भाग3 – चोपता से वापस नॉएडा।

प्लान के मुताबिक सुबह 5 बजे मोबाइल का अलार्म बजते ही हम लोग एक-एक करके उठते गए और बारी-बारी से फ्रेश होकर तैयार हो गए। दुकानदार का हिसाब बीती रात मे ही कर दिया था इसलिए बिना टेंशन किए हम लोग अपनी गाड़ी की और चल दिए। बहुत कड़ाके की ठंड थी बाहर निकलने के कुछ देर बाद ही हाथों की उंगलियों मे दर्द होने लगा था। गाड़ी भी ठंडी पड़ी थी इसलिए गाड़ी का इंजन स्टार्ट करके कुछ देर के लिए छोड़ दिया। इतनी सुबह उठने के दो कारण थे:-

1 – बर्फीले पहाड़ों पर सूर्य उदय की पहली किरण का पड़ना और वो जलवा कैद करना।

2 – चोपता से नॉएडा पहुँचना, क्यूँकि अगले दिन ऑफिस जाना था।

गाड़ी की छत पर बर्फ जमी हुई थी।

गाड़ी की छत पर बर्फ जमी हुई थी।


मैंने घड़ी मे टाइम देखा तो 05:50 हो रहे थे और अभी भी घुप अँधेरा था। सूर्य उदय होने मे अभी काफी टाइम था। इंतज़ार किया गया 06:15 हो गए थे। हम लोगों ने सलाह की और घर की और गाड़ी दौड़ा दी। 06:30 हो गए थे अब जाकर अँधेरा छटने लगा राहुल ने एका-एक गाड़ी रोक दी और बोला की उजाला होने लगा है वहीं पर रूककर कुछ फोटो ले लेंगे। लेकिन अभी भी सूरज निकलने मे समय था। थोड़ी देर के बाद फिर उसे कीड़ा काटा और बोल की वापस चोपता चलते हैं जब तक सूरज निकलेगा हम लोग चोपता पहुँच जाएँगे। हम लोग 11 km चले आये थे और अब राहुल वापस जाने की बात कर रहा था। मैं और गौरव तो बिलकुल भी इसके पक्ष मे नहीं थे। राहुल और हुज़ेफा एक साथ थे। मामला अभी 50:50 का चल रहा था। तभी गौरव ने पलटी मारी और मैच का स्कोर 3:1 का हो गया। राहुल की टीम जीत गई और मैं हार गया। हम लोग फिर से चोपता की और चल दिए। कहीं सूर्य उदय न हो जाए राहुल ने गाड़ी दौड़ा दी थी और हम लोग 06:42 तक वापस चोपता पहुँच गए थे। करीब पाँच मिनट के बाद ही दूर सूरज की पहली किरण नज़र आई पर हमे एक अच्छा शॉट नहीं मिल पा रहा था। कुछ देर और इंतज़ार करने के बाद हम लोगों को तस्सली हो पाई थी।

चौखम्बा।

चौखम्बा।

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जैसे की मैंने आपको बताया था की चोपता जंगलात क्षत्र है और यहाँ जंगली जानवरों का खतरा भी हो सकता है। इसका प्रमाण नीचे लगी फोटो मे आप स्वयं देख सकते है। कुत्ते की गर्दन पर धातू का सुरक्षा कवच डाला हुआ है। ते कवच कुत्ते को तेंदुए से बचाने के लिए है। पहाडों के कुत्ते भोटिया नस्ल के होते है निडर और खुंकार। यहाँ के स्थानीय लोग इनको अपने पशुओं की सुरक्षा करने के लिए भी पलते है। एक अकेला तंदुरुस्त भोटिया कुत्ता तेंदुए को लोहे के चने चबवा सकता है, लेकिन तेंदुआ तो शिकारी है मौका मिलते ही गर्दन दबोच लेता है इसीलिए कुत्ते की गर्दन को कवच देकर सुरक्षित किया हुआ है।

कुत्ते की गर्दन पर धातू का सुरक्षा कवच।

कुत्ते की गर्दन पर धातू का सुरक्षा कवच।

कुत्ते की फोटो खींच कर हम लोग चोपता से निकल पड़े। मैंने मजाक करते हुआ कहा “नॉएडा मे अब कुत्ते दीखते ही कहाँ हैं ये दुर्लभ प्रजाती हो गयी है” सही किया जो वापस चोपता आये और इस कुत्ते की फोटो खींच ली, अब घर जाकर इसको फ्रेम करके दीवार पर लगा देना और नीचे लिख देना “ये कुत्ता मुझे चोपता मे दिखा।

करीब बीस मिनट चलने के बाद हमने गाड़ी एक पुल के पास रोक दी। यहाँ पर कुछ देर हम पुल के पास बैठ गए सुबह की हवा एक दम फ्रेश दी। फ्रेश हवा खाकर हमारा फेफड़ा गर्व से चौड़ा हो गया। यहाँ पर भी राहुल ने कैमरा निकाल लिया और फोटो सेशन करने लगा।

लोहे के पुल पर चारों का फोटो (L-R) गौरव, हुज़ेफा, अनूप और राहुल।

लोहे के पुल पर चारों का फोटो (L-R) गौरव, हुज़ेफा, अनूप और राहुल।

मैं और गौरव दौड़ लगाते हुए।

मैं और गौरव दौड़ लगाते हुए।

अब तक बहुत मस्ती-बजी हो चुकी थी घर वापस पहुँचने मे देरी हो रही थी। हम लोगों ने अब बिना रुके चलने का फैसला किया। सुबह के 09:54 और हम तिलबारा पर नाश्ता करने के लिए फिर से रुक गए। हम लोग होटल के अंदर गए बिल्कुल सन्नाटा छाया हुआ था। हम लोग नवम्बर के महीने मे यात्रा कर रहे थे इस समय सभी मुख्य तीर्थ स्थलों के कपाट बंद रहते हैं कुछ भी ट्रैफिक नहीं होता। होटल वाले ने सोचा भी नहीं होगा की कोई नाश्ता करने आ धमकेगा। खेर मैं ज़ोर से चिल्लाया “भाई कोई है?” no response. एक बार फिर से “कोई है?” This time got the response “हाँ जी” पर कोई नज़र नहीं आया। हम लोग कुर्सियों पर बैठ गए। एक बाँदा आया “हाँ जी” हमने पुछा नाश्ता मिलेगा? “हाँ जी मिलेगा पर टाइम लगेगा” हमने फिर पुछा क्या मिलेगा? “आलू के पराँठे बना दूँगा, पर आलू उबालने पड़ेंगे” wow very good. भूख तो जम कर लग रही थी तो हमने कह दिया ठीक है भाई आलू उबाल लो हम लोग बाहर ही हैं जैसे ही पराँठे बन जाए बुला लेना।

तिलवारा मे “मोनिका होटल” यहीं पर नाश्ते के लिए रुके थे।

तिलवारा मे “मोनिका होटल” यहीं पर नाश्ते के लिए रुके थे।

होटल के गार्डन मे पेड़ के लटके हुए फ़ल।

होटल के गार्डन मे पेड़ के लटके हुए फ़ल।

हम लोग होटल से दूसरी और जाकर सड़क से नीचे नदी के पास चले गए। ठन्डे पानी से हाथ-मुह धोकर मज़ा सा आ गया था। मुझे याद नहीं आ रहा पर हम मे से किसी ने स्नान करने की इच्छा जताई थी। वो जो भी था पागल था। बदन पर तो दो-दो जोड़े स्वेटर और ऊपर से जैकेट डाला हुआ था और पानी देख कर स्नान करने का मन हो चला था। भगवान का शुक्र है की पागल ने पागल-पंती नहीं की। हम लोगों ने नदी के पास जाकर कुछ फ़ोटो लिए। यहाँ पर हमारा अच्छा टाइम पास हो रहा था। वरना होटल के अंदर नाश्ते का इंतज़ार मे खली-पीली टाइम ही बर्बाद होता।
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D-Company

D-Company

हुज़ेफा पोज़ देते हुए।

हुज़ेफा पोज़ देते हुए।

Pebbles

Pebbles

नाश्ता तैयार हो गया था। सबने आलू के दो-दो पराँठे खाए और घर की और निकल लिए। रास्ता लगभग साफ़ था ट्रैफिक भी कम ही था लेकिन देवप्रयाग पहुँचने से कुछ km पहले हम लोग एक लंबे जाम मे जा फँसे। मैं राहुल और हुज़ेफा गाड़ी से निकल कर एक पास की दुकान मे चाय-पानी लेने चल दिए। गौरव गाड़ी के अंदर ही बैठ कर धूप सेकता रहा। करीब आधे घंटे के बाद गाड़ियाँ धीरे-धीरे सरकने लगी और हम लोग दुकान छोड़ कर अपनी गाड़ी की और दौड़ पड़े। जाम लगने का क्या कारण मालूम नहीं चल पाया था। खेर सस्ते मे ही निपट गए थे वरना ऐसा भी हो सकता था कि कई घंटो तक फँसे रहते।

ट्रैफिक जाम।

ट्रैफिक जाम।

यहाँ से अब हम लोग देवप्रयाग पहुँच गए थे। गाड़ी पर फिर से विराम लगा दिया था। मुझे छोड़ कर बाकि लोगों को स्नान करने की इच्छा हो रही थी। सड़क के किनारे गाड़ी पार्क करने के बाद हम लोग पुल पार करके गीता माता के मंदिर की और चल दिए। एस करने से दो काम हो गए। एक तो माता के दर्शन और दूसरा प्रयाग मे स्नान।

देवप्रयाग पर मंदिर।

देवप्रयाग पर मंदिर।

हर हर गंगे।

हर हर गंगे।

ग्रुप फोटो

ग्रुप फोटो

एक राह चलते सैलानी से इस ट्रिप का अंतिम ग्रुप फोटो खिंचवाया और करीब दोपहर के चार बजे रुड़की मे भोजन करने के बाद नॉन-स्टॉप घर की और दौड़ पड़े और रात के 11 बजे मे घर के अंदर था। जम कर सोया और सोमवार को सब लोग फिर से ऑफिस मे आ मिले। तो इस समाप्त हुआ हमारा वीकेंड ट्रिप।

13 Comments

  • Stone says:

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  • Dr.Rakesh Gandhi,Advocate says:

    Welcome back…….but as far as fast return to home……so short description……..Nice one….But now entire scenario has changed……pure wishes of Almighty n nature.

  • Saurabh Gupta says:

    Good Series with good photographs.

  • ashok sharma says:

    good post,nice pics.now the things have changed.

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  • o p laddha says:

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  • Gaurav says:

    mast likhte ho aap!

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  • Nirdesh Singh says:

    Hi Anoop,

    Nice account of the place before the tragedy hit.

    We all feel for the affected people.

  • Anoop Ji ,Good Post..
    Photographs are Mast………

  • Nandan Jha says:

    Good fun Anoop. May god bring normalcy soon.

  • asg says:

    @All…Thanks a lot for your comments…

    This story was posted well in advance before the Himalayan tragedy. But I think our editor by mistake forget to publish it well in time.

    I am from uttarakhand and no one can understand how I am feeling from inside about what happened in the whole Himalayan region this season.

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