अà¤à¥€ अà¤à¤§à¥‡à¤°à¤¾ ही था। बाकी गाड़ियाठà¤à¥€ निकलने को तैयार हो रही थी। हम लोग फटाफट गाड़ी मे बैठे और पैंग से लेह की ओर निकल पड़े। अब जाकर राहत की सांस आने वाली थी। मेरा इरादा तो गाड़ी मे घà¥à¤¸à¤¤à¥‡ ही सोने का था। अंकल को रात बीती कहानी सà¥à¤¨à¤¾à¤ˆ गई। अंकल ने कहा “मà¥à¤à¥‡ तो गाड़ी मई अचà¥à¤›à¥€ नींद आई और कोई दिकà¥à¤•त à¤à¥€ नहीं हà¥à¤ˆ”, मैंने मन-ही-मन बोल की बताने की ज़रूरत नहीं है सब लोगों को पता है। पैंग से निकलते ही चà¥à¤¾à¤ˆ शà¥à¤°à¥‚ हो गयी थी। अब सबसे पीछे वाली सीट पर कोई नहीं बैठा था। ठंड होने की वजह से राहà¥à¤² आगे और हम तीनों (मैं, हरी,मनोज) बीच वाली सीट पर बैठे हà¥à¤ थे। किसी को à¤à¥€ अब सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤° होकर पिछली वाली सीट पर बैठने या लेटने की इचà¥à¤›à¤¾ नहीं हो रही थी। हलà¥à¤•ा उजाला सा होने लगा था। फिर थोड़ी देर के बाद सूरज की किरणों ने पहाड़ों में लालिमा बिखेरी। चारों ओर मानों सोने के पहाड़ हों। नज़ारा देखने लायक था।
अब हम लोग सà¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨à¥‡ लगे, हमे सà¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨à¥‡ का पूरा हक था, पूरी रात बिना सोठहà¥à¤ जो गà¥à¤œà¤¾à¤°à¥€ थी। पता नहीं कब आà¤à¤– लग गई। तà¤à¥€ à¤à¤¸à¤¾ लगा की कोई बोल रहा है। आà¤à¤– खोल कर देखा तो अंकल ने गाड़ी को à¤à¤• बहà¥à¤¤ बड़े से मैदान मे खड़ा कर दिया था। मेरा दिमाग ख़राब हो गया मैंने पà¥à¤›à¤¾ ” कà¥à¤¯à¤¾ हà¥à¤† अंकल गाड़ी ख़राब हो गयी है कà¥à¤¯à¤¾?” अंकल बोले “नहीं यार आगे रासà¥à¤¤à¤¾ नज़र नहीं आ रहा है” जाना कहाठहै। सब लोग उठगठथे। राहà¥à¤² बोला की यह जगह “मोरे पà¥à¤²à¥‡à¤¨à¥à¤¸ (more plains) है। यह जगह बहà¥à¤¤ बड़े मैदान जैसी थी। इतनी ऊंचाई पर इतना बड़ा मैदान हो सकता है कà¤à¥€ सपनों मे à¤à¥€ कोई कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾ नहीं कर सकता। इस समतल मैदान को इंगà¥à¤²à¤¿à¤¶ मे palteau कहते हैं। यहाठपर सब नीचे उतर गà¤à¥¤ कोई और गाड़ी à¤à¥€ नज़र नहीं आ रही थी। ये à¤à¥€ समठमे नहीं आ रहा था की गाड़ी सड़क पर है या सड़क से हटकर, कà¥à¤¯à¥‚ंकि वहाठकोई सड़क ही नहीं थी। इतने बड़े मैदान पर जहाठदेखो हर जगह गाड़ियों के टायरà¥à¤¸ के निशान दिख रहे थे। हम दो बड़े पहाड़ो के बीच मे थे। ये तो पकà¥à¤•ा था की सीधे आगे ही जाना है पर इतने चौड़े मैदान मे किस ओर से आगे बà¥à¤¨à¤¾ है ये पता नहीं था। हम ये सॊच रहे थे की रासà¥à¤¤à¤¾ à¤à¤Ÿà¤•ने पर कहीं गलत पहाड़ पर ना चॠजाà¤à¥¤ तà¤à¥€ दूर कà¥à¤› धूल उड़ती नज़र आई। कà¥à¤› इंतज़ार करने पर पता चला की वो “टाटा सूमो” है। गाड़ी को रोक कर पूछा तो डà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤µà¤° बोल सीधे चलते जाओ रासà¥à¤¤à¤¾ अपने आप मिल जाà¤à¤—ा। उसकी मान का कर हम लोग आगे चल दिà¤à¥¤ जैसे-जैसे आगे बà¥à¤¤à¥‡ गठरासà¥à¤¤à¤¾ अपने आप मिलता गया। अब सामने वाले पहाड़ पर सांप की तरह टेà¥à¤¾-मेà¥à¤¾ चलता हà¥à¤† रासà¥à¤¤à¤¾ नज़र आने लगा। हम रसà¥à¤¤à¥‡ पर चड़ते चले गठऔर जा पहà¥à¤‚चे “तागà¥à¤²à¤‚गला ला†दरà¥à¤°à¥‡ पर। यहाठतक पहà¥à¤à¤šà¤¨à¥‡ का सारा रासà¥à¤¤à¤¾ कचà¥à¤šà¤¾ ही था।
अब हम “तागà¥à¤²à¤‚गला ला†दरà¥à¤°à¥‡ पर पहà¥à¤à¤š गठथे। यह दरà¥à¤°à¤¾ ऊंचाई के मामले मे दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ में No.2 पर आता है। यहाठपर गाड़ी रोक कर कà¥à¤› फ़ोटो लिà¤à¥¤
ठंड होने की वजह से पहले तो मैं गाड़ी से नहीं उतरा। लेकिन फिर राहà¥à¤² ने कहा कि अब यहाठबार-बार थोड़ी आना है, इसलिठमैंने 2-3 फ़ोटो खिचवा ही लिà¤à¥¤ उसका कहना à¤à¥€ बिलकà¥à¤² सही था। कà¥à¤› ही लोगों को à¤à¤¸à¤¾ मौका मिलता है और बाकि लोगों की इचà¥à¤›à¤¾ उनके साथ ही इस दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ से चली जाती है। ये सॊच कर मैं तैयार हो गया था। यहाठसे हम अब नीचे उतरने लगे। अब तो हम सब घोड़े बेच कर सो गà¤à¥¤ कई बार बीच-बीच मे नींद खà¥à¤²à¤¤à¥€ और फिर से पà¥à¤°à¤•ृति के सौनà¥à¤¦à¤°à¥à¤¯ का आनंद लेकर हम सो जाते। मैं डà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤µà¤° सीट के पीछे बैठा हà¥à¤† था और मेरी दाà¤à¤‚ ओर “Indus” नदी बह रही थी। इस नदी का सà¥à¤°à¥‹à¤¤ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ तिबà¥à¤¬à¤¤ मे है। तिबà¥à¤¬à¤¤ से होते हà¥à¤ ये लदà¥à¤¦à¤¾à¤– मे घà¥à¤¸à¤¤à¥€ है और आगे पाकिसà¥à¤¤à¤¾à¤¨ से चलकर “अरब सागर” मे मिल जाती है। यहाठपर पहाड़ की कटाई का काम चल रहा था। मज़दूर कचà¥à¤šà¥‡ पहाड़ो को तोड़ने मे लगे हà¥à¤ थे। कहीं-कहीं तो पहाड़ मे छेद करके उनमे बारूद à¤à¥€ डाला जा रहा था। साथ मे “JCB” à¤à¥€ लगातार टूटे हà¥à¤ पतà¥à¤¥à¤°à¥‹à¤‚ को टà¥à¤°à¤• मे लोड कर रहीं थी। à¤à¤• जगह तो हमें 30 मिनट इंतज़ार करना पड़ा। आगे बà¥à¤²à¤¾à¤¸à¥à¤Ÿ होने की वजह से सड़क की सफाई का काम चल रहा था। à¤à¤¸à¤¾ लग रहा था की सड़क की मरमà¥à¤®à¤¤ चल रही है और जलà¥à¤¦à¥€ ही चारकोल डाल कर इसे नया रूप दे दिया जाà¤à¤—ा। à¤à¤• बात बतादूं मनाली से लेह तक बà¥à¤²à¤¡à¥‹à¥›à¤°, JCB, रोड-रोलर, चारकोल के डà¥à¤°à¤® सड़क के किनारे पर दिखना à¤à¤• आम बात है। जैसे-तैसे ये उबड़-खाबड़ रासà¥à¤¤à¤¾ पार करके हम आगे बà¥à¥‡à¥¤ नदी पार करने से पहले ही हमारी गाड़ी को रà¥à¤•वा दिया गया। पता चला की हम “उपà¥à¤¶à¥€” पहà¥à¤à¤š गठहैं। यहाठपर “कसà¥à¤Ÿà¤® और à¤à¤•à¥à¤¸à¤¾à¤‡à¤œ टैकà¥à¤¸” की चेक पोसà¥à¤Ÿ है। राहà¥à¤² को परमिट के साथ अंदर à¤à¥‡à¤œà¤¾ गया। इस चेक पोसà¥à¤Ÿ मे à¤à¥€ कà¥à¤› लिखा-पà¥à¥€ करने के बाद हमे आगे जाने का संकेत मिल गया। “उपà¥à¤¶à¥€” गाà¤à¤µ को पार करके हम आगे बॠचले। उपà¥à¤¶à¥€ मे सड़क से हटकर à¤à¤• “Helipad” à¤à¥€ है। उपà¥à¤¶à¥€ से कारू होते हà¥à¤ अब हम लेह की ओर आगे बà¥à¤¨à¥‡ लगे। कारू से लेह की ओर बà¥à¤¤à¥‡ हà¥à¤ à¤à¤¹à¤¸à¤¾à¤¸ होने लगता है की आप “military zone” मे पहà¥à¤à¤š चà¥à¤•े हो।

कारू से लेह के बीच का à¤à¤• फ़ोटो। इस फोटो मे दाà¤à¤ ओर हरी रंग की “military huts”
कारू से लेह की ओर जाते हà¥à¤ सड़क के दोनों तरफ Army का ही राज है। Army के जवान, टà¥à¤°à¤•à¥à¤¸, गाड़ियाà¤, गोदाम दिखना à¤à¤• आम बात सी है। रासà¥à¤¤à¥‡ मे हमें दूर दो “monastery” à¤à¥€ दिखाई दी। हमने सोचा की टाइम मिलेगा तो इनको à¤à¥€ देखा लिया जाà¤à¤—ा। कà¥à¤¯à¥‚à¤à¤•ि हम वापसी मे लेह से कारगिल के रासà¥à¤¤à¥‡ जमà¥à¤®à¥‚-कशà¥à¤®à¥€à¤° होते हà¥à¤ नॉà¤à¤¡à¤¾ वापस आने वाले थे। लो जी आ गया लेह का मà¥à¤–à¥à¤¯ दरवाजा।
आज हम पैंग से 185km का सफ़र तेय करके लेह पहà¥à¤à¤š गà¤à¥¤ लेह पहà¥à¤à¤š कर बिना समय ख़राब किठहमारा सबसे पहला काम था “DC” ऑफिस जाना। वहाठजाकर हमे “नà¥à¤¬à¥à¤°à¤¾ वेली” (nubra valley) और “पेंगोंग सो” (pangong so) जाने के लिठ“Inner-Line Permit” लेना था। “DC” ऑफिस मे जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ à¤à¥€à¥œ तो नहीं थी पर ऑफिस बंद ना हो जाठइस बात का à¤à¤¯ सता रहा था। ऊपर से सरकारी ऑफिसर कब अपनी सीट छोड़ कर चला जाठकà¥à¤¯à¤¾ à¤à¤°à¥‹à¤¸à¤¾à¥¤ सीमित छà¥à¤Ÿà¤¿à¤¯à¤¾à¤ होने की वजह से हम à¤à¤• दिन की देरी à¤à¥€ नहीं à¤à¥‡à¤² सकते थे। हरी और मनोज ने तो दिलà¥à¤²à¥€ से हेदराबाद का हवाई टिकेट à¤à¥€ करा दिया था। अगर देरी होती तो इन दोनों को मोटी चपत लगने वाली थी। परमिट का काम राहà¥à¤² को सौंप दिया गया। मैं, हरी और मनोज “DC” ऑफिस के बाहर फ़ोटो लेने लगे।

हरी के पीछे लेह का पोलो गà¥à¤°à¤¾à¤‰à¤‚ड है। यहाठपर अकà¥à¤¸à¤° पोलो, कà¥à¤°à¤¿à¤•ेट, फà¥à¤Ÿà¤¬à¥‰à¤² के खेल का आयोजन होता रहता है।
15-20 मिनट के बाद राहà¥à¤² “Inner-Line Permit” लेकर बाहर आ गया। सबके चेहरे पर सà¥à¤•ून से à¤à¤°à¥€ à¤à¤• मà¥à¤¸à¥à¤•à¥à¤°à¤¾à¤¹à¤Ÿ थी। à¤à¤¸à¤¾ मानो की आधी जंग जीत ली गई हो। हमे बता दिया गया था की परमिट की 4 कॉपी करनी हैं। लेह से आगे जाने पर ये कॉपी अलग-अलग चेक पोसà¥à¤Ÿ मे जमा करनी होती हैं। अब हम “DC” ऑफिस से लौट कर लेह के बाज़ार को पार करके चंगà¥à¤¸à¥à¤ªà¤¾ (Changspa) रोड की तरफ चल दिà¤à¥¤ वैसे तो यहाठपर रà¥à¤•ने के लिठबहà¥à¤¤ से होटल हैं, पर हम लोग à¤à¤• ससà¥à¤¤à¥€ सी जगह तलाश रहे थे। कà¥à¤¯à¥‚à¤à¤•ि हम यहाठआराम करने नहीं आये थे। हमे तो सामान रखने और रात को सोने की जगह चाहिठथी। चंगà¥à¤¸à¥à¤ªà¤¾ (Changspa) वाली सड़क पर ही शांति सà¥à¤¤à¥‚प (Shanti Stupa) है। इससे पहले ही खाने-पीने की कà¥à¤› दà¥à¤•ाने देख कर हम रà¥à¤• गà¤à¥¤ वहीठबगल मे à¤à¤• गेसà¥à¤Ÿ हाउस नज़र आया। हमने वहां पà¥à¤›à¤¾ तो हमारी किसà¥à¤®à¤¤ से वहाठ2 कमरे खली थे। 1 कमरे का किराया मातà¥à¤° Rs 200 पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¤¿à¤¨ था। हम लोगों ने दोनों कमरे ले लिà¤à¥¤ सामान कमरों मे पटक कर à¤à¤•-à¤à¤• करके फà¥à¤°à¥‡à¤¶ हà¥à¤à¥¤ इस बार अंकल ने à¤à¥€ गाड़ी छोड़ अपना बैग हमारे कमरे मे रख दिया था।
“हाठरे अंकल के बैग की फूटी किसà¥à¤®à¤¤ जो 4 दिन से लगातार गाड़ी मे पड़ा हà¥à¤† अपनी कमर तà¥à¥œà¤µà¤¾ चूका था अब लेह में आकर चैन की सांस ले पाया था।”
सबसे पहला काम था नाह-धो कर दो दिन पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ कपड़े बदल कर फà¥à¤°à¥‡à¤¶ होना। सब à¤à¤•-à¤à¤• करके निपट गà¤à¥¤ हमने अंकल को à¤à¥‹à¤œà¤¨ करने के लिठकà¥à¤› पैसे दे दिà¤à¥¤ वो हमारे साथ घूमने के लिठइचà¥à¤›à¥à¤• नहीं थे। उनकी तबीयत कà¥à¤› ढीली सी लग रही थी। हरी ने उनको à¤à¤• गोली दी और आराम करने की सलाह दी। हम चारों तेयार होकर वापस लेह के मà¥à¤–à¥à¤¯ बाज़ार की ओर चल दिà¤à¥¤ दोपहर के 2 बज रहे होंगे, à¤à¥‚ख à¤à¥€ लगी हà¥à¤ˆ थी। मनाली से लेह तक ठीक सा कà¥à¤› खाने को à¤à¥€ नहीं मिला था।

लंच के लिठबाज़ार जाते वक़à¥à¤¤à¥¤ फोटो मे पहाड़ी पर “शांति सà¥à¤¤à¥‚प” दिखाई देता हà¥à¤†à¥¤
बाज़ार जाकर मन चाहा खाया गया। पेट-पूजा करने के बाद हम चारों ने à¤à¥€ शाम 5 बजे तक आराम करने का निशà¥à¤šà¤¯ किया। बेड पर लेटते ही ज़बरदसà¥à¤¤ नींद आ गई। मैंने मोबाइल मे अलारà¥à¤® लगा दिया था कà¥à¤¯à¥‚à¤à¤•ि आज बिना अलारà¥à¤® के कोई à¤à¥€ उठने वाला नहीं था। शाम को हम लोग चंगà¥à¤¸à¥à¤ªà¤¾(Changspa) रोड पर आगे बà¥à¤¤à¥‡ हà¥à¤ शांति सà¥à¤¤à¥‚प(Shanti Stupa) की ओर चल दिà¤à¥¤ वैसे तो यहाठतक जाने के लिठमोटर रोड à¤à¥€ है लेकिन हमने पैदल ही जाना चाहा। यहाठसड़क के दोनों ओर दà¥à¤•ाने हैं, कà¥à¤› फ़ासà¥à¤Ÿ फ़ूड की, कà¥à¤› साइबर कैफ़े और टà¥à¤°à¥‡à¤µà¤² à¤à¤œà¥‡à¤‚ट की, कà¥à¤› à¤à¤‚टीक पीस की। मतलब सड़क पर माहोल बना रहता है। हम लोगों की नज़रें बस à¤à¤• ही दà¥à¤•ान को ढूà¤à¤¢ रही थी पर वो कहीं à¤à¥€ नज़र नहीं आई। शांति सà¥à¤¤à¥‚प à¤à¤• पहाड़ के ऊपर बना हà¥à¤† था, वहां तक जाने का रासà¥à¤¤à¤¾ हमारे सामने था। तà¤à¥€ हरी ने कहा “ओ माई गॉड वी हैवे टॠकà¥à¤²à¤¾à¤‡à¤‚ब 500 सà¥à¤Ÿà¥ˆà¤°à¥à¤¸”, ये सà¥à¤¨à¤¤à¥‡ ही मेरी à¤à¥€ लग गई, मैंने पà¥à¤›à¤¾ कहाठपर लिखा हà¥à¤† है मेरे à¤à¤¾à¤ˆà¥¤ वहीठपास मे लगी हà¥à¤ˆ शिला की तरफ उसने इशारा किया। मेरे बà¥à¤²à¤‚द हौसले à¤à¤•ा-à¤à¤• पसà¥à¤¤ हो गà¤à¥¤ लेकिन फिर से राहà¥à¤² ने पंप मार कर हमे तैयार कर दिया।

शांति सà¥à¤¤à¥‚प की ओर जाती सीड़ियाà¤à¥¤ अà¤à¥€ तो ये शरà¥à¤µà¤¾à¤¤ है।
अब मरता कà¥à¤¯à¤¾ ना करता चà¥à¤¤à¥‡-चà¥à¤¤à¥‡ दम फà¥à¤² गया। सही बोलूठतो चà¥à¤¾à¤¤à¥‡ हà¥à¤ नहीं बलà¥à¤•ि बैठते-बैठते, जैसे-तैसे हम लोग शांति सà¥à¤¤à¥‚प तक पहà¥à¤à¤š गà¤à¥¤
यहाठचà¥à¤¤à¥‡ हà¥à¤ हमने दो फिरंगियों को देखा वे दोनों सीडियों के दोनों तरफ पड़ी हà¥à¤ˆ गंदगी को उठा कर इकठà¥à¤ ा कर रहे थे। ये देख कर हम लोगों को बहà¥à¤¤ शरà¥à¤® आई। हम चारों à¤à¥€ इस काम मे उनकी मदद करने लगे। à¤à¤¸à¤¾ करके मन को बड़ा अचà¥à¤›à¤¾ सा अनà¥à¤à¤µ हà¥à¤†à¥¤ ये गंदगी à¤à¥€ à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯à¥‹à¤‚ ने ही फैलाई हà¥à¤ˆ थी और इसके विपिरीत फिरंगी इसको साफ़ करने मे लगे हà¥à¤ थे। फिरंगी यही संदेश लेकर अपने देश लौटते हैं।
शांति सà¥à¤¤à¥‚प मे दो तल हैं। पà¥à¤°à¤¥à¤® तल मे बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¾ (Buddha) के कà¥à¤› अवशेष रखे हà¥à¤ है। जो कि मेरी समठसे दूर है। पर हाठवहाठशांति थी और à¤à¤• सकारातà¥à¤®à¤• ताकत की मौजूदगी का à¤à¤¹à¤¸à¤¾à¤¸ था। दूसरे तल मे बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¾ (Buddha) के अलग-अलग रूप दरà¥à¤¶à¤¾à¤ हà¥à¤ थे जैसे की जनà¥à¤® लेते हà¥à¤, राकà¥à¤·à¤¸à¥‹à¤‚ को मारते हà¥à¤, धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ मे बैठे हà¥à¤à¥¤ शांति सà¥à¤¤à¥‚प मे शाम के वक़à¥à¤¤ ही जाना उचित है कà¥à¤¯à¥‚à¤à¤•ि सूरज ढलने के बाद यहाठसे लेह बहà¥à¤¤ ही सà¥à¤‚दर लगता है।

पहली बार चारों à¤à¤• साथ। L-R राहà¥à¤², मैं, हरी और मनोज।
अà¤à¤§à¥‡à¤°à¤¾ हो चूका था हम लोग वहां से वापस अपने कमरों की तरफ चल पड़े। जाकर सीधा बिसà¥à¤¤à¤° पकड़ लिया। लेकिन सबको बोल दिया गया की बिना à¤à¥‹à¤œà¤¨ किठकोई नहीं सोà¤à¤—ा। जिस दà¥à¤•ान को हम सब लोग ढूंढ रहे थे पूछने पर पता चला की वो तो नीचे जाकर लेह के मेन बाज़ार मे ही मिलेगी। सबको दावा-दारू की ज़रà¥à¤°à¤¤ महसूस हो रही थी। जिसको नहीं हो रही थी उसे महसूस करवा दी गई। हम चारों की हाठथी पर अब बाज़ार तक जाने की हिमà¥à¤®à¤¤ नहीं थी। अंकल बोले गाड़ी लेकर चले जाओ टेंशन किस बात की है। गाड़ी आराम से गेसà¥à¤Ÿ हाउस के अंदर सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ खड़ी थी। हमारे जगह पर कोई और गाड़ी लगा दे और फिर हमे बाहर गाड़ी खड़ी करनी पड़े ये अपने को मंज़ूर नहीं था। दावा-दारू के पà¥à¤°à¥‹à¤—à¥à¤°à¤¾à¤® को रदà¥à¤¦ कर दिया गया। ठीक से याद नहीं है तà¤à¥€ किसी ने कहा कि शायद हमारे पास दावा की à¤à¤• बोतल बची हà¥à¤ˆ है। फिर कà¥à¤¯à¤¾ था मज़ा आ गया। अंकल बोले मैं खाना खा कर आता हूठतà¥à¤® लोग à¤à¤¨à¥à¤œà¥‰à¤¯ करो। अब थकान का कोई नामो-निशान न था। रात के 10 बजे तक पà¥à¤°à¥‹à¤—à¥à¤°à¤¾à¤® निपटा लिया गया। पास के à¤à¤• रेसà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤‚ मे जाकर दाल,मिकà¥à¤¸ वेज और कड़ाई पनीर का डिनर किया और अपने-अपने बिसà¥à¤¤à¤° की ओर चल पड़े। तबीयत थोड़ी ढीली होने की वजह से अंकल ने à¤à¤• और बिसà¥à¤¤à¤° हमारे कमरे मे लगवा दिया था। अà¤à¥€ तक के सफ़र मे अंकल आज पहली बार कमरे के अंदर सोà¤à¥¤ तो à¤à¤¸à¤¾ बीता लेह मे हमारा पहला दिन। लेह से आगे का सफ़र अगले पोसà¥à¤Ÿ मे……………………………………..









Another superb travel story. I have seen many pictures of Leh but your’s pictures reflect the character of Leh.
It’s my pleasure to get such comments from you..
वाह गुसाईं साब, मजा आ गया. बढ़िया लेख और गजब फोटोज…कम से कम इन विदेशियों को देखकर तो हमें ये सबक लेना चाहिए कि इतनी खुबसूरत माँ स्वरुप धरा का सम्मान किस प्रकार करना चाहिए….अगर हम लोग समय रहते ना सुधरे तो आने वाली पीढीयाँ हमें जी भरकर कोसेंगी….खैर आप ये खुबसूरत सफ़र यूँही जारी रखिये….
सत्य वचन विपिन जी। सफ़र ऐसे ही जारी रहेगा।
Very well written equally supported by beautiful pictures.
Thanks Mahesh..
Hi,
Wonderful writing. It seems you have forced me to take this journey in September this year.
Waiting for the next part eagerly.
Regards
Sumit Nirmal Kumar
Hi Sumit,
You must do this trip….it will be a lifetime experience..
I have exactly same thoughts as PW about the pics showing the ‘Character’. More pictures like the market place, folks picking up debris, polo ground. Honest, real pics showing the day to day life.
Tell us more about the permit procurement procedure and any tips around it. If the hotel was clean/hygeinic enough to be recommended then please share the name, location and contact name/number, if you have.
So far so good. Hope you guys had a good spirited sleep after all the hard work :-)
Thanks for the valuable comments Nandan…I shall recall the permit procedure and let you know…
To be very honest I don’t have the hotel details as we opted for the very economical accomodation. The place was owned by some govt. official and had 10-12 seperate rooms with and without kitchen for renting purpose. As I mentioned in my post that the per day rent for the room was only Rs. 200.
ये दवाई ऐसी जगह बडे काम की चीज बन जाती है । शांति स्तूप देखकर मजा आ गया और हॉ लेह में 200. रूपये में कमरा मिल गया ये बेहद उत्साहित करने वाली बात लगी