आगरा में भगवान शिव जहाँ स्वयं आये थे कहते हैं कि आगरा के मनकामेश्वर मन्दिर में स्थित शिवलिंग की स्थापना स्वयं भगवन शिव ने की थी जब भगवान श्री कृष्ण मथुरा में जन्म ले चुके थे. पौराणिक दृष्टि इस मंदिर का इतिहास लगभग साढ़े पांच हजार वर्ष पुराना हमें द्वापर युग की याद दिलाता है, जब भगवान शिव कैलाश पर्वत से इस स्थल पर आये थे. वह ब्रज मण्डल में अवतार लेने वाले भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन के लिए यहां से नित्य-प्रतिदिन निकलते थे और लौटकर आने पर यहीं विश्राम किया करते थे. यह पहले यमुना नदी का किनारा था और श्मसान भूमि थी. उन्होने सोचा था कि यदि श्रीकृष्ण को अपने गोद में लेकर क्रीडा करने को पाऊंगा तो यहां एक शिवलिंग स्थापित कर इस स्थल को चिरस्थाई बना दूंगा. उसी के परिणाम स्वरूप यहां बाबा भोले ने शिवलिंग की स्थापना की थी
बाद में इस लिंगस्वरूप का नाम श्री मनकामेश्वर पड़ गया. यह देश के उन प्राचीन मंदिरों में से एक है जो भगवान शिव को समर्पित हैं. अन्य प्रसिद्ध मनकामेश्वर मन्दिर लखनऊ, रानीखेत तथा इलाहाबाद में स्थित हैं. यह मंदिर अपने आप में बहुत अनोखा इसलिए भी है क्यूंकि यहाँ स्थित पूरे शिवलिंग को चांदी से कवर किया गया है.
पर्यटकों को भगवान शिव की मुख्य मूर्ति के नजदीक जाने की अनुमति है पर यह सुनिश्चित किया जाता है कि वह कोई भी अंग्रेजी या अ-भारतीय वस्त्र धारण नहीं किये हों जैसे सलवार सूट व पैंट तथा शर्ट. यह भी देखा जाता है कि उनके पास किसी भी प्रकार की चमड़े की वस्तु साथ न हो.
मुख्य गर्भ गृह के पीछे, कई छोटे छोटे मंदिर हैं. यह सभी मंदिर भिन्न-भिन्न देवी-देवताओं की स्मृति को समर्पित हैं जैसे माता गंगा, माता सरस्वती, माता गायत्री, भगवान हनुमान, भगवान कृष्ण, कैला देवी, भगवान नरसिंह, और भगवान राम.
गोकुल से वापस लौटते समय, शिव वापस यहाँ आये थे और अपने लिंग (शिवलिंग) स्वरुप की स्थापना कर दी. यहाँ उन्होंने कहा कि “इस स्थल पर मेरी सभी इच्छायें पूर्ण हो गयी है, भविष्य में जो भी अपनी मनोकामनाएं लेकर यहाँ आएगा ये लिंगस्वरूप उनकी वो मनोकामना अवश्य पूर्ण करेगा”। इसके बाद से इस लिंगस्वरूप का नाम श्री मनकामेश्वर पड़ गया। यह भी कहा जाता है कि भगवान शिव ने यह वचन दिया था कि जो भी यहाँ आएगा और इस शिवलिंग की पूजा करेगा, उसकी मनोकामना को शिव जी स्वयं पूर्ण करेंगे. इस शिवलिंग के प्रसिद्ध होने का यही मुख्य कारण है कि श्री मनकामेश्वर नाथजी के रूप में शिव जी सबकी इच्छाएं पूर्ण करते है. मंदिर में देसी घी से प्रज्वलित की जाने वाली 11 अखण्ड ज्योति 24 घंटे प्रज्वल रहती है. अपनी इच्छा पूर्ण होने के पश्चात भक्त इस मंदिर में आते है और एक द्वीप प्रज्वलित करते हैं.
सामान्यतः वांछित इच्छा पूर्ण होने के पश्चात वह भक्त पुनः इस मंदिर में आते हैं और दीप प्रज्वलित करते है. इसकी कीमत श्रद्धा के अनुरूप रु. 1.25 रूपए से लेकर रु. 1.25 lac रूपए तक हो सकती है
प्रत्येक सोमवार को तो इस क्षेत्र में निकलना मुश्किल हो जाता है. यहां जाम की स्थिति बन जाती है. सुदूर से आने वाले भक्तों का सैलाब यहां देखा जा सकता है. मेला जैसा दृश्य हो जाता है. सावन तथा मलमास के महीने में यहां विशेष रौनक देखी जा सकती है. लोग गंगाजी से पैदल चलकर कांवर में जल लाकर यहां शिव जी को चढ़ाते हैं.
महाशिवरात्रि का दिन भी यहां विशेष ही रहता है. इस दिन यहां भगवान शिव का विवाह समारोह मनाया जाता है. भोले बाबा का दूल्हे के रूप में श्रृंगार किया जाता है. इस श्रृंगार का दर्शन के लिए भक्तों के भीड़ का पूरा रेला देखने को मिलता है. पूरे दिन मंदिर में जागरण होता है. बाबा के विभिन्न स्वरूपोंकी झांकियां बनाई जाती हैं. भक्त पूरे दिन और पूरी रात मंदिर में जागरण, और बाबा के विभिनन रूपों के दर्शन करते हैं. महाशिवरात्रि को अन्य मंदिरों में चार बार तो इस मनकामेश्वर मंदिर में पांच बार आरती होती है. महा शिवरात्रि का परायण अगली सुबह को होता है. इस मंदिर के चारों ओर राधा कृष्ण के मंदिर हैं. इसे देखने के लिए बहुत भारी संख्या में भीड़ उमड़ती है. मनकामेश्वर एक पीठ या अखाड़े की तरह सुविधा का उपभोग भी करता है. शैव सम्प्रदाय में इस पीठ का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान होता है।