à¤à¤¸à¥‡ ही फिर से बैठे-बिठाठà¤à¤• और यातà¥à¤°à¤¾ का जनà¥à¤® हà¥à¤†à¥¤ इस बार हम तà¥à¤‚गनाथ की और निकल पड़े। जब à¤à¥€ ऑफिस मे काम कम हो या जरूरत से जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ हो पता नहीं तà¤à¥€ घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ी का कीड़ा कहाठसे काट लेता था। बात नवमà¥à¤¬à¤° 2010 की है इस बार किसी के पास à¤à¥€ वरà¥à¤• लोड नहीं था। वरà¥à¤• लोड होता तब à¤à¥€ हम लोग à¤à¤¡à¤œà¤¸à¥à¤Ÿ कर लेते कà¥à¤¯à¥‚à¤à¤•ि कंपनी ने “वरà¥à¤• फà¥à¤°à¥‰à¤® होम” की सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ à¤à¥€ दी हà¥à¤ˆ थी। यही सॊच कर हम चार लोगों ने वीकेंड टà¥à¤°à¤¿à¤ª को अंजाम देने की ठान ली। हम चारों à¤à¤• ही ऑफिस मे काम करते थे और काम-काज की वजह से रोज़ ही à¤à¤• दूसरे के समà¥à¤ªà¤°à¥à¤• मे बने रहते थे। ऊपर से हम लोग à¤à¤• ही टीम मे थे तो हम लोगों के आपसी संबंध à¤à¥€ अचà¥à¤›à¥‡ थे।
इस टà¥à¤°à¤¿à¤ª मे दो लोग वो थे जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने हमारी 2011 की लदà¥à¤¦à¤¾à¤– यातà¥à¤°à¤¾ मे à¤à¥€ जाना था पर आखरी समय मे धोखा दे दिया था। मैं तो ये मानता हूठकी इनकी किसà¥à¤®à¤¤ मे लदà¥à¤¦à¤¾à¤– देखना नहीं लिखा था। चलो छोड़ो।
इन दो धोकेबाजो का नाम गौरव और हà¥à¥›à¥‡à¤«à¤¾ है। ये दोनों हमारी कंपनी की इंदौर वाली शाखा मे काम करते थे। बाकि के दो लोग मैं और राहà¥à¤² नॉà¤à¤¡à¤¾ वाली शाखा मे थे। पà¥à¤²à¤¾à¤¨ के मà¥à¤¤à¤¾à¤¬à¤¿à¤• इंदौर निवासियों को 19-नवमà¥à¤¬à¤°-2010 को नॉà¤à¤¡à¤¾ पहà¥à¤à¤šà¤¨à¤¾ था। हमारी शिफà¥à¤Ÿ शाम के 05:30 बजे से सà¥à¤¬à¤¹ के 02:30 बजे खतà¥à¤® होती थी। ये दोनों 18 तारीख गà¥à¤°à¥à¤µà¤¾à¤° की रात की टà¥à¤°à¥‡à¤¨ पकड़ कर 19 तारीख शà¥à¤•à¥à¤°à¤µà¤¾à¤° सà¥à¤¬à¤¹ दिलà¥à¤²à¥€ पहà¥à¤à¤š चà¥à¤•े थे। जैसी की मैंने बताया था की कंपनी मे “वरà¥à¤• फà¥à¤°à¥‰à¤® होम” की सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ थी तो इन लोगों ने à¤à¤• à¤à¥€ छà¥à¤Ÿà¥à¤Ÿà¥€ नहीं ली थी। टà¥à¤°à¥‡à¤¨ से ही datacard के माधà¥à¤¯à¤® से ऑफिस का काम à¤à¥€ कर डाला और सकà¥à¤¶à¤² दिलà¥à¤²à¥€ à¤à¥€ पहà¥à¤à¤š गà¤à¥¤
हमारा पà¥à¤²à¤¾à¤¨ 19 से 21 नवमà¥à¤¬à¤° तक वापस आने का था। आज तारीख शà¥à¤•à¥à¤°à¤µà¤¾à¤° 19-नवमà¥à¤¬à¤°-2010 थी। हम लोग आज à¤à¥€ ऑफिस नहीं जाने वाले थे। दिन के 2 बजे हम चारों राहà¥à¤² की लाल रंग की huyandai i10 AT(Automatic Transmission) मे तà¥à¤‚गनाथ की और निकल पड़े। सबके पास दो जोड़ी कपड़े, à¤à¤• जैकेट और मैंने तो à¤à¤• पतला सा कंबल à¤à¥€ रख लिया था। नॉà¤à¤¡à¤¾ मे तो ठणà¥à¤¡ नहीं थी पर नवंबर के महीने मे तो पहाड़ो मे कड़ाके की ठणà¥à¤¡ पड़ जाती है। यही सॊच कर मैंने कंबल रख लिया था ना जाने किसको ज़रूरत पड़ जाà¤à¥¤
राहà¥à¤² ने गाड़ी दौड़ा दी। हम लोग नॉà¤à¤¡à¤¾ – इनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤°à¤® – मोहन नगर – राजनगर à¤à¤•à¥à¤¸à¤Ÿà¥‡à¤‚शन होते हà¥à¤ मेरठहाईवे पर जा पहà¥à¤à¤šà¥‡à¥¤ इस समय सड़क पर टà¥à¤°à¥ˆà¤«à¤¿à¤• था। दोपहर 2-3 बजे सà¥à¤•ूल के बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ की छà¥à¤Ÿà¥à¤Ÿà¥€ होती है इस वजह से हर जगह पर सà¥à¤•ूल बस, ऑटो, रिकà¥à¤¶à¤¾, सड़क पार करते सà¥à¤•ूल के बचà¥à¤šà¥‡ जाम का कारण बन रहे थे। हमे à¤à¥€ कोई जलà¥à¤¦à¥€ नहीं थी। वरà¥à¤· 2010 मे मेरठऔर मà¥à¥›à¤«à¥à¤«à¤°à¤¨à¤—र बाईपास का कारà¥à¤¯ पूरी तरह समापà¥à¤¤ नहीं हà¥à¤† था इस वजह से à¤à¥€ हमारी गती धीमी हो जाती थी। ऊपर से उतà¥à¤¤à¤°à¤ªà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ या कह लो उलà¥à¤Ÿà¤¾à¤ªà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶, यहाठपर कोई à¤à¥€ अपनी मरà¥à¥›à¥€ से रॉंग साइड ही डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µ करने लगते है। à¤à¤¸à¥‡ महान आतà¥à¤®à¤¾à¤“ं से à¤à¥€ बच कर चलना पड़ता है। मेरठबाईपास से पहले राहà¥à¤² से गाड़ी रोक दी। उसने बोला कà¥à¤› चिपà¥à¤¸, बिसà¥à¤•à¥à¤Ÿ, पानी ले लेते हैं। तà¤à¥€ उसे सड़क पार बियर शॉप नज़र आई और उसका मन मचल गया। बियर खरीदी और उसने डà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤µà¤° सीट छोड़ दी। अब गाड़ी हà¥à¥›à¥‡à¤«à¤¾ चलाने लगा। हà¥à¥›à¥‡à¤«à¤¾ का डà¥à¤°à¤¿à¤‚कà¥à¤¸ लेने का मूड नहीं था। अचà¥à¤›à¤¾ ही हà¥à¤†à¥¤ बाकि हम तीनों टेंशन फà¥à¤°à¥€ होकर à¤à¤¨à¥à¤œà¥‰à¤¯ करने लगे। हम मेरठबाईपास पर थे शाम के 5 बज चà¥à¤•े थे। सबने अपने लैपटॉप ऑन किये और datacard के माधà¥à¤¯à¤® से ऑफिस नेटवरà¥à¤• पर कनेकà¥à¤Ÿ हो गà¤à¥¤ मà¥à¥›à¤«à¥à¤«à¤°à¤¨à¤—र बाईपास पर दौड़ते हà¥à¤ हम लोग चीतल (Cheetal) पर रà¥à¤• नहीं पाठवो हमारी दाà¤à¤ ओर था और आगे से U-Turn मार कर वापस जाने के मूड मे हम लोग नहीं थे। हà¥à¥›à¥‡à¤«à¤¾ गाड़ी ताबड़-तोड़ चला रहा था। करीब रात 8 बजे हम लोग हरीदà¥à¤µà¤¾à¤° पहà¥à¤à¤š गठथे।
बिना समय नषà¥à¤Ÿ किये हम लोग यहाठसे आगे निकल लिà¤à¥¤ कà¥à¤¯à¥‚à¤à¤•ि सबके अंदर तो तलब लगी हà¥à¤ˆ थी। और वैसे à¤à¥€ हम किसी तीरà¥à¤¥ यातà¥à¤°à¤¾ का सोच कर नहीं आये थे इसीलिठजलà¥à¤¦à¥€ ही रायवाला की ओर चल दिà¤à¥¤ रायवाला पहà¥à¤à¤š कर चैन की साà¤à¤¸ ली कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि अà¤à¥€ हमारी वाली दà¥à¤•ान खà¥à¤²à¥€ हà¥à¤ˆ थी। दà¥à¤•ान के आगे ही गाड़ी पारà¥à¤• कर दी। बà¥à¤²à¥‡à¤‚डर पà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤¡ (Blender Pride) का खंबा खरीद लिया गया और उसके साथ जम कर à¤à¥‹à¤œà¤¨ à¤à¥€ किया। à¤à¤¾à¤ˆ लोगों सà¥à¤¬à¤¹ के नाशà¥à¤¤à¥‡ के बाद अब जाकर खाने का मौका मिला था। यही से गाड़ी का पेटà¥à¤°à¥‹à¤² टैंक à¤à¥€ फà¥à¤² करवा लिया था।
अब हम आगे ऋषिकेश के लिठनिकल पड़े। 15-20 मिनट बाद हम ऋषिकेश की चेक पोसà¥à¤Ÿ पर जा पहà¥à¤à¤šà¥‡à¥¤ यहाठपर गाड़ियों की कतार लगी हà¥à¤ˆ थी। रात को इस चेक पोसà¥à¤Ÿ से गाड़ी आगे नहीं जाने देते। सिरà¥à¤« लोकल गाड़ी ही आगे जाती हैं या फिर किसी के पास लिखित रूप से पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ पतà¥à¤° हो तो सिरà¥à¤« वो ही जा सकता है। हम लोग à¤à¥€ कतार मे गाड़ी लगा कर अगली सà¥à¤¬à¤¹ 04:30 बजे का इंतज़ार करने लगे।
hello anup ji…nice to read your travel story towards chopta tungnath…these the are the place where we can see the magic,and beauty of nature..in November month you will encounter some snow at tungnath and chandrashila..i recently visit tungnath in the month of April there were plethora of snow around tungnath..but the beauty of that place including chopta can not be expressed in word..try to go that place in the month of march when that place looks like red colour heaven because of cocktail of snow and buransh floure(Rhododendron) every where…..waiting for the rest part of story…thanks
अनूप जी, शुरुआत तो अच्छी हुई है उम्मीद है यात्रा भी लद्दाख की तरह अच्छी रही होगी और हम लोगो को भी मजा आएगा।
अंगूर की बेटी तो दिल्ली से खरीद कर चलते क्योकि U.P. और उत्तरांचल मे तो काफी महंगी है। जानकार अच्छा लगा कि आपकी कंपनी इतनी सुविधा देती है।
पोस्ट कुछ ज्यादा ही छोटा लगा लेकिन उम्मीद है कि अगली बार कसर पूरी हो जायेगी।
By the time, we were ready to begin the hilly-experience, episode got over. :-) Never mix drink and drive, so glad to read that Hujefa was behind wheels. On to next one.