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माता वैष्णो देवी की यात्रा – मैया रानी का प्यार मुझे भी मिला अबकी बार

नवरात्रि का नौवा दिन, दिनांक 8 अप्रैल 2014, रात्रि के आठ बाज रहे हैं और मैं नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के प्लॅटफॉर्म नंबर 14 पर खड़ा होकर अपनी ट्रेन जम्मू राजधानी एक्सप्रेस का बेसब्री से इंतेज़ार कर रहा हूँ. पहली बार किसी परिवारिक सदस्य के साथ ना जाकर मैं अकेले ही निकल पड़ा हूँ घर से माता वैष्णो देवी जी के दर्शन करने हेतु जिसका सारा श्रेय मेरी जननी (माता) के द्वारा की गयी हौसलफजाई और जगत जननी माता वैष्णो देवी जी के बुलावे को जाता है. अक्सर हम लोग अकेले होने की स्थिति मे चुप-चुप से रह जाते है और अपने आस-पास घटित हो रही घटनाओ से रूबरू नही हो पाते, किंतु यहाँ तो आलम कुछ और ही था और मेरा मन जम्मू पहुँचने और आगे की यात्रा प्रारंभ करने की और था जिसका मुझे पिछले सोलह वर्षों से इंतजार था. जी हां मित्रो, आप सभी को जानकर् आश्चर्य होगा की तकरीबन सोलह-सत्रह वर्षों पूर्व मे अपने परिवार और एक परिवारिक मित्र के साथ माता वैष्णो देवी के दर्शन हेतु गया था, जिसके उपरांत दूसरी बार जाने का ना तो कभी कोई अवसर मिला और ना ही कभी माता जी का बुलावा ही आया. किंतु आज तो मैं स्वयं की किस्मत पर गर्व कर रहा था की आख़िरकार परिस्थितियों ने समय के साथ करवट बदल ही ली और मुझे अवसर मिल रहा है माता के दर्शन का. अभी मैं अपने विचारो के संसार मे खोया हुआ ही था की अचानक से लोगो मे कौतूहल बढ़ने लगा और मैने देखा की सामने से मेरी ट्रेन दौड़ी चली आ रही है मुझे मेरे गंतव्य तक पहुँचने हेतु. बस फिर क्या था मैने झट से मोबाइल निकाला और अपनी ट्रेन को कैमरे मैं क़ैद कर लिया.


ट्रेन के भीतर का माहौल तोड़ा शोर-शराबे वाला था और सभी लोग बातों मे मशगूल थे. मुझे जब कुछ और ना सूझा तो अपनी इस तृतीया श्रेणी के वातानुकूलित डिब्बे मे मुफ़्त उपलब्ध होने वाली पत्रिकाओ जो के ज़्यादातर रेल विभाग से ही संबंधित होती है को पढ़ते हुए ही टाइम पास करना उचित समझा. धीरे-धीरे सूप, डिनर और फिर आइस्क्रीम का दौर चला जिनका मूल्य आपकी टिकट मे ही सम्मिलित रहता है किंतु मेरी भूख-प्यास तो कटरा पहुँचने पर ही मिट्ने वालीी थी. खैर देखते ही देखते रात्रि के दस बाज गये और मैं बेमन से सोंने के लिए लेट गया किंतु निद्रा तो जैसे मुझसे कोसो दूर थी और चाह कर भी मैं रात भर सो नही पाया. थोड़े-2 समय के अंतराल मे बार-2 अपनी घड़ी देखता और फिर दोबारा आँखे बंद करके सोने का प्रयास करता. अंततः सुबह चार बजे मैने उठकर बैठ जाने का निर्णय लिया, हालाँकि जम्मू पहुँचने का समय प्रातः 5:40 का था, किंतु अब मैं ज़्यादा देर तक लेटे रहने का ढोंग नही कर सकता था. कुच्छ ही समय बीता था मुझे बैठे हुए की मेरे देखा-देखी अन्य लोग भी उठकर अपनी सिटो पर बैठने लगे. शायद वह यह सोच कर जाग गये थे की यह लड़का तो शूज वगेरह पहन कर अपने सामान के साथ तैयार बैठा है, अतः हो सकता है जम्मू स्टेशन आने वाला हो और हम सब सोते ही रह जाएँ.

शनै-२ घड़ी किी सुइयों ने 06:30 का समय दर्शाया और हमारा बहुप्रतीक्षित जम्मू स्टेशन अब हमारे समक्ष था. उत्साह के समुद्र की लहरें हृदय मे इस प्रकार उपर-नीचे हो रही थी की मैं किसी हिरण की भाँति कुलाँचे मारता हुआ स्टेशन से बाहर आया और कटरा जाने वालीी बस मैं बैठ गया जिसके संचालक ने रु. 60 किराया लेते हुए यह वादा किया की वो मात्र दो घंटे मे मुझे कटरा पहुँचा देगा. बस अपने निर्धारित समय अर्थात 06:45 बजे जम्मू से चालीी और लगभग एक घंटे बाद दस मिनिट के लिए एक टी स्टॉल पर आकर रुक गयी.

यहाँ से चलने के पश्चात हमारा अगला पड़ाव जम्मू-कश्मीर पोलीस चेक पोस्ट था जहाँ पर विशेषतः पुरुष यात्रियों के सामान की सघन तलाशी ली गयी.

खैर बस संचालक अपनीी ज़ुबान का बहुत ही पक्का निकला और ठीक दो घंटे बाद 08:45 बजे मैं कटरा बस स्टॅंड पर खड़ा अपने चारों तरफ फैली उन्मुक्त भीड़ को निहार रहा था के एकाएक मेरी दृष्टि निहारिका भवन की तरफ पड़ी जहाँ मात्र रु 120 देकर आप माता के भवन के समीप स्थित मनोकामना भवन मे अपने सोने के लिए एक बेड बुक करवा सकते है जिसमे टायलेट-बाथरूम शेयरिंग बेसिस पर इस्तेमाल करना पड़ता है. मैने भी स्थिति और अकेले होने का फ़ायदा उठाया और झट से अपने लिए एक बेड बुक करवा लिया जहाँ पर मैं माता के दर्शन के पश्चात आराम से रात गुजर सकता था.

किंतु सबसे पहले तो मुझे कटरा मे ही खुद के लिए एक अल्पावधि विश्राम कक्ष किी आवश्यकता थी जहाँ से मैं नहा-धोकर व कपड़े बदल कर अपनी आगे की यात्रा प्रारंभ कर सकता था. पास ही एक छोटी सी लॉज देखी और उसमे एक बहुत ही छोटा सा कमरा रु 300 के भुगतान के बाद अल्पावधि हेतु ले लिया. सचमुच बहुत ही अन्याय है इस समाज मे. खैर कमरे मे पहुँचते ही अपने बैग को दोबारा से व्यवस्थित करने, चाय पीने और नहाने-धोने मे मुझे एक घंटे का समय लग गया और नहा-धोकर, बालों मे कंघी, चेहरे पर लोशन, आँखों मे गॉगल्स, पैरों मे स्पोर्ट्स शूस और जीन्स-टिशर्ट पहने मैं स्वयं को दर्पण के समक्ष खड़ा निहार रहा था. कंधों पर अपना बाग टाँगकर मैं निकल गया होटल से बाहर और बगल मे ही यात्रा रजिस्ट्रेशन पर्ची लेने हेतु काउंटर मे घुस गया. यहाँ भी केवल दस मिनिट का ही समय लगा जिसमे आपको यात्रा पर्ची देने से पूर्व आपका नाम, निवास स्थान और फोटो खींचने जैसे कार्य करने के बाद उसे पर्ची मे ही बार कोड के रूप मे चस्पा दिया जाता है. यह पर्ची अगले 06 घंटो के लिए वैध रहतीी है जिसमे आपको इस निर्धारित समय तक बान गंगा को पार करना होता है. अब बारी थी बान गंगा तक पहुँचने के लिए एक ऑटो की जिसका किराया सभी भले-मानसो ने मुझे अकेली सवारी होने के कारण रु 100 बताया किंतु एक अन्य ने केवल रु 50 लेकर मुझे बान गंगा तक पहुँचा दिया, शायद उसे भी वहाँ किसी कार्य हेतु जाना था. एक बार फिर कहूँगा की समाज मे अन्याय बहुत बढ़ रहा है.

बान गंगा पर ही माता जी की यात्रा प्रारंभ करने हेतु दर्शनी द्वार स्थित है जहाँ से आपकी पर्ची भी चेक की जाती है और आपके सामान को एक स्कॅनर से गुज़ारा जाता है, जैसा की सभी मेट्रो स्टेशन पर होता है. यहाँ से आपको घोड़ो और खच्चरो का सामना भी करना पड़ता है जिनकी या तो आप सवारी कर सकते है अन्यथा उनसे कदमताल करते हुए माता के भवन तक पहुँच सकते है. अब मैं ठहरा बांका नौजवान, अतः मैने उनसे कदमताल करते हुए ही भवन तक पहुँचना उचित समझा और कंधे पर अच्छे-ख़ासे वजन का बैग टाँगकर अपनी चढ़ाई शुरू कर दी.

प्रातः काल के ग्यारह बाज रहे थे और मैं अपनी यात्रा के प्रथम चरण पर था की तभी घर से फोन आया की मुझे चढ़ने से पहले नाश्ता कर लेना चाहिए, विचार उचित था और मैं एक साफ-सुथरे से रेस्टोरेंट मे घुस गया. यहाँ एक आलू परान्ठा, एक गोभी परान्ठा, डिब्बा बंद अमूल नमकीन लस्सी हजम करने और रु 55 का बिल भुगतान करने के बाद अपनी यात्रा पर निकल पड़ा.

यात्रा की चढ़ाई और सुर्य की किरणे समय के साथ-2 बढ़ रही थी और यह बांका नौजवान पसीने मे तर-बतर किसी भीगी बिल्ली की भाँति प्रतीत हो रहा था किंतु शुक्र है पूरे मार्ग मे ही आपको पीने के लिए ठंडा जल मुफ़्त मिल जाता है जिसे पीकर आप मे एक नया जोश और उत्साह भरने लगता है. लगभग डेढ़ घंटे निरंतर चलने के बाद मुझे एक लंबी सी कतार दिखाई दी और पूछने पर पता चला की मैं अर्धकुंवारी तक पहुँच चुका हूँ तथा यह कतार यहाँ से आगे बढ़ने से पूर्व तलाशी लेने हेतु लगी हुई है. यहाँ सामान के साथ-साथ यह भी जाँचा जाता है की कहीं आप अपने साथ कोई मादक पदार्थ जैसे की सिगरेट, बिडी या तंबाकू आदि तो लेकर भवन तक नही जा रहे हैं. इस कतार मे पौना घंटा बिताने के पश्चात मैं अर्धकुंवारी से आगे बढ़ा ही था की तभी एक श्रद्धालु युवक ने मेरा रास्ता रोक कर मुझे मार्ग बदलने और सुरंग वाला मार्ग लेने की नसीहत दी. जिस मार्ग पर मैं जाने वाला था वा भैरों घाटी से नीचे आने हेतु था तथा उसकी चढ़ाई अत्यंत ही खड़ी थी मैने भी उसकी बात मानकर अपने कदमो को बाँईि तरफ मोड़ लिया और सुरंग वाला रास्ता पकड़ लिया. यह रास्ता अर्धकुंवारी पर ही स्थित है. चलते हुए मुझे यह ज्ञात हो रहा था की उस युवक की बात मान कर मैने ठीक ही किया और अब तो मेरी चलने की गति भी बढ़ चुकी थी. यह मार्ग ज़्यादातर टीन की शेड से ढँका हुआ है क्यूंकी यहाँ पहाड़ी से पत्थर या तो खुद-ब-खुद गिर जाते है या फिर बन्दरो द्वारा गिरा दिए जाते हैं. और इसके परिणाम स्वरूप गंभीर चोटे भी लग सकती है.

मैं माता जी के भवन तक दोपहर साढ़े तीन बजे पहुँच गया था और यहाँ पहुँचकर सबसे पहले मैने अपनी यात्रा पर्ची का सत्यापन करवा लिया जिस पर उन्होने एक समूह संख्या भी अंकित कर दी, इस संख्या के अनुसार ही आप माता के दर्शन कर सकते हैं. तत्पश्चात मैने श्राइन बोर्ड द्वारा संचालित प्रसाद की दुकान से माता जी का प्रसाद खरीदा और मनोकामना भवन मे अपना बेड लेकर एक बार फिर से अपना सामान वय्वस्थित किया और नहा धोकर शाम पाँच बजे माता के दर्शन हेतु कतार मे जाकर लग गया. एक बात और बताना चाहूँगा की कतार मे लगने से पहले मैने अपने जूते, बॅग और मोबाइल आदि सामान मनोकामना भवन के ही एक लॉकर मे जमा करवा दिया था और यह सुविधा बिल्कुल मुफ़्त थी, हाँ आपको एक ताला ज़रूर खरीदने का कष्ट करना पड़ेगा. यहाँ पर आपको जो बेड दिया जाता है वह डबल डेकर बस की तरह प्रतीत होता है तथा एक बड़े से हाल मे ऐसे बहुत सारे बेड लगे होते हैं जिसमे बहुत सारे परिवार माता के दर्शन करने के पश्चात आकर सो जाते हैं या फिर दर्शन हेतु अपनी बरी का इंतेज़ार करते हैं. यहाँ पर आपको उचित दाम पर खाने-पीने की व्यवस्था भी मिल जाती है.

लगभग दो घंटो की प्रतीक्षा के बाद अंततः वो समय आ ही गया जब मे माता जी किी पिंडियो के दर्शन करने हेतु पवित्र गुफा मे प्रवेश कर रहा था. गुफा की दीवारों से रिस्ता हुआ प्राकृतिक जल जब आपके शरीर पर पड़ता है तो मानो अंतर-आत्मा तक को भीगा डालता है और जिस सच की अनुभुउति होती है वह तो अतुलनीया है. धीरे-2 मैं माता किी पिंडियो तक भी पहुँच गया जिनके दर्शन करते ही नेत्रो मे सुकुउन और मन को आराम मिल जाता है. ऐसी अदभुत शक्ति का आचमन मात्रा ही कुछ पलों के लिए हमारे मन से ईर्ष्या, राग और द्वेष जैसे दोषो को समाप्त कर देता है और बदन एक उन्मुक्त पंछी की भाँति सुख के खुले आकाश मे हृदय रूपी पंख फैलाकर हर उस अनुभूति का स्वागत करने लगता है जिसकी हमने कभी कल्पना भी नही की थी. मुझे स्वयं भी यह आभास हो रहा था की पवित्र गुफा के प्रवेश द्वार पर मेरा चंचल चित्त कहीं पीछे ही छूट चुका है और निकास मार्ग तक पहुँचते-2 वो अब काफ़ी शांत व गंभीर हो गया है, लगता है मानो कुछ पा लिया हो.

माता जी के दर्शानो के उपरांत समीप ही स्थित शिव गुफा मे भी मत्था टेकने और पवित्र गुफा मे बहते अमृत जल का आचमन करने के बाद मैं बहुत देर तक माता के भवन को निहारता ही रहा और इसकी सुंदरता भी देखते ही बनती थी, शायद नवरात्रि के उपलक्षय मे इसे विशेष रूप से सजाया गया था. यह वो पल थे जब मैने स्वयं को उस गूगे के समान्तर पाया जो मीठे फल का आनंद तो ले सकता है किंतु चाहकर भी उसका व्याख्यान नही कर सकता.

तत्पश्चात मैने समीप ही स्थित सागर रत्ना मे रात्रि का डिन्नर करने के पश्चात एक दूसरे ढाबे से सुजी का हलवा लिया और एक खुले स्थान पर जाकर माता के भवन की तरफ मुख करके खड़ा हो उसे खाने लगा. यहाँ यह ज़रूर बता देना चाहूँगा की मात्र रु 20 का यह हलवा कम से कम रु 250 के भोजन से स्वादिष्ट था जो मैने सागर रत्ना मे खाया था. इस वक्त तक शाम पूरी तरह से घिर आई थी और तेज सर्द हवाओं का दौर शुरू हो चुका था. माता जी का भवन जग-मग रोशनी मे नहा रहा था और मेरा मन उन तेज हवाओं मे भी यहीं टीके रहने को आतुर था और यहाँ खड़े-2 मे जल्दी ही एक डोना गर्मागर्म हलवा और एक कप कॉफी हजम कर चुका था.

नींद तो नही आ रही थी किंतु अगले दिन भैरों घाटी जाने हेतु जलदी उठना था अतः मैं यहाँ से सीधे अपने डबल देकर बेड पर गया और सो गया. सुबह ठीक पाँच बजे मेरी आँख ख़ुल गयी और मैं झट से वापिस उसी स्थान पर जाकर माता के भवन के दर्शन करने चला गया जहाँ से रात्रि मे वापिस आने का मान ही नही हो रहा था. सर्द हवाओं का दौर रात्रि के मुकाबले अब और भी ज़्यादा बढ़ चुका था अतः जल्दी से चाय पीकर मैं वापिस मनोकामना भवन आ गया और जल्दी से नहा धोकर अपना सामान पॅक किया और भैरों घाटी की तरफ पैदल ही चल दिया. यहाँ की चढ़ाई थोड़ा ज़्यादा खड़ी है और उस पर भी तुर्रा यह की अधिकांश मार्ग घोड़ो के अतिक्रमण की भेन्ट चढ़ा होता है. सीढियो के द्वारा पच्चीस मिनिट मे हानफते हुए मैं भैरों मंदिर पहुँच गया किंतु मेरी साँसे अब पहाड़ी सर्द हवाओं से भी अधिक तेज गति से चल रही थी. सुबह के साढ़े सात बज रहे थे और यहाँ पहुँच कर पता चला की मंदिर तो साढ़े आठ बजे खुलने वाला है, शायद मंदिर मे बाबा की आरती चल रही थी. अतः मैने वहीं कतार मे लगे रहकर टाइम पास करना उचित समझा. ठीक साढ़े आठ बजे मंदिर मे प्रवेश की अनुमति मिली और पौने नौ बजे तक बाबा के दर्शन करने के बाद मैं बाहर आ गया. यहाँ से आपको दूर तक देखने पर बर्फ से ढँकी हिमालय की पर्वत चोटियाँ भी दिखाई देती है जिनकी फोटो मैने अपने कॅमरा से ली तो थी किंतु किन्ही कारणवश वो डेलीट हो गयी.

समय अच्छा व्यतीत हुआ, मंन प्रफुल्लित था, शरीर मे स्फूर्ति भर चुकी थी और अब मे वापिस कटरा की तरफ बढ़ रहा था. रास्ते मे लंगूरों के परिवार से मुलाकात हुई तो मैने उन्हे भी मोबाइल मे क़ैद कर लिया साथ ही कुछेक अपनी सेल्फी भी क्लिक की.

रास्ते मे मैने कुछ ड्राइ-फ्रूट भी खरीदे किंतु घर पहुँचने पर पता चला की मुझे दिखाया कुछ और गया था और पॅक कुछ और ही किया गया है, अर्थात यह सब चीज़े किसी अच्छी और विश्वसनीय दुकान से ही खरीदे जो की आपको कटरा मार्केट मे मिल सकती है.

अपने सफ़र का आनंद लेते हुए मैं वापिस कटरा पहुँच गया और यहाँ शेरे पंजाब रेस्टोरेंट मे भोजन करने व लस्सी का स्वाद चखने के पश्चात जम्मू जाने वाली बस मे जा कर बैठ गया. एक घंटे मे मैं जम्मू रेलवे स्टेशन पहुँच गया किंतु यह क्या अभी तो घड़ी मे चार ही बजे हैं और मेरी ट्रेन तो शाम सात चालीस की थी. जब कुछ ना सूझा तो यहीं रेलवे स्टेशन के फर्श पर बैठकर मैने साढ़े टीन घंटे का समय आती-जाती दूसरी रेलगाड़ियो को देखते हुए पास किया, और मेरे इस काम मे मेरा साथ दिया मेरी ही तरह अपनी ट्रेन का इंतेज़ार कर रहे अन्य यात्रियों ने. स्टेशन की चहल-पहल मे पता ही नही चला की कब समय तितली की भाँति एकाएक उड़ गया और मेरी ट्रेन जम्मू राजधानी एक्सप्रेस आ गयी जिसमे सवार होकर मैने वापिस दिल्ली की तरफ रुख़ किया एक अत्यंत ही सुखद व अविस्मरणीय यात्रा संस्मरण के साथ जिसे आप सभी के साथ सांझा करने का सौभाग्य मुझे हमारे प्रिय घुमक्कर.काम के माध्यम से प्राप्त हो रहा है.

माता वैष्णो देवी की यात्रा – मैया रानी का प्यार मुझे भी मिला अबकी बार was last modified: May 20th, 2022 by Arun Singh
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