शुक्रताल पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर जनपद में गंगातट के निकट स्थित वह तीर्थ स्थल है जहाँ अब से पांच हजार वर्ष से भी पूर्व संत शुक देव जी ने राजा परीक्षित को जीवन-मृत्यु के मोह से मुक्त करते हुए जीते जी मोक्ष की प्राप्ति का ज्ञान दिया था.
महाभारत युद्ध में अभिमन्यू वीरगति को प्राप्त हुए और उनकी पत्नी उत्तरा के गर्भ को नष्ट करने के लिये अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र छोड़ा, परंतु श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र से उत्तरा के प्रार्थना करने पर उसके गर्भ की रक्षा की. उत्तरा के गर्भ में जो शिशु पल रहा था वह परीक्षित था जो आगे चलकर राजा परीक्षित के रूप में विख्यात हुआ. गर्भावस्था में ही प्रभु के दर्शन होने का सौभाग्य मात्र परीक्षित जी को ही बताया जाता है.
एक बार राजा परीक्षित जंगल में शिकार खेलने गये. शिकार की तलाश में घूमते-घूमते वे भूख-प्यास से पीड़ित हो गये. पानी तलाश करते-करते वे शमीक मुनि के आश्रम में पहुँचे जहां पर मुनि समाधिस्थ थे. राजा ने कई बार मुनि से पानी की याचना की, परंतु कोई उत्तर न मिलने पर, राजा ने एक मरे हुए साँप को धनुष की नोंक से उठाकर, शमीक मुनि के गले में डाल दिया, परंतु शमीक मुनि को समाधि में होने के कारण इस घटना का कोई भान ही नहीं हुआ.
शमीक मुनि के पुत्र श्रृंगी ऋषि को जब यह पता लगा तो उन्होंने गुस्से से हाथ में जल लेकर राजा को शाप दे दिया कि जिसने भी मेरे पिता के गले में मरा हुआ साँप डाला है आज से सातवें दिन इसी सांप (तक्षक) के काटने से उसकी मृत्यु हो जायेगी. वह अपने पिता के गले में मरा हुआ सांप पड़ा देखकर जोर- जोर से रोने भी लगे. रोने की आवाज सुनकर शमीक मुनि की समाधि खुली और उन्हें सब समाचार विदित हुए. मुनि ने श्रृंगी से दुःखपूर्वक कहा कि वह हमारे देश का राजा है और समझाया कि राजा के पास सत्ता का बल होता है. राजा उस सत्ता के बल का दुरुपयोग कर सकता है, परंतु ऋषि के पास साधना का बल होता है और ऋषि को साधना के बल का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए. अत: राजा को तुम्हें शाप नहीं देना चाहिए था.
राजा परीक्षित को जब श्राप के बारे में पता लगा तब उन्हें अपनी गलती का भान हुआ. वे अपने पुत्र जनमेजय को राजपाट सौंपकर हस्तिनापुर से शुकताल पहुँच गये. गंगा जी के तट पर वट वृक्ष के नीचे बैठ कर राजा परीक्षित श्रीकृष्ण भगवान का ध्यान करने लगे. वहीं परम तेजस्वी शुकदेव जी प्रकट हुए और अनेक ऋषि-मुनियों के मध्य एक शिला पर आकर बैठ गये. मातृ-शुद्धि(माता के कुल की महानता), पितृ-शुद्धि (पिता के कुल की महानता), द्रव्य-शुद्धि (सम्पत्ति का सदुपयोग) अन्न-शुद्धि और आत्म-शुद्धि (आत्मज्ञान की जिज्ञासा) एवं गुरु कृपा के कारण ही परीक्षित जी भागवत कथा सुनने के अधिकारी हुए. परीक्षित को सात दिनों में मृत्यु का भय था. सप्ताह के सात दिन होते हैं. किसी न किसी दिन हमारी भी मृत्यु निश्चित है. परंतु ये सात वार हमारे जीवन का मार्गदर्शन करते हैं. यदि सकारात्मक रूप से देखें तो हमको इन सात वारों से सुन्दर शिक्षा मिलती है. राजा परीक्षित श्राप मिलते ही मरने की तैयारी करने लगते हैं. इस बीच उन्हें व्यासजी उनकी मुक्ति के लिए श्रीमद्भागवत्कथा सुनाते हैं. व्यास जी उन्हें बताते हैं कि मृत्यु ही इस संसार का एकमात्र सत्य है.
दिल्ली से हरिद्वार या देहरादून जाते समय लगभग १२० किलोमीटर पर आपको मुजफ्फरनगर बाई पास से गुजरना होता है. इस रूट पर मोरना-बिजनोर की सड़क पर चलते हुए कुल २६ किलोमीटर की यात्रा में आप शुक्रताल पहुँच सकते हैं. यहाँ पहुँचने के लिए गूगल मैप्स के भरोसे ना रहें क्यूंकि मैप में शुक्रताल को लोकेट नहीं किया जा सकता. वैसे रास्ता बहुत सरल है और मुज़फ्फरनगर बाई पास से मात्र ३५ मिनट में सुगमतापूर्वक आप शुक्रताल पहुँच सकते हैं. गंगा तट के किनारे बसा यह पौराणिक स्थल पश्चिमी उत्तर प्रदेश का एक विख्यात आस्था का केंद्र है. प्रत्येक वर्ष कार्तिक पूर्णिमा पर यहाँ बड़ा मेला आयोजित होता है जिसमे लाखों की संख्या में लोग गंगा स्नान करते हैं और पौराणिक आयोजनों में भाग लेते हैं.
शुक्रताल में जिस स्थान पर शुक देव जी ने राजा को कथा सुनाई थी, वह अक्षय वट वृक्ष आज भी अपनी विशाल जटाओं को फैलाये खड़ा है. अद्भुत रूप से फैली यह जटाएं श्रद्धालु लोग पूजते हैं और स्वयं के मोक्ष की अपेक्षा में समय-समय पर आयोजित होने वाली भागवत कथाओं के आयोजन में सम्मिलित होते हैं. पूरा परिसर एक तीर्थ के रूप में जाना जाता है जहाँ अन्य प्राचीन मंदिर, धर्मशालायें, समागम स्थल स्थापित हैं. उस समय नदी का प्रवाह निकट ही था परन्तु वर्तमान में इसने अपना रास्ता बदल लिया है और नदी वहां से काफी दूर हो गई है. मंदिर में जाने के लिए काफी सीढ़ियां चढ़कर ऊपर जाना होता है.
शुकदेव जी मंदिर परिसर से थोड़ी दूर पर ही एकादश रूद्र शिव मंदिर स्थित है जिसका निर्माण सन १४०१ में हुआ था. अभी भी मंदिर परिसर में उक्त समय की मूर्तियाँ, भित्तिचित्र तथा संरचना विद्यमान है. कहते हैं कि लाला तुलसीराम जी के पूर्वज रोशनलाल जी जब एकादश रूद्र शिव मंदिर का निर्माण करा रहे थे तब अचानक ही गंगा मैया का प्रवाह मंदिर की ओर हो गया. उस समय भक्त रोशनलाल जी ने गंगा मैया की पूजा अर्चना की तथ उनसे अपना प्रवाह स्थल बदलने की प्रार्थना की. भक्त रोशनलाल जी की विनती सुनकर गंगा मैया ने अपना प्रवाह स्थल बदल लिया. रोशनलाल जी ने श्रद्धापूर्वक शिव मंदिर के साथ गंगा मंदिर का भी निर्माण कराया. उस समय ऐसा प्रतीत हुआ कि मानो गंगा मैया भगवान शिव से मिलने आई थी.
शुक्रताल में विश्व की सबसे बड़ी हनुमान जी की मूर्ति स्थापित होने का भी रिकॉर्ड है जो चरण से मुकुट तक लगभग ६५ फीट १० इंच तथा सतह से ७७ फीट है. सन १९८७ में स्थापित की गई हनुमंधाम परिसर में स्थित इस मूर्ति की एक अन्य विशेषता यह है कि इसके भीतर कागज पर विभिन्न लिपियों में राम नाम लिखे ७०० करोड़ भगवन्नाम समाहित हैं. इसमें प्रयुक्त कागज का कुल वजन १४ टन तथा क्षेत्रफल १००५० घन फुट है जिसे विशेष आवरण में स्थापित करके संजोया गया है. परिसर में इस मूर्ति के आस पास विश्व में पाई जाने वाली वानरों की विभिन्न प्रजातियों की भी मूर्तियाँ स्थापित की गयी हैं. यहाँ स्थित हनुमान जी के मंदिर में दूर-दूर से लोग दर्शनों को आते हैं. समय-समय पर प्रवचनों का भी आयोजन किया जाता है. निकट ही एक परिसर में ३५ फीट की गणेश प्रतिमा की भी स्थापना की गई है.
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आज भी मुजफ्फरनगर से शुक्रताल जाने वाले रास्ते पर कोई विशेष ट्रैफिक नहीं मिलता. इसीलिए सूर्यास्त के बाद इस रास्ते से जाना सुरक्षित नहीं माना जाता. शुक्रताल में भी सूर्यास्त के बाद सन्नाटा छा जाता है. केवन मंदिर के पुजारी, उनके शिष्य तथा कार्यकर्त्ता ही वहां विचरण करते दिख सकते हैं. शुकदेव मंदिर परिसर में गीता प्रेस गोरखपुर का प्रकाशित धार्मिक साहित्य तथा स्मृति चिन्ह व् प्रसाद की कुछ दुकानें है, इसी प्रकार हनुमंधाम में भी यह दुकानें मिल जायेंगी जहाँ से भगवान जी को भोग लगाया जा सकता है तथा यादगार के लिए कुछ खरीददारी की जा सकती है.
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Bahut hi alag or kuchh hat ke jankari mili jiske bare me Hume Aaj kuchh bhi nhi pata tha…. Thanks aisi hi jankariya or bhi layiye
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Can anyone tell me the schedule for shrimadbhagwan Katha in February end in Shukratal.We are willing to visit in February and want to stay for around 8 to 10 days
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Thanks and Regards.
हमे आपकी यह पेज वहुत अच्छा लगा जिसमे शुकताल के बिषय मे सभी जानकारी मिली सहधन्यवाद