शिमला ही चलते हैंI

बातों बातों में बात निकली तो लगा की चलो शिमला ही चलते हैं। वर्ष 2023 के नवम्बर माह में पड़ने वाले लगभग सभी पर्व त्यौहार अब तक पूरे हो चुके थे और यह माह का अंतिम सप्ताह चल रहा था । इसी वर्ष के मार्च माह में हम लोग लैंसडौन की अपनी यात्रा से आये थे तब ही यह तय कर लिया था की यदि ईश्वर की कृपा रही तो वर्षांत तक शिमला या फिर किसी और पर्यटन स्थल पर एक बार फिर से घूमने चलेंगे। दिसम्बर माह के प्रथम सप्ताह में विवाह की दूसरी वर्षगांठ होने के कारण सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया की हम लोग 1 दिसंबर से 4 दिसंबर तक का समय शिमला में बितायेंगे और जितना संभव हो सकेगा उतना शीत ऋतू का आनंद उठाएंगे क्यूंकि शिमला में बर्फ़बारी का लुत्फ़ जनवरी माह के बाद ही मुमकिन होता है।

पर्यटन स्थल के तय हो जाने के तत्पश्चात अब बारी थी अपने रहने और खाने की व्यवस्था करने की । वैसे भी हमारे साथ हमारी एक वर्ष की सुपुत्री भी थी जो की पहली बार ठण्ड के मौसम में किसी ठन्डे प्रदेश में जा रही थी । गूगल बाबा की सहायता से कुछ होटल पर शोध किया गया और अंततः होटल लैंडमार्क को वरीयता दी गयी । यह होटल शिमला के मुख्य प्रवेश स्थान पर स्थित है जो की बिलकुल टनल पर ही है । यदि आपने शिमला भ्रमण किया होगा तो यह तो जानते ही होंगे की शिमला में प्रवेश एक टनल के माध्यम से होता है जिसके दूसरी तरफ पूरा शिमला स्थित है, इसी टनल के ख़तम होते ही हमारा होटल लैंडमार्क बांयी तरफ बना हुआ था । यह होटल काफी बड़ा था जिसमे दो सुविधाएं बहुत कमाल की हमको मिली, पहली यह की हमे कार पार्किंग मिली जो की शिमला में बहुत बड़ी परेशानी की वजह है और दूसरी यह की इस होटल की छत से आप सीधे माल रोड जा सकते हैं। जी हाँ आपको कुछ नहीं करना, केवल अपने रूम से निकलिये, लिफ्ट से होटल की छत पर जाइये और पहुँच जाइये सीधे माल रोड जो आपको सीधे क्राइस्ट चर्च तक लेकर जाती है । इस रास्ते पर ही आपको विभिन्न प्रकार के ब्रांडेड शोरूम्स भी देखने को मिल जायेंगे जहाँ से आप अपने मनपसंद वस्तुओं की शॉपिंग इत्यादि भी कर सकते हैं ।

एक दिसंबर की सुबह साढ़े छह बजे हम तीनो अपनी मारुती स्विफ्ट से निकल चले शिमला की तरफ । दिल्ली में भी उन दिनों बहुत ठण्ड हो रही थी जिसे हमने इग्नोर कर दिया । सुबह का वक़्त था इसलिए ज्यादा भीड़भाड़ नहीं मिली और अगले साढ़े पांच घंटो में हम लोग चंडीगढ़ पहुँच चुके थे । दिल्ली से चलने के बाद पहला ब्रेक हमने चंडीगढ़ में ही लिया था जिसका कारण यह था की हमारी सुपुत्री की निद्रा ख़राब ना हो अन्यथा वो हमेशा शरारत करने के चक्कर में चलती गाड़ी में उधम मचा कर रखती है जिससे की हमारा भी ध्यान बार बार भंग होता रहता है । चंडीगढ़ पहुँचने के बाद हाईवे पर ही हमे एक थोड़ा ठीकठाक सा रेस्टोरेंट दिखाई दिया जहाँ पर एक एक चाय और ग्रिल्ड सैंडविच खाकर हमने थोड़ा सा विश्राम भी किया । यहीं पर वाशरूम भी था जिसका हमने सदुपयोग भी कर लिया और कुछ समय तक ठंडी बयार का आनंद लिया।अब बारी थी अपनी आगे की यात्रा आरम्भ करने की और बिना समय गंवाए हम बढ़ चले अपने गंतव्य स्थान की तरफ । यहाँ से पहाड़ों का सफर भी शुरू हो गया था और हिमाचल प्रदेश के खूबसूरत हाईवे पर गाडी सरपट दौड़ रही थी। रास्ता बेहद चौड़ा था और किसी प्रकार की कोई समस्या प्रतीत नहीं हो रही थी। बहुत बार ऐसा होता है की पहाड़ों पर ड्राइव करते हुए बोरियत होने लगती है किन्तु शिमला के रास्ते में ऐसा कुछ नहीं था क्यूंकि पूरे रास्ते में ही आपको बाज़ार और छोटी मोटी दुकाने देखने को मिल जाएँगी । शिमला पहुँच कर सबसे पहले हमने अपने रूम में चेक इन किया और इत्मीनान के साथ अपना चाय और पकोड़ो का आर्डर दिया। एक तो दिसंबर की सर्दी और उसके ऊपर बाहर हो रही बारिश ने तो समां ही बाँध दिया था जिसमे पकोड़े खाना एकदम बनता है। बेटी के लिए कुछ जरुरी खाद्य पदार्थ दूध वगैरह का प्रबंध होटल स्टाफ ने ही कर दिया था लेकिन जो दिक्कत आ रही थी वो यह की उसको वहां का ‘वेरका ब्रांड’ का दूध पसंद ही नहीं आ रहा था। खैर सही बात यह रही की पास ही में एक चाय की दुकान थी जिसमे अमूल दूध भी मिल जाता था और इस तरह हमारी यह वाली समस्या का निदान हुआ।

एक दिसंबर का दिन हमने दिल्ली से शिमला की यात्रा करने और थोड़ा आराम करने में ही बिता दिया, आख़िरकार सुबह जल्दी उठने की वजह से नींद पूरी नहीं हुयी थी जो अब हमे पूरी करनी थी ताकि अगले दिन के लिए फ्रेश मूड के साथ घूमने फिरने के लिए तैयार रहे । तय कार्यक्रम के अनुसार दो दिसंबर दिन शनिवार को हमने सबसे पहले जाखू टेम्पल जाने का निर्णय लिया क्यूंकि शिमला आकर यदि हनुमान जी के दर्शन नहीं किये तो यात्रा पूर्ण नहीं होती। दोपहर ग्यारह बारह बजे के बीच हम अपने रूम से निकलकर सीधे होटल की लिफ्ट से माल रोड पहुँच गए जहाँ से पैदल चलते हुए पहले तो हमने गुनगुनी धूप का आनंद लिया जिसमे कुछ फोटोग्राफी वगैरह भी की गयी और चलते चलते हम पहुँच गए सीधे रोप-वे काउंटर पर जहाँ से हमने उड़नखटोले की दो टिकट ली जिसका रेट लगभग एक हजार रुपये था जिसमे आपका आना और जाना दोनों शामिल है। दिसंबर माह का पहला सप्ताह होने के कारण पर्यटकों की भीड़ ज्यादा नहीं थी इसलिए हमे अपनी सवारी का ज्यादा देर तक इंतज़ार भी नहीं करना पड़ा और दस पंद्रह मिनट में हम लोग पहुँच गए श्री हनुमान जी के जाखू मंदिर में। इस मंदिर के विषय में मैंने अपने पिछले ब्लॉग में काफी कुछ लिख रखा है इसलिए यहाँ ज्यादा बताने के लिए तो कुछ नहीं है किन्तु इतना जरूर बताना चाहूंगा की यहाँ आने के बाद ह्रदय काफी प्रफुल्लित हो जाता है। मैं यहाँ पहले भी आया था किन्तु श्रीमती और सुपुत्री का आज पहली बार जाखू टेम्पल आना हुआ था अतः उनको भी यहाँ आकर बेहद प्रसन्नता हुयी और हमने बहुत अच्छे से यहाँ हनुमान जी के दर्शन किये। हमेशा की तरह यहाँ भी फोटोग्राफी में हाथ आजमाया गया और कुछेक फोटोज भी ली । मंदिर प्रांगण से ही कुछ छोटा मोटा सामान लिया अपने रिश्तेदारों को उपहार देने हेतु और एक बार फिर से चाय मैग्गी और पकोड़ो का आनंद लिया

इन सब में शाम के चार कब बज गए हमे पता ही नहीं चला और हम वापिस शिमला माल रोड पर चहलकदमी करते हुए हम पहुँच गए वापिस अपने होटल लैंडमार्क जिसके लिए हमे ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी और होटल की छत से लिफ्ट लेकर सीधे अपने रूम के दरवाजे तक आ गए । रात्रि का डिनर हमने होटल में ही किया क्यूंकि ठण्ड में बाहर जाने से अच्छा अपने रूम में बैठकर खाना काफी अच्छा लगता है वो भी तब जब आपका होटल पूर्णतः ब्लोअर से सुसज्जित हो जिसका तापमान आप अपने सुविधानुसार कम ज्यादा भी कर सकते हो।

अगला दिन तीन दिसंबर का था जिसमे हमे ज्यादा कुछ नहीं करना था बस माल रोड में तफरी और थोड़ी बहुत शॉपिंग करनी थी। पिछले दो दिन से हम शिमला में ही थे इसलिए भरपूर आराम कर चुके थे और अब थोड़ा घूमने फिरने का मन हो रहा था। बस फिर क्या था सुबह का नाश्ता होटल में करने के बाद निकल पड़े हम तीनो माल रोड की तरफ जहाँ सबसे पहले बेटी को घुड़सवारी कराई गयी।

घुड़सवारी करना यहाँ इसलिए भी आवश्यक था क्यूंकि वो बहुत दिनों से यूट्यूब पर गुलज़ार साहब द्वारा रचित गीत लकड़ी की काठी, काठी पे घोडा देख रही थी और अब बारी थी उसको इस कल्पना से रूबरू करवाने की। खैर शिमला आने का जो सबसे अच्छा फायदा हुआ वो यह की हमारी एक वर्षीय सुपुत्री ने साक्षात् घोडा और बन्दर को काफी समीप से देख लिया था जिन्हे अभी तक वो केवल कार्टून शोज में ही देखा करती थी। घुड़सवारी के तत्पश्चात वही के एक स्थानीय फोटोग्राफर से हमने अपने कुछ फॅमिली फोटोज क्लिक करवाए और झंडा चौक पर चल रहे एक कार्यक्रम का आनंद लिया। उन दिनों यहाँ रिज रोड पर स्थित झंडा चौक पर कुछ स्टाल्स लगे हुए थे, शायद हिमाचली संस्कृति से सम्बंधित कुछ रंगारंग कार्यक्रम हो रहे थे जिसमे स्थानीय लोग और पर्यटक दोनों ही मिलजुलकर भाग ले रहे थे ।

घूमते फिरते जब थोड़ी थकान लगने लगी तो हमने सोचा की चलो अब थोड़ा पेट पूजा भी कर लेते हैं । पास ही एक फॅमिली रेस्टोरेंट था जिसका नाम मुझे याद नहीं आ रहा किन्तु अम्बिएंस के मामले में वो एक नंबर था। ऐसा लग रहा था की शायद हम किसी फाइव स्टार होटल में बैठे है। खैर लंच में साउथ इंडियन डिश के साथ कोल्ड ड्रिंक ली और कुछ देर तक आराम करने के बाद हम लोग बढ़ चले एक बार फिर से माल रोड की तरफ । अब शिमला आये थे तो थोड़ी बहुत शॉपिंग भी करनी ही थी इसलिए श्रीमती ने अपने लिए एक ब्लेजर, मेरे लिए स्वेटर और मफलर और बेटी के लिए भी कुछ गर्म कपडे व् मौजे खरीद डाले। इस पूरी शॉपिंग की सबसे अच्छी बात यह रही की मुझे कुछ भी भुगतान नहीं करना पड़ा। है न मजे की बात।

शाम का वक़्त हो चला था और अब हम ज्यादा देर बेबी के साथ बाहर नहीं घूम सकते थे क्यूंकि पहाड़ों में शाम को बड़ी ठंडी किन्तु शुद्ध वायु का संचरण होता है जो आपको तन और मन से तरोताजा कर देती है। चलते फिरते हम तीनो वापिस अपने रूम में आ गए और मेरी फरमाइश पर हमने सूप का आर्डर किया क्यूंकि डिनर में अभी बहुत टाइम था और फिर कल वापिस दिल्ली जाने के लिए पैकिंग भी करनी थी। इसी तरह खाते पीते हमने अपना सारा सामान पहले व्यवस्थित किया और उसके बाद पैकिंग की। अगले दिन चार दिसंबर को हमने सुबह नौ बजे होटल में नाश्ता करने के बाद दिल्ली के लिए प्रस्थान किया, बीच हाईवे में मन्नत रेस्टोरेंट में लंच करने और थोड़ा विश्राम करने के बाद रात्रि नौ बजे तक दिल्ली पहुँच भी गए ।

वैसे हम और भी जल्दी दिल्ली आ सकते थे किन्तु बुरारी से आश्रम के बीच भयंकर ट्रैफिक जाम था, शायद उस दिन शादी का मुहूर्त था जिसकी वजह से ग्रैंड ट्रंक रोड पर स्थित सभी बैंक्वैट हॉल्स पूर्णतः भरे हुए थे और हर तरफ बारात और बाराती ही नजर आ रहे थे। इस प्रकार हमारी यह छोटी किन्तु सुन्दर सी शिमला यात्रा का समापन हुआ ।

चलते चलते अल्लामा इक़बाल साब की दो पंक्तिया –

सितारों से आगे जहाँ और भी है, अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं II

अगले यात्रावृतांत के आने तक आप सभी को सादर नमस्कार।

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