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सरधना– मैरी का चर्च, बेगम सुमरू और उनका राजप्रासाद

The Church of Mary, Palace of Begum Sumru at Sardhana

The Church of Mary, Palace of Begum Sumru at Sardhana

बचपन में मैं किसी न किसी बहाने से कई बार सरधना और उसके चर्च में आया हूँ. बेगम सुमरू के राजप्रासाद में भी विचरण किया है, पर अल्हड़ उम्र की कोई गंभीर यादें कहाँ होती हैं भला? मेरा बचपन चूँकि मुजफ्फरनगर में बीता है जो वहां से मात्र ४० किलोमीटर की दूरी पर है, तो इतना सफर करना कोई मुश्किल की बात नहीं थी. पर वो जो उम्र थी वह किसी बात की गहराई को परखने की नहीं थी, बस घूमने-फिरने और भव्य नज़ारों का अवलोकन करना ही काफी था. मोटरसाइकिल से घूमने का रोमांच इस उम्र में अदभुत था, उस पर किसी डेस्टिनेशन पर जाने का भी उचित स्थान नज़र आया था उस समय सरधना.बस. मेरा विवाह जिस स्थान पर हुआ वह गॉंव संयोग से सरधना से मात्र २०-२२ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. इसी आवागमन के बहाने मैं पत्नी को भी दो बार सरधना का मैरी का चर्च तथा बेगम सुमरू का पैलेस दिखा लाया था.पर इन सब बातों को हुए एक युग बीत गया. मुझे साफ़ तौर पर याद है कि उन दिनों चर्च में भ्रमण पर आने वाले पर्यटकों की संख्या ब-मुश्किल १०-१२-१५ हुआ करती थी. बताते हैं कि विशेष दिनों में जब वहां मेला लगता था या क्रिसमस डे को लोग दूर-दूर से बसों में भर कर आते थे और तब वह संख्या हज़ारों में पहुँच जाती थी.

बहरहाल, आगरा से मेरठ बेटे के पास आये हुए हमें कई दिन बीत गए थे. कई बार मन ही मन में प्रोग्राम बना भी, पर किसी न किसी वजह से टल गया. इस बार मैंने पक्का तय किया था कि संडे को सरधना चलना है. शनिवार की शाम को मैंने पत्नी को भी बता दिया था कि मुझे तो जाना है, तुम अपना बताओ. उन्होंने भी साथ चलने में रूचि दिखाई तो प्रोग्राम पर मुहर लग गई।

सवेरे नौ बजे चलने का तय हुआ था पर जैसा कि सामान्यतः होता है, जब हम घर से निकालकर गाड़ी स्टार्ट कर रहे थे तो घडी पर नज़र डाली जो ठीक १०.४२ दिखा रही थी. कोई बात नहीं, संडे का दिन था और गर्मी भी कोई ख़ास नहीं थी. पत्नी के साथ इतना विलम्ब तो चलता है. गूगल मैप के सहारे यात्रा शुरू की, वो इसलिए कि पिछले तीन दशकों में मेरठ से कोई विशेष संपर्क तो रहा नहीं और इन दिनों में आस-पास के इलाकों का नक्शा ही पूरा बदल गया है.बाई पास और फोर लेन सड़कें तथा फ्लाईओवर व सर्विस लेन्स भी बनी हैं और वो पुराने रुट से हटकर बनी है.गलत रास्ते पर चलकर इधर-उधर से पहुँचने से बेहतर था सीधा और साफ़ रास्ता अपनाने का इरादा. गूगल मैप ने भरपूर साथ दिया और हम लगभग ४० मिनट में सरधना के प्रख्यात चर्च की चारदीवारी के बगल से होते हुए गेट तक आ पहुंचे.

The main entry to the Church of Sardhana

गेट के निकट ही गाड़ी दीवार से सटाकर खड़ी कर हम अपना कैमरे का बैग और पानी की बोतल लिए एंट्री को तैयार थे, लेकिन गेट पर तैनात दो लोगों ने रोकते हुए साफ़ पूछा कि “क्या आप लोग कैथोलिक हैं?”, हम प्रश्न के लिए तैयार नहीं थे, फिर भी हमने दृढ़ता से उनके प्रश्न का नकारात्मक उत्तर देते हुए अपनी सम्बद्धता स्पष्ट की. पर उसने हमें साफ़ तौर से एंट्री देने से मना कर दिया. कारण: संडे के दिन १२ बजे तक का समय प्रार्थना के लिए निर्धारित है और उसमे केवल क्रिस्चियन ही जा सकते हैं. और भी तमाम लोग एंट्री की अपेक्षा में वहां मौजूद थे.

कुछ देर बाद फिर से प्रयास करने पर गेटमैन ने एंट्री दे दी हालाँकि अभी १२ बजने में लगभग २० मिनट शेष थे.

The pathway which leads to the main gate of the church

मुख्य गेट से गिरजाघर की सुन्दर ईमारत मनभावन दृश्य का एहसास कराती है. मुख्या मार्ग से चर्च की दूरी लगभग १५० मीटर है और रस्ते भर छायादार व सजावटी वृक्ष लगे हैं. सं २००० के दौरान इस मुख्य मार्ग पर क्राइस्ट की यात्रा के १४ स्मारक स्थापित किये गये. इनसे एक ओर तो जीसस की जीवन यात्रा की जानकारी मिलती है और दूसरी और यह स्थापत्य कला के शानदार नमूनों की प्रस्तुति करते दीखते हैं. चर्च के मुख्य दरवाजे में एंट्री से पूर्व प्रेम और क्षमा की मुद्रा में येशु की मूर्ति एक गोलाकार में स्थापित की गई है.

The sculpture showing the journey of Christ to the immortality

चर्च में प्रवेश करते ही इसकी खूबसूरती से रोमांचित हो उठेंगे. चर्च का बरामदा संभाले १८ चौड़े और खूबसूरत पिलर खड़े हैं. बचपन में इंतना रोमांच नहीं लगता था जितना अब दुनिया के अनेकों रूप देखने के बाद लगा है. चर्च में प्रविष्ट होते ही जिस भव्य मूर्ति पर दृष्टि स्थिर होती है वह येशु मसीह की माँ मैरी की विशाल व अप्रतिम मूर्ति है. बताते हैं कि यह मूर्ति बेगम के बाद के वर्षों में दान में प्राप्त हुई थी. बताया जाता है कि जब बेगम चर्च बनवाया था तो इच्छा कि वे ईमारत को येशु की माँ मरियम को समर्पित कर उन्हें सम्मान दें, पर उन्होंने कभी स्वप्न में भी नहीं सोचा होगा कि मरियम की इज़्ज़त इस तरह से हो पायेगी जैसी रही है. आज यह चर्च मरियम की स्मृति का प्रतीक चिन्ह बन गया है.

The way to main Church: waiting for opening the doors

The Mother Mary to whom the church is dedicated to

चर्च का अधिकांश फर्श सफ़ेद संगमरमर का है. गुंबददार छत और ख़ास मेहराब प्लास्टर की कई किस्म की कारीगरी से सजे हैं. ये कारीगरी पूरब शैली में है.

साल में दो बार मरियम की याद में यहाँ मेले लगते हैं जिसमे दूर- दूर से आये लोग हिस्सा लेते हैं. तमाम लोग तो लगभग रोजाना की दुआ लेने यहाँ हैं. सुन १९६० में पोप जॉन पॉल २३ ने इसे छोटी बसिलिका की पदवी से सुशोभित किया.

The souvenir shop

संडे की प्रार्थना के कुछ अंश को सुनने के बाद हम चर्च आकर सोवेनिएर शॉप की ओर चल दिए. चर्च और बेगम समरू के जीवन वृतांत पर आधारित तीन पुस्तकें क्रय करने के बाद हम वापिस लौटने के लिये चले. चर्च से थोडी दूरी पर ही बेगम का राजमहल था जो अभी भी मौजूद है। बताते हैं कि चर्च का निर्माण पूरा हो जाने के बाद ही बेगम ने अपने राजप्रासाद का निर्माण आरम्भ कराया था. दुर्भाग्य देखिये कि बेगम सुमरु इस खूबसूरत महल में मात्र जीवन के आखिरी साल में ही निवास कर पाई. ८३ वर्ष की आयु में उनकी इसी राजप्रासाद में मृत्यु हुई. अब उसमें कैथोलिक सम्प्रदाय के लोगों के लिए गुरुकुल चल रहा है. दरअसल यह भवन बहुत पहले कैथोलिक्स द्वारा क्रय कर लिया गया था. इस विशाल व सुन्दर भवन का उपयोग सम्प्रदाय के नवयुवकों को प्रीस्ट बनाने के प्रशिक्षण में किया जा रहा है.

चर्च परिसर में आगंतुकों के लिए ठन्डे पेयजल के लिए वाटर कूलर व्यवस्था है.बाहर अगर आप चाय, कॉफी या किसी प्रकार के भोजन की इच्छा रखते हैं निराश होना पड़ेगा. सड़क किनारे कई खोमचे वाले छोले, चिप्स पैकेट्स, चकोतरे के फल, बर्फ के गोले और रंगीन शरबत तथा चाय बेचते हुई मिलेंगे पर उनका स्वाद व क्वालिटी किसी तरह से भी अपेक्षित नहीं लगता. हाँ,लगभग १२ किलोमीटर चलकर वापिस मुख्य मार्ग एन एच-५८ पर बेहतर ईटिंग पॉइंट्स व एक पांच सितारा होटल का सानिध्य भी प्राप्त हो सकता है.

The coloured cold water

बेगम सुमरु की कहानी किसी रहस्य तथा बॉलीवुड सरीखे रोमांच से कम नहीं है. उस पर फिर कभी चर्चा होगी.

सरधना– मैरी का चर्च, बेगम सुमरू और उनका राजप्रासाद was last modified: March 5th, 2022 by Raj Gopal Singh Verma
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