à¤à¤¾à¤°à¤¤ à¤à¥‚मि के हृदय सà¥à¤¥à¤² में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ राजपूताना यूठतो दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ à¤à¤° में अपने राजपूत राजायों की शौरà¥à¤¯-गाथायों और किलों के कारण पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ रहा है, लेकिन बदलते वकà¥à¤¤ के साथ जब आवागमन के साधन सà¥à¤²à¤ होने लगें हैं और पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• परिवार के कैलेनà¥à¤¡à¤° में छà¥à¤Ÿà¥à¤Ÿà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में कहीं घूमने जाने का अरà¥à¤¥ केवल अपने दादा-दादी और नाना-नानी के शहर और गाà¤à¤µ जाना ही नही रह गया है तो à¤à¤¸à¥‡ में जà¥à¤—नà¥à¤“ं और पतà¥à¤¥à¤°à¥‹à¤‚ का यह रेतीला पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ उनकी पà¥à¤°à¤¾à¤¥à¤®à¤¿à¤•ता सूची में अपना सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ कहीं ऊपर बना गया है | कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°à¤«à¤² के नज़रिये से सबसे बड़ा और कà¤à¥€ राजपूत, जाट, अहीर, à¤à¥€à¤², मीणा और अनà¥à¤¯ जातियों दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ समय-समय पर शाषित ये राजà¥à¤¯, आज अपने à¤à¤µà¥à¤¯ महलों, दà¥à¤°à¥à¤—म किलों, विशाल हवेलियों, अदà¤à¥à¤¤ बाड़ियों, रेत के विशाल समà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° और रंग बिरंगे परिधानों के कारण लमà¥à¤¬à¥‡ समय से देशी-विदेशी परà¥à¤¯à¤Ÿà¤•ों के आकरà¥à¤·à¤£ का मà¥à¤–à¥à¤¯ केंदà¥à¤° रहा है | à¤à¤¸à¥‡ में यदि आप राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ की धरती पर पाà¤à¤µ रखते हैं तो घनी लमà¥à¤¬à¥€ मूंछों वाले, सर पर रंग बिरंगी पगड़ी सजाये हà¥à¤, कà¥à¤› अलग से पà¥à¤°à¤•ार में धोती और कà¥à¤°à¥à¤¤à¤¾ में सजे मरà¥à¤¦ तथा शीशे और गोटà¥à¤Ÿà¥‡ के कसीदाकारी वाले लहंगा चोली और कोहनी से ऊपर तक कंगन पहनी औरतें बरबस ही आपका धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ अपनी तरफ खींच लेते हैं | चà¥à¤¨à¤°à¥€ राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€ औरतों का à¤à¤• और मà¥à¤–à¥à¤¯ परिधान है और जितनी नाना रंगो से परिपूरà¥à¤£ चà¥à¤¨à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤ या आप उसे औदà¥à¤¨à¥€ à¤à¥€ कह सकते है, आप धरती के इस à¤à¤¾à¤— में पा सकते हैं शायद उतने विविधता पूरà¥à¤£ रंगों का à¤à¤¸à¤¾ अदà¤à¥à¤¤ संयोजन तो पूरे à¤à¤¾à¤°à¤¤ वरà¥à¤· के रंगरेज़ मिलकर à¤à¥€ नही बना पाते होंगे | à¤à¤¸à¤¾ लगता है अपनी à¤à¥Œà¤—ोलिक परीसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¥€à¤¯à¥‹à¤‚ के कारण रेत के धूसर रंग में नहाया ये पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ अपनी à¤à¤•रसता के साथ ही अपनी नीरव और निरà¥à¤œà¥€à¤µ पà¥à¤°à¤•ृति के अà¤à¤¿à¤¶à¤¾à¤ª को अपने चटीले रंगो से à¤à¤° लेना चाहता है | यदि जयपà¥à¤° अपने गà¥à¤²à¤¾à¤¬à¥€ रंग के लिये जाना जाता है तो जोधपà¥à¤° नीले ! ये हलà¥à¤•े मगर चटकीले रंग सूरज की किरणों को परिवरà¥à¤¤à¤¿à¤¤ जो कर देते हैं, और काफी हद तक गरमी के पà¥à¤°à¤•ोप से बच जाते हैं ! à¤à¤¸à¥‡ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° अपनी दà¥à¤°à¥à¤¦à¤¶à¤¾ पर आंसू नही बहाते कि कà¥à¤¯à¥‚ठकà¥à¤¦à¤°à¤¤ ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ उन नियामतों से महरूम रखा है जो दूसरे पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶à¥‹à¤‚ के लोगों को सहज ही उपलबà¥à¤¦ हैं अपितॠये तो अपनी रेत को à¤à¥€ मानव-निरà¥à¤®à¤¿à¤¤ रंगों से सरोबार कर देने का जजà¥à¤¬à¤¾ रखते है | शायद विकट परीसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¥€à¤¯à¤¾à¤‚ ही मनà¥à¤·à¥à¤¯ को कà¥à¤› मौलिक करने की पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ देती हैं और निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ रूप से राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ आपकी अपेकà¥à¤·à¤¾à¤¯à¥‹à¤‚ पर सौ फीसदी खरा उतरता है | यहाà¤-यहाठपà¥à¤°à¤•ृति मनà¥à¤·à¥à¤¯ को कदम दर कदम परीकà¥à¤·à¤¾à¤“ं में उलà¤à¤¾à¤¤à¥€ है, जीवन वà¥à¤¯à¤¤à¥€à¤¤ करने के सà¤à¥€ साधन दà¥à¤°à¥à¤—म बना देती हैं तो à¤à¤¸à¥‡ में यदि कोई पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ और और उसके वाशिंदे जीवट वालें हैं तो वो उन दà¥à¤°à¥à¤—म परीसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¥€à¤¯à¥‹à¤‚ से ना घबराते हैं और ना उनसे लड़ने की चेषà¥à¤Ÿà¤¾ करते हैं अपितॠà¤à¤¸à¥€ दà¥à¤°à¥‚ह परीसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को ही अपना सहचर बना उनके साथ अपना सामंजसà¥à¤¯ सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ कर लेते है | देशी विदेशी परà¥à¤¯à¤Ÿà¤•ों के लिये ये à¤à¥€ राहत की बात है कि यह पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ चरितà¥à¤° में à¤à¥€ सदà¥à¤§à¤¾à¤µà¥€ है, परमà¥à¤ªà¤°à¤¾à¤¯à¥‹à¤‚ से जà¥à¤¡à¤¼à¤¾ हà¥à¤† है और इसका à¤à¤¹à¤¸à¤¾à¤¸ जलà¥à¤¦ ही आपको सà¥à¤µà¤¯à¤® à¤à¥€ हो जाता है |
à¤à¤¸à¥‡ में जब हमे मूल रूप से गà¥à¤¡à¤¼à¤—ांव के ही रहने वाले सोमेश ने (जो फिलहाल जयपà¥à¤° के ANG Bank में है }, कि आनन-फानन में ही तà¥à¤¯à¤¾à¤—ी जी के साथ जयपà¥à¤° का पà¥à¤°à¥‹à¤—à¥à¤°à¤¾à¤® बना लिया गया, कà¥à¤¯à¥‚ंकि दिलà¥à¤²à¥€-जयपà¥à¤° हाईवे इस समय अपने दà¥à¤°à¥à¤¦à¤¿à¤¨à¥‹ से गà¥à¤œà¤° रहा है, अत: अपनी कार से जाने का इरादा छोड़, सोमेश के ही सà¥à¤à¤¾à¤µà¤¾à¤¨à¥à¤¸à¤¾à¤° हमने जाने कि टिकटें डबल डेकर से और वापिसी की अज़मेर शताबà¥à¤¦à¥€ से बà¥à¤• à¤à¥€ करवा दी, वैसे à¤à¥€ जयपà¥à¤° जाने वाली बहà¥à¤¤ सी गाड़ियां गà¥à¤¡à¤—ाà¤à¤µ से ही होकर गà¥à¤œà¤°à¤¤à¥€ हैं | सोमेश अपने बैंक में आडिट के कारण हमारा साथ नही दे पायेगा पर वो वहाठहमे अपनी कार दे देगा घूमने के लिà¤, ये à¤à¥€ पूरà¥à¤µ निरà¥à¤§à¤¾à¤°à¤¿à¤¤ था, इस वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ को देखते हà¥à¤ हमने अजमेर और पà¥à¤·à¥à¤•र को à¤à¥€ अपने गंतवà¥à¤¯ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ की फेरहिसà¥à¤¤ में जोड़ लिया | चूंकि सोमेश का परिवार जयपà¥à¤° में ना रहकर गà¥à¤¡à¤—ाà¤à¤µ में ही रहता है, अत: यही निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ हà¥à¤† कि बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ के लिठकà¥à¤› रेडिमेड सà¥à¤¨à¥ˆà¤•à¥à¤¸ रख लिठजाये और फिर सà¥à¤¬à¤¹ की à¤à¤• कप चाय के बाद हम यायावर, सोमेश को पीछे छोड़ अपने रासà¥à¤¤à¥‡ खà¥à¤¦ तलाशेंगे | रोमांचक है ना à¤à¤• नितांत अजनबी शहर में खà¥à¤¦ ही सब कà¥à¤› ! उस ढ़ूंढ़ने के पà¥à¤°à¤•à¥à¤°à¤® में ही आप à¤à¤¸à¤¾ बहà¥à¤¤ कà¥à¤› पा लेते हैं जो आपकी पूरà¥à¤µà¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤œà¤¿à¤¤ पà¥à¤°à¤¾à¤¥à¤®à¤¿à¤•ताओं में नही होता ! मसलन कैसा मिज़ाज़ है इस शहर का ? कैसी है इस शहर के आम वासी की बोली ? कैसा सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ है इस शहर के लोगों का ? कहीं रासà¥à¤¤à¤¾ पूछते-पूछते अचानक से आपको कोई ख़ौमचे वाला कà¥à¤› à¤à¤¸à¤¾ बेचता नजर आ जाता है जो à¤à¤•दम से आपके मन को à¤à¤¾ जाता है… कितना कà¥à¤› à¤à¤¸à¤¾ होता है जो आप सोचते नही, पा à¤à¤° लेते हैं, अकसà¥à¤®à¤¾à¤¤ ही से अपने अवचेतन में….
हरियाणा तो हरियाणा है खड़ी बोली का पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤, पर राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ की धरती पर पाà¤à¤µ धरते ही जो सबसे पहली सà¥à¤®à¤§à¥à¤° धà¥à¤µà¤¨à¤¿ आपके कानों में पड़ते ही, आपका धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ बरबस ही अपनी तरफ खींच लेती है वो है, “राम-राम सा†की | आते-जाते, मिलते-जà¥à¤²à¤¤à¥‡ हर जगह “राम-राम सा…â€, अचà¥à¤›à¤¾ लगता है सà¥à¤¨à¤•र ! हालाà¤à¤•ि ये à¤à¥€ सच है कि अब बाज़ार ने à¤à¥€ इस अà¤à¤¿à¤µà¤¾à¤¦à¤¨ को अपनी मारà¥à¤•ेटिंग के à¤à¤• औजार के रूप में अपना लिया है और जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾à¤¤à¤° उनके निचले सà¥à¤¤à¤° के करà¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¥€ ही इस का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— करते है, पर निसà¥à¤‚देह फिर à¤à¥€ इसे सà¥à¤¨à¤¨à¤¾ à¤à¤• अचà¥à¤›à¤¾ अनà¥à¤à¤µ है ! बोली का ही à¤à¤• और अनà¥à¤ªà¤® इसà¥à¤¤à¥‡à¤®à¤¾à¤² है यहाà¤, जैसे जिस जगह को हम फà¥à¤²à¤¾à¤ˆà¤“वर के नाम से जानते हैं, और हिंदी और इंगà¥à¤²à¤¿à¤¶ दोनों में ही अब तो ये शबà¥à¤¦ समानारà¥à¤¥à¥€ हो चà¥à¤•ा है, पर यहाठतो केवल उसके लिठà¤à¤• ही शबà¥à¤¦ ‘पà¥à¤²à¤¿à¤¯à¤¾â€™ है, और समाज का हर वरà¥à¤— केवल पà¥à¤²à¤¿à¤¯à¤¾ शबà¥à¤¦ का ही पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— करता है | तो कà¥à¤› à¤à¤¸à¤¾ है कि जयपà¥à¤° की सडकों पर पà¥à¤²à¤¿à¤¯à¤¾ बहà¥à¤¤ हैं और जब आप किसी से रासà¥à¤¤à¤¾ पूछते हैं तो अपने खास अंदाज़ में वो आपको बताता है कि आगे आप को à¤à¤• पà¥à¤²à¤¿à¤¯à¤¾ मिल जाà¤à¤—ी उस पà¥à¤²à¤¿à¤¯à¤¾ से चढ़कर फिर आगे à¤à¤• और पà¥à¤²à¤¿à¤¯à¤¾ आà¤à¤—ी उस पर नही चढ़ना, उलटे हाथ को ले लेना है फिर आगे से जो मोड़ आà¤à¤—ा उस तरफ मà¥à¤¡à¤¼ जाना है… हाà¤-हाठपà¥à¤²à¤¿à¤¯à¤¾ के नीचे से…! पà¥à¤²à¤¿à¤¯à¤¾ à¤à¤• और मजेदार ज़ायका है इस शहर का !
बात जब सड़क की हो रही है तो टà¥à¤°à¥‡à¤«à¥à¤«à¤¿à¤• और पà¥à¤²à¤¿à¤¸ की à¤à¥€ कर लें, यूठलगता है जैसे जयपà¥à¤° का सारा पà¥à¤²à¤¿à¤¸ अमला केवल परिवहन की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ के लिठही जिमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤° हो ! और à¤à¤¸à¥‡ में यदि आपकी गाडी की नमà¥à¤¬à¤°-पà¥à¤²à¥‡à¤Ÿ हरियाणा की है तो सावधान रहिये ! सीट-बेलà¥à¤Ÿ, मोबाइल पर बात करना, रेड लाइट पार कर जाना… à¤à¤²à¥‡ ही आपके आस-पास से राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ की अनेक गाड़ियाठनिकल जाà¤à¤ पर रोका केवल आपको ही जाà¤à¤—ा ! जयपà¥à¤° में à¤à¤¸à¥‡ बहà¥à¤¤ से खटà¥à¤Ÿà¥‡-मीठे अनà¥à¤à¤µ हà¥à¤ और कई बार तो ना चाहते हà¥à¤ कà¥à¤› समà¤à¥Œà¤¤à¥‡ à¤à¥€ करने पड़े, à¤à¤• तो पराया शहर, ऊपर से गाड़ी किसी और की… अपना शहर हो तो à¤à¥‡à¤² à¤à¥€ लें पर यहाअ समय की à¤à¥€ बंदिश है, परिवार à¤à¥€ साथ है, और इस कमज़ोर नस को हमारे à¤à¤¾à¤ˆ लोग à¤à¥€ बखूबी पहचानते हैं… à¤à¤• बार तो थक हार कर à¤à¤• हवलदार से तंज़ à¤à¥€ करना पड़ा, यूठतो कहते हो ‘पधारो मà¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ देस’ और जब कोई सचमà¥à¤š पधार ही जाये तो सारे मिलकर उसे लूटने में ही लग जाते हो…. बहरहाल ये बातें तो देश के हर हिसà¥à¤¸à¥‡ में हर किसी के साथ घटती ही रहती हैं, तो आइये अब आगे बढ़ते हैं…
चलिठà¤à¤¸à¤¾ करते हैं, ज़रा शà¥à¤°à¥‚ से शà¥à¤°à¥à¤†à¤¤ करते हैं, सोमेश à¤à¤• छोटे à¤à¤¾à¤ˆ के अलावा à¤à¤• बेहतरीन मेहमान नवाज़ à¤à¥€ निकला और साफ़ कह दिया कि बिना नाशà¥à¤¤à¥‡ के नही जाना, दो-दो à¤à¤¾à¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤ हैं मिलकर बना लेंगी बाकी दिन à¤à¤° आप जो मरà¥à¤œà¥€ खाते रहना और फिर उसने हमे à¤à¤• कागज़ पर घूमने की जगहों के अलावा उन सà¤à¥€ मशहूर जगहों और खान-पान के ठिकानों का पता à¤à¥€ दे दिया जो जयपà¥à¤° में अपनी विशिषà¥à¤Ÿà¤¤à¤¾ रखते हैं ! इनमे से सबसे बेहतरीन था ‘सà¥à¤Ÿà¥‡à¤šà¥‚ सरà¥à¤•ल’ पर रात को क़ाफ़ी पीते हà¥à¤¯à¥‡ ‘हैंग आउट’ करना, जिसे आप जयपà¥à¤° का मिनी इंडिया-गेट à¤à¥€ कह सकते हैं | सवाई जय सिंह का बà¥à¤¤ लगा यह चौक सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ तथा परà¥à¤¯à¤Ÿà¤•ों के लिये à¤à¤• पà¥à¤°à¤®à¥à¤– आकरà¥à¤·à¤£ का केंदà¥à¤° है |
जयपà¥à¤° की सà¥à¤¬à¤¹ होती है गणेश जी के साथ…. वैसे मेटà¥à¤°à¥‹ शहरों के मà¥à¤•ाबले ये शहर सोता जलà¥à¤¦à¥€ है और जागता देर से !, दिलà¥à¤²à¥€ वालों के मà¥à¤•ाबले थोड़ा शांत और आराम परसà¥à¤¤ शहर है ! खैर, जाने दीजीये, थोड़ा आगे बढ़ते हैं, तो पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• शहर का अपना à¤à¤• आराधà¥à¤¯ होता है, और जयपà¥à¤° के आराधà¥à¤¯ देवता है गणेश ! हर गली, नà¥à¤•à¥à¤•ड़ और चौराहे पर आपको गणेश जी के मनà¥à¤¦à¤¿à¤° मिल जायेंगे, ये शहर अपनी इमारतों के अलावा सोने-चाà¤à¤¦à¥€ और हीरे के वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤° के लिठà¤à¥€ अपना नाम रखता है, अत: à¤à¤¸à¥‡ में धन और समृधि से जà¥à¤¡à¤¼à¥‡ à¤à¤• देवता के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ आसकà¥à¤¤à¤¿ इस शहर के लोगों में होना कोई अकारण नही ! अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥€ में à¤à¤• कहावत है ना, “ When in Rome, do as Romans do.†तो इसे चरितारà¥à¤¥ करते हà¥à¤ हमने à¤à¥€ सबसे पहले गणेश जी से आशीरà¥à¤µà¤¾à¤¦ लिया और फिर निकल पड़े इस शहर को खोजने !
राजा जय सिंह दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ 1727 में निरà¥à¤®à¤¿à¤¤ ये शहर ‘गà¥à¤²à¤¾à¤¬à¥€ शहर’ के नाम से तब से जाना लगा जब 1876 में जयपà¥à¤° के तातà¥à¤•ालिक राजा राम सिंह ने वेलà¥à¤¸ के राजकà¥à¤®à¤¾à¤° के समà¥à¤®à¤¾à¤¨ में, कà¥à¤› अलग करने की चेषà¥à¤Ÿà¤¾ रखते हà¥à¤¯à¥‡, पूरे शहर के à¤à¤µà¤¨à¥‹à¤‚ को à¤à¤• ही रंग में रंगवा दिया | इस धरती का तो रंगो से कà¥à¤› à¤à¤¸à¤¾ मोह कि पूरा शहर ही इक रंग में घà¥à¤²à¤®à¤¿à¤² गया, कोई à¤à¤¸à¤¾ à¤à¥€ दौर था जब जयपà¥à¤° की हर इमारत ही गà¥à¤²à¤¾à¤¬à¥€ थी, पर आज निजी तो नही, हाठअधिकतर सरकारी à¤à¤µà¤¨ आपको गà¥à¤²à¤¾à¤¬à¥€ या यूठकहें टेरीकोटा के रंग में रंगे इसे गà¥à¤²à¤¾à¤¬à¥€ नगरी कहलाने का गौरव तो देते ही हैं | अब जयपà¥à¤° चूंकि à¤à¤• परà¥à¤¯à¤Ÿà¤• शहर है और ऊपर से राजधानी à¤à¥€ तो सà¥à¤µà¤¾à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤• है कि शहर का ज़लवा कà¥à¤› अलग होगा ही | बाज़ार, आपको सामान से लदे-फदे à¤à¥€ नज़र आयेंगे और रंग-बिरंगे à¤à¥€ ! आस-पास ही छितरे हà¥à¤ बाज़ार हैं, जिनमे से MI रोड तो अपने आà¤à¥‚षणों की दà¥à¤•ानों के लिये विखà¥à¤¯à¤¾à¤¤ है ही और आपकी जेब पर à¤à¥€ बहà¥à¤¤ à¤à¤¾à¤°à¥€ !, इसका अनà¥à¤à¤µ हमे कà¥à¤› देर में जाकर हà¥à¤¯à¤¾ ! ये औरतों को गहनों का इतना शौक कà¥à¤¯à¥‚ठहोता है??? जयपà¥à¤° की धरती पर पाà¤à¤µ धरते ही पहला ही à¤à¤Ÿà¤•ा वो à¤à¥€ इतना ज़ोर का ! अत: वहाठसे जौहरी बाज़ार में आते ही हमने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ उनके मनपसंद कामों में छोड़कर बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ और तà¥à¤¯à¤¾à¤—ी जी के साथ अलग राह ले ली |
ज़ौहरी बाज़ार, दिलà¥à¤²à¥€ के करोलबाग की तरह का ही जयपà¥à¤° का à¤à¤• मशहूर बाज़ार हैं, यहाठà¤à¥€ उसी तरह सडक पर दà¥à¤•ानों के आगे ही पारà¥à¤•िंग हो जाती है | ये बाज़ार सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ और परà¥à¤¯à¤Ÿà¤•ों दोनों में समान रूप से लोकपà¥à¤°à¤¿à¤¯ हैं, अत: कà¥à¤› कपड़ों और चादरों इतà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿ की खरीदारी तो अपेकà¥à¤·à¤¿à¤¤ थी ही, और à¤à¤• परिवार में होने के कारण आप इस से बच à¤à¥€ नही सकते ! अत: बेहतर यही होता है कि à¤à¤¸à¥‡ में चà¥à¤ªà¤šà¤¾à¤ª रहो और यदि देखा नही जाता तो à¤à¤•à¥à¤¸à¤ªà¤°à¥à¤Ÿ लोगों को उनके काम में छोड़ कर यहाà¤-वहाठà¤à¤Ÿà¤• लो, मगर जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ दूर à¤à¥€ ना निकल जाà¤à¤ कà¥à¤¯à¥‚ंकि बहà¥à¤¤ जलà¥à¤¦à¥€-जलà¥à¤¦à¥€ उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ आप की जरूरत पड़ती रहती है अपनी पसंद पर (ही) आपकी रजामंदी की मोहर लगवाने के लिठà¤à¥€ और जेब ढीली करने के लिये à¤à¥€ !
à¤à¤¸à¥‡ ही कà¥à¤› लमà¥à¤¹à¥‹à¤‚ का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— किया हमने जयपà¥à¤° की रौनक देखने के लिये… à¤à¤• विशà¥à¤µ-विखà¥à¤¯à¤¾à¤¤ परà¥à¤¯à¤Ÿà¤• सà¥à¤¥à¤² … इसलिठसà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤à¤ होना तो सà¥à¤µà¤¾à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤• ही है, सड़कें साफ़-सà¥à¤¥à¤°à¥€ और काफी चौड़ी हैं, जगह-जगह टà¥à¤°à¥‡à¤«à¥à¤«à¤¿à¤• लाइटà¥à¤¸ à¤à¥€ हैं, लेकिन à¤à¥€à¤¡à¤¼-à¤à¤¡à¤¼à¤•à¥à¤•ा à¤à¥€ कम नही | खाने-पीने के शोकीनों के लिठकाफी कà¥à¤› है, मगर अधिकतर शाकाहारी… और खोमचे वाले कई तरह के सà¥à¤µà¤¾à¤¦ आपको परोसते है, पर जयपà¥à¤° के लोग तीखा बहà¥à¤¤ खाते है, मसाले नही केवल लाल मिरà¥à¤š का उपयोग, वो à¤à¥€ बहà¥à¤¤ ही जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ ! à¤à¤¸à¤¾ कà¥à¤¯à¥‚à¤, सोमेश ने समà¤à¤¾à¤¯à¤¾, “जयपà¥à¤° में पानी कम à¤à¥€ है और ख़ारा à¤à¥€ अत: मिरà¥à¤š दोनों की कमी को पूरा करती है |†ज़ौहरी बाज़ार में ही आपको मिलता है ‘हवा महल’ जो तसà¥à¤µà¥€à¤°à¥‹à¤‚ में तो बेहतरीन दिखता है पर यूठà¤à¤•दम से बीच बाज़ार में होने के कारण, अपना वो आकरà¥à¤·à¤£ तथा महतà¥à¤µ खो बैठा है जिसका वो हक़दार है | अंदर आप जा नही सकते, बस सड़क किनारे से अपनी उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ की फोटो ही दरà¥à¤œà¤¼ करवा सकते हैं, à¤à¥€à¤¡à¤¼-à¤à¤¾à¤¡à¤¼ के समय तो शायद लोग इसकी तरफ देखना à¤à¥€ à¤à¥‚ल जाते होंगे, काश! ये किसी अनà¥à¤¯ खà¥à¤²à¥‡ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर होता, तो कà¥à¤› जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ होता ! जौहरी बाज़ार अपनी, दà¥à¤•ानों और हवा महल के अलावा जिस à¤à¤• और वजह से जाना जाता है वो है LMB यानी लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ मिषà¥à¤ ान à¤à¤£à¥à¤¡à¤¾à¤°, जिसे सोमेश के विशेष आगà¥à¤°à¤¹ पर हमने लंच के लिठरखा, महंगा तो निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ रूप से है, पर अपने ख़ाने की वजह से है बेहतरीन ! और फिर जब, बड़ी चौपड़ से लेकर, बापू बाज़ार और नेहरॠबाज़ार तक घूम लेते हैं तो सोमेश दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ ही बताई गयी ‘रावत मिषà¥à¤ ान à¤à¤£à¥à¤¡à¤¾à¤°â€™ पà¥à¤¯à¤¾à¤œà¤¼ वाली कचौड़ियो का सà¥à¤µà¤¾à¤¦ लेने के लिठà¤à¤• मज़ेदार सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ है |
ढेर सारी खरीदारी और पेट à¤à¤° कर खाने के बाद, बाज़ार से निकल कà¥à¤› दूर जाने का मन कर गया तो हम निकल पड़े टोंक की तरफ, यहाठहमे संगमरमर की मूरà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤ बनाने वाली à¤à¤• वरà¥à¤•शॉप मिली, जिनके दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ बनायी गयी अनेको शिलà¥à¤ª कृतियों का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— कई बालीवà¥à¤¡ फिलà¥à¤®à¥‹ और टीवी धारावाहिकों में हो चà¥à¤•ा है, देश-विदेश के कई मनà¥à¤¦à¤¿à¤° तथा अनà¥à¤¯ उचà¥à¤š आय वरà¥à¤— के लोग à¤à¥€ अपने पूजा घरों के लिये यहाठसे मूरà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤ बनवाते हैं, जिनकी कीमत लाखों तक में होती है | अब समय था, अपने लिठà¤à¥€ यहाठसे कà¥à¤› खरीदारी करने का !

बà¥à¤¦à¥à¤§ तो सदा से कलाकारों के मनपसनà¥à¤¦ subject रहे ही हैं
आप जयपà¥à¤° जाà¤à¤ और चोखी ढाणी ना जाà¤à¤ ये तो हो नही सकता पर सोमेश ने हमे पहले ही आगाह कर दिया था कि राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€ रंग और नृतà¥à¤¯ देखने के लिठतो बढ़िया है, पर खाने से जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ उमà¥à¤®à¥€à¤¦ न रखें ! कोई बात नही कम से कम आपको à¤à¤• थाली में यदि सारे राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€ ज़ायके à¤à¤• साथ मिल जाà¤à¤ तो कà¥à¤› à¤à¤¸à¤¾ बà¥à¤°à¤¾ à¤à¥€ नही ! तो साहब पूरा दिन शहर à¤à¤Ÿà¤•ने के बाद अब बारी थी चोखी ढाणी की, सो शाम ढलते ही हमने अपनी गाड़ी का रà¥à¤– मोड़ दिया चोखी ढाणी की तरफ…

यूठतिलक लगा कर आपके आगमन का à¤à¤¹à¤¤à¥‡à¤°à¤¾à¤® किया जाता है यहाà¤
जयपà¥à¤° शहर से तकरीबन 10-12 किमी दूर टोंक रोड पर 1989 में सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ 10 à¤à¤•ड़ में फैला हà¥à¤¯à¤¾ ये सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ à¤à¤• पूरे राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€ गाà¤à¤µ की अनà¥à¤•ृति है | पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° पर रिसेपà¥à¤¶à¤¨ की ज़गह à¤à¤• मà¥à¤¨à¥€à¤®à¤œà¥€ ठेठमारवाड़ी पहरावे में अपने काम में मगà¥à¤¨ मिलेगें | पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ शà¥à¤²à¥à¤• में ही आपके खाने की कीमत जà¥à¤¡à¤¼à¥€ है, मगर अंदर खाने की कà¥à¤› चीज़ें और ऊà¤à¤Ÿ-हाथी की सवारी इतà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿ के पैसे अलग से लगते हैं | खैर, अंदर पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ करते ही तिलक लगाकर आपका इसà¥à¤¤à¤•ब़ाल किया जाता है, और फिर आप आज़ाद हैं, अपनी मरà¥à¤œà¥€ के मà¥à¤¤à¤¾à¤¬à¤¿à¤• यहाठवहाठघूमने और फ़ोटो खींचने के | थोड़ी-थोड़ी सी दूरी पर कई मंडप और सà¥à¤Ÿà¥‡à¤œ हैं जहाठराजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ के विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ इलाकों के लोक-नृतà¥à¤¯ चलते रहते हैं, हालाà¤à¤•ि सà¥à¤µà¤¾à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤• रूप से ‘कालबेलिया’ की मक़बूलियत सबसे अधिक है, और ‘इला अरà¥à¤£â€™ के गाये गानों के साथ नौजवानों के बड़े à¤à¥à¤°à¤®à¥à¤Ÿ आपको उधर ही नज़र आयेगें, जो खà¥à¤¦ à¤à¥€ उनके साथ डाà¤à¤¸ कर रहे हैं | इसके अलावा कहीं रसà¥à¤¸à¥€ पर चलने वाले नट हैं, तो कहीं कठपà¥à¤¤à¤²à¥€ का खेल चल रहा है, à¤à¤• जगह कोई जादूगर अपने हाथ की सफाई दिखा आपको मोहित करता है तो कहीं कोई फà¥à¤Ÿà¤ªà¤¾à¤¥ पर बैठने वाला जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤·à¥€ अपने तोते से आपकी किसà¥à¤®à¤¤ का कारà¥à¤¡ खोल सकता है | मेहà¤à¤¦à¥€ और टैटà¥à¤Ÿà¥‚ के कलाकार à¤à¥€ हैं और बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ के लिठकई तरह की सवारियां à¤à¥€ और साथ में गाà¤à¤µ-देहात के मेलों में लगने वाले खेल à¤à¥€…. अपने बचपन में शहर देहात में लगने वाले मेले याद है आपको, जब बड़े चाव से आप छरà¥à¤°à¥‡ वाली बंदूक से गà¥à¤¬à¥à¤¬à¤¾à¤°à¥‡ फोड़ते थे या 3 गेंदों में आपको à¤à¤• मेज़ पर लगे कà¥à¤› गिलास गिराने होते थे…. बस, à¤à¤¸à¥‡ ही कà¥à¤› गà¥à¤œà¤¼à¤°à¥‡ हà¥à¤ लमà¥à¤¹à¥‹à¤‚ को यहाठà¤à¤• ही ज़गह पर फ़िर से संजो दिया गया है… जब आप किसी बचà¥à¤šà¥‡ को लकड़ी के à¤à¤• बकà¥à¤¸à¥‡à¤¨à¥à¤®à¤¾ डबà¥à¤¬à¥‡ में गोल डकà¥à¤•न वाले शीशे में दोनों हाथों के घेरे में अपनी आà¤à¤–े उस के अंदर गढ़ाये देखते हैं तो à¤à¤• बालसà¥à¤²à¤ मà¥à¤¸à¥à¤•ान आपके चेहरे पर à¤à¥€ छा जाती है, जैसे कà¥à¤› à¤à¥‚ला हà¥à¤¯à¤¾ सा याद आ जाता है, और आप बड़े चाव से बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ को बताना चाहते हो कि कà¤à¥€ आपके बचपन में आप कैसे 10 पैसे या à¤à¤• कटोरी आटे के बदले ये सब देखते थे और कैसे गरà¥à¤®à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की à¤à¤°à¥€-दोपहरी इंतज़ार रहता था à¤à¤¸à¥‡ सà¤à¥€ मदारियों और कलंदरों का जो उस दौर में हमे ख़à¥à¤¶à¥€ के वो पल मà¥à¤¹à¥ˆà¤¯à¤¾ करवाते थे जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ आज टीवी और कमà¥à¤ªà¥‚यटर ने बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ से महरूम कर दिया है |

रौशनी का कम से कम पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— है, जिस से आप असली गाà¤à¤µ जैसा महसूस कर पायें
बीच-बीच में कà¥à¤› खाने के सà¥à¤Ÿà¤¾à¤² à¤à¥€ हैं, इनमे से कà¥à¤› आपकी टिकट में ही समायोजित हैं तो कà¥à¤› के दाम अलग से चà¥à¤•ाने पड़ते है, गोलगपà¥à¤ªà¥‡ तो खैर, सदियों से हम हिनà¥à¤¦à¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨à¥€ जीà¤à¥‹à¤‚ की à¤à¤• कमज़ोरी बने ही हà¥à¤¯à¥‡à¤‚ हें, इसलिठअकारण नही कि आप सबसे जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ à¤à¥€à¤¢à¤¼ à¤à¥€ वहीं देखें पर मà¥à¤à¥‡ जिस चीज़ ने सबसे जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ किया वो था जलज़ीरा और à¤à¥à¤Ÿà¥à¤Ÿà¥‡ की कीस, जो हमारे लिठनई à¤à¥€ थी और अपने सà¥à¤µà¤¾à¤¦ में बेà¤à¥‹à¤¡à¤¼ à¤à¥€ ! जैसे, आजकल की किसी à¤à¥€ शादी में आपको हर तरह के सà¥à¤Ÿà¤¾à¤² मिल जाते हैं ना, कà¥à¤› उसी तरह से जितने à¤à¥€ राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€ पक़वान हैं, उनका जायका आप यहाठले सकते हैं |
इसी के à¤à¥€à¤¤à¤° à¤à¤• छोटा सा बाज़ार à¤à¥€ है, जहाठआपके परिवार की महिलायों का सबसे जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ समय बीतने वाला है, घूमना, खाना बाद में देखा जायेगा पहले कà¥à¤› खरीदारी तो हो जाये! वो सब शापिंग की चीज़े, जिनके लिठजयपà¥à¤° या यूठकहें राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ जाना जाता है, अपने हसà¥à¤¤à¤¶à¤¿à¤²à¥à¤ª से लेकर नाना पà¥à¤°à¤•ार की कलाकृतियों तक सब यहाठउपलबà¥à¤¦ हैं, और दाम à¤à¥€ लगà¤à¤— बाज़ार के समान ही हैं, बस मोल-à¤à¤¾à¤µ की सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ नही है, जिसके बिना हमारा पकà¥à¤•ा हिनà¥à¤¦à¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨à¥€ मन कà¥à¤› निराश जरूर होता है, पर कà¥à¤¯à¤¾ है ना कि यहाठसब करà¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¥€ ही हैं, अत: उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अंकित मूलà¥à¤¯ पर ही बेचना पड़ता है ! वैसे मेरा यहाठकी मैनेजमेंट को à¤à¤• विनमà¥à¤° सà¥à¤à¤¾à¤µ है कि यदि वो दाम 20 फीसदी बढ़ा कर फिर 10 से 20 फीसदी मोल-à¤à¤¾à¤µ की छूट दे दें तो उनकी बिकà¥à¤°à¥€ à¤à¥€ बढ़ जायेगी और मà¥à¤¨à¤¾à¤«à¤¼à¤¾ à¤à¥€ !

इतने रंगो के बीच मेहà¤à¤¦à¥€ का रंग à¤à¥€ जà¥à¤¡à¤¼ गया है

पता नही ये कलाकार कà¥à¤¯à¤¾ सोचते होंगे हमारे बारे में, पर हम तो उनकी कला कि दिल से कदà¥à¤° करते हैं

समय जैसे लौट कर आ गया हो छरà¥à¤°à¥‡ वाली बंदूक के साथ
आपके टिकट पर ही खाने का समय à¤à¥€ अंकित होता है, हालाà¤à¤•ि अपनी सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¸à¤¾à¤° आप इसे परिवरà¥à¤¤à¤¿à¤¤ करा सकते हैं, इस मामले में यहाठके करà¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¥€ सहयोगी हैं | खाना खिलाने के लिठदो हाल हैं और जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ à¤à¥€à¤¡à¤¼ होने पर बाहर खà¥à¤²à¥‡ में खिलाने की सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ à¤à¥€ है |
अपनी परà¥à¤šà¥€ दिखा जब आप हाल में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ करते है तो राम-राम-सा के अà¤à¤¿à¤µà¤¾à¤¦à¤¨ के साथ गरà¥à¤®à¤œà¥‹à¤¶à¥€ से आपका सà¥à¤µà¤¾à¤—त होता है | बड़ा सा à¤à¥‹à¤ªà¤¡à¤¼à¥€à¤¨à¥à¤®à¤¾ हाल है जिसमे पारमà¥à¤ªà¤°à¤¿à¤• ढंग से नीचे बैठने की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ है, खाना आपको पतà¥à¤¤à¥‹à¤‚ की थाली में परोसा जाता है | परमà¥à¤ªà¤°à¤¾à¤—त राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€ खाने की शà¥à¤°à¥à¤†à¤¤ ‘सांगरी’ से होती है, जिसका अपना à¤à¤• अलग à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• महतà¥à¤µ है और फिर दौर चल पड़ता है दाल, कड़ी-गटà¥à¤Ÿà¥‡ की सबà¥à¤œà¥€, खिचड़ी, दाल-à¤à¤¾à¤Ÿà¥€-चूरमा, खीर, पापड़, दो-तीन अलग-अलग पà¥à¤°à¤•ार के अनाजों की पूड़ी के आकार की छोटी-छोटी रोटीयां साथ में घी-मकà¥à¤–न à¤à¥€ है, पीने को पानी के साथ पतली सी नमकीन लसà¥à¤¸à¥€ à¤à¥€ मिटà¥à¤Ÿà¥€ के गिलासों में, और मीठे में मालपà¥à¤† ! सà¥à¤Ÿà¤¾à¤« मेहरबान है और अपने बरà¥à¤¤à¤¨à¥‹à¤‚ में सामान लिये उनके दौर बार-बार चलते रहते हैं, और आप राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ की इस आवà¤à¤—त और मेज़बानी का आनंद उठा सकते हैं | हालाà¤à¤•ि खाना पूरà¥à¤£à¤¤à¤¯: शाकाहारी है मगर औसत दरà¥à¤œà¥‡ का ही है | हाà¤, खाना परोसने वाला सà¥à¤Ÿà¤¾à¤« जà¥à¤°à¤°à¥‚र ज़ोश से à¤à¤°à¤¾ है और बार-बार आपसे शिकायत à¤à¥€ करता है कि हà¥à¤•à¥à¤®, आप तो कà¥à¤› खा ही नही रहे ! मगर खाने से जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ यहाठका अनà¥à¤à¤µ अधिक मज़ेदार है, à¤à¤• ही छत के नीचे सौ से अधिक लोग à¤à¤• साथ मिल बैठकर खा रहे हैं और समà¥à¤à¤µà¤¤: उनमे से अधिकतर राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ से बाहर के ही होंगे इसलिये सà¤à¥€ अपने इस अनà¥à¤à¤µ को संजो कर रख लेना चाहते है, अत: हाल की मदà¥à¤§à¤¿à¤® सी रौशनी में बार-बार यहाठवहाठसे कैमरों की फà¥à¤²à¥‡à¤¶-लाइट चोंधिया रहीं है |

राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€ मेहमाननवाज़ी चोखी ढाणी में

यहाठखाना à¤à¤²à¥‡ ही कैसा ही हो मगर à¤à¤• अनà¥à¤à¤µ तो है ही
खाने के बाद आपके विशà¥à¤°à¤¾à¤® के लिठयहाà¤-तहाठखाट बिछी हैं आप आराम से उन पर लेट कर अपने उन पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ दिनों को याद कर सकते हैं जब आंगन में या घर की छतों पर à¤à¤¸à¥€ ही खाटें बिछती थी और हर à¤à¤• पर बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ और बड़ों के अपने अपने à¤à¥à¤£à¥à¤¡ बैठकर घर परिवार से लेकर गली-मौहलà¥à¤²à¥‡ की सारी गा़सिप के साथ-साथ दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾à¤°à¥€ के सारे राज़ à¤à¥€ बयाठकरते थे, और बचà¥à¤šà¥‡ à¤à¤¸à¥‡ ही परिवेश में अपने दादा/दादी या नाना/ नानी से राजा-रानी से लेकर गà¥à¤œà¤¼à¤°à¥‡ जमानें की उन तमाम कहानियों और अफ़सानों को रोज़ दर रोज़ बार-बार सà¥à¤¨à¤¤à¥‡ थे पर कà¤à¥€ उकताते नही थे !

चलो à¤à¤¸à¥‡ ही कà¥à¤› पलों को यादगार बना लिया जाये
और फिर लगà¤à¤— रात के 10-11 बजे तक आप इसी खाट पर लेते-लेते अपने वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ से अतीत की यातà¥à¤°à¤¾ आराम से कर सकते हो | जीवन के अब तक के सफ़र में कà¥à¤¯à¤¾ खोया, कà¥à¤¯à¤¾ पाया… पाया कम या खोया जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾… वो लमà¥à¤¹à¥‡ जो किसी à¤à¥‚ले-बिसरे की याद दिला आपकी आà¤à¤–ों में à¤à¤• हलà¥à¤•ी सी नमी की परत घोल देते हैं, वो à¤à¤¾à¤ˆ, वो बहन, वो बिगड़ैल और शरारती संगी साथी कैसे à¤à¤•-à¤à¤• करके सब दूर बहà¥à¤¤ दूर होते चले गये… साधन बढ़ते गये पर उनसे कई गà¥à¤¨à¤¾ जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ बढ़ती गयी मसरूफियà¥à¤¤à¥‡à¤‚ और दिलों की दूरियां… इस दरमियाà¤, बचà¥à¤šà¥‡ आपको बिलकà¥à¤² परेशान नही करते कà¥à¤¯à¥‚à¤à¤•ि उनके मनोरंजन के बहà¥à¤¤ सारे साधन यहाठमौजूद है और फिर जब हमे सोमेश का फोन आया कि अब वो अपने बैंक के काम से फà¥à¤°à¥€ होने ही वाला है तो हमने à¤à¥€ इक हलà¥à¤•ी सी जà¥à¤®à¥à¤¬à¤¿à¤¶ के साथ इन यादों को अपने दिल के किसी अंदरूनी कोने में समेट इस सहरी गाà¤à¤µ में लगे सहरी मेले से, जो दरअसल सही मायने में à¤à¤• खिचड़ी की तरह ही है, जिसमे अनेकों पदारà¥à¤¥ समà¥à¤®à¤¿à¤²à¤¿à¤¤ तो हैं मगर किसी का अपना कोई सà¥à¤µà¤¾à¤¦ नही, बाहर निकलने की कवायद शà¥à¤°à¥‚ कर दी !















ओ माई गाड…. क्या विवरण दिया है… यूं तो जयपुर कई सालों से मेरी हिट लिस्ट मे है..पर ये चोखी ढाणी का वर्णन सुन कर तो लगता है अभी चले जाये…
कलम के बादशाह हो तुसी बादशाओ
Many thanx SS जी
शायद मैं ही खुशकिस्मत हूँ जो आप जैसे स्नेही मित्रों का आशीर्वाद बार-बार मिलता रहता है, बहुत धन्यवाद!!!
जी, चोखी ढाणी अच्छा है, मगर लोग बताते हैं, अब पहले वाली बात नही रही ! फिर भी कुछ बुरी deal नही !
अजमेर और पुष्कर के बारे में लिख रहां हूँ, बिलकुल सूफी हूँ आजकल…..
beautiful narrative.a famous writer in making. few spellings could have been corrected.good photographs. keep roaming, keep writing.
Thank you ashok ji for your kind words. Yeah, some times spellings create difficulty as most of the Hindi softwares are based on phonetic sounds, and even me too cannot type Hindi words on keypad. But, this should not be an excuse and I must put some more efforts and vigilant to overcome this. Thanks for your suggestions
हमेशा की तरह सुन्दर अभिव्यक्ति, अवतार जी…लेख साझा करने के लिए शुक्रिया!
Thanx Vipin for your nice words. Hope to find something for reading, from your side very soon…
बहुत ही ख़ूबसूरत विवरण अवतार जी .
ख़ासकर आखरी paragraph दिल छु गया .
Hi Stone
Thanx for your comment.
ये सही है कभी-कभी यूँ ही कुछ ऐसी यादें परेशान कर जाती हैं , भीड़ में भी …. आखिर दिल तो पागल है…..
Hello Avtar ji,
Very nice post.A
pki post se mujhe mera experience yaad aa gaya .Maine waise Chokhi Dhani to visit nahi kiya hai par Chokhi Dhani jaisa hi Nakhrali Dhani Indore me gayi thi.Bahut he badhiya experience raha aur khana to best Rajasthani food wo bhi Manwaar (Baar baar puchna) aur Pagdi sir pe pehnane ke saath.Yaha Canada me baithe baithe kabhi rajasthani food ki yaad aati hai to mujhe to ab sirf nakhrali dhani hi nazar aati hai.Jab bhi India wapis aana honga mai waha pakka jaane wali hu.
Agli post ke intezaar me.
Keep travelling, keep writing.
Thanx Abheeruchi for your ‘Dil se’ comment.
I think we must owe to ghumakkar for making us feel connected and regrouping our lost memories.
Yeah, we all have some special memories in our heart related to one thing or the other, sometime we share it with others and some times prefer to keep it with ourselves.
have been to these places before but never tried to know why jaipur is pink or people prefer colourful clothes….. so nice to know all these things..thanx for such informative post.
Many thanx h.I. singh ji
for your comment. Sir, some times its also great to roam without knowing the history, chemistry, and biology of the place….. its also a great thing…..
Nice post….as usual.
thanks for sharing..
Thanx Naresh Ji
Sir you, yourself is an inspiration for many people like me to roam and pen down their experiences.
सिंह साहब, आपके लेख सामान्य यात्रा संस्मरण कम और रचनात्मक टिपण्णी ज्यादा दिखतें हैं , इस कारण से पढने के दौरान ही ऐसा लगता है की कई दशकों पहले की दुनिया में पहुँच गयें हैं और कोई पुरानी पत्रिका पढ़ रहे हैं । नेट नेट कहें तो , अन्दाजें बयां और ।
खैर , जयपुर तो न जाने कितनी बार जाना हुआ । ऐसा लगता है पूरा एन एच ८ हमारे सामने ही बना है, पहले एक सिंगल रोड होती थी फिर डबल हुई तो हालत ख़राब , उसके बाद लेन बड़ी की गयी तो हालात ख़राब और अभी तो पूछिए ही नहीं, गत दिसंबर में मैने तो सरिस्का की तरफ गाडी मोड़ ली उकता कर , बूंदी से लौटते हुए । और उस पर कमबख्त टोल भी है , किस मुंह से टोल लेतें है समझ में नहीं आता । और आपने पुलिस , खासकर ट्रैफिक पुलिस, के बारे में बिलकुल सही लिखा है । इतनी जानकारी होने के बावजूद मेरा कई बार चालान कटा है, बात बेबात पर । मेरा सुझाव ये है, की नज़रें कभी न मिलाएं पुलिस वालों से, वरना इशारा कर देंगे गाडी रोकने का और फिर आप गए काम से ।
जौहरी बाज़ार , बापू बाज़ार , एम् आई रोड तो बिलकुल शोप्पर्स पैराडाइस है । वैसे हवा महल में जाने का पूरा इंतज़ाम है , काफी बड़ा है और आप ऊपर तक जा सकते हैं , जिन छज्जों को आप देख रहें है उन पर आप बकायेदा खड़े हो कर हवाई अवलोकन कर सकतें हैं ।
चोखी धानी भी कई बार गए, हर बार कोशिश की कि जादू वाले की ट्रिक को पकड़ेंगे पर हर बार मात खाई । हमें वहां का खाना अच्छा लगा, हर बार । उनकी मेहमान नवाजी तो माशा अल्लाह है ही पर खाना भी हमें बढ़िया लगा । मेरे हिसाब से चोखी धानी परिवार (खासकर बच्चे) वालों के लिए तो बिलकुल पैसा वसूल जगह है ।
अजमेर और पुष्कर का इंतज़ार रहेगा ।
Thanx Nandan Bhai for your soooo….. long comment, which seems like a critical view of the post…. बिल्कुल तीया- पांचा करने वाला !
जी, आप ने सही कहा, दिल्ली-जयपुर हाईवे पर… अब तो TOI भी रिपोर्ट कर रहा है इस पर .
हवा महल तो हमने यूँ ही मार्किट में घुमते फिरते देख लिया, पटरी वालों ने कहा, बंद है और हमने भी ख़ुशी-ख़ुशी मान लिया क्यूंकि इतनी दूर तक जाने की तो इजाजत भी नही थी और मैं वैसे इसे पहले कभी देख चूका था , तो इतना क्रेज़ भी नही था |
यात्रा- संस्मरण की बात करें तो कई बार मुझे भी लगता है कि शायद मेरी स्टोरी पर दार्शनिकता ज्यादा हावी हो जाती है और स्थान गौण हो जाता है, दरअसल मैंने जिनको बहुत ध्यान से पढ़ा है वो राहुल सांस्क्र्तायं हैं और उनके यात्रा विवरण एक जगह से शुरू होकर कहीं और ही पहुंच जाते थे, उन्होंने इन्हें तब लिखना शुरू किया था जब हिंदी साहित्य में ऐसी कोई परम्परा नही थी और शुरू में तो इसे साहित्य माना भी नही जाता था , पर वो घुमते रहे और लिखते रहे अपनी ही धुन में…..
अभी BBC ने हिंदी के एक सम्पादक जी से हिंदी के ऐसे 10 बेहतरीन यात्रा संस्मरण पुस्तकों की एक सूची बनवा कर पोस्ट की है , सबसे पहले समय मिलते ही वो सब पड़ना चाहता हूँ …
चोखी ढाणी पूरी तरह से पैसा वसूल है I fully agree, मैंने तो केवल food को average कहा है… वो क्या है ना…पंजाबी आदते हैं ना… दाल बोले तो दाल मक्खनी और पनीर कहो तो शाही पनीर….
Avtar Singh Ji,
bahti jal-dhara sa prvahmayee vritant dil ko apne saath-saath hi bahaye liye gaya ! vibhore kar diya aapne !!
Dua hai aapki kalam se yeh dhara yunhi aviral bahati rahe !
बहुत-बहुत धन्यवाद विनोद शर्मा जी, आपकी भावपूर्ण टिपण्णी के लिये….
सर, आप जैसे पाठक हौसलाअफजाई करते हैं तभी हम जैसों को भी लिखने का मन करता है …
उम्मीद है आप यूँही अपना स्नेह बनाये रखेंगे…..
लील्ला पटका वालो सा, पधारयो म्हारे देस, थे ने राणा के देस की माटी पसंद आयो, अर हुकुम, थे ने लेखया भी घणा खूब!
“तेरे तारूफ को तारीफ़ की दरकार नहीं….
अवतार जी, कैलाश बाजपई जी ने अपनी युवा अवस्था के स्मृति लेख में ‘निराला जी’ के एक कथन का जिक्र किया था “युवा लेखक अपनी योग्यता दर्शाने में गूढ़ शब्दावली प्रयोग करते हैं, लेखन तुम्हारी शैक्षिक योग्यता का मापक नहीं और न ही लोकप्रियता के लिए कोई कौश्लास्त्र, भाषा की छन्दता तथा लोकधर्मिता लेखक की योग्यता का दर्पण है”.
ऐसी ही लोकधर्मी भाषा में, अगले लेख के इंतज़ार में… सादर
आदरणीय त्रिदेव जी
सादर प्रणाम
सर, जिसे आपकी टीप पढ़ने को मिल जाये, उसे पोस्ट से क्या लेना और क्या देना ?
क्या शब्दों पर पकड़ है आपकी, एक तिलिस्म सा फैला देते हैं ….
मेरी पोस्ट पर आपकी ऐसी टीप, मेरी खुशकिस्मती…. जहे नसीब!!!
मुझे आपसे कुछ कहना हो तो मेरी इतनी सामर्थ्य नही कि मैं अपने बूते कुछ कह सकूं .
मुझे तो आपकी शान में तुलसीदास की ये पंक्ति उठानी पड़ेगी ….
‘संत सरल चित जगत हित, सील सुभाऊ सनेह’ ….
कई बार जयपुर गया हूँ ओर चोखी-ढाणी भी देखा है पर आप का लिखने का अंदाज़ एसा था की लगा की पहेली बार देख रहा हूँ |
बहुत खूब |
धन्यवाद महेश जी
आपका सहयोग सदैव ही प्रेरणा देता है, और आपकी कल्पनाशीलता उत्साह
FB पर आपकी चेन्नई की sun rise की फ़ोटोज़ देखी, दिल खुश हो गया |
Bahut hi badiya likha hein Avtar, Jaipur ka description aur upper se Jaipur Police ka varnan, bahut majedar, maja aaya pad kar.
धन्यवाद उपांशु सिंघल
जयपुर एक अच्छा शहर है घुमक्कड़ी के लिये, हर मिज़ाज़ का व्यक्ति कुछ ना कुछ पा ही सकता है यहाँ !
वैसे, दरअसल पूरा राजस्थान ही अपने आप में काफी कुछ समेटे हुये है …
आशा करता हूँ कि आगे आने वाली posts पर भी आपका स्नेह यूँ ही मिलता रहेगा !
Well defined visit with nice clicks……thanks to Ghumakkar….with its help visited lot places without going there.Thanks a lot Avtar ji….a personal suggestion…u will look much smart in turban……..!!!
Thanx Dr. Rakesh Gandhi Ji
Yeah, you are absolutely right by saying that ghumakkar gives us marvellous opportunity to take the feel of many places without physically visiting there.
You liked the post, many thanx for it.
Your suggestion is valuable and I must appreciate this, I shall definitely follow your advice. Thanx for this nice gesture too.
अवतार सिंह जी
एक बार फिर से धमाके दार जयपुर की यात्रा करवाई। हालाँकि मै कई बार जयपुर जा चूका हूँ। मेरी बिटिया वहीँ पढाई कर रही थी।
लेकिन थोडा बहुत ही घूम कर वापस आ जाते थे। आपने अपने लेख में ज्यादा से ज्यादा जानकारी देने की चेष्टा की है।
सबसे अच्छी तो लेख की प्रस्तावना है जो पढने वाले को स्वत: आकर्षित करती है।
बहु – बहुत बधाई।
Many thanx Kamlansh Rastogi sir
आप जैसे ज्ञानवान व्यक्ति समय निकाल कर हम जैसों की लिखी कोई पोस्ट पड़ते हैं , और फिर हमारा अहोभाग्य कि अपनी प्रतिकिया भी देते हैं, बहुत धन्यवाद सर!
Hi Avtarji,
Another enjoyable post! Jaipur is a nice clean developed city. People especially are a gracious lot.
Need to go see the Chokhi Dhani next time.
The highway is a mess. Taking the train makes sense. Using flash in the night brings up the spots on the photos unless you are shooting close-ups.
Please ask Nandan to increase Hindi posts’ font size or if spacing could be increased. It will be easier on my eyes.
heart full thanx Nirdesh sir
Chokhi Dhani is a good bet, especially if you are with family. This place offer something for every one. You are right, Jaipur highway is totally in mess these days. Some really good trains are available for Jaipur, if you board from Delhi. We like the both Double Decker and Ajmer Shatabdi. Their departure timings are also suitable.
Spots… I agree, the dust plays havoc for shooting at night.
@Nandan/Archana, please do the needful. Its a very genuine complaint of Nirdesh sir. Please increase the font size and increase the space, both things are required
आपका अंदाज़े बयाँ हमेशा की तरह निराला है। चोखी ढाणी के फोटो और वर्णन बहुत अच्छा है। आपने सही लिखा कि मंदिरों की तो भरमार है वहा, हर १०० मीटर की दूरी पर मंदिर दिख जाते है और हनुमान जी के मंदिर भी बहुतायत मे है। ट्रैफिक पुलिस के हाल तो ख़राब है उनको हार्दिक ख़ुशी होती है, बाहर के लोगो का चालान काटकर। ३०० रूपये तो हम भी दे चुके है सीट बेल्ट न लगी होने की वजह से।
प्याज की कचोरी तो वहा का मुख्य नाश्ता है और रावत मिष्ठान भण्डार की कचोरी तो वाकई बड़ी अच्छी है और उससे अच्छी है उनके मालिक का स्वभाव और ग्राहकों की बातो पर ध्यान देने और खुद से आगे आकर सहायता करने की आदत।
आपने मेरी भी यादे ताजा कर दी। धन्यवाद् लिखते रहने के लिए।
धन्यवाद सौरभ जी, आपके उत्साह वर्धन के लिये ….
एक पारम्परिक शहर में घूमना और खाना सदा ही अच्छा लगता है, यदि आप उन की कुछ कमियों को नजरअंदाज कर सकें, बाकी बड़े शहरों में तो अब सब कुछ एक सा ही होता जा रहा है, ख़ास तौर पर खाने के मामले में तो सबका menu एक सा ही हो गया है |
मजा आ गया
परम प्रिय अवतार जी,
(अगर हम राजनीति में दखलंदाज़ी करना छोड़ कर सिर्फ दार्शनिकता से भरपूर घुमक्कड़ी करते रहें तो हम दोनों ही बहुत शरीफ किस्म के इंसान हैं और एक दूसरे को बहुत प्रिय भी ! है ना? ) इतने विलंब से आपकी इस पोस्ट पर आना दुर्भाग्य मानूं या सौभाग्य, समझ नहीं पा रहा हूं! दुर्भाग्य इसलिये लगता है कि एक प्यारे से संस्मरणात्मक लेख से इतने लंबे समय तक वंचित रहा। सौभाग्य इसलिये कि फरवरी के अन्तिम सप्ताह में जयपुर जाने की योजना है सो इतनी अधिक तल्लीनता से यह आलेख पढ़ा कि बस, क्या बताऊं ! किसी बच्चे को पता चल जाये कि बोर्ड की परीक्षा में ’जयपुर – जैसा मैने देखा’ विषय पर निबंध आने वाला है तो वह कितने चाव से पढ़ेगा, आप सहज ही अंदाज़ा कर सकते हैं !
चूंकि मैं और मेरे एक सीनियर सिटीज़न मित्र जयपुर जा रहे हैं और मुख्य आकर्षण फोटोग्राफी व लेखन ही है, अतः शॉपिंग वगैरा में तो हमारी कोई दिलचस्पी नहीं रहेगी, हां जयपुर को अच्छे से समझने की इच्छा और उत्सुकता अवश्य है। इसी उत्सुकता के वशीभूत घुमक्कड़ साइट पर भी जयपुर के यात्रा संस्मरणों को उलट-पुलट कर देख रहा हूं ! क्या – क्या देखना है, यह जानने के लिये नहीं, अपितु भिन्न – भिन्न निगाह से जयपुर को कैसे देखा जाना चाहिये, यह समझने के लिये! इस दृष्टि से आपकी ये पोस्ट निश्चय ही बहुत महत्वपूर्ण है। आपका आभार !