दिल्ली की आबोहवा से जब मन भरने लगता है तो अनायास ही हृदय मे पहाडो कि छवि उजागर होने लगती है। कुछ ऐ्सा हि हमारे साथ भी हो रहा था इसलिये बिना समय व्यर्थ किये हमने आनन-फानन मे शिमला जाने का तय कर लिया। हलान्कि उन दिनो दिल्ली के हालात ज्यादा सही नही चल रहे थे और हर तरफ से सिर्फ एन०आर०सी० या फिर कोरोना वायरस का ही शोर मचा हुआ था। आग मे घी डालने का काम दिल्ली के दन्गो ने पूरा कर दिया था। फिर भी इन सब को दरकिनार करते हुये हमने जाखू महाराज (हनुमान जी) का नाम लिया और पान्च मार्च को सुबह आठ बजे दक्षिण दिल्ली से अपना सफर प्रारम्भ किया। वैसे भी तूफान से किश्ती निकालने का जो मजा है वो और किसी मे नही। यधपि मै अपने पाठक मित्रो को यही सलाह देना चाहुन्गा कि ऐसे माहोल मे या ऐसी स्थिति मे किसी प्रकार का जोखिम न ही उठाये तो बेह्तर होगा।
लगभग ढाई घन्टे की यात्रा के पश्चात हम सोनीपत स्थित ‘गरम धरम’ नाम के ढाबे मे जाकर रुके ताकि थोडा नाश्ता किया जा सके। अरे येह क्या मै तो यात्रियो का उल्लेख करना ही भूल गया। तो जनाब इस यात्रा मे हम कुल चार लोग थे जिसमे मै, माताश्री और बहनाश्री के अलावा इस बार हमारे मामाश्री भी साथ थे जो कि प्रथम बार हमारे साथ इस प्रकार कि यात्रा पर जा रहे थे।

इस ढाबे की एक विशेष्ता है कि इसमे धर्म पाजी कि सभी फिल्मो के सन्वाद, चित्र और वाहन आपको दिखायी देते है जिनके साथ आप अपनी फोटो भी ले सकते है। अब यह सब वास्तविक है या फिर ग्राहको को आकर्षित करने के लिये है इसका मुझे ज्यादा कुछ नही पता। खैर इस मनोरन्जक ढाबे पर थोडी देर बिताने और पेट पूजा करने के पश्चात हम चारो ने अपनी ‘विश्वसनीय वेगन आर’ पर यात्रा को फिर से प्रारम्भ किया। इस् बार गाडी सीधे चण्डीगढ जाकर रुकी वो भी केवल इसलिये कि हम लघुशन्का से निवृत होना चाह्ते थे।
दिल्ली से शिमला की दूरी लगभग तीन सौ पचास कि०मी० है जिसमे दो सौ पचास कि०मी० तक रास्ता मैदानी है तो आगे सौ कि०मी० तक पहाडी रास्ता है किन्तु डरने की कोई बात नही है क्यून्कि शिमला तक का रास्ता बहुत ही चौडा है और इसमे मेरे जैसे साधारण चालक भी आसानी से गाडी चला सकते है। परन्तु दिमाग और नजर दोनो का पूरी तरह से प्रयोग करना अनिवार्य है अन्यथा सावधानी हटी तो दुर्घटना घटी। इसलिये सदैव अपनी लेन मे ही चलना चाहिये, गति पर नियनत्रण रखना चाहिये और जब तक पूरा रास्ता ना दिखायी दे तब तक ओवरटेक कदापि ना करे।
शिमला की हसीन वादियो मे पहुन्च कर हमारा मन अब चाय और सूप पीने का हो गया तो थोडी देर हमने एक छोटा सा ब्रेक और ले लि्या।


इस बार हमने सीधे शिमला पहुन्च कर ही दम लिया। इस पूरी यात्रा मे हमे लगभग दस घण्टे लगे और शाम छः बजे तक हम अपने होटल बालजीस रिजेन्सी पहुन्च गये। क्युन्कि हम शिमला पहली बार जा रहे थे इसलिये हमने ‘मेक माई ट्रिप’ के माध्यम से इस होटल के दो कमरो को तीन दिनो के लिये बुक कर लिया था। हमने पान्च तारीख को चेक इन किया और आठ तारीख को चेक आउट किया जिसका खर्चा लगभग पन्द्रह हजार आया अर्थात ढाई हजार प्रत्येक कमरा। होटल ठीक था, सफाई व्यवस्था भी ठीक थी बस कार पार्किन्ग एरिया खुले मे था। हालन्कि हमे तो केवल रात को सोने से मतलब था बाकि पूरा दिन तो बाहर ही घूमना था।

शिमला शहर कि सडके थोडा ज्यादा हि ऊपर नीचे होती है इसलिये मैने तो गाडी को हाथ भी नही लगाया और स्थानीय टैक्सी का ही सहारा लिया। न्यू शिमला मे हमारे एक रिश्तेदार भी रहते है जिनसे मिलना भी अनिवार्य था, अतः सबसे पहले हमने उनके घर जाने का निर्धारित किया और नहा धोकर दोपहर का खाना उन्हि के घर पर किया। वैसे जाना तो सुबह था किन्तु शिमला मे लगातार बारिश हो रही थी जिसकि वजह से हम बाहर नही जा पा रहे थे। फिर दोपहर को वो ही अपनी गाडी से हमे लेने आ गये और हम उनके साथ हो लिये।
वर्षो उपरान्त मुलाकात हुयी थी इसलिये गोसिप मे थोडा ज्यादा ही समय चला गया। खैर मेहमान नवाजी के बाद शाम को उन्होने हमे मालरोड पर घूमने के लिये छोड दिया जहा घूमते हुये कब रात हो गयी हमे पता ही नही चला। मालरोड पर आपको हर एक प्रकार के सामान बडी ही आसानी से मिल जाते है। ऐसा कोइ ब्राण्ड नही जिसके कपडे यहा पर न मिलते हो। खाने पीने की भी खूब बहार है, जिसमे तरह तरह के देशी और विदेशी पर्यटक भी दिखायी दे जाते है। खैर सैर सपाटा और पेट पूजा करने के बाद हम लोग अपने होटल मे चले गये ताकि अगले दिन के लिये तरोताजा हो सके।

se kam nahi lagta
साल दो हजार बीस, सात तारीख, शनिवार का दिन हमने जाखू मन्दिर के लिये तय किया जिसमे कुफरी पर्यटन स्वतः ही जुड गया। दरअसल हुआ यू कि हमने अपने होटल मे एक कार चालक से बात की जो कि हमे जाखू मन्दिर तक ले जा सके किन्तु उसने कहा कि कुफरी मे अभी ताजा बर्फबारी हो रही है जिसका आनन्द लेने के लिये हमे वहा भी जाना चाहिये। बस फिर क्या था, हम लोग जाखू मन्दिर और कुफरी के लिये उसकी गाडी मे बैठ गये और सबसे पहले वो हमे कुफरी ले कर गया। तकरीबन एक घण्टे की यात्रा के पश्चात अरे येह क्या यहा तो जबर्दस्त बर्फ गिर रही है। यहा पहुन्चते ही आपको घोडे और खच्चर वाले घेर लेते है जिनकी तरफ हमने बिल्कुल भी ध्यान नही दिया क्युन्कि हमे घुडसवारी नही करनी थी बल्कि बर्फ मे खेलना था। इसलिये हमारा चालक हमे अड्वेन्चर पार्क ले गया जहान बर्फ मे खेलने के अलावा आप कुछ रोमान्चक खेल भी खेल सकते हो। अड्वेन्चर पार्क मे प्रति व्यक्ति टिकट पन्द्रह सौ रुपये है जिसमे आपको कपडे और जूते भी मिल जाते है। यहा पर हमारा कुल खर्च आया छः हजार रुपये किन्तु जो मजे बर्फ मे हमने किये वो सचमु्च पैसा वसूल थे।




कुछ घण्टे यहा पर भी बिताने के बाद अब हमे जाखू मन्दिर जाना था और हम सीधे बैठ गये अपनी टैक्सी मे। किन्तु हमारे चालक साब कुछ ज्यादा ही चालाक निकले और बर्फबारी का बहाना बनाकर उन्होने हमे मालरोड पर येह बोलकर छोड दिया कि आप यहा से लिफ्ट लेकर रोपवे के द्वारा मन्दिर चले जाओ वो ज्यादा सुविधाजनक है। हालान्कि हमारी बात दोनो जगह के लिये हुयी थी किन्तु अब वो दूसरी जगह जाने से मना कर रहे थे, खैर हमे रोपवे काआनन्द लेने मे भी कोइ दिक्कत नही थी इसलिये वही पर टैक्सी छोड्कर हम आगे बढ गये। सबसे बढिया बात तो येह थी कि मार्च के महीने मे ज्यादा पर्यटक शिमला मे नही थे और हमे कही पर भी भीडभाड का सामना नही करना पडा। रज्जु मार्ग से हम लोग शीघ्र ही मन्दिर प्रान्गण मे पहुन्च गये और चारो तरफ बिखरी बर्फ को देखकर यू लगा मानो किसी चित्रकार ने अद्भुत चित्रकारी की हो। यहा पर अच्छी खासी वानरसेना आपका स्वागत करने के लिये मार्ग पर विराजमान रहती है जिनसे भयभीत होने की कोई आवश्यकता नही है और आप यहा पर पूरी तरह सुरक्षित है।

Jai Shri Hanuman
मन्दिर मे दर्शन करने के तत्पश्चात एक लन्गूर महोदय मन्दिर के द्वार पर आकर खडे हो गये, पहले तो थोडा भय प्रतीत हुआ किन्तु वो तो केवल प्रसाद के लिये आये थे, अतः हमने उन्हे थोडा प्रसाद और जेब मे रखे बिस्किट खिलाये जिसे खाने के बाद वो दौडकर मन्दिर के द्वार के ऊपर जाकर बैठ गये और हमे ऐसा लगा मानो उन्होने हमे जाने की इजाजत दे दी हो।
जाखू मन्दिर के बारे मे जितना हम जान पाये उसका उल्लेख इस प्रकार है –
हनुमान जी सन्जीवनी बूटी लेने के लिये हिमालय पर्वत की तरफ जा रहे थे कि तभी उनकी नजर जाखू पर्वत पर तपस्या मे लीन यक्ष ऋषि पर पडी। उनके नाम पर ही यक्ष+याक+याकू+जाखू इस स्थान का नाम जाखू पडा। सन्जीवनी बूटी का परिचय जानने के लिये हनुमान जी यहा पर उतर गये और उनके वेग से जाखू पर्वत जो पहले काफी उन्चा था आधा पृथ्वी के गर्भ मे समा गया। जहा पर हनुमान जी उतरे थे वहा पर आज भी उनकी चरणो के निशान मौजूद है। हनुमान जी ने ऋषि को वापिस आने का वचन दिया किन्तु वापसी मे हनुमान जी अयोध्या होते हुये छोटे मार्ग से चले गये जिससे कि ऋषि जी थोडा व्याकुल हो गये जिसके कारन हनुमान जी ने उन्हे दर्शन दिये और उनके अन्तर्ध्यान होते ही वहा पर एक स्वयम्भू मूर्ति प्रकट हुयी जो आज भी मन्दिर मे विधमान है। यक्ष ऋषि ने हनुमान जी कि स्मृति को विधमान रखने के लिये इस मन्दिर क निर्माण किया था।
खैर यह तो रही मन्दिर के इतिहास की बात, अब आगे बढ्ते है। पूरा दिन कुफरी और जाखू मन्दिर मे बिताने के पश्चात या यू कहिये कि बर्फ मे एक दिन बिताने के बाद अब बारी थी वापिस अपने होटल मे जा कर आराम करने और फिर उसके बाद अपने रिश्तेदार के घर पर डिनर करने की। तो शाम को छः बजे तक हम अपने रूम मे वापिस आ गये थे और थोडी देर आराम करने के बाद हमने टैक्सी वाले से न्यू शिमला चलने के लिये कहा। और अगले आधे घण्टे मे उसने हमे निर्धारित स्थान पर छोड दिया। यहा सब हमारा काफी देर से इन्तजार कर रहे थे जिनसे मिलकर हमे भी बेहद खुशी हुयी। बस फिर क्या था डिनर करने और अगले तीन घण्टे तक भारी गपशप करने के बाद हमने इनसे विदा ली येह बोलकर कि कल रविवार के दिन सुबह हमे दिल्ली के लिये भी निकलना है। अपने भारतवर्ष की एक बात तो माननी पडेगी कि यहा पर मेहमान नवाजी बेहद खास अन्दाज मे की जाती है जिसका कोई जवाब नही।
अगले दिन, आठ मार्च दो हजार बीस, रविवार के दिन सुबह नौ बजे हमने शिमला शहर को अलविदा कहते हुये अपनी दिल्ली यात्रा का शुभारम्भ किया और सफर का आनन्द लेते हुये राष्ट्रीय राजमार्ग पान्च और फिर एक से होते हुये शाम को साढे सात बजे तक सकुशल अपने निवास स्थान दिल्ली पहुन्च गये।
हमारी येह यात्रा भी अन्य यात्राओ की तरह ही छोटी और सुगम थी जिसमे हमने ज्यादा पर्यटन स्थलो का भ्रमण तो नही किया किन्तु जो भी किया वो अदभुत था। वैसे भी प्रकृति के साक्षात दर्शन करने और उसे आत्मसात करने मे जो समय लगता है उसके लिये आपको एक स्थान पर टिक कर रहना पडता है अन्यथा ज्यादा घूमने के चक्कर मे कई बार हम वास्तविक सुन्दरता से रुबरु नही हो पाते। शिमला शहर वैसे तो काफी सुन्दर है किन्तु यदि आप और भी खूबसूरत नजारो का लुत्फ उठाना चाह्ते है तो उसके लिये आपको शिमला से आगे ट्रवल करना पडेगा।
पहाडो पर हम ज्यादा ट्रवल करने के मूड मे नही थे इसलिये हमने शिमला मे ही तीन दिन बिताने का निश्चय किया और थोडी बहुत घुमक्कडी करने और अपने रिश्तेदारो से मेल मिलाप करने के उपरान्त इस शहर की यादो को अपने जेहन मे समेट कर वापिस अपने घरौन्दे मे लौट आये।
चलते चलते शायर आशुफ्ता चन्गेजी की कलम से –
किस की तलाश है हमे किसके असर मे है, जब से चले है घर से मुसलसर सफर मे है।
Nice blog. Thanks fro sharing it :)
Thank u so much Ma’am