आज उत्तराखंड के हालात देखकर मुझे अपनी सितम्बर २०१० की यात्रा याद आ गयी जब काफी कुछ ऐसे ही हालात थे, उस वक़्त बड़ी मुश्किल से ही हम वापिस दिल्ली आ पाए थे। जुलाई मे हम छ लोग नैनीताल होकर आये थे और गज़ब का रोमांचक अनुभव रहा था, जिसको मे आगे अन्य लेख मे बताऊगा। हम छ लोगो मे भगवानदास जी, मनमोहन, मनोज, योगेश, भाटिया जी और मै थे। सितम्बर मे बारिश कम हो जाती है इसलिए यही सोचा की मौसम अच्छा मिलेगा। हम लोगो ने शुक्रवार की रात को निकलने का कार्यक्रम बनाया जिससे कि रविवार की रात तक वापिस आ सके। हम लोगो को हमेशा रात का सफ़र ही अच्छा लगता है सुनसान सड़क पर गाडी मे बैठकर गाने सुनना और एन्जॉय करने का आनंद ही अलग होता है। हमारे कार्यक्रम हमेशा ही १-२ दिन पहले ही बनते है इसलिए जल्दी से मैंने अपने बॉस को अपना कार्यक्रम बताया और इजाजत ली। छ लोग होने की वजह से हमने टवेरा बुक कर दी और रात को १० बजे तक निकलने का कार्यक्रम निश्चित कर लिया, वैसे भी गाड़ी सबसे आखिरी मे सबको लेकर मेरे पास आनी थी। रास्ते के लिए सारा सामान खरीदने की जिम्मेदारी भाटिया जी के पास थी।
शुक्रवार को गाड़ी अपने नियत समय पर मेरे पास आ गयी, सभी लोग पहले से ही गाड़ी मे थे और मेरा सामान भी तैयार था तो बिना देर किये मै भी गाड़ी मे बैठ गया और ड्राईवर को हरी झंडी दे दी। अब हम सबने अपने आपको ड्राईवर के हवाले कर दिया था, रास्ते की चिंता उसको करनी थी, वैसे भी हमको सुबह ५ – ६ बजे तक ही पहुचना था। गाड़ी मे बैठने के बाद हमने कार्यक्रम शुरू किया। दिल्ली के बॉर्डर पहुचने तक सभी नियंत्रण मे रहते है लेकिन उसके बाद सब अपनी मर्जी के मालिक होते है। मोदीनगर पहुचने तक बारिश शुरू हो गयी थी इसलिय गाड़ी की गति थोड़ी कम ही थी। रात को लगभग १ से २ के बीच हमने किसी ढाबे पर खाना खाया और यात्रा वापिस शुरू कर दी वैसे तो मसूरी जाने के लिए दिल्ली – मोदीनगर – मेरठ – मुज़फ्फरनगर – रुड़की – छुटमलपुर – देहरादून – मसूरी वाला रास्ता ही उचित है लेकिन हमारे ड्राईवर के ज्यादा ज्ञानी होने की वजह से हमने ये रास्ता नहीं लिया। उन भाईसाहेब ने पता नहीं क्यों देवबंद – सहारनपुर वाला रास्ता ले लिया और पूरी रात हमारी कमर की जो हालत हुई बता नहीं सकते। रास्ता इतना ज्यादा ख़राब था की गाडी २० – ३० की गति से ज्यादा नहीं चलाई जा सकती थी और ऊपर से सुनसान रास्ता, निकलते थे तो सिर्फ ट्रक। बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही थी और रास्ता खत्म नहीं हो रहा था, दिन निकल गया पर हम यह नहीं समझ पा रहे थे कि हम है कहा। मन ही मन ड्राईवर को इतनी गालिया दे चुके थे जितनी आती थी लेकिन अब क्या कर सकते थे। गलती सभी की थी नींद की वजह से किसी ने ध्यान नहीं दिया कि ड्राईवर ने गाड़ी गलत रास्ते डाल दी है वो तो जब सड़क के गड्ढो ने उछालना शुरू किया तब पता लगा कि गलत रास्ते आ गए है।
भगवान् का नाम लेते लेते लगभग ९ बजे हमने देहरादून मे प्रवेश किया, उस समय बारिश काफी तेज थी और सारी सड़को पर पानी भरा हुआ था, लगातार बारिश देखकर हमारी चिंता बढ़ रही थी क्योकि पहाड़ो पर बारिश के मौसम मे जाना बहुत खतरनाक है, हमारे हाथ मे कुछ भी नहीं था इसलिए गाड़ी को मसूरी के रास्ते पर डाल दिया और लगभग साढ़े दस बजे हम पहले से ही बुक गेस्ट हाउस पर पहुच गए। हम इतना ज्यादा थक चुके थे कि अब बैठने की बिलकुल हिम्मत नहीं थी, पहले हमारा कार्यक्रम शनिवार को सुबह ६ बजे तक पहुचकर ४ से ५ घंटे सोने का था और फिर दिन मे लोकल घुमने का था, उसके बाद रविवार को धनौल्टी जाकर वहा से वापिस दिल्ली निकलने का था लेकिन रास्ते और लगातार बारिश ने सब कुछ ख़राब कर दिया था। हमने जल्दी से बिस्तर पर कब्ज़ा किया और कब हमें नींद आ गयी पता ही नहीं चला। खाने पीने का होश हमें नहीं था। शाम को ४ बजे के आस पास हम उठे, तब तक बारिश भी रूक गयी थी, हमें गेस्ट हाउस के कर्ता धर्ता को चाय के लिए बोला और तैयार होने लगे जिससे की कुछ देर बाहर घूम कर आ सके। चाय पीने के बाद कुछ फोटो गेस्ट हाउस की बालकनी मे भी खिचवाये। उस गेस्ट हाउस मे ४ कमरे थे लेकिन कोई और वहा नहीं टहरा हुआ था इसलिए हमें पूरी आजादी थी, वैसे भी ऐसे मौसम मे कौन आएगा। शाम के खाने के लिए हमने केयर टेकर से पुछा तो वो बोला, ” सर सब्जी, रोटी, चावल का इन्तेजाम तो है लेकिन अगर कुछ मासाहारी चाहिए या कुछ और अलग चाहिए तो आप बाजार जा ही रहे है अपने हिसाब से ले लीजियेगा, मै पका दूगा।” मै और मनोज तो शाकाहारी है लेकिन बाकी चार कहा मानने वाले थे। कुछ फोटो खीचने के बाद हम गेस्ट हाउस से बाहर आ गए, वैसे भी ५ से ज्यादा हो रहे थे और पहाड़ो पर दिन जल्दी खत्म हो जाता है। वहा लोग कहते भी है कि सूर्य अस्त पहाड़ी मस्त।
हमारा गेस्ट हाउस मॉल रोड से थोड़ा सा ही पहले था इसलिए हमने पैदल ही जाने का निश्चय किया। वैसे हर हिल स्टेशन पर मॉल रोड होती है जहा पर घूमना शादी से पहले बड़ा अच्छा लगता था लेकिन अब तो ये से समय काटने का एक माध्यम ही है, ज्यादातर सामान वहा पर महंगा ही होता है इसलिए कोई छोटा मोटा सामान ही हम वहा से खरीदते है। मॉल रोड पर घूमते हुए १-२ जगहों पर कुछ फोटो भी खिचवाये और आखिर मे रात के कार्यक्रम के लिए सामान ख़रीदा और वापिसी की राह पकड़ ली वैसे भी दिन छिपने लगा था।
वापिस आकर रात के खाने से सम्बंधित सामान हमने रसोइये को दे दिया साथ ही भाटिया जी ने भी बोल दिया की मसाले वो सब्जियों मे अपने हिसाब से डालेगे। वहा ऐसी कोई दिक्कत नहीं थी। मौसम ठंडा हो चुका था और बालकनी मे खड़े होने पर हवाए बर्फीली लग रही थी लेकिन जो ताजगी उन हवाओ से मिल रही थी वो दिल्ली मे नसीब नहीं हो सकती। कुछ देर हम बाहर ही खड़े रहे और नजारों के कुछ फोटो भी लिए फिर अन्दर कमरों मे आ गए। मनोज को ठण्ड कुछ ज्यादा ही लग रही थी इसलिए उसने कम्बल अपने चारो तरफ लपेट रखा था। थोड़ी देर बाद ही रात के कार्यक्रम की तय्यारी पूरी हो गयी और सामान मेज पर सजने लगा, कमरों के बहार एक लॉबी भी थी जो कंबाइंड थी लेकिन कोई और वहा नहीं था इसलिए कितना ही शोर शराबा करो किसीको दिक्कत नहीं होनी थी। हम लोग अपने अपने कम्बल लेकर वही बैठ गए और कार्यक्रम शुरू। ऑफिस की समस्याए, भविष्य की योजनाये, पुरानी यादे आदि आदि पर अगले तीन घंटे हमने खूब विचार किया। वाकई मे वो समय ऐसा होता है की जब सभी अपनी समस्याए, अपने यादगार पल साझा करते है। हमने पूरा समय लिया क्योकि रसोई हमारे नियंत्रण मे ही थी इसलिए हमें कोई जल्दी नहीं थी, हमारे मनमोहन भी पूरे जोश मे थे इसलिए थोड़ी देर बालकनी मे नृत्य कार्यक्रम ही हुआ जिसमे मनमोहन, योगेश और भाटिया जी ने सक्रिय रूप से भाग लिया। लगभग १२ बजे हमने खाना शुरू किया और फिर सोने चले गए।
अगले दिन का कार्यक्रम मौसम पर निर्भर था, वैसे तो दोपहर से बारिश नहीं हुई थी लेकिन पहाड़ो का मौसम कोई नहीं समझ सकता। सुबह मेरी लगभग ५ बजे के आसपास आँख खुली, उस समय बारिश हो रही थी, मैंने समय देखा, बाथरूम गया और वापिस आकर फिर से सो गया। लगभग ८ बजे मे उठा, भगवान् दास जी थी उठ चुके थे उस वक़्त भी लगातार बारिश हो रही थी, तब तक बाकी सभी लोग भी उठ चुके थे लेकिन बारिश की वजह से कमरे और लॉबी मे ही टहल रहे थे। मौसम देखकर लग नहीं रहा था की बारिश रुकेगी इसलिए हमने सोचा कि ऐसे मे आगे धनौल्टी जाना खतरनाक हो सकता है और यहाँ भी ज्यादा देर रुकना अब उचित नहीं इसलिए नहा धो कर वापिस चलना चाहिए। गेस्ट हाउस के रसोइये से हमने नाश्ते मे आलू के परांठे और आमलेट बनाने के लिए कहा और नहाने और सामान पैकिंग की तेयारी शुरू कर दी। १० बजे तक हम तैयार होकर नाश्ते की मेज पर थे, आलू के परांठो मे मजा आ गया, बाहर जाकर घर जैसा खाना मिल जाए तो सोने पर सुहागा वाली बात हो जाती है। खाना खाकर हमने कमरों और खाने पीने का हिसाब किया और २०० रूपये इनाम के देकर वापिसी के लिए गाडी मे बैठ गए।
बारिश लगातार हो रही थी कभी तेज हो जाती थी तो कभी धीमी, हमने भी ड्राईवर को गाड़ी रफ़्तार धीमी रखने और बहुत ध्यान से गाड़ी चलाने की सलाह दी साथी ही सामने के साथ साथ ऊपर भी निगाह रखने को कहा क्योकि बारिश मे पहाड़ो का खिसकना आम बात है। हमारे पास समय काफी था इसलिए हमने सहस्रधारा जाने का भी निश्चय किया, सहस्रधारा देहरादून का प्रसिद्द वाटर फॉल है और मसूरी से लगभग ३० किलोमीटर दूर है। रास्ते मे कई जगह पहाड़ खिसके हुए थे लेकिन गनीमत था कि कोई रास्ता बंद नहीं हुआ था।
बारिश की वजह से रास्ते मे छोटे छोटे झरने बन गए थे जो कि पहाड़ो पर आम बात है, कई जगह रास्ते मे लोग गाड़ी से उतरकर वहा पर नहा रहे थे और उछल कूद मचा रहे थे जिसको देखकर हमारे मनमोहन का मन भी मचल गया और जैसे ही आगे एक और झरना आया जहा पर कोई था भी नहीं हमने गाड़ी रुकवा दी, मनमोहन को देखकर मनोज और योगेश मे भी जोश आ गया और उन्होंने ने भी वह नहाने का निश्चय कर लिया, उसके बाद उन लोगो ने वहा जम कर मस्ती की वो कपड़े पहने पहने ही पानी मे घुस गए, उन्होंने हमें खीचने की भी कोशिश की लेकिन हमने दूर रहना ही ठीक समझा। कुछ देर मस्ती करने के बाद वो लोग बाहर आ गए और सामने ही एक दुकान पर कपड़े बदले, वही पर चाय पी और फिर आगे के लिए चल दिए।
रास्ते मे गाड़ी रोककर उतरने का कोई भी मौका हम छोड़ नहीं रहे थे सब जगह सिर्फ पानी ही पानी दिख रहा था। सहस्रधारा पहुचने पर देखा कि वह बिलकुल ही सुनसान है सिर्फ एक दो दुकाने खुली हुई थी और पर्यटक तो कोई भी नहीं था, जो एक दो दुकाने खुली हुई थी वो लोग भी हमें आश्चर्य से देख रहे थे कि ऐसे मौसम में ये कौन घर से खाली लोग आ गए, बारिश हो रही थी लेकिन अब हम पहले ही काफी भीग चुके थे इसलिए उसकी चिंता नहीं थी, हम दुकानों के पीछे वाले रास्ते से जैसे ही झरने के पास पहुचे, झरने तक तो खैर गए ही नहीं लेकिन पानी का वो विकराल रूप देखकर एक बार तो हम सिहर गए क्योकि ऐसा नजारा हमने अपनी याद मे तो नहीं देखा था। वहा पर किनारे किनारे चलते हुए भी डर लग रहा था, हम वहा पर कुछ देर रहे, फोटो खिचे और विडियो फिल्म बनायीं। पानी का बहाव इतना तेज था कि अगर आप अपना एक हाथ भी अन्दर डालो तो लगता था की बहाव आपको खीच कर ले जाएगा। हम आधा घंटा वहा रहे फिर वहा से चलने का भी निश्चय किया गया। कपड़े काफी गीले हो गए थे लेकिन अब परवाह किसे थी, ऐसे ही गाड़ी मे बैठे और ड्राईवर को आगे बढ़ाने का इशारा कर दिया, अब हमें सीधे दिल्ली ही जाना था लेकिन इस बार हमने हरिद्वार होते हुए दिल्ली जाने का निश्चय किया।
हरिद्वार के रास्ते मे भी हर जगह हमें सिर्फ पानी ही पानी दिख रहा था, आस पास के सारे खेत पानी मे डूबे हुए थे। वाकई मे पानी का ऐसा विकराल रूप हम पहली बार ही देख रहे थे। सड़को की हालत भी ख़राब हो गयी थी जो की पानी की वजह से टूट गयी थी। हरिद्वार पहुचने पर हमने गाड़ी एक तरफ लगायी और पानी का रोद्र रूप देखने के लिए पुल पर खड़े हो गए, पहले से काफी लोग वहा पर थे जो कि आसपास की जगह से वहा आये हुए थे। पानी की तरफ देखने मात्र से ही एक सिहरन शरीर मे दौड़ रही थी। हमने वहा पर कुछ फोटो खीचे और विडियो फिल्म बनाई। वहा पर लोगो से बात की तो पता लगा की पहाड़ो पर तो स्थिती और भी ख़राब हो गयी है और ज्यादातर रास्ते बंद हो गए है। हमने अपने मित्र को फ़ोन लगाया जो नैनीताल मे है तो उसने भी यही कहा की आप लोग ज्यादा देर मत करो क्योकि स्थिती वाकई मे बहुत ज्यादा ख़राब है, पानी की वजह से कई जगह सड़के बह गयी थी इसलिए वो रास्ते ही बंद हो गए थे कही ऐसा न हो की हम हरिद्वार मे ही फस जाए, ये सुनकर हमने बिना देर किये वहा से निकलने का निश्चय किया और खाने का विचार भी त्याग दिया। सोच लिया था की अब खाना पुरकाजी या मुज़फ्फरनगर पहुचकर ही खायेगे।
हरिद्वार से रूड़की के रास्ते मे पता नहीं कितनी बार हमारा रूट बदला गया, रास्तो का तो पता ही नहीं चल रहा था। लोगो के आगे पीछे चलते हुए और लोगो से पूछते हुए ही हम आगे बढ़ रहे थे। किसी तरह रूड़की पहुचे तो फिर से हमें नए रास्ते पर डाल दिया गया, उस रास्ते पर आगे गए तो फिर से गयी भैस पानी मे। आगे फिर सड़क पर पानी ही पानी दिख रहा था और बहुत सारी गाड़िया किनारे पर खड़ी हुई थी, हमने भी गाड़ी रुकवाई और पैदल ही वहा पहुचे, आगे का नजारा भी डराने वाला था। सड़क का एक हिस्सा टूट चूका था जो की बस की वजह से टूटा था और पूरी सड़क पर पानी था, वाहन ले जाते हुए लोग इसलिए डर रहे थे कि उसके वजन से सड़क धस न जाए। हमारी भी हालत ख़राब क्योकि पीछे भी रास्ता बंद और यहाँ भी कभी भी हो सकता था। उसके बाद १-२ गाड़ी वालो ने आगे निकलने का मन बना ही लिया क्योकि वहा रुकने से कोई फायदा नहीं था, अगर एक बार सड़क टूट जाती तो फिर हम कही भी नहीं जा सकते थे, उन लोगो ने पहले गाड़ी से उतरकर पैदल ही रास्ता पार किया ताकि गाड़ी का वजन कम रहे उसके बाद ड्राईवर ने अकेले गाड़ी धीरे धीरे बाहर निकाल ली, उन्हें देखकर हमने भी ऐसा ही किया और फिर से यात्रा शुरू कर दी। उसके बाद हमें इतनी दिक्कत नहीं हुई और लगभग ५ बजे हम पुरकाजी पार कर चुके थे। फिर हम कुछ खाने के लिए एक ढाबे पर रुके, वहा पर भी काफी लोग थे जो पीछे से आये थे और कुछ को हरिद्वार ही जाना था लेकिन रास्ता बंद होने की वजह से वो वही फस गए थे। एक व्यक्ति से हम मिले जिसकी पत्नी और बच्चे हरिद्वार से आ रहे थे लेकिन रास्ते मे कही फसे हुए थे और वो भी आगे नहीं जा पा रहा था, वो काफी चिंतित था। उस वक़्त हमें लगा कि अगर हम मसूरी से सुबह न निकलते या कही और रूककर और थोडा समय ख़राब कर देते तो शायद हम भी पीछे ही कही फंसे होते।
छ बजे के आसपास हम खतौली पहुच गए थे लेकिन उस समय बायपास वाला हाईवे तैयार नहीं हुआ था इसलिए हमने जल्दी के चक्कर मे गंग नहर वाला रास्ता ले लिया। ये रास्ता नहर के साथ साथ ही चलता है और मुरादनगर जाकर निकलता है, ज्यादा चोडा रास्ता नहीं है लेकिन यहाँ बस, ट्रक आदि नहीं चलते इसलिए भीड़ नहीं रहती, वैसे तो दिन छिपने के बाद इस रास्ते पर जाना बहुत खतरनाक है क्योकि वहा अगर कही फस गए तो निकल नहीं सकते, दिन छिपने के बाद ये बिलकुल सुनसान हो जाता है। हमने जल्दी की चक्कर मे ये रिस्क भी ले लिया लेकिन वो भी हमारी गलती थी क्योकि वहा का रास्ता भी बहुत ख़राब हो चुका था, कई जगह से सड़क टूट गयी और किनारे से धसने लगी थी। दो या तीन जगह पर हमने गाड़ी से उतरकर पैदल रास्ता पार किया कि कही वजन से सड़क और न धस जाए। भगवान् का नाम लेते लेते आखिर हमने वो रास्ता भी पार कर लिया, उसके बाद कोई दिक्कत नहीं हुई। साढ़े आठ बजे के करीब मै अपने घर पर था क्योकि सबसे पहले मेरा घर ही पड़ता है। मैंने एक चैन की सांस घर पर पहुचते ही ली और टीवी से चिपक गया।
अगले दिन तक स्थिती बहुत बिगड़ गयी थी, यहाँ तक की ऋषिकेश मे लगी शिव जी की प्रतिमा भी पानी के बहाव मे बह गयी थी। उस वक़्त कई वर्षो के रिकॉर्ड टूटे थे लेकिन इस साल वो सब रिकॉर्ड भी टूट गए। आज टीवी पर ये नज़ारे देख कर लगा की अपना अनुभव भी साझा करना चाहिए इसलिए आपके सामने प्रस्तुत किया है।