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ग्वालियर में घुमक्कड़ी – ग्वालियर का किला

लगभग एक – डेढ़ घंटे घूमने के बाद महल से बाहर आया। अब ग्वालियर का किला देखने का प्रोग्राम था। ऑटो ड्राइवर ने मुझे किले में जाने के लिए जिस भाग में उतारा यहाँ से किले में जाने के लिए काफी चढ़ाई है। उसने चढ़ाई से पहले ही उतार दिया और सामने लगे बोर्ड को दिखा कर कहने लगा , यहाँ से टैक्सी -ऑटो आगे नहीं जा सकते। प्राइवेट कार ही जा सकती हैं। वहीँ पर प्राइवेट टैक्सी कार वाले से किले में जाने के लिए पूछा तो उसने 450 रूपये में किला घुमाने की बात कही। कहने लगा बहुत बड़ा यह किला है और तीन-चार किलोमीटर में फैला है। सामने किले में जाने की चढ़ाई देखकर आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं हो रही थी। अभी वहाँ खड़ा हुआ सोंच ही रहा था कि क्या करना चाहिए। इस टैक्सी वाले को 450 रूपये दूँ या फिर वापस लौट जाऊ।सोंच रहा था कि अगर एक -दो लोग और आ जाते हैं तो मिलकर शेयर टैक्सी कर लेंगे। तभी वहाँ पर एक युवक – युवती ऑटो से उतरे। मैंने उनके पास जाकर पूछा कि वह लोग कैसे जायेंगे। वह लड़का बोला मै तो यहाँ कई बार आ चूका हूँ चले – चलो। हम लोग तो पैदल ही पूरा किला घूम आते हैं। उन लोगो की बाते सुनकर मै भी उनके पीछे – पीछे कि किले ऒर चल दिया।

किले की ऑर जाने के लिए पतली सी सड़क



कुछ कदम आगे बढ़ता हूँ तो देखता हूँ कि किले की तरफ जाने वाली पतली सी सड़क के एक तरफ, पत्थर की चट्टानों को काट कर जैन समुदाय के तीर्थकरों कि मूर्तियां बनाई गईं हैं। इनमे से कई मूर्तियों भग्न अवस्था में थीं जिन्हे शायद किले पर विजय प्राप्त करने के बाद मद -मस्त मुस्लिम आक्रान्ताओ ने इस अवस्था में पहुँचाया था। यह बहुत ही कष्टप्रद विषय है कि इस्लाम को मानने वाले अविवेक में अपने विजयी दंभ को वह इन पत्थरो पर निकालने लगते है। एक तरफ तो यह मुग़ल अपने आप को कला प्रेमी के रूप में स्थापित करने की चेष्टा करते हैं और दूसरी तरफ चट्टानों पर की गई इन कलाकृतियों को नष्ट करते हैं। मंगलवार का दिन था इसलिए बहुत कम लोग ही किला घूमने के लिए जा रहे थे। छुट्टी का दिन होता तो शायद यहाँ पर भीड़ देखने को मिलती। वह दोनों युवक-युवती मुझे रास्ता बता कर तेजी से आगे बढ़ गए। मेरे पीछे एक विदेशी युवती भी चट्टानों को काटकर बनाये गए इन जैन तीर्थकारों को देखती हुई आ रही थी। मै धीरे – धीरे चढ़ाई पर चढ़ता हुआ आगे बढ़ रहा था पर मुझे दूर – दूर तक किला कही नहीं दिख रहा था। इतनी चढ़ाई चढ़ने के बाद मन ही सोंच रहा था कि इतनी चढ़ाई पर किला बनाने का अभिप्राय शायद यही होता होगा कि जल्दी तो किसी दुश्मन की हिम्मत ही नहीं होती होगी इतनी चढ़ाई पर चढ़ कर हमला करने की और अगर किया भी तो पहले ही उसकी सेना इतनी पस्त हो चुकी होती है कि जीत की बहुत कम ही गुंजाइश होती होगी। दो – तीन सौ गज या कुछ ज्यादा की चढ़ाई चढ़ने के बाद एक और गेट दिखाई पड़ता है। किले के दूसरे गेट से करीब 200 गज आगे आने पर चढ़ाई ख़त्म हो जाती है। यहाँ पर भी एक गार्ड रूम है। यहाँ पर एक प्राइवेट टैक्सी वाला बैठा था। किला और किले के अंदर उसके आस – पास की जगह घुमाने के लिए इसने 250 रूपये मांगे। इतनी चढ़ाई चढ़ने के बाद अब और आगे चलने की हिम्मत नहीं हो रही थी। मैंने कहा कि पीछे भी कुछ एक लोग आ रहे हैं उनसे पूछ लो अगर वह लोग चले चलेंगे तो हम लोग आपस में शेयर कर लेंगे । तभी वह विदेशी युवती भी आ गई।ड्राइवर ने उसके पास जाकर शेयर टैक्सी किराये पर लेने के लिए कहा पर वह उसकी बात ठीक से समझी नहीं तब मैंने उससे कहा कि अगर हम लोग यह टैक्सी शेयर कर ले तो सब जगह घूम लेंगे। यह टैक्सी वाला 250 रूपये मांग रहा है आधे – आधे हम लोग दे देंगे। वह युवती भी शायद थक गई थी , वह राजी हो गई।

चट्टानों को काट कर बनाई गई जैन तीर्थकरों की मूर्तियाँ

चट्टानों को काट कर बनाई गई जैन तीर्थकरों की मूर्तियाँ

चट्टानों को काट कर बनाई गई जैन तीर्थकरों की मूर्तियाँ

अब हम दोनों को टैक्सी वाला सबसे पहले किला ले गया। हाँलाकि जिस जगह से मैंने टैक्सी ली वहाँ से किला पास ही था।
किले के बाहर टिकटघर बना हुआ है। यहाँ पर आम भारतियों के लिए टिकेट पाँच रूपये का है और विदेशी नागरिक के लिए सौ रूपये का टिकेट है। पता नहीं ऐसा क्यों करती है सरकार। शायद यह सोंच कर कि विदेशी बहुत पैसे वाले होते हैं तो मै यही कहूंगा कि यह सरकार का भ्रम है। वहीं पर एक – दो गाइड खड़े थे जो कि मुझसे गाइड करने के लिए कहने लगे। विदेशी युवती जिसका नाम Lauranne था जो कि फ़्रांस से भारत दर्शन के लिए आयी थी ,से पूछा तो उसने मना कर दिया शायद वह गाईड पर पैसे खर्च नहीं करना चाहती थी। गाइड मुझे बताने लगा कि यह किला तीन मंजिला नीचे तक बना हुआ है। विना गाइड के अगर आप लोग जायेंगे तो केवल किले की दीवारे देखकर लौट आयेंगे। जब तक आप इस किले का इतिहास और इसके स्वर्णिम अतीत के बारे में नहीं जानेंगे तब तक आपका यहाँ आना सार्थक नहीं होगा। मुझे भी लगा गाइड यह बात तो सही कह रहा है। मैंने उससे पूछा कितने पैसे लोगे तो 150 रूपये मांगे। मैंने दोबारा उस विदेशी युवती से पूछा पर ऐसा लगा वह गाइड पर पैसे खर्च करने के मूड में नहीं है। मैंने गाइड को बोला कि मै 100 रूपये दे सकता हूँ। यह विदेशी महिला मेरे साथ जरुर है पर यह कुछ भी खर्च नहीं करना चाहती है। यह कह कर मै आगे बढ़ गया। गाइड फिर मेरे साथ हो लिया और बोला ठीक है आप सौ रूपये दे देना अगर मेरा काम अच्छा लगे तो उस विदेशी युवती से मुखातिब होकर बोला कि आप की जो मर्जी हो दे देना।

महाराजा मानसिंह तोमर का किला

किले में प्रवेश करते ही हम पहले एक दालान में पहुंचते हैं। यहाँ पर खड़े होकर गाइड ने किले के इतिहास के बारे में बताना शुरू किया। उसके अनुसार किले का निर्माण 500 वर्ष पूर्व राजा मानसिंह तोमर ने इस किले का निर्माण करवाया था। जिनकी आठ रानियाँ थीं। एक बार जंगल से शिकार करके लौटते समय रास्ते में उन्होंने देखा दो भैसे आपस में सींग से सींग लड़ाये लड़ रही हैं। उनकी लड़ाई से डर से सहमे हुए लोग एक तरफ को रास्ता छोड़ कर खड़े हुए थे। तभी एक बहुत ही सुन्दर गूजर युवती ने आकर उन दोनों भैंसो के सींग पकड़ कर अलग कर दिया। राजा उस लड़की कि बहादुरी देख बहुत प्रभावित हुए और यह सोच कर कि इतनी बहादुर लड़की से जो संतान होगी वह भी बहुत बहादुर होगी , उससे शादी का प्रस्ताव रखा। लड़की ने राजा के शादी के प्रस्ताव को स्वीकार करने की तीन शर्ते रखी। जिसमे से पहली उसकी शर्त थी वह जंगल की खुली हवा में रही है इसलिए घूँघट नहीं करेगी। दूसरी शर्त थी राजा जहाँ कहीं भी युद्ध के लिए जायेंगे वह उनके साथ जायेगी। और तीसरी शर्त थी कि जिस रेवा नदी का पानी पीकर वह बड़ी हुई है वह उसी जल से स्नान करेगी और पियेगी। राजा ने तीनो शर्त स्वीकार कर ली। तीसरी शर्त थोड़ी कठिन थी क्योकि इतनी दूर से नदी के पानी को किले की चढ़ाई पर लाना था। इसके लिए राजा ने अपनी नौवी रानी के लिए किले से नीचे एक अलग से महल बनाया जोकि गूजरी महल के नाम से प्रसिद्द हुआ। राजा साहब की यह नौवीं रानी इतिहास में मृगनयनी के नाम से विख्यात हुई हैं। प्रसिद्द उपन्यासकार वृन्दावन लाल वर्मा का उपन्यास मृगनयनी इसी पर आधारित है।

किले के अंदर पत्थरो पर हाथ से काट कर बनाई गई कलात्मक जालियां , खंभे , बुर्ज।

एक फोटो lauranne के साथ

अब हमारा गाइड किले एक एक भाग से दूसरे भाग और दूसरे से तीसरे भाग में ले जाकर वहाँ के बारे में बता रहा था कि कहाँ पर गीत – संगीत की महफ़िल जमती थी तो एक तरफ नाच- गाने का रंगा -रंग प्रोग्राम होता था तो कही पर शयन गृह था। गर्मियों में गर्मी न लगे इसके लिए प्राकृतिक कूलर का निर्माण किया गया था। किले में एक भाग से दूसरे भाग में बात करने के लिए एक अलग तरह के टेलीफोन का आविष्कार किया गया था।

किले के अंदर पत्थरो पर हाथ से काट कर बनाई गई कलात्मक जालियां , खंभे , बुर्ज।

गाईड यहाँ पर एक दीवार के सामने खड़ा है, इसके पीछे पहले सुरंग थी जिसमे से एक रास्ता ओरछा के लिए जाता था व् दूसरा रास्ता आगरा के लिए जाता था।

किले के अंदर पत्थरो पर हाथ से काट कर बनाई गई कलात्मक जालियां , खंभे , बुर्ज।

किले के अंदर पत्थरो पर हाथ से काट कर बनाई गई कलात्मक जालियां , खंभे , बुर्ज।

इस हाल में नृत्य होता था , हमारे गाईड के कहने पर lauranne की नृत्य मुद्रा में फोटो

किले के निचले हिस्से में बहुत ही संकरी सीढ़ियों से होकर जाना होता है।
पूर्व में तो किले के नीचे का भाग राजा -रानियों के स्नान घर था एवं अन्य के लिए इस्तेमाल होता था पर बाद में स्नानघर के टैंक को जौहर के लिए भी इस्तेमाल किया गया था। इस स्नानघर के दूसरे भाग में बाद में कैदियो को रखा जाने लगा था। औरंगजेब ने अपने भाई मुराद को भी इसी किले में कैद कर के , उबलते तेल के कढ़ाहे में डाल कर मार देने का आदेश दिया था पर बाद में इसी तहखाने में उसे फांसी दे दी गई। मन में विचार आ रहा था कि सत्ता को मोह इंसान को किस कदर हैवान बना देता है कि भाई ही भाई का दुश्मन बन जाता है। इस वर्चस्व की लड़ाई में औरंगजेब विजयी हुआ था।

उस समय की टेलीफोन प्रणाली , एक होल इनकमिंग का है और दूसरा आउटगोइंग के लिए।

किले के विभिन्न भागो में घूम कर हम वापस लौटे। गाइड को उसकी फीस सौ रूपये दिए, lauranne ने कंजूसी करते हुए केवल बीस रूपये ही दिए। जबकि सारे समय गाइड महोदय lauranne से मुखातिब होकर , किले के बारे में और उसके इतिहास के बारे में बताते रहे। हाँलाकि गाइड महोदय खुश थे। यहाँ से ड्राइवर हमें सास- बहू के मंदिर के ले गया।

किले से ग्वालियर शहर का दृश्य

सास-बहु का मंदिर सही शब्दो में सहस्त्रबाहु का मंदिर

सास-बहु का मंदिर सही शब्दो में सहस्त्रबाहु का मंदिर

सास -बहु मंदिर ग्वालियर किले के पूर्वी ओर है। समय के साथ इस मंदिर का नाम बिगड़ कर सास बहु मंदिर हो गया है। जबकि यह मंदिर सास और बहु का नहीं है। यह नाम सहस्त्रबाहु नाम से निकला है जो भगवान विष्णु का दूसरा नाम है। इसके दरवाज़े पर भगवान ब्रम्हा, भगवान विष्णु और देवी की नक्काशियां की हुई हैं।
यहाँ दो मंदिर है जिनमें से एक बड़ा है और एक छोटा। यह मंदिर लाल बलुआ पत्थर से बना है जिस पर कमल की नक्काशियां की हुई हैं। इसकी संरचना पिरामिड के आकार की है जिसमें कोई मेहराब नहीं है। कहते हैं इसका निर्माण 11 वीं शताब्दी के कछवाहा राजवंश के राजा महिपाल ने करवाया था।
अब यहाँ पर मंदिर के अंदर कोई मूर्ति नहीं है। शायद मुग़ल आक्रंताओ या अन्य आक्रांताओं ने तोड़ दी थी।

तेली का मंदिर

तेली का मंदिर के बारे में कहा जाता है कि राष्ट्रकूट शासक गोविंदा III (793-814) ने 794 में ग्वालियर फ़ोर्ट पर अधिकार कर लिया और इस मंदिर का पूजा अर्चना कार्य तैलंग ब्राह्मणों को सौप दिया इस वजह से मंदिर का नाम यह पड गया. एक अन्य मतानुसार कुछ तेल के व्यापार करने वालों या तेली जाति के लोगों ने इस मंदिर के निर्माण की शुरूआत की थी इस वजह से इसका नाम तेली मंदिर पडा. पर ऐसा लगता है कि इसका संबंध तैलंगाना (आंध्र प्रदेश) से रहा होगा जो स्थानीय बोली में वक्त के साथ बदलकर वर्तमान में पुकारे जाने वाले नाम “तेली का मंदिर” में बदल गया होगा. हाँलाकि यहाँ पर लगे शिलालेख में यही लिखा है कि इसका निर्माण तेल के व्यापारियों ने करवाया था। इस मंदिर के आस – पास कई छोटे – छोटे से मंदिरो के भग्नावेश भी देखने को मिलते हैं। पूरे उत्तर भारत में ग्वालियर किले में स्थित तेली मंदिर में आप द्रविड़ आर्य स्थापत्य शैली का अदभुत समन्वय देख सकते है. ग्यारहवीं शताब्दि में बना यह मंदिर ग्वालियर फ़ोर्ट में बना सबसे पुराना मंदिर है। तेली मंदिर का प्रवेश द्वार पूर्व दिशा की तरफ़ है. प्रवेश द्वार के एक ओर कछुए पर यमुना व दूसरी ओर मकर पर विराजमान गंगा की मानव आकृतियां हैं. अंदर आयताकार गर्भगृह में छोटा सा मंडप और निचले भाग में 113 छोटे देव प्रकोष्ठ हैं जिनमें देवी-देवताओं की मुर्तियां थीं. पर वर्तमान समय में यहां कोई मूर्ति नहीं है।

कहते हैं आर्य द्रविड़ शैली के इस मंदिर को सन 1231 में, यवन आक्रमणकारी इल्तुमिश द्वारा मंदिर का अधिकांश हिस्सा ध्वस्त कर दिया गया था. इसके उपरांत 1881–1883 ई. के मध्य अंग्रेज शासकों द्वारा मंदिर के पुरातात्विक महत्व के मद्देनजर मेजर कीथ के मार्गदर्शन में ग्वालियर किले पर स्थित अन्य मंदिरों, मान महल [मंदिर] के साथ-साथ तेली मंदिर का भी सरंक्षण करवाया. मेजर कीथ ने ही इधर-उधर बिखरे पड़े भग्नावशेषों को जुटाकर तेली मंदिर के सामने भव्य और आकर्षक द्वार भी बनवाया।

तेली के मंदिर का अवलोकन करने के बाद हमने ड्राइवर से पूछा अब कहाँ चलना है। बोला अब आप लोगो को गुरूद्वारे ले चलता हूँ। इस समय तक शाम ढलने लगी थी पहले तो विचार आया कि छोड़ो वापस चलते हैं पर फिर लगा कि जाना चाहिए। उस समय तक मुझे इस गुरुद्वारे का इतिहास नहीं मालूम था। इसी किले में सिखों के छठे गुरु को मुगलो ने कैद किया था पर बाद में जहांगीर ने उन्हें रिहा कर दिया था। कहते हैं गुरु साहब ने रिहा होते वक्त शर्त रखी थी कि मेरे साथ कैद इन हिन्दू राजाओं को भी रिहा किया जाय। तब जहाँगीर ने कहा जितने भी राजा आपका कुर्ता पकड़ कर बंदी गृह से निकल सकते हैं उन्हें छोड़ दिया जायेगा। कहते हैं उस समय करीब 52 राजाओं ने उनका कुर्ता पकड़ कर बंदी गृह से मुक्ति पायी थी। उसी की याद में यहाँ पर एक गुरुद्वारा बना हुआ है। ड्राइवर ने हमें गुरुद्वारे के पास उतार दिया। गुरूद्वारे के बाहर फोटो न खींचने के निर्देश वहाँ पर लिखे हुए थे। पहले तो मन हुआ कि दिन भर की थकान है बाहर से दर्शन करके लौट चलेंगे पर टैक्सी से उतरते ही गुरूद्वारे के बाहर वातावरण में गूंजती हुई गुरुवाणी की ध्वनि ने नई ऊर्जा का संचार कर दिया। अब हमने जूते उतार सर पर पटका बांध कर गुरुद्वारे में प्रवेश किया। गुरुद्वारे में प्रसाद ग्रहण करके वापस लौटे। ड्राइवर ने बताया अब किले का टूर ख़त्म। उसने हमें किले से नीचे छोड़ दिया।

यहाँ से टहलते हुए हम बाहर मुख्य सड़क पर पहुँच गए। वहीं पर एक जगह गोल गप्पे बिक रहे थे। lauranne ने पूछा इसका क्या नाम है मैंने कहा यहाँ पर तो गोल गप्पे कहते हैं मुझे नहीं मालूम कि फ़्रांसिसी भाषा में क्या कहते हैं। कहने लगी मुझे खाना है। सुन कर मुझे ताज्जुब हुआ क्योकि मेरी जानकारी तो यही थी कि यह लोग चटपटी और तीखी खाने की चीजे पसंद नहीं करते हैं। परन्तु यह तो उसके विपरीत है। गोल गप्पे के बाद वहाँ पर बिक रहे चना जोर गर्म का भी उसने स्वाद लिया। बातो ही बातो में मैंने उसे बताया मै सामाजिक , राजनीतिक विषयो पर लिखता भी हूँ साथ ही साथ विभिन्न यात्राओ पर घुमक्कड़ डॉट कॉम की साईट पर लिखता हूँ। आज जो घुमक्कड़ी की है इस पर भी लिखूंगा तभी मैंने हर एक जगह के फोटो खींचे है। अपना मेल आईडी देकर कहने लगी कि मुझे मेल करना। मैंने कहा लेकिन मै तो अपनी भाषा हिन्दी में लिखता हूँ। तब उसने बताया कि उसे भी हिंदी आती है।

शाम ढलने लगी थी मेरी गाडी सात बजे की थी। सोंचा स्टेशन चला जाय वहीं पर शाम की चाय पीकर ट्रेन का इन्तजार करेंगे। मैंने lauranne को अपना प्रोग्राम बताया। बोली मै भी साथ चलती हूँ। रास्ते में वह शहर के फोटो खींचती रही। स्टेशन के बाहर मार्किट में हम उतर गए। यहाँ पर कई छोटे – छोटे रेस्टोरेंट , हलवाई की दूकान आदि हैं। एक मिठाई की दूकान पर चाय की भी व्यवस्था देख हम उसमे जाकर बैठ गए। वहाँ काउन्टर पर तरह – तरह की मिठाई देख कर वह उनको खाने के लिए उत्सुक हो गई। मैंने उसके लिए मिठाई , समोसा और दोनों के लिए चाय मँगवाई । मिठाई में उसे रस मलाई बहुत पसंद आयी। चाय पीकर बाहर आये। वह और मिठाई खरीदना चाहती थी , मैंने दुकानदार से कहा आठ – दस पीस अलग – अलग तरह की मिठाई के पैक करके दे दो।

चाय और समोसे के साथ lauranne

अँधेरा हो चुका था। अब मुझे स्टेशन के लिए जाना था। lauranne का होटल वही पास में लिंक रोड पर था. मैंने वहाँ पर खड़े एक ट्रैफिक सिपाही से कहा कि यह विदेशी लड़की है , इस समय अँधेरा हो गया है इसलिए सावधानी के नाते किसी ऑटो वाले को समझा कर इसके होटल पहुँचवा दो। सिपाही ने एक ऑटो वाले को रोक कर उसे lauranne को होटल छोड़ने के लिए बोला साथ ही साथ अपने पर्स से निकल कर ऑटो का भाड़ा भी देने लगा। यह देख मैंने कहा नहीं – नहीं आप पैसे मत दो , भाड़ा यह स्वयं दे देगी। वैसे बहुत ख़ुशी हुई कि कुछ सिपाही इतने अच्छे भी होते हैं वर्ना देखने में तो यही आता है कि अपने आप तो मुफ्त में सैर करते ही हैं और अगर कोई जानने वाला मिल जाय तो उसे भी पैसे नहीं देने देते हैं। मैंने कहा लाओ तुम्हारी फोटो खींच लेते हैं अपने लेख में प्रकाशित करूँगा पर शायद हाथ हिल गया और फोटो साफ नहीं आई। यह थी मेरी ग्वालियर की सैर हांलाकि बहुत जगह अभी भी थीं लेकिन एक दिन में इतना ही घूम सका।

ग्वालियर में घुमक्कड़ी – ग्वालियर का किला was last modified: June 22nd, 2025 by Kamlansh Rastogi
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