नवम्बर 2011 कि बात है, अपनी ज्योतिर्लिंग यात्रा के अगले स्थान के रुप में हमने चुना था भिमाशंकर को। विशाल राठोड़ से उस समय फोन पर बहुत लंबी बातें हुआ करती थीं, ऐसे ही एक दिन घुमक्कड़ी पर चर्चा करते हुए मैने विशाल को अपने भिमाशंकर जाने के प्लान के बारे में बताया, चुंकी उस समय तक हम लोगों की मुलाकात नहीं हुई थी और हम दोनों ही कोशिश में थे की परिवार सहित कहीं मिला जाए, मेरे भिमाशंकर जाने की बात सुनते ही विशाल बोला कि यार भिमाशंकर तो हमें भी जाना है क्युं ना भिमाशंकर में ही मुलाकात की जाए और बस उसी समय दिन, दिनांक समय आदी तय करके हम दोनों ने अपने अपने परिवारो सहित ट्रैन मे आरक्षण करवा लिया।
तय कार्यक्रम के तहत मुझे अपने परिवार के साथ इन्दौर से तथा विशाल को मुम्बई से पुणे पहुंचना था और वहां से साथ में भिमाशंकर। हम लोगों को तो यह प्लान बहुत पसंद आया था लेकिन भोले बाबा न तो हमें अपने दर्शन देना चाहते थे और न ही दोनों की मुलाकात होने देना चह्ते थे। हुआ युं की हमारे निकलने वाले दिन से कुछ तीन चार दिन पहले मेरी बहुत जबर्दस्त तबियत खराब हुई, मैनें ये बात विशाल से कही और हम दोनों ने आरक्षण रद्द करवा दिए। बिमारी का आलम ये रहा की जो बैग हमने टूर के लिये तैयार किये थे उन्हें लेकर हमें अस्पताल जाना पड़ा और पूरे दस दिन मुझे अस्पताल में भरती रहना पड़ा।
मार्च २०१२ में मैने फिर भिमाशंकर जाने के लिये इन्दौर से पुणे की इन्डिगो की फ़्लाईट में हम चारों का आरक्षण करवाया, लेकिन इस बार फ़िर हमारा प्लान चौपट हो गया, संस्क्रती की सी.बी.एस.ई. की परीक्षा की तारिखें आगे बढ जाने से हमें फिर आरक्षण कैंसल करवाना पड़ा। अब ये हमारे लिये सोचने का विषय था की आखिर ऐसा भिमाशंकर के केस में ही क्यों हो रहा है? क्यों बार बार ये यात्रा कैंसल हो रही है?
लेकिन आखिर भक्ति भी कहीं हार मानती है? भक्ति के आगे तो भगवान भी झुक जाते हैं। हम भी हार नहीं मानने वाले थे, इस बार अगस्त में फ़िर इन्डिगो की फ़्लाईट का पुणे के लिए रिजर्वेशन करवाया। और इस बार हमें भगवान भिमाशंकर के सफ़लता पुर्वक दर्शनों के अलावा पुणे के दगड़ुशेठ गणेश जी, त्र्यंबकेश्वर तथा साईं बाबा के दर्शन करने का सौभाग्य भी मिला।
मेरा जन्मदिन अगस्त में आता है और इस यात्रा का योग भी अगस्त में ही बन रहा था अत: मैंने सोचा की क्यों न इस बार अपना जन्मदिन बाबा भिमाशंकर के मंदिर में पूजन अभिषेक के साथ ही मनाया जाए, और बस इसी सोच के साथ तारिख भी तय हो गई, मेरा बर्थ डे 8 अगस्त को है अतः 7 अगस्त को इन्दौर से निकालना निश्चित हुआ ताकि आठ को हम भीमाशंकर पहुंच सकें।
श्रावण के महीने में जन्मदिन वाले दिन भगवान भोलेनाथ के दर्शन, भला इससे अच्छी क्या बात हो सकती है? आजकल हम लोगों ने बर्थ डे पर पार्टी वगैरह करना बंद कर दिया है, और कोशिश करते हैं की यह पावन दिन हम किसी मंदिर में पुजा पाठ के साथ मनायें, खैर, रिजर्वेशन वगैरह करवाने के बाद अब उस दिन का इन्तज़ार था जिस दिन हमें यात्रा के लिये निकलना था।
इस यात्रा को लेकर मन में बहुत संशय था, पता नहीं हो पायेगी भी या नहीं, एन टाइम पर कुछ भी लफ़ड़ा हो सकता है, क्योंकि ये यात्रा दो बार पहले कैंसल हो चुकी थी। खैर, वो कहते हैं ना की जहां चाह होती है वहां राह निकल ही आती है, और अन्तत: हमारी यात्रा वाला दिन आ ही गया।
यह मेरी तथा मेरे परिवार की पहली हवाई यात्रा थी अतः एक्साइटमेंट का लेवल बहूत हाई था, सबसे ज्यादा बच्चों में। सात अगस्त को शाम ६.५० पर हमारी फ़्लाइट इन्दौर ऐयरपोर्ट से निकलने वाली थी। दरअसल यह एक कनेक्टिंग फ़्लाइट थी, इन्दौर से नागपुर तथा नागपुर से पुणे, नागपुर एयरपोर्ट पर दो घंटे का विश्राम था और रात लगभग ग्यारह बजे फ़्लाइट पुणे पहुंचने वाली थी।
इंसान की ख्वाइशें हर पल नयी होती रहती है कभी यह चाहिए कभी वह, ऊपर नील गगन में उड़ते उड़नखटोले को देख कर बैठने की इच्छा हर दिल में होनी स्वाभाविक है, सो हम सब के दिल में भी थी …कब दिन आएगा यह बात सोचते सोचते वर्षों बीत गए, लेकिन मन में यह विश्वास था की वो दिन आयेगा जरुर और फिर वह दिन आ गया ….पहली हवाई यात्रा थी, दिल में धुक धुक हो रही थी कैसे जाना होगा ..क्या क्या करना होगा
हम लोग दोपहर करीब एक बजे अपनी कार से इन्दौर के लिये निकल पड़े, चुंकि हमें इससे पहले कभी प्लेन में तो क्या एयरपोर्ट पर भी नहीं गये थे, और एयरपोर्ट की औपचारिकताओं के बारे में भी नहीं मालुम था अत: हमारी कोशिश थी की एयरपोर्ट पर फ़्लाइट के समय से दो घंटे पहले ही पहुंच जायें। प्लान के मुताबिक अपनी कार इन्दौर में एक रिश्तेदार के यहां रखकर हम आटो लेकर देवी अहिल्याबाई होल्कर एयरपोर्ट की ओर चल दिये और साढे चार बजे एयरपोर्ट पहुंच गए। इन्दौर ऐयरपोर्ट का नया टर्मिनल बहुत सुन्दर था, वहां की रौनक तथा शानो शौकत देखते ही बनती थी।
सिक्योरिटी तथा लगेज की सारी औपचारिकताएं संपन्न करते हुए करीब पौने छ: बजे हम लोग लाउंज में बैठकर अपनी फ़्लाईट का इन्तज़ार करने लगे। लाउंज के बड़े बड़े शीशों से रनवे की सारी गतिवीधीयां स्पष्ट दिखाई दे रहीं थीं। शिवम बड़े मजे से प्लेन्स को टेक ओफ़ तथा लैंड करते देख रहा था, हमारी फ़्लाईट २० मिनट लेट थी। कुछ ही देर में हमारी फ़्लाईट भी रनवे पर आ गई और अन्तिम औपचारिकता पुरी करके हम भी रनवे पर आ गए।
शाम का समय था, मौसम सुहावना, ठंडी हवायें चल रहीं थीं और मन में ढेर सारा कौतुहल, उत्साह और उमंगें थीं, रनवे पर दो तीन प्लेन खड़े थे, पहली बार हमलोगों ने इतने करीब से एयर प्लेन को देखा था। और फिर इंडिगो स्टाफ़ की मदद से हम लोग लाइन में लगकर अपने प्लेन की ओर बढे और कुछ ही देर में हम अपनी अपनी सिट पर बैठ गए। चुंकि पहली हवाई यात्रा थी अत: मैनें चार में से दो सिटें विन्डो वाली आरक्षित करवाईं थीं ताकी हम बाहर का नज़ारा भी देख सकें।
इंडिगो की नीली ड्रेस में विमान परिचारिकाएँ एकदम नीली परियों सी लग रहीं थीं। खिड़की वाली सीटें मिल ही गयी थीं इस से अधिक और क्या चाहिए था? बस इन्तजार था इसके उड़ने का और मन का बादलों को छूने का .. सफ़ेद बादलों के बीच, नील गगन की नीली आभा में नीली पोशाक में शोभायमान उन नीली परियों को निहारने का अलग ही आनंद था, लेकिन साथ ही साथ इस बात का भी भान था की घरवाली परी की एक जोड़ी आँखें लगातार चौकसी में लगी हुई हैं। अतः जितना परम आवश्यक था उतना निहार लिया और फिर हमेशा की तरह अपनी परी को निहारने लगे.
दरवाज़े बंद हुए और दो परिचारिकाएँ यात्रियों को कई तरह से मुसीबतों से बचने के नियम कानून समझाने लगी ..हाथ को व्यायाम की मुद्रा में हिलाते हुए ..कुछ समझ आया कुछ नहीं …छोटे से सफ़र में यह बालाएं सब कुछ समझाती किसी नर्सरी स्कूल की मास्टरनीयां लगीं …
ये सबकुछ बड़ा अच्छा लग रहा था, और कुछ ही देर में हमारा विमान रनवे पर सरपट दौड़ने लगा और एक हल्के से झटके के साथ उसने उड़ान भर दी।
अभी उड़ान भरने को कुछ ही मिनट हुए थे की विमान दोनों तरफ डोलने लगा, मेरी तो जान सुख कर हलक में अटक गई थी, मुझे परेशान देखकर पास वाले भाई साहब बोले ….जस्ट रिलेक्स, फ्लाईट में ऐसा होता है, सुनकर जान में जान आई ….
कुछ मिनट और बीते थे की एक और नई परेशानी सामने आई, दोनों कान ढप ढप की आवाज के साथ बारी बारी से खुलने, बंद होने का उपक्रम करने लगे, शुरू में मुझे लगा की ऐसा सिर्फ मेरे साथ ही हो रहा है लेकिन यही परेशानी दोनों बच्चों तथा पत्नी जी को भी महसूस हुई, मेरी ये परेशानी भी बाजू वाले भाई साहब भांप गए और मुझे फिर ढाढस बंधाने लगे, बोले की भाई साहब यह भी होता है, इससे निबटने के लिए उड़ान के दौरान चुइंगम चबाते रहना चाहिए, और इस सलाह के साथ उन्होंने चुइंगम की एक स्ट्रिप बेग से निकाल कर हमें दे दी, भाई साहब को धन्यवाद देकर हम सब चुइंगम के सहारे अपने कानों में हो रही उस उठा पटक को भुलाने की कोशिश में लग गए।
उत्साह, उमंग, उत्तेजना तथा डर की मिश्रीत अनुभुतियों के साथ करीब एक घंटे में हम डा. अंबेडकर अन्तरराष्ट्रीय ऐयरपोर्ट नागपुर पर उतरे।
नागपुर हवाई अड्डे की चमक दमक तथा यात्रियों की आवाजाही को द्रष्टिगोचर करते हुए कब दो घंटे बीत गए पता ही नहीं चला। करीब दो घंटे की सुखमय प्रतिक्षा के बाद तथा हल्दीराम के नमकीनों के आठ दस पाउच उदरस्थ करने के बाद हम अपनी अगली फ़्लाईट के लिये विमान में सवार हो गए और एक घंटे के बाद पुणे के लोहेगांव ऐयरपोर्ट पर उतर गए।
नागपुर ऐयरपोर्ट पर मेरी पिछली कंपनी के एक बुजुर्ग डायरेक्टर मिल गये थे जिन्हें देखते ही मैनें उनके चरण स्पर्श किये, वे भी वर्षों बाद मुझे युं अचानक देखकर बहुत प्रसन्न हुए थे, चुंकि वे पुणे ही रहते हैं अत: उन्होने हमें अपनी गाड़ी से पुणे शहर तक पहुंचाया तथा एक अच्छे होटल में कमरा दिलवाने में भी मदद की। कमरे में पहुंचने के कुछ देर बाद ही हम सो गये क्योंकि रात बहुत हो चुकी थी और हम सब थके हुए भी थे।
सुबह करीब आठ बजे हम लोगों की नींद खुली। आज मेरा जन्मदिवस था अत: सुबह उठते ही कविता तथा बच्चों ने बर्थ डे विश किया और फिर सिलसिला शुरु हुआ दोस्तों, रिश्तेदारों के फोन काल्स का जो करीब एक घंटे में थमा। आज हमें पुणे के प्रसिद्ध दगड़ु शेठ गणपती मंदिर दर्शन के लिये जाना था, अत: सभी नहा धो कर तैयार हो गए।
आइये जानते हैं पुणे के इस मंदिर के बारे में: श्री दगड़ु शेठ गणपती हलवाई मंदिर पुणे शहर के मध्य में स्थित है तथा पुरे महाराष्ट्र में प्रसिद्ध है, हर वर्ष यहां लाखों की तादाद में श्रद्धालु भगवान गणेश के दर्शनों के लिये आते है, इनके भक्तों में कई प्रसिद्ध हस्तियों के अलावा महराष्ट्र के मुख्यमंत्री भी शामिल हैं। इस मंदिर के गणेश जी की प्रतिमा का एक करोड़ रुपये का बीमा करवाया जाता है। अधिक जानकारी के लिये क्लिक करें –http://en.wikipedia.org/wiki/Dagadusheth_Halwai_Ganapati_Temple
आज जन्मदिन पर मुझे इतने सिद्ध मंदिर के दर्शन का लाभ मिल रहा था यह मेरा सौभाग्य था। हमने मंदिर ट्रस्ट में पर्ची कटवा कर ट्रस्ट के पंडित जी से गणेश जी का अभिषेक करवाया। अभिषेक के बाद कुछ देर मंदिर में बैठने के बाद हम मंदिर से बाहर आ गए। सुबह से कुछ खाया नहीं था अत: अब भुख सता रही थी, मंदिर से कुछ दुर पैदल ही चल कर हम एक अच्छे रेस्टारेंट की तलाश करने लगे और कुछ ही देर में हमें एक अच्छा उड़ुपी रेस्टारेंट मिल गया, जहां कविता तथा बच्चों ने इडली तथा डोसा का और्डर किया, लेकिन मेरी नज़रें अभी भी हमेशा की तरह पोहे तलाश रही थीं, थोड़ा संकोच करते हुए मैनें रेस्टारेंट वाले से पोहे के बारे में पुछ ही लिया, और मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा जब उसने कहा की पोहे उपलब्ध हैं, मैं बड़े प्रेम से दो प्लेट पोहे चट कर गया।
भरपेट नाश्ता करके तथा कुछ देर पुणे की सड़कों पर चहलकदमी करते हुए हम अपने होटल लौट आए……………..
आगे का हाल अगली पोस्ट में अगले संडे……….
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chitron ke sath bahut hi sunder varnan kiya hai apne mukhesh ji
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Thanks.
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Mukesh Ji..
Nice post.. Better late than never.
Photographs of the Indore Airport have come so nice.
Waiting for Bhimashankar Darshan….
Naresh ji,
Thanks for your lovely comment. Yes, Indore airport is recently shifted to its new building.
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Hi Mukesh,
I guess everyone has similar awesome experience of flying for the first time.
Enjoyed the post and look forward to the next.
Thank you very much sir for the comment. Being first timers we were bit afraid too, but eventually the things were cherishing.
Thanks.
Mukes bhai, I think you made the most out of your maiden trip and I guess the change-over at Nagpur, which typically is not an attractive proposition, worked in your favor. I also tremendously liked and genuinely appreciate your honest comments around everything blue. I think you should not take SS’s comment too seriously, he has probably done so many of air travels that he has lost all interest, let that not come in your way. Also on a public forum he would be very tactical (actually it is an occupational hazard in his case).
Super narration. Enjoyed. Look forward to return flight.
Thank you Nandan for your encouraging comment along with expert advice ……
Hi Mukesh Ji
Well balanced and nicely composed post like always.
Good narrative style with beautiful pics, especially the part inside the plane was very crisp.
Thoroughly enjoyed…
Avtar ji,
Thanks a lot for your sweet words.
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As usual a very good & informative post Mukesh Ji.
Pictures are good. I am too late to read the post but “der aaye durust aaye.
Dear Mukesh, We, two senior citizen couples, are planning for visiting Jyotirlingas of M.P. and Maharashtra ( Mahakaleshwar, Onkareshwar, Bhimashankar, Trayambakeshwar, Parli Vaijnath and Nageshwar, Grishneshwar and Aundh Nagnath. Please guide preferred route and mode of travel, if you can email to me at rajeshkumar_bajpai@yahoo.com Ph. 09453538048. Tentatively planned Ujjain by train from Kanpur; Ujjain to Indore by road; Indore to Omkareshwar Road by train then by road to Omkareshwar and then to Khandwa. From Khandwa to Parbhani by train . How by road to Parli Vaidyanath, Aundh Nagnath, Grishneshwar, Nageshwar. Then how to Bhimashankar and Triambakeshwar and from Nashik back to Kanpur by train. If early guidance received from your side I will be benefitted to book Tickets accordingly as per your suggestions of stay period and travel time and your special tips.
– R.K. Bajpai, Kanpur