- जयपà¥à¤° परà¥à¤¯à¤Ÿà¤¨ के लिये जाना, और आमेर दà¥à¤°à¥à¤— की यातà¥à¤°à¤¾ ना करना, कà¥à¤› असंà¤à¤µ सा है | जब से परà¥à¤¯à¤Ÿà¤•ों की वरीयता सूची में राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ का नाम शà¥à¤®à¤¾à¤° हà¥à¤¯à¤¾ है, आमेर का यह अमà¥à¤¬à¤° किला और इसके आसपास का कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° और समीपसà¥à¤¥ सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ कà¥à¤› अनà¥à¤¯ किले और दà¥à¤°à¥à¤— ना सिरà¥à¤« जयपà¥à¤° अपितॠपूरे राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ की शान बनकर उà¤à¤°à¥‡à¤‚ हैं | यहाठयह à¤à¥€ जानना दिलचसà¥à¤ª होगा कि कà¤à¥€ राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ की राजधानी जयपà¥à¤° न होकर आमेर ही थी, परनà¥à¤¤à¥ पानी की कमी और बढ़ती जनसंखà¥à¤¯à¤¾ के दबाव के कारण जयपà¥à¤° का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ किया गया | और फिर, देखते ही देखते जिस जयपà¥à¤° को आमेर के à¤à¤• कसà¥à¤¬à¥‡ के रूप में विकसित किया गया था, वही आमेर, कालानà¥à¤¤à¤° में केवल 300 साल पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ जयपà¥à¤° का ही à¤à¤• कसà¥à¤¬à¤¾ à¤à¤° बन कर रह गया | आमेर, जिसका अपना इतिहास ही लगà¤à¤— 1100 वरà¥à¤· पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¤¾ है, अपनी हवेलियों, बà¥à¤°à¥à¤œà¥‹à¤‚, जलाशयों, मंदिरों, बावड़ियों, छतरियों और मेहराबों के लिये जाना जाता है | आमेर में ही सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ अमà¥à¤¬à¤° फोरà¥à¤Ÿ, अपनी निरà¥à¤®à¤¾à¤£ कला और वासà¥à¤¤à¥à¤•ारी के कारण देश-विदेश के परà¥à¤¯à¤Ÿà¤•ों में अतà¥à¤¯à¤‚त लोकपà¥à¤°à¤¿à¤¯ है | जयपà¥à¤° से करीब 11 किमी दूर और जयपà¥à¤°-दिलà¥à¤²à¥€ राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ राजमारà¥à¤— पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤, राजा मान सिंह दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ निरà¥à¤®à¤¿à¤¤ यह किला सन 1592 में बन कर तैयार हà¥à¤¯à¤¾Â | यूठतो राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ अपने अनेक किलों के लिठमशहूर है, पर आमेर का यह किला उन सà¤à¥€ मे से, अपनी विशालता, à¤à¤µà¥à¤¯à¤¤à¤¾, बेहतरीन नकà¥à¤•ाशीकारी और वासà¥à¤¤à¥à¤•ला के कारण अपना à¤à¤• विशिषà¥à¤Ÿ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ रखता है | लाल रंग के सैंडसà¥à¤Ÿà¥‹à¤¨ पतà¥à¤¥à¤°à¥‹à¤‚ और संगमरमर के पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— से, अरावली की à¤à¤• ऊंची पहाड़ी पर, मोठà¤à¥€à¤² के करीब बना ये किला और इसके चारो तरफ का लैंडसà¥à¤•ेप इसे अपने आप में ही अनà¥à¤ªà¤® सौनà¥à¤¦à¤°à¥à¤¯ बोध देता है | इसे à¤à¤• परà¥à¤¯à¤Ÿà¤• के रूप में देखते हà¥à¤¯à¥‡ निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ रूप से आपको इसके अपà¥à¤°à¤¿à¤¤à¤® सौनà¥à¤¦à¤°à¥à¤¯ बोध का सà¥à¤–द à¤à¤¹à¤¸à¤¾à¤¸ होता है |

बेहतरीन नकà¥à¤•ाशी से सà¥à¤¸à¤œà¥à¤œà¤¿à¤¤ किले के विशाल à¤à¤°à¥‹à¤–े
आमेर का यह किला कब अमà¥à¤¬à¤° किला या अमà¥à¤¬à¤° फोरà¥à¤Ÿ के नाम से जाने जाना लगा, इसके बारे में कोई पà¥à¤–à¥à¤¤à¤¾ जानकारी उपलबà¥à¤§ नही है, पर इस सफ़र के हमारे गाईड के अनà¥à¤¸à¤¾à¤°, आमेर समà¥à¤à¤µà¤¤: à¤à¤• मारवाड़ी à¤à¤¾à¤·à¤¾ का शबà¥à¤¦ है, जबकि अमà¥à¤¬à¤° नाम इसे à¤à¤• पारमà¥à¤ªà¤°à¤¿à¤• राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€ पहचान देता है, अत: शायद परà¥à¤¯à¤Ÿà¤•ों में अधिक लोकपà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¤à¤¾ की आशा से इसका नाम अमà¥à¤¬à¤° फोरà¥à¤Ÿ हो गया | आमेर के इस दà¥à¤°à¥à¤— के चारो तरफ, इसकी सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ के लिये सà¥à¤¦à¥‚र पहाड़ियों में जो बà¥à¤°à¥à¤œ सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ हैं, और उन तक पहà¥à¤à¤šà¤¨à¥‡ के लिये जो रासà¥à¤¤à¤¾ है, सीढ़ी नà¥à¤®à¤¾, आपको याद दिलाता है कि शायद चीन की बनी दीवाल à¤à¥€ कà¥à¤› इसी पà¥à¤°à¤•ार की रही होगी | और, दोनों को ही बनाने में लगने वाला शà¥à¤°à¤®, जो असाधà¥à¤¯ को à¤à¥€ साधà¥à¤¯ कर दिखाता है, शà¥à¤°à¤®à¤¿à¤•ों की मेहनत और इसे बनवाने वाले राजायों की अपनी सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ चिंता को बताता है | वाकई, जब हम इन दà¥à¤°à¥à¤—ों और इन बà¥à¤°à¥à¤œà¥‹à¤‚ के बारे में जानने की चेषà¥à¤Ÿà¤¾ करते हैं तो इतिहास हमे केवल उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ बनवाने वाले राजायों के बारे में ही बताता है,परनà¥à¤¤à¥, इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ बनाने में कितने कारीगरों ने अपना खून, पसीना बना कर बहा दिया, उस पर आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯à¤œà¤¨à¤• रूप से चà¥à¤ªà¥à¤ªà¥€ साध लेता है |

किले के चारो तरफ फैली पहाड़ियां, चौकसी बà¥à¤°à¥à¤œ और उन तक जाती सीडियां copy
कहते हैं, 1726 में आमेर पर हमले की सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ में, अपने और अपने परिवार की सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ के लिहाज से, राजा जय सिंह ने अरावली की पहाड़ी पर ही à¤à¤• और किला जयगढ़ बनवाया और उस तक पहà¥à¤à¤šà¤¨à¥‡ के लिये, आमेर के इस किले से à¤à¤• गोपनीय रासà¥à¤¤à¥‡ का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ à¤à¥€ करवाया, जिसे संकट काल के समय पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— किया जा सके, मगर परà¥à¤¯à¤Ÿà¤•ों के लिये इसका पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— वरà¥à¤œà¤¿à¤¤ है | बहरहाल, आमेर का यह दà¥à¤°à¥à¤— विशाल है, और इस पर हिनà¥à¤¦à¥‚ और मà¥à¤—ल आरà¥à¤•िटेकà¥à¤šà¤° की सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ छाप सà¥à¤µà¤¤: ही दृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤—ोचर होती है | विदेशी और देशी सैलानी, यदि चाहें तो उनके लिठइस दà¥à¤°à¥à¤— तक पहà¥à¤à¤šà¤¨à¥‡ के लिà¤, हाथी और ऊà¤à¤Ÿ की सवारी का à¤à¥€ इंतजाम है, और अकà¥à¤¸à¤° ही आपको, इस दà¥à¤°à¥à¤— की तरफ जाते रासà¥à¤¤à¥‡ पर कà¥à¤› विदेशी परà¥à¤¯à¤Ÿà¤• इसका लà¥à¤¤à¥à¤«à¤¼ उठाते à¤à¥€ नज़र आ जायेंगे, लेकिन यदि आप अपनी ही गाड़ी से जा रहें हैं तो इस के पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° तक गाड़ी जा सकती है, और फिर पहाड़ी पर ही पारà¥à¤•िंग है, दà¥à¤°à¥à¤— के विशालकाय गेट से पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ करते ही, आपको टिकट लेनी होगी, यहीं आपको गाइड à¤à¥€ मिल जाते हैं, जो लगà¤à¤— 200 रà¥à¤ªà¥ˆà¤¯à¥‡ में आपके साथ दो-तीन घंटे रहकर आपको उन सà¤à¥€ महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ जगहों को दिखा सकते है जो समà¥à¤à¤µà¤¤à¤ƒ आप से छूट सकती हैं, और यदि ना à¤à¥€ छूटें, तो शायद उस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ का इतिहास और उस दौर में उसकी उपयोगिता, की जानकारी तो सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ गाइड, बेहतर ढंग से उपलबà¥à¤§ करवा ही देता है |
मà¥à¤–à¥à¤¯ पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° से अंदर जाते ही à¤à¤• विशाल, खà¥à¤²à¤¾ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ है, जिसे पार कर आपको मà¥à¤–à¥à¤¯ दà¥à¤°à¥à¤— में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ करना होता है, मà¥à¤–à¥à¤¯ ईमारत के विशाल पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¥‹à¤‚ पर की गयी नकà¥à¤•ाशी बेहद सà¥à¤‚दर है, और उस दौर की विकसित चितà¥à¤°à¤•ला का à¤à¤²à¥€ à¤à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤¿ वà¥à¤¯à¤¾à¤–à¥à¤¯à¤¾à¤¨ करती है | चà¥à¤¨à¤¾à¤‚चे, राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨, à¤à¤• गरà¥à¤® और रेतीला पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ है, और आज की तरह उस दौर में ना तो बिजली थी और ना ही वायॠको अनà¥à¤•ूलित करने वाले यंतà¥à¤°(AC), अत: गरà¥à¤® रेतीली हà¥à¤µà¤¾à¤¯à¥‹à¤‚ और लू के थपेड़ो से बचाव के लिये इन à¤à¤µà¤¨à¥‹à¤‚ में पà¥à¤–à¥à¤¤à¤¾ उपाय किये जाते थे, जिनका अवलोकन आप यहाठà¤à¥€ कर सकते हैं | छतें विशालकाय है, मोटी-मोटी दीवालें जो मौसम की मार से बचाने के अलावा, कà¤à¥€ आकà¥à¤°à¤®à¤£ होने की सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ में दà¥à¤¶à¥à¤®à¤¨ सेना दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾, तोप दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ चलाये गोलों से बचाव का उपाय à¤à¥€ करती थी | सरिये की मदद से आजकल जिस तरह RCC वाली छतें डाली जाती हैं, वह तकनीक उस दौर में नामालूम होने की वजह से मेहराब(arch) बनाये जाते थे, और इस दà¥à¤°à¥à¤— में आपको बहà¥à¤¤ से à¤à¤¸à¥‡ à¤à¤¸à¥‡ विशाल और सà¥à¤‚दर कलाकारी और नकà¥à¤•ाशी से सà¥à¤¸à¤œà¥à¤œà¤¿à¤¤ मेहराब दिखते है, जो वाकई में राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ के कलाकारों को à¤à¤• अलग मà¥à¤•ाम पर पहà¥à¤‚चाते हैं | खमà¥à¤¬à¥‹à¤‚, दीवालों और मेहराबों की मदद से, पतà¥à¤¥à¤°à¥‹à¤‚ की छोटी-छोटी टà¥à¤•ड़ियों से टिकी विशाल छतें, आज à¤à¥€ सर उठा कर उस दौर की उनà¥à¤¨à¤¤ वासà¥à¤¤à¥ कला की गवाही à¤à¤°à¤¤à¥€ हैं |

किले में सेना के लिये बनी वो पटरी, जिसका पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— ‘जोधा-अकबर’ में हो चूका है
यदि रेत के तूफ़ान आपका जीना मà¥à¤¶à¥à¤•िल करते हैं तो, इस दà¥à¤°à¥à¤— के चारो तरफ फैली पहाड़ियां और उन पर कà¥à¤›-कà¥à¤› छितरी हà¥à¤¯à¥€ हरियाली à¤à¥€ है, और फिर à¤à¤¸à¥‡ ही पà¥à¤°à¤¾à¤•ृतिक संसाधनों से छन कर यदि तन को ठंडक देने वाली निरà¥à¤®à¤² हवा आती है, तो उस से कोई राजा à¤à¤²à¤¾ अपनी रानियों को कैसे महरूम कर सकता था, अत: उनके लिये दीवालों में जगह-जगह जालीदार à¤à¤°à¥‹à¤–े बनाये गये है, जिनके सामने खड़े होकर वो ना केवल शांत और शीतल हवा का आनंद ले सकती थी, अपितॠवहीं से वो इस दà¥à¤°à¥à¤— के बाहर फैली दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ को à¤à¥€ देख सकती थी | ये à¤à¤°à¥‹à¤–े ही शायद, उनके लिये बाहरी दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ से सà¤à¤µà¤¾à¤¦ का à¤à¤•मातà¥à¤° परà¥à¤¯à¤¾à¤¯ à¤à¥€ होते होंगे, कà¥à¤¯à¥‚ंकि उतà¥à¤¤à¤° à¤à¤¾à¤°à¤¤ के सामनà¥à¤¤à¤µà¤¾à¤¦à¥€ और रूढ़ीवादी समाज में उनके लिये इससे जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ सà¥à¤µà¤¤à¤¨à¥à¤¤à¥à¤°à¤¤à¤¾ की अपेकà¥à¤·à¤¾ करना बेमानी था | इनà¥à¤¹à¥€ à¤à¤°à¥‹à¤–ों से आप इस बागीचे को à¤à¥€ देख सकते हैं, जिसे मà¥à¤—ल गारà¥à¤¡à¤¨ तथा केसर कà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥€ के नाम से जाना जाता है, और जब यह  बरसात के मौसम में, पूरी तरह से हरा-à¤à¤°à¤¾ होता होगा तो इस जलाशय में तैरते हà¥à¤¯à¥‡ किसी गलीचे का à¤à¤¹à¤¸à¤¾à¤¸ करवाता होगा | इसके समीप में बनी पटरी का फिलà¥à¤®à¤¾à¤‚कन जोधा अकबर में हो चà¥à¤•ा है |

केसर बगीचा, जो मानसून में पानी में तैरते गलीचे का à¤à¥à¤°à¤® देता है
इसी दà¥à¤°à¥à¤— के à¤à¥€à¤¤à¤°, सà¥à¤¹à¤¾à¤— मनà¥à¤¦à¤¿à¤° है, जहाठरानियाà¤, राजा को यà¥à¤¦à¥à¤§ में जाते समय, अथवा वापिस लौट कर आते समय, उसकी आरती उतार कर सà¥à¤µà¤¾à¤—त करतीं थी, और उनकी विजय की कामना करती थी | दà¥à¤°à¥à¤— में घà¥à¤®à¤¤à¥‡ हà¥à¤¯à¥‡ आपको कई जगहों पर छतरियां और बावड़ियाठà¤à¥€ दिख जाती हैं, जो निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ तौर पर इसकी à¤à¤µà¥à¤¯à¤¤à¤¾ को और अधिक बढ़ाती हैं, वैसे यह पूरा दà¥à¤°à¥à¤— वासà¥à¤¤à¥ के हिसाब से बनाया गया है, और इसी वजह से इसका मà¥à¤–à¥à¤¯ पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° पूरब दिशा की तरफ है | इस महल के à¤à¥€à¤¤à¤° पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ करते ही, दायीं तरफ शिला देवी मनà¥à¤¦à¤¿à¤° है, जिसमें सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ देवी को इस राजघराने की कà¥à¤² देवी माना जाता है | कहते हैं, कà¥à¤› समय पहले तक इसी मनà¥à¤¦à¤¿à¤° से बकरों की बली देने के साथ ही नवरातà¥à¤°à¥‹à¤‚ की शà¥à¤°à¥à¤†à¤¤ होती थी | इसके आलावा, दीवाने-आम और दीवाने-ख़ास, कà¤à¥€ राजा की कचहरी और दरबारियों से मनà¥à¤¤à¥à¤°à¤£à¤¾ के केंदà¥à¤° रहे होंगे |
इसी दà¥à¤°à¥à¤— में यह, वह सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ है, यहाठराजा के लिà¤, गीत, संगीत और नृतà¥à¤¯ की महफ़िल सजती थी, इसी से आगे चलते हà¥à¤¯à¥‡ आपको शीश महल दिखेगा, जो वासà¥à¤¤à¤µ में ही अनà¥à¤ªà¤® है, हमारे गाइड ने बताया कि राजा ने इसके लिये बेलà¥à¤²à¥à¤œà¤¿à¤¯à¤® से कांच और कारीगर मà¤à¤—वाà¤, जिससे इस अदà¤à¥à¤¤ à¤à¤µà¤¨ का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ हà¥à¤†Â | कहते हैं, यदि रात के समय इस हाल में केवल à¤à¤• मोमबतà¥à¤¤à¥€ जला दी जाये, तो उसका पà¥à¤°à¤¿à¤¤à¤¿à¤¬à¤¿à¤®à¥à¤¬ इस अनगिनत कांच के टà¥à¤•ड़ों से परावरà¥à¤¤à¤¿à¤¤ हो कर इस हाल को अदà¤à¥à¤¤ रूप से जगमगा देता था | मगर आज आप इसकी सिरà¥à¤« कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾ à¤à¤° ही कर सकते हैं कà¥à¤¯à¥‚ंकि शाम के बाद इस किले को आम जनता के लिये बंद कर दिया जाता है | हिंदी सिनेमा की कालजयी फ़िलà¥à¤® मà¥à¤—ले आज़म का वह गीत तो आपने देखा ही होगा, “जब पà¥à¤¯à¤¾à¤° किया तो डरना कà¥à¤¯à¤¾….â€, कहते हैं, इस गीत के फिलà¥à¤®à¤¾à¤‚कन में शीशों के पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— का विचार, इसके निरà¥à¤®à¤¾à¤¤à¤¾, आसिफ साहब को यहीं से मिला था और फिर इसी महल की तरà¥à¤œà¤¼ पर बंबई में à¤à¤¸à¤¾ ही à¤à¤• सेट बनवा कर ये गीत फिलà¥à¤®à¤¾à¤¯à¤¾ गया, जो इस अदà¤à¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— की वजह से आज à¤à¥€ अविसà¥à¤®à¤°à¤£à¥€à¤¯ है, गाइड का फायदा आपको तब समठमें आता है वह आपको शीश महल में à¤à¤• à¤à¤¸à¥‡ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर खड़ा करता है, कि वहाठसे आपका पà¥à¤°à¤¿à¤¤à¤¿à¤¬à¤¿à¤®à¥à¤¬ परिवरà¥à¤¤à¤¿à¤¤ होकर दीवाल पर लगे à¤à¤• खास आईने में दीखता है और फिर कैमरे की मदद से खींचा गया वो चितà¥à¤° à¤à¤• फोटो फà¥à¤°à¥‡à¤® में जड़ा नज़र आता है जिस पर फà¥à¤²à¥‡à¤¶ का à¤à¥€ कोई पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ नही होता, ये उस दौर की वासà¥à¤¤à¥ कला का à¤à¤• बेà¤à¥‹à¤¡à¤¼ नमूना है |

काà¤à¤š के टà¥à¤•ड़ों से बनी शीश महल की छत और दीवालें

राजा के मनोरंजन के हेतà¥, नृतà¥à¤¯-संगीत के लिये बना रंग महल

सà¥à¤¹à¤¾à¤— मनà¥à¤¦à¤¿à¤° के समीप, à¤à¤• फ़ोटो सपरिवार, मय गाइड महोदय के साथ

शीश महल में खींची गयी à¤à¤• तसà¥à¤µà¥€à¤°, बà¥à¤²à¤° इसे हमने सà¥à¤µà¤¯à¤® किया है
यदि आपने, मà¥à¤—ले आजम अथवा अकबर जोधा जैसी फिलà¥à¤®à¥‡ देखी हों तो ये जरूर महसूस किया होगा कि उस दौर में रानियों को कितना हार-शà¥à¤°à¥ƒà¤‚गार अपने जिसà¥à¤® पर करना पड़ता था, वो à¤à¤¾à¤°à¥€ à¤à¤°à¤•म परिधान और ऊपर से कई किलो तक वजनी गहने, हो सकता है, आज की औरतें ये देख कà¥à¤› ईरà¥à¤·à¥à¤¯à¤¾à¤²à¥ à¤à¥€ हो जाती हों, मगर यकीन मानिये, अपने शरीर पर इतने अतिरिकà¥à¤¤ वजन को लाद कर रखना असाधà¥à¤¯ कारà¥à¤¯ ही होता था, और इसकी गवाह यह कà¥à¤°à¥à¤¸à¥€ है, जिसमे रानी को बैठा कर लाया जाता था, कà¥à¤¯à¥‚ंकि इतने à¤à¤¾à¤°à¥€-à¤à¤°à¤•म शà¥à¤°à¥ƒà¤‚गार के बाद सà¥à¤µà¤¯à¤® चल पाना, उन नाजà¥à¤• शरीर रानियों के लिठसरà¥à¤µà¤¥à¤¾ असमà¥à¤à¤µ था |

रानियों की पालकी, जिसमे उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ बैठा कर लाया जाता था
राजा लोग तो अपना अधिकाà¤à¤¶ समय यà¥à¤¦à¥à¤§à¥‹à¤‚ में और यदि यà¥à¤¦à¥à¤§ ना हो तो शिकार में ही वà¥à¤¯à¤¤à¥€à¤¤ कर देते थे, और फिर उनके मनोरंजन के लिये अनà¥à¤¯ कई पà¥à¤°à¤•ार के दूसरे साधन à¤à¥€ मौजूद होते थे, पर रानियों का कà¥à¤¯à¤¾? तो उनके लिठमहल के इस हिसà¥à¤¸à¥‡ में यह खास वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ की गयी थी कि बरसात के मौसम में छत का पानी पाईपों से गà¥à¤œà¤°à¤•र, रानियों के कमरों से बाहर बहती नालियों से होता हà¥à¤† कà¥à¤› इस पà¥à¤°à¤•ार से गà¥à¤œà¤°à¤¤à¤¾ था की जब रानी छत की हà¥à¤• से अटके, à¤à¥‚ले पर à¤à¥‚लती थी तो उसके पाà¤à¤µ इस नाली में बहते पानी को छूकर गà¥à¤œà¤°à¤¤à¥‡ थे, और समà¥à¤à¤µà¤¤à¤ƒ ही इस गरà¥à¤® रेगिसà¥à¤¤à¤¾à¤¨à¥€ पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ में à¤à¤¸à¥€ सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾, उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ राजा के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ कृतजà¥à¤žà¤¤à¤¾ और सà¥à¤¨à¤¿à¤—à¥à¤§à¤¤à¤¾ के à¤à¤¾à¤µ से à¤à¤° देती होगी, कà¥à¤¯à¥‚ंकि गाइड के मà¥à¤– से ये वरà¥à¤£à¤¨ सà¥à¤¨à¤¤à¥‡ ही आस-पास खड़ी औरतों के मà¥à¤– से निकले इसकी ही चà¥à¤—ली करते थे, Wow!!! Great innovation !!!
उस दौर में जब राजायों के लिये शादियों का अरà¥à¤¥ केवल पारिवारिक अथवा à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤• जà¥à¤¡à¤¼à¤¾à¤µ नही होता था, और राजा के लिये शादी केवल अपना राजà¥à¤¯ बचाने के लिये à¤à¤• संधि à¤à¤° तथा अपनी हैसियत जाहिर करने का à¤à¤• जरिया à¤à¤° होती थी या फिर कà¤à¥€ अपनी सतà¥à¤¤à¤¾ का à¤à¤¸à¤¾ दà¥à¤°à¥à¤ªà¤¯à¥‹à¤—, जिसके लिये, किसी à¤à¥€ à¤à¤¸à¥€ लडकी को जबरदसà¥à¤¤à¥€ रानी बना राजा के हरम में पहà¥à¤‚चा दिया जाता था, जो राजा के मन को à¤à¤¾ जाये, तो à¤à¤¸à¥‡ में à¤à¤• राजा और उसकी अनेक रानियों के परसà¥à¤ªà¤° समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§ कैसे होते होंगे, इसका पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¤•à¥à¤· सà¥à¤µà¤°à¥‚प आप इसी दà¥à¤°à¥à¤— के उस à¤à¤¾à¤— में, जिसे सà¥à¤– निवास के नाम से जाना जाता हैं, में देख सकते हो, जहाठराजा और रानियों के कमरे बने हैं
अपने गाइड को धनà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦ देते हà¥à¤¯à¥‡, और निहायत ही तंग सीढ़ियों को पार कर, जिसे अधिकतर परà¥à¤¯à¤Ÿà¤• अनजाने में नजरअंदाज ही कर जाते हैं, हम इस आमेर के किले के उस à¤à¤¾à¤— में पहà¥à¤‚चे यहाठराजा और रानियों के शयनककà¥à¤· बने हà¥à¤¯à¥‡ हैं | गरà¥à¤®à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के मौसम में कमरों को ठंडा रखने के लिये, यहाठपानी को नालियों और पाइपों के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ गà¥à¤œà¤¾à¤°à¤¾ जाता था जिस से कमरों में ठंडक रह सकें, शायद à¤à¤¸à¥‡ ही कà¥à¤› मौलिक पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— कालानà¥à¤¤à¤° में कूलर के निरà¥à¤®à¤¾à¤£ के पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤• रहे होंगे ! राजा और रानियों के रहने की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ आपको उस दौर के राजशाही समाज में पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ पितृसतà¥à¤¤à¤¾, और सामनà¥à¤¤à¤µà¤¾à¤¦à¥€ सोच,और सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की दयनीय अवसà¥à¤¥à¤¾ का à¤à¤¹à¤¸à¤¾à¤¸ ही करवायेगी, à¤à¤²à¥‡ ही वो कोई साधारण सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ हो अथवा कोई रानी !, ( इस टिपà¥à¤ªà¤£à¥€ के लिये शà¥à¤°à¥€ निरदेश सिंह जी से कà¥à¤·à¤®à¤¾ याचना सहित!), अपने सà¥à¤¨à¤¹à¤°à¥€ अतीत में राजा का शयनककà¥à¤·, सबसे à¤à¤•ांत में और सबसे à¤à¤µà¥à¤¯ अवशà¥à¤¯ ही रहा होगा, हालांकि अब तो केवल दरो दीवारें ही अवशेष के रूप में हैं, जिन पर कबूतरों और चमगादड़ों ने अपने रैन-बसेरे बसा लिये हैं, छोटे ककà¥à¤· रानियों के लिये हैं, और पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• रानी के ककà¥à¤· का सीधा समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§ à¤à¤• à¤à¤¸à¥‡ रासà¥à¤¤à¥‡ से जà¥à¤¡à¤¼à¤¾ हà¥à¤¯à¤¾ है, जिसका à¤à¤• सिरा राजा के ककà¥à¤· से जà¥à¤¡à¤¼à¤¤à¤¾ है, और इस रासà¥à¤¤à¥‡ का उपयोग केवल राजा ही कर सकता था | राजा, किस रात को, किस रानी के साथ गà¥à¤œà¤¾à¤°à¤¨à¤¾ चाहता है, इसके लिये वो उस रासà¥à¤¤à¥‡ का उपयोग कर सीधा उस रानी के ककà¥à¤· में पहà¥à¤à¤š जाता था और बाकी किसी रानी को कानो-कान खबर à¤à¥€ नही होती थी ! हाà¤, मगर पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• रानी के लिये यह निहायत ही जरूरी था कि वो पूरे हार-शà¥à¤°à¥ƒà¤‚गार के साथ तैयार हो राजा का इंतज़ार करती रहें, पता नही किस रात राजा की कृपा दृषà¥à¤Ÿà¤¿ उन पर à¤à¥€ पड़ जाये |
यहीं आपको उस दौर के शाही गà¥à¤¸à¤²à¤–ाने à¤à¥€ दिख जाते हैं, जो शायद, जब आबाद रहे होंगे तो जाने कितनो की जà¥à¤—à¥à¤ªà¥à¤¸à¤¾ और आकरà¥à¤·à¤£ का केंदà¥à¤° होते होंगे, रानियों और राजकà¥à¤®à¤¾à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के हार-शà¥à¤°à¥ƒà¤‚गार और उन के सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ ककà¥à¤·à¥‹à¤‚ से जà¥à¤¡à¤¼à¥‡ तमाम किसà¥à¤¸à¥‡, आज à¤à¥€ दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ à¤à¤° में, बहà¥à¤¤ चटखारे ले कर पड़े और सà¥à¤¨à¥‡ जाते हैं, मगर आज, आमेर में ये उजाड़ पड़े हैं और आराम से कà¥à¤› à¤à¥€ खाते-पीते आप वहाठविचरण कर सकते है और जैसे चाहे, उस अवसà¥à¤¥à¤¾ में, इन सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ का फोटो à¤à¥€ खींच सकते हैं |
अब यहाठसे निकल यदि आप इस महल के निचले तल पर आयें तो राजा और उसकी रानियों के विचार विमरà¥à¤¶ करने के लिये ये छतरी बनी हà¥à¤¯à¥€ है, जिसमे राजा के चारो तरफ बैठने वाली रानियों का सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ नियत होता था, जिसे बारादरी कहते हैं | बारादरी, नाम समà¥à¤à¤µà¤¤: राजा की बारह रानियों की संखà¥à¤¯à¤¾ को निरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ करता होगा | इसी के बगल में कà¥à¤› और à¤à¤¸à¥‡ ढरबे नà¥à¤®à¤¾ कमरे से बने हà¥à¤¯à¥‡ हैं, जिनमे दासियाठरहती होंगी अथवा राज महल के अनà¥à¤¯ सेवक और परिचारिकाà¤à¤ !
राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ परà¥à¤¯à¤Ÿà¤¨ विà¤à¤¾à¤— की तरफ से यहाठआपको सपेरे, शहनाई वादक और सारंगी वादक बजाने वाले, कई लोक कलाकार अपनी कला का पà¥à¤°à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨ करते à¤à¥€ मिल जायेंगे, हालांकि पहली नज़र में आपको à¤à¤¸à¤¾ लग सकता है, कि यह सब परà¥à¤¯à¤Ÿà¤•ों के मनोरंजन और उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ आकरà¥à¤·à¤¿à¤¤ करने के लिये है, और इस से राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ की संसà¥à¤•ृति à¤à¤²à¤•ती है, लेकिन यदि आप जरा गौर से सोचें तो आपको इसके पीछे की सोच और मानसिकता पर हैरानी ही होगी | मेरी अपनी समठसे, इस सबका कà¥à¤² मनोरथ यहाठआने वाले उन यूरोपियन परà¥à¤¯à¤Ÿà¤•ों के दिलों में बसी हिनà¥à¤¦à¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨ की उस छवि को पà¥à¤–à¥à¤¤à¤¾ à¤à¤° करने से जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ और कà¥à¤› नही है, जिसके वशीà¤à¥‚त वो आज à¤à¥€ हिनà¥à¤¦à¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨ को सपेरों, जादूगरों और मदारियों का देश ही समà¤à¤¤à¥‡ हैं, उनकी इन मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤¯à¥‹à¤‚ और पूरà¥à¤µà¤¾à¤—à¥à¤°à¤¹à¥‹à¤‚ को सच साबित करने के लिये ही, à¤à¤¸à¥‡ कलाकार यहाठबैठाये जाते हैं, जिनके साथ आप फोटो खिचà¤à¤µà¤¾ कर जब वापिस अपने देश पहà¥à¤à¤šà¤¤à¥‡ हैं तो वहाठके समाज को à¤à¤¸à¥‡ चितà¥à¤° दिखा कर साबित कर सकते हैं कि वासà¥à¤¤à¤µ में ही à¤à¤¾à¤°à¤¤ आज à¤à¥€ उस दौर में ही है, जैसा कà¤à¥€ हमारे पूरà¥à¤µà¤œ छोड़ कर आये थे ! इन सबके अलावा, इस दà¥à¤°à¥à¤— में ही अलग-अलग दिशायों में खà¥à¤²à¤¨à¥‡ वाले पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¥‹à¤‚ में से तà¥à¤°à¤¿à¤ªà¥‹à¤²à¤¿à¤¯à¤¾ दरवाज़ा सबसे जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ है, कà¥à¤¯à¥‚ंकि यहाठसे तीन जगहों के लिये रासà¥à¤¤à¤¾ निकलता है, जिनमे से à¤à¤• रासà¥à¤¤à¤¾ आमेर शहर की तरफ à¤à¥€ है |

आमेर दà¥à¤°à¥à¤— में परà¥à¤¯à¤Ÿà¤¨ विà¤à¤¾à¤— दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ बैठाये गये परमà¥à¤ªà¤°à¤¾à¤—त à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ पहचान के पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•
कà¤à¥€ इस महल के à¤à¥€à¤¤à¤° रहने वाले लोगों के लिये, उनकी दैन-दिनी आवशà¥à¤¯à¤•तायों की पूरà¥à¤¤à¥€ हेतà¥, इसी दà¥à¤°à¥à¤— के à¤à¥€à¤¤à¤° ही छोटा-मोटा सा बाजार à¤à¥€ लगता होगा, जिसका पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤°à¥‚प आप इस फ़ोटो में पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¤•à¥à¤· अनà¥à¤à¤µ कर सकते हैं | इस बाज़ार को आज मीना बाज़ार का नाम दिया गया है, और इसमें बिकने वाली वसà¥à¤¤à¥à¤¯à¥‹à¤‚ में हसà¥à¤¤à¤¶à¤¿à¤²à¥à¤ª की वसà¥à¤¤à¥à¤“ं के आलावा, रंग-बिरंगे पतà¥à¤¥à¤°à¥‹à¤‚ तथा मोतियों से बनी उन चीज़ों की बहà¥à¤¤à¤¾à¤¯à¤¤ है, जिनके लिये, वाकई राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ अपना à¤à¤• अलग सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ रखता है, और सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ वरà¥à¤— में उनकी à¤à¤¾à¤°à¥€ मांग है | समीप ही à¤à¤• रेसà¥à¤Ÿà¥‹à¤°à¥‡à¤¨à¥à¤Ÿ à¤à¥€ है, और यदि इतना घूम फिर कर आप थक गयें हों तो कà¥à¤› पल यहाठरà¥à¤• कर विशà¥à¤°à¤¾à¤® कर खा-पी à¤à¥€ सकते हैं |

महिला वरà¥à¤— के लिये आमेर दà¥à¤°à¥à¤— का सबसे आकरà¥à¤·à¤¿à¤¤ सà¥à¤¥à¤², मीना बाज़ार
आमेर के इस किले के समीप ही बसा हà¥à¤† आमेर का वो शहर है, जो आपको वासà¥à¤¤à¤µà¤¿à¤• और पारमà¥à¤ªà¤°à¤¿à¤• राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ को समà¤à¤¨à¥‡ में समà¥à¤à¤µà¤¤à¤¾ इस किले से अधिक मददगार हो सकता है, कà¥à¤¯à¥‚ंकि ये आपको आम राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€ समाज से जोड़ता है, और आपको ये समà¤à¤¾ सकता है कि राजायों और रजवाड़ों के उस दौर में आम जन किस पà¥à¤°à¤•ार से अपना जीवन वà¥à¤¯à¤¤à¥€à¤¤ करता होगा | उसके घर, उसकी हवेलियाà¤, उसका रहन सहन, खान-पान, पूजा के सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ तथा बाज़ार इतà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿ आपकी जानकारी में आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯à¤œà¤¨à¤• रूप से काफी वृदà¥à¤§à¤¿ कर सकते है | और कहते हैं कि आमेर को घूमना अपने आप में à¤à¤• अनूठा अनà¥à¤à¤µ है, परनà¥à¤¤à¥ समयाà¤à¤¾à¤µ के कारण हमे इस दफ़ा तो इसके à¤à¥à¤°à¤®à¤£ का मौका नही मिल पाया, लेकिन इस आशा के साथ कि कà¤à¥€ निकट à¤à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯ में इस कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° की कोई à¤à¤¸à¥€ यातà¥à¤°à¤¾ करेंगे, जो आपको राजघरानो के पारिवारिक, वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ और इतिहास में ना ले जाकर, आम जन के करीब ले जाये और आप उन के माधà¥à¤¯à¤® से किसी शहर को जाने, हम यहाठसे निकलते है | कà¥à¤² मिलाकर, आमेर का यह किला आपको निराश नही करता और निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ ही राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ वासी अपनी इस धरोहर पर गरà¥à¤µ कर सकते हैं |
जयपà¥à¤° की तरफ वापिसी के रासà¥à¤¤à¥‡ में ही जल महल à¤à¥€ आता है, लेकिन, हवा महल की ही तरह से यह à¤à¥€ परà¥à¤¯à¤Ÿà¤•ों को उतना पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ नही कर पाता, कम से कम हमने तो कà¥à¤› à¤à¤¸à¤¾ ही महसूस किया, कà¥à¤¯à¥‚ंकि हम जितना समय यहाठरà¥à¤•े, हमने अपने आलावा और किसी परà¥à¤¯à¤Ÿà¤• (देशी/विदेशी/सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯) को इस खूबसूरत महल को देखते नही देखा | इसकी तरफ, परà¥à¤¯à¤Ÿà¤•ों का à¤à¤¸à¤¾ उपेकà¥à¤·à¤¾ पूरà¥à¤£ रवैया, शायद सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ लोग ही बेहतर बता सकें | हालाà¤à¤•ि, निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ तौर पर मानसरोवर à¤à¥€à¤² में बना ये महल और उसके आस पास का सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ दिलक़श है | बीच à¤à¥€à¤² में पानी में डूबा ये महल आपको सहसा ही डल à¤à¥€à¤² में तैरते किसी शिकारे की याद दिला देता है | इसका निचला तल तो पूरà¥à¤£ रूप से इस à¤à¥€à¤² में डूबा हà¥à¤¯à¤¾ है और यहाठतक पहà¥à¤à¤šà¤¨à¥‡ के लिये आपको क़िशà¥à¤¤à¥€ पर बैठकर जाना पड़ता है | मगर, उस समय हमें à¤à¤¸à¥€ कोई वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ à¤à¥€ नज़र नही आई और सड़क किनारे से ही इसका अवलोकन कर हमने संतोष महसूस कर लिया |
दोपहर ढल चà¥à¤•ी है, और आज शाम की ही अज़मेर शताबà¥à¤¦à¥€ से हमारी वापिसी नियत है, विदा के समय, मन में जो à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¤à¤‚ उमड़ती हैं, उनका सारांश, अमीर खà¥à¤¸à¤°à¥‹ ने कà¥à¤› इस पà¥à¤°à¤•ार से किया है –
“गोरी सोये सेज पे, मà¥à¤– पर डारे केस |
चल खà¥à¤¸à¤°à¥‹ घर आपणे, सांठà¤à¤ˆ चहà¥à¤ देस ||â€
अंततः यही निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ होता है कि अब शहर की तरफ ही पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤¨ किया जाये, जो कà¥à¤› खाना-पीना और खरीदारी का काम है, वहीं करते हà¥à¤¯à¥‡, अपने अज़ीज, सोमेश को सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ पर ही उसकी कार à¤à¥€ सपà¥à¤°à¥à¤¦ कर दी जाये |
इस आलेख के साथ ही मैं अपनी राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ की इस यातà¥à¤°à¤¾ को यहीं पर रोक अपनी कलम को विराम देना चाहूà¤à¤—ा और उन सब का तहेदिल से शà¥à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾, जिनका सà¥à¤¨à¥‡à¤¹ और आशीरà¥à¤µà¤¾à¤¦ इन आलेखों पर मिलता रहा, और बहà¥à¤¤ ही जलà¥à¤¦ आपके साथ किसी और जगह की यादें लेकर हाज़िर होता हूअ.. धनà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦!!!










Beautifully narrated !
Thanks for refreshing our memories.
Thanx Mahesh Ji
For all the appreciation you bestowed on my posts. really thanx for this.
Although I am anxiously awaiting your post, for which you did make promise at fb.
Dear Sir
If you give me detail of fare and how we can save Money By Travelling as far as your photograph is good ,beautifully narrated
Dear s.s.Kushwaha ji
The charges of Double Decker, which we took from Gurgaon is around Rs. 400/- per person, and for Azmer shatabdi, you can add their catering charges also.
For this I like you to visit the site of Indian Railway for up-to-date information, for the choice of train you like to take.
As for as budget travelling is concerned, it is totally up to you, as no one can guide you, what to eat, shop or where to stay.
hope this will help you… Gud luck for travelling and thanx for commenting…..
अवतार सिंह जी
आपने बहुत ही खूबसूरती से आमेर का किला और उसका इतिहास पाठको को परोसा है। जयपुर जाना कई बार हुआ परन्तु किला घूमने नहीं गया। हाँ आपके इस लेख को पढ़ कर लगता है कि अगली बार जब भी जाना हुआ तो जरुर जायेंगे।
यही तो एक लेखक के लेख का आकर्षण होता है कि पाठक उसके शब्दो से बंधा चला जाता है।
खुसरो दरिया प्रेम का, उल्टी वा की धार।
जो उतरा सो डूब गया, जो डूबा सो पार॥
Hi Kamlansh ji
Many thanx for your comment.
आपका ग्वालियर का यात्रा वृतांत जब आया, उसी समय में मैं इस पोस्ट को लिख रहा था, और यकीन मानिये उसे पड़कर. मुझे पहली बार ये ईर्ष्या महसूस हुयी कि इसे मैंने क्यूँ नही लिखा ?
सर, आपने खुसरो का एक बेहतरीन दोहा लिखा है, उसके लिये बहुत धन्यवाद |
सोना-लेने पीऊ गए, सूना कर गये देस!
सोना मिला न पीऊ फिरे, रूपा हो गये केस!!
Avtar ji,
After performing the most important duty of casting vote today, I stuck to your intoxicating narration about Jaipur, Pushkar & Ajmer. Hats off man! What a style. Its great to see your intricacies more than the sculpted ones in the forts. Wow! what to say about the captions on the photos. Great learning, I wish I could reach little closer to your excellent skill of narrating. Copying you Sir! keep awaited to see a copy cat narration style in my future logs. Hope you wont mind Master!
Regards
Ajay
Hi Ajay ji
First of all to congratulate for casting your vote. By doing this, you proved your trust in the democracy, which is still the best way to govern in spite of its many flaws.
Now, come to the business…. thank you very much Ajay ji, for all your nice words.
These gestures really matters for a writer to inspire himself for writing more.
Your travel log on Kumaon is selected as the featured story for the month, in spite of that if you praise some one else, then it shows your humbleness.
Thanx and keep travelling….
बहुत ही रोचक व मनभावन विवरण है ये अवतारजी. केसरबाग तो बहुत ही मनमोहक है.. आपकी आध्यात्मिक सोच इस लेख से नदारद लगी… लगता है मुकेसभाई से डर गये. पर फिर भी रानियों की लज्जाजनक दशा की चुगली कर ही दी आपके लेख ने.. .. पर मुगल प्रभाव व उनके द्वारा भारतीय महिलाओं के शीलहरण के डर से शायद महिलाओं पर बंदिशे लगा दी गयी होंगी।
जल-महल का चित्र भी बहुत सुंदर है.. एक पुरानी फिल्म थी जल-महल लगता है उसकी शूटिंग यहीं हुई थी. आपका ये कहना भी काफी हद तक ठीक है कि विदेशी अभी भी हमें सपेरों का देश ही समझते है व य़हां की तरक्की उन्हे भाती नही. एक अरब देश में एक पढ़े-लिखे अफसर ने मुझे पूछा था – क्या तुम्हारे यहां कार होती हैं ?? मोबाइल होता है ??
कुल मिलाकर बहुत बढ़िया लेख… व यदा कदा लिखते रहिये
Hi SS सर,
बहुत धन्यवाद आपकी टीप के लिये | क्या टाँग खींचते हैं, सर आप …. वो कत्ल भी करते हैं और हाथ में खंजर भी नही….
सर, एक राजस्थानी राजा का दुर्ग और उसमे रहने के किये महल है अम्बर फोर्ट, अब इस पर तंज़ तो कसा जा सकता है पर उस पर आद्यात्मिकता, जबरदस्ती थोपने जैसा लगता… आध्यात्मिकता तो अपने आप में आपके भीतर कहीं आपके अंत:मन में होती ही है, बस उसे आप पर कहीं थोपा हुआ सा नही होना चाहिये ….. ऐसा मेरा सोचना है | मुकेस भाई का सही जिक्र किया आपने, वो तो सबके अज़ीज हैं | किसी भी पोस्ट पर अपनी असहमति जताने का सबको अधिकार होना ही चाहिये |
आज भी भारतीयों के बारे में काफी लोगों का perception पुराना ही है , मगर इसमें काफी हद तक दोष हमारी अपनी मार्केटिंग का भी है कि हम उन्हें बेचना क्या चाहते हैं, बस इसी नजरिये का ही अंतर है | मुझे भी कभी किसी ने कुछ ऐसा ही किस्सा सुनाया था, जब उस से किसी ने पुछा था कि क्या आपके यहाँ लोग आज भी हाथी पर बैठ कर काम पर जाते हैं?
Thanx for all the होंसला-अफजाई !
वैसे SS सर , जल्दी ही आप एक पोस्ट और देखेंगे जिसमे इधर-उधर की और बकलोली के अलावा आपको एक सूफी दरवेश हजरत साबिर पाक कलियर की खानकाह भी लिये चलेंगे… उम्मीद करता हूँ आप की अपेक्षाओं तक पहुँच सकूं …. सादर
मेरे प्यारे सिंह… ये बताने की तो तुम्हे आवश्यकता ही नहीं कि आध्यात्म की धारा तो कहीं भी कभी भी फूट पड़ती है…एक महापुरुष की सुनाई बात याद आ गई… कि कैसे एक वृद्ध घूम फिर कर घर पहुंचे तो उनकी पोती बोली – दादाजी काफी देर नहीं कर दी आपने… और व सज्जन ये सुन कर अचानक सोच में पड़ गये कि वाकई बहुत देर कर दी…अब तो ये मोह छोड़ कर भगवान का सोचना चाहिये… साधारण से वाक्य से आध्यात्म जाग उठा ….और उसी क्षण सन्यासी हो गये।
टांग खींचना मेरा व्यसन नही… अनुज मुकेस का जिक्र तो इसलिये किया कि उनकी याद आ रही थी… पुराने मित्र हैं…उनके बिना दिल नही लगता
असहमति जताना, गलतियां निकालना जरुरी है…ये हमें पूर्णत्व की ओर ले जाती हैं….पर ये बात कुछ लोग समझ नही पाते व गलतियां निकालने वाले को विरोधी समझने लगते है… सुखद ये है कि आप इस अवगुण से दूर हैं….
@ Nandan – Yes this post has got many comments… … Why ???
खुसरो पाती प्रेम की बिरला बांचे कोय!
वेद, कुरआन, पोथी पढ़े, प्रेम बिना का होय!!
(इस से पहले कि संपादक फिर से कवियों को चुन-2 के मारे…मैं भागता हूं)
SS सर, आपका यूँ खरी-खरी, इतनी आसानी से बयाँ कर जाना ही आप का मुरीद बना देता है… कहने को शब्द नही… speechless.
आपकी ख़िदमत में मुझ नाचीज़ की तरफ से खुसरो का एक दोहा-
खुसरो सरीर सराय है, क्यूँ सोचे सुख चैन।
कूच नगारा साँस का, बाजत है दिन रैन ।।
Avtar Singh ji,
Only last night Nandan and I were talkng about your poetic touch in your writings. The very title of your post talks a volumes about your proficiency in poetry.
The post is a class in itself, besides being extremely informative. Some of the pictures are simply scintlallating.
Would look forward to your next write up.
Oh My God…
Nandan Jha and Ram Dhall were talking on my writing….. unbelievable
Ram sir is writing himself for me ! another Amazing surprise …
Oh Heaven… whats next in your store!!!
Ram Sir, at first I read your post on Sikkim and at once became your follower for the sake of learning the art about, how to narrate a travel log. Such was theimpact of magic spell of your writing! Later, your interview with Archana, provided precious information about you as a human being.
And now getting appreciation from you… No words to explain… can only say… thank you, sir!!!
Thank you Mr. Singh for helping us better understand the difference between Amer and Amber. I must have been to Jaipur many many times and would have visited Amer-Fort few times and every time I would wonder on why people called it ‘Amer’ where-as it is written as Amber everywhere.
The ‘Sheesh Mahal’ has gone for some big time restoration and the sacrifice has been stopped, probably 20 years back. You have detailed it out beautifully. Closer to the fort, there is a also a shop-cum-exhibtion centre where they show you the art of block-printing. One can also avail an elephant-ride to climb up the rocky-path to fort entrance.
All in all, a great log. It is also very heartening to see a sea of comments, which we have been missing for last few weeks. :-)
Hi Nandan
Thanx for finding time on an election day to post your comment.
Yes, you are right about the block printing. That place is not just a shop, in fact it is a big show room run by a co-operative society and one can find each and every thing for which Rajasthan is famous for. Rates are fixed and competitive, but quality is a big issue.
We went there, spent a few thousand bucks and were happy for avoiding all the hue and cry over prices in the open market but back home, after using the things, we realized our mistake.
After all, a market is a market, nothing can their place!
Thanx for all the nice words…
Very Nice and detailed and beautiful pictures. I have never visited Jaipur, but can see it from your post. Thanks.
Hi Upanshu ji
First of all, please accept my heart full greetings for becoming the featured author for December. It will be an opportunity for me to know about you.
I wish, when ever you get enough time, visit Jaipur. Rajasthaan itself is a tourist friendly state and Jaipur is not an exception.
Avatar Ji very nice and informative post typically in Avataresque style.
Hi Rakesh Bawa ji
You coined a new word… Avataresque ! Amazing blend indeed!!!
Why shouldn’t it be patented….. LOL
Thanx
Hi Avtarji,
the description is so elaborate and touching as well; Jaipur redefined for me despite of many previous visits.
Jal Mahal – suppose that is how our tourism industry is, one needs to work on the imagination more than the real stuff …..-)
Great stuff.
Auro.
Hi Aurojit
Its really great to find you on my post after a long time.
Thank you for your kind words. I do echo your concerns over our mismanagement and unprofessional marketing approach. Thanx again.
@ Nandan if there is any award of excellence apart of the conventional ones, please bestow the one for this series……. ! Despite of more than 20 visits, I have never visited these places as intimately as I did it today while perusing these logs. The showers of brilliant remarks are inevitable. Great job BOSS!
Regards
Ajay
Ajay ji, somewhere I feel blessed myself for getting a wonderful opportunity to be a part of this elite club of such a nice and gentle human beings. The love and affection, I am getting here, is more precious for me than any other title. I really appreciate your gesture. Many thanx… God bless!!!
Hello Avtar Ji,
Again you have created the magic of words.
Thanks,
Arun
Hi Arun
Thanks bhai for your encouraging words.
लिल्ला पटको वालो सा, थे पधारयो म्हारे देस….. , अवतार जी लेखक के पास तो नई यात्रा वृतांत लिखने को बहुत कुछ होता है मगर देरी से लेख तक पहुँचने वालों के लिए, टिप्पणी करने को कुछ नहीं बचता क्योंकि शांत-आत्मन (एस.एस.) अपने बाद टिप्पणी करने को कुछ छोड़ते ही नहीं और संपादक को शायरों/कवियों को पीटने के लिए उकसा और जाते हैं. परन्तु मैं भी खुसरो साहब की दो पंक्तियाँ यहाँ जरूर दर्ज करूंगा, यदि पिटने का नंबर आएगा तो पहले ऊपर वालों का होगा मेरा तो बाद में आएगा |
ख़ल्क़ मी गोयाद की खुसरो, बुत परस्ती मी कुनद ; आरे-आरे मी कुनम बा, ख़ल्क़ मारा कार निश्त |
क़ाफ़िरे इश्कम , मुसलमानी मिरा दरकार निश्त ; हर रगे मुन तार गश्ता, हाज़ते जुन्नार निश्त |
……. बहुत सुन्दर विवरण, अति सुन्दर चित्रों सहित (खासकार जो चित्र आपने अपनी भार्या सहित महल में जड़ित दिखाया है) अंत में आप के लिए : अपनी तज़बीजो तौफीक को तामीर किया, ज़र्रे ज़र्रे को भी तमीज़े अदब से तस्लीम किया.
धन्यवाद |
आदरणीय त्रिदेव सर,
आपकी टीप के प्रतिउत्तर के लिये, फिर लौट कर आऊंगा, अभी तो फ़ारसी में लिखे खुसरो के दोहे का अर्थ समझ लूँ पहले…
आशा है आप बुरा नही मानेगे!!!
आदरणीय त्रिदेव सर,
देरी के लिये मुआफी| दरअसल आपने खुसरो के जिस दोहे को लिखा था, मैं उसका भावार्थ नही समझ सका, और मुझे ऐसा लगा कि बिना सन्दर्भ ऐसे ही थैंक्यू-थैंक्यू लिख कर आगे बड जाना यहाँ आप जैसे आत्मीय सज्जन के प्रति मेरी दृष्टता होगी वहीं अपने अज्ञान की आत्मग्लानि भी मुझे सालती रहेगी | सो, अपने एक प्रिय मित्र के सौजन्य से मैंने उसका अर्थ समझा और फिर आपको धन्यवाद देने चला आया|
सर, बेहद नजाकत और नफ़ासत भरे अल्फाजों से आप अपनी बात रखते हैं और ऐसी कि सामने वाला बस आपका मुरीद बन कर रह जाता है | मेरे अहोभाग्य कि आप जैसे गुणीजन मेरे द्वारा लिखे को ना सिर्फ पड़ते हैं, बल्कि उसे ऐसी इज्जत बख्शते हैं कि वो मेरे लिये जीवन भर का सरमाया हो जाता है | ह्रदय से अनुग्रहित हूँ सर आपकी टीप के लिये ….
नोट- उन मित्रों के लिये जो मेरी ही तरह फ़ारसी से अनभिज्ञ हो मैं खुसरो का दोहा तथा उसका हिंदी में अनुवाद दे रहा हूँ, जैसा कि मेरे मित्र श्री खुर्शीद अनवर जी ने किया –
ख़ल्क़ मी गोयाद की खुसरो, बुत परस्ती मी कुनद ; आरे-आरे मी कुनम बा, ख़ल्क़ मारा कार निश्त | क़ाफ़िरे इश्कम , मुसलमानी मिरा दरकार निश्त ; हर रगे मुन तार गश्ता, हाज़ते जुन्नार निश्त |
दुनिया कहती है की खुसरो बुत परस्ती करता है. दुनिया का क्या कहना . जो मैं कहता हूँ वही मैं हूँ . इश्क का काफ़िर हूँ मुसलमान होना मेरी ज़रूरत नहीं. मेरी हर राग तार बन चुकी है इस लिए मुझे जनेऊ की भी ज़रूरत नहीं ( याद रहे सितार अमीर खुसरो ने बनाया था )…. नीस्त है निश्त नहीं
Dear Avtarji,
I think its time I went back to see Amer Fort – it has been 25 years and I seem to have almost no recollection. The photos and the writeup are awesome.
Here we go again – on one hand you say the males were mostly busy fighting battles and hunting, but they made sure the womenfolk lived in luxury. You have described the separate sleeping rooms, makeup rooms, plumbing to keep the interiors cool. Then why was the condition of the womenfolk ‘dayaniya’? Farooq Abdullah says – they do want to send all the males to jail. And Avtarji would love it when that happens.
Adhyatmik angle has been jettisoned but laceration of menfolk continues for reasons best known to you!
Hi Nirdesh Sir
I was expecting it!
I knew, because of that lines, Nirdesh Bhai definitely put forward these age old questions.
Sir, my logic is very simple and I am not a feminist of that class, who seldom come on street taking candles in their hands and shouting slogans.
I am a student of science, and I only know that male and female are just a biological process. It is as simple as XX and XY pair of chromosomes. Nature can not differentiate, between both the genders, then why should we do?
SS sir is right, when he says, Mughal invasions could be the reason behind their ‘Lajja-janak sithiti’ but, believe me this was only the one aspect. The others lie in our customs and practices.
Guru Nanak says,’ सौ क्यूँ मन्दा आखिये, जित जम्मे राजान…” means how can we do or speak ill about women, when the kings take birth through their womb…
This is a greater issue and even world wide too, so for the being I am leaving it aside.
You like the post, including the photos, that is a big relief, knowing the fact that your’s, Vipin’s and SS sir’s photographs are cause of jealous for any professional photographer.
You did not recollect your memories about Amer but now at present it undoubtedly a sublime beauty beauty.
Thanx for your comment, sir!
Dear Pahwa Sahab
Really nice one as usual, gazab ka lekhan hai…
Beside this i hope that every one is enjoying Amir Khusro,s poetry….
Nice , thanks , Keep it up… and continue…
Regards
Thanx परमिन्द्र जी
आपके खूबसूरत और उत्साहवर्धक शब्दों के लिये बहुत धन्यवाद।
जी आपने सही कहा, आप सब आत्मीय सज्जनों की बदौलत घुमक्कड़ी के साथ-साथ कबीर और खुसरो जैसे जन कवियों के उपदेश भी मिल रहे हैं।
beautiful post,very very good photographs.you have got a very nice way of narration that holds the reader till the post ends.Ending the post with Khusro makes it unique.
Thanx Ashok Sharma ji for your gracias words like always.
Sir, I sincerely think its always been a pleasure for a reader if he finds a piece of poetry in the end, as it brings some relief and imaginations to his thoughts. And I am experiencing it with the facts that I even getting the great couplets from the readers too.
अवतार जी,
कुछ दिनों से व्यस्त था अतः घुमक्कड़ पर आ नहीं पाया, आज आया तो पाया की आपकी पोस्ट यहाँ उपलब्ध है तो सबसे पहले आपकी पोस्ट को पढ़ा। हमेशा की तरह बहुत सुन्दर, उम्दा तथा रोचक लेख एवं मनमोहक तस्वीरें। बधाई….
Hi Mukesh ji
बहुत धन्यवाद, अपनी तमाम व्यस्तायों के बावजूद आपने समय निकाला, और पोस्ट पसंद आते ही सूचना दी।
घुमक्कड़ के हर दिल अजीज लेखक से सराहना मिलना सच में राहत देता है… Thanx
आमेर किले पर एक बहुत ही शानदार लेख लिखा है आपने. मैंने इसको कई बार देखा है पर आपका वृतांत पढकर लगा कि कुछ नहीं देखा. तस्वीरें भी बहुत बढ़िया हैं….
Hi Deependra ji
हार्दिक अभिनंदन आपकी हौसलाफजाई के लिये।
अवतार सिंह जी
नमस्कार!
आमेर का किला और उसका इतिहास से परिपूर्ण आपका प्रस्तुत लेख पाठको के लिए रोचक एवं किले के इतिहास को दर्शाने में सक्षम है. ऐतिहासिक धरोहर जलमहल कि उपेक्षा कि और पाठको का ध्यानाकर्षण पाठकों में ऐतिहासिक धरोहरों के प्रति कर्तव्यबोध उत्पन्न करता है.
आकर्षक चित्रों के साथ ऐतिहासिक जानकारियों के लिए धन्यवाद.
मुनेश मिश्रा
Hi मुनेश जी
Many thanx for your comment.
आपने बेहद सुंदर और भाव पूर्ण शब्दों में जिस तरह पोस्ट की तारीफ़ की उसके लिए बहुत धन्यवाद।
Great Narration Pahwa ji,
Amer fort & Jaipur are all time favorite.
All 4 parts of this post are awesome.
Keep writing..
परमप्रिय अवतार जी,
आपके इस पोस्ट को पढ़ कर मैं निस्सन्देह कह सकता हूं कि अगर आप राजनीतिक टिप्पणियां करना छोड़ दें तो आप जैसा गुणी, मधुर स्वभाव और साहित्यिक मनोवृत्ति से लबरेज़ समझदार इंसान लाखों में एक मिलेगा।
मैं अभी दो ही मास पहले जयपुर भ्रमण करके आया हूं ! पहले ही दिन शाम को अम्बर फोर्ट गया था, पर पहुंचते – पहुंचते देर होचुकी थी, अतः दुर्ग में प्रवेश नहीं कर पाये ! हां, Light and Sound show देखने को मिल गया था। फिर भी, मन में कसक रह गई थी कि अम्बर दुर्ग नहीं देखा । आज आपका सरस विवरण पढ़ कर मन को बहुत सारी शांति मिल गई है कि चलो, अपनी आंखों से न भी सही, आपके नेत्रों से ही हमने भी अम्बर दुर्ग के दर्शन कर लिये।
रानी पद्मिनी का किस्सा तो आपने पढ़ ही रखा होगा ! भला, किस राजा में इतनी हिम्मत बचेगी कि वह अपनी रानियों का किसी परपुरुष को दीदार कराये ! वह जमाना था ही ऐसा, कुएं पर पानी भरती कोई सुन्दर युवती दिखाई दे जाये तो घंटे भर में ही सैनिक अपने बॉस की गुड बुक्स में आने की खातिर उसे जाकर बता देते थे कि आज एक सौन्दर्यवती दिखाई थी जो फलां व्यक्ति की पुत्री है। बस, आदेश हो जाता था कि उठा लाओ आज रात को ! शुरु – शुरु के वर्षों में महिलाओं को पर्दे में रखना आपद् धर्म के रूप में स्वीकार किया गया होगा, किन्तु सैंकड़ों वर्षों तक ऐसे ही लोगों का शासन रहे तो नई पीढ़ी को याद भी नहीं रहेगा कि महिलाओं को घर में छिपा कर रखना कभी ओढ़ी गई मज़बूरी थी । आज “परम्परावादिता, पितृसत्तात्मक समाज, रूढ़िवादिता” कह कर इन सब बातों के लिये कोसना बहुत आसान है परन्तु हम अपने आपको उनकी स्थिति में रख कर देख लें तो समझ सकेंगे कि वास्तविकता क्या है।
आपका ये कहना बिल्कुल सही है कि जिस किसी ने महल बनवाया, हर कोई उसका ही नाम जानता है पर जिन श्रमिकों ने वह महल बनाया, उसके नाम को लेकर चुप्पी छा जाती है। इस बारे में दो ही बातें कह सकता हूं । पहली ये कि मैने आज तक किसी कोठी में या मकान में उन राज मिस्त्री या मज़दूरों के फोटो लगे हुए या नाम लिखे हुए नहीं देखे जिन्होंने वह कोठी या मकान बनाया होगा। उन लोगों को पारिश्रमिक व इनाम आदि देकर विदा कर दिया जाता था। हां, हमारे इतिहास में ऐसे भी बादशाहों का ज़िक्र है जिनके बारे में एक सांस में तो यह कहा जाता है कि उन्होंने अपनी सबसे प्रिय रानी के लिये ताज़महल बनवाया था और दूसरी सांस में यह भी बताया जाता है कि उस बादशाह ने उन हज़ारों कारीगरों के हाथ कटवा दिये थे ताकि वह फिर कोई भवन निर्माण न कर सकें। लानत है ऐसे बादशाहों पर और उनके तथाकथित प्रेम पर !
कुल मिला कर इस सुन्दर लेख के लिये आपको हार्दिक बधाई ! देरी से आया पर आया तो सही ! :-)