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अमरनाथ यात्रा 2014 (Amarnath Pilgrimage) – प्रथम भाग

घुमक्कडी किस्मत से मिलती है और इसके लिये कुछ चीजों का होना बहुत आवयश्क है जिनमे से कुछ महत्वपूर्ण हैं – अच्छा स्वास्थ्य ,समय, धन और सबसे महत्वपूर्ण है घुमने का शौक़ । इनमे से किसी एक के भी ना होने से घुमक्कडी मुश्किल है।

मेरे पिता जी एक दुकानदार थे इसलिये उनके पास घुमने के लिये समय की कमी होती थी। एक दुकानदार के घुमने जाने का मतलब है कि उतने दिनो तक दुकान बन्द, खर्चा दूगना और आमदनी शुन्य । इसलिये मेरे पिता जी के घुमने का दायरा सिर्फ़ माता वैष्णोदेवी, हरिद्वार और ग्रहण के दिनो में कुरुक्षेत्र तक सीमित था लेकिन उनकी अमरनाथ यात्रा में काफ़ी दिल्चस्पी रह्ती थी। जब हम काफ़ी छोटे थे तब एक बार एक अख़बार की कटींग लेकर आये जिसमें अमरनाथ गुफा में बने हुए हिमलिंग की तस्वीर थी और हमें इस कठिन यात्रा के बारे में बताने लगे कि यहाँ कोई-2 जाता है और यह यात्रा बहुत दुर्गम है।

यह कटींग मेरे पास आज भी है लेकिन यह अख़बार उर्दू में है इसलिये मैं तिथि नहीं पढ पाया। उन दिनो यात्रा सचमुच बहुत दुर्गम थी क्योंकि ना तो उन दिनों सरकारी व्यवस्था थी ना ही उन दिनों हिन्दु संस्थाओं की ओर से कोई लंगर लगाये जाते थे, खाने-पीने की वस्तुएँ बहुत मंहगी मिलती थी और ठहरने की व्यवस्था खुद करनी पड़ती थी। परिवर्तन 1996 के बाद आया जब अमरनाथ यात्रा में प्रलय आ गया। बर्फ़िले तुफ़ान से जितने लोग मरे उससे ज्यादा लोगों को स्थानीय लोगों (पिठ्ठु और घोड़े वाले) ने लुट-पाट के लिये मार डाला। खाने-पीने की वस्तुएँ बहुत मंहगी बिकने लगी । बचे खुचे लोग जब वापिस अपने-2 घरों में पहुँचने लगे तो उनके किस्से सुनकर हाहाकर मचा। सामाजिक और हिन्दु संस्थाओं ने यात्रा में लंगर लगाने शुरु कर दिये।

यात्रा पर एक –दो आतंकवादी हमलों के बाद सुरक्षा के भी कड़े इन्तज़ाम होने लगे और अमरनाथ श्राइन बोर्ड़ अस्तित्व में आया। आजकल यात्रा पहले से काफ़ी सुगम और सुरक्षित  हो गयी है।

बात जुलाई 1998 की है। मैं इंजीनियरी करने के बाद बेकार था । हमारे शहर से एक बस अमरनाथ यात्रा पर जा रही थी। मेरे पिता जी उन दिनो बिमार थे और घर पर ही रहते थे। उन्होनें मुझसे कहा कि सारा दिन आवारा घुमता है, अमरनाथ यात्रा पर ही चला जा। मैं यात्रा पर जाने के लिए तैयार हो गया। आने जाने और खाने-पीने का खर्च घर से मिल रहा था तो कौन मना करता। एक साल पहले ही मेरे मामा जी वहाँ होकर आये थे इसलिये यात्रा की काफ़ी जानकारी मिल चुकी थी। मैने अपने दोस्त शुशील मल्होत्रा को यात्रा पर जाने के लिये तैयार किया और बस में दो सीट बूक करवा दी। तब से ऐसा चसका लगा कि अब हर साल इस यात्रा के शुरु होने की प्रतिक्षा रह्ती है।

ऐसा कहते हैं कि माँ –बाप अपनी अधुरी इच्छाओं को अपने बच्चों के द्वारा पुरा होते देखना चाह्ते हैं शायद इसलिये मेरे पिता जी ने मुझसे इस यात्रा के लिये कहा।

इस साल 2014 की यात्रा के लिये पजींकरण मार्च से शुरु हो गया था और हमने भी कुल छ: लोगों का 8 जुलाई के लिये बालटाल रूट से पजींकरन करवा लिया। मेरे अलावा मेरे दोस्त शुशील मल्होत्रा, राजू, राजू की पत्नि व उसके दो बच्चे शामिल थे। 6 जुलाई को अम्बाला से मालवा एक्सप्रेस द्वारा जम्मू के लिए निकलना तय हुआ। तय दिन सभी समय से रेलवे स्टेशन पहुँच गए और तय समय से दो घंटे लेट शाम 6 बजे तक जम्मू जा पहुंचे।

एक घुमाव पर लिया गया ट्रैन का चित्र

रास्ते में लिया एक चित्र

जम्मू स्टेशन से  ज्वेल  चौक (बस स्टैंड के पास ) तक मैटाडोर से पहुँच गए । यहाँ तक का किराया 10 रुपये प्रति व्यक्ति था। ज्वेल चौक पर उतरकर, मौलाना आज़ाद स्टेडियम के आगे से गुजरते हुए लगभग 150 मीटर आगे एक तिराहा है जहाँ से भगवती नगर के लिए मैटाडोर मिल जाती है, और किराया 5 रुपये प्रति व्यक्ति । हम भी उस चौक पर पहुंचे और वहाँ से भगवती नगर के लिये दूसरी मैटाडोर मिल गयी.

“अमरनाथ यात्रा के लिए पहला बेस कैंप जम्मू में ही है जहाँ से यात्रियों के लिए बालटाल व पहलगाम के लिए बसें और छोटे वाहन मिलते हैं। यह बेस कैंप भगवती नगर में है। इसे यात्री निवास भी कहते हैं यह काफी बड़ा बना हुआ है और एक साथ दो हजार यात्री यहाँ ठहर सकतें हैं। यात्री निवास के अंदर ही स्टेट रोडवेज़ काउंटर , मेडिकल सेंटर तथा एक कैंटीन भी है। यहाँ वो ही यात्री पहुँचते हैं जो जम्मू तक बस या ट्रेन से आते हैं और उनको बालटाल व पहलगाम के लिए बसें और छोटे वाहन यहॉ से मिल जाते हैं ।

अपने वाहनो से आने वालों को यहाँ आने की कोई आवश्यकता नही, वो सीधा उधमपुर के लिये निकल सकते हैं । रेलवे स्टेशन से भगवती नगर की दुरी लगभग चार किलोमीटर है और बस स्टैंड से लगभग दो किलोमीटर है. वहां जाने के लिए दोनों जगह से सीधे ऑटो भी मिल जातें हैं।”

यात्री निवास, भगवती नगर, जम्मू

यात्री निवास, भगवती नगर, जम्मू[

यात्री निवास, भगवती नगर, जम्मू[

यात्री निवास, भगवती नगर, जम्मू[

थोड़ी ही देर बाद हम लोग भगवती नगर पहुँच गए। यात्री निवास के पास बनी कॉलोनी के लोग यात्रा के दिनों में अपने घरों में कमरे यात्रियों को किराये पर दे देते हैं जिससे  उन्हें कुछ आमदनी हो जाती है।  हमने भी यात्री निवास में शोर -शराबे में  ठहरने के बजाय बाहर रुकना बेहतर समझा और तीन तीन सौ में दो कमरे ले लिए।  कमरों में सामान रखकर  मैं और  सुशील , सुबह की यात्रा के लिए बस की टिकट लेने यात्री निवास में गए।

यात्री निवास में केवल उन्ही लोगो को प्रवेश करने दिया जाता है जिनके पास तय तिथि के पंजीकरण फार्म होते हैं। रोडवेज़ काउंटर पर जाकर देखा तो टिकट काउंटर पर लम्बी लाइन लगी हुई थी और लाइन रुकी हुई थी। पता करने पर मालुम हुआ की पहले से मौजूद बसें पूरी भर चुकी हैं और जो बसें अभी आनी हैं वो कहीं दूर जाम में फसी हुई हैं और उनका सुबह तक जम्मू पहुंचना मुश्किल है इसीलिए और बुकिंग बंद कर दी गयी है।  काफी असंतोष होने पर रोडवेज़ का एक सीनियर अधिकारी आया और बोला की सुबह चार बजे टिकट मिलेगी वो भी यदि बसें यहाँ पहुँच गयी तो , नहीं तो बाहर प्राइवेट साधन उपल्बध है आप वहां बुक कर सकते हैं।

एक घंटे की माथा मच्ची के बाद , बिना टिकट , वापिस आ गए। एक लंगर पर खाना खाया और रात 11 बजे के करीब सुबह 3:30 का अलार्म लगा सो गए ।

शुशील मल्होत्रा

यात्रा मैप

एक भंडारे में सजा भोले नाथ का दरबार

जय भोले नाथ

श्री अमरनाथ जी पवित्र गुफा में तीर्थयात्रा के लिए जरुरी सलाह

अमरनाथ यात्रा 2014 (Amarnath Pilgrimage) – प्रथम भाग was last modified: September 7th, 2025 by Naresh Sehgal
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