर्मजोशी के साथ हमें यह भरोसा दिलाया की आप आराम से बच्चे के साथ छह-सात घंटे की यात्रा कर सकते है बशर्ते आपके पास कुछ जरुरी दवाइयों की उपलब्धता हो। डॉक्टर से यात्रा की हरी झंडी मिलते ही अब तो यह कन्फर्म हो गया था की हम अगले तीन-चार दिनों के लिए कहीं घूमने जायेंगे ही किन्तु किधर जाना है यह अभी तय करना बाकी था। अंततः सर्वसम्मति से सिद्धबली धाम, लैंसडौन और तारकेश्वर धाम को प्राथमिकता दी गयी और दिनांक 15.03.2023 को हमने (मैं, मेरी पत्नी और बेटी समृद्धि) अपनी विश्वसनीय कार “स्विफ्ट” जो की अभी तीन माह पूर्व ही ली थी से अपनी यात्रा का श्री गणेश किया।
घूमने जाने का उत्साह इतना अधिक था की हमे रात भर नींद नहीं आयी और जैसे तैसे हमने अपनी रात को बिताया, फलस्वरूप प्रातः साढ़े चार बजे ही हम अपनी तैयारियों में लग गए और सब कुछ कर लेने के बाद उपरोक्त तिथि को प्रातः आठ बजे हमने दिल्ली से चलना शुरू किया। यात्रा मार्ग के लिए सर्वप्रथम हम बारापुला से होते हुए दिल्ली मेरठ एक्सप्रेसवे तक पहुंचे और उसके बाद मेरठ के तंग रास्तों से होकर बिजनौर, नजीबाबाद, कीरतपुर आदि होते हुए सीधा पहुंचे कोटद्वार। इस पूरे सफर में हमे साढ़े छह घंटे का समय लगा और अपना पहला पड़ाव हमने कोटद्वार में रखा। कोटद्वार एक छोटा सा शहर है जिसका बाजार काफी लोकप्रिय है। यहाँ आपको हर प्रकार का जरुरत का सामान आसानी से मिल जाता है और रहने के लिए ठीक-ठाक होटल भी उपलब्ध हैं। चूँकि हमे सिद्धबली धाम में दर्शन करने थे इसलिए पहले कोटद्वार में रुकना हमे सही लगा ताकि अगले दिन स्नानादि से निवृत होकर हम प्रातः काल में प्रभु के दर्शन कर सके।

way to Kotdwar
खैर अगले दिन दिनांक 16.03.2023 को हमने अपने होटल सूर्य प्लाजा से चेकआउट किया और तय समय पर हमने सिद्धबली धाम में जाकर दर्शन किये। सिद्धबली धाम कोटद्वार से मात्र एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित है जहाँ से लैंसडौन का पहाड़ी सफर शुरू होता है। यह हनुमान जी का बहुत ही प्रसिद्द मंदिर है जहाँ श्रद्धालुओं का आना जाना हमेशा लगा ही रहता है। इस धाम की लोकप्रियता का अंदाजा आप इस बात से भी लगा सकते हैं की यहाँ भंडारा करवाने के लिए आपको अगले पांच-छह वर्षों तक प्रतीक्षा करनी पड़ती है तब कहीं जाकर आपको एक तिथि मिलेगी जिस दिन आप भंडारा कर सकते है। यहाँ आये दिन किसी न किसी श्रद्धालु के द्वारा भंडारे का आयोजन किया जाता है जिसके कारण सभी को पांच-छह वर्ष के पश्चात् ही भंडारा आयोजन की तिथि मिलती है। कोटद्वार स्थित श्री सिद्धबली धाम हिंदुओं की आस्था का केंद्र है। बजरंग बली जी के इस पौराणिक मंदिर का जिक्र स्कंद पुराण में भी है। श्री सिद्धबली बाबा के दर्शन को देश एवं विदेश से श्रद्धालु यहां उमड़ते हैं और मंदिर में मत्था टेककर मनोकामना मांगते हैं। बाबा अपने भक्तों को कभी निराश नहीं करते। मुराद पूरी होने के बाद श्रद्धालु मंदिर में भंडारा कर भोग लगाते हैं। श्री सिद्धबली धाम की ख्याति देश ही नहीं, बल्कि विदेशों तक है। हर साल लाखों भक्त देश एवं विदेश से धाम पहुंचते हैं। श्री सिद्धबली धाम गुरु गोरखनाथ जी की तपस्या स्थली रही है। कहा जाता है कि हनुमान जी संजीवनी बूटी लेने के लिए इसी रास्ते गए थे।

Shri Siddhabali ke Darshan ke liye jate huye

Shri Siddhabali Dham ke Darshan ke Uprant
सिद्धबली धाम में अच्छे से दर्शन कर लेने के तत्पश्चात अब हमने थोड़ा भंडारा चखने का मन बनाया, वैसे भी नाश्ता तो कुछ किया नहीं था और लैंसडौन पहुँचने में भी अभी काफी समय बाकि था। अतः हमने एक थाली में कुछ पूरियां, सब्जी, हलवा और रायता लिया और एक जगह पर खड़े होकर खाना शुरू किया किन्तु अभी केवल एक पूरी भी नहीं खायी थी की बन्दर महाशय ने झपट्टा मारकर हमारी सभी पूरियां उठा ली और पेड़ पर जाकर आराम से खाने लगे। इस स्थिति में अब क्या किया जा सकता था इसलिए दोबारा भंडारा लेने जाने की अपेक्षा हमने लैंसडौन में जाकर लंच करने का प्लान बनाया और सिद्धबली धाम को प्रणाम करके अपनी आगे की यात्रा प्रारम्भ की।
कोटद्वार से लैंसडौन तक का सफर काफी सुन्दर और मनोरम था जिसकी वजह है वहां के चीड़ के शंकुकार वृक्ष। यह वृक्ष देखने में अत्यंत मनोहारी लगते हैं और जब यह आपको पहाड़ों की ऊँची-ऊँची चोटियों पर दिखे तो दृश्य और भी ज्यादा नेत्राभिराम हो जाता है। लैंसडौन तक पहुँचने को आपको घुमावदार पहाड़ियों से होकर गुजरना पड़ता है जिसका रास्ता भी बहुत ही खूबसूरत है किन्तु अत्यधिक घुमाव होने के कारण आपको हमेशा सजग भी रहना पड़ता है क्यूंकि रास्ता पतला होने के साथ साथ चढ़ाई वाला भी है। हालाँकि डरने वाली कोई बात नहीं है और आप 20-30 की गति से आराम से ड्राइव कर सकते हो ताकि सफर में सुरक्षा और सुंदरता दोनों साथ में बने रहे। लैंसडौन तक पहुँचने में हमे तकरीबन पौने दो घंटे का समय लगा, यधपि हमारा होटल “पीक्स एंड पाइंस” लैंसडौन से छह किलोमीटर पहले ही था। इस होटल की विशेषता यह है की आप घूमने फिरने के बाद यहाँ आराम से पहुँच सकते हो जिसके लिए आपको ज्यादा दूरी भी तय नहीं करनी पड़ती। हमने भी ऐसे ही किया और होटल में चेक इन करने के बाद फ्रेश होकर निकल गए लैंसडौन की तरफ, क्यूंकि अभी दोपहर का लंच भी तो बाकी था जो की हमने लैंसडौन बाजार में ही करने का तय किया था।

Peaks & Pine Resort
रही बात होटल की तो यह हमे काफी साफ़ और सुन्दर लगा, स्टाफ भी बहुत सौम्य था और बालकनी से मिलने वाले व्यू की तो बात ही क्या की जाए, ऐसा लगता था मानो पूरी प्रकृति हमारी बालकनी के ठीक नीचे ही आ गयी थी, खूबसूरत पहाड़, हरे भरे चीड़ के पेड़ और गहरी घाटी, उसके ऊपर हरदम चलती मंद-मंद बयार जो की सोने पर सुहागा प्रतीत हो रही थी ।

View from Hotel Balcony
अपने होटल से हम लोग लैंसडौन के लिए चले और मात्र पंद्रह मिनट में वहां पहुँच गए। यहाँ पर एक छोटा सा बाजार है जिसमे भी आपको जरूरत का सारा सामान मिल जाता है । आर्मी एरिया होने के नाते सुरक्षा और व्यवस्था की कोई कमी नहीं है और स्थानीय लोग भी भले मानस ही हैं। यहीं पर एक गुरुद्वारा भी है जो बाहर से देखने में काफी सुन्दर प्रतीत होता है। रही बात खाने पीने की तो हमने मयूर रेस्टोरेंट में लंच किया जो की ठीक ही था लेकिन इसके गर्मागर्म गुलाब जामुन बेहद लाजवाब थे। या फिर यूँ कहिये की सर्दी के मौसम में हल्की हल्की बारिश के बीच लंच के बाद गर्मागर्म गुलाब जामुन ने समां ही बांध दिया था।

Inner Beauty of Lansdowne

Inner Beauty of Lansdowne
खैर लैंसडौन बाज़ार में लंच के बाद अब हमे जाना था भुल्ला ताल जो की पास में ही था लेकिन बारिश के कारण यह समझ नहीं आ रहा था की हम वहां घूमेंगे कैसे? फिर भी हमने बिना कुछ सोचे समझे अपनी गाड़ी भुल्ला ताल के लिए घुमा दी और पांच मिनट में पहुँच गए अपनी मंजिल तक। बारिश हो रही थी इसलिए ताल में बोटिंग करना संभव नहीं था अतः हमने केवल आस पास की सुंदरता को ही फ़ोन में रिकॉर्ड किया और थोड़ा समय यहाँ बिताने के बाद वापिस अपने होटल पीक्स एंड पाइंस की तरफ चल दिए जहाँ तक पहुँचने में हमे पंद्रह-बीस मिनट का ही समय लगा ।

Glimpse of Bhulla Taal
अब क्यूंकि शाम का वक्त था और हमारे पास कहीं और जाने का कोई प्लान भी नहीं था इसलिए सोचा की चलो समृद्धि को होटल के किड्स एरिया में ले चलते है ताकि यह वहां थोड़ा एन्जॉय कर सके। यहाँ अनगिनत टॉयज के बीच हम खुद को भी एक टॉय ही समझ रहे थे इसलिए थोड़ी देर यहाँ बिताने के बाद हम वापिस अपने रूम में आ गए और रात्रि का भोजन करने के बाद आराम से सो गए।

Baby’s play time
अगले दिन दिनांक 17.03.2023 को हमारा प्लान तारकेश्वर महादेव के दर्शन करने जाने का था इसलिए बिना समय गंवाए हमने सुबह का नाश्ता अपने होटल में किया जिसका चार्जेज हमारे रूम रेंट में ही शामिल था और दस बजे तक अपनी यात्रा को प्रारम्भ किया। लैंसडौन से तारकेश्वर महादेव तक का सफर भी लगभग पौने दो घंटे का ही था और वैसे भी हम थोड़ा धीरे चल रहे थे क्यूंकि पहाड़ों में तेज ड्राइव के कारण उलटी होने के चांस बढ़ जाते हैं। हालाँकि सड़क थोड़ी संकरी थी किन्तु दिक्कत वाली कोई बात नहीं थी, बोलेरो मैक्स और बस भी इन्ही रास्तों से गुजर रहीं थी वो भी बिना किसी आपाधापी के। खैर हम लोग आराम से दोपहर बारह बजे तक तारकेश्वर धाम तक पहुँच गए थे और यहीं पर हमने एक स्थानीय युवक से प्रसाद खरीदा।

Tarkeshwary Mahadev Temple

Tarkeshwar Mahadev Temple Campus
ताड़केश्वर महादेव मंदिर बलूत और देवदार के वनों से घिरा हुआ है जो देखने में बहुत मनोरम लगता है। यहां कई पानी के छोटे छोटे झरने भी बहते हैं। यह मंदिर सिद्ध पीठों में से एक है। यहां आप किसी भी दिन सुबह 8 बजे से 5 बजे तक दर्शन कर सकते हैं। मंदिर परिसर में एक कुंड भी है। मान्यता है कि यह कुंड स्वयं माता लक्ष्मी ने खोदा था। इस कुंड के पवित्र जल का उपयोग शिवलिंग के जलाभिषेक के लिए होता है। जनश्रुति के अनुसार यहां पर सरसों का तेल और शाल के पत्तों का लाना वर्जित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, ताड़कासुर नामक राक्षस ने भगवान शिव से अमरता का वरदान प्राप्त करने के लिए इसी स्थान पर तपस्या की थी। शिवजी से वरदान पाकर ताड़कासुर अत्याचारी हो गया। परेशान होकर देवताओं और ऋषियों से भगवान शिव से प्रार्थना की और ताड़कासुर का अंत करने के लिए कहा। ताड़कसुर का अंत केवल भगवान शिव और माता पार्वती का पुत्र कार्तिकेय कर सकते थे। भगवान शिव के आदेश पर कार्तिकेय ताड़कासुर से युद्ध करने पहुंच जाते हैं। अपना अंत नजदीक जानकर ताड़कासुर भगवान शिव से क्षमा मांगता है। भोलेनाथ असुरराज ताड़कासुर को क्षमा कर देते हैं और वरदान देते हैं कि कलयुग में इस स्थान पर मेरी पूजा तुम्हारे नाम से होगी इसलिए असुरराज ताड़कासुर के नाम से यहां भगवान भोलेनाथ ताड़केश्वर कहलाते हैं।

Way to Tarkeshwar Mahadev Temple

Beautiful Roads
इस स्थान पर बंदरों की अधिकता है जो प्रसाद देखकर आक्रामक तेवर भी अपना लेते है। तारकेश्वर महादेव के दर्शन करने के दौरान अचानक बारिश भी होने लगी थी और ऊपर से बंदरों का आतंक। कितने ही श्रद्धालुओं के हाथ से मंदिर के अंदर घुसकर बंदरों ने प्रसाद का थैला भी छीन लिया था जिसे देखकर महिलाएं और बच्चे काफी भयभीत भी हो रहे थे। हमारे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ और प्रसाद का थैला जो की श्रीमती जी के पास था वो एक बन्दर महाशय की नज़रों में आ गया और उसने एक ऐसी छलांग मारी की श्रीमती जी बेचारी जमीन पर और प्रसाद का थैला बन्दर सहित पेड़ पर। खैर जैसी प्रभु की इच्छा।
आज के दिन और कोई योजना तो थी नहीं इसलिए तारकेश्वर धाम से हम सीधे अपने होटल पीक्स एंड पाइंस में लौट आये जहाँ अपनी बेबी के साथ गार्डन में कुछ फोटोज ली, होटल की तरफ से हमारे लिए आयोजित हाई-टी में शामिल हुए और फिर शाम ढलते ढलते अपने रूम मे आकर थोड़ा आराम किया क्यूंकि रात को अपना सामान भी पैक करना था वापिस दिल्ली जाने के लिए और इस तरह से हम तीनो ने अपनी सिद्धबली धाम और तारकेश्वर धाम की यात्रा को पूर्ण किया। अगले दिन 18.03.2023 को प्रातः नौ बजे हमने होटल में ही नाश्ता करने के पश्चात् अपनी दिल्ली यात्रा का श्री गणेश किया और बारिश व् मेरठ के जाम से जूझते हुए शाम को साढ़े छह बजे तक अपने निवास स्थान में लौट आये, बहुत सी मीठी यादों के साथ।
उत्तराखंड की ख़ूबसूरती में किसी शायर की जुबान में अर्ज किया है की –
जरा ठहरो तो नजर भर देखु,
ज़मीं पे चाँद कहाँ रोज-रोज उतरता है।
अगले यात्रावृतांत तक के लिए सभी घुमक्कड़ सदस्यों को सप्रेम नमस्कार
Read a blog post in Hindi for the first time. I quite enjoyed it. However, honestly, for many words like purvanuman, sanshay, etc., had to ask my mother the meaning
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