काल चकà¥à¤° अनंत है, अंतहीन है और घटनाठइसी काल चकà¥à¤° की धà¥à¤°à¥€ पर à¤à¤¾à¤—ती दौड़ती रहती है। कई पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£à¤¿à¤¤ हो जाती है तो कई कालांतर में विलà¥à¤ªà¥à¤¤ हो जाती है। इनà¥à¤¹à¥€ घटनाओ की कà¥à¤°à¤®à¤¬à¤¦à¥à¤§ सूचि को कà¥à¤› लोग इतिहास कहते है। मैं à¤à¤¸à¥‡ ही किसी à¤à¤• घटनाचकà¥à¤° के बारे में काफी दिनों से सोच रहा था। उस घटनाकà¥à¤°à¤® के चरितà¥à¤°à¥‹à¤‚ à¤à¤‚व पातà¥à¤°à¥‹ के बारे में अधिक जानकारी पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करने के लिठवà¥à¤¯à¤¾à¤•à¥à¤² होने लगा था। इस घटनाकà¥à¤°à¤® की कड़ी जयपà¥à¤° से लगà¤à¤— 90 कि. मी. की दूरी पर अरावली परà¥à¤µà¤¤ शà¥à¤°à¤‚खला की सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° और मनमोहक घाटियों के बीच में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ विराट नगरी में अतीत के दसà¥à¤¤à¤¾à¤µà¥‡à¤œà¥‹ में दरà¥à¤œ है ।
यह नगरी पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ काल में मतà¥à¤¸à¥à¤¯ देश की राजधानी हà¥à¤† करती थी। आज à¤à¥€ राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ में बहà¥à¤¤ लोग अलवर, दौसा और जयपà¥à¤° के कà¥à¤› कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°à¥‹ को मतà¥à¤¸à¥à¤¯ à¤à¥‚ खंड का ही हिसà¥à¤¸à¤¾ मानते है। वैदिक काल में मतà¥à¤¸à¥à¤¯ देश की गणना 16 महाजनपदो में की जाती थी। पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ à¤à¤¾à¤°à¤¤ में राजà¥à¤¯à¥‹à¤‚ और पà¥à¤°à¤¶à¤¾à¤¸à¤¨à¤¿à¤• इकाईयो को महाजनपद कहा जाता था। महाजनपद पर राजा का ही आधिपतà¥à¤¯ रहता था (Monarchy) ,इनसे कà¥à¤› विपरीत थे गण राजà¥à¤¯ (Republic States) जहाठलोगो का समूह या à¤à¤• संघ राजà¥à¤¯ किया करता था और देश के सरà¥à¤µà¥‹à¤šà¥à¤š पद पर आम जनता में से कोई à¤à¥€ पदासीन हो सकता था।पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ यूनान (गà¥à¤°à¥€à¤¸ ) में गण राजà¥à¤¯à¥‹à¤‚ का खासा पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¨ था। पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ वैदिक काल के कà¥à¤› पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ महाजनपद थे मगध (आधà¥à¤¨à¤¿à¤• à¤à¤¾à¤°à¤¤ का पटना), अवनà¥à¤¤à¥€ (आज का उजà¥à¤œà¥ˆà¤¨), कोशल (आज का अयोधà¥à¤¯à¤¾ या फैजाबाद ) इतà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿à¥¤ महाजनपदो का पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¨ और असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ छठी सदी ईसा पूरà¥à¤µ (6th Century BC) से लेकर तीसरी सदी ईसा पूरà¥à¤µ (3rd Century BC) तक का ही माना गया है। इस काल में लोहे का अतà¥à¤¯à¤§à¤¿à¤• पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— होने लग गया था। सिकà¥à¤•े बनाने के लिठटकसालो का à¤à¥€ निरà¥à¤®à¤¾à¤£ होना पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤‚ठहो गया था। यही वो समय था जब बोदà¥à¤§ और जैन विचार धाराओ का उदà¥à¤—म हà¥à¤† जिसका पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤° करने के लिठकई जनपदों ने सहरà¥à¤· योगदान दिया। à¤à¤¸à¤¾ माना जाता है की माहाà¤à¤¾à¤°à¤¤ काल में इस राजà¥à¤¯ के सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ महाराजा विराट हà¥à¤† करते थे लेकिन इसका कोई पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ पà¥à¤°à¤¾à¤µà¤¿à¤¦à¥‹ को आज तक पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ नहीं हो पाया है। कहा जाता है की पांडवो ने अपने अजà¥à¤žà¤¾à¤¤à¤µà¤¾à¤¸ के लिठइसी जगह का चà¥à¤¨à¤¾à¤µ किया था और अपना à¤à¥‡à¤· बदलकर यहाठà¤à¤• वरà¥à¤· तक जीवन यापन करने लगे थे ।
लगà¤à¤— 2500 साल पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¤¾ समà¥à¤°à¤¾à¤Ÿ अशोक दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ बनवाया गया बà¥à¤¦à¥à¤§ सà¥à¤¤à¥‚प
विराट नगर हमारी सà¤à¥à¤¯à¤¤à¤¾ की कई पौराणिक धरोहरों को अपने अनà¥à¤¦à¤° संजोये इतिहास के धूमिल हà¥à¤ पनà¥à¤¨à¥‹ में अपना सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ आज à¤à¥€ तलाश रहा है। मैंने इनà¥à¤¹à¥€ पनà¥à¤¨à¥‹ पर से कà¥à¤› धूल साफ़ करने की चेषà¥à¤ ा हेतॠविराट नगर जाने का निशà¥à¤šà¤¯ किया। मà¥à¤à¥‡ इस बात की काफी पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¾ है की अपà¥à¤°à¥ˆà¤² माह में मैंने विराट नगर जाकर वहां की कà¥à¤› अनमोल à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• धरोहरों को जानने में थोड़ी बहà¥à¤¤ सफलता पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर ली।
जयपà¥à¤° मारà¥à¤— से विराट नगर आने पर
जयपà¥à¤° से राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ राजमारà¥à¤— संखà¥à¤¯à¤¾ 8 (National Highway-8) से शाहपà¥à¤°à¤¾ पहà¥à¤à¤šà¤¨à¥‡ के बाद कà¥à¤› ही दूर 5-8 km पर à¤à¤• पेटà¥à¤°à¥‹à¤² पंप दिखाई देता है। इस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ से à¤à¤• सड़क –राजà¥à¤¯ पथ संखà¥à¤¯à¤¾ .13(Rajasthan State Highway SH-13) दाहिने ओर अलवर की तरफ जा रही है।यहाठसे करीब 25 कि . मी पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है विराट नगर।इसी सड़क से सरिसà¥à¤•ा अà¤à¥à¤¯à¤¾à¤°à¤£ à¤à¥€ जाया जा सकता है जो विराट नगर से करीब 20 KM आगे सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है।
जयपà¥à¤° से शाहपà¥à¤°à¤¾ तक का रासà¥à¤¤à¤¾ है (65 KM) और शाहपà¥à¤°à¤¾ से विराट नगर (25 KM). जयपà¥à¤° से विराट नगर जाने का मारà¥à¤— नीचे दिया गया है।
NH – 8 —> जयपà¥à¤° >>अचरोल >> चंदवाजी >>शाहपà¥à¤°à¤¾ —– (दाहिने ) SH-13 से —-> जोगीपà¥à¤°à¤¾ >> जवानपà¥à¤°à¤¾ >> धौली कोठी >> बीलà¥à¤µà¤¾à¤¡à¤¼à¥€ >> विराट नगर >> थानागाजी >> सरिसà¥à¤•ा बाघ अà¤à¥à¤¯à¤¾à¤°à¤£ >>à¤à¤°à¥à¤¤à¤¹à¤°à¥€ >>अकबरपà¥à¤° >> अलवर .
दिलà¥à¤²à¥€ मारà¥à¤— से विराट नगर आने पर
दिलà¥à¤²à¥€ से शाहपà¥à¤°à¤¾ की दूरी करीब 201 KM है और वहां से विराट नगर की दूरी 25 KM है।
NH – 8 —> दिलà¥à¤²à¥€ >>गà¥à¤¡à¤—ाà¤à¤µ >>शाहजहांपà¥à¤° >>बहरोड़ >>कोटपà¥à¤¤à¤²à¥€ >>शाहपà¥à¤°à¤¾ —(बाà¤à¤‚ मà¥à¤¡à¤¼à¤•र ) SH-13 पर मà¥à¤¡à¤¼ कर उपरोकà¥à¤¤ दिठगठमारà¥à¤— तो पà¥à¤°à¤¶à¤¸à¥à¤¤ करे और विराट नगर पहà¥à¤‚चे।
यदि कोई टà¥à¤°à¥‡à¤¨ से आना चाहे तो उसे जयपà¥à¤° की बजाय अलवर उतरकर आना चाहिठकà¥à¤¯à¥‚ंकि दिलà¥à¤²à¥€ से जयपà¥à¤° जाने वाली हर टà¥à¤°à¥‡à¤¨ अलवर होकर ही निकलती है। à¤à¤¸à¤¾ में इसलिठकह रहा हूठकà¥à¤¯à¥‚ंकि जितनी देर में वो जयपà¥à¤° पहà¥à¤‚चकर विराट नगर की तरफ सड़क यातायात से जायेगा उस से कम समय में वो अलवर से विराट नगर पहà¥à¤à¤š जायेगा।
अगर कोई टà¥à¤°à¥‡à¤¨ पकड़कर दिलà¥à¤²à¥€ से जयपà¥à¤° उतरकर आये तो उसे जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ समय लगेगा। इसका विवरण नीचे दिया गया है:
दिलà¥à¤²à¥€ से जयपà¥à¤° – 265 KM
जयपà¥à¤° से विराट नगर – 90 KM ,कà¥à¤² मिलकर 315 KM.
दिलà¥à¤²à¥€ से विराट नगर जाने के लिठà¤à¤• और सà¥à¤—म सड़क है जिसको में कई बार आजमा चà¥à¤•ा हूà¤à¥¤à¤‡à¤¸à¤•ा विवरण इस पà¥à¤°à¤•ार है।
NH- 8 —>दिलà¥à¤²à¥€ >>गà¥à¤¡à¤—ाà¤à¤µ >>धारूहेड़ा >>(बाà¤à¤‚ मà¥à¤¡à¤¼à¤•र) SH-25 से —–>à¤à¤¿à¤µà¤¾à¤¡à¤¼à¥€ >>टपूकड़ा >>तिजारा >> अलवर . यह सड़क चार लेन की है और बहà¥à¤¤ अचà¥à¤›à¥€ हालत में है।
दिलà¥à¤²à¥€ से अलवर – 155 KM
अलवर से विराट नगर – 60 KM कà¥à¤² मिलाकर 215 KM.
जयपà¥à¤° से विराट नगर के लिठसà¥à¤¬à¤¹ सात बजे वाली बस मैं बैठकर 9 बजे पहà¥à¤à¤š गया। विराट नगर जाने का मेरा केवल à¤à¤• ही उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ था और वो था बीजक की पहाड़ी पर बना हà¥à¤† करीब 2500 हज़ार साल पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¤¾ बोदà¥à¤§ सà¥à¤¤à¥‚प। यह à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• सà¥à¤®à¤¾à¤°à¤• विराट नगर बस सà¥à¤Ÿà¥ˆà¤‚ड से करीब ३ कि .मी की दूरी पर à¤à¤• ऊंची पहाड़ी के ऊपर बने à¤à¤• समतल धरातल पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है। इस पहाड़ी पर तीन समतल धरातल है। सबसे पहले वाले पर à¤à¤• विशाल शिला पà¥à¤°à¤¾à¤•ृतिक रूप से विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ है जिसका सà¥à¤µà¤°à¥‚प à¤à¤• डायनासोर की तरह पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ होता है।
डायनासोर\रà¥à¤ªà¥€ चटà¥à¤Ÿà¤¾à¤¨ और उसके नीचे बना हनà¥à¤®à¤¾à¤¨ मंदिर
उसे चारो और से देखने से वो बिलà¥à¤•à¥à¤² उस à¤à¤¯à¤‚कर पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤¤à¥à¤µ जीव की तरह दिखाई देता है। इस शिला के नीचे à¤à¤• छोटा सा हनà¥à¤®à¤¾à¤¨ मंदिर बनाया गया है जिसका कोई à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• तथà¥à¤¯ मौजूद नहीं है।
दूसरे समतल धरातल पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है तीसरी सदी इसा पूरà¥à¤µ (3rd Century BC) के समय में समà¥à¤°à¤¾à¤Ÿ अशोक के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ बनवाया गया à¤à¤• à¤à¤µà¥à¤¯ बोदà¥à¤§ सà¥à¤¤à¥‚प जो अब अपने अंतिम अवशेषों को समेटे धराशायी सा पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ होता है।
बीजक की पहाड़ी पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ बà¥à¤¦à¥à¤§ का सà¥à¤¤à¥‚प à¤à¤‚व चैतà¥à¤¯ गृह … इन सीढ़ियों से ऊपर का रासà¥à¤¤à¤¾ बोदà¥à¤§ à¤à¤¿à¤•à¥à¤·à¥à¤“ के लिठबने विहार की तरफ जाता है
उस समय विराट नगरी पर मौरà¥à¤¯ वंश का आधिपतà¥à¤¯ था और यह मगध सामà¥à¤°à¤¾à¤œà¥à¤¯ के अधीन à¤à¤• जनपद बन गया था। मौरà¥à¤¯ वंश का पतन à¤à¥€ समà¥à¤°à¤¾à¤Ÿ अशोक के निधन के बाद ज़लà¥à¤¦à¥€ ही हो गया था।समà¥à¤°à¤¾à¤Ÿ अशोक का उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤§à¤¿à¤•ारी अयोगà¥à¤¯ था और उसका पà¥à¤°à¤ªà¥Œà¤¤à¥à¤° दशरथ अपने ही सेनापति पà¥à¤·à¥à¤¯à¤®à¤¿à¤¤à¥à¤° शूंग के हाथों मारा गया था पà¥à¤·à¥à¤¯à¤®à¤¿à¤¤à¥à¤° ने शूंग राजवंश की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ की और इस तरह मौरà¥à¤¯ वंश का करà¥à¤£ अंत हà¥à¤†à¥¤
यह सà¥à¤¤à¥‚प अब à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤¤à¥à¤µ सरà¥à¤µà¥‡à¤•à¥à¤·à¤£ (Archaeological Survey Of India) के अधीन है .इसका उतà¥à¤–नन इसवी 1935 मैं किया गया था। à¤à¤¸à¤¾ माना जाता है की इस सà¥à¤¤à¥‚प की दà¥à¤°à¥à¤—ति के पीछे पà¥à¤·à¥à¤¯à¤®à¤¿à¤¤à¥à¤° शूंग का हाथ है और बाद में हूण राजवंश ,या सेंटà¥à¤°à¤² à¤à¤¶à¤¿à¤¯à¤¾ या à¤à¤¶à¤¿à¤¯à¤¾ माइनर से आये थे , ने लगà¤à¤— पांचवी शताबà¥à¤¦à¥€ इसवी (5th Century A.D)में इस सà¥à¤¤à¥‚प के लकड़ी के सà¥à¤¤à¤®à¥à¤ जलाकर पूरी तरह से धà¥à¤µà¤¸à¥à¤¤ कर दिया। हूणों ने गà¥à¤ªà¥à¤¤ वंश को परासà¥à¤¤ कर कà¥à¤› समय तक उतà¥à¤¤à¤° और पशà¥à¤šà¤¿à¤® à¤à¤¾à¤°à¤¤ पर अपना आधिपतà¥à¤¯ कायम किया था।
वासà¥à¤¤à¤µà¤¿à¤• रूप से सà¥à¤¤à¥‚प à¤à¤¸à¥‡ मिटà¥à¤Ÿà¥€ या ईंटो के गà¥à¤®à¥à¤¬à¤¦à¤¾à¤•ार टीले होते है जो महापà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ (उदाहरण के रूप में महातà¥à¤®à¤¾ बà¥à¤¦à¥à¤§ ), की मृतà¥à¤¯à¥ के उपरांत उनके à¤à¤¸à¥à¤® अवशेषो को à¤à¥‚मि के नीचे गाढ़कर à¤à¤• सà¥à¤®à¤¾à¤°à¤• के रूप में निरà¥à¤®à¤¿à¤¤ किये जाते थे।à¤à¤¸à¤¾ माना जाता है की मधà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ विशà¥à¤µ विखà¥à¤¯à¤¾à¤¤ साà¤à¤šà¥€ सà¥à¤¤à¥‚प और बीजक की पहाड़ी का यह सà¥à¤¤à¥‚प à¤à¤• दूसरे के समकालीन है जिनका निरà¥à¤®à¤¾à¤£ मौरà¥à¤¯ काल में समà¥à¤°à¤¾à¤Ÿ अशोक ने ही करवाया था। हनà¥à¤®à¤¾à¤¨ मंदिर और उस विशाल शिला से कà¥à¤› चालीस फà¥à¤Ÿ ऊपर हैं दूसरा समतल मैदान जिसके मधà¥à¤¯ में ईंटो की सहायता से निरà¥à¤®à¤¿à¤¤ à¤à¤• सात फीट चोडी गोलाकार परिकà¥à¤°à¤®à¤¾ या पà¥à¤°à¤¦à¤•à¥à¤·à¤¿à¤£à¤¾ है जो à¤à¤• आयताकार (Rectangular) जगती (Platform) पर बनी हà¥à¤ˆ है। इस पà¥à¤°à¤¦à¤•à¥à¤·à¤¿à¤£à¤¾ के इरà¥à¤¦ गिरà¥à¤¦ à¤à¤•à¥à¤¤ गण चकà¥à¤•र लगाया करते थे। इसका वà¥à¤¯à¤¾à¤¸(Diameter) 8.23 मीटर है जिसमे à¤à¤•ांतर में 26 अषà¥à¤ कोणीय (Octagonal) लकड़ी के सà¥à¤¤à¤®à¥à¤ à¤à¥€ थे जो आज नहीं रहे। इनà¥à¤¹à¥€ सà¥à¤¤à¤®à¥à¤à¥‹à¤‚ की सहायता से सà¥à¤¤à¥‚प के ऊपर बना गोलाकार गà¥à¤®à¥à¤¬à¤¦ कायम था।
चैतà¥à¤¯ गृह के समीप बनी परिकà¥à¤°à¤®à¤¾ और अषà¥à¤ कोणीय (26 Octagonal Pillars) सà¥à¤¤à¤®à¥à¤à¥‹à¤‚ के सांचे
यह चैतà¥à¤¯ जिसके चारो और यह गोलाकार परिकà¥à¤°à¤®à¤¾ थी वो à¤à¤• आयताकार चार दिवारी से घिरा हà¥à¤† था।लेकिन आज इस चारदीवारी का कोई à¤à¥€ अवशेष नहीं बचा और न उस गोलाकार गà¥à¤®à¥à¤¬à¤¦ का। बोदà¥à¤§ धरà¥à¤® में मूरà¥à¤¤à¤¿ पूजा का कोई विधान नहीं था इसलिठबà¥à¤¦à¥à¤§ के पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤• रूप में यह सà¥à¤¤à¥‚प ही पूजे जाते थे। इनà¥à¤¹à¥€ सà¥à¤¤à¥à¤ªà¥‹ को चैतà¥à¤¯ गृह à¤à¥€ कहा जाता था।
तीसरे समतल मैदान पर बना बोदà¥à¤§ à¤à¤¿à¤•à¥à¤·à¥à¤“ के लिठबने आयताकार विहार (ककà¥à¤·)(Monastery)
संà¤à¤µà¤¤à¤ƒ à¤à¤¸à¤¾ कहना अनà¥à¤šà¤¿à¤¤ नहीं होगा की मौरà¥à¤¯ राजवंश की बोदà¥à¤§ धरà¥à¤® के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ सहिषà¥à¤£à¥à¤¤à¤¾ उस काल के बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ समाज को नागवार गà¥à¤œà¤° रही थी।कà¥à¤¯à¥‚ंकि बोदà¥à¤§ विचारधारा वैदिक समाज की नीतियों और रीतियों से बिलà¥à¤•à¥à¤² विपरीत थी। जिसके फलसà¥à¤µà¤°à¥‚प मौरà¥à¤¯ राजवंश का पतन हà¥à¤† और बोदà¥à¤§ धरà¥à¤® के यह विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ सà¥à¤®à¤¾à¤°à¤• महज धà¥à¤µà¤‚सावशेष बनकर रह गà¤à¥¤
इस सà¥à¤¥à¤² से 30 या 40 फीट की ऊंचाई पर तीसरा समतल मैदान है जहाठबोदà¥à¤§ à¤à¤¿à¤•à¥à¤·à¥à¤“ के लिठरहने की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ की गयी थी। सारे शयन ककà¥à¤· वरà¥à¤—ाकार(Square) है और à¤à¤• दà¥à¤¸à¤°à¥‡ से जà¥à¤¡à¤¼à¥‡ है। सà¤à¥€ शयन ककà¥à¤·à¥‹à¤‚ के समीप पानी के निकास के लिठनालियाठबनाई गयी थी।बोदà¥à¤§ परंपरा के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ विहार(Monastery) कहाठजाता था। सीधी साधी à¤à¤¾à¤·à¤¾ में कहे तो यह छातà¥à¤°à¤¾à¤µà¤¾à¤¸ या होसà¥à¤Ÿà¤² । यहाठमेरी à¤à¥‡à¤‚ट à¤à¤• सजà¥à¤œà¤¨ से हà¥à¤ˆ जो à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤¤à¥à¤µ सरà¥à¤µà¥‡à¤•à¥à¤·à¤£ में कारà¥à¤¯à¤°à¤¤ है और इस सà¥à¤®à¤¾à¤°à¤• की देख रेख करते है। उनका नाम है लहिरी राम जी मीणा। यह मेरी आगे की यातà¥à¤°à¤¾ में कà¥à¤› समय तक सहायक सिदà¥à¤§ हà¥à¤à¥¤ गरà¥à¤®à¥€ बहà¥à¤¤ तेज़ थी लेकिन हवा का पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¹ शीतल था।
वहां से अरावली परà¥à¤µà¤¤ माला के विराट शिखर दिखाई दे रहे थे। दूर दूर तक सिरà¥à¤« पà¥à¤°à¤¾à¤•ृतिक सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤°à¤¤à¤¾ का ही सामà¥à¤°à¤¾à¤œà¥à¤¯ फैला हà¥à¤† था।बीजक की पहाड़ी की à¤à¥‹à¤—ोलिक रचना ने मà¥à¤à¥‡ बहà¥à¤¤ विसà¥à¤®à¤¿à¤¤ किया कà¥à¤¯à¥‚ंकि यहाठपर पहाड़ो पर बड़ी बड़ी चटà¥à¤Ÿà¤¾à¤¨à¥‡à¤‚ और पतà¥à¤¥à¤° यदा कदा बिखरे पड़े है। समसà¥à¤¤ अरावली परà¥à¤µà¤¤ शà¥à¤°à¤‚खला में इस तरह की रचना बहà¥à¤¤ कम ही देखने को मिलती है और खासकर अलवर,जयपà¥à¤° से सटी परà¥à¤µà¤¤ माला में इस तरह की रचना कहीं देखने को नहीं मिलेगी। जालोर ,सिरोही या बà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤° की तरफ इस तरह की à¤à¥‹à¤—ोलिक रचना जरूर दिखाई देती है। इन पाषाणों की बिखरे सà¥à¤µà¤°à¥‚प को देखकर à¤à¤¸à¤¾ पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ होता है जैसे किसी ने अपने हाथों से इनको उछालकर इस तरह बिखेर दिया हो। शायद ये सब à¤à¥€à¤® के कà¥à¤°à¥‹à¤§ का परिणाम होगा जब उसने कीचक का वध किया था।लेकिन ये सब लोक कथाओ तक ही पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¬à¤‚धित सोच है जिसका कोई पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£à¤¿à¤• तथà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¾à¤µà¤¿à¤¦à¥‹ अà¤à¥€ तक नहीं मिल पाया है। लाहिरी राम जी से यही सारी बातें करते हà¥à¤ मैं सहसा सोचने लगा की जहाठमैं आज बैठा हूठवहां कà¤à¥€ समà¥à¤°à¤¾à¤Ÿ अशोक ने अपने कदम रखे होंगे और महातà¥à¤®à¤¾ बà¥à¤¦à¥à¤§ के अनà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ ने यहाठविराजमान होकर जन साधारण का मारà¥à¤— दरà¥à¤¶à¤¨ किया होगा। लाहिरी राम जी ने मà¥à¤à¥‡ राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ के कई दरà¥à¤¶à¤¨à¥€à¤¯ सà¥à¤¥à¤²à¥‹à¤‚ को घूमने के सà¥à¤à¤¾à¤µ à¤à¥€ दिया। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने मà¥à¤à¥‡ बताया की इस पहाड़ी से कà¥à¤› दूर नीचे पतà¥à¤¥à¤°à¥‹à¤‚ पर कà¥à¤› आदिवासी शैलचितà¥à¤° (Rock Paintings) à¤à¥€ मौजूद है।
लाहिरी राम जी मीणा जो (à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤¤à¥à¤µ सरà¥à¤µà¥‡à¤•à¥à¤·à¤£ ) में कारà¥à¤¯à¤°à¤¤ है
“शेखावत जी आप देखना चाहोगे कà¥à¤¯à¤¾ ?” – लहिरी राम जी ने मà¥à¤à¤¸à¥‡ पूछा।।। सà¥à¤¨à¤¤à¥‡ ही में à¤à¤Ÿ से मान गया और मन ही मन में सोचने लगा की ‘पà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥‡ ये तो सोने पे सà¥à¤¹à¤¾à¤— हो गया। अचà¥à¤›à¤¾ सरपà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤œ मिला तà¥à¤à¥‡ यहाठ‘। करीब 200 से 300 फà¥à¤Ÿ नीचे हमने कई शैलचितà¥à¤° देखे जो उन शिलाओ पर कोरे गठथे । ये चितà¥à¤°à¤•ारी पà¥à¤°à¤¾à¤•ृतिक रंगों में किसी जीव की चरà¥à¤¬à¥€ को मिलकर बनाई गयी है। चरà¥à¤¬à¥€ के उपयोग से चितà¥à¤°à¤•ारी उà¤à¤° कर नज़र आती है और जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ रहती है। इसके बारे में वह कोई à¤à¥€ जानकारी देने में असमरà¥à¤¥ नज़र आ रहे थे । मेरे पूछने पर उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने बताया की शायाद किसी आदिवासी जाती ने कà¤à¥€ इस जगह को अपने आवास के लिठचà¥à¤¨à¤¾ होगा, लेकिन उनके उतà¥à¤¤à¤° से में संतà¥à¤·à¥à¤Ÿ नहीं था।
में लाहिरी राम जी से कह रहा था ज़ूम पà¥à¤²à¥€à¤œ …
किसी जानवर की खोपड़ी सी पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ होती à¤à¤• शिला जिसके नीचे à¤à¤• छोटी सी गà¥à¤«à¤¾ बनी हà¥à¤ˆ है
उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने मà¥à¤à¥‡ बताया की इस चैतà¥à¤¯ और विहार के सारे अवशेष जैसे मिटà¥à¤Ÿà¥€ के बने पातà¥à¤°, सिकà¥à¤•े, मूरà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤ और महातà¥à¤®à¤¾ बà¥à¤¦à¥à¤§ के à¤à¤¸à¥à¤® अवशेषों इतà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿ को à¤à¤• संगà¥à¤°à¤¹à¤¾à¤²à¤¯ में सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ रखा गया है। इस संगà¥à¤°à¤¹à¤¾à¤²à¤¯Â (Museum) का संचालन “परà¥à¤¯à¤Ÿà¤¨,कला à¤à¤‚व संसà¥à¤•ृति विà¤à¤¾à¤—,राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ सरकार” कर रही है। यह संगà¥à¤°à¤¹à¤¾à¤²à¤¯ गणेश डूंगरी के नीचे तलहटी में, विराट नगर बस सà¥à¤Ÿà¥ˆà¤‚ड से करीब 2 कि .मी की दूरी पर सà¥à¤¤à¤¿à¤¥ है। राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€ à¤à¤¾à¤·à¤¾ में छोटी पहाड़ी को डूंगरी कहते है। बीजक की पहाड़ी से à¤à¤• छोटा रासà¥à¤¤à¤¾ संगà¥à¤°à¤¹à¤¾à¤²à¤¯ की ओर जाता है। हमने इसी रासà¥à¤¤à¥‡ को चà¥à¤¨ कर जाने का निरà¥à¤£à¤¯ किया।
“अरे à¤à¤¾à¤ˆà¤¸à¤¾à¤¬ दरवाज़ा कà¥à¤¯à¥‚ठबंद कर रहे हो “??? मैंने पूछा — “छोटा दरवाज़ा खà¥à¤²à¤¾ है न सर आपके लिठ“
समà¥à¤°à¤¾à¤Ÿ अशोक के विराट नगर में दो शिलालेख मिलने की बात पता चलती है। पहला है à¤à¤¾à¤¬à¥à¤°à¥‚ शिलालेख जिसका सिरà¥à¤« à¤à¤• चितà¥à¤° यहाठइस संगà¥à¤°à¤¹à¤¾à¤²à¤¯ में मौजूद है।यह पाली और बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¥€ लिपि में लिखा गया था। यह शिलालेख समà¥à¤°à¤¾à¤Ÿ अशोक के बौदà¥à¤§Â धरà¥à¤® को सà¥à¤µà¥€à¤•ार लेने की पà¥à¤·à¥à¤Ÿà¤¿ करता है और इस बात का पà¥à¤°à¤®à¥à¤– पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ साबित हà¥à¤† है।
à¤à¤¾à¤¬à¥à¤°à¥‚ शिलालेख जो पाली à¤à¤¾à¤·à¤¾ में लिखा गया है …यह उसका फोटू है
बà¥à¤°à¤¿à¤Ÿà¤¿à¤¶à¤•ाल के à¤à¤• कैपà¥à¤Ÿà¥‡à¤¨ बरà¥à¤Ÿ ने इसवी 1837 में विराट नगर से कà¥à¤› दूर à¤à¤¾à¤¬à¥à¤°à¥‚ गाà¤à¤µ से समà¥à¤°à¤¾à¤Ÿ अशोक के इस शिलालेख को खोज निकाला था। इसके नषà¥à¤Ÿ हो जाने के डर से कैपà¥à¤Ÿà¥‡à¤¨ ने बड़ी सावधानी से इस शिलालेख को चटà¥à¤Ÿà¤¾à¤¨ से अलग काटकर विà¤à¤¾à¤œà¤¿à¤¤ करवाया। माना जाता है की यह शिलालेख बीजक की पहाड़ी से ही पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हà¥à¤† था, जो कालांतर में à¤à¤¾à¤¬à¥à¤°à¥‚ पहà¥à¤à¤š गया। कैपà¥à¤Ÿà¥‡à¤¨ बरà¥à¤Ÿ इसे कोलकाता ले गठऔर वहां ये अà¤à¤¿à¤²à¥‡à¤– बंगाल à¤à¤¶à¤¿à¤¯à¤¾à¤Ÿà¤¿à¤• सोसाइटी के à¤à¤µà¤¨ में सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ किया गया है।इसी कारण से यह शिलालेख à¤à¤¬à¥à¤°à¥‚ बैराठकोलकाता अà¤à¤¿à¤²à¥‡à¤– के नाम से à¤à¥€ जाना जाता है।
दूसरा अशोक शिलालेख, जो इस संगहालय से करीब 5-6 कि .मी की दूरी पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है, का रासà¥à¤¤à¤¾ शहर से होकर मà¥à¤—़ल गेट के समीप है।लाहिरी राम जी का और मेरा इतना ही साथ था।
मेरा दूसरा पड़ाव है मà¥à¤—़ल दरवाजा जो मधà¥à¤¯ कालीन विराट नगर के पà¥à¤°à¤à¥à¤¤à¥à¤µ को बड़ी अचà¥à¤›à¥€ तरह से दरà¥à¤¶à¤¾à¤¤à¤¾ है। इसके लिठमैंने विराट नगर बस सà¥à¤Ÿà¥ˆà¤‚ड से चलना शà¥à¤°à¥‚ किया।लोगों ने मà¥à¤à¥‡ सलाह दी की मैं पावटा जाने वाली बस में बैठकर मà¥à¤—़ल गेट चला जाऊ। लेकिन बस का इंतज़ार करना मà¥à¤à¥‡ पसंद नहीं।जितनी देर में बस आà¤à¤—ी उतनी देर में मैं चल कर ही पहà¥à¤à¤š जाऊà¤à¤—ा, à¤à¤¸à¤¾ सोचकर में चलने लगा। इसी बहाने मà¥à¤à¥‡ विराट नगर शहर को à¤à¥€ नज़दीक से देखने का मौका मिल रहा था। मेरा यह निरà¥à¤£à¤¯ काफी उचित सिदà¥à¤§ हà¥à¤† कà¥à¤¯à¥‚ंकि इसी बहाने मेरी à¤à¥‡à¤‚ट à¤à¤• à¤à¤¸à¥‡ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ से हà¥à¤ˆ जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने मà¥à¤à¥‡ बादशाह अकबर के उन महलो के बारे में विसà¥à¤¤à¥ƒà¤¤ जानकारी पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ की। शहर में काफी दूर चलते चलते à¤à¤• तिराया आया और वहां में कà¥à¤› à¤à¥à¤°à¤®à¤¿à¤¤ हो गया और सोचने लगा की किस रासà¥à¤¤à¥‡ से जाऊं। तà¤à¥€ आगे à¤à¤• दà¥à¤•ान दिखाई दी।
पà¥à¤°à¤¹à¥à¤²à¤¾à¤¦ वलà¥à¤²à¤ जी पंच महला के मà¥à¤–à¥à¤¯ पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ के सामने
मैंने वहां जाकर दà¥à¤•ान मैं बैठे सजà¥à¤œà¤¨ से मà¥à¤—़ल दरवाज़ा जाने का रासà¥à¤¤à¤¾ पà¥à¤›à¤¾à¥¤ उन सजà¥à¤œà¤¨ का नाम पà¥à¤°à¤¹à¥à¤²à¤¾à¤¦ वलà¥à¤²à¤ है , जो सà¥à¤µà¤¯à¤‚ विराट नगर के इतिहास में अपà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤® अà¤à¤¿à¤°à¥à¤šà¤¿ रखते जान पड़ते है।जब उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ पता चला की मैं बà¥à¤²à¥‰à¤— लिखता हूठतो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने मेरा बहà¥à¤¤ अचà¥à¤›à¤¾ सतà¥à¤•ार किया और उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने सà¥à¤µà¤¯à¤‚ मà¥à¤à¥‡ मà¥à¤—़ल दरवाज़ा दिखाने का निरà¥à¤£à¤¯ किया। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने मà¥à¤à¥‡ मà¥à¤—़ल दरवाज़े से जà¥à¤¡à¤¼à¥‡ सारे à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• वृतà¥à¤¤à¤¾à¤‚त काफी सà¥à¤²à¤à¤¤à¤¾ से समà¤à¤¾ दिये। आजकल पà¥à¤°à¤¹à¥à¤²à¤¾à¤¦ जी राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€ à¤à¤¾à¤·à¤¾ को संवैधानिक मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾ दिलाने वाले आनà¥à¤¦à¥‹à¤²à¤¨ में जà¥à¤Ÿà¥‡ हà¥à¤ है। वह राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€ साहितà¥à¤¯ में डिंगल पिंगल शैली पर à¤à¥€ शोध कर रहे हैं। राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ के चारण कवियों ने अपने गीतों के लिठजिस साहितà¥à¤¯à¤¿à¤• शैली का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— किया है,उसे डिंगल पिंगल कहते है।
पà¥à¤°à¤¹à¥à¤²à¤¾à¤¦ जी से संपरà¥à¤• करने के लिठउनका मोबाइल नंबर यह रहा – 08233536217 करीब बीस मिनट में हम मà¥à¤—़ल दरवाज़ा /गेट पहà¥à¤à¤š गà¤à¥¤
मà¥à¤—़ल गेट/दरवाज़ा à¤à¤• बहà¥à¤¤ सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° à¤à¤µà¤¨ है जिसका निरà¥à¤®à¤¾à¤£ आमेर के कछावा वंश के महाराजा मान सिंह ने करवाया था। यह उस समय की बात है जब कछावा या कछवाह वंश के राजपूतों की राजधानी आमेर हà¥à¤† करती थी। 17 वी शताबà¥à¤¦à¥€ में कछावा राजवंश की राजधानी आमेर से जयपà¥à¤° हो गयी थी। कछावा राजवंश अपनी उतà¥à¤ªà¤¤à¤¿ अयोधà¥à¤¯à¤¾ नरेश सूरà¥à¤¯à¤µà¤‚शी शà¥à¤°à¥€ राम के जà¥à¤¯à¥‡à¤·à¥à¤ पà¥à¤¤à¥à¤° कà¥à¤¶ से पाते है। इसका निरà¥à¤®à¤¾à¤£ बादशाह अकबर के विशà¥à¤°à¤¾à¤® गृह के रूप में करवाया गया था। अजमेर में मोईनà¥à¤¦à¥à¤¦à¥€à¤¨ चिशà¥à¤¤à¥€ की दरगाह जाते समय अकबर विराट नगर के इसी à¤à¤µà¤¨ में विशà¥à¤°à¤¾à¤® करने के लिठऔर कà¤à¥€ कà¤à¥€ आखेट करने के लिठरà¥à¤•ा करता था। महाराजा मान सिंह ने बादशाह के सà¥à¤µà¤¾à¤—त हेतॠतीन à¤à¤µà¤¨à¥‹à¤‚ का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ किया जिनके नाम है पंच महला,चौ महला और नौ महला।
महला जिसके बीच में मà¥à¤–à¥à¤¯ पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° à¤à¤• गà¥à¤®à¥à¤¬à¤¦à¤¾à¤•ार हाल में खà¥à¤²à¤¤à¤¾ है ….इस चबूतरे के नीचे घà¥à¤¡à¤¸à¤¾à¤² बनी है… दूसरी मंजिल पर चारो और ककà¥à¤· बने है जिनका आतंरिक पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ हाल में खà¥à¤²à¤¤à¤¾ है …इन ककà¥à¤·à¥‹à¤‚ में सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° गवाकà¥à¤· बने हà¥à¤ है ..और छत पर पांच सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° छतरियां बनी हà¥à¤ˆ है
पंच महला वो à¤à¤µà¤¨ था जो बादशाह के आवास के लिठबनाया गया था और इसे पंच महला इसलिठकहा जाता है कà¥à¤¯à¥‚ंकि इस à¤à¤µà¤¨ के ऊपर पांच छतरियाठबहà¥à¤¤ ही सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° ढंग से सà¥à¤¸à¥à¤¸à¤œà¤¿à¤¤ है। इसमें चारो कोनो पर चार छतरियाठका और बीच में à¤à¤• विशाल छतरी का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ किया गया है। इस महल की à¤à¤•मातà¥à¤° विशेषता है इसकी दीवारों पर किये गठà¤à¤¿à¤¤à¥à¤¤à¤¿ चितà¥à¤°à¥¤ यह à¤à¤µà¤¨ देखने में ताजमहल की तरह लगता है परनà¥à¤¤à¥ इसमें ताज महल की तरह चारो ओर मीनारे नहीं बनी हà¥à¤ˆ है। यह à¤à¤µà¤¨ à¤à¤• à¤à¤• बहà¥à¤¤ बड़े चबूतरे पर बना हà¥à¤† है जिसके नीचे à¤à¤• घà¥à¤¡à¤¸à¤¾à¤² à¤à¥€ बनाई गयी थी। इस à¤à¤µà¤¨ के दरवाजों की ऊंचाई मà¥à¤—़ल कालीन शैली के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° काफी कम आकर में बनी है। मà¥à¤–à¥à¤¯ पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ से à¤à¤• बड़ा गà¥à¤®à¥à¤¬à¤¦à¤¾à¤•ार हाल में जाया जा सकता है इस हाल की दीवारों पर हिंदी à¤à¤‚व फारसी में लिखे कई लेख मिल जाते है जो धूल à¤à¤‚व समय के कारण कà¥à¤› असà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ नज़र आ रहे है।
अरबी और हिंदी के लेख जो दीवारों पर उकेरे गठहै
यहीं पर उतà¥à¤¤à¤° की दीवारों पर इसवी 1620 का लेख à¤à¥€ मिलता है जिससे यह सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ होता है की यहाठसे मà¥à¤—़ल सामà¥à¤°à¤¾à¤œà¥à¤¯ के लिठखजाना समय समय पर ले जाया जाता था।खजाने के लिठआने वाले करà¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¥€ à¤à¤‚व अधिकारीयों के हसà¥à¤¤à¤¾à¤•à¥à¤·à¤°à¥‹à¤‚ के पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ à¤à¥€ मिलते है। इस à¤à¤µà¤¨ के ऊपर जाने के लिठदो तरफ पूरà¥à¤µ और पशà¥à¤šà¤¿à¤® की दिशा में दो सीढियां बनी हà¥à¤ˆ है। इसकी दूसरी मंजिल पर चारो कोनो पर सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° à¤à¤¿à¤¤à¥à¤¤à¤¿ चितà¥à¤°à¥‹à¤‚ से यà¥à¤•à¥à¤¤ छोटे कमरे बने हà¥à¤ है। पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• कमरे के बाहर अरà¥à¤§ चंदà¥à¤°à¤®à¤¾à¤•र सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° गवाकà¥à¤· बने हà¥à¤ है जो हवा के पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¹ के लिठअतà¥à¤¯à¤‚त उपयोगी होते है। इन चारो कमरों के अनà¥à¤¦à¤° के पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ उस बड़े गà¥à¤®à¥à¤¬à¤¦à¤¾à¤•ार हाल में खà¥à¤²à¤¤à¥‡ है। इन कमरों को बहà¥à¤¤ ही सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° à¤à¤¿à¤¤à¥à¤¤à¤¿ चितà¥à¤°à¥‹à¤‚ से अलंकारित किया है जिनमे पà¥à¤°à¤®à¥à¤– रूप से मà¥à¤—़ल कालीन कà¥à¤¶à¥à¤¤à¥€, गà¥à¤²à¤¦à¤¸à¥à¤¤à¥‡, पकà¥à¤·à¥€, फूल पतà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ इतà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿ के चितà¥à¤° बनाये गठहै। तीसरी मंजिल पर अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ इस à¤à¤µà¤¨ की छत पर चारो और छतरियो का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ करवाया गया है और बीच में à¤à¤• बड़ी छतरी बनी हà¥à¤ˆ है।इन छतरियों के खमà¥à¤à¥‹à¤‚ का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ गà¥à¤°à¤¾à¤® छितोंली के पतà¥à¤¥à¤°à¥‹à¤‚ से किया गया है। मधà¥à¤¯ में बनी विशाल छतरी पर बनी कला कृतियों में मà¥à¤—़ल à¤à¤‚व राजपूत सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¤à¥à¤¯ कला का बेजोड़ संगम दिखाई देता है। इस छतरी में कà¥à¤¶à¥à¤¤à¥€, मà¥à¤—़ल दरबार, हाथी घोड़े, महाà¤à¤¾à¤°à¤¤, रासलीला इतà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿ के चितà¥à¤° मौजूद है।
दूसरी मंजिल पर बने हà¥à¤ ककà¥à¤·à¥‹à¤‚ में किये गठà¤à¤¿à¤¤à¥à¤¤à¤¿ चितà¥à¤° में बादशाह अकबर कà¥à¤¶à¥à¤¤à¥€ का मज़ा लेता दिखाई दे रहा है।
छत पर बनी बीच में सबसे बड़ी छतरी है … यह उसके अनà¥à¤¦à¤° बनी चितà¥à¤°à¤•ला है ..जो अतà¥à¤¯à¤‚त मनमोहक है
बीच में बनी विशाल छतरी और इसके चारो और चार छोटी छतरियां बनवाई गयी थी
चौ महला जिसके ऊपर चार छतरियां बनवाई गयी है
इसी तरह चौ महला और नौ महला कहलाठकà¥à¤¯à¥‚ंकि इन à¤à¤µà¤¨à¥‹à¤‚ पर à¤à¥€ चार अथवा नौ छतरियाठका सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° निरà¥à¤®à¤¾à¤£ किया गया है।चौ महला मजमे-ठ-ख़ास के लिठउपयोग में लाया जाता था जहाठबादशाह अपने उचà¥à¤š सलाहकारों और मंतà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के साथ राजनैतिक और कूटनैतिक रणनीतियां बनाता था। नौ महला जनाना खाना था जहाठपर सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤ और बेगमे आवास किया करती थी।
नौ महला जिसका उपयोग रानीवास के लिठकिया जाता था … इस पर नौ छतरियां विराजमान है
आठढाणे वाला कà¥à¤†à¤ ….पानी को इन ढाणो में जमा करके नालियों में पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¹à¤¿à¤¤ किया जाता था
नौ महला और चौ महला दोनों à¤à¤• दूसरे के आमने सामने बने हà¥à¤ है। इसका मतलब यह है की चौ महला और नौ महला à¤à¤• ही चार दिवारी में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है अपितॠपंच महला इन दोनों à¤à¤µà¤¨à¥‹à¤‚ से कà¥à¤› 300 मीटर की दूरी पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है। इनमे बहà¥à¤¤ ही मनोरम बाग़ बगीचों का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ करवाया गया था। इनमे पानी के संचार के लिठमिटà¥à¤Ÿà¥€ और चूने की पकà¥à¤•ी नालियाठबनायीं गयी थी जो वरà¥à¤—ाकार à¤à¤‚व आयताकार रूप में à¤à¤• दूसरे को जोडती थी ताकि बाग़ के सà¤à¥€ हिसà¥à¤¸à¥‹à¤‚ में पानी का पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¹ हो सके। इस बाग़ में पानी की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ के लिठà¤à¤• आठढाणे वाले कà¥à¤à¤‚ का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ करवाया गया था। इन ढाणों से पानी नालियों के सहारे पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¹à¤¿à¤¤ किया जाता था। बीच बीच में पानी को à¤à¤•तà¥à¤°à¤¿à¤¤ करने के लिठटैंक यानी छोटे जलाशय à¤à¥€ बनाये गठथे जिनको फवà¥à¤µà¤¾à¤°à¥‹à¤‚ से सà¥à¤¸à¥à¤¸à¤œà¤¿à¤¤ किया जाता था।
आजकल चौ महला और नौमहला जैन संपà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¯ के दिगंबर समाज के आधीन है। नौ महला में महावीर जैन की शà¥à¤µà¥‡à¤¤ संगमरमर की विशाल मूरà¥à¤¤à¤¿ à¤à¥€ सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ है। अंदर पà¥à¤°à¤¾à¤‚गण में जैन समाज के लोगो ने à¤à¤• धरà¥à¤®à¤¶à¤¾à¤²à¤¾ à¤à¤‚व शादी बà¥à¤¯à¤¾à¤¹ इतà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿ के लिठà¤à¤• à¤à¤µà¤¨ का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ करवाया है जिसमे कोई à¤à¥€ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ अपने पारिवारिक जलसे करवा सकता है। मेरे अनà¥à¤¸à¤¾à¤° ये निरà¥à¤®à¤¾à¤£ इस सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° मà¥à¤—़ल कालीन विरासत को नà¥à¤•सान पहà¥à¤‚चा रहा है। इनका निरà¥à¤®à¤¾à¤£ इन à¤à¤µà¤¨à¥‹à¤‚ के बाहर à¤à¥€ करवाया जा सकता था कà¥à¤¯à¥‚ंकि इसके निरà¥à¤®à¤¾à¤£ हेतॠइनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡ सारे बाग़ की ज़मीन का उपयोग कर इन à¤à¤µà¤¨à¥‹à¤‚ की आंतरिक सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤°à¤¤à¤¾ को नषà¥à¤Ÿ कर दिया गया है।
हमारा अंतिम पड़ाव था समà¥à¤°à¤¾à¤Ÿ अशोक कालीन दूसरा शिलालेख जो मà¥à¤—़ल गेट से करीब à¤à¤• किलोमीटर की दूरी पर à¤à¥€à¤® की डूंगरी (पहाड़ी) के नीचे सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है। यह शिलालेख काफी धूमिल हो चूका है और इसके रख रखाव पर à¤à¥€ कोई ख़ास धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ नहीं दिया जा रहा है। इसे कटवाना मà¥à¤¶à¥à¤•िल था इसलिठये यही पर ही à¤à¤• लोहे से बनी जाली की à¤à¤• चारदीवारी में सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ करके रखा गया है।
शिलालेख को बड़े धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ से देखते पà¥à¤°à¤¹à¤²à¤¾à¤¦ जी
शाम के सात बज रहे थे इसलिठमैंने अपने आप को वापस जाने के लिठजैसे तैसे तैयार कर ही लिया। पà¥à¤°à¤¹à¥à¤²à¤¾à¤¦ जी ने à¤à¤• रात उनके यहाठरà¥à¤•ने का आगà¥à¤°à¤¹ किया लेकिन मैंने विनमà¥à¤°à¤¤à¤¾ पूरà¥à¤µà¤• उनको मना कर दिया। जब बस में बैठकर जाने लगा तो सहसा बादशाह अकबर का काफिला पहाड़ो से गà¥à¤œà¤°à¤¤à¤¾ नज़र आने लगा… पतà¥à¤¥à¤° के उन शिलालेखो में समà¥à¤°à¤¾à¤Ÿ अशोक का पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¬à¤¿à¤®à¥à¤¬ उà¤à¤° कर दिखने लगा और कानो में बà¥à¤¦à¥à¤§à¤‚ शरणम गचà¥à¤›à¤¾à¤®à¤¿ के सà¥à¤µà¤° गूंजने लगे।
अरावली के पहाड़ों पर à¤à¤• और सूरज असà¥à¤¤ होने जा रहा था,à¤à¤• और रात सामने खड़ी थी…. और समय के काल चकà¥à¤° में विराट नगर à¤à¤• और दिन से अगà¥à¤°à¤œ होने जा रहा था।