आगरा में भगवान शिव जहाँ स्वयं आये थे कहते हैं कि आगरा के मनकामेश्वर मन्दिर में स्थित शिवलिंग की स्थापना स्वयं भगवन शिव ने की थी जब भगवान श्री कृष्ण मथुरा में जन्म ले चुके थे. पौराणिक दृष्टि इस मंदिर का इतिहास लगभग साढ़े पांच हजार वर्ष पुराना हमें द्वापर युग की याद दिलाता है, जब भगवान शिव कैलाश पर्वत से इस स्थल पर आये थे. वह ब्रज मण्डल में अवतार लेने वाले भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन के लिए यहां से नित्य-प्रतिदिन निकलते थे और लौटकर आने पर यहीं विश्राम किया करते थे. यह पहले यमुना नदी का किनारा था और श्मसान भूमि थी. उन्होने सोचा था कि यदि श्रीकृष्ण को अपने गोद में लेकर क्रीडा करने को पाऊंगा तो यहां एक शिवलिंग स्थापित कर इस स्थल को चिरस्थाई बना दूंगा. उसी के परिणाम स्वरूप यहां बाबा भोले ने शिवलिंग की स्थापना की थी
बताया जाता है कि शिव जी भगवन कृष्ण के बाल स्वरूप के दर्शन करना चाहते थे. कैलाश पर्वत से मथुरा जाने के लिए निकलते समय उन्होंने इसी स्थल को अपना विश्राम स्थल चुना. शिव जी ने तब यहाँ तपस्या भी की थी.
एक अगले दिन जब शिव जी मथुरा गए, तब यशोदा माँ ने उनका रूप देखते ही उन्हें कृष्ण जी से मिलने के लिए अनुमति नहीं दी. उनका कहना था कि बालक कृष्ण आपके ऐसे रूप को देख कर डर जायेंगे, लेकिन इसके विपरीत इस दृश्य को देखने के पश्चात कृष्ण जी ने अपनी लीला प्रारम्भ कर दी, और रोना शुरु कर दिया. रोते-रोते उन्होंने शिव जी तरफ इशारा किया जो बरगद के पेड़ के नीचे समाधि लीन मुद्रा की अवस्था में बैठे हुए थे.
कृष्ण जी को ऐसे रोते हुए देख यशोदा माँ ने शिव जी को बुलाया और कहा कि आप उनके पुत्र को अपनी शुभकामनायें दे सकते हैं. इस प्रकार उनकी मनोकामना पूरी हुई. गोकुल से वापस लौटते समय, शिव वापस यहाँ आये और अपने शिवलिंग स्वरूप की स्थापना की. उन्होंने कहा कि यहाँ मेरी सभी इच्छा पूर्ण हो गयी है, भविष्य में जो भी अपनी मनोकामनाएं लेकर यहाँ आएगा, यह लिंगस्वरूप उनकी वो मनोकामना अवश्य पूर्ण करेगा. आगरा शहर के प्राचीन हिस्से रावतपाड़ा में स्थित है यह मन्दिर.
अग्रवन के टीले पर बसे हुए आगरा नगर के चारों कोनों पर एक एक शिव मंदिर, उनके ग्यारहें अवतार रूद्र तथा भौरव नाथ आदि मंदिरों का निर्माण हुआ है. यहां नियमित तथा सप्ताहान्त बन्दी के दिन सोमवार को दर्शनार्थियों की भारी संख्या देखा जा सकता है. असाधारण वास्तुकला, अभिनव ले आउट तथा पर्यटन की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान यह बना हुआ है. शानदार डिजाइन, रंगीन परिदृश्य, मनोरंजक अक्षर, संगीतमय परिवेश, रंगमंच की सामग्री आदि सभी दुर्लभ सामग्रियां आदिं यहां मिलती हैं. यहां आने पर श्रद्धालुओं को शान्ति तथा दिव्यता का अनुभव होता है. यहां के शिवलिंग के ऊपर चांदी का आवरण लगा हुआ है. मंदिर में एक गर्भ गृह है. इसमें प्रभु का विग्रह भी है. पास में परिवार के अन्य सदस्यों की भी दिव्य मूर्तियां प्रतिष्ठापित हुई हैं. यहां पहुंचने के लिए सीढ़ियों से नीचे उतरना पड़ता है.
बाद में इस लिंगस्वरूप का नाम श्री मनकामेश्वर पड़ गया. यह देश के उन प्राचीन मंदिरों में से एक है जो भगवान शिव को समर्पित हैं. अन्य प्रसिद्ध मनकामेश्वर मन्दिर लखनऊ, रानीखेत तथा इलाहाबाद में स्थित हैं. यह मंदिर अपने आप में बहुत अनोखा इसलिए भी है क्यूंकि यहाँ स्थित पूरे शिवलिंग को चांदी से कवर किया गया है.
मंदिर के केंद्र में गर्भगृह है जहां शिव जी की विशिष्ट प्रतिमा को स्थापित किया गया है. इस प्रतिमा के चारों ओर शिव जी के परिजनों की प्रतिमाएं है. इनमें गणेश, पार्वती माँ, कार्तिके, कीर्तिमुख, मंडी गण, माँ गौरा, अर्धनारीश्वर और माँ अन्नपूर्णा की प्रतिमाएं शामिल हैं. नीचे जाने के लिए कई सीढ़ियां बनी हैं. यदि कोई भक्त यहाँ जाना चाहता है जहां इन सबकी मूर्तियां स्थापित हैं तो उन्हें इन सभी सिद्धियों को पार करना होता है.
पर्यटकों को भगवान शिव की मुख्य मूर्ति के नजदीक जाने की अनुमति है पर यह सुनिश्चित किया जाता है कि वह कोई भी अंग्रेजी या अ-भारतीय वस्त्र धारण नहीं किये हों जैसे सलवार सूट व पैंट तथा शर्ट. यह भी देखा जाता है कि उनके पास किसी भी प्रकार की चमड़े की वस्तु साथ न हो.
सोमवार के दिन इस मन्दिर में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है. महाशिवरात्रि और सावन के दिनों में यहाँ एक वृहद मेला-सा लग जाता है. अन्य शिव मन्दिरों में दिन में चार बार आरती होती है, जबकि इस मन्दिर में पांच बार शिव स्तुति की जाती है. प्रातः चार बजे मन्दिर के कपाट खुल जाते हैं. गाय के शुद्ध उपलों की राख से बनी भस्म से शिव मूर्ति का लेपन किया जाता है. वैदिक अनुष्ठानिक विधि से की जाने वाली इस प्रक्रिया में आधा घंटा लगता है. तदुपरांत मंगला आरती, फिर षोडसोपचार विधि से श्रृंगार किया जाता है. सोमवार को विशिष्ट श्रृंगार किया जाता है जिसमे ढाई घंटे का समय लगता है.
मुख्य गर्भ गृह के पीछे, कई छोटे छोटे मंदिर हैं. यह सभी मंदिर भिन्न-भिन्न देवी-देवताओं की स्मृति को समर्पित हैं जैसे माता गंगा, माता सरस्वती, माता गायत्री, भगवान हनुमान, भगवान कृष्ण, कैला देवी, भगवान नरसिंह, और भगवान राम.
गोकुल से वापस लौटते समय, शिव वापस यहाँ आये थे और अपने लिंग (शिवलिंग) स्वरुप की स्थापना कर दी. यहाँ उन्होंने कहा कि “इस स्थल पर मेरी सभी इच्छायें पूर्ण हो गयी है, भविष्य में जो भी अपनी मनोकामनाएं लेकर यहाँ आएगा ये लिंगस्वरूप उनकी वो मनोकामना अवश्य पूर्ण करेगा”। इसके बाद से इस लिंगस्वरूप का नाम श्री मनकामेश्वर पड़ गया। यह भी कहा जाता है कि भगवान शिव ने यह वचन दिया था कि जो भी यहाँ आएगा और इस शिवलिंग की पूजा करेगा, उसकी मनोकामना को शिव जी स्वयं पूर्ण करेंगे. इस शिवलिंग के प्रसिद्ध होने का यही मुख्य कारण है कि श्री मनकामेश्वर नाथजी के रूप में शिव जी सबकी इच्छाएं पूर्ण करते है. मंदिर में देसी घी से प्रज्वलित की जाने वाली 11 अखण्ड ज्योति 24 घंटे प्रज्वल रहती है. अपनी इच्छा पूर्ण होने के पश्चात भक्त इस मंदिर में आते है और एक द्वीप प्रज्वलित करते हैं.
सामान्यतः वांछित इच्छा पूर्ण होने के पश्चात वह भक्त पुनः इस मंदिर में आते हैं और दीप प्रज्वलित करते है. इसकी कीमत श्रद्धा के अनुरूप रु. 1.25 रूपए से लेकर रु. 1.25 lac रूपए तक हो सकती है
प्रत्येक सोमवार को तो इस क्षेत्र में निकलना मुश्किल हो जाता है. यहां जाम की स्थिति बन जाती है. सुदूर से आने वाले भक्तों का सैलाब यहां देखा जा सकता है. मेला जैसा दृश्य हो जाता है. सावन तथा मलमास के महीने में यहां विशेष रौनक देखी जा सकती है. लोग गंगाजी से पैदल चलकर कांवर में जल लाकर यहां शिव जी को चढ़ाते हैं.
महाशिवरात्रि का दिन भी यहां विशेष ही रहता है. इस दिन यहां भगवान शिव का विवाह समारोह मनाया जाता है. भोले बाबा का दूल्हे के रूप में श्रृंगार किया जाता है. इस श्रृंगार का दर्शन के लिए भक्तों के भीड़ का पूरा रेला देखने को मिलता है. पूरे दिन मंदिर में जागरण होता है. बाबा के विभिन्न स्वरूपोंकी झांकियां बनाई जाती हैं. भक्त पूरे दिन और पूरी रात मंदिर में जागरण, और बाबा के विभिनन रूपों के दर्शन करते हैं. महाशिवरात्रि को अन्य मंदिरों में चार बार तो इस मनकामेश्वर मंदिर में पांच बार आरती होती है. महा शिवरात्रि का परायण अगली सुबह को होता है. इस मंदिर के चारों ओर राधा कृष्ण के मंदिर हैं. इसे देखने के लिए बहुत भारी संख्या में भीड़ उमड़ती है. मनकामेश्वर एक पीठ या अखाड़े की तरह सुविधा का उपभोग भी करता है. शैव सम्प्रदाय में इस पीठ का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान होता है।
आगरा में इस मंदिर के बारे में पहले पता नहीं था अब अगर आगरा जाना हुआ तो यंहा भी दर्शन अवश्य करूँगा।
अनिरुद्ध,
बहुत दिनोंके बाद मैंने घुमक्कर में एक हिंदी में लिखी हुई पोस्ट को पढ़ा। मैं अभी तक आगरा नहीं देखा पर जब जाना होगा तब जरूर इस मंदिर को भी जाके देखूँगी।
बहुत धन्यवाद इस पोस्ट के लिए।
बेहद खूबसूरत पोस्ट है… पढ़कर मजा आया… इसी तरह घूमते और घुमाते रहिये!