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यमुनोत्री में ग्लेशियर

अभी तक आपने पढा कि मैं अप्रैल 2010 में अकेला ही यमुनोत्री पहुंच गया। अभी यात्रा सीजन शुरू भी नहीं हुआ था। यमुनोत्री में उस शाम केवल मैं ही अकेला पर्यटक था, समुद्र तल से 3200 मीटर से भी ऊपर। मेरे अलावा वहां कुछ मरम्मत का काम करने वाले मजदूर, एक चौकीदार और एक महाराज जी थे। महाराज जी के साथ दो-तीन चेले-चपाटे भी थे। मैने रात में ठहरने के लिये चौकीदार के यहां जुगाड कर लिया। चौकीदार के साथ दो जने और भी रहते थे, एक उसका लडका और एक नेपाली मजदूर। दो कमरे थे, एक में चूल्हा-चौकी और दूसरे में बाकी सामान। बातों-बातों में मैने उनके समक्ष सप्तऋषि कुण्ड जाने की इच्छा जताई। उसने बताया कि वहां जाने का रास्ता बेहद दुर्गम है, दूरी चौदह किलोमीटर है। बिना गाइड के बिल्कुल भी मत जाना, इस समय कोई गाइड भी नहीं मिलेगा। मैने पूछा कि क्या आप वहां तक कभी गये हो? उसने बताया कि हां, मैं तो कई बार जा चुका हूं।

यशपाल, चौकीदार का लडका। मेरे उठने से पहले ही लकडी लाने जंगल में चला गया था।


मेरे जिद करने पर वो गाइड बनने के लिये तैयार हो गया, पांच सौ रुपये में आना जाना। हालांकि है तो यह आज के हिसाब से भी महंगा लेकिन ऑफ सीजन में सप्तऋषि कुण्ड जाने की बडी इच्छा थी इसलिये यह प्रस्ताव मान लिया गया। तय हुआ कि कल सुबह सुबह छह बजे निकल पडेंगे। चूंकि यमुनोत्री में भी कोई आदमजात नहीं थी, ऊपर क्या खाक मिलेगी। उसने यह भी बताया कि हो सकता है कि अभी वहां बर्फ हो, रास्ता ना हो, लेकिन जहां तक रास्ता मिलेगा जायेंगे। हमारे साथ में नेपाली और चौकीदार का लडका भी चलने को तैयार हो गये। उस शाम को मेरा खाना चौकीदार ने अपने यहां ही बनाया था; राजमा, रोटी और चावल। सबके साथ बैठकर बिना चम्मच के खाना खाने में आनन्द आ गया। उस समय तो मैं उनके घर के मेहमान जैसा था।
सोते समय देखा कि कैमरे की सेलें खत्म होने वाली हैं। उन्होनें बताया कि रोज तो शाम पांच बजे ही बिजली आ जाती है, आज आठ बज गये, अभी तक नहीं आयी। मुझे चिन्ता थी कि अगर सेल चार्ज नहीं हुईं तो कल की यात्रा की ऐसी-तैसी हो जायेगी। आज बिजली ना आने का कारण था कि मौसम खराब था। हल्की-हल्की बूंदें पड रही थीं। चौकीदार के कमरे से लगभग सटी हुई ही महाराज जी की गुफा है। गुफा के सामने ही एक टॉयलेट बना हुआ है। इसके बराबर में एक छोटा सा कमरा है, इसमें जनरेटर चल रहा था। इसका उपयोग केवल महाराज और चेलों के लिये ही था। मैं सेल और चार्जर लेकर जनरेटर के पास गया। लडके ने बताया कि हमारी और महाराज की बनती नहीं है, इसलिये तुम ही गुफा में जाकर महाराज से बात कर लो, थोडी देर भी चार्जिंग पर लग जायेगा, तो कल की बात बन जायेगी। मेरी भी हिम्मत नहीं हुई। तभी निगाह पडी टॉयलेट के दरवाजे के पास में एक चार्जिंग पॉइंट पर। फटाफट लगा दिया, लेकिन यहां इस पर बारिश की छींटें पड रही थीं। इससे बचने के लिये इसे पन्नी से अच्छी तरह ढक दिया। और वापस आकर सो गये।
सुबह साढे पांच बजे अलार्म बजा। यमुना की जोरदार आवाज आ रही थी। बाहर निकलकर देखा कि मूसलाधार बारिश हो रही है। ऐसे में सप्तऋषि कुण्ड जाना मूर्खता थी। मुझे ट्रेकिंग का जरा भी अनुभव नहीं था। वापस आकर सो गया। नौ बजे चौकीदार चाय लेकर आ गया – बिना दूध की चाय। ये लोग दूध दुर्लभ होने की वजह से बिना दूध की ही पीते हैं। कौन जाये रोज-रोज दूध लेने नीचे जानकीचट्टी? उसने भी यही बताया कि बारिश में जाना सही नहीं था, इसलिये मैने आपको नहीं उठाया। चाय पीकर बाहर निकला। अब बारिश थम गयी थी। हल्की धूप भी खिल गयी थी। चार्जर के पास गया, देखा कि पन्नी तो उड गयी है। चार्जर बर्फ सा ठण्डा हुआ पडा है। सेलें भी भीग गयी हैं। अब गये ये तो काम से। कैमरे में लगाकर देखा तो बैटरी फ़ुल। दो जोडी सेलें थी, दोनों ही फ़ुल चार्ज। जय हो यमुना मैया। अपने यहां भीग जाती तो इनका काम तमाम था।
दस बजे तक मौसम पूरा खुल जाने पर चौकीदार ने कहा कि आपका आज का पूरा दिन खराब हो जायेगा। चलो, आपको आसपास घुमाकर लाता हूं। अब निकल पडे हम चारों यमुनोत्री से यमुना के साथ-साथ विपरीत दिशा में। यानी और ऊपर की ओर। अब आगे की कहानी चित्रों की जुबानी:

ऊपर से बहकर आती यमुना। हम भी बहाव के विपरीत दिशा में चल पडे – बिना किसी लक्ष्य के।

ग्लेशियर के पहले दर्शन

करीब सौ मीटर आगे ही गये होंगे कि बर्फ का ग्लेशियर मिल गया। जिन्दगी में पहली बार ग्लेशियर देखा। महीनों से बरफ जमी पडी है। बरफ के नीचे से पानी आता है।

बर्फ़ के ऊपर से हो कर जाता रास्ता

और आगे जाने के लिये बरफ के ऊपर से ही जाना पडेगा। नीचे पानी बह रहा है। पता नहीं, कहां से बरफ मोटी है और कहां से पतली। नेपाली यही सोच रहा है।

जोखिम भरा रास्ता

ऊपर से देखने पर बरफ के मिजाज का पता नहीं चलता। हो सकता है कि जहां हम पैर रख रहे हों, वहां कुछ इंच ही मोटाई हो। अगर ऐसी जगह पर पैर पड गया तो नीचे बहते ठण्डे पानी, ऊपर जमी बरफ, और नीचे दबी चट्टानों में ऐसे फंसेंगे कि कोई चाह कर भी ना तो बच सकता है ना ही कोई बचा सकता है। चौकीदार का कहना है कि इन जगहों में हर साल कई लोग डूब जाते हैं।

जाँच परख कर चलते गाइड

अच्छी तरह जांच परख कर ही ग्लेशियर पर चला जाता है। मेरे लिये इससे बडी बात और क्या थी कि मुझे तीन गाइड मिले थे इन रास्तों पर चलना सिखाने के लिये। बरफ की ऊपरी सतह से भी कुछ कुछ अन्दाजा लग जाता है कि किस जगह पर खतरा है। ऐसा अन्दाजा केवल अनुभवियों को ही होता है, मुझ जैसों को नहीं।

सुन्दर झरना

करीब आधा किलोमीटर ग्लेशियर पर चलने के बाद आता है शानदार झरना। यह यमुना ही है। यही पर त्रिवेणी भी है यानी तीन तरफ से तीन नदियां आकर मिलती हैं। लेकिन तीनों नदियां कहीं पर भी मिलती नहीं दिखती। कारण है बरफ। बरफ के नीचे ही कहीं मिलती हैं।

ग्लेशियर पर खडा एक घुमक्कड।

जैकेट है नेपाली मजदूर की। बाकी तो अपने ही हैं। बडा मजा आता है दसियों फुट मोटी बरफ पर चलने में।

फ़ुर्ती से पहाङ चढता पहाङी

ये पहाडी लोग पता नहीं कौन सी इन्द्री विकसित कर लेते हैं कि मुश्किल से मुश्किल जगह पर आसानी से चले जाते हैं। मैने इसे चढते हुए बडे ध्यान से देखा, फिर जब खुद चढने लगा तो पैर फिसलने लगे, हाथों से घास पकडी तो घास उखडने लगी। आखिरकार इसका पीछा करना छोड दिया।

त्रिवेणी वाला झरना

यह वही त्रिवेणी वाला झरना है। नेपाली ऊपर वाले चित्र में दिखाये अनुसार चढकर इसी के करीब गया था। उत्साह था इस बन्दे में। कहता है कि ‘नीचे’ वाला इलाका बकवास है। नीचे मतलब मैदानी इलाका। नौकरी ढूंढने जाओ तो दो हजार की नौकरी मिलेगी, दो हजार का ही एक कमरा मिलेगा। एक तरफ से कमाओ और दूसरी तरफ खर्च कर दो। बचत है तो केवल पहाड में। मैं आजकल सरिये का काम कर रहा हूं। सीजन शुरू हो जायेगा तो चौकीदार के ही ‘होटल’ में मुनीम बन जाऊंगा। जो भी कमाई होगी, सारी जेब में ही तो जायेगी। हजारों रुपये इकट्ठे करके नेपाल जाऊंगा।

त्रिवेणी झरने का विहंगम दृश्य।

त्रिवेणी नाम कहीं भी लिखा नहीं मिलेगा। मैं केवल सुविधा के लिये इस शब्द का इस्तेमाल कर रहा हूं। इन पहाडों में इस तरह के अनगिनत झरने हैं, एक से बढकर एक।

खडे पहाडों के बीच फैला ग्लेशियर।

दूर उस सिरे पर दो जने दिख रहे हैं। चौकीदार और नेपाली हैं वे। उन्हे एक पेड का ठूंठ मिल गया था। उसे उठाने गये हैं।

(अगली बार आप और जोरदार प्रस्तुति पढेंगे।)

यमुनोत्री में ग्लेशियर was last modified: August 12th, 2024 by Neeraj Jat
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