हमारा अगला पड़ाव पूरी तरह भारतीय रेल के भरोसे था…छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस में वेटिंग टिकट था और कन्फर्मेशन ट्रेन छूटने से 2 घंटे पहले ही पता चलना था…लाल किला इसी उहापोह में घुमे कि शाम को अमृतसर जाना है या वापस भोपाल…
लगभग 2.30 बजे रेलवे का एसएम्एस आया कन्फर्मेशन का और भाग्य से दोनों सीट्स साथ ही मिल गयी…और नए उत्साह से स्टेशन पहुचे…
बचपन से ताज और गेट वे ऑफ़ इंडिया के अलावा अगर किसी और इमारत को देखने की इच्छा थी तो वो थी स्वर्ण मंदिर…उम्र की आधी शताब्दी गुज़र जाने के बाद वो इच्छा भी पूरी होने जा रही थी…
ट्रेन में सवार हुए और खुबसूरत हरा भरा पंजाब ट्रेन से देखते हुए 1 घंटे की देरी से अमृतसर पहुचे…तय किया था की होटल के बजाये मंदिर परिसर की सराय में ही रुकेंगे…साइकिल रिक्शा में सवार होके मंदिर पहुचे…गुरु अर्जुनदास सराय में बुकिंग सम्वन्धी सभी काम होते है अत:बुकिंग के लिए पहुचे तो पता चला 12 बजे बुकिंग होगी..लाकर रूम में सामान रख के नाश्ते के लिए बाहर निकले… 12 बजे हमे गुरु हरगोविंद सराय में एक एसी रूम मात्र रु.500 प्रतिदिन 2 दिन के लिए मिल गया…नित्य कर्म से निवृत हो हरमंदिर साहिब के लिए निकले…2 मिनट में ही पहुचे और वो दृश्य दिखा जो सिर्फ फिल्मो और फोटो में देखते आये है…विशाल सरोवर के मध्य में स्थित शुद्ध सोने से मढ़ा हुआ हरमंदिर साहेब परिसर…एक अजीब सी तृप्ति का अनुभव हुआ..ठीक वैसा ही अनुभव हुआ जैसा 10 वर्ष पूर्व हेमकुंड साहेब के दर्शन पश्चात हुआ था…क्या दोनों जगहों में कोई आंतरिक सम्बन्ध या कनेक्शन है ?? ईश्वर जाने…
सरोवर में लाल मछलिया तैरती हुई इसकी सुन्दरता बढ़ा रही थी…जगह जगह श्रद्धालु स्नान कर रहे थे तो कुछ हाथ पैर धो रहे थे…हाथ पैर धो के हम लोग दर्शनार्थियों की लाइन में लग गये…लगभग आधे घंटे में दर्शन करने प्रवेश मिला…ह्रदय को मोह लेने वाला शबद कीर्तन परिसर के अन्दर ही से प्रसारित हो रहा था..गुरु ग्रन्थ साहेब का पाठ निरंतर चल ही रहा था…मत्था टेककर ऊपर की मंजिल पहुचे वहा से छत पे…सोने से मढ़ा हुआ आँखों को चौंघियाता परिसर सच में मन्त्र मुग्ध कर रहा था…आखिर कब तक रहते..पीछे से आ रहे दर्शनार्थितो के लिए स्थान खाली करते हुए बाहर आये…प्रसाद ग्रहण किया किन्तु वही एक जगह छाँव में बैठ गये..वहा से उठने का मन नही कर रहा था…अंततः वहा से लंगर के लिए नियत हॉल में गये …थाली ग्लास चम्मच कटोरी ले के प्रसादालय पहुच के स्वादिष्ट पदार्थो से तृप्त हुए…हजारो लोगो का प्रतिदिन सुबह शाम लंगर इतना सुचारू रूप से कई कई वर्षो से चल रहा है ये वाहे गुरु की कृपा ही है.
पत्नी भोजन पश्चात अपनी सेवा देने रसोई घर चली गयी और मैं वापस रूम पे आ गया.
स्वर्ण मंदिर में दूसरा दिन
अगले दिन सुबह 5 बजे पालकी देखने गये जिसमे से रोज़ गुरु ग्रन्थ साहेब को मंदिर में ससम्मान स्थापित किया जाता है. बाद में दोपहर 2 बजे तक का समय बाज़ार में घुमे जहा वूलन कपड़ो की भरमार थी…प्रसिद्द छोले कुल्चे खाए…पंजाबी लस्सी पी.
बाघा बॉर्डर
2 बजे टैक्सी से बाघा बॉर्डर और सायं की बीटिंग रिट्रीट देखने निकले…रास्ते में अमृतसर के कुछ मंदिर आदि देखते हुए अमृतसर लाहोर सड़क पर सफ़र शुरू किया…पकिस्तान की तरफ जाने वाला रास्ता…वाघा बॉर्डर लगभग 30 किमी और लाहोर 50 किमी दूर…एक वक़्त था अमृतसर लाहोर को सगी बहने कहा जाता था आज एक दीवार है दोनों के बीच…
खैर..बॉर्डर पे पहुचे तो वहा कुछ हज़ार लोग हमसे पहले से पहुच के जगह घेर चुके थे…देशभक्ति के गीतों से माहौल सराबोर था…भारत पाक के फाटक के उस और पाकिस्तानी देशभक्ति गीत चल रहे थे…ऐसा अजीब सा नज़ारा पहले कभी देखा नही था…सिर्फ 50 कदमो का फासला था हमारे और उस देश के बीच जिसे हमारा दुश्मन कहा जाता है…सब कुछ यहाँ जैसा ही था वैसी ही जमीन पेड़ खेत पानी…लेकिन दुश्मन देश…
सूर्यास्त के समय दोनों देशो के झंडे उतारे जाते है तब दोनों तरफ नारेबाजी शोरगुल …कुछ समझ नही आता …कुछ सुनाई नही देता…
इस सेरेमनी के विषय में इतना कुछ लिखा जा चूका है की उसे रिपीट करने की आवश्यकता महसूस नही हो रही यहाँ…
आप को बता दू की अगर बॉर्डर देखने का मन हो तो सुबह या 12/1 बजे तक भीड़ बढ़ने से पहले हो आये ताकि इत्मीनान से देख सके और हो सकता है पाकिस्तानी रेंजर आपको चाय पानी पूछ ले…साधारण दिनों में बॉर्डर पे आपसी भाईचारा और मित्रता का माहौल रहता है दोनों और के सैनिको के मध्य..बातचीत हंसी मजाक..चलता रहता है.
दिन भर के थके हारे बस खाना खाके सो गये…
सैकड़ो हत्याओं का चश्मदीद गवाह- जलिआंवाला बाग़…
प्रार्थना करके हमने रूम 2 दिन के लिए और आवंटित करा लिया था हालाँकि 2 दिन से ज्यादा देते नही पर हमे दे दिया था.
सुबह 11 बजे स्वर्ण मंदिर के करीब ही जलिआंवाला बाग़ गये…प्रवेश द्वार आज भी उतना ही संकरा है जितना उस दिन था…शायद जान बुझ के उतना ही रखा गया है ताकि हमे पता चले की क्यों उस दिन लोग बाहर नही निकल पाये..आज भी प्रवेश व् निकास एक ही संकरे द्वार से ही है…हत्याकांड की निशानी के तौर पे दीवार पे गोलियों के निशान आज भी दिखाई दिए..
(अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर कार्यालय में 484 शहीदों की सूची है, जबकि जलियांवाला बाग में कुल 388 शहीदों की सूची है। ब्रिटिश राज के अभिलेख इस घटना में 200 लोगों के घायल होने और 379 लोगों के शहीद होने की बात स्वीकार करते है जिनमें से 337 पुरुष, 41 नाबालिग लड़के और एक 6-सप्ताह का बच्चा था। अनाधिकारिक आँकड़ों के अनुसार 1000 से अधिक लोग मारे गए और 2000 से अधिक घायल हुए।
(ref.Wikipedia)
वही शहीदी कुआ भी है जिसमे से लगभग 120 शव निकाले गये जो जान बचाने कुए में कूदे थे…
1919 की घटना आज भी बाग़ में जाने वालो के हृदय को झकझोर जाती है….भारी मन से लौटे वहा से…
अंतिम दिन
पुनः मंदिर परिसर और आसपास बाज़ार आदि घूमते रहे कुछ खरीदारी की और सायं 4 बजे छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस से घर की तरफ यात्रा शुरू हुई…पत्नी एक और दोगुना प्रसन्न थी की आगरा के साथ अमृतसर भी देख लिया और मैं सोच रहा था काश लाहोर भी जा पाता ! लगा जैसे कोई गहरा रिश्ता है दोनों देशो के लोगो के बीच जो राजनीतिक खीचतान के कारण एक होने की चाह होते हुए भी अलग रह रहे है…
इस तरह इस यायावर की एक और यात्रा संपन्न हुई.
संजीव जोशी
भोपाल
Sat Sriakal Sanjeev Ji, I am spell bounded with your post. You revived my memory of visiting Harmandir Sahib years back. You are right the experience of visiting amritsar and Harmandir Sahib Ji is a life time experience which fills one with ecstasy.
You are lucky to have visited Hemkunth Sahib Ji and now Waheguru Ji fulfilled your wish to visit Golden Temple as well. Sikh community has always served humanity through langar or fighting and sacrificing themselves for the rightness. Guru Ka Langar is the soul satisfying meal which people who are fortunate enough get to taste.
Wagha border experience was not very nice to me for the same reasons you stated here.
I have also visited Jammu’s RS Pura border which was a very nice experience and we could easily see and meet/talk to the Pakistani Soldiers and visitors there. Would suggest you to visit that place when the situation is better on border.
Stories of Jalianwala Bagh has always haunted me and wish it had never happened.
Overall a very nice post.
WaheGuru!
Sat Sriakal Sanjeev Ji, I am spell bounded with your post. You revived my memory of visiting Harmandir Sahib years back. You are right the experience of visiting amritsar and Harmandir Sahib Ji is a life time experience which fills one with ecstasy.
You are lucky to have visited Hemkunth Sahib Ji and now Waheguru Ji fulfilled your wish to visit Golden Temple as well. Sikh community has always served humanity through langar or fighting and sacrificing themselves for the rightness. Guru Ka Langar is the soul satisfying meal which people who are fortunate enough get to taste.
Wagha border experience was not very nice to me for the same reasons you stated here.
I have also visited Jammus RS Pura border which was a very nice experience and we could easily see and meet/talk to the Pakistani Soldiers and visitors there. Would suggest you to visit that place when the situation is better on border.
Stories of Jalianwala Bagh has always haunted me and wish it had never happened.
Overall a very nice post.
WaheGuru!
Thanks resp.pooja Ji
It’s nice to listen that my writing reminded you your visit.
Dear Mr. Joshi,
Many thanks for sharing this hearty log on your trip to Ambarsar. I have been to Harmandir Sahib, only once and for one reason or other, I could not visit it. Though I have been thinking about it for a long time. I do hope i make it soon.
As for Wagah border ceremony, we had the same feeling. All the euphoria, nationalism (on both sides) seems like an overkill to me. I didn’t know that one can visit this place in the morning. Thats a new information for me.
I do hope that you managed to try the popular delicacies of Amritsar, without which the trip is not complete :).
Keep traveling.
Wishes,
Nandan
Dear mr Nandan….one can go to border at any time but you need to depend on local transport or private taxi.