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Dev Bhoomi Uttarakhand ….4

 

Dev Bhoomi Uttarakhand : Devprayag

बद्रीनाथ में साढे ग्यारह बजे बैरियर खुलने के इंतजार में दो घण्टे लाइन में लगे रहना पड़ा। रुद्रप्रयाग में रात्री विश्राम लेने का विचार किया था परंतु इच्छित धर्मशाला जाने का रास्ता निकल जाने से किसी दुकान पर सुझाव मिला कि मैं समय रहते श्रीनगर पहुँच सकता हूं और मुझे वहाँ रात्री विश्राम लेना चाहिये। मैं चल पड़ा। शीघ्रता से चलते हुये किसी जगह पर पाँच-छ गाड़ीयों को खड़े देख मुझे भी रुकना पड़ा। भू-स्खलन के कारण खराब रास्ते में कोई आती हुई छोटी कॉमर्शियल गाड़ी फंसी हुई थी। 15-20 मिनट के पश्चात वह आती दिखाई दी। ड्राईवर बदहवास सा तेजी से चलाते हुये ले गया। उसके पीछे एक अन्य गाड़ी अटक गई। अन्धेरा हो गया था। मेरे पीछे एक अन्य अल्टो में 4-5 नवयुवक थे। उनमें से कुछ ने आगे जा माजरा लिया कि स्थिति ठीक नही है। कुछ आवाज सुन उनमें से एक ने कहा कि पहाड़ से पत्थर गिर रहे हैं। पानी की बहती आवाज के मध्य कुछ सुनने के चेष्टा करते हुये, पहाड़ों पर भू-स्खलन क्रिया से अनभिज्ञ, मैने कार से टॉर्च निकाल देखने की कोशिश की तो जैसे पहाड़ टॉर्च-लाइट से छेड़े जाने का ही इंतजार कर रहा हो और भरभराकर नीचे गिरने लगा। टॉर्च की रोशनी में धूल नजर आ रही थी। नीचे गिरते पत्थरों के आपस में टकराने से चमक हो रही थी और अटके वाहन पर पड़ते पत्थरों की तड़-तड़ आवाज से निश्चित हो गया कि गाड़ी तो खत्म हो चुकी होगी।

अनुमान लगाया कि ड्राईवर व अन्य पहले ही वाहन छोड़ निकल जाने के कारण बच गये होंगे। नवयुवकों में से एक ने जानकारी दी कि कुछ कि.मी.पहले एक वैकल्पिक रास्ता है जो करीब 40 कि.मी.लम्बा है। अच्छे बुरे रास्ते का एक ही जवाब था कि सड़क है। इस बीच अन्य कई वाहन लौट गये और वे भी चले गये। मैनें विचार किया कि सुबह 12 एक बजे से पहले तो रास्ता खुलेगा नही, संभवतया और देरी होने से मैं समय पर जयपुर पहुँच नहीं पाऊंगा इसकारण 40 कि.मी.लम्बे रास्ते को अपनाना उचित रहेगा जिसके लिये 2-3 घण्टे की और ड्राइविंग करनी पड़ेगी। मैंने भी कार वापिस घूमा ली। एक ढाबे-होटल में कुछ व्यक्तियों को तेज स्वर बातें करते देख रुका रास्ते की जानकारी के लिये। किसी का ध्यान न पाकर बोतल में पीने का पानी भर इंतजार में था कि किसी से पूछूं तो एक लौटती गाड़ी के रुकने पर ड्राइवर ने बताया कि वह जो 500 मीटर दूर पुलिया है उससे दांई ओर रास्ता फटता है परंतु आप अकेले हैं, इस रात में जायेंगे ? नहीं-नहीं कोई बात नही, परंतु ध्यान रखियेगा ठीक 28 कि.मी.पश्चात दाईं तरफ के रास्ते पर मुड़ना है, कहीं आगे मत चले जाइयेगा। मैं पुलिया पार कर मुड़ गया उस पत्थर बिछे रास्ते पर। चान्दनी रात में दुर्गम पहाड़ी रास्ते का ‘आनन्द’ लेते हुये। कुछ कि.मी.बाद सड़क किनारे ‘एंगल’ पर जर्जर अवस्था में मुड़ा-टेढा बोर्ड नजर आया, नीचे उतर टॉर्च से देखने पढने की कोशिश की परंतु घिसे मिटे अक्षरों से कुछ समझ नहीं आया। दांई ओर घाटी पार दूर कहीं टिमटिमाती रोशनी कभी-कभार दिख जाती थी वरना निस्तब्ध प्रकृति की गोद थी। रिसते पानी की धारा से बने नालों को अतिरिक्त सावधानी से पार करता जा रहा था। एक जगह पानी के कारण 25-30 मीटर लम्बा दलदली रास्ता मिला जिसके पार प्रथम बार मुझे किसी वाहन की रोशनी दिखी। मेरी कार की लाईट देख वह गाड़ी उस पार रुक गई। ‘ग्राउण्ड-क्लीयरेंस’ कम होने के कारण अल्टो को ऐसे रास्तों पर लीक से हटकर चलाना पड़ता है। गीली मिट्टी में धीमे होकर फंसती कार को देख मैने कुछ रेस बढाई तो स्लिप होकर दाईं ओर मुड़ी, चार-पाँच फुट पर ही हजारों फिट गहरी घाटी, पर मैं निकल गया। अब महसूस करता हूँ कि फंस जाने की भयावह स्थिति में सहायता के लिये ईश्वर ने ही उस गाड़ी को भेजा था, अन्यथा इस साढे पाँच घण्टे की यात्रा में मुझे कुल तीन ही वाहन मिले थे। कार से, मेरे जीवन की यह सबसे दुस्साहस पूर्ण यात्रा साबित हुई। इस चालीस कि.मी.यात्रा में सही मायनों में पतली सड़क कुल चार पाँच कि.मी.ही रही होगी। गहरे सूखे व बहते नालों भरा, ज्यादातर गोल पत्थर बिछा, बड़ी गाड़ीयों के कारण चिकनी मिट्टी में गहरी सूखी व गीली लीकों भरा, दिशाहीन, अनजान रास्ता था। रात्री डेढ बजे श्रीनगर पहुँचा, सूनी सड़क व जन-विहीन से मकान-दुकान थे। किसी पार्क के पास लेम्प-पोस्ट के नीचे कार पार्क की और सीट लम्बी कर कम्बल ओढ सोने की कोशिश में आराम करने लगा।

 

29 अक्टूबर 2010 की सुबह सड़क पार रेस्टोरेंट में होती खटपट से चेतना आने पर कम्बल व सीट व्यवस्थित कर रवाना होकर रास्ते में किसी बहती जलधारा के पास जंगल में निवृत हो देवप्रयाग में रस्ते किनारे कार पार्क कर संगम में नहाने के लिये उतरा। यहाँ भगीरथी व अलकनन्दा का मिलन है। इस संगम से इसे जो गंगा नाम मिला, समुद्र मे मिलने तक इसके इस नाम में कोई परिवर्तन नहीं है जबकि इससे पहले यह अनेकों नामों से जानी जाती रही है। यहां श्रीरामचन्द्रजी ने ब्राह्मण रावण को मारने की ब्रह्महत्या के प्रायश्चित स्वरूप तप-पूजन-अर्चन किया था। दोनों नदियों की वेगवती धारा संगम पर स्नान की तैयारी में एक पण्डा आया और मेरे मानसिक ध्यान-पूजन में अपने कुछ फूल-पत्तों, रोली-चावल व मंत्रों का सहयोग कर मुझे आशीर्वचन कहे। चारधाम यात्रा में हरिद्वार-ऋषिकेश के निकट होने व इच्छित रात्री-विश्राम स्थल पर पहूँचने की जल्दी तथा संगम का सड़क से कुछ दूर होने के कारण यात्रा-बसें यहाँ कम ही रुकतीं हैं। यहाँ रुकने का कार्यक्रम बनाकर कर नीजी वाहन वाले ही अधिकतर यहाँ रुकते हैं।  चौड़े पाट में यहाँ का संगम बड़ा ही मनोरम दिखता है। संगम पर आने के लिये भागीरथी पर बने एक पैदल पुल को पार करना पड़ता है। इस पर बरबस रुकने की इच्छा करती है दोनों ओर पहाड़ों के बीच गरजती वेगवान भागीरथी को देखने के लिये और मन रोमांचित हो उठता है तेज हवा बीच रस्से से बने पुल के थरथराने से। यहाँ से रवाना हो शिवपुरी में चाय पी और हरिद्वार पहुँच शांतीकुंज में खाना खाया तथा मिठाईयाँ आदि खरीदीं। कुछ देर विश्राम किया, किसी हॉल में रक्खी दरी को बिछा लेटकर। ICICI Bank के HP सहयोग से जारी क्रेडिट-कार्ड से HP पेट्रोल पम्प से पेट्रोल लिया जिसपर कोई चार्ज नहीं लगना चाहिये। परंतु ‘स्टेटमेण्ट’ में लगे चार्ज के बारे में जानकारी मिली कि HP पम्प द्वारा ICICI बैंक की मशीन पर ‘स्वाइप’ करने पर ही यह सुविधा है और यह कस्टमर की जिम्मेदारी है कि सम्बन्धित पम्प द्वारा उसकी मशीन पर ही कार्ड स्वाइप किया जाये। HP पम्प वाले इससे बचने के लिये अन्य बैंकों की मशीनें भी रखते हैं। क्या ही नायाब तरीका है, ईमानदार धोखाधड़ी का। पाश्चात्य भौतिकवाद का प्रभाव ? दिल्ली पार करते हुये मुझे रात्री के नौ बज गये। झपकती आँखों के कारण किसी रेस्टोरेण्ट के सामने कार रोक, सीट पर ही झपकी लेने व चाय पीकर चलने का कार्यक्रम जयपुर पहूँचने तक मैने तीन बार अपनाया। तेज आवाज में चलती महामृत्युंजय की कैसेट मन को बाँधे रही। आमेर से निकल जयपुर प्रवेश करते भोर की लाली दृष्टिगोचर होने लग गई। झोटवाड़ा पहुँच घर के सामने हॉर्न बजाते ही संगीता व सुनीता दोनों बेटियाँ उल्लसित हो शीघ्रता से नीचे आ दरवाजा खोलने लगीं। अकस्मात पहुँचने के ख्याल से मैनें फोन पर आने की सूचना नहीं दी थी। हमारा रहना उपर तल पर है और नीचे का हिस्सा किराये पर दे रक्खा है। पड़ौस की बहुएँ तीर्थ-यात्रा से आने के कारण प्रणाम करने आने लगीं। शाम को सुनीता को रेलवे स्टेशन पर रवाना करते वक्त बद्रीनाथ से बिना रुके कार ड्राइव करने के परिश्रम की सार्थकता का अनुभव हुआ। यह हमारी सभ्यता-संस्कृति है कि बेटी को विदा करते वक्त आंतरिक घनीभूत पीड़ा मिश्रित, उसके खुश व सुखी दाम्पत्य जीवन से आप्यायित मन, अनेकों आशीर्वाद के साथ निर्मिमेष हो व्यवहार करने लगता है।

 

Dev Bhoomi Uttarakhand ….4 was last modified: February 4th, 2024 by Sharma Shreeniwas
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