मसूरी की यात्रा मे पानी का विकराल रूप

आज उत्तराखंड के हालात देखकर मुझे अपनी सितम्बर २०१० की यात्रा याद आ गयी जब काफी कुछ ऐसे ही हालात थे, उस वक़्त बड़ी मुश्किल से ही हम वापिस दिल्ली आ पाए थे। जुलाई मे हम छ लोग नैनीताल होकर आये थे और गज़ब का रोमांचक अनुभव रहा था, जिसको मे आगे अन्य लेख मे बताऊगा। हम छ लोगो मे भगवानदास जी, मनमोहन, मनोज, योगेश, भाटिया जी और मै थे। सितम्बर मे बारिश कम हो जाती है इसलिए यही सोचा की मौसम अच्छा मिलेगा। हम लोगो ने शुक्रवार की रात को निकलने का कार्यक्रम बनाया जिससे कि रविवार की रात तक वापिस आ सके। हम लोगो को हमेशा रात का सफ़र ही अच्छा लगता है सुनसान सड़क पर गाडी मे बैठकर गाने सुनना और एन्जॉय करने का आनंद ही अलग होता है। हमारे कार्यक्रम हमेशा ही १-२ दिन पहले ही बनते है इसलिए जल्दी से मैंने अपने बॉस को अपना कार्यक्रम बताया और इजाजत ली। छ लोग होने की वजह से हमने टवेरा बुक कर दी और रात को १० बजे तक निकलने का कार्यक्रम निश्चित कर लिया, वैसे भी गाड़ी सबसे आखिरी मे सबको लेकर मेरे पास आनी थी। रास्ते के लिए सारा सामान खरीदने की जिम्मेदारी भाटिया जी के पास थी।

शुक्रवार को गाड़ी अपने नियत समय पर मेरे पास आ गयी, सभी लोग पहले से ही गाड़ी मे थे और मेरा सामान भी तैयार था तो बिना देर किये मै भी गाड़ी मे बैठ गया और ड्राईवर को हरी झंडी दे दी। अब हम सबने अपने आपको ड्राईवर के हवाले कर दिया था, रास्ते की चिंता उसको करनी थी, वैसे भी हमको सुबह ५ – ६ बजे तक ही पहुचना था। गाड़ी मे बैठने के बाद हमने कार्यक्रम शुरू किया। दिल्ली के बॉर्डर पहुचने तक सभी नियंत्रण मे रहते है लेकिन उसके बाद सब अपनी मर्जी के मालिक होते है। मोदीनगर पहुचने तक बारिश शुरू हो गयी थी इसलिय गाड़ी की गति थोड़ी कम ही थी। रात को लगभग १ से २ के बीच हमने किसी ढाबे पर खाना खाया और यात्रा वापिस शुरू कर दी वैसे तो मसूरी जाने के लिए दिल्ली – मोदीनगर – मेरठ – मुज़फ्फरनगर – रुड़की – छुटमलपुर – देहरादून – मसूरी वाला रास्ता ही उचित है लेकिन हमारे ड्राईवर के ज्यादा ज्ञानी होने की वजह से हमने ये रास्ता नहीं लिया। उन भाईसाहेब ने पता नहीं क्यों देवबंद – सहारनपुर वाला रास्ता ले लिया और पूरी रात हमारी कमर की जो हालत हुई बता नहीं सकते। रास्ता इतना ज्यादा ख़राब था की गाडी २० – ३० की गति से ज्यादा नहीं चलाई जा सकती थी और ऊपर से सुनसान रास्ता, निकलते थे तो सिर्फ ट्रक। बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही थी और रास्ता खत्म नहीं हो रहा था, दिन निकल गया पर हम यह नहीं समझ पा रहे थे कि हम है कहा। मन ही मन ड्राईवर को इतनी गालिया दे चुके थे जितनी आती थी लेकिन अब क्या कर सकते थे। गलती सभी की थी नींद की वजह से किसी ने ध्यान नहीं दिया कि ड्राईवर ने गाड़ी गलत रास्ते डाल दी है वो तो जब सड़क के गड्ढो ने उछालना शुरू किया तब पता लगा कि गलत रास्ते आ गए है।
भगवान् का नाम लेते लेते लगभग ९ बजे हमने देहरादून मे प्रवेश किया, उस समय बारिश काफी तेज थी और सारी सड़को पर पानी भरा हुआ था, लगातार बारिश देखकर हमारी चिंता बढ़ रही थी क्योकि पहाड़ो पर बारिश के मौसम मे जाना बहुत खतरनाक है, हमारे हाथ मे कुछ भी नहीं था इसलिए गाड़ी को मसूरी के रास्ते पर डाल दिया और लगभग साढ़े दस बजे हम पहले से ही बुक गेस्ट हाउस पर पहुच गए। हम इतना ज्यादा थक चुके थे कि अब बैठने की बिलकुल हिम्मत नहीं थी, पहले हमारा कार्यक्रम शनिवार को सुबह ६ बजे तक पहुचकर ४ से ५ घंटे सोने का था और फिर दिन मे लोकल घुमने का था, उसके बाद रविवार को धनौल्टी जाकर वहा से वापिस दिल्ली निकलने का था लेकिन रास्ते और लगातार बारिश ने सब कुछ ख़राब कर दिया था। हमने जल्दी से बिस्तर पर कब्ज़ा किया और कब हमें नींद आ गयी पता ही नहीं चला। खाने पीने का होश हमें नहीं था। शाम को ४ बजे के आस पास हम उठे, तब तक बारिश भी रूक गयी थी, हमें गेस्ट हाउस के कर्ता धर्ता को चाय के लिए बोला और तैयार होने लगे जिससे की कुछ देर बाहर घूम कर आ सके। चाय पीने के बाद कुछ फोटो गेस्ट हाउस की बालकनी मे भी खिचवाये। उस गेस्ट हाउस मे ४ कमरे थे लेकिन कोई और वहा नहीं टहरा हुआ था इसलिए हमें पूरी आजादी थी, वैसे भी ऐसे मौसम मे कौन आएगा। शाम के खाने के लिए हमने केयर टेकर से पुछा तो वो बोला, ” सर सब्जी, रोटी, चावल का इन्तेजाम तो है लेकिन अगर कुछ मासाहारी चाहिए या कुछ और अलग चाहिए तो आप बाजार जा ही रहे है अपने हिसाब से ले लीजियेगा, मै पका दूगा।” मै और मनोज तो शाकाहारी है लेकिन बाकी चार कहा मानने वाले थे। कुछ फोटो खीचने के बाद हम गेस्ट हाउस से बाहर आ गए, वैसे भी ५ से ज्यादा हो रहे थे और पहाड़ो पर दिन जल्दी खत्म हो जाता है। वहा लोग कहते भी है कि सूर्य अस्त पहाड़ी मस्त।

ऐसे  नजारों के लिए ही इतने दूर आये थे - गेस्ट हाउस से लिया गया फोटो

ऐसे नजारों के लिए ही इतने दूर आये थे – गेस्ट हाउस से लिया गया फोटो


ऐसे  नजारों के लिए ही इतने दूर आये थे | गेस्ट हाउस से लिया गया फोटो

ऐसे नजारों के लिए ही इतने दूर आये थे | गेस्ट हाउस से लिया गया फोटो

दिलकश नजारों के बीच हम भी

दिलकश नजारों के बीच हम भी

हमारा गेस्ट हाउस मॉल रोड से थोड़ा सा ही पहले था इसलिए हमने पैदल ही जाने का निश्चय किया। वैसे हर हिल स्टेशन पर मॉल रोड होती है जहा पर घूमना शादी से पहले बड़ा अच्छा लगता था लेकिन अब तो ये से समय काटने का एक माध्यम ही है, ज्यादातर सामान वहा पर महंगा ही होता है इसलिए कोई छोटा मोटा सामान ही हम वहा से खरीदते है। मॉल रोड पर घूमते हुए १-२ जगहों पर कुछ फोटो भी खिचवाये और आखिर मे रात के कार्यक्रम के लिए सामान ख़रीदा और वापिसी की राह पकड़ ली वैसे भी दिन छिपने लगा था।

यहाँ भी गाँधी जी

यहाँ भी गाँधी जी

मॉल रोड पर लिया गया फोटो

मॉल रोड पर लिया गया फोटो

शाम का नजारा

शाम का नजारा

वापिस आकर रात के खाने से सम्बंधित सामान हमने रसोइये को दे दिया साथ ही भाटिया जी ने भी बोल दिया की मसाले वो सब्जियों मे अपने हिसाब से डालेगे। वहा ऐसी कोई दिक्कत नहीं थी। मौसम ठंडा हो चुका था और बालकनी मे खड़े होने पर हवाए बर्फीली लग रही थी लेकिन जो ताजगी उन हवाओ से मिल रही थी वो दिल्ली मे नसीब नहीं हो सकती। कुछ देर हम बाहर ही खड़े रहे और नजारों के कुछ फोटो भी लिए फिर अन्दर कमरों मे आ गए। मनोज को ठण्ड कुछ ज्यादा ही लग रही थी इसलिए उसने कम्बल अपने चारो तरफ लपेट रखा था। थोड़ी देर बाद ही रात के कार्यक्रम की तय्यारी पूरी हो गयी और सामान मेज पर सजने लगा, कमरों के बहार एक लॉबी भी थी जो कंबाइंड थी लेकिन कोई और वहा नहीं था इसलिए कितना ही शोर शराबा करो किसीको दिक्कत नहीं होनी थी। हम लोग अपने अपने कम्बल लेकर वही बैठ गए और कार्यक्रम शुरू। ऑफिस की समस्याए, भविष्य की योजनाये, पुरानी यादे आदि आदि पर अगले तीन घंटे हमने खूब विचार किया। वाकई मे वो समय ऐसा होता है की जब सभी अपनी समस्याए, अपने यादगार पल साझा करते है। हमने पूरा समय लिया क्योकि रसोई हमारे नियंत्रण मे ही थी इसलिए हमें कोई जल्दी नहीं थी, हमारे मनमोहन भी पूरे जोश मे थे इसलिए थोड़ी देर बालकनी मे नृत्य कार्यक्रम ही हुआ जिसमे मनमोहन, योगेश और भाटिया जी ने सक्रिय रूप से भाग लिया। लगभग १२ बजे हमने खाना शुरू किया और फिर सोने चले गए।

मजे के बीच काम भी हो जाए

मजे के बीच काम भी हो जाए

इतनी मस्ती

इतनी मस्ती

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कारण तो अब हम भी भूल गए इस तरह हसने का

कारण तो अब हम भी भूल गए इस तरह हसने का

अगले दिन का कार्यक्रम मौसम पर निर्भर था, वैसे तो दोपहर से बारिश नहीं हुई थी लेकिन पहाड़ो का मौसम कोई नहीं समझ सकता। सुबह मेरी लगभग ५ बजे के आसपास आँख खुली, उस समय बारिश हो रही थी, मैंने समय देखा, बाथरूम गया और वापिस आकर फिर से सो गया। लगभग ८ बजे मे उठा, भगवान् दास जी थी उठ चुके थे उस वक़्त भी लगातार बारिश हो रही थी, तब तक बाकी सभी लोग भी उठ चुके थे लेकिन बारिश की वजह से कमरे और लॉबी मे ही टहल रहे थे। मौसम देखकर लग नहीं रहा था की बारिश रुकेगी इसलिए हमने सोचा कि ऐसे मे आगे धनौल्टी जाना खतरनाक हो सकता है और यहाँ भी ज्यादा देर रुकना अब उचित नहीं इसलिए नहा धो कर वापिस चलना चाहिए। गेस्ट हाउस के रसोइये से हमने नाश्ते मे आलू के परांठे और आमलेट बनाने के लिए कहा और नहाने और सामान पैकिंग की तेयारी शुरू कर दी। १० बजे तक हम तैयार होकर नाश्ते की मेज पर थे, आलू के परांठो मे मजा आ गया, बाहर जाकर घर जैसा खाना मिल जाए तो सोने पर सुहागा वाली बात हो जाती है। खाना खाकर हमने कमरों और खाने पीने का हिसाब किया और २०० रूपये इनाम के देकर वापिसी के लिए गाडी मे बैठ गए।

ऐसे मौसम मे घर जैसा नाश्ता (मजा आ गया )

ऐसे मौसम मे घर जैसा नाश्ता (मजा आ गया )

बारिश लगातार हो रही थी कभी तेज हो जाती थी तो कभी धीमी, हमने भी ड्राईवर को गाड़ी रफ़्तार धीमी रखने और बहुत ध्यान से गाड़ी चलाने की सलाह दी साथी ही सामने के साथ साथ ऊपर भी निगाह रखने को कहा क्योकि बारिश मे पहाड़ो का खिसकना आम बात है। हमारे पास समय काफी था इसलिए हमने सहस्रधारा जाने का भी निश्चय किया, सहस्रधारा देहरादून का प्रसिद्द वाटर फॉल है और मसूरी से लगभग ३० किलोमीटर दूर है। रास्ते मे कई जगह पहाड़ खिसके हुए थे लेकिन गनीमत था कि कोई रास्ता बंद नहीं हुआ था।
बारिश की वजह से रास्ते मे छोटे छोटे झरने बन गए थे जो कि पहाड़ो पर आम बात है, कई जगह रास्ते मे लोग गाड़ी से उतरकर वहा पर नहा रहे थे और उछल कूद मचा रहे थे जिसको देखकर हमारे मनमोहन का मन भी मचल गया और जैसे ही आगे एक और झरना आया जहा पर कोई था भी नहीं हमने गाड़ी रुकवा दी, मनमोहन को देखकर मनोज और योगेश मे भी जोश आ गया और उन्होंने ने भी वह नहाने का निश्चय कर लिया, उसके बाद उन लोगो ने वहा जम कर मस्ती की वो कपड़े पहने पहने ही पानी मे घुस गए, उन्होंने हमें खीचने की भी कोशिश की लेकिन हमने दूर रहना ही ठीक समझा। कुछ देर मस्ती करने के बाद वो लोग बाहर आ गए और सामने ही एक दुकान पर कपड़े बदले, वही पर चाय पी और फिर आगे के लिए चल दिए।

 ऐसा आनंद और कहा

ऐसा आनंद और कहा

 मनोज भी कहा पीछे रहेगा

मनोज भी कहा पीछे रहेगा

मौका नहीं छोड़ेगे

मौका नहीं छोड़ेगे

उफ़ ये पानी

उफ़ ये पानी

 पानी का ये रोद्र रूप

पानी का ये रोद्र रूप

 पानी रे पानी तेरा रंग कैसा

पानी रे पानी तेरा रंग कैसा

रास्ते मे गाड़ी रोककर उतरने का कोई भी मौका हम छोड़ नहीं रहे थे सब जगह सिर्फ पानी ही पानी दिख रहा था। सहस्रधारा पहुचने पर देखा कि वह बिलकुल ही सुनसान है सिर्फ एक दो दुकाने खुली हुई थी और पर्यटक तो कोई भी नहीं था, जो एक दो दुकाने खुली हुई थी वो लोग भी हमें आश्चर्य से देख रहे थे कि ऐसे मौसम में ये कौन घर से खाली लोग आ गए, बारिश हो रही थी लेकिन अब हम पहले ही काफी भीग चुके थे इसलिए उसकी चिंता नहीं थी, हम दुकानों के पीछे वाले रास्ते से जैसे ही झरने के पास पहुचे, झरने तक तो खैर गए ही नहीं लेकिन पानी का वो विकराल रूप देखकर एक बार तो हम सिहर गए क्योकि ऐसा नजारा हमने अपनी याद मे तो नहीं देखा था। वहा पर किनारे किनारे चलते हुए भी डर लग रहा था, हम वहा पर कुछ देर रहे, फोटो खिचे और विडियो फिल्म बनायीं। पानी का बहाव इतना तेज था कि अगर आप अपना एक हाथ भी अन्दर डालो तो लगता था की बहाव आपको खीच कर ले जाएगा। हम आधा घंटा वहा रहे फिर वहा से चलने का भी निश्चय किया गया। कपड़े काफी गीले हो गए थे लेकिन अब परवाह किसे थी, ऐसे ही गाड़ी मे बैठे और ड्राईवर को आगे बढ़ाने का इशारा कर दिया, अब हमें सीधे दिल्ली ही जाना था लेकिन इस बार हमने हरिद्वार होते हुए दिल्ली जाने का निश्चय किया।
हरिद्वार के रास्ते मे भी हर जगह हमें सिर्फ पानी ही पानी दिख रहा था, आस पास के सारे खेत पानी मे डूबे हुए थे। वाकई मे पानी का ऐसा विकराल रूप हम पहली बार ही देख रहे थे। सड़को की हालत भी ख़राब हो गयी थी जो की पानी की वजह से टूट गयी थी। हरिद्वार पहुचने पर हमने गाड़ी एक तरफ लगायी और पानी का रोद्र रूप देखने के लिए पुल पर खड़े हो गए, पहले से काफी लोग वहा पर थे जो कि आसपास की जगह से वहा आये हुए थे। पानी की तरफ देखने मात्र से ही एक सिहरन शरीर मे दौड़ रही थी। हमने वहा पर कुछ फोटो खीचे और विडियो फिल्म बनाई। वहा पर लोगो से बात की तो पता लगा की पहाड़ो पर तो स्थिती और भी ख़राब हो गयी है और ज्यादातर रास्ते बंद हो गए है। हमने अपने मित्र को फ़ोन लगाया जो नैनीताल मे है तो उसने भी यही कहा की आप लोग ज्यादा देर मत करो क्योकि स्थिती वाकई मे बहुत ज्यादा ख़राब है, पानी की वजह से कई जगह सड़के बह गयी थी इसलिए वो रास्ते ही बंद हो गए थे कही ऐसा न हो की हम हरिद्वार मे ही फस जाए, ये सुनकर हमने बिना देर किये वहा से निकलने का निश्चय किया और खाने का विचार भी त्याग दिया। सोच लिया था की अब खाना पुरकाजी या मुज़फ्फरनगर पहुचकर ही खायेगे।

 हरिद्वार मे गंगा जी

हरिद्वार मे गंगा जी

 हरिद्वार मे गंगा जी

हरिद्वार मे गंगा जी

हरिद्वार से रूड़की के रास्ते मे पता नहीं कितनी बार हमारा रूट बदला गया, रास्तो का तो पता ही नहीं चल रहा था। लोगो के आगे पीछे चलते हुए और लोगो से पूछते हुए ही हम आगे बढ़ रहे थे। किसी तरह रूड़की पहुचे तो फिर से हमें नए रास्ते पर डाल दिया गया, उस रास्ते पर आगे गए तो फिर से गयी भैस पानी मे। आगे फिर सड़क पर पानी ही पानी दिख रहा था और बहुत सारी गाड़िया किनारे पर खड़ी हुई थी, हमने भी गाड़ी रुकवाई और पैदल ही वहा पहुचे, आगे का नजारा भी डराने वाला था। सड़क का एक हिस्सा टूट चूका था जो की बस की वजह से टूटा था और पूरी सड़क पर पानी था, वाहन ले जाते हुए लोग इसलिए डर रहे थे कि उसके वजन से सड़क धस न जाए। हमारी भी हालत ख़राब क्योकि पीछे भी रास्ता बंद और यहाँ भी कभी भी हो सकता था। उसके बाद १-२ गाड़ी वालो ने आगे निकलने का मन बना ही लिया क्योकि वहा रुकने से कोई फायदा नहीं था, अगर एक बार सड़क टूट जाती तो फिर हम कही भी नहीं जा सकते थे, उन लोगो ने पहले गाड़ी से उतरकर पैदल ही रास्ता पार किया ताकि गाड़ी का वजन कम रहे उसके बाद ड्राईवर ने अकेले गाड़ी धीरे धीरे बाहर निकाल ली, उन्हें देखकर हमने भी ऐसा ही किया और फिर से यात्रा शुरू कर दी। उसके बाद हमें इतनी दिक्कत नहीं हुई और लगभग ५ बजे हम पुरकाजी पार कर चुके थे। फिर हम कुछ खाने के लिए एक ढाबे पर रुके, वहा पर भी काफी लोग थे जो पीछे से आये थे और कुछ को हरिद्वार ही जाना था लेकिन रास्ता बंद होने की वजह से वो वही फस गए थे। एक व्यक्ति से हम मिले जिसकी पत्नी और बच्चे हरिद्वार से आ रहे थे लेकिन रास्ते मे कही फसे हुए थे और वो भी आगे नहीं जा पा रहा था, वो काफी चिंतित था। उस वक़्त हमें लगा कि अगर हम मसूरी से सुबह न निकलते या कही और रूककर और थोडा समय ख़राब कर देते तो शायद हम भी पीछे ही कही फंसे होते।

छ बजे के आसपास हम खतौली पहुच गए थे लेकिन उस समय बायपास वाला हाईवे तैयार नहीं हुआ था इसलिए हमने जल्दी के चक्कर मे गंग नहर वाला रास्ता ले लिया। ये रास्ता नहर के साथ साथ ही चलता है और मुरादनगर जाकर निकलता है, ज्यादा चोडा रास्ता नहीं है लेकिन यहाँ बस, ट्रक आदि नहीं चलते इसलिए भीड़ नहीं रहती, वैसे तो दिन छिपने के बाद इस रास्ते पर जाना बहुत खतरनाक है क्योकि वहा अगर कही फस गए तो निकल नहीं सकते, दिन छिपने के बाद ये बिलकुल सुनसान हो जाता है। हमने जल्दी की चक्कर मे ये रिस्क भी ले लिया लेकिन वो भी हमारी गलती थी क्योकि वहा का रास्ता भी बहुत ख़राब हो चुका था, कई जगह से सड़क टूट गयी और किनारे से धसने लगी थी। दो या तीन जगह पर हमने गाड़ी से उतरकर पैदल रास्ता पार किया कि कही वजन से सड़क और न धस जाए। भगवान् का नाम लेते लेते आखिर हमने वो रास्ता भी पार कर लिया, उसके बाद कोई दिक्कत नहीं हुई। साढ़े आठ बजे के करीब मै अपने घर पर था क्योकि सबसे पहले मेरा घर ही पड़ता है। मैंने एक चैन की सांस घर पर पहुचते ही ली और टीवी से चिपक गया।

अगले दिन तक स्थिती बहुत बिगड़ गयी थी, यहाँ तक की ऋषिकेश मे लगी शिव जी की प्रतिमा भी पानी के बहाव मे बह गयी थी। उस वक़्त कई वर्षो के रिकॉर्ड टूटे थे लेकिन इस साल वो सब रिकॉर्ड भी टूट गए। आज टीवी पर ये नज़ारे देख कर लगा की अपना अनुभव भी साझा करना चाहिए इसलिए आपके सामने प्रस्तुत किया है।

25 Comments

  • Ritesh Gupta says:

    सौरभ जी….
    बारिश के मौसम में आपकी मसूरी यात्रा अच्छी लगी | मेरे हिसाब से जहाँ तक हो बारिश के मौसम में पहाड़ों की यात्रा करने से बचना चाहिये |
    हमसे से अपना यात्रा विवरण साझा करने के लिए धन्यवाद…..

    • Saurabh Gupta says:

      सही कहा आपने रितेश जी, अब तो हम बरसात के मौसम मे पहाड़ो पर जाने की सोचते भी नहीं है, तीन बार फस चुके है। मनाली से बड़ी मुश्किल से वापिस आ पाए थे।

      लेख पसंद करने के लिए आपका धन्यवाद।

  • Wow! You brought us the first hand experience of these stormy waters that caused so much damage.
    Thanks.

    • Saurabh Gupta says:

      Praveen Ji,

      This was happened in 2010 when the condition of uttranchal was bad due to flood.

      thanks for reading the post.

  • सौरभ, बहुत बढ़िया यात्रा व्रतांत… पानी का रोडर रूप देखकर तो सचमुच रोंगटे खड़े हो जाते है ! सारे फोटो बहुत अच्छे आए है पर मसूरी में होटल की छत से लिया गया फोटो बहुत अच्छा लगा !
    अक्सर मैं भी जुलाई-अगस्त के महीने में ही हिमाचल घूमने जाया करता हूँ पर इस बार उत्तरांचल में प्रलय देखकर मैं सोचने को मजबूर हो गया !

    • Saurabh Gupta says:

      धन्यवाद प्रदीप भाई,

      दो साल पहले हम भी अगस्त के महीने मे मनाली गए थे और और मेरी सलाह तो यही है कि बरसात के मौसम मे मत जाना। उस वक़्त हमें २५ घंटे लगे थे पहुचने मे और बड़ी मुश्किल से ही वापिस आ पाए थे।

  • rakesh kush says:

    आपकी मसूरी यात्रा का विवरण पढ़कर अच्छा लगा,कहते है पहाड़ो की खूबसूरती बारिश मे ही निखरती है,आपकी तस्वीरो मे येसाफ झलकता है..पर जब प्रकर्ति अपना रौद्र रूप दिखाती है तो फिर चारो तरफ तबाही का ही मंज़र होता है,जैसा की इस बार
    उत्तराखंड मे दिखा है जिसने इंसानो को सोचने के लिए मजबूर कर दिया है की कुदरत से खिलवाड़ करना कितना घातक साबित हो सकता है,खैर रही बात बरसात मे पहाड़ घूमने की तो कई बार अगर किस्मत अच्छी रही तो बरसात मे उतरते बादल,चारो तरफ फैले कोहरे और खिलते रंग रंग के फूल,हरियाली ही हरियाली ,बहता पानी, पहाड़ो की खूबसूरती की चरम सीमा दिख जाती है जो शायद और मौसम मे ना दिखे…

    • Saurabh Gupta says:

      आपने सही कहा राकेश जी बरसात मे पहाड़ो की ख़ूबसूरती जबरदस्त होती है इसलिए ही हम अपने आप को वहा जाने से रोक नहीं पाते लेकिन ये खतरनाक है। फिर कुदरत के कहर के आगे हम इंसानों की कोई औकात है भी नहीं ये हमने उत्तरांचल मे देख भी लिया।

      आपको लेख अच्छा लगा उसके लिए धन्यवाद।

  • Mukesh Bhalse says:

    सौरभ जी,
    सौम्य एवं सुन्दर शब्द विन्यास से सजा हुआ मनोरंजक एवं रोमांचक लेख। छाया चित्र भी लुभावने लगे। कुल मिला कर मन को तृप्ति देनेवाली यह पोस्ट सम्पूर्णता लिए हुए थी।

    अपनी वर्षों की घुमक्कड़ी में कभी पहाड़ों की ओर रुख करने का संयोग नहीं बन पाया, और अब जबकी अगले वर्ष उत्तराखंड (बद्रीनाथ-केदारनाथ) जाने की हसरतें मन में हिलोरें मार रहीं थीं तो केदारनाथ में मौत का तांडव देखकर दिल दहल गया, शायद ही अब कभी इतनी हिम्मत जुटा पायें। सुन्दर लेख की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई।

    • Saurabh Gupta says:

      धन्यवाद मुकेश जी,

      काफी समय से आपकी उपस्थिति घुमक्कड़ पर बहुत कम रही है ऐसे मे आपकी टिप्पणी पाकर मन प्रसन्न हो गया। आपको लेख अच्छा लगा उसके लिए हार्दिक धन्यवाद।

      पहाड़ो का मौसम और सौंदर्य दिल और दिमाग को एक प्रसन्नता प्रदान करती है इसलिए आपको वहा जरूर जाना चाहिए लेकिन बरसात के मौसम मे तो कभी नहीं।

  • Saurabh Ji,
    Good description of rain hit journey. From photo’s we can understand that you enjoyed a lot.

  • SilentSoul says:

    दिलचस्प दांस्तां है गुप्ता जी..

    मुकेस भाई..उत्तराखंड के हाल सुनने के बाद अब कई सालो तक हिम्मत नही करने वाले

    वहा लोग कहते भी है कि सूर्य अस्त पहाड़ी मस्त। – विपिन जी क्या आप भी सहमत हैं इस कहावत से ???

    • Saurabh Gupta says:

      लेख पसंद करने और टिप्पणी करने के लिए धन्यवाद SS जी।

      काफी समय से आपका कोई लेख नहीं मिला, उम्मीद है कि जल्दी ही आप हमें कही लेकर चलेगे।

      विपिन जी, आप भी प्रकाश डालिए इस कहावत पर।

  • प्रिय सौरभ गुप्ता,

    देहरादून की धरती पर जन्म लिया था, आज भले ही सहारनपुर वासी हो गया हूं । उत्तराखंड के हालात देख कर दिल रोता रहता है, ऊपर से करेला और नीम चढ़ा ये कि प्रदेश की सरकार भी नितान्त नाकारा है, जिसे समझ ही नहीं आ रहा है कि क्या करें, कैसे करें? पूरे देश से राहत सामग्री देहरादून पहुंच रही है, पर कोई उसे संभालने और जरूरतमंदों तक पहुंचाने की व्यवस्था नहीं कर पा रहा है। खैर, जो भाग्य में लिखा है, वह तो होगा ही !

    अब आता हूं आपकी पोस्ट पर ! आपने अपने लेखनी और चित्रों से उस वातावरण को पुनः उपस्थित कर दिया है, जो आपने वहां पर भीषण वर्षा के दौरान झेला था। अगर तकनीक इसी तरह से आगे बढ़ती रही तो कुछ दिन बाद हमें घुमक्कड़ डॉट कॉम पर त्रि-आयामी चित्र भी देखने को मिलेंगे जिनमें बाढ़ के दृश्य देख कर ही होश फाख्ता जो जायेंगे । आपकी जिजीविषा को सैल्यूट करता हूं कि आप इतना सब कुछ प्रतिकूल होने के बावजूद भी बढ़ते रहे – बढ़ते रहे और अपने लक्ष्य तक पहुंच कर ही दम लिया।

    आपने मुज़फ्फरनगर से रुड़की के बजाय देवबन्द – सहारनपुर का रूट पकड़ लिया और जो हिचकोले खाये, वह तो हम सहारनपुर वासियों का प्रारब्ध बन चुका है। हमारे उत्तम प्रदेश के मूकमंत्री माननीय अल्हड़सिंह जी यादव से यदि आप पूछें कि सड़कें कब ठीक होंगी तो कहेंगे कि फिलहाल तो लैपटॉप की बात करो ! सड़कों में क्या रखा है ! मुझे तो इस बात की खुशी है कि वह उत्तराखंड का हवाई दौरा करने नहीं गये वरना हवाई जहाज से ही सौ – दो सौ लैपटॉप उत्तराखंड के पहाड़ों – जंगलों में फंसे भूखे प्यासे बाढ़ पीड़ितो के उपयोग हेतु फेंक आते !

    • Saurabh Gupta says:

      श्री सुशांत जी, सबसे पहले तो आपका बहुत बहुत धन्यवाद कि आप अपना समय निकाल कर लेख तक आये और अपने विचार भी प्रकट किये।

      सरकार सिर्फ उत्तरांचल की ही नहीं सब जगह की नाकारा है लेकिन उसमे उनका दोष नहीं, जब तक हम जाति और धर्म के आधार पर वोट करते रहेगे, हर बार उनके उलटे सीधे प्रलोभनों मे फसते रहेगे तब तक ऐसा ही होगा, आज ताज्जुब होता है कि सरकार खाने से पहले लैपटॉप और मोबाइल देकर किस तरह भारत का निर्माण कर रही है, खैर राजनीति तो ऐसा मुद्दा है कि जिस पर जितनी बहस की जाए कम है।

      उत्तरांचल मे जो हुआ वो कुदरत का कहर था लेकिन बाद मे जो हुआ उसको क्या कहे, सरकार की उदासीनता या ताल मेल की कमी, आपदा के बाद जो लोग भूख प्यास से मर गए उनका जिम्मेदार कौन? जो लूट खसोट बाद मे हुई उसका जिम्मेदार कौन? राहत सामग्री पड़ी सड़ रही है लेकिन जिनको जरूरत है उन तक नहीं पहुच रही, चिंता सिर्फ पर्यटकों और श्रद्धालुओ की हो रही है लेकिन जो स्थानीय लोग तबाह हो गए उनकी कोई चिंता नहीं।

      सर बचपन से देख रहा हूँ सहरानपुर का रास्ता लेकिन वहा हमेशा ही गड्ढो में सड़क रही है पता नहीं कब सुधार होगा और आपने सही कहा जल्दी ही वो समय भी आएगा लोग यात्रा पर जायेगे और वहा से उनकी यात्रा घुमक्कड़ पर लाइव होगी। नंदन जी को धन्यवाद है ऐसा प्लेटफार्म देने के लिए।

      आखिर मे आपका धन्यवाद लेख पसंद करने के लिए, सही कहे तो उस समय हमें पता ही नहीं था कि ऐसे हालात हो जायेगे, इससे ज्यादा बुरे हालात मनाली मे हुए थे, कोशिश करूगा उस अनुभव को भी साझा करने की।

  • Nandan Jha says:

    During the same time (2nd week of Sep), we were off to Rishikesh (Phoolchatti, to be precise). On the way up, we were able to take the inside road (right of Ganges) which goes via Rajaji National park but when we were returning we could not take that road, since there is a river bed which you need to cross.

    From Haridwar to Delhi, it was a really long long drive. Multiple diversions after Roorkee. We also took the canal route for some distance. The new bypass was not there and there was no road near Khatauli.

    Hope the current situation gets better soon. As per Army and IAF, they would be done with all the sorties by tonight. I am going to Kumaon side tomorrow and I can already sense the sentiment. God bless.

    • Saurabh Gupta says:

      Thanks Nandan Ji,

      Yes the situation was worst at that time. We had also tried to come by same road via Rajaji National Park but due to heavy rain it was closed.

      Please share what you feel at Kumaon now hope the situation is some better.

  • Sharma Shreeniwas says:

    श्रीगुप्ताजी,
    पानी का भयावह चित्रण पढकर मुझे 2010 में अपनी यात्रा के अंतर्गत बद्रीनाथ से लौटते हुये श्रीनगर से पहले ढहते पहाड़ का रोमांचक दृश्य याद आ गया। पहाड़ों की यात्राओं में मन लुभानेवाले प्राकृतिक सौन्दर्य की याद इतनी प्रबल होती है कि बरसात जनित प्राकृतिक आपदाएं एक एडवेंचर की तरह मन में बस जाती हैं, उनसे डरकर भविष्य के प्रोग्राम को टाला नहीं जा सकता, उसे पुन: जीने की इच्छा करती है। इस लेख के लिये आपको धन्यवाद ।

    • Saurabh Gupta says:

      बहुत बहुत धन्यवाद शर्मा जी अपने विचार रखने के लिए और लेख पसंद करने के लिए।

      सही कहा आपने बरसात मे पहाड़ो का सौंदर्य होता ही ऐसा है कि बार बार जाने का मन करे, बादलो की आँख मिचोली और जगह जगह पर पानी के झरने, इसलिए ही बार बार हम अपने आप को रोक नहीं पाते और पहुच जाते है फिर पछताते भी है।

      अच्छा लगेगा अगर आप भी अपना अनुभव शेयर करे।

      • Sharma Shreeniwas says:

        मेरी चार धाम यात्रा घुमक्कड़ पर मित्रों की अनेक सद्भावनापूर्ण कमेण्ट के साथ पब्लिश हो चुकी है। और लिखने की इच्छा के उपरांत भी लिखना नही हो पाता है। शायद यही परवशता है। अनेक शुभकामनाओं के साथ …

  • abheeruchi says:

    Hi,
    Apki post acchi lagi.khas kar ke pictures jo guest house se liye hai.first half me sirf humari mussorie trip ko yaad kar rahi thi.mausam ke karan trip pe paani phir jaaye to bahut dukh hota hai.yaha canada me ek nayi cheez dekhi jo share karna chahungi.yaha weather bahut unpredictable hai.kadak dhoop ke do ghante baad hi jordaar barish aa jaati hai.yaha par ek 24 hrs weather channel aata hai.mostly sabke mobile me weather ki app hoti hai.jyadatar log weather dekh ke ghar se nikalte hai.mera yaha ka 3 mahine ka exp hai ki saari forecast sahi nikalti hai.natural calamity ko hum rok to nahi sakte par avoid zarur kar sakte hai.uttrakhand ki news dekh ke aisa hi kuch badhiya wale weather network ki zarurat lagti hai India me.yaha to 27 degree pe heat alert aa jata hai logo ko indoor rehne ki advice govt se aa jaati hai.khair jyada canada ki tarif nahi,koshish ye honi chahiye ki apne desh ko improve karne ke liye hum kya contribute kar sakte hai.
    Btw post was good,paani ke vikraal rup ke pictures bhi acche lage.
    Thanks for sharing.

    • Saurabh Gupta says:

      धन्यवाद अभी जी लेख पसंद करने के लिए।

      ट्रिप पर पानी तो नहीं फिरा क्योकि जो एन्जॉय हमने किया था वो शायद वैसे न हो पाता।

      ये सब सुनकर अफ़सोस होता है अगर कनाड़ा मे ऐसी तकनीक है तो हमारे पास क्यों नहीं या फिर सरकारी तंत्र ही नाकारा है। अगर उस समय उत्तरांचल मे भी सरकारी तंत्र मजबूत होता तो शायद नुकसान इतना नहीं होता। खैर जो होना था उस पर किसी का बस नहीं।

      धन्यवाद् आपने ये सब शेयर किया उम्मीद है जल्दी ही कुछ पढने को भी मिलेगा आपसे।

  • Nirdesh Singh says:

    Hi Saurabh,

    Yes, what is happening in Uttarakhand is both tragic and criminal.

    But then nobody learns and soon everything will be forgotten.

    Also, no attampts are made to store this water or replenish water bodies. Few months later, the same areas will be thirsting for water.

    Enjoyed the post. Its nice to have a set of friends who are ready to bolt the moment a ghumakkari chance comes along.

    • Saurabh Gupta says:

      You are right Nirdesh Ji.

      It’s in our nature to forget everything is short time. because of this administration or govt are not serious to take any step.

      Thanks for liking the post.
      Regards.

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