मà¥à¤‚बई में कई गà¥à¤«à¤¾à¤à¤ हैं. वीरान गà¥à¤«à¤¾à¤à¤ मà¥à¤à¥‡ आकरà¥à¤·à¤¿à¤¤ à¤à¥€ करतीं थीं और मैं चाहता था कि मैं सारी गà¥à¤«à¤¾à¤à¤ देख लूं. पर वो गà¥à¤«à¤¾à¤à¤ अलग-अलग जगहों पर थीं. उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ à¤à¤• साथ à¤à¤• ही दिन में देखना मेरे लिठअसंà¤à¤µ तो नहीं पर कठिन अवशà¥à¤¯ था. इसीलिठमैंने à¤à¤•-à¤à¤• कर उन गà¥à¤«à¤¾à¤“ं की यातà¥à¤°à¤¾ करने के बारे में सोचा. सबसे पहले मैं “मंडपेशà¥à¤µà¤° गà¥à¤«à¤¾â€ के नाम से पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ गà¥à¤«à¤¾ में गया. यह गà¥à¤«à¤¾ बोरीवली में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है. यहाठजाने के लिठमà¥à¤‚बई लोकल टà¥à¤°à¥‡à¤¨ से “बोरीवली सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ (पशà¥à¤šà¤¿à¤®)†पर उतर कर ऑटो करना सबसे ठीक रहेगा. परनà¥à¤¤à¥ मैं उन दिनों कांदिवली में रहता था, जहाठसे यह गà¥à¤«à¤¾ केवल ४ किलोमीटर की दूरी पर थी. अतः जनवरी २०१६ में à¤à¤• दिन मैं अपनी गाड़ी से वहां गया था. गà¥à¤«à¤¾ सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ विवेकानंद मारà¥à¤— पर ही है और उसके सामने पारà¥à¤•िंग की कोई समसà¥à¤¯à¤¾ à¤à¥€ नहीं हà¥à¤ˆ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि वहां काफी बड़ा खà¥à¤²à¤¾ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ था. आसपास à¤à¤• चरà¥à¤š à¤à¥€ है और सामने ऑटो-रिकà¥à¤¶à¤¾ सà¥à¤Ÿà¥ˆà¤‚ड à¤à¥€ है. कà¤à¥€ यह पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ छोटी पहाड़ियों से घिरा रहा होगा, परनà¥à¤¤à¥ वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ में तो यह महानगर का à¤à¤• हिसà¥à¤¸à¤¾ है.

मंडपेशà¥à¤µà¤° गà¥à¤«à¤¾ का पà¥à¤°à¤¥à¤® दृशà¥à¤¯
गà¥à¤«à¤¾ के ठीक सामने à¤à¤• वृकà¥à¤· है, जिसकी लोग पूजा करते हैं. वृकà¥à¤· के लगà¤à¤— सटे हà¥à¤ ही पतà¥à¤¥à¤° की सीढियां हैं, जिनसे नीचे उतर कर गà¥à¤«à¤¾ में जाया जा सकता है. सामने ही पहली गà¥à¤«à¤¾ है, जिसमें चार खमà¥à¤¬à¥‡ लगे हà¥à¤ है और à¤à¤• बड़ा बरामदा à¤à¥€ बना हà¥à¤† है. बरामदे के बाद गà¥à¤«à¤¾ का गरà¥à¤-गृह हैं, जिसमें शिव की पूजा होती है. लगता है कि गà¥à¤«à¤¾ में बने इस बड़े बरामदा (मंडप) और उसमें पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ ित ईशà¥à¤µà¤° के नाम पर ही इस गà¥à¤«à¤¾ का नामकरण हà¥à¤† होगा.

मंडपेशà¥à¤µà¤° गà¥à¤«à¤¾ का मंडप
वैसे तो यहाठके वाशिंदे, इस गà¥à¤«à¤¾ को महाà¤à¤¾à¤°à¤¤-कालीन बताते हैं. लोकोकà¥à¤¤à¤¿ की मानें तो इस गà¥à¤«à¤¾ का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ पांडवों ने अपने वनवास के दौरान यहाठठहरने के लिठकिया था. किमà¥à¤µà¤¦à¤‚ती है कि उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने इतने बड़े गà¥à¤«à¤¾ का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ à¤à¤•-ही रात में पूरा कर लिया था. परंनà¥à¤¤à¥ पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤¤à¥à¤µà¤µà¥‡à¤¤à¥à¤¤à¤¾ इसे आज से १५०० वरà¥à¤·-पूरà¥à¤µ (राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤•ूट अथवा गà¥à¤ªà¥à¤¤-काल) का बताते हैं. इसका अरà¥à¤¥ यह हà¥à¤† कि यह गà¥à¤«à¤¾ कानà¥à¤¹à¥‡à¤°à¥€ की गà¥à¤«à¤¾à¤“ं के बाद में बनी होगी. यह à¤à¥€ माना जाता है कि कालांतर में यह गà¥à¤«à¤¾ पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• शासक दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ अलग-अलग पà¥à¤°à¤•ार से कारà¥à¤¯ में लायी गयी. उदहारण के तौर पर, जब यह गà¥à¤«à¤¾ बà¥à¤°à¤¿à¤Ÿà¤¿à¤¶ सामà¥à¤°à¤¾à¤œà¥à¤¯ का हिसà¥à¤¸à¤¾ थी, तब यहाठकी बाहरी दीवार पर à¤à¤• कà¥à¤°à¥‰à¤¸ बना दिया गया.

गà¥à¤«à¤¾ की चटà¥à¤Ÿà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ पर बना कà¥à¤°à¥‰à¤¸
चाहे गà¥à¤«à¤¾ बà¥à¤¦à¥à¤§-काल की हो, या गà¥à¤ªà¥à¤¤-काल की, वहां कà¥à¤°à¥‰à¤¸ का होना कà¥à¤°à¤¿à¤¶à¥à¤šà¤¿à¤¯à¤¨ धरà¥à¤®-काल को à¤à¥€ दरà¥à¤¶à¤¾à¤¤à¤¾ है. यही नहीं, गà¥à¤«à¤¾ के उपरी मंजिल पर चटà¥à¤Ÿà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ से बने à¤à¤• चरà¥à¤š के अवशेष à¤à¥€ मौजूद हैं. उपरी मंजिल पर जाने के लिठगà¥à¤«à¤¾ के बाहर से परà¥à¤µà¤¤ पर थोड़ा चल कर ऊपर तक सरलता से पहà¥à¤‚चा जा सकता है. अब यह चरà¥à¤š-अवशेष पोरà¥à¤¤à¥à¤—ीज़ शासन के समय का है या बà¥à¤°à¤¿à¤Ÿà¤¿à¤¶ शासन के समय का, इसके बारे में वहां गà¥à¤«à¤¾ में मौजूदपà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤¤à¥à¤µ-विà¤à¤¾à¤— से तैनात गारà¥à¤¡ मà¥à¤à¥‡ सटीक रूप से नहीं बता पाà¤.

पहाड़ी की ऊपर बने चरà¥à¤š के अवशेष
यह à¤à¥€ कहा जाता है कि जब-जब शासन बदला, तब-तब इस गà¥à¤«à¤¾ का विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ पà¥à¤°à¤•ार से उपयोग किया गया. कà¤à¥€ तो यहाठसैनिकों के टà¥à¤•ड़ियाठनिवास करती थीं, तो कà¤à¥€ शरणारà¥à¤¥à¥€-गण. यह à¤à¥€ समà¤à¤¾ जाता है कि पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• शासन काल में यह गà¥à¤«à¤¾ उजड़ी और फिर नठसिरे से बसी. लोग यह à¤à¥€ मानतें हैं कि विशà¥à¤µ यà¥à¤¦à¥à¤§ के समय à¤à¥€ अंगà¥à¤°à¥‡à¤œ सैनà¥à¤¯-बल यहाठबसा हà¥à¤† था. इनका यह मतलब निकलता है कि मंडपेशà¥à¤µà¤° गà¥à¤«à¤¾à¤à¤‚ हमेशा से लोगों दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ आबादित रहीं हैं. यह गà¥à¤«à¤¾à¤à¤‚ अनà¥à¤¯ गà¥à¤«à¤¾à¤“ं की à¤à¤¾à¤‚ति निरà¥à¤œà¤¨ नहीं रहीं हैं. परनà¥à¤¤à¥ निरंतर लोगों दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ बसे होने के कारण यहाठकी मूरà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ और चितà¥à¤°à¤•ारियों में टूट-फूट à¤à¥€ बहà¥à¤¤ जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ हà¥à¤ˆ. चाहे वह सीढ़ियों में लगा सिंह-मूरà¥à¤¤à¥€ हो, या गरà¥à¤-गृह के सामने लगा नंदी की मूरà¥à¤¤à¥€, उनमें अपà¤à¥à¤°à¤‚श अवशà¥à¤¯ दीखता है. पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ काल में गरà¥à¤-गृह के दà¥à¤µà¤¾à¤° के दोनों तरफ शिव-पारà¥à¤µà¤¤à¥€ की मूरà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤ à¤à¥€ लगी हà¥à¤ˆ थीं, जिनका अब वहां नानो-निशान तक नहीं. सिरà¥à¤« शिव के तà¥à¤°à¤¿à¤¶à¥‚ल का कà¥à¤› à¤à¤¾à¤— बचा हà¥à¤† है, जिससे उसकी पहचान की जाती है.

नंदी की à¤à¤—à¥à¤¨ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾
गरà¥à¤-गृह के अनà¥à¤¦à¤°, धरती पर बीच में, à¤à¤• शिव लिंग सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ है, जिसकी लोग आज मनोयोग से पूजा करते है. शिव रातà¥à¤°à¤¿ के दिन यहाठà¤à¤• बड़ा मेला लगता है. वैसे तो वहां à¤à¤• संगमरमर की गणेश पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾ à¤à¥€ सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ था, परनà¥à¤¤à¥ उसे अधिक पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¤¾ नहीं माना जाता. गरà¥à¤-गृह और मंडप में अतà¥à¤¯à¤§à¤¿à¤• शांति का अनà¥à¤à¤µ होता है. अचà¥à¤›à¥€ वायॠचलती है और वातावरण आज à¤à¥€ सà¥à¤µà¤šà¥à¤› नज़र आता है. मंडप में जल के बहाव के लिठफरà¥à¤¶ के चटà¥à¤Ÿà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ को काट कर नालियां à¤à¥€ बनायीं गयीं हैं, जो अà¤à¥€ à¤à¥€ कारà¥à¤¯à¤¶à¥€à¤² हैं.

गरà¥à¤-गृह
जल के à¤à¤£à¥à¤¡à¤¾à¤°à¤£ की जो वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ कानà¥à¤¹à¥‡à¤°à¥€ गà¥à¤«à¤¾à¤“ं में देखने को मिला था, वैसी वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ ही यहाठदेखने को मिली. परà¥à¤µà¤¤à¥€à¤¯ जमीन के नीचे पानी के लिठà¤à¤• à¤à¤£à¥à¤¡à¤¾à¤°à¤£-ककà¥à¤· की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾. कहा जाता है कि इसमें जल कà¤à¥€ समापà¥à¤¤ नहीं होता. इस जल में आज-कल कई छोटे-बड़े कछà¥à¤ à¤à¥€ हैं. कछà¥à¤“ं का जीवन-काल तो बहà¥à¤¤ लमà¥à¤¬à¤¾ होता है. वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ में पर जल-निकासी के लिठमोटर à¤à¥€ लगा हà¥à¤† था. अब यह और बात है कि गà¥à¤«à¤¾ के निरà¥à¤®à¤¾à¤£à¤•रà¥à¤¤à¤¾à¤“ं ने तो कà¤à¥€ à¤à¥€ मोटर से जल निकलने की नीति नहीं बनायीं होगी.
यहाठमà¥à¤–à¥à¤¯ गà¥à¤«à¤¾ के दोनों किनारे पर अनà¥à¤¯ गà¥à¤«à¤¾à¤à¤‚ à¤à¥€ हैं. बायीं तरफ की गà¥à¤«à¤¾ की दीवाल पर मूरà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में अरà¥à¤§à¤¨à¤¾à¤°à¥€à¤¶à¥à¤µà¤° की à¤à¤—à¥à¤¨ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾ है. बायीं तरफ ही à¤à¤• हाल-नà¥à¤®à¤¾ गà¥à¤«à¤¾ है. इस गà¥à¤«à¤¾ के हाल को देख कर यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ काल में यहाठबैठकर लोग शिकà¥à¤·à¤¾ गà¥à¤°à¤¹à¤£ करते होंगे. इस तरफ के खमà¥à¤¬à¥‡ नकà¥à¤•ाशीदार हैं, पर जरà¥à¤œà¤° अवसà¥à¤¥à¤¾ में हैं. वहीठदायीं तरफ की गà¥à¤«à¤¾ बिलकà¥à¤² साधारण है, जिसमें कोई à¤à¥€ अलंकार नहीं हैं. उस तरफ गà¥à¤«à¤¼à¤¾ के दो-तीन कमरे बने हà¥à¤ हैं, जो बड़े निरà¥à¤œà¤¨ पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ होते हैं.

मूरà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के à¤à¤—à¥à¤¨à¤¾à¤µà¤¶à¥‡à¤·
मंडपेशà¥à¤µà¤° गà¥à¤«à¤¾à¤“ं में कà¥à¤› समय बिताने के बाद मैं बाहर आ गया और अपने घर को लौट गया. धीरे-धीरे २०१६ की फ़रवरी आ गयी और मेरा मन पà¥à¤¨à¤ƒ गà¥à¤«à¤¾à¤“ं में जाने के लिठमà¥à¤à¥‡ समà¤à¤¾à¤¨à¥‡ लगा. इस बार मैं मà¥à¤‚बई के अà¤à¤§à¥‡à¤°à¥€ ईलाके में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ “महाकाली गà¥à¤«à¤¾â€ देखना चाहता था. वैसे तो यहाठजाने के लिठअà¤à¤§à¥‡à¤°à¥€ सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ (पशà¥à¤šà¤¿à¤®) तक जाना सबसे अचà¥à¤›à¤¾ होता, पर सà¤à¥€ दिनों की à¤à¤¾à¤‚ति मैंने à¤à¥€ अपनी गाडी से जाना ही ठीक समà¤à¤¾. गà¥à¤«à¤¾ के नजदीक का ईलाका इंडसà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤œ और वà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤¸à¤¾à¤¯à¤¿à¤• पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ ानों से à¤à¤°à¤¾ हà¥à¤† लगता था. गà¥à¤«à¤¾-समूह के बाहर लोहे का गेट लगा हà¥à¤† था और गाडी उस गेट तक जा सकती थी. वहाठसड़क पर ही गाड़ी पारà¥à¤• करनी थी. जैसे ही मैं गेट के अनà¥à¤¦à¤° घà¥à¤¸à¤¾, अपनी बायें हाथ पर मà¥à¤à¥‡ लोहे की कोरà¥à¤°à¥à¤—ेतेड शीट से बना à¤à¤• à¤à¥‹à¤ªà¤¡à¤¼à¤¾ दिखाई दिया, जिसमें पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤¤à¥à¤µ-विà¤à¤¾à¤— दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ तैनात सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾-करà¥à¤®à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का à¤à¤• परिवार रहता था. उस à¤à¥‹à¤ªà¤¡à¤¼à¥‡ के बाहरी दीवाल पर दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤¤à¥à¤µ-विà¤à¤¾à¤— दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ जारी सूचनाà¤à¤ लगी हà¥à¤ˆà¤‚ थीं. किसी à¤à¤• करà¥à¤®à¥€ ने बताया कि विगत वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ में निरà¥à¤œà¤¨ होने की वजह से इस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर कई घटनाà¤à¤ हो गयीं थीं. इसीलिठवहाठपर यह सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾-वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ लगाई गयी थी. उस समय दोपहर का समय हो चà¥à¤•ा था और फरवरी की मीठी धूप खिली हà¥à¤ˆ थी.
महाकाली गà¥à¤«à¤¾à¤à¤ à¤à¤• बड़े-से परà¥à¤µà¤¤ का हिसà¥à¤¸à¤¾ हैं. इस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ का कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°à¤«à¤² à¤à¥€ बहà¥à¤¤ बड़ा है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि सारा परà¥à¤µà¤¤ ही मानव-निरà¥à¤®à¤¿à¤¤ à¤à¤• बाउंडà¥à¤°à¥€ के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ घेर दिया गया है. परà¥à¤µà¤¤ के सामने-वाले हिसà¥à¤¸à¥‡ में चार गà¥à¤«à¤¾à¤à¤ तराशीं गयीं हैं और पीछे वाले हिसà¥à¤¸à¥‡ में पंदà¥à¤°à¤¹ गà¥à¤«à¤¾à¤à¤ हैं. सामने की चारों गà¥à¤«à¤¾à¤“ं के सामने à¤à¤• सपाट सà¥à¤¥à¤² है, जिसमें वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ में à¤à¤• पारà¥à¤• बना दिया गया है. पारà¥à¤• में खड़े हो कर गà¥à¤«à¤¾à¤“ं को निहारने में बहà¥à¤¤ अचà¥à¤›à¤¾ लगता है. दिन के पहले और दूसरे पà¥à¤°à¤¹à¤° में सूरज की किरणें सामने वाली गà¥à¤«à¤¾à¤“ं पर पड़ती हैं, जिससे इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ देखना और à¤à¥€ आसान होता है.

महाकाली गà¥à¤«à¤¾à¤“ं का अगà¥à¤°à¤à¤¾à¤—
कहते हैं कि महाकाली की गà¥à¤«à¤¾à¤à¤ बà¥à¤¦à¥à¤§-काल की हैं और इनका निरà¥à¤®à¤¾à¤£ दूसरी से छठी सदी में किया गया था. अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ ४०० वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ के परिशà¥à¤°à¤® से यह १९ गà¥à¤«à¤¾à¤à¤ तराशी गयीं होंगी. पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤¤à¥à¤µ-विà¤à¤¾à¤— दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ वहाठà¤à¤• शिला-लेख à¤à¥€ लगाया गया था, जिसमें यह लिखा था कि पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨-काल में इस ईलाके में ताजे पानी के कई जलाशय à¤à¥€ थे, जो कालांतर में सूख चà¥à¤•े हैं. वैसे à¤à¥€ अब तो यह गà¥à¤«à¤¾ मà¥à¤‚बई महानगर के à¤à¥€à¤¡à¤¼-à¤à¤¾à¤¡à¤¼ वाले इलाके के बीच बसी à¤à¤• बसà¥à¤¤à¥€ में है. à¤à¤¸à¤¾ लगता है कि उस समà¥à¤ªà¥‚रà¥à¤£ बसà¥à¤¤à¥€ में इसके जैसी खà¥à¤²à¥€ और शांत कोई जगह नहीं, तà¤à¥€ तो वहाठके कई सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ लोग अपना मन बहलाने आया करते हैं. सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾-करà¥à¤®à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की मानें तो सबसे कठिन होता है कॉलेज से आये तरà¥à¤£ यà¥à¤µà¤•-यà¥à¤µà¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का वृनà¥à¤¦, जो इस वीरान कंदराओं में छिप कर बैठने की कोशिश में रहता है. परनà¥à¤¤à¥, मैं जिस दिन वहाठगया था, उस दिन बचà¥à¤šà¥‡ उन गà¥à¤«à¤¾à¤“ं में बैठकर पढाई कर रहे थे. लगता था कि उन दिनों कोई परीकà¥à¤·à¤¾ चल रही थी.

जाली-दार आवरण से आवरित सà¥à¤¤à¥‚प
सामने की गà¥à¤«à¤¾à¤“ं में सीढियां बनी हà¥à¤ˆà¤‚ थीं. खमà¥à¤¬à¥‹à¤‚ से यà¥à¤•à¥à¤¤ बरामदा और फिर गरà¥à¤-गृह. ठीक वैसा की निरà¥à¤®à¤¾à¤£ लग रहा था, जैसा कानà¥à¤¹à¥‡à¤°à¥€ की गà¥à¤«à¤¾à¤“ं में था. परनà¥à¤¤à¥ यहाठकी सबसे विशेष बात गà¥à¤«à¤¾ नंबर ९ में दिखी. यहाठबनाया गया सà¥à¤¤à¥‚प का पà¥à¤°à¤•ार काफी à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ था. वह सà¥à¤¤à¥‚प चटà¥à¤Ÿà¤¾à¤¨ को तराश कर बने à¤à¤• बाहरी आवरण से घेरा हà¥à¤† था. यह बाहरी आवरण करीब ८ इंच का था और इसमें जालियाठà¤à¥€ बनी हà¥à¤ˆà¤‚ थीं. à¤à¤¸à¤¾ बहà¥à¤¤ कम देखने में मिलता है. यह जरूर चैतà¥à¤¯-गà¥à¤«à¤¾ रही होगी. इस गà¥à¤«à¤¾ के बाहरी मंडप की दीवालों में अवलोतिकेशà¥à¤µà¤° तथा बà¥à¤¦à¥à¤§ के जीवन-काल से जà¥à¤¡à¤¼à¥€ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾à¤à¤ थीं, जिनको देखता हà¥à¤† मैं इस गà¥à¤«à¤¾ से निकल कर दूसरी गà¥à¤«à¤¾ में गया, जहाठचार खमà¥à¤¬à¥‹à¤‚ से बना à¤à¤• हाल था. à¤à¤¸à¤¾ पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ होता था कि वह हाल किसी विशेष उतà¥à¤¸à¤µà¥‹à¤‚ या पूजन में काम आता होगा.

महाकाली गà¥à¤«à¤¾ की पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾à¤à¤‚
यहाठà¤à¥€ जल-à¤à¤‚डारण की वही वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ दिखी, जो कानà¥à¤¹à¥‡à¤°à¥€ गà¥à¤«à¤¾à¤“ं में दिखती थी. पर अब मैं तलाश रहा था परà¥à¤µà¤¤ के पीछे के हिसà¥à¤¸à¥‡ में जाने का रासà¥à¤¤à¤¾. इसके लिठमैं पà¥à¤¨à¤ƒ सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾à¤•रà¥à¤®à¥€ के à¤à¥‹à¤ªà¤¡à¤¼à¥‡ पर गया. वहाठमैंने देखा कि à¤à¥‹à¤ªà¤¡à¤¼à¥‡ के पीछे से à¤à¤• रासà¥à¤¤à¤¾ परà¥à¤µà¤¤ के ऊपर जा रहा था. पर पीछे काफी निरà¥à¤œà¤¨ था. जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾à¤¤à¤° लोग बहार की गà¥à¤«à¤¾à¤“ं के देख कर ही लौट जाते हैं. अतः à¤à¤• सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾-करà¥à¤®à¥€ मेरे साथ हो लिया. साथ चल कर हमदोनों परà¥à¤µà¤¤ के बिलकà¥à¤² ऊपर आ गà¤. मà¥à¤à¥‡ बड़ा अजीब लग रहा था कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि अब हम लोग उस परà¥à¤µà¤¤ के ठीक ऊपर चल रहे थे, जिसके नीचे गà¥à¤«à¤¾à¤à¤ कटी हà¥à¤ˆà¤‚ थीं.

पहाड़ी के ठीक ऊपर
परà¥à¤µà¤¤ का शिखर सपाट था, बिलकà¥à¤² छत की तरह. ऊपर से देखने पर वह परà¥à¤µà¤¤ à¤à¤• आयताकार चौकोर था. जिसे देख कर मैंने निरà¥à¤®à¤¾à¤£ करà¥à¤¤à¤¾à¤“ं की बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ को सलाम किया कि १८०० वरà¥à¤· पूरà¥à¤µ कैसे उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने गà¥à¤«à¤¾ काटने के लिठइस परà¥à¤µà¤¤ का चयन किया होगा. हमलोग इस चौकोर शिखर के à¤à¤• सिरे पर चढ़े थे और दà¥à¤¸à¤°à¥‡ सिरे तक गà¤, अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ पूरे परà¥à¤µà¤¤ की लमà¥à¤¬à¤¾à¤ˆ को पार कर हम वहाठपहà¥à¤‚चे, जहाठनीचे उतरने के लिठपरà¥à¤µà¤¤ पर सीढियां कटी हà¥à¤ˆà¤‚ थीं. सावधानी-पूरà¥à¤µà¤• उनसे उतर कर हम लोग पीछे की गà¥à¤«à¤¾à¤“ं के पास पहà¥à¤à¤š गà¤. वहाठबिलकà¥à¤² ही वीरानी थी.

महाकाली गà¥à¤«à¤¾à¤“ं का पीछे का हिसà¥à¤¸à¤¾
पीछे की गà¥à¤«à¤¾à¤“ं में à¤à¤• जैसा-ही निरà¥à¤®à¤¾à¤£ था. à¤à¤¸à¤¾ लगता था कि वह रिहायशी गà¥à¤«à¤¾à¤à¤ थीं, जिनका उपयोग बौदà¥à¤§ à¤à¤¿à¤•à¥à¤·à¥à¤“ं के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ निवास के रूप में किया जाता होगा. सीढ़ियों से हो कर बरामदा और बरामदा से जà¥à¤¡à¤¼à¤¾ निवास का कमरा. उन गà¥à¤«à¤¾à¤“ं में à¤à¤• गà¥à¤«à¤¾ à¤à¤¸à¥€ थी, जिसमें à¤à¤• सà¥à¤¤à¥‚प का चिनà¥à¤¹ कटा हà¥à¤† था, मानो वह उस समय के बौदà¥à¤§-à¤à¤¿à¤•à¥à¤·à¥à¤“ं के पà¥à¤°à¤®à¥à¤– का निवास-सà¥à¤¥à¤² हो. या फिर हीनयान संपà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¯ का पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•. पर वहाठकी हवा में वीरानियत की à¤à¤• ख़ास महक थी. पà¥à¤°à¤•ृति के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ गà¥à¤«à¤¾ के अनà¥à¤¦à¤° à¤à¥€ काफी टूट-फूट हो चà¥à¤•ी थी. वहाठजà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ देर तक ठहरना उचित नहीं लगा और हमलोग वहां से वापस हो लिà¤.

पीछे की गà¥à¤«à¤¾ में बना à¤à¤• सà¥à¤¤à¥‚प
परà¥à¤µà¤¤ के शिखर को पार कर जब हम सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾-ककà¥à¤· की तरफ लौट रहे थे, तो मेरे मन में à¤à¤• ही सवाल गूà¤à¤œ रहा था कि इन गà¥à¤«à¤¾à¤“ं का नाम “महाकाली†कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ पड़ा, जबकि किसी à¤à¥€ हिनà¥à¤¦à¥‚ देवी-देवताओं की कोई à¤à¥€ मूरà¥à¤¤à¤¿ अथवा चिनà¥à¤¹ नहीं उन गà¥à¤«à¤¾à¤“ं में मौजूद नहीं था. मेरे इस पà¥à¤°à¤•ार पूछने पर, मेरे जिजà¥à¤žà¤¾à¤¸à¤¾ को शांत करने हेतà¥, उस सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾-करà¥à¤®à¥€ ने उस मंदिर में जाने का मारà¥à¤— बताया, जिसकी वजह से “महाकाली†नाम दिया गया था.
पर मà¥à¤‚बई के महाकाली गà¥à¤«à¤¾ का नाम “महाकाली†कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ पड़ा, मेरी यह जिजà¥à¤žà¤¾à¤¸à¤¾ अà¤à¥€ शांत नहीं हà¥à¤ˆ थी. उसी जिजà¥à¤žà¤¾à¤¸à¤¾ को शांत करने के लिठवहाठतैनात सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾-करà¥à¤®à¥€ ने अपने à¤à¤• सहयोगी को मेरे साथ कर दिया था ताकि मैं उस पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ मंदिर तक पहà¥à¤à¤š जाऊं, जिसके नाम पर इस गà¥à¤«à¤¾ का नामकरण हà¥à¤† था. मंदिर तक जाने के लिठगà¥à¤«à¤¾-परिसर से बाहर आकर, पूरे परà¥à¤µà¤¤ की परिकà¥à¤°à¤®à¤¾ करके सड़क-मारà¥à¤— से जाना था. पर थोड़ी दूर चलने के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤, उस सहयोगी ने मà¥à¤à¤¸à¥‡ शोरà¥à¤Ÿ-कट मारà¥à¤— से चलने का पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤µ किया. पैदल यातà¥à¤°à¥€ के लिठशोरà¥à¤Ÿ-कट मारà¥à¤— à¤à¤• à¤à¤¸à¤¾ शबà¥à¤¦ है, जिसे सà¥à¤¨ कर ख़à¥à¤¶à¥€ होती है. अतः मैंने उसका पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤µ सà¥à¤µà¥€à¤•ार कर लिया. अब हम दोनों वापस गà¥à¤«à¤¾-परिसर में आ गठऔर परिसर में बनी सीमेंट की बाउंडà¥à¤°à¥€ के बगल-बगल चलने लगे. उसी बाउंडà¥à¤°à¥€ में à¤à¤• निकास-मारà¥à¤— बना हà¥à¤† था. शायद मानसून के महीनों में वरà¥à¤·à¤¾ के जल का बहाव निकालने के लिà¤. निकास-मारà¥à¤— छोटा था और बिना घà¥à¤Ÿà¤¨à¥‡ पर लगà¤à¤— बैठे उसे पार नहीं किया जा सकता था. अपने कपड़ों को गनà¥à¤¦à¤¾ होने से बचाते हà¥à¤ किसी तरह हम दोनों वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ गà¥à¤«à¤¾-परिसर के बाहर निकल गà¤.

शोरà¥à¤Ÿ-कट निकास
पर उस तरफ पहाड़ी का ढलान था और वह पतली-सी पगदंडी कà¥à¤› दूर तक à¤à¤•दम गनà¥à¤¦à¤—ी से à¤à¤°à¥€ हई थी. थोड़ी दूर तक हम पैर दबा कर चलते रहे, फिर पहाड़ी का ढलान आया और पतà¤à¤° के पतà¥à¤¤à¥‹à¤‚ पर चलते हà¥à¤ à¤à¤• मंदिर तक पहà¥à¤à¤š गà¤. यह मंदिर “पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¤¾ महाकाली मंदिर†के नाम से जाना जाता है. कहते हैं कि पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ समय के जंगलों के बीच बने इसी मंदिर के नाम पर इसके नजदीक की गà¥à¤«à¤¾à¤“ं का नाम महाकाली गà¥à¤«à¤¾ पड़ गया. मंदिर में देवी का विगà¥à¤°à¤¹ अनà¥à¤¯ जगहों से à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ है. à¤à¤¸à¤¾ पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ होता है कि विगà¥à¤°à¤¹ के पीछे à¤à¤• सà¥à¤¤à¥‚प बना हà¥à¤† है, जिसे आजकल लाल रंग से रंग दिया गया है.

महाकाली देवी
मंदिर à¤à¥€ अब सीमेंट से जंगलों से घिरा हà¥à¤† है. काफी गलियां हैं घरों से à¤à¤°à¥‡ हà¥à¤. मंदिर का दरà¥à¤¶à¤¨ करने के बाद बसà¥à¤¤à¥€ की उनà¥à¤¹à¥€à¤‚ गलियों से गà¥à¤œà¤°à¤¨à¥‡ के बाद हमलोग पहाड़ी पर फिर चढ़े और महाकाली गà¥à¤«à¤¾ के परिसर में आ गया, जहाठमैंने उन सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾à¤•रà¥à¤®à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को धनà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦ दिया. उस सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾à¤•रà¥à¤®à¥€ ने मà¥à¤à¥‡ यह à¤à¥€ बताया कि मंडपेशà¥à¤µà¤°, महाकाली इतà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿ गà¥à¤«à¤¼à¤¾à¤à¤ किसी उपयà¥à¤•à¥à¤¤ पहाड़ को बाहर से अनà¥à¤¦à¤° की तरफ काट कर बनायीं गयीं हैं, जबकि जोगेशà¥à¤µà¤°à¥€ गà¥à¤«à¤¾ इनसे थोड़ी à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ है. इस तरह फिर से उसने मेरे मन में à¤à¤• और गà¥à¤«à¤¾ देखने की जिजà¥à¤žà¤¾à¤¸à¤¾ बढ़ा दी.
खैर मेरी महाकाली गà¥à¤«à¤¾ देखने की तमनà¥à¤¨à¤¾ पूरी हो चà¥à¤•ी थी. अपनी अगली जिजà¥à¤žà¤¾à¤¸à¤¾ को साथ लिठमैं वह से वापस घर चला आया. इन दोनों गà¥à¤«à¤¾à¤“ं को देखने के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤à¥ मेरी कविता कà¥à¤› यूठआगे बढ़ी:
“पता नहीं कà¥à¤¯à¤¾ ढूंढता रहता हूठमैं
चटà¥à¤Ÿà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ से घिरी इन गà¥à¤«à¤¾à¤“ं में,
कà¥à¤¯à¤¾ ढूंढता हूठफà¥à¤°à¥à¤¸à¤¤ के दो कà¥à¤·à¤£ जो
इनकी शांत नीरवता में ही मिलते हैं
या ढूंढता हूठअपनी आवाज की गूà¤à¤œ
जो निःशबà¥à¤¦ ही मà¥à¤à¥‡ à¤à¤•à¤à¥‹à¤° देती हैंâ€
A very different kind of travel, I must say.
Though it seems that you are on a walking-travel-athon these days, but even to get a thought of visiting caves brings a lot of novelty. Kudos.
I am suspecting that apart from locals (students), these caves are not seeing a lot of visitors. I have never heard about these caves from anyone in Mumbai, though I have visited this city many many times. For about 5 years, my father actually lived there and now I get to go almost once every year, on account of my work. But this is the first time, I am reading about it.
Thank you Uday for bringing these caves nearer to us. Hoping that more people are able to access it, after reading your log.