आज उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–ंड के हालात देखकर मà¥à¤à¥‡ अपनी सितमà¥à¤¬à¤° २०१० की यातà¥à¤°à¤¾ याद आ गयी जब काफी कà¥à¤› à¤à¤¸à¥‡ ही हालात थे, उस वक़à¥à¤¤ बड़ी मà¥à¤¶à¥à¤•िल से ही हम वापिस दिलà¥à¤²à¥€ आ पाठथे। जà¥à¤²à¤¾à¤ˆ मे हम छ लोग नैनीताल होकर आये थे और गज़ब का रोमांचक अनà¥à¤à¤µ रहा था, जिसको मे आगे अनà¥à¤¯ लेख मे बताऊगा। हम छ लोगो मे à¤à¤—वानदास जी, मनमोहन, मनोज, योगेश, à¤à¤¾à¤Ÿà¤¿à¤¯à¤¾ जी और मै थे। सितमà¥à¤¬à¤° मे बारिश कम हो जाती है इसलिठयही सोचा की मौसम अचà¥à¤›à¤¾ मिलेगा। हम लोगो ने शà¥à¤•à¥à¤°à¤µà¤¾à¤° की रात को निकलने का कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® बनाया जिससे कि रविवार की रात तक वापिस आ सके। हम लोगो को हमेशा रात का सफ़र ही अचà¥à¤›à¤¾ लगता है सà¥à¤¨à¤¸à¤¾à¤¨ सड़क पर गाडी मे बैठकर गाने सà¥à¤¨à¤¨à¤¾ और à¤à¤¨à¥à¤œà¥‰à¤¯ करने का आनंद ही अलग होता है। हमारे कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® हमेशा ही १-२ दिन पहले ही बनते है इसलिठजलà¥à¤¦à¥€ से मैंने अपने बॉस को अपना कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® बताया और इजाजत ली। छ लोग होने की वजह से हमने टवेरा बà¥à¤• कर दी और रात को १० बजे तक निकलने का कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ कर लिया, वैसे à¤à¥€ गाड़ी सबसे आखिरी मे सबको लेकर मेरे पास आनी थी। रासà¥à¤¤à¥‡ के लिठसारा सामान खरीदने की जिमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¥€ à¤à¤¾à¤Ÿà¤¿à¤¯à¤¾ जी के पास थी।
शà¥à¤•à¥à¤°à¤µà¤¾à¤° को गाड़ी अपने नियत समय पर मेरे पास आ गयी, सà¤à¥€ लोग पहले से ही गाड़ी मे थे और मेरा सामान à¤à¥€ तैयार था तो बिना देर किये मै à¤à¥€ गाड़ी मे बैठगया और डà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤µà¤° को हरी à¤à¤‚डी दे दी। अब हम सबने अपने आपको डà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤µà¤° के हवाले कर दिया था, रासà¥à¤¤à¥‡ की चिंता उसको करनी थी, वैसे à¤à¥€ हमको सà¥à¤¬à¤¹ ५ – ६ बजे तक ही पहà¥à¤šà¤¨à¤¾ था। गाड़ी मे बैठने के बाद हमने कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® शà¥à¤°à¥‚ किया। दिलà¥à¤²à¥€ के बॉरà¥à¤¡à¤° पहà¥à¤šà¤¨à¥‡ तक सà¤à¥€ नियंतà¥à¤°à¤£ मे रहते है लेकिन उसके बाद सब अपनी मरà¥à¤œà¥€ के मालिक होते है। मोदीनगर पहà¥à¤šà¤¨à¥‡ तक बारिश शà¥à¤°à¥‚ हो गयी थी इसलिय गाड़ी की गति थोड़ी कम ही थी। रात को लगà¤à¤— १ से २ के बीच हमने किसी ढाबे पर खाना खाया और यातà¥à¤°à¤¾ वापिस शà¥à¤°à¥‚ कर दी वैसे तो मसूरी जाने के लिठदिलà¥à¤²à¥€ – मोदीनगर – मेरठ– मà¥à¤œà¤¼à¤«à¥à¤«à¤°à¤¨à¤—र – रà¥à¤¡à¤¼à¤•ी – छà¥à¤Ÿà¤®à¤²à¤ªà¥à¤° – देहरादून – मसूरी वाला रासà¥à¤¤à¤¾ ही उचित है लेकिन हमारे डà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤µà¤° के जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€ होने की वजह से हमने ये रासà¥à¤¤à¤¾ नहीं लिया। उन à¤à¤¾à¤ˆà¤¸à¤¾à¤¹à¥‡à¤¬ ने पता नहीं कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ देवबंद – सहारनपà¥à¤° वाला रासà¥à¤¤à¤¾ ले लिया और पूरी रात हमारी कमर की जो हालत हà¥à¤ˆ बता नहीं सकते। रासà¥à¤¤à¤¾ इतना जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ ख़राब था की गाडी २० – ३० की गति से जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ नहीं चलाई जा सकती थी और ऊपर से सà¥à¤¨à¤¸à¤¾à¤¨ रासà¥à¤¤à¤¾, निकलते थे तो सिरà¥à¤« टà¥à¤°à¤•। बारिश रà¥à¤•ने का नाम नहीं ले रही थी और रासà¥à¤¤à¤¾ खतà¥à¤® नहीं हो रहा था, दिन निकल गया पर हम यह नहीं समठपा रहे थे कि हम है कहा। मन ही मन डà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤µà¤° को इतनी गालिया दे चà¥à¤•े थे जितनी आती थी लेकिन अब कà¥à¤¯à¤¾ कर सकते थे। गलती सà¤à¥€ की थी नींद की वजह से किसी ने धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ नहीं दिया कि डà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤µà¤° ने गाड़ी गलत रासà¥à¤¤à¥‡ डाल दी है वो तो जब सड़क के गडà¥à¤¢à¥‹ ने उछालना शà¥à¤°à¥‚ किया तब पता लगा कि गलत रासà¥à¤¤à¥‡ आ गठहै।
à¤à¤—वानॠका नाम लेते लेते लगà¤à¤— ९ बजे हमने देहरादून मे पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ किया, उस समय बारिश काफी तेज थी और सारी सड़को पर पानी à¤à¤°à¤¾ हà¥à¤† था, लगातार बारिश देखकर हमारी चिंता बढ़ रही थी कà¥à¤¯à¥‹à¤•ि पहाड़ो पर बारिश के मौसम मे जाना बहà¥à¤¤ खतरनाक है, हमारे हाथ मे कà¥à¤› à¤à¥€ नहीं था इसलिठगाड़ी को मसूरी के रासà¥à¤¤à¥‡ पर डाल दिया और लगà¤à¤— साढ़े दस बजे हम पहले से ही बà¥à¤• गेसà¥à¤Ÿ हाउस पर पहà¥à¤š गà¤à¥¤ हम इतना जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ थक चà¥à¤•े थे कि अब बैठने की बिलकà¥à¤² हिमà¥à¤®à¤¤ नहीं थी, पहले हमारा कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® शनिवार को सà¥à¤¬à¤¹ ६ बजे तक पहà¥à¤šà¤•र ४ से ५ घंटे सोने का था और फिर दिन मे लोकल घà¥à¤®à¤¨à¥‡ का था, उसके बाद रविवार को धनौलà¥à¤Ÿà¥€ जाकर वहा से वापिस दिलà¥à¤²à¥€ निकलने का था लेकिन रासà¥à¤¤à¥‡ और लगातार बारिश ने सब कà¥à¤› ख़राब कर दिया था। हमने जलà¥à¤¦à¥€ से बिसà¥à¤¤à¤° पर कबà¥à¤œà¤¼à¤¾ किया और कब हमें नींद आ गयी पता ही नहीं चला। खाने पीने का होश हमें नहीं था। शाम को ४ बजे के आस पास हम उठे, तब तक बारिश à¤à¥€ रूक गयी थी, हमें गेसà¥à¤Ÿ हाउस के करà¥à¤¤à¤¾ धरà¥à¤¤à¤¾ को चाय के लिठबोला और तैयार होने लगे जिससे की कà¥à¤› देर बाहर घूम कर आ सके। चाय पीने के बाद कà¥à¤› फोटो गेसà¥à¤Ÿ हाउस की बालकनी मे à¤à¥€ खिचवाये। उस गेसà¥à¤Ÿ हाउस मे ४ कमरे थे लेकिन कोई और वहा नहीं टहरा हà¥à¤† था इसलिठहमें पूरी आजादी थी, वैसे à¤à¥€ à¤à¤¸à¥‡ मौसम मे कौन आà¤à¤—ा। शाम के खाने के लिठहमने केयर टेकर से पà¥à¤›à¤¾ तो वो बोला, ” सर सबà¥à¤œà¥€, रोटी, चावल का इनà¥à¤¤à¥‡à¤œà¤¾à¤® तो है लेकिन अगर कà¥à¤› मासाहारी चाहिठया कà¥à¤› और अलग चाहिठतो आप बाजार जा ही रहे है अपने हिसाब से ले लीजियेगा, मै पका दूगा।” मै और मनोज तो शाकाहारी है लेकिन बाकी चार कहा मानने वाले थे। कà¥à¤› फोटो खीचने के बाद हम गेसà¥à¤Ÿ हाउस से बाहर आ गà¤, वैसे à¤à¥€ ५ से जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ हो रहे थे और पहाड़ो पर दिन जलà¥à¤¦à¥€ खतà¥à¤® हो जाता है। वहा लोग कहते à¤à¥€ है कि सूरà¥à¤¯ असà¥à¤¤ पहाड़ी मसà¥à¤¤à¥¤

à¤à¤¸à¥‡ नजारों के लिठही इतने दूर आये थे – गेसà¥à¤Ÿ हाउस से लिया गया फोटो

à¤à¤¸à¥‡ नजारों के लिठही इतने दूर आये थे | गेसà¥à¤Ÿ हाउस से लिया गया फोटो
हमारा गेसà¥à¤Ÿ हाउस मॉल रोड से थोड़ा सा ही पहले था इसलिठहमने पैदल ही जाने का निशà¥à¤šà¤¯ किया। वैसे हर हिल सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ पर मॉल रोड होती है जहा पर घूमना शादी से पहले बड़ा अचà¥à¤›à¤¾ लगता था लेकिन अब तो ये से समय काटने का à¤à¤• माधà¥à¤¯à¤® ही है, जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾à¤¤à¤° सामान वहा पर महंगा ही होता है इसलिठकोई छोटा मोटा सामान ही हम वहा से खरीदते है। मॉल रोड पर घूमते हà¥à¤ १-२ जगहों पर कà¥à¤› फोटो à¤à¥€ खिचवाये और आखिर मे रात के कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® के लिठसामान ख़रीदा और वापिसी की राह पकड़ ली वैसे à¤à¥€ दिन छिपने लगा था।
वापिस आकर रात के खाने से समà¥à¤¬à¤‚धित सामान हमने रसोइये को दे दिया साथ ही à¤à¤¾à¤Ÿà¤¿à¤¯à¤¾ जी ने à¤à¥€ बोल दिया की मसाले वो सबà¥à¤œà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ मे अपने हिसाब से डालेगे। वहा à¤à¤¸à¥€ कोई दिकà¥à¤•त नहीं थी। मौसम ठंडा हो चà¥à¤•ा था और बालकनी मे खड़े होने पर हवाठबरà¥à¤«à¥€à¤²à¥€ लग रही थी लेकिन जो ताजगी उन हवाओ से मिल रही थी वो दिलà¥à¤²à¥€ मे नसीब नहीं हो सकती। कà¥à¤› देर हम बाहर ही खड़े रहे और नजारों के कà¥à¤› फोटो à¤à¥€ लिठफिर अनà¥à¤¦à¤° कमरों मे आ गà¤à¥¤ मनोज को ठणà¥à¤¡ कà¥à¤› जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ ही लग रही थी इसलिठउसने कमà¥à¤¬à¤² अपने चारो तरफ लपेट रखा था। थोड़ी देर बाद ही रात के कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® की तयà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥€ पूरी हो गयी और सामान मेज पर सजने लगा, कमरों के बहार à¤à¤• लॉबी à¤à¥€ थी जो कंबाइंड थी लेकिन कोई और वहा नहीं था इसलिठकितना ही शोर शराबा करो किसीको दिकà¥à¤•त नहीं होनी थी। हम लोग अपने अपने कमà¥à¤¬à¤² लेकर वही बैठगठऔर कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® शà¥à¤°à¥‚। ऑफिस की समसà¥à¤¯à¤¾à¤, à¤à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯ की योजनाये, पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ यादे आदि आदि पर अगले तीन घंटे हमने खूब विचार किया। वाकई मे वो समय à¤à¤¸à¤¾ होता है की जब सà¤à¥€ अपनी समसà¥à¤¯à¤¾à¤, अपने यादगार पल साà¤à¤¾ करते है। हमने पूरा समय लिया कà¥à¤¯à¥‹à¤•ि रसोई हमारे नियंतà¥à¤°à¤£ मे ही थी इसलिठहमें कोई जलà¥à¤¦à¥€ नहीं थी, हमारे मनमोहन à¤à¥€ पूरे जोश मे थे इसलिठथोड़ी देर बालकनी मे नृतà¥à¤¯ कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® ही हà¥à¤† जिसमे मनमोहन, योगेश और à¤à¤¾à¤Ÿà¤¿à¤¯à¤¾ जी ने सकà¥à¤°à¤¿à¤¯ रूप से à¤à¤¾à¤— लिया। लगà¤à¤— १२ बजे हमने खाना शà¥à¤°à¥‚ किया और फिर सोने चले गà¤à¥¤
अगले दिन का कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® मौसम पर निरà¥à¤à¤° था, वैसे तो दोपहर से बारिश नहीं हà¥à¤ˆ थी लेकिन पहाड़ो का मौसम कोई नहीं समठसकता। सà¥à¤¬à¤¹ मेरी लगà¤à¤— ५ बजे के आसपास आà¤à¤– खà¥à¤²à¥€, उस समय बारिश हो रही थी, मैंने समय देखा, बाथरूम गया और वापिस आकर फिर से सो गया। लगà¤à¤— ८ बजे मे उठा, à¤à¤—वानॠदास जी थी उठचà¥à¤•े थे उस वक़à¥à¤¤ à¤à¥€ लगातार बारिश हो रही थी, तब तक बाकी सà¤à¥€ लोग à¤à¥€ उठचà¥à¤•े थे लेकिन बारिश की वजह से कमरे और लॉबी मे ही टहल रहे थे। मौसम देखकर लग नहीं रहा था की बारिश रà¥à¤•ेगी इसलिठहमने सोचा कि à¤à¤¸à¥‡ मे आगे धनौलà¥à¤Ÿà¥€ जाना खतरनाक हो सकता है और यहाठà¤à¥€ जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ देर रà¥à¤•ना अब उचित नहीं इसलिठनहा धो कर वापिस चलना चाहिà¤à¥¤ गेसà¥à¤Ÿ हाउस के रसोइये से हमने नाशà¥à¤¤à¥‡ मे आलू के परांठे और आमलेट बनाने के लिठकहा और नहाने और सामान पैकिंग की तेयारी शà¥à¤°à¥‚ कर दी। १० बजे तक हम तैयार होकर नाशà¥à¤¤à¥‡ की मेज पर थे, आलू के परांठो मे मजा आ गया, बाहर जाकर घर जैसा खाना मिल जाठतो सोने पर सà¥à¤¹à¤¾à¤—ा वाली बात हो जाती है। खाना खाकर हमने कमरों और खाने पीने का हिसाब किया और २०० रूपये इनाम के देकर वापिसी के लिठगाडी मे बैठगà¤à¥¤
बारिश लगातार हो रही थी कà¤à¥€ तेज हो जाती थी तो कà¤à¥€ धीमी, हमने à¤à¥€ डà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤µà¤° को गाड़ी रफ़à¥à¤¤à¤¾à¤° धीमी रखने और बहà¥à¤¤ धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ से गाड़ी चलाने की सलाह दी साथी ही सामने के साथ साथ ऊपर à¤à¥€ निगाह रखने को कहा कà¥à¤¯à¥‹à¤•ि बारिश मे पहाड़ो का खिसकना आम बात है। हमारे पास समय काफी था इसलिठहमने सहसà¥à¤°à¤§à¤¾à¤°à¤¾ जाने का à¤à¥€ निशà¥à¤šà¤¯ किया, सहसà¥à¤°à¤§à¤¾à¤°à¤¾ देहरादून का पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤¦ वाटर फॉल है और मसूरी से लगà¤à¤— ३० किलोमीटर दूर है। रासà¥à¤¤à¥‡ मे कई जगह पहाड़ खिसके हà¥à¤ थे लेकिन गनीमत था कि कोई रासà¥à¤¤à¤¾ बंद नहीं हà¥à¤† था।
बारिश की वजह से रासà¥à¤¤à¥‡ मे छोटे छोटे à¤à¤°à¤¨à¥‡ बन गठथे जो कि पहाड़ो पर आम बात है, कई जगह रासà¥à¤¤à¥‡ मे लोग गाड़ी से उतरकर वहा पर नहा रहे थे और उछल कूद मचा रहे थे जिसको देखकर हमारे मनमोहन का मन à¤à¥€ मचल गया और जैसे ही आगे à¤à¤• और à¤à¤°à¤¨à¤¾ आया जहा पर कोई था à¤à¥€ नहीं हमने गाड़ी रà¥à¤•वा दी, मनमोहन को देखकर मनोज और योगेश मे à¤à¥€ जोश आ गया और उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने ने à¤à¥€ वह नहाने का निशà¥à¤šà¤¯ कर लिया, उसके बाद उन लोगो ने वहा जम कर मसà¥à¤¤à¥€ की वो कपड़े पहने पहने ही पानी मे घà¥à¤¸ गà¤, उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने हमें खीचने की à¤à¥€ कोशिश की लेकिन हमने दूर रहना ही ठीक समà¤à¤¾à¥¤ कà¥à¤› देर मसà¥à¤¤à¥€ करने के बाद वो लोग बाहर आ गठऔर सामने ही à¤à¤• दà¥à¤•ान पर कपड़े बदले, वही पर चाय पी और फिर आगे के लिठचल दिà¤à¥¤
रासà¥à¤¤à¥‡ मे गाड़ी रोककर उतरने का कोई à¤à¥€ मौका हम छोड़ नहीं रहे थे सब जगह सिरà¥à¤« पानी ही पानी दिख रहा था। सहसà¥à¤°à¤§à¤¾à¤°à¤¾ पहà¥à¤šà¤¨à¥‡ पर देखा कि वह बिलकà¥à¤² ही सà¥à¤¨à¤¸à¤¾à¤¨ है सिरà¥à¤« à¤à¤• दो दà¥à¤•ाने खà¥à¤²à¥€ हà¥à¤ˆ थी और परà¥à¤¯à¤Ÿà¤• तो कोई à¤à¥€ नहीं था, जो à¤à¤• दो दà¥à¤•ाने खà¥à¤²à¥€ हà¥à¤ˆ थी वो लोग à¤à¥€ हमें आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯ से देख रहे थे कि à¤à¤¸à¥‡ मौसम में ये कौन घर से खाली लोग आ गà¤, बारिश हो रही थी लेकिन अब हम पहले ही काफी à¤à¥€à¤— चà¥à¤•े थे इसलिठउसकी चिंता नहीं थी, हम दà¥à¤•ानों के पीछे वाले रासà¥à¤¤à¥‡ से जैसे ही à¤à¤°à¤¨à¥‡ के पास पहà¥à¤šà¥‡, à¤à¤°à¤¨à¥‡ तक तो खैर गठही नहीं लेकिन पानी का वो विकराल रूप देखकर à¤à¤• बार तो हम सिहर गठकà¥à¤¯à¥‹à¤•ि à¤à¤¸à¤¾ नजारा हमने अपनी याद मे तो नहीं देखा था। वहा पर किनारे किनारे चलते हà¥à¤ à¤à¥€ डर लग रहा था, हम वहा पर कà¥à¤› देर रहे, फोटो खिचे और विडियो फिलà¥à¤® बनायीं। पानी का बहाव इतना तेज था कि अगर आप अपना à¤à¤• हाथ à¤à¥€ अनà¥à¤¦à¤° डालो तो लगता था की बहाव आपको खीच कर ले जाà¤à¤—ा। हम आधा घंटा वहा रहे फिर वहा से चलने का à¤à¥€ निशà¥à¤šà¤¯ किया गया। कपड़े काफी गीले हो गठथे लेकिन अब परवाह किसे थी, à¤à¤¸à¥‡ ही गाड़ी मे बैठे और डà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤µà¤° को आगे बढ़ाने का इशारा कर दिया, अब हमें सीधे दिलà¥à¤²à¥€ ही जाना था लेकिन इस बार हमने हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° होते हà¥à¤ दिलà¥à¤²à¥€ जाने का निशà¥à¤šà¤¯ किया।
हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° के रासà¥à¤¤à¥‡ मे à¤à¥€ हर जगह हमें सिरà¥à¤« पानी ही पानी दिख रहा था, आस पास के सारे खेत पानी मे डूबे हà¥à¤ थे। वाकई मे पानी का à¤à¤¸à¤¾ विकराल रूप हम पहली बार ही देख रहे थे। सड़को की हालत à¤à¥€ ख़राब हो गयी थी जो की पानी की वजह से टूट गयी थी। हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° पहà¥à¤šà¤¨à¥‡ पर हमने गाड़ी à¤à¤• तरफ लगायी और पानी का रोदà¥à¤° रूप देखने के लिठपà¥à¤² पर खड़े हो गà¤, पहले से काफी लोग वहा पर थे जो कि आसपास की जगह से वहा आये हà¥à¤ थे। पानी की तरफ देखने मातà¥à¤° से ही à¤à¤• सिहरन शरीर मे दौड़ रही थी। हमने वहा पर कà¥à¤› फोटो खीचे और विडियो फिलà¥à¤® बनाई। वहा पर लोगो से बात की तो पता लगा की पहाड़ो पर तो सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¥€ और à¤à¥€ ख़राब हो गयी है और जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾à¤¤à¤° रासà¥à¤¤à¥‡ बंद हो गठहै। हमने अपने मितà¥à¤° को फ़ोन लगाया जो नैनीताल मे है तो उसने à¤à¥€ यही कहा की आप लोग जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ देर मत करो कà¥à¤¯à¥‹à¤•ि सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¥€ वाकई मे बहà¥à¤¤ जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ ख़राब है, पानी की वजह से कई जगह सड़के बह गयी थी इसलिठवो रासà¥à¤¤à¥‡ ही बंद हो गठथे कही à¤à¤¸à¤¾ न हो की हम हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° मे ही फस जाà¤, ये सà¥à¤¨à¤•र हमने बिना देर किये वहा से निकलने का निशà¥à¤šà¤¯ किया और खाने का विचार à¤à¥€ तà¥à¤¯à¤¾à¤— दिया। सोच लिया था की अब खाना पà¥à¤°à¤•ाजी या मà¥à¤œà¤¼à¤«à¥à¤«à¤°à¤¨à¤—र पहà¥à¤šà¤•र ही खायेगे।
हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° से रूड़की के रासà¥à¤¤à¥‡ मे पता नहीं कितनी बार हमारा रूट बदला गया, रासà¥à¤¤à¥‹ का तो पता ही नहीं चल रहा था। लोगो के आगे पीछे चलते हà¥à¤ और लोगो से पूछते हà¥à¤ ही हम आगे बढ़ रहे थे। किसी तरह रूड़की पहà¥à¤šà¥‡ तो फिर से हमें नठरासà¥à¤¤à¥‡ पर डाल दिया गया, उस रासà¥à¤¤à¥‡ पर आगे गठतो फिर से गयी à¤à¥ˆà¤¸ पानी मे। आगे फिर सड़क पर पानी ही पानी दिख रहा था और बहà¥à¤¤ सारी गाड़िया किनारे पर खड़ी हà¥à¤ˆ थी, हमने à¤à¥€ गाड़ी रà¥à¤•वाई और पैदल ही वहा पहà¥à¤šà¥‡, आगे का नजारा à¤à¥€ डराने वाला था। सड़क का à¤à¤• हिसà¥à¤¸à¤¾ टूट चूका था जो की बस की वजह से टूटा था और पूरी सड़क पर पानी था, वाहन ले जाते हà¥à¤ लोग इसलिठडर रहे थे कि उसके वजन से सड़क धस न जाà¤à¥¤ हमारी à¤à¥€ हालत ख़राब कà¥à¤¯à¥‹à¤•ि पीछे à¤à¥€ रासà¥à¤¤à¤¾ बंद और यहाठà¤à¥€ कà¤à¥€ à¤à¥€ हो सकता था। उसके बाद १-२ गाड़ी वालो ने आगे निकलने का मन बना ही लिया कà¥à¤¯à¥‹à¤•ि वहा रà¥à¤•ने से कोई फायदा नहीं था, अगर à¤à¤• बार सड़क टूट जाती तो फिर हम कही à¤à¥€ नहीं जा सकते थे, उन लोगो ने पहले गाड़ी से उतरकर पैदल ही रासà¥à¤¤à¤¾ पार किया ताकि गाड़ी का वजन कम रहे उसके बाद डà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤µà¤° ने अकेले गाड़ी धीरे धीरे बाहर निकाल ली, उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ देखकर हमने à¤à¥€ à¤à¤¸à¤¾ ही किया और फिर से यातà¥à¤°à¤¾ शà¥à¤°à¥‚ कर दी। उसके बाद हमें इतनी दिकà¥à¤•त नहीं हà¥à¤ˆ और लगà¤à¤— ५ बजे हम पà¥à¤°à¤•ाजी पार कर चà¥à¤•े थे। फिर हम कà¥à¤› खाने के लिठà¤à¤• ढाबे पर रà¥à¤•े, वहा पर à¤à¥€ काफी लोग थे जो पीछे से आये थे और कà¥à¤› को हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° ही जाना था लेकिन रासà¥à¤¤à¤¾ बंद होने की वजह से वो वही फस गठथे। à¤à¤• वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ से हम मिले जिसकी पतà¥à¤¨à¥€ और बचà¥à¤šà¥‡ हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° से आ रहे थे लेकिन रासà¥à¤¤à¥‡ मे कही फसे हà¥à¤ थे और वो à¤à¥€ आगे नहीं जा पा रहा था, वो काफी चिंतित था। उस वक़à¥à¤¤ हमें लगा कि अगर हम मसूरी से सà¥à¤¬à¤¹ न निकलते या कही और रूककर और थोडा समय ख़राब कर देते तो शायद हम à¤à¥€ पीछे ही कही फंसे होते।
छ बजे के आसपास हम खतौली पहà¥à¤š गठथे लेकिन उस समय बायपास वाला हाईवे तैयार नहीं हà¥à¤† था इसलिठहमने जलà¥à¤¦à¥€ के चकà¥à¤•र मे गंग नहर वाला रासà¥à¤¤à¤¾ ले लिया। ये रासà¥à¤¤à¤¾ नहर के साथ साथ ही चलता है और मà¥à¤°à¤¾à¤¦à¤¨à¤—र जाकर निकलता है, जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ चोडा रासà¥à¤¤à¤¾ नहीं है लेकिन यहाठबस, टà¥à¤°à¤• आदि नहीं चलते इसलिठà¤à¥€à¤¡à¤¼ नहीं रहती, वैसे तो दिन छिपने के बाद इस रासà¥à¤¤à¥‡ पर जाना बहà¥à¤¤ खतरनाक है कà¥à¤¯à¥‹à¤•ि वहा अगर कही फस गठतो निकल नहीं सकते, दिन छिपने के बाद ये बिलकà¥à¤² सà¥à¤¨à¤¸à¤¾à¤¨ हो जाता है। हमने जलà¥à¤¦à¥€ की चकà¥à¤•र मे ये रिसà¥à¤• à¤à¥€ ले लिया लेकिन वो à¤à¥€ हमारी गलती थी कà¥à¤¯à¥‹à¤•ि वहा का रासà¥à¤¤à¤¾ à¤à¥€ बहà¥à¤¤ ख़राब हो चà¥à¤•ा था, कई जगह से सड़क टूट गयी और किनारे से धसने लगी थी। दो या तीन जगह पर हमने गाड़ी से उतरकर पैदल रासà¥à¤¤à¤¾ पार किया कि कही वजन से सड़क और न धस जाà¤à¥¤ à¤à¤—वानॠका नाम लेते लेते आखिर हमने वो रासà¥à¤¤à¤¾ à¤à¥€ पार कर लिया, उसके बाद कोई दिकà¥à¤•त नहीं हà¥à¤ˆà¥¤ साढ़े आठबजे के करीब मै अपने घर पर था कà¥à¤¯à¥‹à¤•ि सबसे पहले मेरा घर ही पड़ता है। मैंने à¤à¤• चैन की सांस घर पर पहà¥à¤šà¤¤à¥‡ ही ली और टीवी से चिपक गया।
अगले दिन तक सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¥€ बहà¥à¤¤ बिगड़ गयी थी, यहाठतक की ऋषिकेश मे लगी शिव जी की पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾ à¤à¥€ पानी के बहाव मे बह गयी थी। उस वक़à¥à¤¤ कई वरà¥à¤·à¥‹ के रिकॉरà¥à¤¡ टूटे थे लेकिन इस साल वो सब रिकॉरà¥à¤¡ à¤à¥€ टूट गà¤à¥¤ आज टीवी पर ये नज़ारे देख कर लगा की अपना अनà¥à¤à¤µ à¤à¥€ साà¤à¤¾ करना चाहिठइसलिठआपके सामने पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ किया है।

















सौरभ जी….
बारिश के मौसम में आपकी मसूरी यात्रा अच्छी लगी | मेरे हिसाब से जहाँ तक हो बारिश के मौसम में पहाड़ों की यात्रा करने से बचना चाहिये |
हमसे से अपना यात्रा विवरण साझा करने के लिए धन्यवाद…..
सही कहा आपने रितेश जी, अब तो हम बरसात के मौसम मे पहाड़ो पर जाने की सोचते भी नहीं है, तीन बार फस चुके है। मनाली से बड़ी मुश्किल से वापिस आ पाए थे।
लेख पसंद करने के लिए आपका धन्यवाद।
Wow! You brought us the first hand experience of these stormy waters that caused so much damage.
Thanks.
Praveen Ji,
This was happened in 2010 when the condition of uttranchal was bad due to flood.
thanks for reading the post.
सौरभ, बहुत बढ़िया यात्रा व्रतांत… पानी का रोडर रूप देखकर तो सचमुच रोंगटे खड़े हो जाते है ! सारे फोटो बहुत अच्छे आए है पर मसूरी में होटल की छत से लिया गया फोटो बहुत अच्छा लगा !
अक्सर मैं भी जुलाई-अगस्त के महीने में ही हिमाचल घूमने जाया करता हूँ पर इस बार उत्तरांचल में प्रलय देखकर मैं सोचने को मजबूर हो गया !
धन्यवाद प्रदीप भाई,
दो साल पहले हम भी अगस्त के महीने मे मनाली गए थे और और मेरी सलाह तो यही है कि बरसात के मौसम मे मत जाना। उस वक़्त हमें २५ घंटे लगे थे पहुचने मे और बड़ी मुश्किल से ही वापिस आ पाए थे।
आपकी मसूरी यात्रा का विवरण पढ़कर अच्छा लगा,कहते है पहाड़ो की खूबसूरती बारिश मे ही निखरती है,आपकी तस्वीरो मे येसाफ झलकता है..पर जब प्रकर्ति अपना रौद्र रूप दिखाती है तो फिर चारो तरफ तबाही का ही मंज़र होता है,जैसा की इस बार
उत्तराखंड मे दिखा है जिसने इंसानो को सोचने के लिए मजबूर कर दिया है की कुदरत से खिलवाड़ करना कितना घातक साबित हो सकता है,खैर रही बात बरसात मे पहाड़ घूमने की तो कई बार अगर किस्मत अच्छी रही तो बरसात मे उतरते बादल,चारो तरफ फैले कोहरे और खिलते रंग रंग के फूल,हरियाली ही हरियाली ,बहता पानी, पहाड़ो की खूबसूरती की चरम सीमा दिख जाती है जो शायद और मौसम मे ना दिखे…
आपने सही कहा राकेश जी बरसात मे पहाड़ो की ख़ूबसूरती जबरदस्त होती है इसलिए ही हम अपने आप को वहा जाने से रोक नहीं पाते लेकिन ये खतरनाक है। फिर कुदरत के कहर के आगे हम इंसानों की कोई औकात है भी नहीं ये हमने उत्तरांचल मे देख भी लिया।
आपको लेख अच्छा लगा उसके लिए धन्यवाद।
सौरभ जी,
सौम्य एवं सुन्दर शब्द विन्यास से सजा हुआ मनोरंजक एवं रोमांचक लेख। छाया चित्र भी लुभावने लगे। कुल मिला कर मन को तृप्ति देनेवाली यह पोस्ट सम्पूर्णता लिए हुए थी।
अपनी वर्षों की घुमक्कड़ी में कभी पहाड़ों की ओर रुख करने का संयोग नहीं बन पाया, और अब जबकी अगले वर्ष उत्तराखंड (बद्रीनाथ-केदारनाथ) जाने की हसरतें मन में हिलोरें मार रहीं थीं तो केदारनाथ में मौत का तांडव देखकर दिल दहल गया, शायद ही अब कभी इतनी हिम्मत जुटा पायें। सुन्दर लेख की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई।
धन्यवाद मुकेश जी,
काफी समय से आपकी उपस्थिति घुमक्कड़ पर बहुत कम रही है ऐसे मे आपकी टिप्पणी पाकर मन प्रसन्न हो गया। आपको लेख अच्छा लगा उसके लिए हार्दिक धन्यवाद।
पहाड़ो का मौसम और सौंदर्य दिल और दिमाग को एक प्रसन्नता प्रदान करती है इसलिए आपको वहा जरूर जाना चाहिए लेकिन बरसात के मौसम मे तो कभी नहीं।
Saurabh Ji,
Good description of rain hit journey. From photo’s we can understand that you enjoyed a lot.
Thanks Naresh Ji.
Yes we have enjoyed a lot. Thanks for giving your time on the post.
दिलचस्प दांस्तां है गुप्ता जी..
मुकेस भाई..उत्तराखंड के हाल सुनने के बाद अब कई सालो तक हिम्मत नही करने वाले
वहा लोग कहते भी है कि सूर्य अस्त पहाड़ी मस्त। – विपिन जी क्या आप भी सहमत हैं इस कहावत से ???
लेख पसंद करने और टिप्पणी करने के लिए धन्यवाद SS जी।
काफी समय से आपका कोई लेख नहीं मिला, उम्मीद है कि जल्दी ही आप हमें कही लेकर चलेगे।
विपिन जी, आप भी प्रकाश डालिए इस कहावत पर।
प्रिय सौरभ गुप्ता,
देहरादून की धरती पर जन्म लिया था, आज भले ही सहारनपुर वासी हो गया हूं । उत्तराखंड के हालात देख कर दिल रोता रहता है, ऊपर से करेला और नीम चढ़ा ये कि प्रदेश की सरकार भी नितान्त नाकारा है, जिसे समझ ही नहीं आ रहा है कि क्या करें, कैसे करें? पूरे देश से राहत सामग्री देहरादून पहुंच रही है, पर कोई उसे संभालने और जरूरतमंदों तक पहुंचाने की व्यवस्था नहीं कर पा रहा है। खैर, जो भाग्य में लिखा है, वह तो होगा ही !
अब आता हूं आपकी पोस्ट पर ! आपने अपने लेखनी और चित्रों से उस वातावरण को पुनः उपस्थित कर दिया है, जो आपने वहां पर भीषण वर्षा के दौरान झेला था। अगर तकनीक इसी तरह से आगे बढ़ती रही तो कुछ दिन बाद हमें घुमक्कड़ डॉट कॉम पर त्रि-आयामी चित्र भी देखने को मिलेंगे जिनमें बाढ़ के दृश्य देख कर ही होश फाख्ता जो जायेंगे । आपकी जिजीविषा को सैल्यूट करता हूं कि आप इतना सब कुछ प्रतिकूल होने के बावजूद भी बढ़ते रहे – बढ़ते रहे और अपने लक्ष्य तक पहुंच कर ही दम लिया।
आपने मुज़फ्फरनगर से रुड़की के बजाय देवबन्द – सहारनपुर का रूट पकड़ लिया और जो हिचकोले खाये, वह तो हम सहारनपुर वासियों का प्रारब्ध बन चुका है। हमारे उत्तम प्रदेश के मूकमंत्री माननीय अल्हड़सिंह जी यादव से यदि आप पूछें कि सड़कें कब ठीक होंगी तो कहेंगे कि फिलहाल तो लैपटॉप की बात करो ! सड़कों में क्या रखा है ! मुझे तो इस बात की खुशी है कि वह उत्तराखंड का हवाई दौरा करने नहीं गये वरना हवाई जहाज से ही सौ – दो सौ लैपटॉप उत्तराखंड के पहाड़ों – जंगलों में फंसे भूखे प्यासे बाढ़ पीड़ितो के उपयोग हेतु फेंक आते !
श्री सुशांत जी, सबसे पहले तो आपका बहुत बहुत धन्यवाद कि आप अपना समय निकाल कर लेख तक आये और अपने विचार भी प्रकट किये।
सरकार सिर्फ उत्तरांचल की ही नहीं सब जगह की नाकारा है लेकिन उसमे उनका दोष नहीं, जब तक हम जाति और धर्म के आधार पर वोट करते रहेगे, हर बार उनके उलटे सीधे प्रलोभनों मे फसते रहेगे तब तक ऐसा ही होगा, आज ताज्जुब होता है कि सरकार खाने से पहले लैपटॉप और मोबाइल देकर किस तरह भारत का निर्माण कर रही है, खैर राजनीति तो ऐसा मुद्दा है कि जिस पर जितनी बहस की जाए कम है।
उत्तरांचल मे जो हुआ वो कुदरत का कहर था लेकिन बाद मे जो हुआ उसको क्या कहे, सरकार की उदासीनता या ताल मेल की कमी, आपदा के बाद जो लोग भूख प्यास से मर गए उनका जिम्मेदार कौन? जो लूट खसोट बाद मे हुई उसका जिम्मेदार कौन? राहत सामग्री पड़ी सड़ रही है लेकिन जिनको जरूरत है उन तक नहीं पहुच रही, चिंता सिर्फ पर्यटकों और श्रद्धालुओ की हो रही है लेकिन जो स्थानीय लोग तबाह हो गए उनकी कोई चिंता नहीं।
सर बचपन से देख रहा हूँ सहरानपुर का रास्ता लेकिन वहा हमेशा ही गड्ढो में सड़क रही है पता नहीं कब सुधार होगा और आपने सही कहा जल्दी ही वो समय भी आएगा लोग यात्रा पर जायेगे और वहा से उनकी यात्रा घुमक्कड़ पर लाइव होगी। नंदन जी को धन्यवाद है ऐसा प्लेटफार्म देने के लिए।
आखिर मे आपका धन्यवाद लेख पसंद करने के लिए, सही कहे तो उस समय हमें पता ही नहीं था कि ऐसे हालात हो जायेगे, इससे ज्यादा बुरे हालात मनाली मे हुए थे, कोशिश करूगा उस अनुभव को भी साझा करने की।
During the same time (2nd week of Sep), we were off to Rishikesh (Phoolchatti, to be precise). On the way up, we were able to take the inside road (right of Ganges) which goes via Rajaji National park but when we were returning we could not take that road, since there is a river bed which you need to cross.
From Haridwar to Delhi, it was a really long long drive. Multiple diversions after Roorkee. We also took the canal route for some distance. The new bypass was not there and there was no road near Khatauli.
Hope the current situation gets better soon. As per Army and IAF, they would be done with all the sorties by tonight. I am going to Kumaon side tomorrow and I can already sense the sentiment. God bless.
Thanks Nandan Ji,
Yes the situation was worst at that time. We had also tried to come by same road via Rajaji National Park but due to heavy rain it was closed.
Please share what you feel at Kumaon now hope the situation is some better.
श्रीगुप्ताजी,
पानी का भयावह चित्रण पढकर मुझे 2010 में अपनी यात्रा के अंतर्गत बद्रीनाथ से लौटते हुये श्रीनगर से पहले ढहते पहाड़ का रोमांचक दृश्य याद आ गया। पहाड़ों की यात्राओं में मन लुभानेवाले प्राकृतिक सौन्दर्य की याद इतनी प्रबल होती है कि बरसात जनित प्राकृतिक आपदाएं एक एडवेंचर की तरह मन में बस जाती हैं, उनसे डरकर भविष्य के प्रोग्राम को टाला नहीं जा सकता, उसे पुन: जीने की इच्छा करती है। इस लेख के लिये आपको धन्यवाद ।
बहुत बहुत धन्यवाद शर्मा जी अपने विचार रखने के लिए और लेख पसंद करने के लिए।
सही कहा आपने बरसात मे पहाड़ो का सौंदर्य होता ही ऐसा है कि बार बार जाने का मन करे, बादलो की आँख मिचोली और जगह जगह पर पानी के झरने, इसलिए ही बार बार हम अपने आप को रोक नहीं पाते और पहुच जाते है फिर पछताते भी है।
अच्छा लगेगा अगर आप भी अपना अनुभव शेयर करे।
मेरी चार धाम यात्रा घुमक्कड़ पर मित्रों की अनेक सद्भावनापूर्ण कमेण्ट के साथ पब्लिश हो चुकी है। और लिखने की इच्छा के उपरांत भी लिखना नही हो पाता है। शायद यही परवशता है। अनेक शुभकामनाओं के साथ …
Hi,
Apki post acchi lagi.khas kar ke pictures jo guest house se liye hai.first half me sirf humari mussorie trip ko yaad kar rahi thi.mausam ke karan trip pe paani phir jaaye to bahut dukh hota hai.yaha canada me ek nayi cheez dekhi jo share karna chahungi.yaha weather bahut unpredictable hai.kadak dhoop ke do ghante baad hi jordaar barish aa jaati hai.yaha par ek 24 hrs weather channel aata hai.mostly sabke mobile me weather ki app hoti hai.jyadatar log weather dekh ke ghar se nikalte hai.mera yaha ka 3 mahine ka exp hai ki saari forecast sahi nikalti hai.natural calamity ko hum rok to nahi sakte par avoid zarur kar sakte hai.uttrakhand ki news dekh ke aisa hi kuch badhiya wale weather network ki zarurat lagti hai India me.yaha to 27 degree pe heat alert aa jata hai logo ko indoor rehne ki advice govt se aa jaati hai.khair jyada canada ki tarif nahi,koshish ye honi chahiye ki apne desh ko improve karne ke liye hum kya contribute kar sakte hai.
Btw post was good,paani ke vikraal rup ke pictures bhi acche lage.
Thanks for sharing.
धन्यवाद अभी जी लेख पसंद करने के लिए।
ट्रिप पर पानी तो नहीं फिरा क्योकि जो एन्जॉय हमने किया था वो शायद वैसे न हो पाता।
ये सब सुनकर अफ़सोस होता है अगर कनाड़ा मे ऐसी तकनीक है तो हमारे पास क्यों नहीं या फिर सरकारी तंत्र ही नाकारा है। अगर उस समय उत्तरांचल मे भी सरकारी तंत्र मजबूत होता तो शायद नुकसान इतना नहीं होता। खैर जो होना था उस पर किसी का बस नहीं।
धन्यवाद् आपने ये सब शेयर किया उम्मीद है जल्दी ही कुछ पढने को भी मिलेगा आपसे।
Hi Saurabh,
Yes, what is happening in Uttarakhand is both tragic and criminal.
But then nobody learns and soon everything will be forgotten.
Also, no attampts are made to store this water or replenish water bodies. Few months later, the same areas will be thirsting for water.
Enjoyed the post. Its nice to have a set of friends who are ready to bolt the moment a ghumakkari chance comes along.
You are right Nirdesh Ji.
It’s in our nature to forget everything is short time. because of this administration or govt are not serious to take any step.
Thanks for liking the post.
Regards.