कà¤à¥€ कà¤à¥€ à¤à¤¸à¤¾ à¤à¥€ होता हैं की घर से निकलते हैं २ -३ दिन के लिठऔर वापिस à¤à¤• ही दिन में आ जाते हैं, à¤à¤¸à¤¾ ही कà¥à¤› मेरे और मनोहर के साथ à¤à¥€ हà¥à¤†, पà¥à¤°à¥‹à¤—à¥à¤°à¤¾à¤® तय हà¥à¤† की बाइक से लैंसडाउन चला जाà¤, कà¥à¤¯à¥‹à¤•ि मà¥à¤œà¤¼à¤«à¥à¤«à¤° नगर से ये सबसे नजदीक का हिल सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ पड़ता हैं, सà¥à¤¬à¤¹ ठीक ६ बजे हम लोग निकल पड़े, पहला पड़ाव हà¥à¤† कोटदà¥à¤µà¤¾à¤° में, à¤à¤• चाय की दà¥à¤•ान पर जाकर रà¥à¤•े, à¤à¤• – à¤à¤• कप चाय और à¤à¤• – à¤à¤• मठरी खाकर आगे चल पड़े, दूर से सिधà¥à¤¬à¤²à¥€ बाबा के दरà¥à¤¶à¤¨ हà¥à¤, मनोहर कहने लगा पहले दरà¥à¤¶à¤¨ करते हैं, मैं बोला वापिस आते हà¥à¤ करेगे, ये तो à¤à¤• टोक लगनी थी, माफ़ कीजियेगा अपनी मà¥à¤œà¤¼à¤«à¥à¤«à¤°à¤¨à¤—र वाली बोली बोल रहा हूà¤, पहाड़ पर अपनी चढ़ाई शà¥à¤°à¥‚ हो चà¥à¤•ी थी, हमारी बजाज पà¥à¤²à¥‡à¤Ÿà¤¿à¤¨à¤¾ धीरे धीरे चढ़ रही थी.

ये हसीन वादियाà¤
सोचा की à¤à¤• फोटो लिया जाये. सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° घाटियों का और अपना à¤à¤• फोटो लिया गया.  पà¥à¤°à¤•ृति के शांत वातावरण में खड़े हà¥à¤ थे और सà¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾ रहे थे. रासà¥à¤¤à¥‡ में छोटे छोटे पहाड़ी गाà¤à¤µ पड़ रहे थे, जाट देवता कहने लगे की ये लोग कैसे रहते होगे यंहा पर, मैं बोला पà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥‡ कà¥à¤› दिन यंहा पर   रह कर देख तब पता चलेगा. मारà¥à¤— में पड़ने वाले मनोहारी दà¥à¤°à¤¶à¥à¤¯ देख कर  जाट देवता  गà¥à¤¨à¤—à¥à¤¨à¤¾ रहे थे, ये हसीं वादिया, मैं कहने लगा पà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥‡ अà¤à¥€ कà¥à¤¯à¥‚ठशà¥à¤°à¥‚ हो गया अà¤à¥€ पहà¥à¤à¤šà¤¨à¥‡ तो दे

खà¥à¤¬à¤¸à¥‚रत घाटी

जाट देवता वादियों की सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤°à¤¤à¤¾ को निहारते हà¥à¤

और ये मैं
बस अडà¥à¤¡à¥‡ पर पहà¥à¤‚चे, तय किया की पहले चाय पी जाये, à¤à¤• कप चाय सà¥à¤¡à¤¼à¤• कर, कमरा ढूà¤à¤¢à¤¨à¤¾ शà¥à¤°à¥‚ किया, हर जगह हाउस फà¥à¤² था. यंहा पर सà¤à¥€ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ आरà¥à¤®à¥€ के हैं. इसलिठयंहा पर होटल, गेसà¥à¤Ÿ हाउस बहà¥à¤¤ कम हैं, मà¥à¤¶à¥à¤•िल से तीन या चार होगे. सà¤à¥€ होटल और गेसà¥à¤Ÿ हाउस फà¥à¤² थे. खोजते   खोजते  मूड बिलकà¥à¤² ऑफ हो चूका था, हमने सोचा था छोटी जगह हैं, खाली मिलेगा. पर दिलà¥à¤²à¥€ वाले, पैसे वाले २० – २० लाख की गाडियों में चढ़कर हर जगह पहà¥à¤šà¤¨à¥‡ लगे हैं, २००/- रूपये के कमरे के २०००/- मांग रहे थे, फिर सोचा की  यंहा न रà¥à¤• कर, घूम फिर कर वापिस निकल लिया जाये. à¤à¤• सबक ये à¤à¥€ मिला की à¤à¥€à¤¡à¤¼ के समय में, शनिवार, रविवार, सरकारी अवकाश के दिनों में अपने घर में ही आराम करना चाहिà¤, जब à¤à¥€ घà¥à¤®à¤¨à¤¾ हो ऑफ सीजन में जाना चाहिà¤.  बाइक खड़ी करके इधर उधर घूमना शरू किया. यंहा का कैंट à¤à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ बहà¥à¤¤ सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° हैं. पर उसमे आम आदमी का पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ नहीं हो सकता. सरकार  को à¤à¤• बोरà¥à¤¡ बनाके  यंहा का विकास करना चाहिà¤, होटल और गेसà¥à¤Ÿ हाउस की संखà¥à¤¯à¤¾ बढ़नी चाहिà¤. जगह सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° हैं, शांत हैं, पर विकास का अà¤à¤¾à¤µ हैं.

मà¥à¤–à¥à¤¯ चोराहा
कà¥à¤› लोगो से पूछा कि कौन कौन सी जगह हैं, उनके अनà¥à¤¸à¤¾à¤° सबसे पहले à¤à¥€à¤² पर पहà¥à¤‚चे. à¤à¥€à¤² को देख कर हमारी हंसी छूट गयी, à¤à¥€à¤² कà¥à¤¯à¤¾ à¤à¤• तालाब था, जिसमे नाव आदि à¤à¥€ चलाते हैं. à¤à¥€à¤² के किनारे पर बैठकर à¤à¥‹à¤œà¤¨ किया, साथ में लाई हà¥à¤ˆ आलू पूरी और शीतल पेय का आनंद लिया.

à¤à¥€à¤² या तालाब

जाट देवता मसà¥à¤¤à¥€ में

à¤à¥€à¤² के किनारे बाग़
इसके बाद थोडा इधर उधर घà¥à¤®à¥‡, जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ कà¥à¤› नहीं हैं. २ घंटे में सारा घूम लिया.  फिर वापिस हो लिà¤. रासà¥à¤¤à¥‡ में सड़क किनारे à¤à¤• माता का मंदिर पड़ता हैं. जिसमे नीचे जाकर के à¤à¤• सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° à¤à¤°à¤¨à¤¾ आता हैं. जिसमे आस पास, कोटदà¥à¤µà¤¾à¤°, नजीबाबाद के लोग पिकनिक का आनंद ले रहे थे.

पहाड़ पर बसा à¤à¤• गà¥à¤°à¤¾à¤®

शीतल à¤à¤°à¤¨à¥‡ में सà¥à¤¨à¤¾à¤¨

माता के दरà¥à¤¶à¤¨ के बाद

जय सिदà¥à¤§ बलि बाबा की

पंडित जी कà¥à¤¯à¤¾ बतिया रहे हैं

मंदिर से दिखता कोटदà¥à¤µà¤¾à¤°
पहाड़ की चढ़ाई से उतर कर सिधबली बाबा का मंदिर आता हैं. वंहा पर थोडा सा पैदल सीढिया चढ़ कर बाबा के दरà¥à¤¶à¤¨ किये. और थोडा देर बैठकर थकान मिटाई.
कोटदà¥à¤µà¤¾à¤° पहà¥à¤à¤š कर, ढाबे में खाने का आनंद लिया, खाना बहà¥à¤¤ अचà¥à¤›à¤¾ था. फिर अपना मà¥à¤œà¤¼à¤«à¥à¤«à¤°à¤¨à¤—र की और बढ़ लिà¤. मà¥à¤œà¤¼à¤«à¥à¤«à¤°à¤¨à¤—र तक आने जाने में हमारी बाइक ३५० किलोमीटर चल चà¥à¤•ी थी. हम सà¥à¤¬à¤¹ ६ बजे मà¥à¤œà¤«à¥à¤«à¤°à¤¨à¤—र से चले थे, और ५ बजे वापिस मà¥à¤œà¤¼à¤«à¥à¤«à¤°à¤¨à¤—र आ गठथे.
अà¤à¥€ à¤à¥€ मनोहर जाट का ये गà¥à¤¨à¤—à¥à¤¨à¤¾à¤¨à¤¾ याद आ जाता हैं ये हसीं वादिया ! और बहà¥à¤¤ हंसी आती हैं. à¤à¤• सबक ये à¤à¥€ मिला की कंही पर यदि जाना हो उस जगह के बारे में पूरी जानकारी, रहने की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ कैसी हैं, और खाना पीना कैसा हैं, केवल सà¥à¤¨à¥€ सà¥à¤¨à¤¾à¤ˆ बातो के आधार पर जाना बेवकूफी हैं.
बढिया फोटो प्रवीण जी , घूम घामकर एक दिन में वापिस आ जाना सबसे बढिया है फोटो बढिया हैं खासकर सिद्धबली बाबा का पास से स्वरूप देखकर बढिया लगा । मै बद्रीनाथ जाते समय कोटद्धार दुगडडा सतपुली होते हुए पौडी श्रीनगर को गया था पर कोई जगह हमने नही देखी थी आपने बढिया सैर करायी
बहुत बहुत धन्यवाद मनु जी,
गुप्ता जी जाट के साथ दोस्ती का यही तो मजा है घूमते रहोगे, जाट के खून में घुमक्कड़ी सदियों से रही है
संदीप जी राम राम, आपने ठीक कहा हैं, लेकिन बनिए भी बहुत बड़े घुमक्कड़ होते हैं, मारवाड़ी बनिए इसका बहुत अच्छा उदाहरन हैं. किसी ने ठीक कहा हैं, जंहा जाट वंहा ठाट, जंहा वैश वंहा ऐश.
बहुत अच्छा विवरण है… चित्र भी मजेदार है… खास कर सिद्धबली मंदिर के. हम भी एक बार लैंसडाउन में फंसे थे.. मेरी तारकेश्वर महादेव वाली पोस्ट में इसका विवरण है
Very Very Thankyou Sir.
गुप्ता जी,
बाकी सब तो बहुत बढ़िया है लेकिन ये “जाट देवता” लिख के आप हमें कनफुजिया दिए, आपने जाट देवता लिखा तो हम “नीरज बाबु” को ढूँढने लगे, “जाट देवता” वाली पदवी कम से कम घुमक्कड पे तो “कॉपी राईट” हो चुकी है उनके नाम…
बाकी सब बहुत बढ़िया लगा.. सिद्ध बलि बाबा के मंदिर का फोटो सचमुच बहुत ही बढ़िया आया है.. और हाँ आपकी आलू-पूरी वाली खबर पढ़ के सचमुच मुंह में पानी आ गया. असल में संजय के साथ “कौशिक” होने के कारण घुम्मकड हम जरा “पेटू” किस्म के हैं…. और हमारा ये तजुर्बा है की यूपी वालों की आलू पूरी होती बड़ी स्वाद है….
संजय जी,
आप अभी भी कन्फ्यूजिया रहे हैं असल जाट देवता “संदीप पंवार” जी हैं. आप दोनों जाटों (इराज एवं संदीप) की पोस्टें, प्रोफाइल, ब्लॉग आदि पढ़ें आपको पता चल जायेगा जाट देवता कौन है. वास्तव में नीरज जाट अपनी पोस्ट्स में अपने आप को “जाट राम” संबोधित करते हैं, और संदीप पंवार जी का नाम घुमक्कड़ पर एवं उनके ब्लॉग पर ” जाट देवता संदीप पंवार” है अतः इस टायटल के असली हकदार “संदीप पंवार” ही हैं.
हाँ आपकी एक बात से मैं जरुर सहमत हूँ की ये जो प्रवीण जी के साथी नए जाट हैं उन्हें जाट देवता नाम से संबोधित नहीं करना चाहिए. वैसे तो यहाँ नाम बोलने या रखने की पूरी स्वतंत्रता है और किसी का किसी नाम पर कोई पेटेंट नहीं है फिर भी हम हमारे संदीप भाई को प्यार से जाट देवता ही कहते हैं तो दूसरा जाट देवता आने से हम सब कन्फ्यूज होंगे अतः प्रवीण जी से विनम्र निवेदन है की मनोहर जाट जी को कोई और अच्छा सा नाम दे दीजिये.
थैंक्स.
माफ़ कीजियेगा ऊपर वाली कमेन्ट में “नीरज” की जगह “इराज” लिख कर आ गया है.
धन्यवाद.
संजय जी, उ. प्र. वालो की आलू पूरी तो खैर निराली हैं ही, सराहना के लिए धन्यवाद. आगे से जाट देवता के बजाये, जाट महाराज शब्द प्रयोग करूँगा.
संजय जी, उ. प्र. वालो की आलू पूरी तो खैर निराली हैं ही, सराहना के लिए धन्यवाद. आगे से जाट देवता के बजाये, जाट महाराज शब्द प्रयोग करूँगा:
प्रवीण जी,
माफ़ कीजियेगा जाट देवता पदवी का कन्फ्यूजन दूर करने के चक्कर में मैं आपकी पोस्ट के बारे में लिखना भूल ही गया. आपकी दूसरी पोस्ट भी पहली की ही तरह मनोरंजक रही. चित्र और विवरण दोनों ही सुन्दर थे. इस पोस्ट के लिए सटीक टिप्पणी रहेगी ” शोर्ट एंड स्वीट” पोस्ट.
धन्यवाद.
धन्यवाद मुकेश जी।
वाकई में आप गूगल में भी सर्च करोगे तो जाट देवता जी अपने संदीप जी ही होंगे और घुमक्कड पर तो बहुत दिनो से वो कापीराइट यानि सर्वाधिकार सुरक्षित हैं । इसलिये संजय जी और प्रवीण जी हम सभी के प्यारे जाट देवता को ही जाट देवता रहने दें ये अनुरोध है ।
मनु जी माफ़ी चाहूँगा। वाकई ये तो नीरज जी और संदीप जी का ही अधिकार हैं। अरे भाई वे लोग तो हमारे गुरु हैं। उन्हें पढ़कर तो हमने ब्लोगिंग शुरू की हैं।
Praveen Ji…Bhaut badiya photos hain… mere hisaab se to aapko nirash nahi hona chahiye ke 3 din ki yaatra 1 hi din me poori ho gai…kyon ki ghumakkari ka matlab (kam se kam mere liye to) hi safar (urdu wala) karte rehna hai…gantavya ka itan mahatwa nahi hai… Likhte rahiye aur hame ghumate rahiye…
Harish
Thankyou, Harish Ji.
एक नयी जगह के बारे में पता चला प्रवीण जी जो मुझे मालूम नहीं.बढ़िया विवरण और चित्र है.
एक और बात बुरा मत मानना , आपकी प्रोफाइल फोटो है उसमे आप काफी परेशानी में लग रहे है या फिर शाताद धुप के कारण आपने ऐसे भाव दिए हुए है. अगर बुरा न माने तो उस प्रोफाइल चित्र तो बदल दीजिए………………………
धन्यवाद विशाल जी, मेरा फोटो धूप के कारण से ऐसा हैं। इस में बुरा मानने की कोई बात नहीं हैं।
nice post,good photographs
Thankyou Ashok Ji.
प्रवीण जी, अच्छी पोस्ट है। लैंसडाउन पर्यटन के हिसाब से बहुत प्रसिद्ध तो नहीं हैं मगर शांति कि तालाश में लोग वहाँ अकसर जाते हैं। हमारा भी जल्दी ही वहाँ जाने का प्रोग्राम है। देखते हैं कैसा रहता है।
धन्यवाद विभा जी, आप यदि यंहा पर जाये तो शनिवार, रविवार के अलावा किसी भी दिन चले जाये तो ठीक रहेगा।
There is a place called Anand the Jungle retreat around 3 kms from Lansdowne amongst pine trees This is a beautiful place to stay but is on a kuchha road there is also Rishi Kanav Ashram near Lansdowne. When I visited this place the lake was full and not in such a shabby state.
प्रवीन जी…..बहुत बढ़िया पर आपने तो संक्षेप में निपटा दिया इस पोस्ट को | लैंसडाउन के बारे में पहले भी बहुत कुछ सुन रखा था आज आपके सुन्दर फोटोओ के माध्यम से देख भी लिया | आपने सच कहा प्रसिद्ध हिल स्टेशन न होने कारण यहाँ पर सुविधाओ को बहुत कमी हैं और यहाँ एक बोर्ड बना कर इसका विकास करना चाहिये |
कभी मौका लगेगा तो जरुर चक्कर लगाएंगे यहाँ का, पर शनिवार और रविवार को छोड़कर ….LOL !
आप जिस झील को तालाब कह रहे आपने तो उसका नाम ही नही बताया ले देकर कुछ तो हैं यहाँ हसींन वादियों के सिवाय | चलो उस झील का नाम मैं बताये देता हूँ → बुल्ला झील (BHULLA LAKE).
धन्यवाद …
रीतेश.गुप्ता
धन्यवाद् रितेश जी. हमारी यात्रा ही छोटी थी तो संक्षेप में ही लिखना पड़ा. आपने सही याद दिलाया, उस झील का नाम भुल्ला झील हैं.
Hi Praveen ji,
Nice and crisp travelogue. I believe you would have visited everything that is there in Lansdown.
Nothing else as such in there as i consider it to be a “one day visit” as well.
Over all a nice overview of the place and nicer pictures.
Keep posting .
Regards,
Sumit Nirmal Kumar
Thankyou, Sumit ji.
very nice . maza aa gaya ise pad kar
Praveen Ji,
Landsdowne ke bare me bahut suna tha plan bhi bahut kiya jane ka parantu. akele jaana hi nahi ho pata hai… Agli baar kahin ka plan bane to hame bhi sath le chaliyega….
Dhanyawad