नोएडा से चन्द्रताल वाया मनाली – भाग 2

आज तारीख 14-सितम्बर हो गयी थी। सुबह 4:00 बजे अलार्म बज गया। ऐसा लग रहा था जैसे फिर से पाकिस्तान ने cease fire violation कर दिया हो। और आज फिर से जंग लड़नी हो। अपने आपको तोड़ते-मरोड़ते हुए मैं रजाई से बाहर आ गया। 4:15 बज गए थे। ऊपर से मुझे बस का ठीक टाइम भी नहीं पता था। मे  फ्रेश होकर 4:30 पर होटल से बाहर निकल गया और 5 मिनट मे मनाली बस स्टैंड पहुँच गया। कुछ दो-चार लोग ही मेरी तरह शायद अभी-अभी ही पहुँचे थे। चाय वाले की एक रेड़ी थी वो जोरों से अपनी दुकान सजाने मे लगा हुआ था। याद नहीं हैं पिछली बार इतनी सुबह-सुबह मैं कब उठा था। अपने इर्द-गिर्द देख कर लगा रहा था कि रोज़ सुबह दिन की शुरुवात ऐसे ही होती होगी।

एक टैक्सी वाला आया और मैंने मना कर दिया एक बार तो बस से ही जाना था। मैंने चाय बनवाई और एक मट्ठी और फैन खाया। 8-10 लोग अभी तक इकठ्ठा हो गए थे पर बस का कोई अता-पता नहीं था। टैक्सी वाला बार-बार बोल रहा था कि आज बस लेट है हो सकता है कि नहीं भी आये। बस लेट होने की बात तो ठीक थी पर आएगी ही नहीं ये हजम नहीं हो रही थी।

सुबह के 06:00 बजने वाले थे वही पर 3 लोगों का एक ग्रुप, 1 मैं , 1 और एकेला घुमक्कड़, 1 फिरंगी महिला, कुल मिला कर हम 6 लोग थे। हम लोगों ने आपस मे बात की और टैक्सी मे सामान लाद दिया। टैक्सी वाला बोला कि एक बाँदा और हो जाए तो पूरी टैक्सी का भाड़ा निकल जाएगा। हमने उसको बोला कि देरी के चक्कर मे तो टैक्सी ली है और तुम और इंतज़ार करा रहे हो। हम 6 लोगों ने पूरी टैक्सी का भाड़ा देने का तय किया और अपनी मंज़िल की ओर निकल पड़े।

रोहतांग पहुँचने से काफी पहले का ये नज़ारा

रोहतांग पहुँचने से काफी पहले का ये नज़ारा


रोहतांग पर अभी बर्फ नहीं गिरी थी

रोहतांग पर अभी बर्फ नहीं गिरी थी

2011 मे लद्दाख की यात्रा की थी तो रास्ते का अंदाजा था पर रोहतांग के बाद जब हम काज़ा की ओर मुड़े तो रास्ते का बुरा हाल था। ट्रक चलने की वजह से रास्ता कीचड़ की सड़क मे तपदील हो गया था। हम लोग टाटा सूमो मे थे। सूमो की चेसी भी कई बार टकराई थी।

गाड़ी के अंदर से लिया गया फ़ोटो

गाड़ी के अंदर से लिया गया फ़ोटो

एक और

एक और

चन्द्रताल से जो नदी निकलती है उसको “चन्द्रा” कहते हैं। यही आगे चल कर कोकसर वैली मे “भागा” से मिल कर “चन्द्राभागा” बन जाती है। हिमाचल से निकल कर जैसे ही ये जम्मू-कश्मीर मे घुसती है तो “सतलुज” के नाम से जानी जाती है।

चन्द्रा नदी मेरे विपरीत बहते हुए

चन्द्रा नदी मेरे विपरीत बहते हुए

जो लोग लेह-लद्दाख की यात्रा कर चुके हैं उनके यहाँ के वातावरण मे कोई ज्यादा अंतर नहीं दिखेगा। हाँ इतना जरूर है की मनाली से काज़ा तक पहुँचने मे सिर्फ “कुंजुम” दर्रा ही पार करना होता है पर मनाली से लेह-लद्दाख की यात्रा मे तो इससे भी ऊँचे कई दर्रे आते हैं। पर एक बात जोजो मैंने गौर की थी कि यहाँ की सड़क पर प्रशाशन का कोई ध्यान न था। रास्ता पूरा कच्चा ही था। इसके दो कारण जो मुझे समझ मे आये 1) इस इलाके मे आबादी काम है पूरे रास्ते मे कोई गॉव, क़स्बा नज़र नहीं आया था। 2) भारतीय बॉर्डर सीमा के लिहाज़ से भी ये जगह कम महत्व वाली लग रही थी।

नाश्ते का समय हो चला था ड्राइवर ने गाड़ी “छतड़ू” नमक जगह पर रोक दी। यहाँ पर 3-4 टेंट लगे हुए थे। टेंट के अंदर खाने-पीने और रुकने का पूरा इंतज़ाम था। मैंने गरमा-गर्म रोटी , दाल  और सब्जी पेल डाली। भुनी हुई लाम मिर्च भी थी। ऐसे सफर मे मुह का स्वाद अक्सर बिगड़ जाता है। मेरा तो जरूर बिगड़ता है आदतें ही कुछ ऐसी हैं। भोजन करके मज़ा आ गया था।

छतड़ू

छतड़ू

छतड़ू

छतड़ू


छतड़ू से आगे मुझे बातल(batal) तक जाना था। रास्ता पूरा कच्चा ही था। बड़े-बड़े गड्ढे और पत्थर।

पत्थरों से झूझती हुई Alto

पत्थरों से झूझती हुई Alto

मैंने ड्राइवर से पुछा भाई गाड़ी के शॉकर सस्पेंशन की तो वाट लग जाती होगी। तो बेचरा बोला सर मनाली से काज़ा की दूरी ज्यादा नहीं है पर रास्ते हालत ख़राब है। वैसे तो हर ट्रिप के बाद मैं खुद गाड़ी का चेकउप करता हूँ पर महीने मैं एक बार तो गाड़ी काम माँगती है। टायर भी जल्दी ख़राब हो जाते हैं।

मैंने पुछा और कितनी देर लगेगी बातल पहुँचने मे? बस पहुँचने ही वाले हैं। मेरी दाएँ ओर चन्द्रा नदी बहुत चौड़ी हो गई थी और बहुत ही पास से बह रही थी। ड्राइवर ने गाड़ी साइड मे रोक दी और बोला की कुछ फ़ोटो खींच लो।

 चन्द्रा के साथ एक क्लिक

चन्द्रा के साथ एक क्लिक

बातल कुंजुम दर्रे से 2-3 km पहले है। बातल पर एक ढाबा है। ये “बातल ढाबा” के नाम से ही प्रसिद्ध है। इस ढाबे को एक दंपत्ति चलाते हैं। यहाँ पर खाना-पीना और रात को ठहरने का भी इंतज़ाम था। मैं बातल पर उतर गया। यहीं पर बाहर खड़े हुए एक बंदे ने मेरा बैग उठाया और ढाबे के अंदर रख दिया। ऐसा लगा की ये मेरा ही इंतज़ार कर रहा था। मैं उसके पीछे ढाबे के अंदर गया और मेरा स्वागत कुछ इस तरह हुआ “आओ जी, आराम करो चाय पियो”। मैंने चाय के लिए मना कर दिया। पानी की दो बोतल, बिस्कुट, चॉकलेट और कुछ टॉफ़ी खरीद ली। मैंने 500 का नोट दिया। अंकल ने पैसे वापस नहीं किये बोले हो गया पूरा। पहले तो मैं घबरा गया लेकिन अंकल हँसने लगे और गल्ला खोल कर बाकी पैसे लौटा दिए। मैंने बैग के बारे मे पुछा तो बोले कि वापसी मे ले जाना कोई दिक्कत नहीं है। हम संभाल के रखेंगे आप घूम के आओ। मैंने एक छोटा बैग निकला और उसमे अपना सामन रख कर ढाबे से बाहर आ गया। तभी बाहर मेरी मुलाकात “Tenzin” से हुई। Tenzin बातल ढाबे के मालिक का बेटा है। ये ढाबे के काम-काज मे अपने माँ-बाप की मदद के अलावा चन्द्रताल मैं कैंप लगाता है। उसने बताया की अगर आप ट्रैकिंग करके जा रहे हो तो आज शाम तक वापस नहीं आ पाओगे। रात का डिनर, कैंप मे सोना और सुबह का नाश्ता Rs. 600। मैंने सोचा मात्र 600 इसमें तो माड़वाली भी नहीं कर सकता था। बहुत कम लग रहा था मुझे। मैंने हाँ कर दिया। जिस गाड़ी से मैं आया था वो अभी यहीं खड़ा था। उसने मुझे गाड़ी मे बैठा लिया और मुझे चन्द्रताल ट्रैकिंग पॉइन्ट पर उतार कर काज़ा की ओर चल दिया।

मैं उत्साह से भरा हुआ था। रास्ता अच्छा था या सीधे शब्दों मे कहूँ तो ये अच्छा-खासा motorable road था। चलते-चलते कुछ देर के बाद कुछ अज़ीब सा लगा। एक दम सन्नाटा, मैं बिल्कुल अकेला, चारों तरफ ऊँचे-ऊँचे पहाड़ मानो हजारों सालों से ऐसे ही गुस्से मे खड़े हों। अभी दोपहर मे अच्छी धुप थी लेकिन जैसे ही छाया आती तो ठण्ड लगने लगती। मेरे बैग मे खाने-पीने के सामान के अलावा एक “inner” था जिसे मे रात को सोते वक़्त पहनने वाला था। समुद्र तल से काफी ऊँचाई और धुप की वजह से बार-बार पानी पीना पड़ रहा था। कुछ गाड़ियाँ भी दिखीं कुछ लोग बाइक पर भी दिखे। रास्ते मे कई जगहों पर पहाड़ों से बहता पानी भी मिला। इनको यहाँ पहाड़ी नाला बोलते हैं। अभी तो पानी कम था लेकिन मुझे गाडी के ड्राइवर ने बताया था कि दोपहर की धुप से बर्फ़ पिघलने की वज़ह से शाम होते-होते पानी का बहाव तेज़ हो जाता है।  अक्सर होता है कि गाड़ी भी बह जाती है।

 चन्द्रताल की एक झलक और ग्लेशियर को दर्शाता arrow.

चन्द्रताल की एक झलक और ग्लेशियर को दर्शाता arrow.

जैसे मे चन्द्रताल की ओर बढ़ रहा था एक से बढ़ कर एक नज़ारे देखने को मिल रहे थे। शाम हो चली थी। अब हवा मे ऐसी ठंडक थी मानो कोई सुई चुभा रहा हो। मेरी हालत बिगड़ती जा रही थी। दस्ताने ना लाकर मैंने बहुत बड़ी गलती की थी। मेरे हाथ सुन्न हो गए थे। हाथों को आपस मे रगड़ने पर कुछ महसूस नहीं हो रहा था। उँगलियाँ का रंग लाल की जगह काला सा लगने लगा था। वो तो मैं पिछले 5 घण्टे से चल रहा था तो शरीर मे अच्छी-खासी गर्मी बानी हुई थी।  खेर हौंसले बुलंद थे और मैं ऐसी जगह पर था जहाँ से मुझे चन्द्रताल तक जाने के लिए नीचे उतारना था।

 चन्द्रताल का दूर से एक फ़ोटो

चन्द्रताल का दूर से एक फ़ोटो

मैंने अपनी घड़ी मे देखा शाम के 4:15 बजे थे, समुद्र तल से ऊँचाई 4209 मीटर थी और तापमान 9.8 डिग्री था।

एक नज़र घड़ी पर भी डाल लो

एक नज़र घड़ी पर भी डाल लो

बहुत जोरों की हवा चल रही थी। अब ज्यादा देर रुकने की हिम्मत नहीं थी। मैंने अपना एक फ़ोटो खिंचवाया और वापस चल पड़ा। यहाँ से मुझे करीब 1 km वापस जाना था। वहीँ पर Tenzin की कैंप साइट थी।

एक फ़ोटो मेरा भी

एक फ़ोटो मेरा भी

कैंप साइट

कैंप साइट

दूर से कैंप नज़र आ रहे थे। तभी Tenzin ने आवाज़ लगाई और अपने पास आने का इशारा किया। 4-5 कैंप साइट थी हो सकता था मैं किसी गलत कैंप मे चला जाता। फिर अँधेरा भी तेज़ी से बढ़ रहा था। कैंप मे पहुँच कर मुझे एक टेंट के अंदर बुला लिया। इस टेंट मे इनकी रसोई थी। दो बिस्तर भी लगे हुए थे। मैंने चाय पीने से मना कर दिया। उन्होंने हाथ-मुँह धोने के लिए पानी गर्म किया हुआ था। मेरी बिल्कुल भी हिम्मत नहीं हुई और मैंने जूते उतरे और पैर रज़ाई मे घुसेड़ दिए थे। मैंने सादा पानी पिया क्यूँकि गर्म पानी से प्यास नहीं भुझ रही थी।
थोड़ी देर आराम करने के बाद Tenzin ने पूछा चाय लाये हो साथ मे मैंने कहा चाय तो बैग मे ही रह गयी है और बैग तुम्हारे बातल ढ़ाबे पर विश्राम कर रहा है। Tenzin ने मेरा होंसला बढ़ाते हुए कहा ” कोई बात नहीं कोई दिक्कत नहीं कुछ करते हैं। अरे balli…. ओ balli…. इधऱ आ।” कुछ देर बाद balli महाराज हाज़िर हुए और चमत्कार।

चाय पर चर्चा

चाय पर चर्चा


जब तक चाय पर चर्चा चल रही थी तो साथ-साथ डिनर की भी तैयारी हो रही थी। Tenzin चिकन और चाँवल बना रहा था। तभी वहाँ एक और टूरिस्ट का ग्रुप आया। वो चार लोग थे। डिनर के लिए पुछा तो उन्होंने veg खाने की पेशकश की। Tenzin और balli का थोड़ा मूड उतर गया। बोले एक तो इतना लेट आ रहे हैं इनके लिए अब तैयारी करनी पड़ेगी। उनके ड्राइवर ने बताया कि उसने कहा था इन लोगो से कि रात को बातल ढ़ाबे पर ही ठहर जाते हैं कल सुबह-सुबह चन्द्रताल  के लिए चल पड़ेंगे। पर ये लोग नहीं माने। Tenzin और balli उनका डिनर बनाने की तैयारी मे जुट गए। चाय खत्म होने के बाद मैं टैंट से बाहर का नज़ारा देखने के लिए निकला। घुप्प अँधेरा था। balli ने अपना एक जैकेट मुझे देते हुए कहा इसको पहन लो बहुत ठण्ड है बाहर।

डिनर करने के बाद मैं अपने टैंट की ओर चल दिया। स्लीपिंग बैग के अंदर दो layers थी। शुरू मे तो बहुत अच्छा लग रहा था लेकिन बाद मे दम घुटने लगा था। समुद्र तल से ऊँचाई भी थी। ऑक्सीजन की कमी भी थी। जैसे-तैसे रात गुजारी। सुबह 6 बजे घड़ी का अलार्म बज गया। लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ क्यूँकि मैं पहले से ही जगा हुआ था। खेर छोड़ो। किचन मे जेक balli को जगाया और गर्म पानी और नाश्ता के लिए बोला। तब तक मैं फ्रेश होकर आ गया। नाश्ता करने के बाद मैंने Tenzin से हिसाब पुछा। उसने कहा कल बात तो हो गयी थी। 600 की बात हुई थी मैंने Tenzin को 800 रूपए दिए। बीती रात उसने भी मेरा ख्याल रखा था। चाय पर बहुत देर चर्चा चली थी।

Tenzin और balli ने मेरा मोबाइल नंबर लिया। मैंने भी उनका नंबर माँगा तो उन्होंने कहा ये नंबर तो हम अब बंद कर देंगे। अब तो सीजन खत्म होने वाला है। हम लोग नवंबर-दिसंबर मे दिल्ली चले जाएँगे। Tenzin दिल्ली ISBT मजनू का टीला के पास Tibbet Colony जाने वाला था। balli नोएडा मे सेक्टर-34 मे tibbet market मे दुकान लगाने वाला था। balli ने कहा दिसंबर मे मार्किट आना वहीँ मिल जाऊँगा।

सुबह 06:30 बजे मे चन्द्रताल से वापस बातल की और निकल पड़ा। सूचना के मुताबिक सरकारी बस सुबह 09:00 – 09:30 तक बातल ढ़ाबे पर पहुँच जाती है। लेकिन मुझे लग रहा था कि मैं उस वक़्त तक नहीं पहुँच पाऊँगा। मैं बिना रुके चले जा रहा था। काफी थकान हो गयी थी। दूर धूल उड़ती हुई नज़र आई। अरे ये तो बस है। मैं अभी ढ़ाबे से कम से कम 15-20 मिनट की दूरी पर था। मैंने सोच लिया था कोई बात नहीं shared taxi से चला जाऊँगा। फिर भी मैं बिना रुके चलता रहा। जैसे-तैसे मैं ढ़ाबे तक पहुँच गया। चाय और बिस्कुट खाया। अपना बैग उठाया। बैग की रखवाली का कोई दाम नहीं देना पड़ा। बस मे चढ़ा और जाकर ड्राइवर केबिन मे एक खाली सीट पर कब्ज़ा कर लिया। बातल से मनाली बस स्टैंड का टिकट ले लिया। किराया ध्यान मे नहीं आ रहा। मनाली मे उसी होटल पर जाकर ठहर गया जहाँ पहली रात रुका था। कुछ देर आराम करने के बाद मॉल रोड की ओर निकल गया। अगले दिन दिल्ली जाने वाली एक volvo की टिकट करा ली। 16-सितम्बर-2014 शाम 4 बजे मनाली को अलविदा कर मैं वापस अपने घर की ओर चल दिया।

 इस ब्लॉग का आखरी फ़ोटो

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जल्दी फिर मिलेंगे।

8 Comments

  • Uday Baxi says:

    Dear Anoop

    It was very nice to read your care-free style of travel experiences.

    Thanks.. please travel some and share.

    Regards

  • Dr.Rakesh Gandhi says:

    Thanks for sharing beautiful visit and memories with nice clicks

  • JHA ISHWAR says:

    GOOD CALIBER…….

  • RajeshRana says:

    Beautiful log and pics … good read !!!

  • om prakash laddha says:

    अनूप जी
    पहली कड़ी की तरह ये कड़ी भी काफी रोचक और रोमांचक है। सभी

  • Kailash Mehta says:

    Anoop ji

    It was very nice to read your travel experience. It was fantastic and also inspire to go solo even you don’t have a company for such a wonderful place. Well descriptive with nice clicks.
    .
    Regards

  • lalit says:

    अनूप जी यार आप तो बिल्कुल मेरे जैसे हो घुम्मकड़ माँ कसम आपकी स्टोरी पड़ते वक़्त बिलकुल ऐसा लग रहा था जैसे मैं अभी मनाली में ही हु । पर यार आप चाय क्यों नही पि रहे थे ।पहाड़ो में तो चाय मिल जाए तो धरती पर स्वर्ग जैसा आंनद आ जाए पर कोई बात नहीं आपकी स्टोरी में फिलिंग थी ।

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